सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा
(सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी सुप्रसिद्ध हिन्दी एवं अङ्ग्रेज़ी की साहित्यकार हैं। आप अंतरराष्ट्रीय / राष्ट्रीय /प्रादेशिक स्तर के कई पुरस्कारों /अलंकरणों से पुरस्कृत /अलंकृत हैं । हम आपकी रचनाओं को अपने पाठकों से साझा करते हुए अत्यंत गौरवान्वित अनुभव कर रहे हैं। सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी का काव्य संसार शीर्षक से प्रत्येक मंगलवार को हम उनकी एक कविता आपसे साझा करने का प्रयास करेंगे। आप वर्तमान में एक्जिक्यूटिव डायरेक्टर (सिस्टम्स) महामेट्रो, पुणे हैं। आपकी प्रिय विधा कवितायें हैं। आज प्रस्तुत है आपकी कविता “चले जाने तलक”। )
साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी का काव्य संसार # 4
☆ चले जाने तलक ☆
तेरे चेहरे पर यह मुस्कान बनी रहेगी कब तलक?
मेरे आने तलक या फिर मेरे चले जाने तलक?
क्या तेरे मन को यह कोई अधूरी सी ख्वाहिश है
जो तुझे ख़ुशी देगी सिर्फ तेरी गली आने तलक?
या फिर यह कोई ठहरी सी दिल की तमन्ना है
जो तेरे साथ चलेगी सिर्फ मेरे वापस जाने तलक?
सुन, तू ज़हन को हर एहसास से आज़ाद कर दे,
मुस्कान का रिश्ता हो जहाँ भी झलके तू पलक!
ख़ुशी और जुस्तजू अपनी रूह में तू ऐसी भर दे,
कि जब-जब तू पंख फैलाए, नज़र आये फ़लक!
तेरे हर लम्हे में तब सुकून होगा जो न बदलेगा
मेरे आने तलक या फिर मेरे चले जाने तलक!
© नीलम सक्सेना चंद्रा
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