श्री सूबेदार पाण्डेय “आत्मानंद”
(श्री सूबेदार पाण्डेय “आत्मानंद” जी की कवितायें हमें मानवीय संवेदनाओं का आभास कराती हैं। प्रत्येक कविता के नेपथ्य में कोई न कोई कहानी होती है। मैं कैप्टन प्रवीण रघुवंशी जी का हृदय से आभारी हूँ जिन्होने इस कविता के सम्पादन में सहयोग दिया। आज प्रस्तुत है एक शिक्षाप्रद बाल-कविता “सम्बन्धों का मोल ”। श्री सूबेदार पाण्डेय जी ने अपनी कविता के माध्यम से सम्बन्धों के मोल को बड़े ही सहज शब्दों में समझाने की चेष्टा की है। यह कविता बच्चों के लिए जितनी महत्वपूर्ण है उतनी ही महत्वपूर्ण बड़ों के लिए भी है। )
☆ बाल कविता – संबंधो का मोल ☆
एक समय में, किसी गाँव में,
रहते थे दो जुड़वाँ भाई
आपस मे न था तनिक प्रेम,
खूब दूरियाँ, दिल में खांई
अलगाव हुआ उन दोनों में,
आपस में किया बटवारा
सोने की एक अंगूठी बनी कारण,
हुआ उनमें विवाद करारा
अपना झगड़ा लेके पहुंचे,
दोनों एक संत के पास
सुनी समस्या, रख अंगूठी
दिया दिलासा, ढेरों आस
बोले सन्त, अब घर जाओ,
कल सबेरे तुम सब आना
फिर यहाँ से, तुम मेरे से
अपनी अंगूठी ले जाना
उन के जाने पर संत ने,
तुरन्त एक सुनार बुलवाया
वैसी ही एक दूसरी अंगूठी,
उन्होंने जल्दी से बनवाया
क्यों मोल चुकाया अंगूठी का
भेद गूढ़ कोई समझ न पाया
जब आये सुबह दोनों भाई,
उनको अलग-अलग बुलवाया
अपनी अंगूठी पा कर,
दोनों खूब हुए खूब सन्तुष्ट
गिले-शिकवे दूर कर अपने
दोनों भाई हुए प्रसन्न यथेष्ट
इक दिन बातों-बातों मे,
खुल गया रहस्य यूँही वैसे
अंगूठी तो एक ही थी,
फिर मिली दोनो को कैसे
करी भीषण माथापच्ची
पर सच का हुआ न ज्ञान
पहुंचे दोनों कुटिया में
किया संन्त का मान-सम्मान
बातें उनकी सुन मुस्कुराए,
तब बाबा ने उनको समझाया
संम्बधो के मोल को समझो,
कभी न करो अपना पराया
सोना तो है तुक्ष चीज,
संम्बधों का, है नही मोल
भातृ-प्रेम है सोने से बढ़ कर,
याद रखो सदा ये वचन अनमोल
दी अंगूठियाँ तुमको मैंने,
बतलाने को जीवन-तत्व
सदा सर्वदा समझो अपने
संबंधों का सतत महत्व…
सुन बाबा से तत्व-ज्ञान
हुए दोनों अति तुष्ट
सदा सुखी रहने का मंत्र,
समझ गये दोनों हो संतुष्ट…
-सुबेदार पांडेय “आत्मानंद”
संपर्क – ग्राम जमसार, सिंधोरा बाज़ार, वाराणसी – 221208