डॉ सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’
(अग्रज एवं वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी जीवन से जुड़ी घटनाओं और स्मृतियों को इतनी सहजता से लिख देते हैं कि ऐसा लगता ही नहीं है कि हम उनका साहित्य पढ़ रहे हैं। अपितु यह लगता है कि सब कुछ चलचित्र की भांति देख सुन रहे हैं। आप प्रत्येक बुधवार को डॉ सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’जी की रचनाएँ पढ़ सकेंगे। आज के साप्ताहिक स्तम्भ “तन्मय साहित्य ” में प्रस्तुत है बाल कविता “वरदायी चक्की और मेरी चाह”। आदरणीय डॉ सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय ‘ जी ने बड़ी ही सादगी से बाल अभिलाषा को वरदायी चक्की के माध्यम से सफलतापूर्वक प्रस्तुत किया है । )
(अग्रज डॉ सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी की फेसबुक से साभार)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – तन्मय साहित्य – # 13 ☆
☆ बाल कविता – वरदायी चक्की और मेरी चाह ☆
सोच रहा हूं अगर मुझे
मनचाही चीजे देने वाली
वह चक्की मिल जाती
तो जीवन में मेरे भी
ढेरों खुशियां आ जाती.
सबसे पहली मांग
मेरी होती कि
वह मम्मी के सारे काम करे
और हमारी मम्मी जी
पूरे दिनभर आराम करे…
मांग दूसरी
पापा जी की सारी
चिंताओं को पल में दूर करे
और हमारे मां-पापाजी
प्यार हमें भरपूर करे…
मांग तीसरी
भारी भरकम बस्ता
स्कूल का ये हल्का हो जाए
जो भी पढ़ें, याद हो जाए
और प्रथम श्रेणी पाएं…
चारों ओर रहे हरियाली
फल फूलों से लदे पेड़
फसलें लहराए
चौथी मांग
सभी मिल पर्यावरण बचाएं…
मांग पांचवी
देश से भ्रष्टाचार
और आतंकवाद का नाश हो
आगे बढ़ें निडरता से
सबके मन में उल्लास हो…
© डॉ सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’
जबलपुर, मध्यप्रदेश
मो. 9893266014