हिन्दी साहित्य ☆ दीपिका साहित्य # 6 ☆ हौसले ☆ सुश्री दीपिका गहलोत “मुस्कान”

सुश्री दीपिका गहलोत “मुस्कान”

( हम आभारीसुश्री दीपिका गहलोत ” मुस्कान “ जी  के जिन्होंने ई- अभिव्यक्ति में अपना” साप्ताहिक स्तम्भ – दीपिका साहित्य” प्रारम्भ करने का हमारा आगरा स्वीकार किया।  आप मानव संसाधन में वरिष्ठ प्रबंधक हैं। आपने बचपन में ही स्कूली शिक्षा के समय से लिखना प्रारम्भ किया था। आपकी रचनाएँ सकाळ एवं अन्य प्रतिष्ठित समाचार पत्रों / पत्रिकाओं तथा मानव संसाधन की पत्रिकाओं  में  भी समय समय पर प्रकाशित होते रहते हैं। हाल ही में आपकी कविता पुणे के प्रतिष्ठित काव्य संग्रह  “Sahyadri Echoes” में प्रकाशित हुई है। आज प्रस्तुत है आपकी  एक अतिसुन्दर प्रेरणास्पद कविता हौसले । आप प्रत्येक रविवार को सुश्री दीपिका जी का साहित्य पढ़ सकेंगे।

☆ दीपिका साहित्य #6 ☆ हौसले

 

तेरी लहरों पे चढ़ के जाएंगे,

ऐ समंदर हम तो भव सागर भी पार कर जाएंगे,

हौसले किये है हमने अब बुलंद,

अब अंधेरो में भी हम जुगनू जलाएंगे,

आएंगे दौर मुसीबतो के,

फिर भी हम आगे बढ़ाते जाएंगे,

अकेले ही चल पडेंगे हम,

कारवां तो अपने आप बनते जाएंगे,

अपनी मंज़िल वो ही पाते है जो खुद पे विश्वास दिखाते हैं

इसको हम अपना उद्देश्य बनाएंगे ,

तेरे मेरे के चक्कर में पड़े है सब,

हम सबको आरम्भ कर दिखाएंगे,

सीख लिया है हमने सफल जीवन का रहस्य,

अब इस रोशनी को हम सब में जगमगाएंगे,

तेरी लहरों पे चढ़ के जाएंगे,

ऐ समंदर हम तो भव सागर भी पार कर जाएंगे

 

© सुश्री दीपिका गहलोत  “मुस्कान ”  

पुणे, महाराष्ट्र

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – अरण्य ☆ श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। ) 

☆ संजय दृष्टि  – अरण्य

निराशा के पलों में

आक्रोश के क्षणों में,

कई बार सोचा

आग लगा दूँ

अपनी कविताओं के

अरण्य को,

वैसे भी यह अरण्य

घेर लेता है

दुनिया भर की जगह

और देने के नाम पर

छदाम भी नहीं देता,

संताप बढ़ा

चरम पर पहुँचा,

आश्चर्य!!

तीली के स्थान पर

तूलिका उठाई

नई रचना आई,

सृजन की बयार चली

मन उपजाऊ हुआ

अरण्य और घना हुआ,

पर्यावरणविद सही कहते हैं;

व्यक्ति और समाज के

स्वास्थ्य के लिए

अरण्य अनिवार्य हैं!

अरण्य घने होते रहें। 

 

©  संजय भारद्वाज, पुणे

(कविता संग्रह *मैं नहीं लिखता कविता* से)

☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

[email protected]

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हिंदी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कोहरे के आँचल से # 23 ☆ होशोहवास ☆ सौ. सुजाता काळे

सौ. सुजाता काळे

(सौ. सुजाता काळे जी  मराठी एवं हिन्दी की काव्य एवं गद्य विधा की सशक्त हस्ताक्षर हैं। वे महाराष्ट्र के प्रसिद्ध पर्यटन स्थल कोहरे के आँचल – पंचगनी से ताल्लुक रखती हैं।  उनके साहित्य में मानवीय संवेदनाओं के साथ प्रकृतिक सौन्दर्य की छवि स्पष्ट दिखाई देती है। आज प्रस्तुत है सौ. सुजाता काळे जी की पर्यावरण और मानवीय संवेदनाओं पर आधारित एक भावप्रवण कविता  “होशोहवास”।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कोहरे के आँचल से # 23 ☆

☆ होशोहवास

 

मेरे शहर में हज़ारों लोग हैं जो

दूसरों के गिरहबान में झाँक रहे हैं

अपने गिरहबान में झाँकने का

उन्हें होशोहवास नहीं है।

 

मेरे शहर में अनगिनत लोग हैं जो

दूसरों की गलतियों पर ताना देते हैं

अपनी गलतियों पर पछताने का

उन्हें होशोहवास नहीं है।

 

मेरे शहर में हजारों लोग हैं जो

दूसरों के दुखों पर खुश होते हैं

अपने सुख से परे देखने का

उन्हें होशोहवास नहीं है।

 

मेरे शहर में लाखों  लोग हैं जो

दूसरों के हार पर खुश होते हैं

अपनी जीत के आगे देखने का

उन्हें होशोहवास नहीं है।

 

© सुजाता काळे

पंचगनी, महाराष्ट्र, मोब – 9975577684

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हिन्दी साहित्य – साहित्य निकुंज # 29 ☆ हाइकु ☆ डॉ. भावना शुक्ल

डॉ भावना शुक्ल

(डॉ भावना शुक्ल जी  (सह संपादक ‘प्राची ‘) को जो कुछ साहित्यिक विरासत में मिला है उसे उन्होने मात्र सँजोया ही नहीं अपितु , उस विरासत को गति प्रदान  किया है। हम ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि माँ सरस्वती का वरद हस्त उन पर ऐसा ही बना रहे। आज प्रस्तुत है उनकी  हाइकू विधा में  दो कवितायेँ   ‘हाइकु ।)

 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – # 29 साहित्य निकुंज ☆

हाइकु 

[1]

बातें ही बातें

होती है मुलाकातें

मिली मंजिल।

 

जिंदगी जीना

नहीं होता मुश्किल

साथ हो तेरा।

 

कृष्ण की प्रिया

होता दिन है खास

राधा अष्टमी।

 

[2]

 

खुशी का दिन

खुश है अंतर्मन

है शादी तिथि।

 

करो सम्मान

जीवन में तभी तो

मिलेगा मान।

 

चलते चलो

कर्म करते रहो

मिलेगा फल।

 

न हो निराश

करो तुम प्रार्थना

रखना आस।

 

© डॉ.भावना शुक्ल

सहसंपादक…प्राची

wz/21 हरि सिंह पार्क, मुल्तान नगर, पश्चिम विहार (पूर्व ), नई दिल्ली –110056

मोब  9278720311 ईमेल : [email protected]

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – पगडंडी… ☆ श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। ) 

☆ संजय दृष्टि  – पगडंडी…

 

वे खोदते रहे

जड़, ज़मीन, धरातल,

महामार्ग बनाने के लिए,

नवजात पादप रौंदे गए

वानप्रस्थी वृक्ष धराशायी हुए,

वह अथक चलता रहा

पगडंडी गढ़ता रहा,

पगडंडी के दोनों ओर

आशीर्वाद बरसाते

अनुभवी वृक्ष खड़े रहे,

चहुँ ओर बिखरी हरी घास के

पगडंडी को आशीष मिले,

महामार्ग और सरपट टायर

के समीकरण विशेष हैं

पर पग और पगडंडी

शाश्वत हैं, अशेष हैं,

हे विधाता!

परिवर्तन के नियम से

अमरबेलों को बचाए रखना

पग और पगडंडी के रिश्ते को

यूँ ही सदाफूली बनाए रखना!

 

धरा से जुड़े रहें, धरातल पर रहें। 

 

©  संजय भारद्वाज, पुणे

(प्रात: 5.48, 8.1.20)

 

☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

[email protected]

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हिन्दी साहित्य ☆ कविता ☆ नया दौर ☆ डॉ अ कीर्तिवर्धन

डॉ अ कीर्तिवर्धन

ई- अभिव्यक्ति  में डॉ अ कीर्तिवर्धन जी  का हार्दिक स्वागत है। हम भविष्य में आपके सद्साहित्य को अपने पाठकों तक पहुंचाने का  प्रयास  करेंगे । इसी तारतम्य में प्रस्तुत है आपकी में आपकी एक अतिसुन्दर कविता ” नया दौर “ )

 ☆ नया दौर ☆

 

नये दौर के इस युग में, सब कुछ उल्टा पुल्टा है,

महँगी रोटी सस्ता मानव, गली गली में बिकता है।

 

कहीं पिंघलते हिम पर्वत, हिम युग का अंत बताते हैं,

सूरज की गर्मी भी बढ़ती, अंत जहां का दिखता है।

 

अबला भी अब बनी है सबला, अंग प्रदर्शन खेल में,

नैतिकता का अंत हुआ है, जिस्म गली में बिकता है।

 

रिश्तो का भी अंत हो गया, भौतिकता के बाज़ार में,

कौन पिता और कौन है भ्राता, पैसे से बस रिश्ता है।

 

भ्रष्ट आचरण आम हो गया, रुपया पैसा खास हो गया,

मानवता भी दम तोड़ रही, स्वार्थ दिलों में दिखता है।

 

पत्नी सबसे प्यारी लगती, ससुराल भी न्यारी लगती,

मात पिता संग घर में रहना, अब तो दुष्कर लगता है।

 

डॉ अ कीर्तिवर्धन

विद्यालक्ष्मी निकेतन, 53 -महालक्ष्मी एन्क्लेव, मुज़फ्फरनगर -251001 ( उत्तर प्रदेश )

8 2 6 5 8 2 1 8 0 0

[email protected]

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हिन्दी साहित्य – ☆ साप्ताहिक स्तम्भ – इंद्रधनुष # 20 ☆ संतोष के दोहे ☆ – श्री संतोष नेमा “संतोष”

श्री संतोष नेमा “संतोष”

 

(आदरणीय श्री संतोष नेमा जी  कवितायें, व्यंग्य, गजल, दोहे, मुक्तक आदि विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं. धार्मिक एवं सामाजिक संस्कार आपको विरासत में मिले हैं. आपके पिताजी स्वर्गीय देवी चरण नेमा जी ने कई भजन और आरतियाँ लिखीं थीं, जिनका प्रकाशन भी हुआ है. 1982 से आप डाक विभाग में कार्यरत हैं. आपकी रचनाएँ राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में लगातार प्रकाशित होती रहती हैं। आप  कई सम्मानों / पुरस्कारों से सम्मानित/अलंकृत हैं.    “साप्ताहिक स्तम्भ – इंद्रधनुष”  की अगली कड़ी में प्रस्तुत है  उनके  अतिसुन्दर दोहे  “संतोष के दोहे ”. आप श्री संतोष नेमा जी  की रचनाएँ प्रत्येक शुक्रवार पढ़  सकते हैं . ) 

☆ साहित्यिक स्तम्भ – इंद्रधनुष # 20 ☆

☆ उन्नीस बीस ☆

खुलकर स्वागत कीजिये,द्वार खड़ा अब बीस

करिये अब हँसकर विदा,बाय बाय उन्नीस

बाय बाय उन्नीस,जाते जाते रो दिया

देकर नवीन सीख,सदा के लिये सो गया

कहते कवि “संतोष’,बीस होगा अब हटकर

रखिये दिल में जोश,करें राष्ट्र हित खुलकर

 

☆ जीवन  ☆

जीवन के हर मोड़ पर,लें साहस से काम

मुश्किलों से डरें नहीं,आती रहें तमाम

आती रहें तमाम,दिल करिए कभी न छोटा

भजिये सीताराम, काम करें नहीं खोटा

कहते कवि “संतोष”,नहीं हों आश्रित मन के

हर क्षण रखिये होश,साथ अनुभव जीवन के

 

☆ उपवन  ☆

मन उपवन फूले फले,आये नई बहार

काँटो से हो दोस्ती,ऐसा हो किरदार

ऐसा हो किरदार, सभी को गले लगाले

रहे प्रेम व्यबहार,रूठों को भी मना ले

कहते कवि “संतोष”,स्वस्थ जब होगा तन- मन

दिल में हो जब जोश,खिलेगा तब मन उपवन

 

☆ अटल ☆

दृढ़ संकल्पित हों अगर, बनते मुश्किल काम

लक्ष्य कभी ना छोडिये,आयें विघ्न तमाम

आयें विघ्न तमाम, न डरकर पीछे हटिये

मिले न जब तक लक्ष्य ,सदा काम पर डटिये

कहते कवि “संतोष”,जीत उनकी है निश्चित ।

भरकर मन में जोश,रहें जो दृढ़ संकल्पित ।।

 

© संतोष नेमा “संतोष”

आलोकनगर, जबलपुर (म. प्र.)

मोबा 9300101799

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – केंचुली ☆ श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। ) 

☆ संजय दृष्टि  – केंचुली ☆

केंचुली उतारते साँप को देखा
कौन अधिक विषधर
चेहरे चढ़ाते इंसान को देखा।
व्यवहार में पारदर्शिता रहे, सम्बंधों में समदर्शिता रहे।

©  संजय भारद्वाज, पुणे

☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

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हिन्दी साहित्य – ☆ साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र – # 8 ☆ कविता – अस्मिता बनी रहे ☆ डॉ. राकेश ‘चक्र’

डॉ. राकेश ‘चक्र’

(हिंदी साहित्य के सशक्त हस्ताक्षर डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी  की अब तक शताधिक पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं।  जिनमें 70 के आसपास बाल साहित्य की पुस्तकें हैं। कई कृतियां पंजाबी, उड़िया, तेलुगु, अंग्रेजी आदि भाषाओँ में अनूदित । कई सम्मान/पुरस्कारों  से  सम्मानित/अलंकृत।  इनमें प्रमुख हैं ‘बाल साहित्य श्री सम्मान 2018′ (भारत सरकार के दिल्ली पब्लिक लाइब्रेरी बोर्ड, संस्कृति मंत्रालय द्वारा  डेढ़ लाख के पुरस्कार सहित ) एवं उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान द्वारा ‘अमृतलाल नागर बालकथा सम्मान 2019’। यह हमारे लिए गर्व की बात है कि डॉ राकेश ‘चक्र’ जी ने  ई- अभिव्यक्ति में  प्रत्येक गुरुवार  “साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र” के माध्यम से अपने साहित्य को हमारे प्रबुद्ध पाठकों से साझा करने के हमारे आग्रह को स्वीकार कर लिया है। इस कड़ी में आज प्रस्तुत हैं  एक भावप्रवण कविता  “अस्मिता बनी रहे.)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र – # 8 ☆

☆  अस्मिता बनी रहे ☆ 

 

अस्मिता बनी रहे

सुष्मिता बनी रहे

देश में रहे अमन

स्वच्छता बनी रहे

 

कर्म हम सुभग करें

झूठ से नहीं डरें

प्रीति-रीति जिंदगी

नेह का सफर करें

 

पोर-पोर में पुनीत

नव्यता बनी रहे

 

देश के लिए जिएँ

देश के लिए मरें

सत्य-पंथ पर चलें

रंग प्रेम के भरें

 

मुस्कुराएँ ताल-स्वर

काव्यता बनी रहे

 

सृष्टि को करें नमन

वृष्टि का करें शमन

छोड़कर बुराइयाँ

हो सदा अमन-चमन

 

सोच योगमय रहे

सभ्यता बनी रहे

 

लोभ, क्रोध हैं मरण

दानवीर हैं करण

मात-पित्र भक्ति ही

देवतुल्य आचरण

 

ज्ञान के प्रकाश में

भव्यता बनी रहे

 

डॉ राकेश चक्र

(एमडी,एक्यूप्रेशर एवं योग विशेषज्ञ)

90 बी,  शिवपुरी, मुरादाबाद 244001, उ.प्र .

मोबाईल –9456201857

e-mail –  [email protected]

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ तन्मय साहित्य # 29 – मिलकर आज समीक्षा कर लें…… ☆ डॉ. सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

डॉ  सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

(अग्रज  एवं वरिष्ठ साहित्यकार  डॉ. सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी  जीवन से जुड़ी घटनाओं और स्मृतियों को इतनी सहजता से  लिख देते हैं कि ऐसा लगता ही नहीं है कि हम उनका साहित्य पढ़ रहे हैं। अपितु यह लगता है कि सब कुछ चलचित्र की भांति देख सुन रहे हैं।  आप प्रत्येक बुधवार को डॉ सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’जी की रचनाएँ पढ़ सकेंगे। आज के साप्ताहिक स्तम्भ  “तन्मय साहित्य ”  में  प्रस्तुत है  अग्रज डॉ सुरेश  कुशवाहा जी द्वारा रचित  किशोर मन की एक नवीन कविता  मिलकर आज समीक्षा कर लें…….। )

☆  साप्ताहिक स्तम्भ – तन्मय साहित्य – # 29☆

☆ मिलकर आज समीक्षा कर लें…… ☆  

 

अच्छे दिन आने वाले हैं

थोड़ी और प्रतीक्षा कर लें

तबतक पढ़ें-लिखें हम मिलकर

अपनी पूरी शिक्षा कर लें।।

 

अच्छे दिन तब ही आएंगे

अच्छी बातें अपनाएंगे

नहीं भरोसा रहा किसी पर

हम ही अच्छे दिन लायेंगे,

होंगे सफल इरादों में हम

मन में ये दृढ़ इच्छा कर लें……।

 

झांसे में न किसी के आएं

सब्जबाग जो हमें दिखाए

मुफ्त प्रलोभन में उलझा कर

उल्टे-सीधे स्वांग रचाए,

जांच-परख कर अब हम उनकी

पहले सही परीक्षा कर लें……।

 

स्वयं हमें आगे बढ़ना है

झंझावातों से लड़ना है

अपने ही पदचिन्हों से अब

नई – नई राहें गढ़ना है,

रोजी रोटी अब दूजों से

बन याचक ना भिक्षा पर लें…..।

 

समझ रहे जो हमें खिलौने

पंगत वाले पत्तल – दोने

अब न शिकंजे में आयेंगे

हमें न समझे आधे-पौने,

समयचक्र की गति पहचाने

मिलकर आज समीक्षा कर लें…..।

 

© डॉ सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

जबलपुर, मध्यप्रदेश

मो. 989326601

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