श्री मच्छिंद्र बापू भिसे
(श्री मच्छिंद्र बापू भिसे जी की अभिरुचिअध्ययन-अध्यापन के साथ-साथ साहित्य वाचन, लेखन एवं समकालीन साहित्यकारों से सुसंवाद करना- कराना है। यह निश्चित ही एक उत्कृष्ट एवं सर्वप्रिय व्याख्याता तथा एक विशिष्ट साहित्यकार की छवि है। आप विभिन्न विधाओं जैसे कविता, हाइकु, गीत, क्षणिकाएँ, आलेख, एकांकी, कहानी, समीक्षा आदि के एक सशक्त हस्ताक्षर हैं। आपकी रचनाएँ प्रसिद्ध पत्र पत्रिकाओं एवं ई-पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रहती हैं। आप महाराष्ट्र राज्य हिंदी शिक्षक महामंडल द्वारा प्रकाशित ‘हिंदी अध्यापक मित्र’ त्रैमासिक पत्रिका के सहसंपादक हैं। अब आप प्रत्येक बुधवार उनका साप्ताहिक स्तम्भ – काव्य कुञ्ज पढ़ सकेंगे । आज प्रस्तुत है उनकी नवसृजित कविता “खुशियाँ मनाए शाम”।
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – काव्य कुञ्ज – # 5☆
☆ खुशियाँ मनाए शाम ☆
रात धीरे रंग चढ़े सजने लगी शाम,
थके-हारे जीव करने लगे आराम,
सपने देखें नींद में रोटी लगे महान,
स्वार्थी दिन के रंग अनेक खुशियाँ मनाए शाम।
सच का साथ सिर्फ मन की ही बात,
बेईमानी चाल चले घनी अँधेरी रात,
नींद गहरी हो रही मन मचता कुहराम,
स्वार्थी दिन के रंग अनेक खुशियाँ मनाए शाम।
नींद तो है पर नींद नहीं,
सपने है बहुत अपना कोई साथ नहीं,
किसे कोसे किसे अपनाएँ दिखता कहीं न राम,
स्वार्थी दिन के रंग अनेक खुशियाँ मनाए शाम।
नींद से डर लगे साँस चैन की कहाँ मिले,
अब डर का सामना करना होगा,
चाहे अँधियारा खौफ साथ चले,
नींद के होश उड़ जाए ऐसा करूँ,
उम्मीद और विश्वास से करूँगा प्रयाण,
फिर अँधेरा भी रोशनी फैलाएगा,
न होगा डर न डर का कोई पैगाम,
स्वार्थी दिन के रंग अनेक खुशियाँ मनाए शाम।
© मच्छिंद्र बापू भिसे
भिराडाचीवाडी, डाक भुईंज, तहसील वाई, जिला सातारा – ४१५ ५१५ (महाराष्ट्र)
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