हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ इंद्रधनुष #218 ☆ पूर्णिका – किससे कहें हम ये दास्तां हमारी… ☆ श्री संतोष नेमा “संतोष” ☆

श्री संतोष नेमा “संतोष”

(आदरणीय श्री संतोष नेमा जी  कवितायें, व्यंग्य, गजल, दोहे, मुक्तक आदि विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं. धार्मिक एवं सामाजिक संस्कार आपको विरासत में मिले हैं. आपके पिताजी स्वर्गीय देवी चरण नेमा जी ने कई भजन और आरतियाँ लिखीं थीं, जिनका प्रकाशन भी हुआ है. आप डाक विभाग से सेवानिवृत्त हैं. आपकी रचनाएँ राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में लगातार प्रकाशित होती रहती हैं। आप  कई सम्मानों / पुरस्कारों से सम्मानित/अलंकृत हैं. “साप्ताहिक स्तम्भ – इंद्रधनुष” की अगली कड़ी में आज प्रस्तुत है पूर्णिका – किससे कहें हम ये दास्तां हमारी आप  श्री संतोष नेमा जी  की रचनाएँ प्रत्येक शुक्रवार आत्मसात कर सकते हैं।)

☆ साहित्यिक स्तम्भ – इंद्रधनुष # 218 ☆

☆ पूर्णिका – किससे  कहें  हम ये  दास्तां  हमारी ☆ श्री संतोष नेमा ☆

जमाने के  हम भी  सताये  हुए  हैं

मुहब्बत में हम  चोट खाये  हुए  हैं

*

मिला दर्द हम को अपनों से ज्यादा

कैसे  बताएँ  गम   छिपाये  हुए  हैँ

*

हैँ मालूम हम को, रिवायत जगत की

फिर भी  ये दिल  हम  लगाए हुए हैं

*

किससे  कहें  हम ये  दास्तां  हमारी

कि कितने सितम हम उठाये हुए  हैँ

*

फरेबी,  दगावाज़   होती  है  दुनिया

अपने भी अब  स्वयं पराये  हुए   हैँ

*

वो  नजरें मिला कर  नजर फेरते  हैँ

फिर भी  निगाहें हम बिछाए हुए  हैँ

*

अब किसी की जरूरत नहीं है हमें

“संतोष” दिल में हम बसाए  हुए हैं

© संतोष  कुमार नेमा “संतोष”

वरिष्ठ लेखक एवं साहित्यकार

आलोकनगर, जबलपुर (म. प्र.) मो 7000361983, 9300101799

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ प्रेमा के प्रेमिल सृजन… नौतपा ☆ श्रीमति योगिता चौरसिया ‘प्रेमा’ ☆

श्रीमति योगिता चौरसिया ‘प्रेमा’ 

(साहित्यकार श्रीमति योगिता चौरसिया जी की रचनाएँ प्रतिष्ठित समाचार पत्रों/पत्र पत्रिकाओं में विभिन्न विधाओं में सतत प्रकाशित। कई साझा संकलनों में रचनाएँ प्रकाशित। दोहा संग्रह दोहा कलश प्रकाशित, विविध छंद कलश प्रकाशित। गीत कलश (छंद गीत) और निर्विकार पथ (मत्तसवैया) प्रकाशाधीन। राष्ट्रीय/अंतरराष्ट्रीय मंच / संस्थाओं से 350 से अधिक सम्मानों से सम्मानित। साहित्य के साथ ही समाजसेवा में भी सेवारत। हम समय समय पर आपकी रचनाएँ अपने प्रबुद्ध पाठकों से साझा करते रहेंगे।)  

☆ कविता ☆ प्रेमा के प्रेमिल सृजन… नौतपा ☆ श्रीमति योगिता चौरसिया ‘प्रेमा’ ☆

(नौतपा और उसके पश्चात की वेला पर आधारित) 

गरमी भीषण पड़ी, जेठ के  महीने अड़ी,

होते गर्म रात- दिन, नौतपा जलाता तन |

*

लू लपेटे फँसे चलें, जल बिन कैसे पलें?

सूरज प्रचंड ताप, आपत को सहे जन ||

*

बाहर को मत जाओ, घर रह सुख पाओ,

तपती है मरुभूमि, हुआ बुरा हाल मन‌।

*

नौतपा पे सब हारे, सूखे नदी वृक्ष सारे,

योगिता काँपते पल, जल थल और वन ||

*

ओ बरखा रानी आओ, बदरा बनके छाओ,

प्यासी है धरती सारी, प्यासे सारे जलचर।

*

बूंदें बन बरसना, गर्मी में है जीव घना,

तीव्र घनघोर जल, शीतल ठंडक कर।।

*

कृषक देखता राह, नव हो जीवन चाह,

चलें कब खेत पर, बनकर हलधर।

*

सौंधी माटी की महक, खत्म देह की दहक,

वृक्ष को लगायें सभी, स्फुरित हो बीज  हर।।

© श्रीमति योगिता चौरसिया ‘प्रेमा’

मंडला, मध्यप्रदेश

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ मन का दरवाज़ा ☆ डॉ. जसप्रीत कौर फ़लक ☆

डॉ जसप्रीत कौर फ़लक

कविता – मन का दरवाज़ा ☆ डॉ. जसप्रीत कौर फ़लक 

घर के दरवाज़े

और मन के दरवाज़े में

बहुत फ़र्क़ होता है

 

घर का दरवाज़ा तो

अक्सर खुला करता है

मेहमानों के लिए, आने वालों के लिए

किन्तु,

मन का दरवाज़ा खुलता है

जीवन में एक बार

कभी किसी अपने के लिये

 

यह घर का दरवाज़ा

लकड़ी से बनी

कोई वस्तु नहीं

हमारे घर की मर्यादा है

हमारे घर का सुरक्षा कवच है

 

खिड़कियों की तो अपनी एक सीमा है

खिड़कियाँ कभी कभार खुलती हैं

पुरवाई के हल्के से झोंके से

इनके पर्दे तो हिल सकते हैं

दरवाज़ा भी हल्का सा खुल सकता है

 

मगर

मन का दरवाज़ा कहाँ खुलता है..?

यह तो खुलता है

मधुर स्मृतियों के झोंकों से

किसी अपने की दस्तक से

किसी अपने के इंतज़ार में

इसकी चाबीयाँ टंगी नहीं रहतीं

दीवार में लगी कील से

 

वो संवेदनाओं की ध्वनि

मन की गहराई से उठती

समर्पण की आकांक्षाओं का परिणाम है

 

मन के दरवाजे का खुलना

दिल के अंदर छुपी आवाज़

एक साधना की भावना

मन के समन्दर में

उठे ज्वार-भाटा को

करती है शांत

लाती है स्थिरता

 

बार-बार

घर के दरवाज़े का खुलना

ले के आता है

बाहर की आवाज़ों का शोर

विचलित करता है

मन की भावनाओं को,

संवेदनाओं को…

 

कहाँ हो तुम..?

आ जाओ !

खुली हैं

तुम्हारे लिए

स्मृतियों की खिड़कियाँ…

मन का दरवाज़ा।

☆ 

© डॉ. जसप्रीत कौर फ़लक

संपर्क – मकान न.-11 सैक्टर 1-A गुरू ग्यान विहार, डुगरी, लुधियाना, पंजाब – 141003 फोन नं –  9646863733 ई मेल- [email protected]

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – भेड़िया ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं।)

? संजय दृष्टि – भेड़िया ? ?

भेड़िया उठा ले गया

झाड़ी की ओट में,

बर्बरता से उसका

अंग-प्रत्यंग भक्षण किया,

कुछ दिन बाद

देह का सड़ा-गला

अवशेष बरामद हुआ,

भेड़ियों का ग्राफ

निरंतर बढ़ता गया,

फिर यकायक

दुर्लभ होते प्राणियों में

भेड़िये का नाम पाकर

मेरा माथा ठनक गया,

अध्ययन से यह

तथ्य स्पष्ट हुआ,

चौपाये भेड़िये

जिस गति से घट रहे हैं,

दोपाये भेड़िये

उससे कई गुना अधिक

गति से बढ़ रहे हैं…!

© संजय भारद्वाज  

(प्रातः 3.45 बजे, 26.4.2019)

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

🕉️ 💥 श्री हनुमान साधना सम्पन्न हुई। अगली साधना की जानकारी आपको शीघ्र ही दी जाएगी। 💥 🕉️

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ दिन-रात #46 ☆ कविता – “तुम मेरी दास्तां हो…” ☆ श्री आशिष मुळे ☆

श्री आशिष मुळे

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ दिन-रात # 46 ☆

☆ कविता ☆ “तुम मेरी दास्तां हो…☆ श्री आशिष मुळे ☆

कहां शुरू कहां खत्म हो

कितनी छोटी बडी गेहरी हो

या बस इक सवाल हो

तुम मेरी दास्तां हो

 

आयी हो जैसे बारिश हो

भिगोकर कुछ पल जाती हो

ख्वाहिशें अंकुरित करती

तुम मेरी दास्तां हो

 

लुभाने की जैसे अदा हो

चले जाने की इक आदत हो

जाकर भी मेरा हिस्सा हो

तुम मेरी दास्तां हो

 

कितनी बार जाकर आती हो

कुछ ना कुछ लिख जाती हो

दिल की इक किताब हो

तुम मेरी दास्तां हो

 

पढ़ने वाला क्या पढे तुझे

अनसुलझी इक पहेली हो

सुनाने वाला क्या सुनाए

तुम मेरी दास्तां हो

 

कभी जिंदगी कभी मौत हो

तकलीफ कभी तसल्ली हो

तहहयात जैसे गले पड़ी हो

तुम मेरी दास्तां हो

 

घूमने का इक नशा हो

अफसोस दुनियां गोल है

घूमकर यहीं पहुंचती हो

तुम मेरी दास्तां हो

 

सुनो, जो सुनना चाहती हो

हरबार अलग हो

मगर मेरी बस तुम ही हो

तुम मेरी दास्तां हो….

© श्री आशिष मुळे

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ समय चक्र # 208 ☆ गीत – अपनी ढपली ताल ☆ डॉ राकेश ‘चक्र’ ☆

डॉ राकेश ‘चक्र

(हिंदी साहित्य के सशक्त हस्ताक्षर डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी  की अब तक कुल 148 मौलिक  कृतियाँ प्रकाशित। प्रमुख  मौलिक कृतियाँ 132 (बाल साहित्य व प्रौढ़ साहित्य) तथा लगभग तीन दर्जन साझा – संग्रह प्रकाशित। कई पुस्तकें प्रकाशनाधीन। जिनमें 7 दर्जन के आसपास बाल साहित्य की पुस्तकें हैं। कई कृतियां पंजाबी, उड़िया, तेलुगु, अंग्रेजी आदि भाषाओँ में अनूदित । कई सम्मान/पुरस्कारों  से  सम्मानित/अलंकृत। भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय द्वारा बाल साहित्य के लिए दिए जाने वाले सर्वोच्च सम्मान ‘बाल साहित्य श्री सम्मान’ और उत्तर प्रदेश सरकार के हिंदी संस्थान द्वारा बाल साहित्य की दीर्घकालीन सेवाओं के लिए दिए जाने वाले सर्वोच्च सम्मान ‘बाल साहित्य भारती’ सम्मान, अमृत लाल नागर सम्मान, बाबू श्याम सुंदर दास सम्मान तथा उत्तर प्रदेश राज्यकर्मचारी संस्थान  के सर्वोच्च सम्मान सुमित्रानंदन पंत, उत्तर प्रदेश रत्न सम्मान सहित पाँच दर्जन से अधिक प्रतिष्ठित साहित्यिक एवं गैर साहित्यिक संस्थाओं से सम्मानित एवं पुरुस्कृत। 

 आदरणीय डॉ राकेश चक्र जी के बारे में विस्तृत जानकारी के लिए कृपया इस लिंक पर क्लिक करें 👉 संक्षिप्त परिचय – डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी।

आप  “साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र” के माध्यम से  उनका साहित्य आत्मसात कर सकेंगे।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र – # 208 ☆

☆ गीत – अपनी ढपली ताल ☆ डॉ राकेश ‘चक्र’ 

 घर-घर एसी लगी बिमारी

गर्मी करे कमाल।

पर्वत भी अब गर्म हो रहे

शिमला, नैनीताल।

दो-दो तीन-तीन इक घर में

वाहन का है रेला भारी।

सब ही गाड़ी आज चाहते

सर्विस भी चाहें सरकारी।

 *

मेहनत से सब बचना चाहें

स्वयं हुए कंगाल।

 *

निज वाहन से करें यात्रा

फँसें जाम में तीर्थयात्री।

तौबा-तौबा करें जाम से

चिल्ल- चिल्ल पौं मचती भारी।

 *

वाहन खूब चलावें सरपट

स्वयं बुलाएँ काल।

 *

पथ चलते मोबाइल बातें

भोजन करते टीवी देखें।

कितने व्यस्त लगें अब सब ही

ब्यूटी पार्लर खींचे रेखें।

 *

आत्ममुग्ध अपने ही होकर

अपनी ढपली ताल।

 *

जंगल धधकें मनुज कृत्य से

जगह – जगह अग्निकांड हो रहे

जंगल काटें , जल का दोहन

मानव खोटा बीज बो रहे।

 *

ग्लोबल वार्मिंग करे तबाही

नित्य बढ़ें जंजाल।

© डॉ राकेश चक्र

(एमडी,एक्यूप्रेशर एवं योग विशेषज्ञ)

90 बी, शिवपुरी, मुरादाबाद 244001 उ.प्र.  मो.  9456201857

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ तन्मय साहित्य #233 – बाल कविता – “करें ज्ञान विज्ञान की बातें…”☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ ☆

श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

(सुप्रसिद्ध वरिष्ठ साहित्यकार श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी अर्ध शताधिक अलंकरणों /सम्मानों से अलंकृत/सम्मानित हैं। आपकी लघुकथा  रात  का चौकीदार”   महाराष्ट्र शासन के शैक्षणिक पाठ्यक्रम कक्षा 9वीं की  “हिंदी लोक भारती” पाठ्यपुस्तक में सम्मिलित। आप हमारे प्रबुद्ध पाठकों के साथ  समय-समय पर अपनी अप्रतिम रचनाएँ साझा करते रहते हैं। आज प्रस्तुत है आपकी एक अप्रतिम  बाल कविता – करें ज्ञान विज्ञान की बातें” ।)

☆ तन्मय साहित्य  #233 ☆

☆ बाल कविता – करें ज्ञान विज्ञान की बातें… ☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ ☆

करें ज्ञान विज्ञान की बातें

क्यों होते दिन होती रातें।

*

तारे टिमटिम क्यों क tvरते हैं

दूर गगन में क्यों रहते हैं।

क्यों मंडराते नभ में बादल

कैसे होती है बरसातें।

करें ज्ञान विज्ञान की बातें।।

*

चंदा क्यों बढ़ता घटता है

सूरज क्यों हर दिन तपता है

सप्त ऋषि तारे क्या कहते

क्यों ध्रुव तारा देख लुभाते।

करें ज्ञान विज्ञान की बातें।।

*

खारा क्यों होता है सागर

भाटा ज्वार में क्या है अंतर

कैसे बिजली पैदा करते

नदियों पर क्यों बांध बनाते

करें ज्ञान-विज्ञान की बातें।।

*

क्यों किसान खेतों को जोते

बीज अंकुरित कैसे होते

कैसे टीवी चित्र दिखाएं

और  रेडियो  गाने गाते।

करें ज्ञान विज्ञान की बातें।।

*

चलो चलें हम जल्दी शाला

हल होगा सब वहीं मसाला

टीचर जी समझायेंगे सब

जैसे  और  प्रश्न समझाते।

करें ज्ञान विज्ञान की बातें।

☆ ☆ ☆ ☆ ☆

© सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय

जबलपुर/भोपाल, मध्यप्रदेश, अलीगढ उत्तरप्रदेश  

मो. 9893266014

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ जय प्रकाश के नवगीत # 57 ☆ धर्म ध्वजा… ☆ श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव ☆

श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

(संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं अग्रज साहित्यकार श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव जी  के गीत, नवगीत एवं अनुगीत अपनी मौलिकता के लिए सुप्रसिद्ध हैं। आप प्रत्येक बुधवार को साप्ताहिक स्तम्भ  “जय  प्रकाश के नवगीत ”  के अंतर्गत नवगीत आत्मसात कर सकते हैं। आज प्रस्तुत है आपका एक भावप्रवण एवं विचारणीय नवगीत “धर्म ध्वजा…” ।

✍ जय प्रकाश के नवगीत # 57 ☆ धर्म ध्वजा… ☆ श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

पाप-पुण्य की

इस नगरी में

धर्म हमारी ध्वजा रही है ।

 

तिनका- तिनका जोड़ जतन से

एक घोंसला सुघर बनाया

ना जाने कब कौन शिकारी

की पड़ गई अमंगल छाया

 

छन कर आती

धूप नहीं अब

छाँव अँधेरे सजा रही है ।

 

मिलजुल कर बोया फसलों को

काट रहे हैं अपनी-अपनी

ढो-ढो कर रिश्तों की गठरी

पीठ हो गई छलनी-छलनी

 

हवा हुई बे-शर्म

यहाँ की

गंध सुवासित लजा रही है ।

***

© श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

सम्पर्क : आई.सी. 5, सैनिक सोसायटी शक्ति नगर, जबलपुर, (म.प्र.)

मो.07869193927,

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – मूल्य ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं।)

? संजय दृष्टि –  मूल्य  ? ?

(लघु कविता संग्रह – चुप्पियाँ से)

तुम्हारी चुप्पी मूल्यवान है

जितना चुप रहते हो

उतना मूल्य बढ़ता है,

वैसे तुम्हारी चुप्पी का मूल्य

कहाँ  तक पहुँचा?

…और बढ़ेगा क्या..?

मैं फिर चुप लगा गया।

© संजय भारद्वाज  

1.9.18, रात 11:40 बजे

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

🕉️ 💥 श्री हनुमान साधना सम्पन्न हुई। अगली साधना की जानकारी आपको शीघ्र ही दी जाएगी। 💥 🕉️

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ सभी है मुसाफिर यहाँ चार दिन के… ☆ श्री अरुण कुमार दुबे ☆

श्री अरुण कुमार दुबे

(वरिष्ठ साहित्यकार श्री अरुण कुमार दुबे जी, उप पुलिस अधीक्षक पद से मध्य प्रदेश पुलिस विभाग से सेवा निवृत्त हुए हैं । संक्षिप्त परिचय ->> शिक्षा – एम. एस .सी. प्राणी शास्त्र। साहित्य – काव्य विधा गीत, ग़ज़ल, छंद लेखन में विशेष अभिरुचि। आज प्रस्तुत है, आपकी एक भाव प्रवण रचना “सभी है मुसाफिर यहाँ चार दिन के“)

✍ सभी है मुसाफिर यहाँ चार दिन के… ☆ श्री अरुण कुमार दुबे 

 कहीं कारवां क्या मिला पूछते हैं

सफ़र में जो बिछड़े पता पूछते हैं

दिया दर्द जो हमसे नादान उससे

जो आराम दे वो दवा पूछते हैं

 *

जिन्हें ख़्याल रखना सिरे से न आया

वही मुझसे क्या है गिला पूछते हैं

 *

जिन्हें हर खुशी है मयस्सर जहां में

वो बेअक्ल क्या है ख़ुदा पूछते हैं

 *

बहुत हमने सोचा समझ में न आया

मिले गर कभी वो तो क्या पूछते हैं

 *

तिज़ारत समझते है जो आशिक़ी को

मुहब्बत में मुझसे नफ़ा पूछते हैं

 *

अगर चोर दिल में नहीं है जो तेरे

बता क्यों तेरा सर झुका पूछते हैं

 *

सभी है मुसाफिर यहाँ चार दिन के

हमारा तुम्हारा है क्या पूछते हैं

 *

कहाँ छीनकर मौत ले जाती सारे

ये हम प्रश्न तुझसे ख़ला पूछते हैं

 *

हमें और कितने कराएगी फांके

तुझे बेंच दे क्या अना पूछते हैं

 *

अरुण उनकी दरिया दिली देखिये तो

ख़ता की न उसकी सजा पूछते हैं

© श्री अरुण कुमार दुबे

सम्पर्क : 5, सिविल लाइन्स सागर मध्य प्रदेश

सिरThanks मोबाइल : 9425172009 Email : arunkdubeynidhi@gmail. com

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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