हिन्दी साहित्य – कविता ☆ गीत – श्रमिकों की वंदना ☆ प्रो. (डॉ.) शरद नारायण खरे ☆

प्रो. (डॉ.) शरद नारायण खरे

☆ गीत – श्रमिकों की वंदना  ☆ प्रो. (डॉ.) शरद नारायण खरे ☆

श्रमिकों का नित ही है वंदन,जिनसे उजियारा है।

श्रम करने वालों से देखो,पर्वत भी हारा है।।

*

खींच रहे हैं भारी बोझा,पर बिल्कुल ना हारे।

ठिलिया,रिक्शा जिनकी रोज़ी,वे ही नित्य सहारे।।

मेहनत की खाते हैं हरदम,धनिकों पर धिक्कारा है।

श्रम करने वालों से देखो,पर्वत भी हारा है।।

*

खेत और खलिहानों में जो,राष्ट्रप्रगति के वाहक ।

अन्न उगाते,स्वेद बहाते,जो सचमुच फलदायक ।।

श्रम के आगे सभी पराजित,श्रम का जयकारा है।

श्रम करने वालों से देखो,पर्वत भी हारा है।।

*

सड़कों,पाँतों,जलयानों को,जिन ने नित्य सँवारा।

यंत्रों के आधार बने जो,हर बाधा को मारा।।

संघर्षों की आँधी खेले,साहस जिन पर वारा है।

श्रम करने वालों से देखो,पर्वत भी हारा है।।

*

ऊँचे भवनों की नींवें जो,उत्पादन जिनसे है।

हर गाड़ी,मोबाइल में जो,अभिवादन जिनसे है।।

स्वेद बहा,लाता खुशहाली, श्रमसीकर प्यारा है।

श्रम करने वालों से देखो,पर्वत भी हारा है।।

© प्रो.(डॉ.)शरद नारायण खरे

प्राचार्य, शासकीय महिला स्नातक महाविद्यालय, मंडला, मप्र -481661

(मो.9425484382)

ईमेल – [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – सेलेक्टिव ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं।)

? संजय दृष्टि – सेलेक्टिव ? ?

अधिकांशत:

उनका लेखन

केंद्रित होता है

स्त्री देह पर,

मन,अंतर्द्वंद

भावना,वेदना

तो बहुत दूर

जाने क्या है

उन आँखों में

कि उभरता ही नहीं

प्रतिबिम्ब, स्त्री के

हाथ, पैर

कंधे, कान

घुटने, टखने

पेट, पीठ का,

वे आँखें देखती हैं

…देखती नहीं..,

वे आँखें घूरती हैं

प्राकृतिक लज्जा को ढके

कुछ ‘सेलेक्टिव’ हिस्सों को,

कोई बता रहा था

चर्चित होने के लिए

‘सेलेक्टिव’ होना

ज़रूरी होता है..,

पर मेरी बात

यहाँ समाप्त नहीं हुई है

सुनो प्रसिद्धि-पिपासुओ!

मैं कलम चलाते

रहना चाहता हूँ,

लिखते रहना चाहता हूँ,

लेखक बने रहना चाहता हूँ,

लेखन पर चर्चा चाहता हूँ

पर चर्चित होने के लिए

‘सेलेक्टिव’ लिखना नहीं चाहता!

© संजय भारद्वाज  

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

💥 श्री हनुमान साधना – अवधि- मंगलवार दि. 23 अप्रैल से गुरुवार 23 मई तक 💥

🕉️ श्री हनुमान साधना में हनुमान चालीसा के पाठ होंगे। संकटमोचन हनुमनाष्टक का कम से एक पाठ अवश्य करें। आत्म-परिष्कार एवं ध्यानसाधना तो साथ चलेंगे ही। मंगल भव 🕉️

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ दिन-रात #44 ☆ कविता – “किस्मत…” ☆ श्री आशिष मुळे ☆

श्री आशिष मुळे

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ दिन-रात # 44 ☆

☆ कविता ☆ “किस्मत…☆ श्री आशिष मुळे ☆

नहीं हाथों में

तेरे हाथों की मेंहदी

मेरे हाथों की लकीरों ने

नक्शा कुछ ऐसा बनाया है

तुम्हें हारकर भी

खुदसे जंग जीते है

तुम्हारी मिट्टी खोकर भी

जमीं तुम्हारी जीते है

 *

नहीं किस्मत में

तुम्हारी पलकों की छाव

मगर हमारे बाजुओं का कर्म

के तुम्हारी नज़र हमारी है

 *

कर्म के होली में

हमनें तो रंग खेला है

रंगी किस्मत लाजवंती

देख इधरही रहीं है

© श्री आशिष मुळे

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ समय चक्र # 202 ☆ बाल कविता – बागों में कोयलिया बोले ☆ डॉ राकेश ‘चक्र’ ☆

डॉ राकेश ‘ चक्र

(हिंदी साहित्य के सशक्त हस्ताक्षर डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी  की अब तक कुल 148 मौलिक  कृतियाँ प्रकाशित। प्रमुख  मौलिक कृतियाँ 132 (बाल साहित्य व प्रौढ़ साहित्य) तथा लगभग तीन दर्जन साझा – संग्रह प्रकाशित। कई पुस्तकें प्रकाशनाधीन। जिनमें 7 दर्जन के आसपास बाल साहित्य की पुस्तकें हैं। कई कृतियां पंजाबी, उड़िया, तेलुगु, अंग्रेजी आदि भाषाओँ में अनूदित । कई सम्मान/पुरस्कारों  से  सम्मानित/अलंकृत। भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय द्वारा बाल साहित्य के लिए दिए जाने वाले सर्वोच्च सम्मान ‘बाल साहित्य श्री सम्मान’ और उत्तर प्रदेश सरकार के हिंदी संस्थान द्वारा बाल साहित्य की दीर्घकालीन सेवाओं के लिए दिए जाने वाले सर्वोच्च सम्मान ‘बाल साहित्य भारती’ सम्मान, अमृत लाल नागर सम्मान, बाबू श्याम सुंदर दास सम्मान तथा उत्तर प्रदेश राज्यकर्मचारी संस्थान  के सर्वोच्च सम्मान सुमित्रानंदन पंत, उत्तर प्रदेश रत्न सम्मान सहित पाँच दर्जन से अधिक प्रतिष्ठित साहित्यिक एवं गैर साहित्यिक संस्थाओं से सम्मानित एवं पुरुस्कृत। 

 आदरणीय डॉ राकेश चक्र जी के बारे में विस्तृत जानकारी के लिए कृपया इस लिंक पर क्लिक करें 👉 संक्षिप्त परिचय – डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी।

आप  “साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र” के माध्यम से  उनका साहित्य आत्मसात कर सकेंगे।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र – # 202 ☆

बाल कविता – बागों में कोयलिया बोले ☆ डॉ राकेश ‘चक्र’ 

बारहमासी आम फला है

बागों में कोयलिया बोले।

कहीं बौर की खुशबू महके

पवन बहे हौले – हौले।

नीतू , जीतू का मन खुश है

अमियाँ घर पर लाएँगे।

धनिया , मिर्ची डाल उसी में

चटनी स्वयं बनाएँगे।।

 *

खूब रायता बथुआ वाला

दाल मूंग छिलके वाली।

और पराठा आलू भर – भर

खाएँ हम लेकर थाली।।

 *

माँ अपनी तो बड़े भाव से

खाना रोज बनाती हैं।

जिस दिन चटनी साथ रहे तो

जिव्हा पानी लाती है।।

 *

माँ होती है प्रेम स्वरूपा

पिता हमारे हैं दीवार।

हम सब उनका कहना मानें

मात – पिता को करें दुलार।।

© डॉ राकेश चक्र

(एमडी,एक्यूप्रेशर एवं योग विशेषज्ञ)

90 बी, शिवपुरी, मुरादाबाद 244001 उ.प्र.  मो.  9456201857

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ तन्मय साहित्य #229 – कविता – ☆ आत्मस्थ…. ☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ ☆

श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

(सुप्रसिद्ध वरिष्ठ साहित्यकार श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी अर्ध शताधिक अलंकरणों /सम्मानों से अलंकृत/सम्मानित हैं। आपकी लघुकथा  रात  का चौकीदार”   महाराष्ट्र शासन के शैक्षणिक पाठ्यक्रम कक्षा 9वीं की  “हिंदी लोक भारती” पाठ्यपुस्तक में सम्मिलित। आप हमारे प्रबुद्ध पाठकों के साथ  समय-समय पर अपनी अप्रतिम रचनाएँ साझा करते रहते हैं। आज प्रस्तुत है आपकी एक विचारणीय कविता “आत्मस्थ….” ।)

☆ तन्मय साहित्य  #229 ☆

☆ आत्मस्थ…. ☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ ☆

  हाँ, मैंने तोड़ी है रूढ़ियाँ

  लाँघी है सीमाएँ

  छोड़ दी है कई अंध परंपराएँ।

 

  रूढ़ियाँ –

  जिन्होंने मुझे बाँध रखा था।

  सीमाएँ –

  जिसमें मैं सिमट गया था

  रूढ़ियाँ –

  जिनने मुझे भीरू बना दिया था,

 

  मुक्त हूँ मैं अब बंधनों से

  दूर हूँ औपचारिक वंदनों से

  विचरता हूँ मुक्त गगन में

  नहीं रही अपेक्षाएँ मन में

  सुख मिलने पर

  अब खुशी से उछलता नहीं

  दूसरों का वैभव देख

  ईर्ष्या से जलता नहीं,

  दुख के क्षणों में

  अब रोना नहीं आता

  आत्ममुग्ध हो कभी

  खुद पर नहीं इतराता 

  विषयी संस्कारों के

  नए बीज बोता नहीं हूँ

  स्वयं से दूर

  कभी होता नहीं हूँ,

 

  अब आ जाती है मुझे नींद

  जब मैं सोना चाहता हूँ

  हो जाता हूँ निर्विचार

  जब होना चाहता हूँ,

  इनसे उनसे आपसे

  मधुर संबंध है

  न कोई राग न विराग

  जीवन

  एक मीठा सा छंद है

  दर्द भी है दुख भी है

  प्यास है भूख भी है

  बावजूद इन सब के

  सब कुछ निर्मल है 

  जीवन में अब जो भी

  शेष है-

  स्वयं का आत्म बल है।

☆ ☆ ☆ ☆ ☆

© सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय

जबलपुर/भोपाल, मध्यप्रदेश, अलीगढ उत्तरप्रदेश  

मो. 9893266014

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ जय प्रकाश के नवगीत # 51 ☆ हम मजदूर सर्वहारा… ☆ श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव ☆

श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

(संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं अग्रज साहित्यकार श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव जी  के गीत, नवगीत एवं अनुगीत अपनी मौलिकता के लिए सुप्रसिद्ध हैं। आप प्रत्येक बुधवार को साप्ताहिक स्तम्भ  “जय  प्रकाश के नवगीत ”  के अंतर्गत नवगीत आत्मसात कर सकते हैं।  आज प्रस्तुत है आपका एक भावप्रवण एवं विचारणीय नवगीत “हम मजदूर सर्वहारा…” ।

✍ जय प्रकाश के नवगीत # 51 ☆ हम मजदूर सर्वहारा… ☆ श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

(मजदूर दिवस)

हमने फूलों को खुशबू दी

बंजर को हरियाली दी,

हमने रूप संवारे हैं।।

*

हम आगत की पदचापें

थे अतीत की मुस्कानें,

वर्तमान जिंदा हमसे

हमी समय की पहचानें।

*

हम ऋतुओं के अनुयायी,

मौसम के हरकारे हैं।।

*

हम महलों की नीव बने

अपनापन भरपूर जिया,

हम हीरा गढ़ने वाले

अँधियारे में एक दिया।

*

जला खुशी की किरणों से,

हम लिखते उजियारे हैं।।

*

परिभाषित है श्रम हमसे

हम मजदूर सर्वहारा,

हमसे जंगल वनस्पति

हम यायावर बंजारा।

*

हम हैं जीवन का दर्शन,

बस अपनों से हारे हैं।।

***

© श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

सम्पर्क : आई.सी. 5, सैनिक सोसायटी शक्ति नगर, जबलपुर, (म.प्र.)

मो.07869193927,

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – कविता… ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं।)

? संजय दृष्टि –  कविता… ? ?

कुछ अश्लील-सी

उपमाएँ चुनें

कामुकता का

प्रत्यक्ष या परोक्ष

उपयोग करें,

‘मादा’देह में

नग्नता का

बघार लगाकर

रचें एवरग्रीन कविता,

लंबे समय

चर्चा में रहेगी

ये कविता;

शोध का विषय

बनेगी ये कविता,

प्रगतिशील और

नवोन्मेषवादी

कहलायेगी

ये कविता,

हो सकता है

ऐसा होता हो,

कोई बता रहा था

ऐसा ही होता है,

पर ये सब लागू है

उन पर

जिनके लिए

कमॉडिटी है कविता,

खरीद-फरोख्त

चर्चित होने की

रेमेडी है कविता,

अलबत्ता-

मैं ऐसा हरगिज़

नहीं कर सकता

पयपान को विषाक्त

नहीं कर सकता,

मेरे लिए

निष्पाप, अबोध

अनुभूति है कविता,

पवित्र संवेदना की

अभिव्यक्ति है कविता,

मेरी आराधना है कविता

मेरी साधना है कविता,

मेरी आह है कविता

मेरी माँ है कविता!

© संजय भारद्वाज  

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

💥 श्री हनुमान साधना – अवधि- मंगलवार दि. 23 अप्रैल से गुरुवार 23 मई तक 💥

🕉️ श्री हनुमान साधना में हनुमान चालीसा के पाठ होंगे। संकटमोचन हनुमनाष्टक का कम से एक पाठ अवश्य करें। आत्म-परिष्कार एवं ध्यानसाधना तो साथ चलेंगे ही। मंगल भव 🕉️

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ नजर उठा के गुनहगार जी न पायेगा…… ☆ श्री अरुण कुमार दुबे ☆

श्री अरुण कुमार दुबे

(वरिष्ठ साहित्यकार श्री अरुण कुमार दुबे जी, उप पुलिस अधीक्षक पद से मध्य प्रदेश पुलिस विभाग से सेवा निवृत्त हुए हैं । संक्षिप्त परिचय ->> शिक्षा – एम. एस .सी. प्राणी शास्त्र। साहित्य – काव्य विधा गीत, ग़ज़ल, छंद लेखन में विशेष अभिरुचि। आज प्रस्तुत है, आपकी एक भाव प्रवण रचना “नजर उठा के गुनहगार जी न पायेगा“)

✍ नजर उठा के गुनहगार जी न पायेगा… ☆ श्री अरुण कुमार दुबे 

निगाह से न गिराना भले फ़ना कर दो

अगर नहीं है मुहब्बत उसे ज़ुदा कर दो

 *

किसी गिरे को कभी लात मत लगाना तुम

बने अगर जो ये तुमसे तो कुछ भला कर दो

 *

नजर उठा के गुनहगार जी न पायेगा

मुआफ़ उसकी अगर दिल से तुम  ख़ता कर दो

 *

कफ़स की कैद में दम घुट रहा परिंदे का

वो नाप लेगा फ़लक बस उसे रिहा कर दो

 *

अभी तलक मैं जिया सिर्फ खुद की ही खातिर

किसी के काम भी आऊ मुझे ख़ुदा कर दो

 *

लगा ज़हान बरगलाने सौ जतन करके

झुके ख़ुदा न कभी यूँ मेरी अना कर दो

 *

अरुण नसीब का लिख्खा नहीं मिले यूँ ही

उठो तो दस्त से कुछ काम भी बड़ा कर दो

© श्री अरुण कुमार दुबे

सम्पर्क : 5, सिविल लाइन्स सागर मध्य प्रदेश

सिरThanks मोबाइल : 9425172009 Email : arunkdubeynidhi@gmail. com

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ मिशन शक्ति ☆ श्रीमति ऊषा रानी ☆

श्रीमति ऊषा रानी

(ई-अभिव्यक्ति में साहित्यकार एवं शिक्षिका श्रीमति उषा रानी जी का स्वागत है। बालिका शिक्षा एवं नारी सशक्तिकरण सम्मान से सम्मानित। अनेकों साहित्यिक एवं ऑनलाइन सोशल मीडिया मंचो पर काव्य पाठ। प्रतिष्ठित पत्रिकाओं एवं साझा काव्य संकलनों में कई कवितायें प्रकाशित। एक काव्य संग्रह शीघ्र प्रकाश्य। आज प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण कविता मिशन शक्ति।)

☆ मिशन शक्ति… ☆ श्रीमति ऊषा रानी

घर-घर जा संदेश पहुॅंचाऍं,

बाल अधिकार से परिचय कराऍं।

सुरक्षा संरक्षण का ज्ञान कराकर,

हेल्पलाइन नंबर प्रयोग कराऍं।।

*

यौन शोषण की पहचान कराऍं,

अपराध पर अब  रोक लगाऍं।

पोक्सो एक्ट कानून लगाकर,

शीघ्र अपराधी को सजा कराऍं।।

*

बाल विवाह एक अपराध है,

जन जागरण अभियान चलाऍं।

बेटियों को शिक्षित कर,

भविष्य सुनहरा बनाऍं।।

*

अभिभावक बैठक कराऍं,

सामाजिक मंच को सुदृढ़ बनाऍं।

मिशन शक्ति के कार्यों से,

नारी को सम्मानित कराऍं।।

*

© श्रीमति ऊषा रानी (स०अ०)

संपर्क – एफ 224, गंगा नगर, मेरठ, मो नं – 9368814877, ईमेल – – [email protected]

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कादम्बरी # 51 – साक्षात् भगवान हो गया… ☆ आचार्य भगवत दुबे ☆

आचार्य भगवत दुबे

(संस्कारधानी जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर आचार्य भगवत दुबे जी को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया है।सीमित शब्दों में आपकी उपलब्धियों का उल्लेख अकल्पनीय है। आचार्य भगवत दुबे जी के व्यक्तित्व एवं कृतित्व की विस्तृत जानकारी के लिए कृपया इस लिंक पर क्लिक करें 👉 ☆ हिन्दी साहित्य – आलेख – ☆ आचार्य भगवत दुबे – व्यक्तित्व और कृतित्व ☆. आप निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणा स्त्रोत हैं। हमारे विशेष अनुरोध पर आपने अपना साहित्य हमारे प्रबुद्ध पाठकों से साझा करना सहर्ष स्वीकार किया है। अब आप आचार्य जी की रचनाएँ प्रत्येक मंगलवार को आत्मसात कर सकेंगे।  आज प्रस्तुत हैं आपकी एक भावप्रवण रचना – साक्षात् भगवान हो गया।)

✍  साप्ताहिक स्तम्भ – ☆ कादम्बरी # 51 – साक्षात् भगवान हो गया… ☆ आचार्य भगवत दुबे ✍

अपना लक्ष्य समान हो गया 

कठिन सफर, आसान हो गया

*

तुमको पाया, मेरे दिल का 

पूरा, हर अरमान हो गया

*

बाँहों में भर लिया तुम्हें जब

स्वतः, शांत तूफान हो गया

*

प्यार भरा, तेरा खत आया 

जीने का सामान हो गया

*

तुमने जो चख लिया जरा-सा 

मीठा हर पकवान हो गया

*

जब तुमने, मुझको अपनाया 

वह पल, स्वर्ग समान हो गया

*

जो, गर्दिश में बना सहारा 

साक्षात् भगवान हो गया

https://www.bhagwatdubey.com

© आचार्य भगवत दुबे

82, पी एन्ड टी कॉलोनी, जसूजा सिटी, पोस्ट गढ़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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