हिन्दी साहित्य – कविता ☆ – हमारा देश…भारत ☆ श्री राजेन्द्र तिवारी ☆

श्री राजेन्द्र तिवारी

(ई-अभिव्यक्ति में संस्कारधानी जबलपुर से श्री राजेंद्र तिवारी जी का स्वागत। इंडियन एयरफोर्स में अपनी सेवाएं देने के पश्चात मध्य प्रदेश पुलिस में विभिन्न स्थानों पर थाना प्रभारी के पद पर रहते हुए समाज कल्याण तथा देशभक्ति जनसेवा के कार्य को चरितार्थ किया। कादम्बरी साहित्य सम्मान सहित कई विशेष सम्मान एवं विभिन्न संस्थाओं द्वारा सम्मानित, आकाशवाणी और दूरदर्शन द्वारा वार्ताएं प्रसारित। हॉकी में स्पेन के विरुद्ध भारत का प्रतिनिधित्व तथा कई सम्मानित टूर्नामेंट में भाग लिया। सांस्कृतिक और साहित्यिक क्षेत्र में भी लगातार सक्रिय रहा। हम आपकी रचनाएँ समय समय पर अपने पाठकों के साथ साझा करते रहेंगे। आज प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण कविता हमारा देश…भारत।)

☆ कविता – हमारा देश…भारत ☆

सिर पर ताज हिमालय का है,

 सागर चरण पखारता,

गंगा यमुना की बाहों को,

 अंबर पुलक निहारता,

 देश के हर कोने से उठता,

 हर स्वर यही पुकारता,

 वंदे मातरम्, वंदे मातरम्,

*

 राम कृष्ण की भूमि है ये,

इस मिट्टी की शान है,

सभी देवता गोद में खेले,

 भारत भूमि महान है,

एक बंधन में हम सब आएं

एक ही सुर में मिलकर गाएं,

वंदे मातरम्, वंदे मातरम्,

*

आओ मिलकर शपथ उठाएं,

भारत मां की आन की,

कभी शान ना झुकने पाए,

भारत मां की शान की,

भारत मां का दर्शन पाएं

सभी देवता सस्वर गाएं,

वंदे मातरम्, वंदे मातरम्.

© श्री राजेन्द्र तिवारी  

संपर्क – 70, रामेश्वरम कॉलोनी, विजय नगर, जबलपुर

मो  9425391435

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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English Literature – Poetry ☆ Anonymous litterateur of Social Media # 192 ☆ Captain Pravin Raghuvanshi, NM ☆

Captain (IN) Pravin Raghuvanshi, NM

? Anonymous Litterateur of Social Media # 192 (सोशल मीडिया के गुमनाम साहित्यकार # 192) ?

Captain Pravin Raghuvanshi NM—an ex Naval Officer, possesses a multifaceted personality. He served as a Senior Advisor in prestigious Supercomputer organisation C-DAC, Pune. An alumnus of IIM Ahmedabad was involved in various Artificial and High-Performance Computing projects of national and international repute. He has got a long experience in the field of ‘Natural Language Processing’, especially, in the domain of Machine Translation. He has taken the mantle of translating the timeless beauties of Indian literature upon himself so that it reaches across the globe. He has also undertaken translation work for Shri Narendra Modi, the Hon’ble Prime Minister of India, which was highly appreciated by him. He is also a member of ‘Bombay Film Writer Association’. He is also the English Editor for the web magazine www.e-abhivyakti.com.  

Captain Raghuvanshi is also a littérateur par excellence. He is a prolific writer, poet and ‘Shayar’ himself and participates in literature fests and ‘Mushayaras’. He keeps participating in various language & literature fests, symposiums and workshops etc.

Recently, he played an active role in the ‘International Hindi Conference’ at New Delhi. He presided over the “Session Focused on Language and Translation” and also presented a research paper. The conference was organized by Delhi University in collaboration with New York University and Columbia University.

हिंदी साहित्य – आलेख ☆ अंतर्राष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन ☆ कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

In his Naval career, he was qualified to command all types of warships. He is also an aviator and a Sea Diver; and recipient of various awards including ‘Nao Sena Medal’ by the President of India, Prime Minister Awards and C-in-C Commendation. He has won many national and international awards.

He is also an IIM Ahmedabad alumnus.

His latest quest involves writing various books and translation work including over 100 Bollywood songs for various international forums as a mission for the enjoyment of the global viewers. Published various books and over 3000 poems, stories, blogs and other literary work at national and international level. Felicitated by numerous literary bodies..!

? English translation of Urdu poetry couplets of Anonymous litterateur of Social Media # 192 ?

☆☆☆☆☆

गुफ़्तुगू करे हैं अक्सर

उंगलियां ही अब तो..

ज़बां तरसती है

कुछ कहने के लिए..

☆☆

Fingers only chat 

these days now ..

The tongue  longs

To say something…

☆☆☆☆☆

तेरी बात को यूँही…

खामोशी से मान लेना

ये भी एक अंदाज़ है,

मेरी  नाराज़गी  का…

☆☆

Just simply accepting

your  words  quietly…

Is  also  my  way  of

expressing resentment…

☆☆☆☆☆

रूबरू  होने   की  तो  छोड़िये,

गुफ़्तगू से  भी  क़तराने  लगे हैं,

ग़ुरूर ओढ़ते  हैं  रिश्ते  अब तो,

हैसियत पर अपनी इतराने लगे हैं…

☆☆

Leave apart being face to face,

They’ve begun  to avoid talking,

Relations are so conceited now,

Proudly unmask their haughtiness

☆☆☆☆☆

बहुत ही नादान है वो,

ज़रा समझाइए ना उसे,

बात न करने से कभी,

मोहब्बत कम नहीं होती…

☆☆

She is too innocent,

Please explain to her that

Not talking to someone

Doesn’t reduce love for him!

☆☆☆☆☆

© Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Pune

≈ Editor – Shri Hemant Bawankar/Editor (English) – Captain Pravin Raghuvanshi, NM ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सलिल प्रवाह # 191 ☆ द्विपदियाँ ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ☆

आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

(आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ जी संस्कारधानी जबलपुर के सुप्रसिद्ध साहित्यकार हैं। आपको आपकी बुआ श्री महीयसी महादेवी वर्मा जी से साहित्यिक विधा विरासत में प्राप्त हुई है । आपके द्वारा रचित साहित्य में प्रमुख हैं पुस्तकें- कलम के देव, लोकतंत्र का मकबरा, मीत मेरे, भूकंप के साथ जीना सीखें, समय्जयी साहित्यकार भगवत प्रसाद मिश्रा ‘नियाज़’, काल है संक्रांति का, सड़क पर आदि।  संपादन -८ पुस्तकें ६ पत्रिकाएँ अनेक संकलन। आप प्रत्येक सप्ताह रविवार को  “साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह” के अंतर्गत आपकी रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है द्विपदियाँ …।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 191 ☆

☆ द्विपदियाँ ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ☆

परवाने जां निसार कर देंगे.

हम चराग-ए-रौशनी तो बन जाएँ..

*

तितलियों की चाह में भटको न तुम.

फूल बन महको चली आएँगी ये..

*

जब तलक जिन्दा था रोटी न मुहैया थी.

मर गया तो तेरहीं में दावतें हुईं..

*

बाप की दो बात सह नहीं पाते

अफसरों की लात भी परसाद है..

*

पत्थर से हर शहर में मिलते मकां हजारों.

मैं ढूँढ-ढूँढ हारा, घर एक नहीं मिलता..

©  आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

९.४.२०१०

संपर्क: विश्ववाणी हिंदी संस्थान, ४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१,

चलभाष: ९४२५१८३२४४  ईमेल: [email protected]

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ आतिश का तरकश #241 – 126 – “रूखसत वक्त अश्क़ दर पर ठिठके रहे…” ☆ श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’ ☆

श्री सुरेश पटवा

(श्री सुरेश पटवा जी  भारतीय स्टेट बैंक से  सहायक महाप्रबंधक पद से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं और स्वतंत्र लेखन में व्यस्त हैं। आपकी प्रिय विधा साहित्य, दर्शन, इतिहास, पर्यटन आदि हैं। आपकी पुस्तकों  स्त्री-पुरुष “गुलामी की कहानी, पंचमढ़ी की कहानी, नर्मदा : सौंदर्य, समृद्धि और वैराग्य की  (नर्मदा घाटी का इतिहास) एवं  तलवार की धार को सारे विश्व में पाठकों से अपार स्नेह व  प्रतिसाद मिला है। श्री सुरेश पटवा जी  ‘आतिश’ उपनाम से गज़लें भी लिखते हैं ।प्रस्तुत है आपका साप्ताहिक स्तम्भ आतिश का तरकशआज प्रस्तुत है आपकी भावप्रवण ग़ज़ल रूखसत वक्त अश्क़ दर पर ठिठके रहे…” ।)

? ग़ज़ल # 126 – “रूखसत वक्त अश्क़ दर पर ठिठके रहे…” ☆ श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’ ?

अहबाब ज़ेरे  ख़ाक सुला कर चले गये,

महबूब अश्क़ में  नहला कर चले गये।

*

रुख़सत फ़रमान कब तक अनदेखा करें,

ख़ाक तुम राख में मिला कर चले गये।

*

सालों हमारा रहा बसेरा जिस शजर पर,

बहुत दूर उससे कब्र सज़ा कर चले गये।

*

नहला कर रुख़सत करते हमदम मुझको,

ताबूत में  जन्नत  दिखा कर चले गये।

*

आख़िर बार बिस्तर पर लिटा कर मुझको,

मेरी चिता में  आग लगा  कर चले गये।

*

रूखसत वक्त अश्क़ दर पर ठिठके रहे,

सूराह फ़ातिहा पढ़ हाथ उठा कर गये।

*

इस तरह खेल बेवफ़ाई का ‘आतिश’ हुआ,

इधर नज़र बचा उधर लड़ा कर चले गये।

© श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’

भोपाल, मध्य प्रदेश

≈ सम्पादक श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – कोलाहल ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं।)

? संजय दृष्टि –  कोलाहल ? ?

(लघु कविता संग्रह – चुप्पियाँ से)

कोलाहल

निपट पहली

संख्या हो

या असंख्येय

हो चुका हो,

कोलाहल

संख्यारेखा के

बाएँ हो या दायें हो,

हर बार

हर समय

कोलाहल की

परिणति

चुप्पी ही होती है,

चुप्पी शाश्वत है

शेष सब नश्वर!

© संजय भारद्वाज  

(2.9.18, प्रातः 6:59 बजे)

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

🕉️ 💥 श्री हनुमान साधना सम्पन्न हुई। अगली साधना की जानकारी आपको शीघ्र ही दी जाएगी। 💥 🕉️

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ “श्री हंस” साहित्य # 119 ☆ हाइकु – ।। पत्रकार से ही समाचार ।। ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस” ☆

श्री एस के कपूर “श्री हंस”

☆ “श्री हंस” साहित्य # 119 ☆

☆ हाइकु – ।। पत्रकार से ही समाचार ।। ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस” ☆

[1]

पत्रकारिता

आज की जरूरत

स्पष्टवादिता।

 

[2]

पत्रकार है

कलम का सिपाही

चौकीदार है।

 

[3]

है पत्रकार

शब्दों का जादूगर

राष्ट्र आधार।

 

[4]

ये समाचार

पत्रकार की देन

हर प्रकार।

 

[5]

पत्रकारिता

कभी खुशी या गम

रोज लिखता।

 

[6]

पत्रकारिता

लिखे भविष्य का भी

दूरदर्शिता।

 

[7]

ये पत्रकार

लिखे अच्छा बुरा भी

जो सरकार।

 

[8]

ये पत्रकार

आज स्पष्टवादिता

है दरकार।

 

[9]

ये पत्रकार

गलत सही चुन

झूठ नकार।

 

[10]

पत्रकारिता

सकारात्मकता हो

तो सार्थकता।

 

[11]

पत्रकारिता

यह है चौथा स्तंभ

लोकतंत्र का।

 

[12]

ये पत्रकार

मीडिया का आधार

सुने पुकार।

 

[13]

ये पत्रकार

ये संवाद संचार

आज आधार।

 

[14]

ये पत्रकार

कलम तलवार

है ललकार।

 

[15]

ये पत्रकार

करे   खबरदार

जवाबदार।

 

[16]

पत्रकारिता

हो निष्पक्ष वादिता

यही आहर्ता।

© एस के कपूर “श्री हंस”

बरेलीईमेल – Skkapoor5067@ gmail.com, मोब  – 9897071046, 8218685464

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ काव्य धारा # 181 ☆ ‘अनुगुंजन’ से – हार कैसे मान लूँ मैं ?… ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

(आज प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी  द्वारा रचित एक भावप्रवण रचना  – “आदमी कितना भोला है, नादान है…। हमारे प्रबुद्ध पाठकगण प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी  काव्य रचनाओं को प्रत्येक शनिवार आत्मसात कर सकेंगे।) 

☆ काव्य धारा # 181 ☆ ‘अनुगुंजन’ से – हार कैसे मान लूँ मैं ?… ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

साफ दिखती जीत को ही हार कैसे मान लूं मैं ?

आ रहे मुधुमास को पतझार कैसे मान लूं मैं ??

 

हर अँधेरे में उजाले की कहीं सोई किरण है

तपन के ही बाद होता चाँदनी का आगमन है

देखता कुछ, बोलता कुछ, साफ जो कुछ कह न पाता

उस जगत के कथन का एतबार कैसे मान लूं मैं ।। १ ।।

 

आज अपनी जीत को ही हार को भी

जीत का पर्याय ही मैं मानता हूं

अश्रु पूर्वाभास हैं मुस्कान के मैं जानता हूं ।।

शब्द के संदर्भगत निहितार्थ अक्सर भिन्न होते

भाव को शब्दार्थ के अनुसार कैसे मान लूं मैं ।। ३ ।।

 

आज अपनी जीत को ही जगत तो

परिपाटियों को बिना समझे मानता है

जानने औ’ मानने में पर बड़ी असमानता है ।।

सुस्मिता ऊषा के बिखरे कुन्तलों की श्यामता को

अमावस की रात का अंधियार कैसे मान लूं मैं ।।४ ।।

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

ए २३३ , ओल्ड मीनाल रेजीडेंसी  भोपाल ४६२०२३

मो. 9425484452

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ अनमोल तुम है चाँद तारा  ☆ डॉ गुलाब चंद पटेल ☆

डॉ गुलाब चंद पटेल

☆ कविता ☆ अनमोल तुम है चाँद तारा  ☆ डॉ गुलाब चंद पटेल ☆

तुम ही हो चाँद तारा प्यारा है 

तुम ही हो अमर प्यार हमारा है 

*

पर्दा हटते ही चाँद निकल आता है 

उसकी हर अदा हमे दिवाना बनाती है 

*

लोग तुम्हें चाहे दूर से देखते है 

नजदीक से देखने का हक्क हमारा है 

*

बादल का पर्दा हटते ही चाँद दिखता है 

इन्हें देखकर दिल मेरा बहुत धड़कता है 

*

कातिल नजरो से निगाह डाला है 

चाँद तुम पर हक सिर्फ हमारा है 

*

तुम्हें मिलने को चाँदनी रात मन बनाया है 

दिल में हमने तेरे लिए एक स्वप्न सजाया है 

*

तुम्हें बिना देखे चेन नहीं मिलता है 

तुम्हारा स्मित हमे बहुत प्यारा लगता है 

*

तुम्हारी याद रात हमे बहुत सताती है 

खुशिया की लहर हमे सुबह जल्दी जगाती है 

*

चाँद तुम इंतजार बहुत कराता है 

जीवन में प्यार की लहर दौड़ जाती है 

*

चाँद तुम हमे जी जान से प्यारा है 

तेरे संग जिंदगी जीना मकसद हमारा है 

*

कवि गुलाब ने प्यार का पैगाम पहुंचाया है 

चाँद को ही सिर्फ अपने दिल में बसाया है 

© डॉ गुलाब चंद पटेल 

अध्यक्ष महात्मा गांधी साहित्य सेवा संस्था गुजरात Mo 8849794377 <[email protected]>  <[email protected]>

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ रचना संसार # 10 – नवगीत – पल्लू से आँसू पोंछे माँ… ☆ सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ’ ☆

सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ’

(संस्कारधानी जबलपुर की सुप्रसिद्ध साहित्यकार सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ ‘जी सेवा निवृत्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश, डिविजनल विजिलेंस कमेटी जबलपुर की पूर्व चेअर हैं। आपकी प्रकाशित पुस्तकों में पंचतंत्र में नारी, पंख पसारे पंछी, निहिरा (गीत संग्रह) एहसास के मोती, ख़याल -ए-मीना (ग़ज़ल संग्रह), मीना के सवैया (सवैया संग्रह) नैनिका (कुण्डलिया संग्रह) हैं। आप कई साहित्यिक संस्थाओं द्वारा पुरस्कृत एवं सम्मानित हैं। आप प्रत्येक शुक्रवार सुश्री मीना भट्ट सिद्धार्थ जी की अप्रतिम रचनाओं को उनके साप्ताहिक स्तम्भ – रचना संसार के अंतर्गत आत्मसात कर सकेंगे। आज इस कड़ी में प्रस्तुत है आपकी एक अप्रतिम रचना – नवगीत – पल्लू से आँसू पोंछे माँ

? रचना संसार # 10 – नवगीत – पल्लू से आँसू पोंछे माँ…  ☆ सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ’ ? ?

मार पड़ी महँगाई की है,

नहीं सूझती बात।

मिली आज की दौर की हमें,

आँसू ही सौग़ात।।

*

रोते बच्चे मिले बटर भी,

कुछ रोटी के साथ।

पल्लू से आँसू पोंछे माँ,

पर मारे-दो हाथ।।

छूट गया काम क्या करे अब,

खाओ सूखा भात।

*

रोज़ गालियाँ देता पति भी,

आती उसे न लाज।

कटे जीवनी कैसे उसकी,

करे न कोई काज।।

पीने दारू बेचें जेवर,

रोती बस दिन-रात।

घूरे के भी दिन आते हैं,

उर रखती बस आस।

काम मिलेगा कल फिर उसको,

पूरा है विश्वास।।

तगड़ा नेटवर्क उसका भी,

देगी सबको मात।

 

© सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ’

(सेवा निवृत्त जिला न्यायाधीश)

संपर्क –1308 कृष्णा हाइट्स, ग्वारीघाट रोड़, जबलपुर (म:प्र:) पिन – 482008 मो नं – 9424669722, वाट्सएप – 7974160268

ई मेल नं- [email protected], [email protected]

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – आवेग ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं।)

? संजय दृष्टि –  आवेग  ? ?

(लघु कविता संग्रह – चुप्पियाँ से)

‘चुप रहो’

क्रोध का पारावार

ज्यों-ज्यों बढ़ता है

अपने सिवा

हरेक से

चुप्पी की आशा करता है,

आवेग की

इकाई होती है चुप्पी!

 

© संजय भारद्वाज  

( 2.9.18, प्रातः 6:51 बजे)

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

🕉️ 💥 श्री हनुमान साधना सम्पन्न हुई। अगली साधना की जानकारी आपको शीघ्र ही दी जाएगी। 💥 🕉️

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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