हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – ताकि… ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं।)

? संजय दृष्टि – ताकि  ? ?

सुनते हैं,

मरुस्थल कभी समंदर था,

एक समंदर है मेरे भीतर,

एक समंदर है तेरे भीतर,

चलो मिलें, बैठें, बतियाएँ,

ताकि हमारे समंदर में

कभी कोई मरुस्थल न उग पाए.. !

?

© संजय भारद्वाज  

प्रात: 12:07 बजे, 20.12.24

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय, एस.एन.डी.टी. महिला विश्वविद्यालय, न्यू आर्ट्स, कॉमर्स एंड साइंस कॉलेज (स्वायत्त) अहमदनगर संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆ 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

💥  मार्गशीर्ष साधना 16 नवम्बर से 15 दिसम्बर तक चलेगी। साथ ही आत्म-परिष्कार एवं ध्यान-साधना भी चलेंगी💥

 🕉️ इस माह के संदर्भ में गीता में स्वयं भगवान ने कहा है, मासानां मार्गशीर्षो अहम्! अर्थात मासों में मैं मार्गशीर्ष हूँ। इस साधना के लिए मंत्र होगा-

ॐ नमो भगवते वासुदेवाय

  इस माह की शुक्ल पक्ष की एकादशी को गीता जयंती मनाई जाती है। मार्गशीर्ष पूर्णिमा को दत्त जयंती मनाई जाती है। 🕉️

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ “श्री हंस” साहित्य # 139 ☆ गीत – ।।आज के नौनिहाल कल के कर्णधार होते हैं।। ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस” ☆

श्री एस के कपूर “श्री हंस”

☆ “श्री हंस” साहित्य # 139 ☆

☆ गीत – ।।आज के नौनिहाल कल के कर्णधार होते हैं।। ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस” ☆

बच्चों बचपन में प्रभु का वास होता है।

मासूमियत में ईश्वर का आभास होता है।।

**

मन के सच्चे और मिट्टी  से कच्चे होते हैं।

जिस राह चलाओ उधर ही बच्चे होते हैं।।

बच्चों के ह्रदय चंचलता का निवास होता है।

बच्चों बचपन में प्रभु का वास होता है।।

****

बचपन से ही सिखाना है बातें  अच्छी- अच्छी।

नींव बनाना है उनकी शुरू से ही सच्ची-सच्ची।।

बच्चे नौनिहाल कर्णधार निश्चल लिबास होता है।

बच्चों बचपन में प्रभु का वास होता है।।

****

आज की जरूरत कि  मोबाइल से बचाना है।

बच्चों को संस्कार     संस्कृति सिखाना है।।

बड़ों से सीखते अच्छे बुरे का अहसास होता है।

बच्चों बचपन में प्रभु का वास होता है।।

© एस के कपूर “श्री हंस”

बरेलीईमेल – Skkapoor5067@ gmail.com, मोब  – 9897071046, 8218685464

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ काव्य धारा # 205 ☆ गजल – जियो और जीने दो… ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

(आज प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी  द्वारा रचित – “गजल – जियो और जीने दो। हमारे प्रबुद्ध पाठकगण प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी  काव्य रचनाओं को प्रत्येक शनिवार आत्मसात कर सकेंगे.।) 

☆ काव्य धारा # 205 ☆ गजल – जियो और जीने दो ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

जियो और जीने दो सबको यह सिद्धांत सुहाना है

निश्चित हो जन हितकारी है औं जाना पहचाना है

इसके द्वारा ही जग मे सुख शांति हमेशा आती है

किंतु आज आतंकवाद का उभरा नया जमाना है

*

निर्दोषो का खून हो रहा गाँव गली शैतानी है

कब किसके संग कैसे क्या हो कोई नही ठिकाना है

जब होता सदभाव प्रेम है मिलता है आनंद तभी

हर बुराई को तज के मन से सहज भाव अपनाना है

*

तरस रहे है तडप रहे है दीन दुखी अंधियारों मे

स्नेह दीप ले सबको मन से सही राह दिखलाना है

बिन समझे जो भटक रहे है स्वार्थो के गलियारो मे

जीवन औ ममता का मतलब उन्हें साफ समझाना है

*

द्वेष हमेशा दुखदायी है प्रेमभाव सुखदाता है

आपस का संबंध मधुर कर जग को स्वर्ग बनाना है

सबको साथ लिये बढने से ही हो समृद्धि सहज

बैर भव रखने वालों को यह ही मंत्र पढाना है

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

ए २३३ , ओल्ड मीनाल रेजीडेंसी  भोपाल ४६२०२३

मो. 9425484452

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ रचना संसार #31 – गीत – भावों की बहती सुरसरिता… ☆ सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ’ ☆

सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ’

(संस्कारधानी जबलपुर की सुप्रसिद्ध साहित्यकार सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ ‘जी सेवा निवृत्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश, डिविजनल विजिलेंस कमेटी जबलपुर की पूर्व चेअर पर्सन हैं। आपकी प्रकाशित पुस्तकों में पंचतंत्र में नारी, पंख पसारे पंछी, निहिरा (गीत संग्रह) एहसास के मोती, ख़याल -ए-मीना (ग़ज़ल संग्रह), मीना के सवैया (सवैया संग्रह) नैनिका (कुण्डलिया संग्रह) हैं। आप कई साहित्यिक संस्थाओं द्वारा पुरस्कृत एवं सम्मानित हैं। आप प्रत्येक शुक्रवार सुश्री मीना भट्ट सिद्धार्थ जी की अप्रतिम रचनाओं को उनके साप्ताहिक स्तम्भ – रचना संसार के अंतर्गत आत्मसात कर सकेंगे। आज इस कड़ी में प्रस्तुत है आपकी एक अप्रतिम गीतभावों की बहती सुरसरिता

? रचना संसार # 31 – गीत – भावों की बहती सुरसरिता…  ☆ सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ’ ? ?

☆ 

भावों की बहती सुरसरिता,

कमल पुष्प से हम खिल जाते।

पूनम की संध्या बेला में,

सप्त सुरों में यदि तुम गाते।।

 *

प्रीत सुधा रसधारा बहती,

घोर अमावस भी छट जाती।

उजियारा फिर जग में होता,

पूनम की ये रात सुहाती।।

मधुरिम बोल मधुर धुन सुनते,

पुष्प देवता भी बरसाते।

 *

भावों की बहती सुरसरिता,

कमल पुष्प से हम खिल जाते।।

 *

पावन छुअन सजन की पाकर,

अंग- अंग संदल हो जाता।

धरती अंबर से मिल जाती,

झंकृत रोम -रोम हो जाता।।

अलि करते गुंजार मनोहर,,

सजन लाज से हम सकुचाते।

 *

भावों की बहती सुरसरिता,

कमल पुष्प से हम खिल जाते।।

 *

 मादक इन नयनों में खोकर,

 छंद छंद रस गागर भरता।

 आल्हादित कण- कण हो जाता,

 अलंकार से सृजन निखरता।।

 रति सा सुंदर रूप देखकर ,

 कामदेव बन मुझे लुभाते ।

 *

भावों की बहती सुरसरिता,

कमल पुष्प से हम खिल जाते।।

© सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ’

(सेवा निवृत्त जिला न्यायाधीश)

संपर्क –1308 कृष्णा हाइट्स, ग्वारीघाट रोड़, जबलपुर (म:प्र:) पिन – 482008 मो नं – 9424669722, वाट्सएप – 7974160268

ई मेल नं- [email protected], [email protected]

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ साहित्य निकुंज #258 ☆ भावना के दोहे ☆ डॉ. भावना शुक्ल ☆

डॉ भावना शुक्ल

(डॉ भावना शुक्ल जी  (सह संपादक ‘प्राची‘) को जो कुछ साहित्यिक विरासत में मिला है उसे उन्होने मात्र सँजोया ही नहीं अपितु , उस विरासत को गति प्रदान  किया है। हम ईश्वर से  प्रार्थना करते हैं कि माँ सरस्वती का वरद हस्त उन पर ऐसा ही बना रहे। आज प्रस्तुत हैं भावना के दोहे )

☆ साप्ताहिक स्तम्भ  # 258 – साहित्य निकुंज ☆

☆ भावना के दोहे  ☆ डॉ भावना शुक्ल ☆

 लिख मैंने तुमको दिया, अपने दिल का राज।

देख रहे हम बाट यों, उत्तर मिला न आज।।

*

पाती तेरे नाम की , आई पढ़कर लाज।

मिलने को बैचेन हैं, आओ अब सरताज।।

*

घर में सबसे कह दिया, अपने दिल का हाल।

हमें प्रिया से प्यार है, ब्याह करें इस साल ।।

*

वो दिन भी अब आ रहा, नहीं मानना  हार।।

सबको दूँगा एक दिन, दुल्हन का उपहार।।

© डॉ भावना शुक्ल

सहसंपादक… प्राची

प्रतीक लॉरेल, J-1504, नोएडा सेक्टर – 120,  नोएडा (यू.पी )- 201307

मोब. 9278720311 ईमेल : [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ इंद्रधनुष #240 ☆ एक बुंदेली पूर्णिका – तुम कांटों की बात करो मत… ☆ श्री संतोष नेमा “संतोष” ☆

श्री संतोष नेमा “संतोष”

(आदरणीय श्री संतोष नेमा जी  कवितायें, व्यंग्य, गजल, दोहे, मुक्तक आदि विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं. धार्मिक एवं सामाजिक संस्कार आपको विरासत में मिले हैं. आपके पिताजी स्वर्गीय देवी चरण नेमा जी ने कई भजन और आरतियाँ लिखीं थीं, जिनका प्रकाशन भी हुआ है. आप डाक विभाग से सेवानिवृत्त हैं. आपकी रचनाएँ राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में लगातार प्रकाशित होती रहती हैं। आप  कई सम्मानों / पुरस्कारों से सम्मानित/अलंकृत हैं. “साप्ताहिक स्तम्भ – इंद्रधनुष” की अगली कड़ी में आज प्रस्तुत है आपकी – एक बुंदेली पूर्णिका – तुम कांटों की बात करो मत…  आप  श्री संतोष नेमा जी  की रचनाएँ प्रत्येक शुक्रवार आत्मसात कर सकते हैं।)

 ☆ साहित्यिक स्तम्भ – इंद्रधनुष # 240 ☆

☆ एक बुंदेली पूर्णिका – तुम कांटों की बात करो मत… ☆ श्री संतोष नेमा ☆

तुमने   झूठी       दई    दुहाई

लुटिआ  प्रेम की  खूब  डुबाई

*

तुम   कांटों की  बात करो मत

चोट   फूल    की  हमने  खाई 

*

धोखा   बहुतई  खा  लये हमने

देब   तुमहि   ने   कोई    बुराई

*

जोन  खों समझो  हमने अपनों

हो    गई    देखो   वोई    पराई

*

खूब   करो   विस्वास  सबई  पै

दुनियादारी   समझ    ने    पाई

*

झूठ-कपट   को   ओढ़   लबादा

तुमने     ऐसी     नीत     निभाई

*

भोलो  सो   “संतोष”   तुम्हे   जा

बात   समझ   में   देर   सें   आई

© संतोष  कुमार नेमा “संतोष”

वरिष्ठ लेखक एवं साहित्यकार

आलोकनगर, जबलपुर (म. प्र.) मो 70003619839300101799

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – दस्तक… ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं।)

? संजय दृष्टि – दस्तक..✍️ ? ?

तकलीफदेह है

बार-बार दरवाज़ा खोलना

जानते हुए कि

कोई दस्तक नहीं दे रहा,

ज़्यादा तकलीफदेह है

हमेशा दरवाज़ा बंद रखना

जानते हुए कि

दस्तक दे रहा है कोई ,

बार-बार; लगातार..!

?

© संजय भारद्वाज  

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय, एस.एन.डी.टी. महिला विश्वविद्यालय, न्यू आर्ट्स, कॉमर्स एंड साइंस कॉलेज (स्वायत्त) अहमदनगर संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆ 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

💥  मार्गशीर्ष साधना 16 नवम्बर से 15 दिसम्बर तक चलेगी। साथ ही आत्म-परिष्कार एवं ध्यान-साधना भी चलेंगी💥

 🕉️ इस माह के संदर्भ में गीता में स्वयं भगवान ने कहा है, मासानां मार्गशीर्षो अहम्! अर्थात मासों में मैं मार्गशीर्ष हूँ। इस साधना के लिए मंत्र होगा-

ॐ नमो भगवते वासुदेवाय

  इस माह की शुक्ल पक्ष की एकादशी को गीता जयंती मनाई जाती है। मार्गशीर्ष पूर्णिमा को दत्त जयंती मनाई जाती है। 🕉️

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ समय चक्र # 229 ☆ गीत – अमरत्व हो तुम इस धरा के…  ☆ डॉ राकेश ‘चक्र’ ☆

डॉ राकेश ‘चक्र

(हिंदी साहित्य के सशक्त हस्ताक्षर डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी  की अब तक कुल 148 मौलिक  कृतियाँ प्रकाशित। प्रमुख  मौलिक कृतियाँ 132 (बाल साहित्य व प्रौढ़ साहित्य) तथा लगभग तीन दर्जन साझा – संग्रह प्रकाशित। कई पुस्तकें प्रकाशनाधीन। जिनमें 7 दर्जन के आसपास बाल साहित्य की पुस्तकें हैं। कई कृतियां पंजाबी, उड़िया, तेलुगु, अंग्रेजी आदि भाषाओँ में अनूदित । कई सम्मान/पुरस्कारों  से  सम्मानित/अलंकृत। भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय द्वारा बाल साहित्य के लिए दिए जाने वाले सर्वोच्च सम्मान ‘बाल साहित्य श्री सम्मान’ और उत्तर प्रदेश सरकार के हिंदी संस्थान द्वारा बाल साहित्य की दीर्घकालीन सेवाओं के लिए दिए जाने वाले सर्वोच्च सम्मान ‘बाल साहित्य भारती’ सम्मान, अमृत लाल नागर सम्मानबाबू श्याम सुंदर दास सम्मान तथा उत्तर प्रदेश राज्यकर्मचारी संस्थान  के सर्वोच्च सम्मान सुमित्रानंदन पंतउत्तर प्रदेश रत्न सम्मान सहित पाँच दर्जन से अधिक प्रतिष्ठित साहित्यिक एवं गैर साहित्यिक संस्थाओं से सम्मानित एवं पुरुस्कृत। 

 आदरणीय डॉ राकेश चक्र जी के बारे में विस्तृत जानकारी के लिए कृपया इस लिंक पर क्लिक करें 👉 संक्षिप्त परिचय – डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी।

आप  “साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र” के माध्यम से  उनका साहित्य प्रत्येक गुरुवार को आत्मसात कर सकेंगे।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र – # 229 ☆ 

गीत – अमरत्व हो तुम इस धरा के ☆ डॉ राकेश ‘चक्र’ 

(एक गीत – एक शहीद के नाम)

अमरत्व हो तुम इस धरा के

हार्दिक मेरा नमन है।

हो गए बलिदान इस पर

गूँजता सारा गगन है।

**

प्रेम , श्रद्धा देश-हित ही

लक्ष्य को लेकर बढ़े थे।

अमिट छापों के सहारे

शिल्प चितवन में गढ़े थे।

छोड़ ममता परिजनों की

हिम शिखर पर तुम चढ़े थे।

*

शत्रुओं का काल हो तुम

कह रहा पूरा वतन है।

अमरत्व हो तुम इस धरा के

हार्दिक मेरा नमन है।

**

बचपने के खेल सारे

लिख गए नूतन कहानी।

कर समर्पण स्वयं को ही

देश हित दे दी जवानी।

रक्त था तुम में शिवा का

और था माँ गंग-पानी।

*

साक्ष्य जो माँगें तुम्हारी

धिक्कारती उनको अगन है।

अमरत्व हो तुम इस धरा के

हार्दिक मेरा नमन है।

**

गर्व माँ की कोख करती,

हैं पिता हिमवान थाती।

जन्म भू भी गा रही है

लिख रही है प्रीति-पाती।

प्रियतमा पत्नी तुम्हारी

तुमको निन्द्रा से जगाती।

*

लाड़ली बच्ची तुम्हारी

याद में रोया अमन है।

अमरत्व हो तुम इस धरा के

हार्दिक मेरा नमन है।

© डॉ राकेश चक्र

(एमडी,एक्यूप्रेशर एवं योग विशेषज्ञ)

90 बी, शिवपुरी, मुरादाबाद 244001 उ.प्र.  मो.  9456201857

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ विवेक साहित्य # 317 ☆ कविता – “भगवान की फोटो, ए आई और मैं…” ☆ श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ☆

श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक सहित्य # 317 ☆

?  कविता – भगवान की फोटो, ए आई और मैं…  ? श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ☆

22 जनवरी 2024 को

मैने एक फोटो खींची , खुद की

 

और एक

भगवान श्री राम की

 

ए आई से कहा

अपनी फोटो इनपुट में डालकर

अपने बचपन की एक फोटो बनाने को और एक बुढ़ापे की भी

 

कंप्यूटर ने बना दिए मेरे

दो चित्र

उसी नाक नक्श के

एक बचपन का

एक पचपन का

 

फिर सोच में पड़ गया

खुद मैं

ईसा, राम , कृष्ण

तो सदियों पहले भी

उसी चेहरे मोहरे

से पहचाने जाते हैं

जिस चेहरे के सम्मुख

हम,

आज भी श्रद्धा नत

होकर ,

मन की बात कह लेते हैं,

और शायद सदियों बाद भी

हमारी पीढ़ियां

उसी आकृति के सम्मुख

आंखों में आख़ें डाल

कुछ

कहती रहेंगी

स्वयं को हल्का करने

 

ईश्वर ए आई से परे हैं

भले ही वे हमारे ही रचे हैं

© श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ 

म प्र साहित्य अकादमी से सम्मानित वरिष्ठ व्यंग्यकार

संपर्क – ए 233, ओल्ड मिनाल रेजीडेंसी भोपाल 462023

मोब 7000375798, ईमेल [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ विज्ञापन पर अभिनेता जी की मुस्कान देखी… ☆ डॉ प्रेरणा उबाळे ☆

डॉ प्रेरणा उबाळे

☆ कविता – विज्ञापन पर अभिनेता जी की मुस्कान देखी…  ☆  डॉ प्रेरणा उबाळे 

बस से गुज़रते, धक्के खाते

जगह मिली तो बैठ पाई

खिड़की से बाहर झाँका तो

विज्ञापन पर अभिनेता जी की मुस्कान देखी

रोते-भीख माँगते नंगधडग बच्चे देखे

नल पर नहाते, गाड़ी पोछते खिलौने देखे

फूलों को बेचते हमने कुछ फूल देखें 

विज्ञापन पर अभिनेता जी की मुस्कान देखी

 *

साडी संवरकर चलती- भागती युवतियाँ देखी

काम के लिए दौड़ती, खिलती माँए देखी

अपना टिफिन खुद हँसकर बनाती महिलाएँ देखी 

विज्ञापन पर अभिनेता जी की मुस्कान देखी

 *

कंडक्टर के टिकट फाड़ने की कला देखी

ड्राइवर की गाडी चलाने की भाषा देखी

यात्रियों के चढ़ने-उतरने में तंगी देखी

विज्ञापन पर अभिनेता जी की मुस्कान देखी

 *

नीतियों से त्रस्त बच्चों के लिए कमाते पिता देखे

मृत्यु के भय को छिपाते दादाजी देखें

नातिन की मुस्कान से मुस्काती नानी देखी

विज्ञापन पर अभिनेता जी की मुस्कान देखी

 *

चक्रव्यूह में फँसे सभी अभिमन्यू  देखें

शरपंजर हो भी वचन निभाते भीष्म देखें

अभिनेता जी की मुस्कान में जिम्मेदारियों देखी

विज्ञापन पर अभिनेता जी की मुस्कान देखी l

■□■□■

© डॉ प्रेरणा उबाळे

रचनाकाल  : 27 नवंबर  2024

सहायक प्राध्यापक, हिंदी विभागाध्यक्षा, मॉडर्न कला, विज्ञान और वाणिज्य महाविद्यालय (स्वायत्त), शिवाजीनगर,  पुणे ०५

संपर्क – 7028525378 / [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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