श्री जय प्रकाश पाण्डेय
(श्री जयप्रकाश पाण्डेय जी की पहचान भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी के अतिरिक्त एक वरिष्ठ साहित्यकार की है। वे साहित्य की विभिन्न विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं। उनके व्यंग्य रचनाओं पर स्व. हरीशंकर परसाईं जी के साहित्य का असर देखने को मिलता है। परसाईं जी का सानिध्य उनके जीवन के अविस्मरणीय अनमोल क्षणों में से हैं, जिन्हें उन्होने अपने हृदय एवं साहित्य में सँजो रखा है । आज प्रस्तुत है एक अतिसुन्दर व्यंग्य – “नमस्ते-नमस्ते “। )
☆ जय प्रकाश पाण्डेय का सार्थक साहित्य # 71 ☆
☆ व्यंग्य – नमस्ते-नमस्ते ☆
सुबह-सुबह टहलने निकलो तो बहुत से लोग परस्पर अभिवादन करते हैं। कोई नमस्ते, नमस्ते करता है, कोई गुड मॉर्निंग, कोई राधे राधे, कोई जय श्रीकृष्ण, तो कोई जय श्रीराम…. अपनी बचपन से आदत है कि सबको नमस्ते नमस्ते करते हैं। कुछ लोग इसमें भी बुरा मान जाते हैं, और कहते हैं तुम बड़े ‘वो’ हो, राधे राधे का जबाव राधे राधे से नहीं देते हो, तब हमें कहना पड़ता है कि राधे राधे कहने पर हमारी खासमखास प्यारी राधा याद आ जाती है जिसे हमने दिल से चाहा था, राधा इतनी प्यारी थी कि उसे नमस्ते करो तो वो तुरंत कह देती थी कि तुम भले नमस्ते करो, पर ‘हम कुछ नहीं समझते’ । बचपन में राधा के साथ ये नमस्ते-नमस्ते का खेल हम खूब खेला करते थे, नमस्ते-नमस्ते खेलते एक दिन राधा डोली में बैठकर सबको नमस्ते करके ससुराल चली गई थी, तब से मन में सूनापन सवार हो गया था।
अब जमाना बदल गया है आजकल जब कोई आपको नमस्ते कहता है तो पलटकर ‘हम कुछ नहीं समझते’ टाइप की बात करने पर बबाल मच जाता है, ऐसे समय बचपन रह रहके याद आता है । बचपन में खेल खेल में एक दूसरे का मजाक उड़ाने में बड़ा मजा आता था। अब बचपन में किसी को नमस्ते कहने वाला कहां मिलता है, अब तो मोबाइल और सोशल मीडिया में ये सब झूठ मूठ का लेन-देन चलता है। बचपन में नमस्ते कितने प्रकार के होते हैं नहीं पता था,जब बड़े हुए और नौकरी करने लगे तब समझ में आया कि ये नमस्ते में भी बड़े लफड़े हैं।
हमें समझ में ये आया कि हर किसी को खुश नहीं कर सकते तो कोशिश करें कि हमारी वजह से किसी को दुख न पहुंचे, इसीलिए हमने हर किसी को नमस्ते करने की आदत डाल ली, हालांकि नमस्ते करने में कहीं फायदा हो जाता है तो कभी किसी को गलतफहमी हो जाती है। कुछ लोग नमस्ते करने से बुरा भी मान जाते हैं और कभी कभी कोई गले भी पड़ जाता है। कई लोग तो उधारी मांगने पहुंच जाते हैं, कहते हैं- आपने बाजार में एक बार नमस्ते किया था तो इस बुरे वक्त पर आप आप हमारे काम भी आ सकते हैं। नौकरी करते हुए यह बात समझ में आयी कि कुछ लोगों को आप यदि आदरपूर्वक नमस्ते कहोगे तो वे आपको सचमुच कुछ भी नहीं समझेंगे। मेरे विभाग के दो आला अफसर इस बात के लिए कुख्यात थे, वे किसी के भी नमस्ते को कुछ नहीं समझते थे। अक्सर लोग बड़े आदमियों को इसलिए नहीं नमस्ते कर लेते हैं कि इस पता नहीं, कब किस नमस्ते के प्रताप से कौन सा काम बन जाए। मेरे विभाग के आला अफसर इस बात को समझते थे इसलिए वे केवल अपने से बड़े अफसरों को देखकर ही नमस्ते करते थे। अपने से नीचे वालों को वे हेय दृष्टि से देखते और कभी गुड मॉर्निंग जैसा बिना मन के कर लेते थे। एक अफसर हमारे बाजू की टेबल पर बैठने वाली सुनीता को अपने केबिन में बुलाकर नमस्ते की विधि और उसके पीछे का विज्ञान समझाया करते थे, बाद में हंसते हुए सुनीता बताती थी कि सबसे पहले साहब अपने दोनों हाथ जोड़कर सीने में रख देते थे,उनका कहना था कि सीने में हाथ रखने से हृदय चक्र और सूर्य चक्र एक्टिव हो जाते हैं, फिर आंखों को बंद करके सिर झुका लेते थे। वे कहते थे कि वैदिक शास्त्रों का मानना है कि हाथों को जोड़कर जब हृदय चक्र और सूर्य चक्र पर लाते हैं तो आपस में दैवीय प्रेम का संचरण होता है और मुंह से बार बार नमस्ते- नमस्ते निकलने लगता है, सुनीता बताती थी कि ऐसा नमस्ते करने का तरीका उसने पहली बार देखा था। जब उसने साहब से नमस्ते करने के इस तरीके के बारे में पूछा था तो साहब ने बताया था कि नमस्ते की क्रिया के दौरान जोड़े गए हाथों से शरीर के कुछ ऐसे दबाव बिंदु सक्रिय हो जाते हैं जिनसे प्रसन्नता महसूस होती है। साहब ऐसा नमस्ते क्यूं करते थे आज तक समझ नहीं आया।
आफिस खुलते ही साहब की घंटी बजती और सुनीता जुल्फें और साड़ी का पल्लू संभालने लगती थी, जब केबिन के बाहर निकलती तो आंख नीचे किए रहती थी। साहब हमारे गुड मॉर्निंग से चिढ़ते थे और सुनीता के सामने हमारी हंसी उड़ाते थे। अजीब बात थी नमस्ते कहने में सुनीता खुश होती और साहब गुड मॉर्निंग में नाराज होते थे, तब हम डरे डरे रहते थे।
नमस्ते के नाम से बड़े बड़े खेल हो जाते हैं, नमस्ते के नाम से बड़ी राजनीति हो जाती है, चुनाव जीतने के चक्कर में “नमस्ते ट्रंप” के आयोजन के बाद देश में ‘नमस्ते’ का बड़ा शोर मचा था, ट्रंप को देखने जो भीड़ जुटाई गई थी उनको पुलिस ने नमस्ते-नमस्ते कहकर दौड़ा-दौड़ा के मारा था, जब अमेरिका के चुनाव के रिजल्ट आये तो हमने क्रेडिट ले ली कि हम लोगों ने चुनाव के पहले नमस्ते ट्रंप कर लिया था। भारत होशियार हो गया है, नमस्ते ट्रंप के पीछे की भावना को ट्रंप ने भी नहीं समझा था।
आजकल दुनिया में जितना कोरोना का डर है उतना ही पूरी दुनिया में नमस्ते का असर है। कोरोना काल में हैरानी होती है ये सब देखकर कि दुनिया की बड़ी बड़ी हस्तियों ने हाथ मिलाना, गले लगाना, हेलो-हाय को त्यागकर नमस्ते-नमस्ते को अपनाया है, और नमस्ते नमस्ते को कोरोना का उपाय बताया है।
बार बार नमस्ते नमस्ते करने लगो तो कई लोग शक की निगाह से देखने लगते हैं, फिर ऐसे लोगों से जय श्रीराम-जय श्रीराम करना पड़ता है। नमस्ते की गजब माया है, एक विशेष प्रकार से नमस्ते करो तो ये नमस्ते सामने वाले को डरा देता है, कोई कोई नमस्ते किसी का भला भी कर देता है, कुछ कहा नहीं जा सकता कि कौन सा नमस्ते किस वक्त क्या कला दिखा दे। हमारे पड़ोसी बल्लू भैया को उनका मकान मालिक बहुत सालों से तंग कर रहा था, बल्लू भैया पुराने किरायेदार हैं, ईमानदार हैं, समय पर किराया भी देते हैं, मकान मालकिन को सुबह-शाम नमस्ते करते हैं। बल्लू भैया में कोई अवगुण नहीं है फिर भी मकान मालिक खाली कराने हेतु तंग करता रहता है, कभी नल बंद कर देता है, कभी नाली बंद कर देता है, कभी रात में दरवाजे के सामने गंदगी फिकवा देता है। बल्लू भैया सीधे सादे इंसान हैं, सहनशील इतने कि कुछ बोलते भी नहीं, लड़का डाक्टर है, दस्यु प्रभावित जिले में पदस्थ है। अच्छा इलाज करता है गोली और छर्रे दो मिनट में आपरेशन करके निकाल देता है इसलिए डाकू लोग उसको पूजते हैं।
जब मकान मालिक की हरकतें बहुत बढ़ गईं तो बल्लू भैया ने लड़के को सूचना दी कि मकान मालिक बहुत तंग कर रहा है। लड़के ने दो तीन खूंखार डाकू मकान मालिक के पास भेज दिए। मकान मालिक घबरा गया बोला- मुझसे कुछ गलती हो गई क्या ?
तब डाकूओं ने कहा कि आपके शहर तक आये थे तो सोचा आपको नमस्ते ठोंक दें, और एक डाकू ने उसके सीने में बंदूक अड़ा दी। मकान मालिक थर थर कांपने लगा, डाकूओं ने कहा कि आपके किरायेदार हमारे पूज्यनीय हैं, उनका ध्यान रखा कीजिए, मकान मालिक बल्लू भैया के चरणों में गिर गया, माफी मांगी और तभी से मकान मालिक सुबह शाम बल्लू भैया को नमस्ते करने लगा। तो नमस्ते में इतना दम है कि नमस्ते से काम भी बन जाते हैं और नमस्ते करने से मुक्ति भी मिल जाती है।
आज सुबह टहलने निकले तो रास्ते में राधा के पापा ने दुखी मन से नमस्ते किया और बताया कि राधा की रिपोर्ट कोरोना पाज़िटिव आयी थी, सांस लेने में बहुत तकलीफ थी। अस्पताल से अभी अभी खबर आयी है कि राधा ने इस दुनिया को हमेशा-हमेशा के लिए नमस्ते कह दिया… प्रोटोकॉल के नियमानुसार उसका अंतिमसंस्कार होगा, खबर सुनकर मन उदास हो गया, बचपन में राधा के साथ नमस्ते नमस्ते खेलने की यादें चलचित्र की तरह चलने लगीं। पालीथीन से सील की गई डेड बॉडी को शव वाहन में रख दिया गया, हमें बीस फुट दूर रहने को कहा गया, गाड़ी छूटने लगी, नम आंखों से नमस्ते करने हाथ उठे ही थे कि मुंह से ‘राधे राधे’ निकल गया…….
© जय प्रकाश पाण्डेय