हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ “श्री हंस” साहित्य # 80 ☆ मुक्तक ☆ ।। मैं उसकी बात करूँ, वो मेरी बात करे ।। ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस”☆

श्री एस के कपूर “श्री हंस”

☆ मुक्तक ☆ ।। मैं उसकी बात करूँ, वो मेरी बात करे ।। ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस” ☆ 

[1]

हाथों में   सब के  ही सब  का हाथ  हो।

एक    दूजे के लिए मन   से साथ  हो।।

जियो और जीने दो, एक ईश्वर की संतानें।

बात यह   दिल  में हमेशा ही  याद हो।।

[2]

सुख सुकून हर    किसी   का  आबाद  हो।

हर किसी के लिए संवेदना यही फरियाद हो।।

हर किसीके लिए सहयोग बस ये हो सरोकार।

मानवीय   रूपी ही एक दूसरे से  संवाद हो।।

[3]

हर दिल में बस स्नेह नेह  का ही  लगाव हो।

दिल के भीतर  तक बसता प्रेम का भाव हो।।

प्रभाव नहीं हो किसी  पर   घृणा के दंश का।

आपस में मीठे बोल का नहीं कहीं अभाव हो।।

[4]

हर कोई दूसरे के   जज्बात    की ही बात करे।

हो विश्वास का बोलबाला ना घात प्रतिघात करे।।

स्वर्ग सा  ही हिल मिल  कर रहें धरती पर हम।

मैं बस   तेरी बात करूं, और तू  मेरी बात करे।।

© एस के कपूर “श्री हंस”

बरेली

ईमेल – Skkapoor5067@ gmail.com

मोब  – 9897071046, 8218685464

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ काव्य धारा # 144 ☆ बाल गीतिका से – “हमारा वतन 🇮🇳” ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

(आज प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी  द्वारा रचित बाल साहित्य ‘बाल गीतिका ‘से एक बाल गीत  – “हमारा वतन…” । हमारे प्रबुद्ध पाठकगण प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी  काव्य रचनाओं को प्रत्येक शनिवार आत्मसात कर सकेंगे।) 

 ☆ बाल गीतिका से – “हमारा वतन 🇮🇳” ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆

हमको प्यारा है भारत हमारा वतन

सारी दुनिया का सबसे सुहाना चमन

हम हैं पंछी ये गुलशन यहाँ बैठ मन

चैन पाता सजाता नये नित सपन ।

इसकी माटी में खुशबू है एक आब है

जैसे काश्मीर, दो आब, पंजाब है

इसकी धरती है चंदन, सुहाना गगन

धन भरे खेत खलिहान, मैदान, वन।

इसकी तहजीब का कोई सानी नहीं

जो पुरानी  होकर भी पुरानी नहीं

हर डगर-बिखरा मिलता यहाँ अपनापन

 प्रेम, सद्भाव संतोष है जिसके धन ।

हवा पानी में मीठी मोहब्बत घुली

 जिंदगी यहाँ है गंगाजल में घुली

फूल सा है खिला मन, खुला आचरण

सद् समझ, ईद होली बैसाखी मिलन ।

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

ए २३३ , ओल्ड मीनाल रेजीडेंसी  भोपाल ४६२०२३

मो. 9425484452

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – भूमिकाएँ ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

? संजय दृष्टि – भूमिकाएँ ??

नहीं देना चाहता

कोई दोष तुम्हें,

तुम न छलते तो

कोई और छलता,

एक साधन बना,

एक निमित्त हुआ,

देह की अवधि

बीत जाने पर,

जब मिलेंगे विदेह,

अपने-अपने

अभिनय पर

आप इतराएँगे,

अपनी-अपनी

भूमिका के निर्वहन का

साझा उत्सव मनाएँगे!

© संजय भारद्वाज 

5:50 प्रात: 1.08.2022.

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

🕉️ महादेव साधना- यह साधना मंगलवार दि. 4 जुलाई आरम्भ होकर रक्षाबंधन तदनुसार बुधवार 30 अगस्त तक चलेगी 🕉️

💥 इस साधना में इस बार इस मंत्र का जप करना है – 🕉️ ॐ नमः शिवाय 🕉️ साथ ही गोस्वामी तुलसीदास रचित रुद्राष्टकम् का पाठ  🕉️💥

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ साहित्य निकुंज #195 ☆ मुक्तक – गीत रमता गया… ☆ डॉ. भावना शुक्ल ☆

डॉ भावना शुक्ल

(डॉ भावना शुक्ल जी  (सह संपादक ‘प्राची‘) को जो कुछ साहित्यिक विरासत में मिला है उसे उन्होने मात्र सँजोया ही नहीं अपितु , उस विरासत को गति प्रदान  किया है। हम ईश्वर से  प्रार्थना करते हैं कि माँ सरस्वती का वरद हस्त उन पर ऐसा ही बना रहे। आज प्रस्तुत हैं “मुक्तक – गीत रमता गया…।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ  # 195 – साहित्य निकुंज ☆

☆ मुक्तक – गीत रमता गया…

गीत उनके हमें रास आने लगे।

मन ही मन यूं उसे गुनगुनाने  लगे।

चाहकर भी  न बोला तूने कभी।

 भाव अपने हमें  क्यों जताने लगे।।

हम उन्हें देखकर मुस्कुराने लगे।

देखते देखते भाव जगने लगे।

मेरी आंखों में तुमने पढ़ा है सही

गीत बारिश के तुम गुनगुनाने लगे

गीत रमता गया मैं भी रमती गई।

वो सुनाता गया मैं भी सुनती गई।

जो भी उसने कहा कैद मन में हुआ।

मैं तो उसकी ही बातों में बंधती गई।।

© डॉ भावना शुक्ल

सहसंपादक… प्राची

प्रतीक लॉरेल, J-1504, नोएडा सेक्टर – 120,  नोएडा (यू.पी )- 201307

मोब. 9278720311 ईमेल : [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ इंद्रधनुष #181 ☆ “दर्द-ए-गम बेहिसाब लिखता हूँ…” ☆ श्री संतोष नेमा “संतोष” ☆

श्री संतोष नेमा “संतोष”

(आदरणीय श्री संतोष नेमा जी  कवितायें, व्यंग्य, गजल, दोहे, मुक्तक आदि विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं. धार्मिक एवं सामाजिक संस्कार आपको विरासत में मिले हैं. आपके पिताजी स्वर्गीय देवी चरण नेमा जी ने कई भजन और आरतियाँ लिखीं थीं, जिनका प्रकाशन भी हुआ है. आप डाक विभाग से सेवानिवृत्त हैं. आपकी रचनाएँ राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में लगातार प्रकाशित होती रहती हैं। आप  कई सम्मानों / पुरस्कारों से सम्मानित/अलंकृत हैं. “साप्ताहिक स्तम्भ – इंद्रधनुष” की अगली कड़ी में आज प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण ग़ज़ल “दर्द-ए-गम बेहिसाब लिखता हूँ…. आप श्री संतोष नेमा जी  की रचनाएँ प्रत्येक शुक्रवार आत्मसात कर सकते हैं।)

☆ साहित्यिक स्तम्भ – इंद्रधनुष # 180 ☆

☆ “दर्द-ए-गम बेहिसाब लिखता हूँ…”  ☆ श्री संतोष नेमा ☆

जख्म लिखता हूँ ख्वाब लिखता हूँ

दर्द-ए-गम बेहिसाब लिखता हूँ

यक़ीं करता हूं जब भी किसी पर

खुद को अश्क़ बार ज़नाब लिखता हूँ

रहमतें जरूर हैं खुदा की मुझ पर

मुहब्बत की जब किताब लिखता हूँ

आइना देखता हूँ जब भी मैं

खुद को अक्सर खराब लिखता हूँ

मंज़िल से न भटक जाऊं मैं कभी

इसलिए अब मैं रुबाब लिखता हूँ

नफ़रत लिखना मिरी फितरत नहीं

खार को भी मैं गुलाब लिखता हूँ

“संतोष” अब किसी से डरना क्या

खुद को अब मैं शिहाब लिखता हूँ

© संतोष  कुमार नेमा “संतोष”

सर्वाधिकार सुरक्षित

आलोकनगर, जबलपुर (म. प्र.) मो 9300101799

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ “हम कथा सुनाते राम भक्त हनुमान की…” ☆ सौ.विद्या पराडकर ☆

सौ.विद्या पराडकर

☆ “हम कथा सुनाते राम भक्त हनुमान की…”  ☆ सौ.विद्या पराडकर ☆

हम कथा सुनाते

राम भक्त हनुमान की

रामायण के अद्भुत नायक की

रामदूत हनुमान की 🍀

 

कानो मे सुंदर कुंडल

माथे पर तिलक लगाया

आये घूमकर सूर्य मंडल

त्रिभुवन का प्यार जताया 🍀

 

श्रीराम पर जब जब संकट आया 

संकट से निकलवाया  

किष्किंधा के सुग्रीव से ऐसे मिलवाया

सीता शोध मे कार्य करवाया 🍀

 

राम रावण युद्ध मे

लक्ष्मण को बाण लगा था

चारो और हाहाकार मचा था

तब तुमनेसंजीवनी बूटी लाया था 🍀

 

सीता शोध मे अग्रसर रहे तुम

जानकी माता को मिलकर खुश हुए तुम

अपने विराट अवतार से

लंका दहन किए तुम 🍀

 

पाताल युद्ध मे श्रीराम को

विजय प्राप्त कराए तुम   

मकरध्वज से पराजित होकर

पुत्र विजय पर हर्षित हुए तुम 🍀

 

हे संकटनाशक  हनुमान

अंजनी सुता जय भगवन

हे पवनसुत हनुमान

प्राणप्रिय हो तुम सबका जीवन 🍀

© सौ.विद्या पराडकर ‌

बी 6- 407, राहुल निसर्ग सोसाइटी, नियर  विनायक हॉस्पिटल, वारजे, पुणे मो 9225337330

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ समय चक्र # 172 ☆ बाल कविता – आम बने हरिआरे ☆ डॉ राकेश ‘चक्र’ ☆

डॉ राकेश ‘ चक्र

(हिंदी साहित्य के सशक्त हस्ताक्षर डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी  की अब तक 131मौलिक पुस्तकें (बाल साहित्य व प्रौढ़ साहित्य) तथा लगभग तीन दर्जन साझा – संग्रह प्रकाशित तथा कई पुस्तकें प्रकाशनाधीन। जिनमें 7 दर्जन के आसपास बाल साहित्य की पुस्तकें हैं। कई कृतियां पंजाबी, उड़िया, तेलुगु, अंग्रेजी आदि भाषाओँ में अनूदित । कई सम्मान/पुरस्कारों  से  सम्मानित/अलंकृत। भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय द्वारा बाल साहित्य के लिए दिए जाने वाले सर्वोच्च सम्मान ‘बाल साहित्य श्री सम्मान’ और उत्तर प्रदेश सरकार के हिंदी संस्थान द्वारा बाल साहित्य की दीर्घकालीन सेवाओं के लिए दिए जाने वाले सर्वोच्च सम्मान ‘बाल साहित्य भारती’ सम्मान, अमृत लाल नागर सम्मान, बाबू श्याम सुंदर दास सम्मान तथा उत्तर प्रदेश राज्य कर्मचारी संस्थान के सर्वोच्च सम्मान सुमित्रानंदन पंत, उत्तर प्रदेश रत्न सम्मान सहित पाँच दर्जन से अधिक प्रतिष्ठित साहित्यिक एवं गैर साहित्यिक संस्थाओं से सम्मानित एवं पुरुस्कृत। आदरणीय डॉ राकेश चक्र जी के बारे में विस्तृत जानकारी के लिए कृपया इस लिंक पर क्लिक करें 👉 संक्षिप्त परिचय – डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी।

आप  “साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र” के माध्यम से  उनका साहित्य आत्मसात कर सकेंगे।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र – # 172 ☆

☆ बाल कविता – आम बने हरिआरे ☆ डॉ राकेश ‘चक्र’ 

गुड़िया जी को आम हैं प्यारे।

    खा – खा लेतीं हैं चटकारे।

खातीं जल्दी – जल्दी इतना

    आम बन गए खुद हुरियारे ।।

 

आम मिले जब खाने को

   गुड़िया जी चहकीं मुस्काईं।

धोया – थोड़ा चेंप निकाला

     चुसम – चूसा लगी दुहाई।।

 

खूब दबाया ऐसा चूसा

    रँग गए कपड़े उनके सारे।

देख सभी मुस्काएँ भइया

    माँ की ममता उसे दुलारे।।

© डॉ राकेश चक्र

(एमडी,एक्यूप्रेशर एवं योग विशेषज्ञ)

90 बी, शिवपुरी, मुरादाबाद 244001 उ.प्र.  मो.  9456201857

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ दिन-रात #11 ☆ कविता – “हिम्मत…” ☆ श्री आशिष मुळे ☆

श्री आशिष मुळे

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ दिन-रात # 11 ☆

☆ कविता ☆ “हिम्मत…” ☆ श्री आशिष मुळे ☆

आज ऐसी उदास बैठी क्यों हो?

बहारों के मौसम में धाल पत्ते क्यों रहीं हों

ए मेरी जां क्या आज हारी हिम्मत हो

या गिरे हुए पत्तों से हिम्मत जुटा रहीं हो ।

 

मै भी हारता हूँ  हिम्मत कभी कभी

फिर सोचता हूँ क्या है कीमत उसकी

मगर अफसोस वह खरीद नहीं सकते

गिरे हुए पत्ते फिर चिपका नहीं सकते ।

 

फिर मैं समझा हिम्मत कभी आती नहीं हैं

ना ही कभी वो जुटाई जाती है

जब जब जीने की ख़्वाहिश पेड़ की बढ़ती है

हिम्मत उसकी पत्तों की तरह फिर से उगती है ।

 

बुझते हुए अंगारों से जैसे उठती अग्नि है

हिम्मत उसी तरह बुझते हुए दिल से उभरती है

उस आग को कभी बुझने नहीं देना

इच्छा की आहुति अंगारों में न देना ।

 

जब जब तुम्हारी पतझड़ होगी

तब मेरी ये कविता पढ़ लेना

मेरा प्यार मैंने उसमे फूंक दिया है

जिससे प्रज्वलित बुझते अग्नि को कर देना ।

© श्री आशिष मुळे

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ तन्मय साहित्य #195 – कविता – मैं भारत हूँ… ☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ ☆

श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

(सुप्रसिद्ध वरिष्ठ साहित्यकार श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी अर्ध शताधिक अलंकरणों /सम्मानों से अलंकृत/सम्मानित हैं। आपकी लघुकथा  रात  का चौकीदार”   महाराष्ट्र शासन के शैक्षणिक पाठ्यक्रम कक्षा 9वीं की  “हिंदी लोक भारती” पाठ्यपुस्तक में सम्मिलित। आप हमारे प्रबुद्ध पाठकों के साथ  समय-समय पर अपनी अप्रतिम रचनाएँ साझा करते रहते हैं। आज प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण कविता  मैं भारत हूँ… )

☆ तन्मय साहित्य  #195 ☆

मैं भारत हूँ… ☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ ☆

 देश भारत है, मेरा नाम

 यहाँ तीरथ हैं चारों धाम

 काशी की सुबह

 अवध की शाम

 विराजे राम और घनश्याम,

 सभी का करता, स्वागत हूँ

 देवों की यह पुण्य भूमि

 मैं पावन भारत हूँ।

 

छह ऋतुओं का धारक मैं,सब नियत समय पर आए

सर्दी, गर्मी, वर्षा, निष्ठा से निज कर्म निभाए

मौसम के अनुकूल, पर्व त्यौहार जुड़े सद्भावी

उर्वर भूमि यह, खनिज धन-धान्य सभी उपजाए।

संस्कृति है मौलिक आधार

करे सब इक दूजे से प्यार

बहे खुशियों की यहाँ बयार,

सुखद जीवन विस्तारक हूँ

देवों की यह पुण्य भूमि मैं पावन भारत हूँ।

 

समता ममता करुणा कृपा, दया पहचान हमारी

अनैकता में बसी एकता, यह विशेषता भारी

विध्वंशक दुष्प्रवृत्तियों ने, जब भी पैर पसारे 

है स्वर्णिम इतिहास, सदा ही वे हमसे है हारी।

राह में जब आए व्यवधान

सुझाए पथ गीता का ज्ञान

निर्जीवों में भी फूँके  प्राण

वंचितों का उद्धारक हूँ

देवों की यह पुण्य भूमि मैं पावन भारत हूँ।

 

कल-कल करती नदियाँ,यहाँ बहे मधुमय सुरलय में

पर्वत खड़े अडिग साधक से, जंगल-वन अनुनय में

सीमा पर जवान, खेतों में श्रमिक, किसान जुटे हैं

अजय-अभय,अर्वाचीन भारत निर्मल भाव हृदय में।

हो रहा है चहुँदिशी जय नाद

परस्पर प्रेम भाव अनुराग

रहे नहीं मन में कहीं विषाद

स्नेह की सुदृढ़ इमारत हूँ

देवों की यह पुण्य भूमि में पावन भारत हूँ।

☆ ☆ ☆ ☆ ☆

© सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय

जबलपुर/भोपाल, मध्यप्रदेश, अलीगढ उत्तरप्रदेश  

मो. 9893266014

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ जय प्रकाश के नवगीत # 20 ☆ बन पाया न कबीर… ☆ श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव ☆

श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

(संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं अग्रज साहित्यकार श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव जी  के गीत, नवगीत एवं अनुगीत अपनी मौलिकता के लिए सुप्रसिद्ध हैं। आप प्रत्येक बुधवार को साप्ताहिक स्तम्भ  “जय  प्रकाश के नवगीत ”  के अंतर्गत नवगीत आत्मसात कर सकते हैं।  आज प्रस्तुत है आपका एक भावप्रवण एवं विचारणीय नवगीत “बन पाया न कबीर…” ।)

✍ जय प्रकाश के नवगीत # 20 ☆ बन पाया न कबीर… ☆ श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

 लाख जतन कर

 हार गया पर

 बन पाया न कबीर।

 

 रोज धुनकता रहा जिंदगी

 फिर भी तो उलझी

 रहा कातते रिश्ते- नाते

 गाँठ नही सुलझी

 तन की सूनी

 सी कुटिया में

 मन हो रहा अधीर।

 

 गड़ा ज्ञान की इक थूनी

 गढ़े सबद से गीत

 घर चूल्हे चक्की में पिसता

 लाँघ न पाया भीत

 अपने को ही

 रहा खोजता

 बनकर मूढ़ फकीर।

 

 झीनी चादर बुनी साखियाँ

 जान न पाया मोल

 समझोतों पर रहा काटता

 जीवन ये अनमोल

 पढ़ता रहा

 भरम की पोथी

 पढ़ी न जग की पीर।

***

© श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

सम्पर्क : आई.सी. 5, सैनिक सोसायटी शक्ति नगर, जबलपुर, (म.प्र.)

मो.07869193927,

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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