डॉ कुंदन सिंह परिहार
(वरिष्ठतम साहित्यकार आदरणीय डॉ कुन्दन सिंह परिहार जी का साहित्य विशेषकर व्यंग्य एवं लघुकथाएं ई-अभिव्यक्ति के माध्यम से काफी पढ़ी एवं सराही जाती रही हैं। हम प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – “परिहार जी का साहित्यिक संसार” शीर्षक के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाते रहते हैं। डॉ कुंदन सिंह परिहार जी की रचनाओं के पात्र हमें हमारे आसपास ही दिख जाते हैं। कुछ पात्र तो अक्सर हमारे आसपास या गली मोहल्ले में ही नज़र आ जाते हैं। उन पात्रों की वाक्पटुता और उनके हावभाव को डॉ परिहार जी उन्हीं की बोलचाल की भाषा का प्रयोग करते हुए अपना साहित्यिक संसार रच डालते हैं।आज प्रस्तुत है आपका एक अप्रतिम व्यंग्य – ‘बलिहारी गुरु आपने ‘। इस अतिसुन्दर रचना के लिए डॉ परिहार जी की लेखनी को सादर नमन।)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – परिहार जी का साहित्यिक संसार # 277 ☆
☆ व्यंग्य – बलिहारी गुरु आपने ☆
कुंभ-स्नान के लिए नहीं जा पाया। दिल में बहुत मलाल है। गंगा मैया क्षमा करें। कारण यह है कि जाड़े में घर में ही स्नान मुल्तवी हो जाता है, भीड़-भाड़ और धक्का-मुक्की में प्रयागराज पहुंचकर इस कंचन काया को ठंडे पानी में कैसे डुबाया जाए? सयाने कह गये हैं कि ‘काया राखे धरम’ होता है। एक बाबाजी कुंभ-स्नान के लिए न पहुंचने वालों को ‘देशद्रोही’ की संज्ञा दे चुके हैं। डर लगता है कि कहीं शासन बाबाजी के कहने के हिसाब से कार्यवाही न करने लगे। आजकल बाबाओं की बड़ी कद्र है। देश के बेरोज़गार युवकों को भी बाबागिरी में अच्छा विकल्प दिख रहा है। इसमें किसी डिग्री की दरकार नहीं है और इज़्ज़त के साथ दक्षिणा भरपूर है।
धर्माचार्य कह रहे हैं कि कुंभ में नहाने से मोक्ष मिलेगा। मतलब यह कि मेरे जैसे स्नान-भीरु लोगों को बार-बार जन्म लेना पड़ेगा। मोक्ष नहीं मिलेगा। दूसरों की तो मैं नहीं जानता, लेकिन अपने मन की बात बताऊं कि अभी मोक्ष की इच्छा नहीं है। यह दुनिया कंबख़्त इतनी दिलकश है कि बार-बार जन्म लेने की इच्छा होती है। बस शर्त यह है कि जन्म मनुष्य के रूप में और ऊंची जाति में मिले। नीची जाति में जन्म लेकर फजीहत झेलने से तो मोक्ष अच्छा। मनुष्य की ऊंची जाति में जन्म के साथ यह भी ज़रूरी होगा कि पैसा-कौड़ी का अभाव न रहे। कोई मलाईदार पद मिलता रहे तो सोने में सुहागा होगा।
कुंभ के दृश्य टीवी पर देखते देखते एक बाबा ने ध्यान खींचा। कद 3 फुट 8 इंच, नाम छोटू बाबा। सबसे महत्वपूर्ण बात यह कि छोटू बाबा ने 32 साल से स्नान नहीं किया है। उनके दर्शन से मन में भक्ति उमड़ पड़ी। मोक्ष के अयोग्य होने की ग्लानि एकदम छंट गयी। मनोबल ठाठें मारने लगा। लगा कि ऐसे ही गुरू को मैं अरसे से तलाश रहा था। अब जाकर तलाश पूरी हुई।
छोटू बाबा ने बताया कि उन्होंने कोई व्रत लिया था और उसके पूरा होने पर वे उज्जैन में स्नान करेंगे। मेरे दिमाग में सवाल उठा कि जब उन्हें नहाना नहीं था तो वे कुंभ में किस लिए पधारे थे?
जो भी हो, अपने न नहाने के व्रत की बात उजागर करने के बाद भी लोग छोटू बाबा को पूज रहे थे, उन्हें दक्षिणा दे रहे थे, उनके फोटो खींच रहे थे, उनका आशीर्वाद ले रहे थे। देखकर मुझे लगा कि नहाने से परहेज़ करना कोई शर्म की बात नहीं है। बिना नहाये भी आदमी अपने मनोबल को ऊंचा रख सकता है और दुनिया से वैराग्य होने पर सन्त महन्त का दर्ज़ा पा सकता है। सोच लिया कि अब यदि न नहाने को लेकर घर में लानत- मलामत होगी तो छोटू बाबा को सामने रखकर पुख्ता जवाब दे सकूंगा।
टीवी पर छोटू बाबा के दर्शन होने के बाद मन में बड़ी बेचैनी है। बलवती इच्छा है कि कुंभ की गहमा-गहमी और सर्दी कुछ हल्की हो तो छोटू बाबा को ढूंढ़ कर उनके चरण पकड़ूं और मुझे अपना शिष्य बना लेने की प्रार्थना करूं। मेरे लिए उनसे बेहतर गुरू हो नहीं सकता। मैंने भी व्रत ले लिया है कि अपना अगला स्नान गुरू जी के साथ उज्जैन में ही करूंगा। महाजनो येन गत: स पंथा:।
© डॉ कुंदन सिंह परिहार
जबलपुर, मध्य प्रदेश
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈