हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – चुप्पी – 31 ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं।)

? संजय दृष्टि –  चुप्पी – 31 ? ?

(लघु कविता संग्रह – चुप्पियाँ से)

कितने दिन से

धधक रही थीं

चुप्पियाँ,

सारी की सारी

उँड़ेल दी एक साथ

खौलते पानी की तरह?

विनम्रता से कहता हूँ

मेरी चुप्पियाँ

बद्री विशाल में

माँ अलकनंदा की

हिमलहरों में

गर्म पानी का सोता है,

इसे अनुभव करना है

तो बद्रीधाम की यात्रा

तो करनी ही पड़ेगी।

 

© संजय भारद्वाज  

11:58 बजे

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय, एस.एन.डी.टी. महिला विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

🕉️ श्रवण मास साधना में जपमाला, रुद्राष्टकम्, आत्मपरिष्कार मूल्याकंन एवं ध्यानसाधना करना है 💥 🕉️

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 187 ☆ # “वर्षावास के प्रारंभ पर” # ☆ श्री श्याम खापर्डे ☆

श्री श्याम खापर्डे

(श्री श्याम खापर्डे जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी हैं। आप प्रत्येक सोमवार पढ़ सकते हैं साप्ताहिक स्तम्भ – क्या बात है श्याम जी । आज प्रस्तुत है आपकी भावप्रवण कविता “वर्षावास के प्रारंभ पर”

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 187 ☆

☆ # “वर्षावास के प्रारंभ पर” # ☆

रंग बिरंगी तितलियां

उड़ रही आकाश में

इंद्रधनुष लग रहा जैसे

निकला हो पास में

 

छुप छुप कर आती है किरणें

हम सब का अंत:करण हरणे

उन्मुक्त हवा के झोंकें

लिपटे है वृक्षों के सहवास में

 

भीग रही वसुंधरा

सब कुछ हो गया हरा भरा

छोटे छोटे जीव जंतु

लोट रहे हरी-हरी घास में

 

मेघ छाये घनघोर हैं 

तुफानों का जोर है

जंगल में नाच रहा मोर

वर्षा के आभास में

 

मानसून का मौसम है

बूंदों की छम छम है

भीग रही है तरूणाई

सावन के इस मास में

 

बिजुरी का कड़कना

मेघों का गरजना देख

वंचित आंखें हर्षित है

कुछ चमत्कार की आस में

 

त्यागकर संसार, भूख और प्यास

धम्म को अर्पित कर हर सांस

वो दीप जलाकर ध्यान में लीन

कोई भिक्खु बैठा है “वर्षावास” में

© श्याम खापर्डे 

फ्लेट न – 402, मैत्री अपार्टमेंट, फेज – बी, रिसाली, दुर्ग ( छत्तीसगढ़) मो  9425592588

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ – आगमन… ☆ श्री राजेन्द्र तिवारी ☆

श्री राजेन्द्र तिवारी

(ई-अभिव्यक्ति में संस्कारधानी जबलपुर से श्री राजेंद्र तिवारी जी का स्वागत। इंडियन एयरफोर्स में अपनी सेवाएं देने के पश्चात मध्य प्रदेश पुलिस में विभिन्न स्थानों पर थाना प्रभारी के पद पर रहते हुए समाज कल्याण तथा देशभक्ति जनसेवा के कार्य को चरितार्थ किया। कादम्बरी साहित्य सम्मान सहित कई विशेष सम्मान एवं विभिन्न संस्थाओं द्वारा सम्मानित, आकाशवाणी और दूरदर्शन द्वारा वार्ताएं प्रसारित। हॉकी में स्पेन के विरुद्ध भारत का प्रतिनिधित्व तथा कई सम्मानित टूर्नामेंट में भाग लिया। सांस्कृतिक और साहित्यिक क्षेत्र में भी लगातार सक्रिय रहा। हम आपकी रचनाएँ समय समय पर अपने पाठकों के साथ साझा करते रहेंगे। आज प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण कविता ‘आगमन…‘।)

☆ कविता – आगमन… ☆ श्री राजेन्द्र तिवारी ☆

सजा दो गांव की गलियां, वो मेरा लाल आया है,

लिपट कर वो तिरंगे से, तिरंगा साथ लाया है,

*

बता दो सबकी आंखों को, कोई नम आंख न होए,

रखी है लाज बेटे ने, मां का सर उठाया है,

*

चिता कोअग्नि देने को, हजारों बेटे आए हैं,

गया था जब, अकेला था, हजारों साथ लाया है,

*

सजाई है चिता उसकी, बिखेरे पुष्प देवों ने,

किया स्वागत, है अभिनंदन, यही सौगात लाया है,

*

सदा कहता था, है कर्जा, मुझ पर मातृ भूमि का,

नहीं रखा, कोई कर्जा, चुका कर ही वो आया है,

*

सुनाता था, कई किस्से, वो जब भी गांव आता था,

सभी किस्से अधूरे हैं, अधूरापन वो लाया है,

*

सहारा था मुझे तेरा, सहारा ना रहा अब तू,

सितारों से भरे नभ ने, सितारा नव सजाया है,

*

तेरा बलिदान सरहद पर, ना भूलेंगी कई सदियां,

हमेशा याद सब करना, यही सपना सजाया है.

© श्री राजेन्द्र तिवारी  

संपर्क – 70, रामेश्वरम कॉलोनी, विजय नगर, जबलपुर

मो  9425391435

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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English Literature – Poetry ☆ Anonymous litterateur of Social Media # 197 ☆ Captain Pravin Raghuvanshi, NM ☆

Captain (IN) Pravin Raghuvanshi, NM

? Anonymous Litterateur of Social Media # 197 (सोशल मीडिया के गुमनाम साहित्यकार # 197) ?

Captain Pravin Raghuvanshi NM—an ex Naval Officer, possesses a multifaceted personality. He served as a Senior Advisor in prestigious Supercomputer organisation C-DAC, Pune. An alumnus of IIM Ahmedabad was involved in various Artificial and High-Performance Computing projects of national and international repute. He has got a long experience in the field of ‘Natural Language Processing’, especially, in the domain of Machine Translation. He has taken the mantle of translating the timeless beauties of Indian literature upon himself so that it reaches across the globe. He has also undertaken translation work for Shri Narendra Modi, the Hon’ble Prime Minister of India, which was highly appreciated by him. He is also a member of ‘Bombay Film Writer Association’. He is also the English Editor for the web magazine www.e-abhivyakti.com

Captain Raghuvanshi is also a littérateur par excellence. He is a prolific writer, poet and ‘Shayar’ himself and participates in literature fests and ‘Mushayaras’. He keeps participating in various language & literature fests, symposiums and workshops etc.

Recently, he played an active role in the ‘International Hindi Conference’ at New Delhi. He presided over the “Session Focused on Language and Translation” and also presented a research paper. The conference was organized by Delhi University in collaboration with New York University and Columbia University.

हिंदी साहित्य – आलेख ☆ अंतर्राष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन ☆ कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

In his Naval career, he was qualified to command all types of warships. He is also an aviator and a Sea Diver; and recipient of various awards including ‘Nao Sena Medal’ by the President of India, Prime Minister Awards and C-in-C Commendation. He has won many national and international awards.

He is also an IIM Ahmedabad alumnus.

His latest quest involves writing various books and translation work including over 100 Bollywood songs for various international forums as a mission for the enjoyment of the global viewers. Published various books and over 3000 poems, stories, blogs and other literary work at national and international level. Felicitated by numerous literary bodies..!

? English translation of Urdu poetry couplets of Anonymous litterateur of Social Media # 197 ?

☆☆☆☆☆

मुख़्तसर सा गुरूर भी

ज़रूरी है जीने के लिए

ज़्यादा  झुक  के मिलो

तो  दुनिया पीठ को ही

पायदान  बना लेती है…

☆☆

Some arrogance, too,  is

Necessary to live, if you

bend too much to meet

Then  the  world makes

your back a footmat only…

☆☆☆☆☆

माना  तेरी  उलझन हूँ  मैं

पर तेरी सुलझन भी हूँ  मैं…

थोड़ा दीवाना ही सही मैं

मगर  बड़ा दिलदार हूँ  मैं…

☆☆

Agreed I’m your riddle only…

But I’m your solution too…

Though I am  bit crazy

But a large-hearted one!

☆☆☆☆☆

क्या करोगे अब तुम

मेरे पास आकर भी..

खो दिया है तुमने मुझे

बार-बार आजमा कर…

☆☆

What will you do now

By coming close to me…

You’ve lost me for good

By trying again and again

☆☆☆☆☆

हर  वक़्त  फ़िजाओं  में,

महसूस करोगे तुम हमको…

हम दोस्ती की वो ख़ुशबू हैं,

जो महकते रहेंगे  उम्र भर…

☆☆

At all times in environment

You  will  always  feel  me

I’m fragrance of friendship

That will last the whole life

☆☆☆☆☆

© Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Pune

≈ Editor – Shri Hemant Bawankar/Editor (English) – Captain Pravin Raghuvanshi, NM ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सलिल प्रवाह # 197 ☆ गीत – जितना दिखता है आँखों को… ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ☆

आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

(आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ जी संस्कारधानी जबलपुर के सुप्रसिद्ध साहित्यकार हैं। आपको आपकी बुआ श्री महीयसी महादेवी वर्मा जी से साहित्यिक विधा विरासत में प्राप्त हुई है । आपके द्वारा रचित साहित्य में प्रमुख हैं पुस्तकें- कलम के देव, लोकतंत्र का मकबरा, मीत मेरे, भूकंप के साथ जीना सीखें, समय्जयी साहित्यकार भगवत प्रसाद मिश्रा ‘नियाज़’, काल है संक्रांति का, सड़क पर आदि।  संपादन -८ पुस्तकें ६ पत्रिकाएँ अनेक संकलन। आप प्रत्येक सप्ताह रविवार को  “साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह” के अंतर्गत आपकी रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है गीत – जितना दिखता है आँखों को…।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 197 ☆

☆ गीत – जितना दिखता है आँखों को… ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ☆

जितना दिखता है आँखों को

उससे अधिक नहीं दिखता

*

ऐसा सोच न नयन मूँदना

खुली आँख सपने देखो

खुद को देखो, कौन कहाँ क्या

करता वह सब कम लेखो

कदम न रोको

लिखो, ठिठककर

सोचो, क्या मन में टिकता?

जितना दिखता है आँखों को

उससे अधिक नहीं दिखता

*

नहीं चिकित्सक ने बोला है

घिसना कलम जरूरी है

और न यह कानून बना है

लिखना कब मजबूरी है?

निज मन भाया

तभी कर रहीं

सोचो क्या मन को रुचता?

जितना दिखता है आँखों को

उससे अधिक नहीं दिखता

*

मन खुश है तो जग खुश मानो

अपना सत्य आप पहचानो

व्यर्थ न अपना मन भटकाओ

अनहद नाद झूमकर गाओ

झूठ सदा

बिकता बजार में

सत्य कभी देखा बिकता?

जितना दिखता है आँखों को

उससे अधिक नहीं दिखता

©  आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

१२.४.२०१९ 

संपर्क: विश्ववाणी हिंदी संस्थान, ४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१,

चलभाष: ९४२५१८३२४४  ईमेल: [email protected]

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ आतिश का तरकश #246 – 131 – “रूहे उदास को कुछ लगा यूँ…” ☆ श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’ ☆

श्री सुरेश पटवा

(श्री सुरेश पटवा जी  भारतीय स्टेट बैंक से  सहायक महाप्रबंधक पद से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं और स्वतंत्र लेखन में व्यस्त हैं। आपकी प्रिय विधा साहित्य, दर्शन, इतिहास, पर्यटन आदि हैं। आपकी पुस्तकों  स्त्री-पुरुष “गुलामी की कहानी, पंचमढ़ी की कहानी, नर्मदा : सौंदर्य, समृद्धि और वैराग्य की  (नर्मदा घाटी का इतिहास) एवं  तलवार की धार को सारे विश्व में पाठकों से अपार स्नेह व  प्रतिसाद मिला है। श्री सुरेश पटवा जी  ‘आतिश’ उपनाम से गज़लें भी लिखते हैं ।प्रस्तुत है आपका साप्ताहिक स्तम्भ आतिश का तरकशआज प्रस्तुत है आपकी भावप्रवण ग़ज़ल रूहे उदास को कुछ लगा यूँ…” ।)

? ग़ज़ल # 130 – “रूहे उदास को कुछ लगा यूँ…” ☆ श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’ ?

एक ख़ास ने आज आम भेजे,

दिल से सखा को पयाम भेजे।

*

रूहे उदास को कुछ लगा यूँ,

संदेश मुझे आज शाम भेजे।

*

वह दूर बैठ करे याद मुझको,

मीठे फल दिल को थाम भेजे।

*

बाज़ार में तो बहुत मिलते हैं,

उसने मगर बिना दाम भेजे।

*

यारी मिठास बनी रहे यूँ ही,

आतिश चखने को जाम भेजे।

© श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’

भोपाल, मध्य प्रदेश

*≈ सम्पादक श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – चुप्पी – 30 ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं।)

? संजय दृष्टि –  चुप्पी – 30 ? ?

(लघु कविता संग्रह – चुप्पियाँ से)

चुप्पी के रंग

गिनते-गिनते

सोया था,

चुप्पी के रंग

गिनते-गिनते

उठा हूँ,

पलकों में

मुंदी हैं

सागर की लहरें

सूरज की किरणें

मन की छटाएँ

देखता हूँ

सृष्टि के रंग-बिरंगे

कुंतल घनराशि,

मैं गिनती

भूल गया हूँ मित्रो!

© संजय भारद्वाज  

प्रातः 11:37 बजे

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय, एस.एन.डी.टी. महिला विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

🕉️ श्रवण मास साधना में जपमाला, रुद्राष्टकम्, आत्मपरिष्कार मूल्याकंन एवं ध्यानसाधना करना है 💥 🕉️

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ काव्य धारा # 187 ☆ ‘दुनियां में अकेले हैं…’ ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

(आज प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी  द्वारा रचित एक भावप्रवण रचना  – “दुनियां में अकेले हैं। हमारे प्रबुद्ध पाठकगण प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी  काव्य रचनाओं को प्रत्येक शनिवार आत्मसात कर सकेंगे।) 

☆ काव्य धारा # 187 ☆ ‘अनुगुंजन’ से – दुनियां में अकेले हैं… ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

दुनियाँ में अकेले हैं नहीं कोई हमारा, तकदीर के मारों का भला कौन सहारा ?

सरिता ने बुझाई मुझे जीवन की पहेली, देती रही हैं हौसला बस लहरें अकेली ।

दिखता जिन्हें है दूर का भी पास किनारा ।।१।।

*

दुनियाँ में अकेले हैं

थक के हों चूर, ओठों में होंगी नहीं आहें ये पग न डगमगायेंगे चलते हुये राहें

मिलती उसी को जीत जो मन से नहीं हारा ।।२।।

*

दुनियाँ में अकेले

कहते हैं उसे राह दिखाते हैं सितारे, चलता चले आगे कभी हिम्मत न जो हारे

सबसे बड़ा दुनियाँ में है अपना ही सहारा ।।३।।

*

दुनियाँ में अकेले

आ पहुंचे यहाँ तक जो तो फिर देर कहाँ है ? पाना है जिसे वो तो सभी पास यहां है।

देती है मुझे हर घड़ी मंजिल ये इशारा ।।४।।

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

ए २३३ , ओल्ड मीनाल रेजीडेंसी  भोपाल ४६२०२३

मो. 9425484452

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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सूचनाएँ/Information ☆ Poem of Capt. Pravin Raghuvanshi is to be recited in the BYRON 200 Poetry event at Nottingham, U K ☆

 ☆ सूचनाएँ/Information ☆

(साहित्यिक एवं सांस्कृतिक समाचार)

☆ Capt. Pravin Raghuvanshi, NM ☆

💐 Poem of Capt. Pravin Raghuvanshi is to be recited in the BYRON 200 Poetry event at Nottingham, U K 💐

☆ Bicentennary Celebration of Lord Byron – BYRON 200 Poetry Event by Kavyrang ☆ 

It is with great pride and pleasure, We would like to inform that poem लावण्यपूर्ण रात्रि अभिसारिका (Lavanya poorn Ratri Abhisarika) of Capt. Pravin Raghuvanshi has been chosen to be recited in the BYRON 200 Poetry Event, which is being organised by Kavya Rang with NAAC as a part of Multilingual Poetry Event to commemorate the Bicentennary Celebrations of Lord Byron in Nottingham, England. This poem is based on Lord Byron’s legendary poem She Walks in Beauty.

Byron 200 is a varied programme of exhibitions, events and activities that celebrate the sensational life and legacy of Lord Byron through the year, focussed at Newstead Abbey, his inspirational home.

Date: Saturday 27th July 2024, 1pm-4pm

Venue: Newstead Abbey, Nottingham, U K

इस सन्दर्भ में हम आपसे एक महत्वपूर्ण जानकारी साझा करना चाहेंगे। डॉ विजय कुमार मल्होत्रा जी (पूर्व निदेशक (राजभाषा), रेल मंत्रालय,भारत सरकार) को इसी जून  2023 में  यूनाइटेड किंगडम  के प्रसिद्ध शहर  नॉटिंघम  जाने का अवसर मिला। प्रवास के दौरान उन्हें हिन्दी कवयित्री और काव्यरंग की अध्यक्षा श्रीमति जय वर्मा जी ने अंग्रेज़ी के प्रसिद्ध कवि लॉर्ड बायरन की विरासत से भी परिचित कराया. रॉबिनहुड और लॉर्ड बायरन के नाम से प्रसिद्ध इस शहर में महात्मा गाँधी भी कुछ समय तक रुके थे. जहाँ बायरन ने  Don Juan जैसी कविताएँ लिखीं, वहीं  She Walks in Beauty जैसी प्रेम और प्रकृति की मिली-जुली कल्पनाओं पर आधारित कविताएँ भी लिखीं.

डॉ विजय कुमार मल्होत्रा जी के ही शब्दों में “कालजयी रचनाओँ को हिंदी-अंग्रेज़ी में अनूदित करने का बीड़ा उठाने वाले मेरे मित्र कैप्टन प्रवीण रघुवंशी ने “चलती-फिरती सौंदर्य प्रतिमा” शीर्षक से इसका हिंदी में अनुवाद भी कर दिया. मैंने पावर-पॉइंट (PPT) के माध्यम से दी गई अपनी प्रस्तुति में इस कविता को मूल अंग्रेज़ी के साथ-साथ हिंदी में भी प्रतिभागियों को सुनाया. सभी ने इसके हिंदी अनुवाद की भूरि-भूरि प्रशंसा की.”

 

यह अनुवाद इंग्लैंड में हिन्दी प्रोफेसरों को बहुत पसंद आया था। उन्होने कई देशों में इसका अपने भाषणों में उपयोग भी किया है जिसका सबसे सहृदय प्रतिसाद प्राप्त हुआ।

 

आइए…हम लोग भी इस कविता का मूल अंग्रेज़ी के साथ-साथ हिंदी में भी रसास्वादन करें और अपनी प्रतिक्रियाओं से इसके हिंदी अनुवादक कैप्टन प्रवीण रघुवंशी  को परिचित कराएँ.   

Original English Poem By Lord Byron

☆ She Walks in Beauty 

She walks in beauty, like the night

Of cloudless climes and starry skies;

And all that’s best of dark and bright

Meet in her aspect and her eyes;

Thus mellowed to that tender light

Which heaven to gaudy day denies.

 

One shade the more, one ray the less,

Had half impaired the nameless grace

Which waves in every raven tress,

Or softly lightens o’er her face;

Where thoughts serenely sweet express,

How pure, how dear their dwelling-place.

 

And on that cheek, and o’er that brow,

So soft, so calm, yet eloquent,

The smiles that win, the tints that glow,

But tell of days in goodness spent,

A mind at peace with all below,

A heart whose love is innocent!

 – Lord Byron

 

लार्ड बायरन की मूल कविता का कैप्टन प्रवीण रघुवंशी जी द्वारा हिंदी अनुवाद  

☆ लावण्यपूर्ण रात्रि-अभिसारिका ☆

अप्सरा की भाँति, वो  सौन्दर्य-प्रतिमा,

बादलों से विहीन, तारों भरी रात्रि में

अतिशय प्रकाश की अप्रतिम छटा लिये

वो निरंतर चहलकदमी करती रही…

 

आकर्षक डील-डौल, मृगनयनी चक्षु

भीनी-भीनी चाँदनी में पिघलता यौवन

ऐसी लावण्यपूर्ण वो दिव्य अनामिका

वो रमनीय सौन्दर्य जो कदापि 

ईश्वर प्रदत्त भी संभव नहीं,

 

एक स्वर्गिक रंगीन छटा लिए,

लहराती स्याह वेणियां से युक्त

अर्ध-प्रच्छादित मुखाकृति को

और भी निखारती हुई…

अभिलाषा की वो परम उत्कटेच्छा…

 

जहाँ विचार मात्र ही मधु-सुधा टपकाते…

कितना पवित्र, कितना प्यारा उसका संश्रय…!

दैवीय कपोलों, के मध्यास्थित,

उन वक्र भृकुटियों  में वो इतनी निर्मल, शांत,

फिर भी नितांत चंचल एक विजयी मुस्कान लिए!

 

वो दैदीप्यमान आभा,

सौम्यता में व्यतीत क्षणों को

अभिव्यक्त करते हुए

एक शांतचित्त मन

एक निष्कपट प्रेम परितृप्त

वो कोमल हृदय धारिणी नवयौवना…!

–  कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, पुणे

💐 The e-abhivyakti family congratulates Capt. Pravin Raghuvanshi ji for this great achievement. 💐

≈ Editor – Shri Hemant Bawankar/Editor (English) – Captain Pravin Raghuvanshi, NM ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ रचना संसार # 14 – नवगीत – कान्हा-मुख-सुषमा प्यारी… ☆ सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ’ ☆

सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ’

(संस्कारधानी जबलपुर की सुप्रसिद्ध साहित्यकार सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ ‘जी सेवा निवृत्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश, डिविजनल विजिलेंस कमेटी जबलपुर की पूर्व चेअर हैं। आपकी प्रकाशित पुस्तकों में पंचतंत्र में नारी, पंख पसारे पंछी, निहिरा (गीत संग्रह) एहसास के मोती, ख़याल -ए-मीना (ग़ज़ल संग्रह), मीना के सवैया (सवैया संग्रह) नैनिका (कुण्डलिया संग्रह) हैं। आप कई साहित्यिक संस्थाओं द्वारा पुरस्कृत एवं सम्मानित हैं। आप प्रत्येक शुक्रवार सुश्री मीना भट्ट सिद्धार्थ जी की अप्रतिम रचनाओं को उनके साप्ताहिक स्तम्भ – रचना संसार के अंतर्गत आत्मसात कर सकेंगे। आज इस कड़ी में प्रस्तुत है आपकी एक अप्रतिम रचना – नवगीत – कान्हा-मुख-सुषमा प्यारी

? रचना संसार # 14 – नवगीत – कान्हा-मुख-सुषमा प्यारी…  ☆ सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ’ ? ?

जन-मानस को मोहित करती,

कान्हा-मुख-सुषमा प्यारी।

 *

नाथ हाथ में वंशी लेकर,

वंशीवट पर हैं जाते।

नटवर नागर लीला करते,

ग्वाल बाल सब हर्षाते।।

धेनु चराते हैं गोकुल में,

चक्र सुदर्शन हरि धारी।

 *

जन-मानस को मोहित करती,

कान्हा-मुख-सुषमा प्यारी।

 *

सुन वंशी की तान निराली,

थिरके ब्रज की हर बाला।

ग्वाल-बाल सब झूम रहे हैं,

जादू सब पर कर डाला।।

मोहन के अधरों पर शोभित,

वंशी सम्मोहक न्यारी ।

 *

जन-मानस को मोहित करती,

कान्हा-मुख-सुषमा प्यारी।

 *

युगल करों में सजे मुरलिया

सबके मन को है भाती।

मंत्र मुग्ध स्वर करें रसीले,

सुध-बुध सारी खो जाती।।

गोप -गोपियों का मन भटके,

जब-जब आते बनवारी।

 *

जन-मानस को मोहित करती,

कान्हा-मुख-सुषमा प्यारी।

 

© सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ’

(सेवा निवृत्त जिला न्यायाधीश)

संपर्क –1308 कृष्णा हाइट्स, ग्वारीघाट रोड़, जबलपुर (म:प्र:) पिन – 482008 मो नं – 9424669722, वाट्सएप – 7974160268

ई मेल नं- [email protected][email protected]

≈ संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकश पाण्डेय ≈

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