डॉ भावना शुक्ल
(डॉ भावना शुक्ल जी को जो कुछ साहित्यिक विरासत में मिला है उसे उन्होने मात्र सँजोया ही नहीं अपितु , उस विरासत को गति प्रदान किया है। हम ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि माँ सरस्वती का वरद हस्त उन पर ऐसा ही बना रहे। उनके “साप्ताहिक स्तम्भ -साहित्य निकुंज”के माध्यम से अब आप प्रत्येक शुक्रवार को डॉ भावना जी के साहित्य से रूबरू हो सकेंगे। आज प्रस्तुत है डॉ. भावना शुक्ल जी की एक भावप्रवण कविता “स्त्री क्या है ?”। )
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – # 6 साहित्य निकुंज ☆
☆ स्त्री क्या है ? ☆
क्या तुम बता सकते हो
एक स्त्री का एकांत
स्त्री
जो है बेचैन
नहीं है उसे चैन
स्वयं की जमीन
तलाशती एक स्त्री
क्या तुम जानते हो
स्त्री का प्रेम
स्त्री का धर्म
सदियों से
वह स्वयं के बारे में
जानना चाहती है
क्या है तुम्हारी नजर
मन बहुत व्याकुल है
सोचती है
स्त्री को किसी ने नहीं पहचाना
कभी तुमने
एक स्त्री के मन को है जाना
पहचाना
कभी तुमने उसे रिश्तों के उधेड़बुन में
जूझते देखा है..
कभी उसके मन के अंदर झांका है
कभी पढ़ा है
उसके भीतर का अंतर्मन.
उसका दर्पण.
कभी उसके चेहरे को पढ़ा है
चेहरा कहना क्या चाहता है
क्या तुमने कभी महसूस किया है
उसके अंदर निकलते लावा को
क्या तुम जानते हो
एक स्त्री के रिश्ते का समीकरण
क्या बता सकते हो
उसकी स्त्रीत्व की आभा
उसका अस्तित्व
उसका कर्तव्य
क्या जानते हो तुम ?
नहीं जानते तुम कुछ भी..
बस
तुम्हारी दृष्टि में
स्त्री की परिभाषा यही है ..
पुरुष की सेविका ……
© डॉ भावना शुक्ल