English Literature – Poetry ☆ Anonymous litterateur of Social Media # 196 ☆ Captain Pravin Raghuvanshi, NM ☆

Captain (IN) Pravin Raghuvanshi, NM

? Anonymous Litterateur of Social Media # 196 (सोशल मीडिया के गुमनाम साहित्यकार # 196) ?

Captain Pravin Raghuvanshi NM—an ex Naval Officer, possesses a multifaceted personality. He served as a Senior Advisor in prestigious Supercomputer organisation C-DAC, Pune. An alumnus of IIM Ahmedabad was involved in various Artificial and High-Performance Computing projects of national and international repute. He has got a long experience in the field of ‘Natural Language Processing’, especially, in the domain of Machine Translation. He has taken the mantle of translating the timeless beauties of Indian literature upon himself so that it reaches across the globe. He has also undertaken translation work for Shri Narendra Modi, the Hon’ble Prime Minister of India, which was highly appreciated by him. He is also a member of ‘Bombay Film Writer Association’. He is also the English Editor for the web magazine www.e-abhivyakti.com

Captain Raghuvanshi is also a littérateur par excellence. He is a prolific writer, poet and ‘Shayar’ himself and participates in literature fests and ‘Mushayaras’. He keeps participating in various language & literature fests, symposiums and workshops etc.

Recently, he played an active role in the ‘International Hindi Conference’ at New Delhi. He presided over the “Session Focused on Language and Translation” and also presented a research paper. The conference was organized by Delhi University in collaboration with New York University and Columbia University.

हिंदी साहित्य – आलेख ☆ अंतर्राष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन ☆ कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

In his Naval career, he was qualified to command all types of warships. He is also an aviator and a Sea Diver; and recipient of various awards including ‘Nao Sena Medal’ by the President of India, Prime Minister Awards and C-in-C Commendation. He has won many national and international awards.

He is also an IIM Ahmedabad alumnus.

His latest quest involves writing various books and translation work including over 100 Bollywood songs for various international forums as a mission for the enjoyment of the global viewers. Published various books and over 3000 poems, stories, blogs and other literary work at national and international level. Felicitated by numerous literary bodies..!

? English translation of Urdu poetry couplets of Anonymous litterateur of Social Media # 196 ?

☆☆☆☆☆

क्यूँ  कर  आरजू  करूँ  कि

तुम  मुझे  चाहोगे  उम्र  भर

इतना ही ऐतबार काफी है कि

ताउम्र भूल नहीं पाओगे तुम मुझे

☆☆

Why  should  I  desire that  you

must love me throughout the life

The trust that you won’t be able

to forget me lifelong, is enough

☆☆☆☆☆

तुझको ही फुरसत न थी

किसी फसाने को पढ़ने की

मैं  तो  बिकता ही  रहा  तेरे

शहर में किताबों  की  तरह…!

☆☆

You only had no time to  

to  read  any  parables…

Though I kept on selling

like books in your city…!

☆☆☆☆☆

कभी  उल्फत, तो  कभी नियत बदल  गई

खुदगर्ज जब हुए, तो फिर सीरत बदल गई

अपना  कुसूर, दूसरों  के  सर  पे डाल  कर

कुछ लोग सोचते हैं  कि हकीकत बदल गई

☆☆

By attributing  own  guilt

on someone else’s head

Some people  think that

the reality has changed…

☆☆☆☆☆

 कभी चुभ  जाती  है  बात

तो कभी तल्ख़ लहज़े  मारते  हैं

ये ज़िंदगी है, साहब! यहाँ गैरों से

कम, अपनों से  ज्यादा हारते हैं!

☆☆

Sometimes  the  words hurt  you,

Sometimes the tone agonizes you

This is the life, dear! Here we lose

More  to loved  ones than  outsiders!

☆☆☆☆☆

© Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Pune

≈ Editor – Shri Hemant Bawankar/Editor (English) – Captain Pravin Raghuvanshi, NM ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सलिल प्रवाह # 196 ☆ सॉनेट – प्रणामांजलि ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ☆

आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

(आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ जी संस्कारधानी जबलपुर के सुप्रसिद्ध साहित्यकार हैं। आपको आपकी बुआ श्री महीयसी महादेवी वर्मा जी से साहित्यिक विधा विरासत में प्राप्त हुई है । आपके द्वारा रचित साहित्य में प्रमुख हैं पुस्तकें- कलम के देव, लोकतंत्र का मकबरा, मीत मेरे, भूकंप के साथ जीना सीखें, समय्जयी साहित्यकार भगवत प्रसाद मिश्रा ‘नियाज़’, काल है संक्रांति का, सड़क पर आदि।  संपादन -८ पुस्तकें ६ पत्रिकाएँ अनेक संकलन। आप प्रत्येक सप्ताह रविवार को  “साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह” के अंतर्गत आपकी रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है सॉनेट – प्रणामांजलि…।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 196 ☆

☆ सॉनेट – प्रणामांजलि ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ☆

(अभिनव प्रयोग)

आराम-विराम न साध्य जिन्हें

कर सकीं न बाधा बाध्य जिन्हें,

था सत्य-धर्म आराध्य जिन्हें

शत नित्य प्रणाम, प्रणाम उन्हें।

था अधिक इष्ट से भक्त जिन्हें

था शत्रु स्वार्थ-अनुरक्त जिन्हें

थी सत्ता पर में त्याज्य जिन्हें

शत नित्य प्रणाम प्रणाम उन्हें।

 *

था जनगण-मन आवास जिन्हें

था जंगल में मधुमास जिन्हें

अरि कहते थे खग्रास जिन्हें

शत नित्य प्रणाम प्रणाम उन्हें।

जो कल को कल की थाती हैं,

शत नित्य प्रणाम प्रणाम उन्हें।

©  आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

१६.४.२०२४

संपर्क: विश्ववाणी हिंदी संस्थान, ४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१,

चलभाष: ९४२५१८३२४४  ईमेल: [email protected]

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ आतिश का तरकश #245 – 130 – “इस कदर रूठ कर बैठना…” ☆ श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’ ☆

श्री सुरेश पटवा

(श्री सुरेश पटवा जी  भारतीय स्टेट बैंक से  सहायक महाप्रबंधक पद से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं और स्वतंत्र लेखन में व्यस्त हैं। आपकी प्रिय विधा साहित्य, दर्शन, इतिहास, पर्यटन आदि हैं। आपकी पुस्तकों  स्त्री-पुरुष “गुलामी की कहानी, पंचमढ़ी की कहानी, नर्मदा : सौंदर्य, समृद्धि और वैराग्य की  (नर्मदा घाटी का इतिहास) एवं  तलवार की धार को सारे विश्व में पाठकों से अपार स्नेह व  प्रतिसाद मिला है। श्री सुरेश पटवा जी  ‘आतिश’ उपनाम से गज़लें भी लिखते हैं ।प्रस्तुत है आपका साप्ताहिक स्तम्भ आतिश का तरकशआज प्रस्तुत है आपकी भावप्रवण ग़ज़ल इस कदर रूठ कर बैठना…” ।)

? ग़ज़ल # 129 – “इस कदर रूठ कर बैठना …” ☆ श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’ ?

हमसे मिलना भी नहीं हमसे बिछड़ना भी नहीं,

खूब खेला  खेलते  हो  साथ खेलना भी नहीं। 

*

मुहब्बत में तुमको बहक कर संभलना आ जाएगा,

हमको जो एक बार बहकना तो संभलना भी नहीं।

*

कुछ ज्यादा की क़ायदे में कटी जवानी की उम्र,

ज़िंदगी में उसने कभी सीखा बहकना भी नहीं।

*

मिलकर झिझकना वाजिब नहीं यार मुलाक़ात में,

इस कदर रूठ कर बैठना थोड़ा चहकना भी नहीं।

*

वस्ल के लिए क्या दूरियाँ हमने कम तय रखी हैं,

आतिश कब तक भरे बैठे रहोगे छलकना भी नहीं।

© श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’

भोपाल, मध्य प्रदेश

≈ सम्पादक श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – चुप्पी – 26 ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं।)

? संजय दृष्टि –  चुप्पी – 26 ? ?

(लघु कविता संग्रह – चुप्पियाँ से)

सकार, नकार,

उपेक्षा, सत्कार,

शब्दों की भिन्न

अर्थावली होती है,

पर चुप्पी स्वीकृति का

लक्षण होती है।

© संजय भारद्वाज  

प्रातः 10:14 बजे

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय, एस.एन.डी.टी. महिला विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

🕉️ आषाढ़ मास साधना ज्येष्ठ पूर्णिमा तदनुसार 21 जून से आरम्भ होकर गुरु पूर्णिमा तदनुसार 21 जुलाई तक चलेगी 🕉️

🕉️ इस साधना में  – 💥ॐ नमो भगवते वासुदेवाय। 💥 मंत्र का जप करना है। साधना के अंतिम सप्ताह में गुरुमंत्र भी जोड़ेंगे 🕉️

💥 ध्यानसाधना एवं आत्म-परिष्कार साधना भी साथ चलेंगी 💥

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ “श्री हंस” साहित्य # 122 ☆ ।। हाइकु ।। ☆ ।। क्रोध/गुस्सा।। ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस” ☆

श्री एस के कपूर “श्री हंस”

☆ “श्री हंस” साहित्य # 122 ☆

।। हाइकु ।। ☆ ।। क्रोध/गुस्सा।। ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस” ☆

।। वर्ण 5=7=5 पंक्ति अनुसार।।

[1]

क्रोध आग है

खुद का घर जले

बने   दाग है।

[2]

बुद्धि  हरण

गुस्से में   धैर्य नष्ट

दोस्ती क्षरण।

[3]

दंभ से क्रोध

घृणा ईर्ष्या ओ द्वेष

होए न बोध।

[4]

क्रोध शत्रु है

स्वयं का नुकसान

जैसे मृत्यु है।

[5]

अधीरता है

गुस्से का ये कारण

न वीरता है।

[6]

क्रोध तोड़ता

सुख शांति हरता

प्रेम जोड़ता।

[7]

क्रोध अहित

अनचाहा विनाश

करे व्यथित।

[8]

क्रोध आंधी है

घृणा द्वेष जनक

ये बर्बादी है।

[9]

क्रोध करना

होती है बदनामी

रोग बढ़ना।

[10]

क्रोध कुटुंब

बढ़ते एक साथ

अहम दंभ।

© एस के कपूर “श्री हंस”

बरेलीईमेल – Skkapoor5067@ gmail.com, मोब  – 9897071046, 8218685464

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ काव्य धारा # 185 ☆ ‘अनुगुंजन’ से – विदा वेला ! ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

(आज प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी  द्वारा रचित एक भावप्रवण रचना  – “विदा वेला !। हमारे प्रबुद्ध पाठकगण प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी  काव्य रचनाओं को प्रत्येक शनिवार आत्मसात कर सकेंगे।) 

☆ काव्य धारा # 184 ☆ ‘अनुगुंजन’ से – विदा वेला ! ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

आ गई लो विदा वेला, नयन गीले अश्रु छाये

और प्रायः यह घड़ी आती सदा ही बिन बुलाये ।।१।।

*

आगमन औ’ गमन कुछ भी जब न अपने हाथ में हो

यही कम सौभाग्य क्या हम रह सके कुछ साथ सँग जो ।।२।।

*

जा रहे हो दूर हो मजबूर तो मधुरिम विदाई

पंथ हो, आनंदमय, उत्कर्षमय, कल्याणदायी ।।३।।

*

साथ रहते यदि हुई हों भूल तो सब भूल जाना

कामना है याद रखना, प्रीति का नाता निभाना ।।४।।

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

ए २३३ , ओल्ड मीनाल रेजीडेंसी  भोपाल ४६२०२३

मो. 9425484452

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ दोहे – सुरक्षा – संदेश के ☆ प्रो. (डॉ.) शरद नारायण खरे ☆

प्रो. (डॉ.) शरद नारायण खरे

☆ दोहे – सुरक्षा-संदेश के ☆ प्रो. (डॉ.) शरद नारायण खरे ☆

बढ़ती जब जनसंख्या, बढ़ता है तब भार।

हो जाती हर योजना, तब निश्चित बेकार।।

*

बढ़ता है जन भार जब, दुख पाता परिवार।

सभी तरह से देश में, फैले तब अँधियार।।

*

दोपहिया पर बैठ जब, एक साथ परिवार।

कहे सुरक्षा आ रहा, दुर्घटना का वार।।

*

ध्यान रखें जो वे रहें, सड़कों पर अनुकूल।

बिना कायदे जो रहें, चुभते उनको शूल।।

*

सड़कों पर खिलवाड़ तो, लेती जीवन लील।

 बहुत कीमती ज़िन्दगी, करो ज़रा तुम फील।।

*

लापरवाही त्याग दो, वरना तय है काल।

होगा तुमको हर कदम, वरना “शरद” मलाल।।

*

नियम सदा हित को रचें, उन्हें मान नहिं व्यर्थ।

डरो रोड कानून से, समझो उसका अर्थ।।

*

मन में धरकर जोश तुम, गँवा न देना होश।

वरना विधि या मौत तो, भर लेंगी आगोश।।

*

होगा जब सीमित यहाँ, हर इक का परिवार।

तभी प्रखर प्रतिकूलता, का होगा संहार।।

*

दोपहिया की नहिं अधिक, होती है औकात।

दो ही बैठेंगे अगर, बचे रहोगे तात।।

*

अर्थहीन गति-मति तजो, जाये वरना जान ।

 आंँसू की सौगात हो, बढ़े पीर का मान।।

© प्रो.(डॉ.)शरद नारायण खरे

प्राचार्य, शासकीय महिला स्नातक महाविद्यालय, मंडला, मप्र -481661

(मो.9425484382)

ईमेल – [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ कविता ☆ नदी ☆ डॉ. जसप्रीत कौर फ़लक ☆

डॉ जसप्रीत कौर फ़लक

☆ कविता ☆ नदी ☆ डॉ. जसप्रीत कौर फ़लक 

मैं नदी हूँ

कल-कल बहता जल ही मेरा परिचय है

मैं बने बनाये हुये

रास्तों पर नहीं चलती

 

मुझे आता है राह बनाने का हुनर

मेरा टेढ़ा मेढ़ा और लम्बा है सफ़र

 

मैं नदी हूँ

मेरा स्वभाव है ख़ामोश रहना

निरंतर बहना…निरंतर चलना

मैं राह के पत्थरों से,चट्टानों से

टकरा के गुज़र जाऊँगी

सूखी धरती मुस्कुरायेगी

मैं जिधर-जिधर जाऊँगी

 

मेरे अपने हैं उसूल

मैंने महकायीं फ़स्लें ,खिलाये हैं फूल

मुझे रोकने की ज़िद न करो

मुझे मोड़ने की ज़िद न करो

 

मेरी आज़ाद फ़िक्र ने

पाबंदियाँ क़ुबूल न कीं

जो बरखा रुतों ने नेमतें बख़्शीं

वो मैंने कभी फ़ुज़ूल न कीं

 

मैं हर पेड़ से कह रही हूँ

मैं  निस्वार्थ  बह  रही  हूँ

मुझमें प्रवाहित हैं मुहब्बत के पुष्प,आशाओं के दीप

मेरा अपना है रंग, मेरी अपनी है रीत

 

मुझमें सम्मिलित होती जा रही हैं

बहुत सी दिशायें,

मुझसे खेलती हैं

 बहुत सी हवायें

मुझमें डूबती जा रही है

डूबते सूर्य की लाली

मुझे छू रही है झुक कर

नर्म पेड़ की डाली

 

मैं तृप्त करती जा रही हूँ

अहसास की ज़मीं

मेरी मंज़िल है दूर कहीं

 

मैं चलते चलते समा जाऊँगी

एक दिन

प्रेम के महासागर में

जीवन प्रवाह की तरह है इसके रास्ते में भी आती  हैं दुखों की चट्टानें, समस्यायों के पर्वत, अगर हमारे धैर्य की धार तेज़ हो तो यह  टूट जाती हैं चट्टानें,धूल हो जाते समस्यायों के पर्वत…बस लक्ष्य बड़ा हो, दिशा सही हो…जुनूँ हो तो नदी पहुँच ही जाती है – महासागर तक…।

© डॉ. जसप्रीत कौर फ़लक

संपर्क – मकान न.-11 सैक्टर 1-A गुरू ग्यान विहार, डुगरी, लुधियाना, पंजाब – 141003 फोन नं – 9646863733 ई मेल – [email protected]

≈ संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ साहित्य निकुंज #240 ☆ भावना के दोहे – माँ का आँचल ☆ डॉ. भावना शुक्ल ☆

डॉ भावना शुक्ल

(डॉ भावना शुक्ल जी  (सह संपादक ‘प्राची‘) को जो कुछ साहित्यिक विरासत में मिला है उसे उन्होने मात्र सँजोया ही नहीं अपितु , उस विरासत को गति प्रदान  किया है। हम ईश्वर से  प्रार्थना करते हैं कि माँ सरस्वती का वरद हस्त उन पर ऐसा ही बना रहे। आज प्रस्तुत हैं भावना के दोहे – माँ का आँचल )

☆ साप्ताहिक स्तम्भ  # 240 – साहित्य निकुंज ☆

☆ भावना के दोहे – माँ का आँचल ☆ डॉ भावना शुक्ल ☆

माँ का आँचल साथ है, मिलती शीतल छाँव।

बच्चों की मुस्कान माँ, चरणों में है ठाँव।।

*

प्यार माँ का मिले हमें, माँ ममता की छाँव ।

आँचल माँ का ओढ़कर, साथ घूमे हम गाँव।।

*

माँ का आँचल हैं नहीं, याद करें दिन रात।

संस्कार अच्छे दिए, यही करें हम बात।।

*

वो दिन हम भूले नहीं, छोड़ा माँ ने साथ।

लहर- लहर आँचल उड़ा, उठता सिर से  हाथ।।

*

जब जब देखा स्वप्न में, प्यार  भरी मुस्कान।

पाकर अपने साथ में, आ जाती है जान।।😢

*

आँचल की करें कल्पना, है वो बड़ा विशाल।

सुख – दुख सब बसते यहाँ, बना यही है ढाल।।

© डॉ भावना शुक्ल

सहसंपादक… प्राची

प्रतीक लॉरेल, J-1504, नोएडा सेक्टर – 120,  नोएडा (यू.पी )- 201307

मोब. 9278720311 ईमेल : [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ रचना संसार # 13 – नवगीत – माँ नर्मदा वंदन… ☆ सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ’ ☆

सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ’

(संस्कारधानी जबलपुर की सुप्रसिद्ध साहित्यकार सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ ‘जी सेवा निवृत्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश, डिविजनल विजिलेंस कमेटी जबलपुर की पूर्व चेअर हैं। आपकी प्रकाशित पुस्तकों में पंचतंत्र में नारी, पंख पसारे पंछी, निहिरा (गीत संग्रह) एहसास के मोती, ख़याल -ए-मीना (ग़ज़ल संग्रह), मीना के सवैया (सवैया संग्रह) नैनिका (कुण्डलिया संग्रह) हैं। आप कई साहित्यिक संस्थाओं द्वारा पुरस्कृत एवं सम्मानित हैं। आप प्रत्येक शुक्रवार सुश्री मीना भट्ट सिद्धार्थ जी की अप्रतिम रचनाओं को उनके साप्ताहिक स्तम्भ – रचना संसार के अंतर्गत आत्मसात कर सकेंगे। आज इस कड़ी में प्रस्तुत है आपकी एक अप्रतिम रचना – नवगीत –माँ नर्मदा वंदन

? रचना संसार # 12 – नवगीत – माँ नर्मदा वंदन…  ☆ सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ’ ? ?

ब्रह्मचारिणी नमामि नर्मदा सँवार दो।

तापहारिणी प्रणाम माँ हमें निखार दो।।

बोध रूपिणी तपोबला सुपावनी कहें।

पापमोचनी सुपूजिता सुलोचनी कहें।।

बुद्धिवर्धनी हितेषिणी विभूति आस भी।

चन्द्रशेखरी कृपालु पैथिनी उजास भी।।

पुण्यदायिनी सुकर्ण धारके उबार दो।

तापहारिणी प्रणाम माँ हमें निखार दो

 *

साधना कुशाग्र दृष्टि हो प्रतीति स्वामिनी।

पद्मलोचनी विभूति आप तेजदामिनी।।

भक्ति भाव दो पुनीत मातु दैत्य भेदिनी।

हो पिकासभाशिनी सुमातु तीर्थ मेदिनी।।

वल्लभी शुभामला दयामयी विचार दो।

तापहारिणी प्रणाम माँ हमें निखार दो।।

 *

वारि धारिणी विवेक आप शंभु भावनी।

लोकतारिणी सुखासनी नमामि पावनी।।

सिद्धिधारिणी प्रतीति आप शक्ति धारिणी।

हे षडंगयोगिनी सुधर्म की प्रसारिणी।।

माँ फणीन्द्रहारभूषिणी समष्टि तार दो।

तापहारिणी प्रणाम माँ हमें निखार दो।।

© सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ’

(सेवा निवृत्त जिला न्यायाधीश)

संपर्क –1308 कृष्णा हाइट्स, ग्वारीघाट रोड़, जबलपुर (म:प्र:) पिन – 482008 मो नं – 9424669722, वाट्सएप – 7974160268

ई मेल नं- [email protected][email protected]

≈ संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकश पाण्डेय ≈

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