श्री जय प्रकाश पाण्डेय
(श्री जयप्रकाश पाण्डेय जी की पहचान भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी के अतिरिक्त एक वरिष्ठ साहित्यकार की है। वे साहित्य की विभिन्न विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं। उनके व्यंग्य रचनाओं पर स्व. हरीशंकर परसाईं जी के साहित्य का असर देखने को मिलता है। परसाईं जी का सानिध्य उनके जीवन के अविस्मरणीय अनमोल क्षणों में से हैं, जिन्हें उन्होने अपने हृदय एवं साहित्य में सँजो रखा है। आज प्रस्तुत है आपका एक व्यंग्य – “वो बेचैन सा क्यूं है…?”।)
☆ माइक्रो व्यंग्य # 181 ☆ “वो बेचैन सा क्यूं है…?” ☆ श्री जय प्रकाश पाण्डेय ☆
वो अक्सर व्याकुल बेचैन सा नजर आता है। उसकी इस बेचैनी को देखकर चिंता भी होती है। चिकित्सक कहते हैं कि अति आतुर या व्याकुल होना भी एक रोग ही है। इसका मतलब वो जरूर इस रोग से पीड़ित है। दैनिक जीवन में प्रतिदिन वो व्याकुल सा परेशान रहता है। उससे जब पूछो कि- वो इतना आतुर क्यों दिखता है? तो झट से उसका जबाब होता है कि- लेखक भी तो लिख देते हैं कि उनके अंदर बेचैन आत्मा रहती है, और यह बेचैन आत्मा उनसे शानदार रचनाएं लिखवा देती है।
पहले ऐसा कहा जाता था कि वृद्ध होने पर ही इंसान आतुर जैसा हो जाता हैं, पर ऐसा लगता है कि वर्तमान में बच्चे और युवा सभी इस रोग से पीड़ित हैं। सभी को शीघ्रता है। आज कल सभी हाथ मोबाइल लिए हुए हैं। वो भी तीन चार मोबाइल साथ रखता है, उसकी हर दम आदर के साथ झुकी हुई गर्दन, आंखे मोबाइल के स्क्रीन में अंदर तक घुसी हुई, मन बेचैन व्याकुल सा किसी नए मेसेज की प्रतीक्षा में ही रहता है। अल सुबह वो सर्वप्रथम मोबाइल को प्रणाम कर दिन का शुभारंभ करता है। जब शुरुआत ही बेचैनी से होगी तो पूरा दिन भी उसी प्रकार का होगा।
क्या अतुरता बेचैनी ये सब हम सब के स्वभाव का हिस्सा तो नहीं बन गया है? उसको देखकर ऐसा लगता है, साधु संत तो कहते हैं कि संयम और धैर्य से काम लो फिर वो इतना व्याकुल और बेचैन क्यों रहता है। अभी उस दिन की बात है बैंक की लंबी लाइन में वो नियम विरुद्ध किनारे से आकर पूछता है, सिर्फ खाते में बैलेंस की जानकारी लेनी हैं। ये बात अलग है, कि वो बैलेंस के नाम से अपनी बैलेंस शीट में लगने वाली बैंक की पूरी जानकारी प्राप्त कर लेता है। लाइन में इंतजार कर रहे अन्य व्यक्तियों के समय हानि को दरकिनार कर अपना उल्लू सीधा करने में उसकी व्याकुलता और बेचैनी काम आती है। वो हर समय जल्दी में रहता है पर रोज खूब देर से सोकर भी उठता है।
आज फिर जब मैं पपलू दवा की दुकान से अपने जीवित रहने की दवा खरीदने के लिए डॉक्टर का पर्चा वहां कार्यरत व्यक्ति को दे रहा था, तभी वो दूर खड़ी कार की खिड़की से कूकर के समान अपनी थूथनी बाहर निकाल कर डाक्टर पर्ची को उल्ट पलट कर दवा का नाम लेकर उसकी उपलब्धता, भाव,एक्सपायरी की तारीख, दो हज़ार के छूट आदि की पूरी जानकारी लेने लगा। उसके पास कार से बाहर आकर बातचीत करने का समय नहीं था। वो वहीं से बेचैनी से चिल्लाकर कहने लगा उसका टाइम खराब हो रहा है। उसको टीवी पर शाम को होने वाली कुत्तों की तरह होने वाली बहस देखना जरूरी है। उस हालात में उसकी बेचैनी और व्याकुलता देखने लायक थी। कहते हैं कि विश्व में सबसे ज्यादा युवा शक्ति भारत में है पर जुकुरू बाबा ने फेसबुक, वाट्सएप, इंस्टाग्राम और तरह तरह के आनलाइन गेम में फंसाकर पूरी युवा शक्ति में बेचैनी और व्याकुलता भर दी है और डाक्टर लोग कह रहे हैं इस रोग का कोई इलाज नहीं है।
© जय प्रकाश पाण्डेय
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