Category: कविता

कविता, गजल, शायरी आदि।

हिन्दी साहित्य – कविता ☆ मन, मन है….. ☆– श्री माधव राव माण्डोले “दिनेश”

श्री माधव राव माण्डोले “दिनेश”

 

☆ मन, मन है….. ☆

 

सोचो मन की,

करो मन की…..।

बोलो मन से,

सुनो मन से….।

हो सम्मान खुद के मन का,

करो मान दूसरों के मन का…..।

करो याद दूसरों को मन से,

न करो पराया किसी को मन से…..।

मन के हों अरमान पूरे,

मन के न रहे सपने अधूरे…..।

मन से हो समर्पण,

मन के लिए हो समर्पण…..।

 

© माधव राव माण्डोले “दिनेश”, भोपाल 

(श्री माधव राव माण्डोले “दिनेश”, दि न्यू इंडिया एश्योरंस कंपनी, भोपाल में उप-प्रबन्धक हैं।)

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन – ☆ संजय दृष्टि – अश्वमेध के लिए! ☆ – श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

 

(श्री संजय भारद्वाज जी का साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। अब सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकेंगे। ) 

☆ संजय दृष्टि – अश्वमेध के लिए! ☆

 

कह दो उनसे
संभाल लें
मोर्चे अपने-अपने
जो खड़े हैं
ताकत से मेरे खिलाफ,
कह दो उनसे
बिछा लें
बिसातें अपनी-अपनी
जो खड़े हैं
दौलत से मेरे खिलाफ,
हाथ में
कलम उठा ली है मैंने
और निकल पड़ा हूँ
अश्वमेध के लिए!  ✍

 

©  संजय भारद्वाज, पुणे

☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

[email protected]

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ – ☆ तन्मय साहित्य # 14 – बहे विचारों की सरिता…… ☆ – डॉ. सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

डॉ  सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

 

(अग्रज  एवं वरिष्ठ साहित्यकार  डॉ. सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी  जीवन से जुड़ी घटनाओं और स्मृतियों को इतनी सहजता से  लिख देते हैं कि ऐसा लगता ही नहीं है कि हम उनका साहित्य पढ़ रहे हैं। अपितु यह लगता है कि सब कुछ चलचित्र की भांति देख सुन रहे हैं।  आप प्रत्येक बुधवार को डॉ सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’जी की रचनाएँ पढ़ सकेंगे। आज के साप्ताहिक स्तम्भ  “तन्मय साहित्य ”  में  प्रस्तुत है  एक अतिसुन्दर भावप्रवण रचना  “बहे विचारों की सरिता……। )

 

☆  साप्ताहिक स्तम्भ – तन्मय साहित्य – # 14 ☆

 

☆ कविता – बहे विचारों की सरिता…… ☆  

 

सुखद कल्पनाओं में

मन के स्वप्न सुनहरे से

बहे विचारों की सरिता

हम, तट पर ठहरे से।

 

दुनियावी बातों से

बार-बार ये मन भागे

जुड़ने के प्रयास में

रिश्तों के टूटे धागे,

हैं प्रवीण,

फिर भी जाने क्यूं

जुड़े ककहरे से

बहे विचारों की सरिता

हम तट……………….।

 

रागी, भ्रमर भाव से सोचें

स्वतः  समर्पण  का

उथल-पुथल अंतर की

शंकाओं के तर्पण का,

पर है डर,

बाहर बैठे

मायावी पहरे से

बहे विचारों की सरिता

हम तट पर………….।

 

जिसने आग लगाई उसे

पता नहीं पानी का

क्या होगा निष्कर्ष

अजूबी अकथ कहानी का,

भीतर में हलचल,

बाहर हैं

गूंगे- बहरे से

बहे विचारों की सरिता

हम तट पर………….।

 

चाह तृप्ति की, अंतर में

चिंताओं को लादे

भारी मन से किये जा रहे

वादों पर वादे,

सुख की सांसें तभी मिले

निकलें

जब गहरे से

बहे विचारों की सरिता

हम तट पर ठहरे से।।

 

© डॉ सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

जबलपुर, मध्यप्रदेश

मो. 9893266014

(अग्रज डॉ सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी की फेसबुक से साभार)

 

 

 

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ – ☆ काव्य कुञ्ज – # 5 – खुशियाँ मनाए शाम ☆ – श्री मच्छिंद्र बापू भिसे

श्री मच्छिंद्र बापू भिसे

(श्री मच्छिंद्र बापू भिसे जी की अभिरुचिअध्ययन-अध्यापन के साथ-साथ साहित्य वाचन, लेखन एवं समकालीन साहित्यकारों से सुसंवाद करना- कराना है। यह निश्चित ही एक उत्कृष्ट  एवं सर्वप्रिय व्याख्याता तथा एक विशिष्ट साहित्यकार की छवि है। आप विभिन्न विधाओं जैसे कविता, हाइकु, गीत, क्षणिकाएँ, आलेख, एकांकी, कहानी, समीक्षा आदि के एक सशक्त हस्ताक्षर हैं। आपकी रचनाएँ प्रसिद्ध पत्र पत्रिकाओं एवं ई-पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रहती हैं।  आप महाराष्ट्र राज्य हिंदी शिक्षक महामंडल द्वारा प्रकाशित ‘हिंदी अध्यापक मित्र’ त्रैमासिक पत्रिका के सहसंपादक हैं। अब आप प्रत्येक बुधवार उनका साप्ताहिक स्तम्भ – काव्य कुञ्ज पढ़ सकेंगे । आज प्रस्तुत है उनकी नवसृजित कविता “खुशियाँ मनाए शाम”

 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – काव्य कुञ्ज – # 5☆

 

☆ खुशियाँ मनाए शाम

 

रात धीरे रंग चढ़े सजने लगी शाम,

थके-हारे जीव करने लगे आराम,

सपने देखें नींद में रोटी लगे महान,

स्वार्थी दिन के रंग अनेक खुशियाँ मनाए शाम।

 

सच का साथ सिर्फ मन की ही बात,

बेईमानी चाल चले घनी अँधेरी रात,

नींद गहरी हो रही मन मचता कुहराम,

स्वार्थी दिन के रंग अनेक खुशियाँ मनाए शाम।

 

नींद तो है पर नींद नहीं,

सपने है बहुत अपना कोई साथ नहीं,

किसे कोसे किसे अपनाएँ दिखता कहीं न राम,

स्वार्थी दिन के रंग अनेक खुशियाँ मनाए शाम।

 

नींद से डर लगे साँस चैन की कहाँ मिले,

अब डर का सामना करना होगा,

चाहे अँधियारा खौफ साथ चले,

नींद के होश उड़ जाए ऐसा करूँ,

उम्मीद और विश्वास से करूँगा प्रयाण,

फिर अँधेरा भी रोशनी फैलाएगा,

न होगा डर न डर का कोई पैगाम,

स्वार्थी दिन के रंग अनेक खुशियाँ मनाए शाम।

 

© मच्छिंद्र बापू भिसे

भिराडाचीवाडी, डाक भुईंज, तहसील वाई, जिला सातारा – ४१५ ५१५ (महाराष्ट्र)

मोबाईल नं.:9730491952 / 9545840063

ई-मेल[email protected] , [email protected]

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी का काव्य संसार # 8 ☆ इबादत ☆ – सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा

सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा

 

(सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी  सुप्रसिद्ध हिन्दी एवं अङ्ग्रेज़ी की  साहित्यकार हैं। आप अंतरराष्ट्रीय / राष्ट्रीय /प्रादेशिक स्तर  के कई पुरस्कारों /अलंकरणों से पुरस्कृत /अलंकृत हैं । हम आपकी रचनाओं को अपने पाठकों से साझा करते हुए अत्यंत गौरवान्वित अनुभव कर रहे हैं। सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी का काव्य संसार शीर्षक से प्रत्येक मंगलवार को हम उनकी एक कविता आपसे साझा करने का प्रयास करेंगे। आप वर्तमान में  एक्जिक्यूटिव डायरेक्टर (सिस्टम्स) महामेट्रो, पुणे हैं। आपकी प्रिय विधा कवितायें हैं। आज प्रस्तुत है आपकी  कविता “इबादत”। )

 

साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी का काव्य संसार # 8 

☆ इबादत  

 

एक मुट्ठी धूल सी

मेरी हैसियत;

और एक मामूली तिनके सी

मेरी हस्ती!

 

ए ख़ुदा!

इबादत है तुझसे

कि बिछ जाने दे मुझे

उस धूल ही की तरह

तेरी राहों पर,

बिना किसी मंज़िल की

तमन्ना किये!

या फिर उड़ जाने दे मुझे

उस तिनके की तरह

हवाओं के साथ,

तब तक,

जब तक ख़त्म न हो जाएँ

मेरी सारी आरज़ू!

 

राख़ हो जाने दे

मेरा गुरूर,

मिट जाने दे

मेरा अहम्,

और दूर हो जाने दे

मेरा गुमान!

 

ए ख़ुदा!

मैं आना चाहती हूँ पास तेरे

एकदम खाली-खाली सी,

किसी कोरे कागज़ की तरह!

 

© नीलम सक्सेना चंद्रा

आपकी सभी रचनाएँ सर्वाधिकार सुरक्षित हैं एवं बिनाअनुमति  के किसी भी माध्यम में प्रकाशन वर्जित है।

Please share your Post !

Shares

हिंदी साहित्य – राजभाषा दिवस विशेष ☆ कविता – पुरानी तस्वीरें ☆ – सुश्री प्रभा सोनवणे

सुश्री प्रभा सोनवणे

 

(राजभाषा मास  में हम ख्यातिलब्ध मराठी साहित्यकार सुश्री प्रभा सोनवणे जी की हिंदी कविता को प्रकाशित कर अत्यंत गौरवान्वित अनुभव कर रहे हैं.  ई-अभिव्यक्ति में आपका मराठी में प्रकाशित साप्ताहिक स्तम्भ  – “कवितेच्या प्रदेशात”  को पाठकों का ह्रदय से प्रतिसाद मिल रहा है.  आपकी कवितायेँ अत्यंत संवेदनशील एवं हृदयस्पर्शी होती हैं.  अक्सर मैं उनकी ह्रदय स्पर्शी  कवितायेँ पढ़ कर  प्रत्युत्तर में निःशब्द अनुभव  करता हूँ .  आज प्रस्तुत हैं उनकी एक और हृदयस्पर्शी  हिंदी कविता पुरानी तस्वीरें यह सच है क़ि हम अक्सर पुरानी तस्वीरें देख कर उस गुजरे वक्त में पहुँच जाते हैं, जहाँ इस जीवन में पुनः जा पाना असंभव है. उन तस्वीरों  के कुछ पात्र तो समय के साथ खो गए होते हैं.  हमारे पास रह जाती हैं मात्र स्मृतियाँ.  समय के साथ जीना हमारी नियति है और शेष ईश्वर के हाथों में है. इस अतिसुन्दर रचना के लिए उनकी लेखनी को नमन. )

 

☆ पुरानी तस्वीरें ☆

 

आज  पुरानी तस्वीरें भेजी,

WhatsApp Group पर भाँजे ने….

तो गुजरा हुआ जमाना याद आया ।

कितने सीधे सादे दिन थे,

सीधे सादे लोग,

वह बहुत बडा बुलंद सा घर आँगन !

 

शहर में रह कर भी,

अपने छोटे से गाँव से बहुत लगाव  था…..

हर छुट्टियों में वहाँ आना जाना था ।

अच्छा लगता था

दादी की कहानी सुनना

और

दादाजी के साथ घुड़सवारी करना…..

 

वह लहराते खेत,

फलों से  लदे पेड….

गाय बैल…भैंसें….

कुत्ते, बिल्लीयाँ…

मुर्गे मुर्गियाँ ……

 

आँगन में आयी हुई चिडियों को

दाना डालना….

वो बुआ की शानदार शादी…

चाचा के लिए लड़की देखने जाना…..

कितनी चहल-पहल थी…

बचपन की यादें तो बहुत मीठी हैं ।

पर कहाँ जान पाए….

चूल्हा चौका करनेवाली,

माँ और चाचियों का दुखदर्द….

लगता था उनके आँसू है,

चूल्हे की गीली लकड़ियों से आते हुए धुएँ की वजह से …..

 

जब औरत बनी तो अपनी ही समस्याएँ सताने लगीं…..

कहाँ जान पायी उन औरतों की कहानी….

 

आज बहुत दिनों के बाद

पुरानी तस्वीरें देखी तो उनमें से…

बिना वजह…

महसूस किये कुछ आँसू…..और सिसकियाँ भी……

आज पुरानी तस्वीरें देखी

जिन्दगी के आखिरी दौर में …..

 

© प्रभा सोनवणे,  

“सोनवणे हाऊस”, ३४८ सोमवार पेठ, पंधरा ऑगस्ट चौक, विश्वेश्वर बँकेसमोर, पुणे 411011

मोबाईल-९२७०७२९५०३,  email- [email protected]

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – कविता ☆ पितृ पक्ष पर कुछ दोहे सादर समर्पित ☆ – श्री संतोष नेमा “संतोष”

श्री संतोष नेमा “संतोष”

 

(पितर पक्ष के अवसर पर जब हम अपने पितरों का स्मरण करते हैं ऐसे अवसर पर प्रस्तुत हैं आदरणीय श्री संतोष नेमा जी  के कुछ  अविस्मरणीय दोहे .)

 

☆ पितृ पक्ष पर कुछ दोहे सादर समर्पित ☆

 

पितरों को सादर नमन, वंदन शत शत बार

सदा आप ही हमारे, जीवन का आधार

 

तुम बिन सूना सा लगे, यह अपना घर द्वार

कोई देता है कहाँ, तुम सा लाड़ प्यार

 

तर्पण पितरों का करें, सदा प्रेम से आप

श्रद्धा से ही श्राद्ध है, हरती भव के ताप

 

जिनके पुण्य प्रताप से, जीवन में उल्लास

उनके ही आशीष से, रिद्धि सिद्धि का वास

 

पुण्य कर्म से सुधरता, अपना ही परलोक

करनी ऐसी कर चलो, घर में हो आलोक

 

आना जाना है लगा,यह जीवन का सार

अपने कर्मों से मिले,जीवन में सत्कार

 

पितृ भक्ति से सदा ही,जीवन सफल महान

पित्र चरण की धूल को,पूजे सकल जहान

 

ईश्वर के अस्तित्व का,हो जिनसे अहसास

धन्य धन्य वो लोग हैं, रहें पिता के पास

 

पितरों के आशीष से,जीवन में “संतोष”

सांची सेवा से बढ़े, सुखद शांति का कोष

————————

@ संतोष नेमा “संतोष”

आलोकनगर, जबलपुर (म. प्र.)

मोबा 9300101799

 

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – राज भाषा दिवस विशेष ☆ हिंदी पर दोहे और कविता ☆ – डॉ. भावना शुक्ल

राजभाषा दिवस विशेष 

डॉ भावना शुक्ल

(राज भाषा दिवस पर प्रस्तुत है डॉ भावना शुक्ल जी  (सह संपादक ‘प्राची ‘)  जी की  विशेष प्रस्तुति हिंदी पर दोहे और कविता. )

 

☆ हिंदी पर दोहे और कविता ☆

 

हिंदी पर दोहे और कविता की प्रस्तुति

अपने मन की अभिव्यक्ति।

 

☆ दोहे ☆

 

हिंदी पा़ये प्रतिष्ठा, बढ़े देश का मान।

वरना थोथे शब्द है,मेरा देश महान ।।

शब्द शब्द में है बसी, शब्द शब्द की जान।

तोल मोल कर बोलना, शब्दों का सम्मान।।

हिन्दी प्रेमी जगत में, हिन्दी है पहचान ।

अंतस में भाषा बसे, ज्योकि ह्रदय में प्राण।।

हिंदी परचम देश का हिंदी है पहचान ।

लिखो पढ़ो तुम राम जी या पढ़ लो रहमान।।

 

☆ हिंदी ☆

 

हिंदी हमारी

आन-बान और शान है

दिलों में हमारे

बसती जान है।

हिंदी के

सुवर्ण से रचा शब्द

शब्दों से बना वाक्य

और वाक्य ने रच दी

आत्मकथा ,काव्य ,कहानी

साहित्यकारों की जुबानी

जिसमें रस,छंद है अलंकार

जिससे होता है

काव्य का श्रृंगार है।

हिंदी भाषा तो

रस की खान है

भाव  से भरा

रहीम रसखान है ।

धन्य है भाषा धन्य है साहित्य

जो महान मनीषियों की जान है

हिंदी के स्वर और व्यंजन

है साहित्य का अंजन

है इनमे सुंदरता का प्रतिमान

नहीं है इसको अभिमान।

हिंदी में होती है बिंदी

मातृ भाषा ,राजभाषा है हिंदी

हर वर्ण में सुरों की

झंकार है।

मीठी है हिंदी

मधुर है वाणी

हिंदी की  हम करते पुकार है।

 

© डॉ भावना शुक्ल
सहसंपादक…प्राची

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – राजभाषा दिवस विशेष – ☆ हिंदी की दिहाड़ी ☆ – श्रीमती समीक्षा तैलंग 

राजभाषा दिवस विशेष 

श्रीमती समीक्षा तैलंग 

 

(राजभाषा दिवस  के अवसर पर प्रस्तुत है श्रीमति समीक्षा तैलंग जी   की विशेष रचना हिंदी की दिहाड़ी . )

 

☆ हिन्दी की दिहाड़ी ☆

 

तू उठ,

तू चल।

 

दूसरे को चला,

दूसरे को उठा।

 

अपने कांधों को झुका,

वो बैठेगा।

 

सवारी की दिहाड़ी,

वो खाएगा।

 

तेरी सुंदरता पर,

खुद इठलाएगा।

 

झंडा लेकर,

तानेगा तुझे।

 

फिर भी गाएगा वो,

अपना ही गीत।

 

तुझे गिरवी रख,

वो खरीदेगा,

दुनिया की खुशी।

 

तू फिर भी झुकी रहेगी,

मजबूत हैं तेरे कांधे।

 

बोझा ढो लेगी उसका,

लेकिन तू फिर भी,

इतराएगी,

अपनी हस्ती पर।

 

क्योंकि तुझे पता है,

तू है तो वो है।

 

उसके कारण तू नहीं!

 

©समीक्षा तैलंग, 14 सितंबर 2019

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – राजभाषा दिवस विशेष – ☆ जनभाषा हिंदी ☆ – डॉ. सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

राजभाषा दिवस विशेष 

डॉ  सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

 

(राजभाषा दिवस पर डॉ. सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी   की विशेष  कविता  जनभाषा हिंदी *.) 

 

* जनभाषा हिंदी *

 

हिंदी है जन-जन की भाषा

हिंदी हो जन-जन की भाषा

पूर्ण सफल हो ये अभिलाषा

आज नहीं तो निश्चित कल हो

जीवन में हिंदी प्रतिपल हो.

 

सरल सुबोध, सुग्राही हिंदी

प्रिय पावन सुखदायी हिंदी

छोटे बड़े निरक्षर – साक्षर

सबके मन को भायी हिंदी

स्नेहिल हिंदी की गंगा की

समूचे भारत में कल कल हो

जीवन में हिंदी प्रतिपल हो.

 

हंसी – खुशी रोने-गाने में

स्वयं समझने समझाने में

हिंदी भाषा मातृ सदृश है

जन-जन के मन दुलराने में

एक सूत्र में बांधे हिंदी

जैसे मधुमय पुष्प कमल हो

जीवन में हिंदी प्रतिपल हो…

 

जन गण मन के राष्ट्रगान में

शस्य श्यामला के बखान में

आध्यात्मिक हो या वैज्ञानिक

विद्वतजन, सैनिक, किसान में

सबके उर संचरित हिंदी से

हिंदी से सब का मंगल हो

जीवन में हिंदी प्रतिपल हो….

 

© डॉ सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

जबलपुर, मध्यप्रदेश

मो. 9893266014

Please share your Post !

Shares
image_print

Our Visitors

600753
Optimized by Optimole