हिन्दी साहित्य – कविता ☆ मुसीबतों से हमारा न हौसला टूटा… ☆ श्री अरुण कुमार दुबे ☆

श्री अरुण कुमार दुबे

(वरिष्ठ साहित्यकार श्री अरुण कुमार दुबे जी, उप पुलिस अधीक्षक पद से मध्य प्रदेश पुलिस विभाग से सेवा निवृत्त हुए हैं । संक्षिप्त परिचय ->> शिक्षा – एम. एस .सी. प्राणी शास्त्र। साहित्य – काव्य विधा गीत, ग़ज़ल, छंद लेखन में विशेष अभिरुचि। आज प्रस्तुत है, आपकी एक भाव प्रवण रचना “मुसीबतों से हमारा न हौसला टूटा“)

✍ मुसीबतों से हमारा न हौसला टूटा... ☆ श्री अरुण कुमार दुबे 

हम ऐसे ऐसे फकीरों के साथ बैठे हैं

ख़ुदा के जैसे सफ़ीरों के साथ बैठे हैं

 *

उतर गए हैं चढ़े रूढ़ियों के सब चश्मे

हयात में जो कबीरों के साथ बैठे हैं

 *

सियासतों की हकीकत से हम हुए वाकिफ

बहुत जो दफ़्य वज़ीरों के साथ बैठे हैं

 *

मुसीबतों से हमारा  न हौसला टूटा

अनेक बार क़दीरों के साथ बैठे हैं

 *

पलट के बात से आँखें फिरायें हम अपनी

बड़ों से सीखे न कीरों के साथ बैठे हैं

 *

ये शुहवतों का असर है नहीं चमक अपनी

मिला है साथ मुनीरों के साथ बैठे है

*

मैं फैसला जो लू तो सोचता सभी पहलू

सबब यही है वशीरों के साथ बैठे हैं

*

मदद को हाथ उठे रहते हैं हमेशा  जो

असर है हमपे नसीरों के साथ बैठे हैं

*

अरुण कभी न कोई बात हम करें छोटी

न आज तक जो हक़ीरों के बैठे हैं

© श्री अरुण कुमार दुबे

सम्पर्क : 5, सिविल लाइन्स सागर मध्य प्रदेश

सिरThanks मोबाइल : 9425172009 Email : arunkdubeynidhi@gmail. com

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कादम्बरी # 57 – चाँदनी से मुझे नहाना है… ☆ आचार्य भगवत दुबे ☆

आचार्य भगवत दुबे

(संस्कारधानी जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर आचार्य भगवत दुबे जी को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया है।सीमित शब्दों में आपकी उपलब्धियों का उल्लेख अकल्पनीय है। आचार्य भगवत दुबे जी के व्यक्तित्व एवं कृतित्व की विस्तृत जानकारी के लिए कृपया इस लिंक पर क्लिक करें 👉 ☆ हिन्दी साहित्य – आलेख – ☆ आचार्य भगवत दुबे – व्यक्तित्व और कृतित्व ☆. आप निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणा स्त्रोत हैं। हमारे विशेष अनुरोध पर आपने अपना साहित्य हमारे प्रबुद्ध पाठकों से साझा करना सहर्ष स्वीकार किया है। अब आप आचार्य जी की रचनाएँ प्रत्येक मंगलवार को आत्मसात कर सकेंगे।  आज प्रस्तुत हैं आपकी एक भावप्रवण रचना – चाँदनी से मुझे नहाना है।)

✍  साप्ताहिक स्तम्भ – ☆ कादम्बरी # 57 – चाँदनी से मुझे नहाना है… ☆ आचार्य भगवत दुबे ✍

आज उनका नया बहाना है 

साथ में, फिर किसी के जाना है

*

गीत, उनको ही ये सुनाना है 

इसमें, उनका ही तो फसाना है

*

वो तो मेंहदी लगाये बैठे हैं 

और क्या क्या अभी लगाना है

*

रंग सोने-सा है, बदन चाँदी 

हुस्न का कीमती खजाना है

*

आज फिर हो गये खफा मुझसे 

रोग उनका तो ये पुराना है

*

तीरगी है, बुलाइये उनको 

चाँदनी से मुझे नहाना है

 

https://www.bhagwatdubey.com

© आचार्य भगवत दुबे

82, पी एन्ड टी कॉलोनी, जसूजा सिटी, पोस्ट गढ़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ मनोज साहित्य # 131 – चिंताओं की गठरी बाँधे… ☆ श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” ☆

श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं सजग अग्रज साहित्यकार श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” जी  के साप्ताहिक स्तम्भ  “मनोज साहित्य ” में आज प्रस्तुत है आपकी भावप्रवण कविता “सजल – चिंताओं की गठरी बाँधे…” । आप प्रत्येक मंगलवार को आपकी भावप्रवण रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे।

✍ मनोज साहित्य # 131 – सजल – चिंताओं की गठरी बाँधे… ☆

(मुक्त दिवस पर मेरी ओर से एक नई सजल)

समांत : ओए

पदांत : —

मात्राभार : 16+10=26

चिंताओं की गठरी बाँधे, जीवन भर ढोए।

स्वार्थी रिश्ते-नातों ने ही, पथ-काँटे  बोए।।

 *

संसाधन के जोड़-तोड़ में, हाड़ सभी टूटे ।

एक लंगोटी रही हमारी, बाकी सब खोए।।

 *

मोटी-मोटी पढ़ी किताबें, काम नहीं आईं।

जाने-अनजाने में हमतो, आँख मींच सोए।।

 *

होती चिंता,चिता की तरह, समझाया मन को ।

उससे मुक्ति है, ना मिल सकी, हार मान रोए।।

 *

प्रारब्धों के मकड़ जाल में, उलझ गए हम सब।

पाप पुण्य के फेरे में पड़, पुण्य सभी धोए।।

©  मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

30/5/24

संपर्क – 58 आशीष दीप, उत्तर मिलोनीगंज जबलपुर (मध्य प्रदेश)- 482002

मो  94258 62550

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – देह या दृष्टि ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं।)

? संजय दृष्टि –  देह या दृष्टि ? ?

तुमने देखी उसकी

निर्वसन,अनावृत्त देह?

पुलिया पर खड़ा जनसमूह

नदी में मिले नारी शरीर पर

कुजबुजा रहा था,

मैं पशोपेश में पड़ गया

निर्वसन देह होती है या दृष्टि?

© संजय भारद्वाज  

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

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अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – आलेख ☆ अभी अभी # 381 ⇒ उदासी… ☆ श्री प्रदीप शर्मा ☆

श्री प्रदीप शर्मा

(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “उदासी।)

?अभी अभी # 381 ⇒ उदासी? श्री प्रदीप शर्मा  ?

उदासी !

गम की दासी

रात की रोटी

ठंडी-बासी

स्वस्थ शरीर में

मानो सूखी खाँसी

खुशियों के उपवन में

मुरझाए-पुष्प

छाई उदासी।

उत्साह के बजाय

उबासी

सुन सुन आए

हाँसी

हलक से हरूफ

बाहर आते नहीं

बिन जल्लाद-रस्सी

मानो लग रही फाँसी।।

♥ ♥ ♥ ♥ ♥

© श्री प्रदीप शर्मा

संपर्क – १०१, साहिल रिजेंसी, रोबोट स्क्वायर, MR 9, इंदौर

मो 8319180002

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ अभिनव गीत # 193 – “रात सुन्दर रूप चौदस की…” ☆ श्री राघवेंद्र तिवारी ☆

श्री राघवेंद्र तिवारी

(प्रतिष्ठित कवि, रेखाचित्रकार, लेखक, सम्पादक श्रद्धेय श्री राघवेंद्र तिवारी जी  हिन्दी, दूर शिक्षा, पत्रकारिता व जनसंचार,  मानवाधिकार तथा बौद्धिक सम्पदा अधिकार एवं शोध जैसे विषयों में शिक्षित एवं दीक्षित। 1970 से सतत लेखन। आपके द्वारा सृजित ‘शिक्षा का नया विकल्प : दूर शिक्षा’ (1997), ‘भारत में जनसंचार और सम्प्रेषण के मूल सिद्धांत’ (2009), ‘स्थापित होता है शब्द हर बार’ (कविता संग्रह, 2011), ‘​जहाँ दरक कर गिरा समय भी​’​ ( 2014​)​ कृतियाँ प्रकाशित एवं चर्चित हो चुकी हैं। ​आपके द्वारा स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम के लिए ‘कविता की अनुभूतिपरक जटिलता’ शीर्षक से एक श्रव्य कैसेट भी तैयार कराया जा चुका है। आज प्रस्तुत है आपका एक अभिनव गीत रात सुन्दर रूप चौदस की...)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ # 193 ☆।। अभिनव गीत ।। ☆

☆ “रात सुन्दर रूप चौदस की...” ☆ श्री राघवेंद्र तिवारी

सम्हाले हो विरासत जिसकी ।

साँवली तुम !

रात सुन्दर रूप चौदस की ॥

 

ओढ़ कर सुरमई

रेशम की तमिस्रा ।

साथ ले अँकवार में

शाश्वत अभीप्सा ।

 

मौन रहते बात

करती लग रही हो ।

बड़ी बहिना ज्यों

अमावस की ॥

 

यों प्रणय की धुन

 सरीखी अडिग निश्चल ।

सहमती ज्यों बह रही

श्यामला चन्चल ।

 

गहन धुंधले कहरवे

में हो निबद्धा ।

लय कोई प्राचीन

कोरस की ॥

 

प्रेम के आल्हाद सा

अंधियार बाँधे ।

निगाहों में तिमिर

का अभिसार साधे ।

 

कनखियों से देखती

दिखती लगी हो ।

आँख ज्यों मैदान

चौरस की ॥

©  श्री राघवेन्द्र तिवारी

05-11-2023

संपर्क​ ​: ई.एम. – 33, इंडस टाउन, राष्ट्रीय राजमार्ग-12, भोपाल- 462047​, ​मोब : 09424482812​

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – बावरी ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं।)

? संजय दृष्टि –  बावरी ? ?

उसने

अपने ह्रदय का स्पंदन

घोषित कर रखा है मुझे,

और

बावरी मुझसे ही कहती है,

जानते हो,

तुम्हारा ख़्याल आने भर से

मेरी धड़कनें बढ़ जाती हैं! 

© संजय भारद्वाज  

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 180 ☆ # “नौतपा” # ☆ श्री श्याम खापर्डे ☆

श्री श्याम खापर्डे

(श्री श्याम खापर्डे जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी हैं। आप प्रत्येक सोमवार पढ़ सकते हैं साप्ताहिक स्तम्भ – क्या बात है श्याम जी । आज प्रस्तुत है आपकी भावप्रवण कविता “नौतपा”

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 180 ☆

☆ # “नौतपा” #

पृथ्वी की कोमल काया

सूर्य की ऊष्मा भरी किरणों से

जब लिपट जाती है

और प्रणय निवेदन करने

धीरे धीरे करीब आती है

तब चारों तरफ

गर्मी की लहर

बहने लगती है

हर जीव जंतु, पशु-पक्षी

बेजान वस्तुएं भी

त्राहि त्राहि करने लगती है

उफान पर होता है आवेग

दोनों के मिलन का

काया जल जाती है

पर नामोनिशान नहीं

होता जलन का

नौ दिन तक

यह प्रणय लीला

चलती है

भीषण गर्मी

ज़मीं और आसमान को

छलती है

तभी

उनके प्रणय का अंकुर

अंकुरित होता है

नभ में

शुभ्र मेघों की जगह

स्याह मेघों का

झुंड विचरित होता है

नभ में और धरती पर

हर्षोल्लास का

उन्माद का

अदभुत दृश्य दिखता है

जिसे देखकर ही

प्रेम में विव्हल कवि

कालिदास मेघदूत लिखता है

हर कोई

पृथ्वी पर

हम और आप

तपता हुआ हर कण

हर क्षण

जल की बूंद बूंद को

तरसता है

तब नभ से

बूंदों के रूप में

प्रेम रस बरसता है

धन्य हो जाती है धरती

उन्माद में चीत्कार है करती

सृष्टि पर यौवन आता है

अपनी गोद नव अंकुर से है भरती

 

नौतपा सिर्फ भीषण गर्मी नहीं

यह नवपल्लवित

जीवन का आभास है

चाहे नौ पल का हो

नौ दिन का हो

या नौ ——- का हो

नौतपा कुदरत का

खुशियों भरा अहसास है /

*

© श्याम खापर्डे 

फ्लेट न – 402, मैत्री अपार्टमेंट, फेज – बी, रिसाली, दुर्ग ( छत्तीसगढ़) मो  9425592588

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ – सबको गले लगाना है… ☆ श्री राजेन्द्र तिवारी ☆

श्री राजेन्द्र तिवारी

(ई-अभिव्यक्ति में संस्कारधानी जबलपुर से श्री राजेंद्र तिवारी जी का स्वागत। इंडियन एयरफोर्स में अपनी सेवाएं देने के पश्चात मध्य प्रदेश पुलिस में विभिन्न स्थानों पर थाना प्रभारी के पद पर रहते हुए समाज कल्याण तथा देशभक्ति जनसेवा के कार्य को चरितार्थ किया। कादम्बरी साहित्य सम्मान सहित कई विशेष सम्मान एवं विभिन्न संस्थाओं द्वारा सम्मानित, आकाशवाणी और दूरदर्शन द्वारा वार्ताएं प्रसारित। हॉकी में स्पेन के विरुद्ध भारत का प्रतिनिधित्व तथा कई सम्मानित टूर्नामेंट में भाग लिया। सांस्कृतिक और साहित्यिक क्षेत्र में भी लगातार सक्रिय रहा। हम आपकी रचनाएँ समय समय पर अपने पाठकों के साथ साझा करते रहेंगे। आज प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण कविता सबको गले लगाना है…’।)

☆ कविता – सबको गले लगाना है… ☆

(रिटायर्ड भाइयों के लिए – एक कविता)

अभी भ्रमित ना होना राही,

अभी नहीं रुक जाना है,

अभी तो केवल पथ बदला है,

 अब आगे बढ़ते जाना है,

सूरज बनकर नभ में छाए,

 कभी नहीं विश्राम किया,

 कर्मशील और लगन शीलता,

 साथ सभी के काम किया,

 कर्म पथ के शूल हटाकर

 पथ पर फूल बिछाना है,

अभी तो केवल पथ बदला है,

 अब आगे बढ़ते जाना है,

शिवजी की बारात के जैसे,

 भांति भांति के लोग मिले,

 कुछ तो गला काटने आए,

 कुछ आकर के गले मिले,

  सारी बातें बिसरा कर,

  सबको गले लगाना है,

 अभी तो केवल पथ बदला है,

© श्री राजेन्द्र तिवारी  

संपर्क – 70, रामेश्वरम कॉलोनी, विजय नगर, जबलपुर

मो  9425391435

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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English Literature – Poetry ☆ Anonymous litterateur of Social Media # 190 ☆ Captain Pravin Raghuvanshi, NM ☆

Captain (IN) Pravin Raghuvanshi, NM

? Anonymous Litterateur of Social Media # 190 (सोशल मीडिया के गुमनाम साहित्यकार # 190) ?

Captain Pravin Raghuvanshi NM—an ex Naval Officer, possesses a multifaceted personality. He served as a Senior Advisor in prestigious Supercomputer organisation C-DAC, Pune. An alumnus of IIM Ahmedabad was involved in various Artificial and High-Performance Computing projects of national and international repute. He has got a long experience in the field of ‘Natural Language Processing’, especially, in the domain of Machine Translation. He has taken the mantle of translating the timeless beauties of Indian literature upon himself so that it reaches across the globe. He has also undertaken translation work for Shri Narendra Modi, the Hon’ble Prime Minister of India, which was highly appreciated by him. He is also a member of ‘Bombay Film Writer Association’. He is also the English Editor for the web magazine www.e-abhivyakti.com.  

Captain Raghuvanshi is also a littérateur par excellence. He is a prolific writer, poet and ‘Shayar’ himself and participates in literature fests and ‘Mushayaras’. He keeps participating in various language & literature fests, symposiums and workshops etc.

Recently, he played an active role in the ‘International Hindi Conference’ at New Delhi. He presided over the “Session Focused on Language and Translation” and also presented a research paper. The conference was organized by Delhi University in collaboration with New York University and Columbia University.

हिंदी साहित्य – आलेख ☆ अंतर्राष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन ☆ कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

In his Naval career, he was qualified to command all types of warships. He is also an aviator and a Sea Diver; and recipient of various awards including ‘Nao Sena Medal’ by the President of India, Prime Minister Awards and C-in-C Commendation. He has won many national and international awards.

He is also an IIM Ahmedabad alumnus.

His latest quest involves writing various books and translation work including over 100 Bollywood songs for various international forums as a mission for the enjoyment of the global viewers. Published various books and over 3000 poems, stories, blogs and other literary work at national and international level. Felicitated by numerous literary bodies..!

? English translation of Urdu poetry couplets of Anonymous litterateur of Social Media # 190 ?

☆☆☆☆☆

चुपचाप चल रहे थे

ज़िन्दगी के सफ़र में

तुम पर नज़र क्या पड़ी

बस गुमराह हो गये…

☆☆

Was walking quietly

In the journey of life

Just a glance at you 

Misguided me forever…

☆☆☆☆☆

हुस्न के कसीदे तो 

पढ़ती रहेंगी महफिलें

अगर झुर्रियाँ भी लगें 

हसीं तो समझो इश्क़ है…

☆☆

Citations for the beauty 

Congregations will keep writing…

If wrinkles still find you smitten

Then it’s undying love for sure…

☆☆☆☆☆

कोई रूठे अगर तुमसे तो

उसे फौरन मना लो क्योंकि

जिद्द की जंग में अक्सर

जुदाई  जीत जाती  है…

☆☆

If someone is upset with you

 Conciliate with him immediately

  Coz in the war of stubborness

   Often separation only wins…! 

☆☆☆☆☆

क्या करेगा रौशन उसे आफ़ताब बेचारा

लबरेज़ हो जो खुद अपने ही रूहानी नूर से

जब चाँद ही हो आफ़ताब से ज़्यादा नूरानी 

तो उसे क्या ताल्लुक़ात अंधेरे या उजाले से

☆☆

How can poor sun illumine him 

Who is self-effulgent with spiritual light

When moon itself is brighter than sun

Then what’s its concern with darkness or light

☆☆☆☆☆

© Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Pune

≈ Editor – Shri Hemant Bawankar/Editor (English) – Captain Pravin Raghuvanshi, NM ≈

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