हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ व्यंग्य से सीखें और सिखाएँ # 25 ☆ बैन बनाम चैन ☆ श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’

श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’

( ई-अभिव्यक्ति में संस्कारधानी की सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’ जी द्वारा “व्यंग्य से सीखें और सिखाएं” शीर्षक से साप्ताहिक स्तम्भ प्रारम्भ करने के लिए हार्दिक आभार। आप अविचल प्रभा मासिक ई पत्रिका की प्रधान सम्पादक हैं। कई साहित्यिक संस्थाओं के महत्वपूर्ण पदों पर सुशोभित हैं तथा कई पुरस्कारों / अलंकरणों से पुरस्कृत / अलंकृत हैं।  आपके साप्ताहिक स्तम्भ – व्यंग्य से सीखें और सिखाएं  में आज प्रस्तुत है एक विचारणीय रचना “बैन बनाम चैन।  वास्तव में श्रीमती छाया सक्सेना जी की प्रत्येक रचना कोई न कोई सीख अवश्य देती है। सोशल मीडिया में विदेशी एप्प्स को बैन करने के सकारात्मक परिणामों के कटु सत्य पर विमर्श करती यह सार्थक रचना हमें राष्ट्रहित में उठाये कदमों हेतु प्रेरित करती है, बस समय के साथ जीवन शैली परिवर्तित करने  की आवश्यकता है।  इस सार्थक रचना के लिए  श्रीमती छाया सक्सेना जी की लेखनी को सादर नमन ।

आप प्रत्येक गुरुवार को श्रीमती छाया सक्सेना जी की रचना को आत्मसात कर सकेंगे। )

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – व्यंग्य से सीखें और सिखाएँ # 25 ☆

☆ बैन बनाम चैन

चैन बना कर व्यापार को बढ़ाने की खूबी तो आजकल जोर -शोर से सिखायी जा रही है । इतनी लंबी चैन की सामने वाले का चैन ही छीन ले । बस प्रचार – प्रसार हेतु छोटे- छोटे वीडियो बना कर पोस्ट करना तो मानो परम्परा का रूप ही धारण करने लगा है। हर बात को मीडिया से जोड़कर रखने में ही लोग फैशन समझते हैं । शेयर, हैश टैग, कमेंट, मैसेज ये सब रुतबे के साथ डिजिटल प्लेटफॉर्म में घूमते नजर आते हैं ।

हर पीढ़ी के दिलोदिमाग पर इनकी गहरी छाप पड़ चुकी है । चार- चार लॉक डाउन बिना ऊफ किये यदि मजे से बीत गए हैं ; तो केवल डिजिटलाइजेशन की वजह से । इसकी खूबी है; कि जब मोबाइल हाथ में तो कैसे वक्त बीतता जाता है , कुछ पता ही नहीं चलता ।  जिस प्रश्न का उत्तर गूगल बाबा से पूछो तो उसके साथ – साथ बहुत से उत्तर अनोखे अंदाज में देने लगता है । यदि आप कच्चे मन के  स्वामी हुए तो बस वहीं अटक कर रह जायेंगे, यदि  छूटने हेतु थोड़ा और जोर लगाया तो यू ट्यूब के फंदे में अवश्य फसेंगे । बस यहाँ से आपको भगवान भी नहीं बचा सकते क्योंकि यहाँ आध्यात्म से  जुड़े हुए एक से एक रोचक प्रसंग भी उपलब्ध रहते हैं ।

अब कैसे बचें ? आखिर इस सब से पेट तो भरेगा नहीं । फिर भी मनोरंजन तो जरूरी है;  सो प्रयोग करते रहें । अब जबकि कुछ एप्स पर बैन लग चुका है तो इनके यूजर बेचारे रुआसे से हो रहे हैं । मजे की बात देखिए कि इस मुद्दे पर भी दो खेमे तैयार  हैं, एक पक्ष में दूसरा विपक्ष में । क्या राष्ट्रीय हितों पर ही गुटबाजी अच्छी बात है ।  इन एप्स का इतना नशा कि आप राष्ट्र की अस्मिता को भी दाँव पर लगा कर इनके प्रयोग के समर्थन में जी- जान की बाजी लगा देंगे ।

अच्छा हुआ जो बैन लगा, पता तो चला कि इस विदेशी एप तकनीकी ने किस तरह से माइंड को  बड़ी सफाई के साथ  सेट कर मास्टरमाइंड बना दिया है। सही है ; जब मानसिक युद्ध मोबाइल के मार्फ़त हो रहा है, तो बचाव भी मोबाइल के माध्यम से ही होना चाहिए । समय रहते सचेत होने से स्वदेशी एप को बढ़ावा मिलेगा व भारतीय और तकनीकी रूप से उन्नत होने का प्रयास करेंगे जिससे सुखद परिणाम अवश्य आयेंगे अतः बेचैन होने से अच्छा है ; चैन के साथ बैन का स्वागत करें ।

 

© श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’

माँ नर्मदे नगर, म.न. -12, फेज- 1, बिलहरी, जबलपुर ( म. प्र.) 482020

मो. 7024285788, [email protected]

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ जय प्रकाश पाण्डेय का सार्थक साहित्य # 55 ☆ परसाई जी के जीवन का अन्तिम इन्टरव्यू – – लोक शिक्षण ☆ श्री जय प्रकाश पाण्डेय

श्री जय प्रकाश पाण्डेय

(श्री जयप्रकाश पाण्डेय जी   की पहचान भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी के अतिरिक्त एक वरिष्ठ साहित्यकार की है। वे साहित्य की विभिन्न विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं। उनके  व्यंग्य रचनाओं पर स्व. हरीशंकर परसाईं जी के साहित्य का असर देखने को मिलता है। परसाईं जी का सानिध्य उनके जीवन के अविस्मरणीय अनमोल क्षणों में से हैं, जिन्हें उन्होने अपने हृदय  एवं  साहित्य में  सँजो रखा है । प्रस्तुत है साप्ताहिक स्तम्भ की  अगली कड़ी में  उनके द्वारा स्व हरिशंकर परसाईं जी के जीवन के अंतिम इंटरव्यू का अंश।  श्री जय प्रकाश पाण्डेय जी ने  27 वर्ष पूर्व स्व  परसाईं जी का एक लम्बा साक्षात्कार लिया था। यह साक्षात्कार उनके जीवन का अंतिम साक्षात्कार मन जाता है। आप प्रत्येक सोमवार ई-अभिव्यिक्ति में श्री जय प्रकाश पाण्डेय जी के सौजन्य से उस लम्बे साक्षात्कार के अंशों को आत्मसात कर सकेंगे।) 

☆ जय प्रकाश पाण्डेय का सार्थक साहित्य # 55

☆ परसाई जी के जीवन का अन्तिम इन्टरव्यू – – लोक शिक्षण ☆ 

जय प्रकाश पाण्डेय–

आपके लेखन में प्रारंभ से लोक शिक्षण पर बहुत बल है। कई लोगों का मानना है कि इस उद्देश्य के प्रबल आग्रह के कारण आपके लेखन की साहित्यिक महत्ता या गरिमा क्षतिग्रस्त हुई है, आत्म समीक्षा के एकांत क्षणों में क्या आपको भी ऐसा लगता है ?

हरिशंकर परसाई-

एक तो इसका कारण यह हो सकता है कि मैं 10-12 साल शिक्षक रहा हूं, तो जो मेरे अंदर शिक्षक था, वह मरा नहीं या मैं शिक्षक का ही रोल प्ले करता रहा। मेरे लेखन में लोक शिक्षण है और मैं अभी भी ये मानता हूं कि लोक शिक्षण बहुत आवश्यक है, जो देश में वर्तमान हालात चल रहे हैं उसके लिए मैं उसी बात को दोषी मानता हूं कि राजनैतिक दलों ने,  ट्रेड यूनियन्स ने, विश्वविद्यालयों ने लोक शिक्षण नहीं कराया। लोगों को शिक्षित नहीं किया गया। वैज्ञानिक दृष्टि नहीं दी गई, तर्क नहीं दिए गए। इतिहास सही ढंग से नहीं समझाया गया। समाज की रचना को ठीक से नहीं समझाया गया। अन्धविश्वासों को नहीं मिटाया गया, पुरानी परंपराओं के प्रति विरक्ति नहीं पैदा की गई। ये लोक शिक्षण होता है जो वास्तव में नहीं हुआ, हमारे देश में लोक शिक्षण नहीं हुआ, इसलिए हम आज भी देख रहे हैं कि हमारे देश के ऊपर संकट ही संकट हैं। लोक शिक्षण दो प्रकार का होता है, एक तो सीधा, स्पष्ट और दूसरा परोक्ष या सांकेतिक। मेरे लेखन में कहीं शायद सीधा डायरेक्ट कोई शिक्षण आ गया हो, कोशिश मैंने यही की है कि परोक्ष रूप से शिक्षण करूं, अपने व्यंग्य के द्वारा या स्थितियों का चित्रण करके मैं रख दूं और उससे पढ़ने वाला शिक्षक हो जावे, ये मैंने कोशिश की। अब इससे मेरे साहित्य की मौलिकता घटी या बढ़ी है, मैं नहीं कह सकता हूं,  हो सकता है घटी हो, मान लेता हूं, परन्तु मैं लोक शिक्षण को साहित्य में आवश्यक मानता हूं।

……………………………..क्रमशः….

© जय प्रकाश पाण्डेय

416 – एच, जय नगर, आई बी एम आफिस के पास जबलपुर – 482002  मोबाइल 9977318765

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हिन्दी साहित्य – व्यंग्य ☆ व्यंग्य रचना / व्यंग्य पाठ – एक व्यंग्यकार की आत्मकथा ☆ श्री जगत सिंह बिष्ट

जगत सिंह बिष्ट

( आदरणीय श्री जगत सिंह बिष्ट जी, मास्टर टीचर : हैप्पीनेस्स अँड वेल-बीइंग, हास्य-योग मास्टर ट्रेनर, लेखक, ब्लॉगर, शिक्षाविद एवं विशिष्ट वक्ता के अतिरिक्त एक श्रेष्ठ व्यंग्यकार भी हैं। ई- अभिव्यक्ति द्वारा आपका  प्रसिद्ध व्यंग्य एक व्यंग्यकार की आत्मकथा 28 अक्टूबर 2018 को प्रकाशित किया था .

एक व्यंग्यकार की आत्मकथा की कुछ पंक्तियाँ …….

यह एक व्यंग्यकार की आत्मकथा है।  इसमें आपको ’एक गधे की आत्मकथा’ से ज़्यादा आनन्द आएगा।  गधा ज़माने का बोझ ढोता है, व्यंग्यकार समाज की विडम्बनाओं को पूरी शिददत से मह्सूस करता है।  इसके बाद भी दोनों बेचारे इतने भले होते हैं कि वक्त-बेवक्त ढेंचू-ढेंचू करके आप सबका मनोरंजन करते हैं।  यदि आप हमारी पीड़ा को ना समझकर केवल मुस्कुराते हैं तो आप से बढ़कर गधा कोई नहीं।  ……….

शेष रचना को आप  निम्न लिंक्स पर पढ़ /सुन सकते हैं  —-

आप निम्न लिंक पर क्लिक कर पढ़ सकते हैं  >>>>>

हिन्दी साहित्य – व्यंग्य – एक व्यंग्यकार की आत्मकथा – श्री जगत सिंह बिष्ट

इस व्यंग्य रचना को व्यंग्यकार से सीधे सुनना एक अद्भुत अनुभव होगा। इसी तारतम्य में आप श्री जगत सिंह बिष्ट जी के चित्र पर अथवा निम्न यूट्यूब लिंक पर क्लिक कर इस रचना को आत्मसात कर सकते हैं ->>>>

यूट्यूब लिंक >>>>

एक व्यंग्यकार की आत्मकथा – श्री जगत सिंह बिष्ट 

©  जगत सिंह बिष्ट

इंदौर, मध्य प्रदेश

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हिन्दी साहित्य – सस्वर व्यंग्य पाठ ☆ हम कान हैं ☆ श्री जय प्रकाश पाण्डेय

श्री जय प्रकाश पाण्डेय

(श्री जयप्रकाश पाण्डेय जी   की पहचान भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी के अतिरिक्त एक वरिष्ठ साहित्यकार की है। वे साहित्य की विभिन्न विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं। उनके  व्यंग्य रचनाओं पर स्व. हरीशंकर परसाईं जी के साहित्य का असर देखने को मिलता है। परसाईं जी का सानिध्य उनके जीवन के अविस्मरणीय अनमोल क्षणों में से हैं, जिन्हें उन्होने अपने हृदय  एवं  साहित्य में  सँजो रखा है । आज प्रस्तुत है  आपके नवीन व्यंग्य “हम कान हैं “ का सस्वर पाठ। ) 

☆ व्यंग्य – हम कान हैं

श्री जय प्रकाश पाण्डेय जी का यह व्यंग्य वास्तव में एक प्रयोग है। इस व्यंग्य की रचना अभी हाल ही में की गई है जो कि अप्रकाशित है। हमें पूर्ण विश्वास है कि आप व्यंग्य विधा की इस रचना को सुनकर कदापि निराश नहीं होंगे और अपने मित्रों से अवश्य साझा करेंगे।

आप आदरणीय श्री जय प्रकाश पाण्डेय जी के नवीनतम व्यंग्य  ” हम कान हैं “ उनके चित्र अथवा यूट्यूब लिंक पर क्लिक कर उनके ही स्वर में सुन सकते हैं।

 

आपसे अनुरोध है कि आप यह कालजयी रचना सुनें एवं अपने मित्रों से अवश्य साझा करें। ई- अभिव्यक्ति इस प्रकार के नवीन प्रयोगों को क्रियान्वित करने हेतु कटिबद्ध है।

© जय प्रकाश पाण्डेय

416 – एच, जय नगर, आई बी एम आफिस के पास जबलपुर – 482002  मोबाइल 9977318765

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ विवेक साहित्य # 59 ☆ व्यंग्य – व्यंग्य में महिला हस्तक्षेप  ☆ श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’

श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ 

(प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ जी के साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक साहित्य ”  में हम श्री विवेक जी की चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाने का प्रयास करते हैं। श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, अतिरिक्त मुख्यअभियंता सिविल  (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी , जबलपुर ) में कार्यरत हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है।  उनका कार्यालय, जीवन एवं साहित्य में अद्भुत सामंजस्य अनुकरणीय है। आज प्रस्तुत है श्री विवेक जी का एक अतिसुन्दर व्यंग्य “व्यंग्य में महिला हस्तक्षेप ।  श्री विवेक जी ने  तटस्थ होकर सार्थक विषय पर विमर्श किया है।  मुझे अक्सर ऐसा साहित्य पढ़ने को मिल रहा है जिसमें स्त्री और पुरुष साहित्यकार  एक दूसरे के मन की विवेचना अत्यंत संजीदगी से कर रहे हैं या एक दूसरे के क्षेत्र में अपनी भूमिकाएं निभा रहे हैं । इस सार्थक व्यंग्य के लिए श्री विवेक जी  का हार्दिक आभार। )

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक सहित्या # 59 ☆

☆ व्यंग्य  – व्यंग्य में महिला हस्तक्षेप  ☆

मेरी एक कविता में मैंने लिखा है कि आज की नारी ने जींस तो पहन लिया है, पर पारम्परिक साड़ी यथावत है, आशय है कि स्त्री को हर क्षेत्र में दोहरी भूमिका निभानी पड़ रही है. बड़े पदों पर स्त्री को अतिरिक्त सतर्क रहना होता है कि कोई यह न कहे कि अरे वो तो महिला हैं.

व्यंग्य के क्षेत्र में भी महिला व्यंग्यकार अपनी अन्य पारिवारिक व कार्यालयीन जिम्मेदारियो के साथ  बहुत महत्वपूर्ण लेखन कर रही हैं. यह भी सही है कि महिला होने के नाते प्रकृति दत्त गुणो के चलते कई जगह महिला लेखिकाओ पर संपादको, प्रकाशको या पाठको का सहज अतिरिक्त ध्यान जाता ही है. जिसके लाभ व हानि अवश्यसंभावी हैं.

प्रश्न है कि  क्या व्यंग्य रचना का मूल्यांकन यह देखकर किया जाय कि व्यंग्यकार स्त्री है या पुरूष ?  क्या लेखिका ही स्त्री मन को समझ सकती है ? मुझे लगता है कि व्यंग्यकार को स्त्री या पुरूष के खेमो में नहीं बांटा जाना चाहिए.  जब व्यंग्य लिखा जाता है तो विसंगतियो पर प्रहार होता है. सबसे अच्छा व्यंग्यकार वही होता है जो ” बुरा जो देखन मैं चला मुझसे बुरा न कोय “, मतलब स्वयं पर अंगुली उठाने का साहस करे. हो सकता है कि कुछ विशेष विषयो पर व्यंग्यकार अपनी स्वयं की परिस्थति परिवेश के अनुरूप पक्षपात कर जाता हो पर तटस्थ लेखन ही लोकप्रिय होता है. यह बिन्दु महिला व्यंग्यकारो पर भी लागू होता है.

अनेक व्यंग्यकार या चुटकुलो में पत्नी पर, साली पर, महिलाओ पर कटाक्ष किये जाते हैं, किन्तु महिलाये  अपनी जिजिविषा से इस सब को गलत सिद्ध करती बढ़ रही हैं. स्त्री समानता के इस समय में जितने जल्दी स्त्री विमर्श पीछे छूट जावे, समाज के लिये बेहतर होगा. व्यंग्यकार के पास सोच का अलग दायरा होता है, अतः हमें तो व्यंग्य में स्त्री समानता को बढ़ावा व सम्मान देना ही चाहिये. परिहास की बात अलग है, जिसमें मैं अपनी पत्नी के पात्र के जरिये कई बार व्यंग्य लिख देता हूं, पर अंतरमन से मैं पूरा फेमनिस्ट हूं.

पहली स्त्री व्यंग्यकार किसे कहा जावे यह शोध का विषय है, मुझे सूर्यबाला जी, अमृता प्रीतम जी,जबलपुर की सुधारानी श्रीवास्तव जिन्होने परसाई जी के प्रभाव में कुछ व्यंग्य रचनायें की  या बचपन में पढ़े हुये शिवानी जी के कुछ तंज वाले पैराग्राफ भी स्मरण आते हैं.  व्यंग्य शैली में इक्का दुक्का रचनायें तो अनेक लेखिकाओ की मिल जायेंगी. कविता, विशेष रूप से नई कविता के समय में कई कवियत्रियों ने भी चुटकुलो को व्यंग्य कविता में पिरोया है.

 

© विवेक रंजन श्रीवास्तव, जबलपुर

ए १, शिला कुंज, नयागांव,जबलपुर ४८२००८

मो ७०००३७५७९८

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ व्यंग्य से सीखें और सिखाएँ # 24 ☆ शिव संकल्प ☆ श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’

श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’

( ई-अभिव्यक्ति में संस्कारधानी की सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’ जी द्वारा “व्यंग्य से सीखें और सिखाएं” शीर्षक से साप्ताहिक स्तम्भ प्रारम्भ करने के लिए हार्दिक आभार। आप अविचल प्रभा मासिक ई पत्रिका की प्रधान सम्पादक हैं। कई साहित्यिक संस्थाओं के महत्वपूर्ण पदों पर सुशोभित हैं तथा कई पुरस्कारों / अलंकरणों से पुरस्कृत / अलंकृत हैं।  आपके साप्ताहिक स्तम्भ – व्यंग्य से सीखें और सिखाएं  में आज प्रस्तुत है एक विचारणीय रचना “शिव संकल्प।  वास्तव में श्रीमती छाया सक्सेना जी की प्रत्येक रचना कोई न कोई सीख अवश्य देती है। व्यक्तिगत एवं सार्वजनिक जीवन के कटु सत्य पर विमर्श करती यह सार्थक रचना हमें कई प्रकार से प्रेरित करती है, बस शिव संकल्प की आवश्यकता है।  इस कालजयी सार्थक रचना के लिए  श्रीमती छाया सक्सेना जी की लेखनी को सादर नमन ।

आप प्रत्येक गुरुवार को श्रीमती छाया सक्सेना जी की रचना को आत्मसात कर सकेंगे। )

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – व्यंग्य से सीखें और सिखाएँ # 24 ☆

☆ शिव संकल्प  

आचार, सदाचार, विचार, प्रचार, भ्रष्टाचार, दुराचार;

इन प्रत्ययों  ने तो नाक में दम कर दिया है। ये सत्य है कि दो और दो चार तो होते हैं; पर इनकी तो महिमा निराली है। लोग आचार- विचार करें या न करें किन्तु प्रचार अवश्य करेंगे। सदाचार का पाठ पढ़ते -पढ़ाते न जाने कितने भ्रष्टाचार और दुराचार इस जगत में हो रहे हैं । भ्रूण हत्या से शुरुआत होती है,  यदि वहाँ से बच निकले तो दुराचार की भेंट चढ़ जाने का खतरा सदैव मंडराता रहता है। यदि भाग्यवश इन दोनों खतरों को पार कर लिया तो अवश्य ही व्यक्ति पहले सदाचार  सीखेगा फिर सिखायेगा। इस सबके साथ- साथ उसे आसपास चल रहे  विभिन्न क्षेत्रों के प्रचार – प्रसार को भी झेलना होगा  या इसका अंग बन कर स्वयं भी इसमें कूद जाना पड़ेगा।

अब जब इन सबसे विजयी होकर कर्मभूमि पर उतरो तभी से भ्रष्टाचार का प्रवेश शुरू हुआ समझो। कोई भी कार्य इसके बिना पूरा ही नहीं होता। हर व्यक्ति इसी की दुहाई देता हुआ मिल जायेगा कि  ऊपर से नीचे तक भ्रष्टाचार छाया हुआ, कोई भी कार्य बिना बड़ी पहचान होते ही नहीं, भलाई का जमाना ही नहीं रहा।

महंगाई तो इसके साथ  अमरबेल की तरह पनपती रहती है। बस कोई आधार मिला तो समझो निराधार आरोपों का दौर शुरू हुआ, लेनदेन से क्या नहीं हो सकता, सारे समझौते इसी से शुरू हो इसी पर खत्म होते हैं। ये कोरोना थोड़ी है; जो बढ़ता ही जाए, इसे दूर करना ही होगा। जागरूक लोग क्या नहीं कर सकते, जब एक प्रेमी कल्पना में ही सही आसमान से तारे तोड़ कर ला सकता है तो क्या समझदार भारतीय नागरिक भ्रष्टाचार रूपी अमरबेल को उखाड़ कर नहीं फेक सकता है क्या…?

फेक न्यूज के विशाल सागर में; डूबने- उतराने  से बेहतर है,  कि कोई ठोस कदम उठा कर देश और समाज को स्वस्थ बना;  कुरीतियों को दूर कर सदाचारी व नेक इंसान बनें। मेहनत पर विश्वास कर आगे बढ़ें तो अवश्य ही भ्रष्टाचार व भ्रष्टाचारी का मुँह काला होगा, बस ऐसा शिव संकल्प लेने की जरूरत हम सबको है।

© श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’

माँ नर्मदे नगर, म.न. -12, फेज- 1, बिलहरी, जबलपुर ( म. प्र.) 482020

मो. 7024285788, [email protected]

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ जय प्रकाश पाण्डेय का सार्थक साहित्य # 54 ☆ परसाई जी के जीवन का अन्तिम इन्टरव्यू – – एक रचना कौशल ☆ श्री जय प्रकाश पाण्डेय

श्री जय प्रकाश पाण्डेय

(श्री जयप्रकाश पाण्डेय जी   की पहचान भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी के अतिरिक्त एक वरिष्ठ साहित्यकार की है। वे साहित्य की विभिन्न विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं। उनके  व्यंग्य रचनाओं पर स्व. हरीशंकर परसाईं जी के साहित्य का असर देखने को मिलता है। परसाईं जी का सानिध्य उनके जीवन के अविस्मरणीय अनमोल क्षणों में से हैं, जिन्हें उन्होने अपने हृदय  एवं  साहित्य में  सँजो रखा है । प्रस्तुत है साप्ताहिक स्तम्भ की  अगली कड़ी में  उनके द्वारा स्व हरिशंकर परसाईं जी के जीवन के अंतिम इंटरव्यू का अंश।  श्री जय प्रकाश पाण्डेय जी ने  27 वर्ष पूर्व स्व  परसाईं जी का एक लम्बा साक्षात्कार लिया था। यह साक्षात्कार उनके जीवन का अंतिम साक्षात्कार मन जाता है। आप प्रत्येक सोमवार ई-अभिव्यिक्ति में श्री जय प्रकाश पाण्डेय जी के सौजन्य से उस लम्बे साक्षात्कार के अंशों को आत्मसात कर सकेंगे।) 

☆ जय प्रकाश पाण्डेय का सार्थक साहित्य # 54

☆ परसाई जी के जीवन का अन्तिम इन्टरव्यू – – एक रचना कौशल ☆ 

जय प्रकाश पाण्डेय–

ऐसा प्राय: देखने में आया है कि आप अपनी रचना में जहां सबसे मूल्यवान कथ्य का सम्प्रेषण कर रहे होते हैं, वहां बहुत कम देर रुकते हैं, इन क्षणों में आपका गद्य अचानक बहुत संक्षिप्त और उसकी गति अत्याधिक त्वरित हो उठती है। एक लेखक के रूप में अपने इन उत्कर्ष क्षणों में स्वंय को सचेत रूप में अनुपस्थित कर देने का यह गुण आपकी मानवीय विनम्रता का सहज गुण है या सयास निर्मित एक रचना कौशल ?

 

हरिशंकर परसाई-

यह मेरी विनम्रता नहीं है,बात असल में ये है कि ये कौशल भी नहीं है। मैं वास्तव में उस बिंदु तक आते-आते परिस्थितियों का, वक्तव्यों का ऐसा वातावरण निर्मित कर लेता हूं कि उनमें से इस प्रकार की अभिव्यक्ति निकलनी ही चाहिए,जो कि निष्कर्ष रूप में होती है, लेकिन उसकी भूमिका मैं लम्बी बनाता हूं, और उस लम्बी भूमिका के बाद उस निष्कर्ष का क्षण आता है, यदि निष्कर्ष के उस क्षण को मैं लम्बा कर दूं तो मेरे लेखन का प्रभाव नष्ट हो जावेगा। मुझे संक्षिप्त में ही उसे एकदम से कहकर आगे बढ़ जाना चाहिए,कारण कि पाठक का दिमाग तो तैयार हो गया तब तक। तो एक दो वाक्य चलते फिरते कह देने भर से वह पूरी की पूरी बात ग्रहण कर लेता है। यदि मैं उसको ४-६-८ वाक्यों में समझाऊं तो इसका मतलब कि मेरी पहले की बनाई भूमिका बेकार हो जावेगीऔर उसका प्रभाव भी नहीं रह पायेगा, इसलिए मैं ऐसा करता हूं।

……………………………..क्रमशः….

© जय प्रकाश पाण्डेय

416 – एच, जय नगर, आई बी एम आफिस के पास जबलपुर – 482002  मोबाइल 9977318765

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ शेष कुशल # 8 ☆ व्यंग्य – कई पेंच हैं फ्लॉयड की…. ☆ श्री शांतिलाल जैन

श्री शांतिलाल जैन 

(आदरणीय अग्रज एवं वरिष्ठ व्यंग्यकार श्री शांतिलाल जैन जी विगत दो  दशक से भी अधिक समय से व्यंग्य विधा के सशक्त हस्ताक्षर हैं। आपकी पुस्तक  ‘न जाना इस देश’ को साहित्य अकादमी के राजेंद्र अनुरागी पुरस्कार से नवाजा गया है। इसके अतिरिक्त आप कई ख्यातिनाम पुरस्कारों से अलंकृत किए गए हैं। इनमें हरिकृष्ण तेलंग स्मृति सम्मान एवं डॉ ज्ञान चतुर्वेदी पुरस्कार प्रमुख हैं। श्री शांतिलाल जैन जी  के  साप्ताहिक स्तम्भ – शेष कुशल  में आज प्रस्तुत है उनका एक  व्यंग्य “कई पेंच हैं फ्लॉयड की….।  इस  साप्ताहिक स्तम्भ के माध्यम से हम आपसे उनके सर्वोत्कृष्ट व्यंग्य साझा करने का प्रयास करते रहते हैं । श्री शांतिलाल जैन जी के व्यंग्य में वर्णित सारी घटनाएं और सभी पात्र काल्पनिक होते हैं ।यदि किसी व्यक्ति से इसकी समानता होती है, तो उसे मात्र एक संयोग कहा जाएगा। हमारा विनम्र अनुरोध है कि श्री शांतिलाल जैन जी के प्रत्येक व्यंग्य  को हिंदी साहित्य की व्यंग्य विधा की गंभीरता  को समझते हुए सकारात्मक दृष्टिकोण से आत्मसात करें। ) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – शेष कुशल # 8 ☆

☆ व्यंग्य – कई पेंच हैं फ्लॉयड की….

मिनिसोटा, अमेरिका से एक काल्पनिक रपट:

“गवर्नर टिम वॉल्ज ने मरहूम जार्ज फ्लॉयड के घर पर उनकी पत्नी और बेटी से मुलाकात की. उन्होंने मृतक की विधवा को पचास हजार डॉलर की सहायता, परिवार के एक सदस्य को सरकारी नौकरी देने और फ्लॉयड पर जो क़र्ज़ था उसे माफ़ करने की घोषणा की है. उन्होंने कहा कि घटना की मजिस्ट्रियल जांच के आदेश दे दिये गये हैं. पुलिस अधिकारी डैरेक शॉविन को हिरासत में लेकर हत्या का मुकदमा दर्ज किया गया है. तीन अन्य पुलिस अधिकारियों को पुलिस मुख्यालय में अटैच किया गया है. उन्होंने दोषियों के विरूद्ध कड़ी कार्यवाही करने का भी आश्वासन दिया है.

उधर अमेरिकी राष्ट्रपति, जो रिपब्लिकन पार्टी से आते हैं, ने बढ़ते विरोध प्रदर्शन को देखते हुये मामले की जांच एफबीआई को सौंप दी है, जिसने प्राथमिक जांच शुरू भी कर दी है. जांच दल की टीम के एक सदस्य ने नाम नहीं बताने की शर्त पर कहा है कि फ्लॉयड के अर्बन …… होने के सबूत मिले हैं. उसकी हत्या …… की आपसी रंजिश का नतीज़ा भी हो सकती है. उसके कम्पयूटर में ……वादी साहित्य मिला है. एजेंसी अब फ्लॉयड के संपर्कों को खंगाल रही है. हम उसके तार टुकड़े टुकड़े गैंग से जुड़े होने की संभावना पर भी काम कर रहे हैं. फ्लॉयड जिस एनजीओ से जुड़ा था उसके लेनदेन की भी जांच की जा रही है. अगर इस बारे में और सबूत मिले तो फ्लॉयड की पत्नी की गिरफ्तारी संभव है.

घटना में एक नया मोड़ तब आया जब पार्टी के अन्दरखाने कुछ नेताओं ने टिम वॉल्ज को ही कटघरे में खड़ा करने की कोशिश की.  आपको बता दें कि फ्लॉयड डेमोक्रेटिक पार्टी का सक्रिय कार्यकर्ता और चुनाव जीतने तक वॉल्ज का नज़दीकी था. सम्मानजनक पद नहीं मिलने के कारण कुछ समय से नाराज़ चल रहा था. राज्य के कुछ  डेमोक्रेट्स फ्लॉयड के परिवार को न्याय दिलाने की आड़ में ट्वीट्स करके टिम वॉल्ज पर निशाना साध रहे हैं.

इस बीच शॉविन के परिवार ने वीडियो की फोरेंसिक जांच की मांग की है. शॉविन के वकील ने कहा है वो वीडियो डॉक्टर्ड है जिसमें उनके मुवक्किल घुटने से फ्लॉयड की गर्दन को दबाये हुये दिखाई पड़ रहे हैं. शॉविन लम्बे समय से ‘नी-लॉक’ की बीमारी से ग्रस्त हैं, वे घुटना मोड़ नहीं सकते. उन्हें राजनीतिक कारणों से बलि का बकरा बनाया जा रहा है. शॉविन के परिवार ने पोस्ट-मार्टम रिपोर्ट में छेड़छाड़ का आरोप भी लगाया है. जबकि मानवाधिकार कार्यकर्ता और फ्लॉयड के वकील बेंजामिन क्रंप ने शॉविन पर फर्स्ट डिग्री यातना का अभियोग चलाने की मांग की है. इस पर ट्रोल्स ने क्रंप को देशद्रोही कहना शुरु कर दिया है. वे कहते हैं मानवाधिकार तो पुलिस के भी होते हैं, एक्टिविस्ट उनकी बात क्यों नहीं उठाते ?

जहाँ एक ओर फ्लॉयड की हत्या पर देश में उबाल है वहीं इस पर जातिगत राजनीति भी शुरू हो गयी है. एक वर्ग विशेष फ्लॉयड को दलित बता रहा है तो कुछ लोग उसके दलित होने पर ही संदेह व्यक्त कर रहे हैं. घटना पर सोशल मीडिया में ट्रोल्स सक्रिय हो गये हैं. ट्रोल्स ने पुलिस से कहा है कि उन्हें घुटने के बल बैठकर माफ़ी मांगने की बजाये प्रदर्शनकारियों के घुटने तोड़ देने चाहिये. कुछ ने पुलिस को ऐसे मामले में सार्वजानिक रूप से हत्या करने की बजाये चुपचाप एनकाउंटर में निपटा देने के सुझाव दिये हैं. ट्रोल्स ने प्रदर्शनकारियों पर यूएपीए लगाने की मांग कर डाली है. ‘आई कांट ब्रीद’  पर एक ट्रोल ने लिखा है – ‘इनको पड़ोस के देश भेज देना चाहिये. देयर ही केन ब्रीद कार्बन-डाई-ऑक्साईड. इस देश का खाते हैं, यहाँ रहते हैं और कहते हैं यहाँ ब्रीद नहीं कर पा रहे, शेम.’ एक मीम में गब्बरसिंह की ड्रेस में शॉविन कह रहे हैं – ‘फ्लॉयड ये सांस मुझे दे दे’. हैश टैग ‘सेव शॉविन’ जमकर ट्रेंड हो रहा है.

बहरहाल, कई पेंच हैं फ्लॉयड की हत्या में, लेकिन इतना अवश्य है कि इस पूरे प्रकरण में अमेरिका की छबि खराब होती नज़र आ रही है. कहा जा रहा है कि जिनकी पुलिस से एक आम नागरिक की हत्या नहीं संभाली जाती वे काहे के लोकतान्त्रिक और काहे के विकसित देश. अमेरिकी प्रशासन को भारत आकर प्रशिक्षण लेने की जरूरत है.”

© शांतिलाल जैन 

F-13, आइवरी ब्लॉक, प्लेटिनम पार्क, माता मंदिर के पास, टी टी नगर, भोपाल. 462003.

मोबाइल: 9425019837

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ परिहार जी का साहित्यिक संसार # 55 ☆ व्यंग्य – फिर प्रभु के दरबार में ☆ डॉ कुंदन सिंह परिहार

डॉ कुन्दन सिंह परिहार

(आपसे यह  साझा करते हुए हमें अत्यंत प्रसन्नता है कि  वरिष्ठतम साहित्यकार आदरणीय  डॉ  कुन्दन सिंह परिहार जी  का साहित्य विशेषकर व्यंग्य  एवं  लघुकथाएं  ई-अभिव्यक्ति  के माध्यम से काफी  पढ़ी  एवं  सराही जाती रही हैं।   हम  प्रति रविवार  उनके साप्ताहिक स्तम्भ – “परिहार जी का साहित्यिक संसार” शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाते  रहते हैं।  डॉ कुंदन सिंह परिहार जी  की रचनाओं के पात्र  हमें हमारे आसपास ही दिख जाते हैं। कुछ पात्र तो अक्सर हमारे  आसपास या गली मोहल्ले में ही नज़र आ जाते हैं।  उन पात्रों की वाक्पटुता और उनके हावभाव को डॉ परिहार जी उन्हीं की बोलचाल  की भाषा का प्रयोग करते हुए अपना साहित्यिक संसार रच डालते हैं। आज  प्रस्तुत है  एक समसामयिक व्यंग्य  ‘फिर प्रभु के दरबार में’ऐसे अतिसुन्दर व्यंग्य के लिए डॉ परिहार जी की  लेखनी को  सादर नमन।)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – परिहार जी का साहित्यिक संसार  # 55 ☆

☆ व्यंग्य – फिर प्रभु के दरबार में ☆

हिम्मत भाई अखबार देखकर खुश हुए, बोले, ‘अच्छी खबर है। मन्दिर खुल गये। कल जाएंगे। ‘

पत्नी चिन्तित स्वर में बोली, ‘भीड़भाड़ में मत फँसना। ‘

हिम्मत भाई ने जवाब दिया, ‘सरकार ने नियम बना दिये हैं। छः फुट की दूरी रखना है,मास्क लगाना है, प्रसाद चढ़ाना या लेना नहीं है, घंटा नहीं बजाना है, भजन-कीर्तन मन में ही करना है। ‘

पत्नी बोली, ‘अभी बेकारी और भुखमरी फैली है। जूते चोरी करवाके मत आ जाना। ‘

हिम्मत भाई बोले, ‘अपने पुराने सिस्टम से चलेंगे, एक जूता इस छोर पर और दूसरा उस छोर पर। ढूँढ़ते रह जाओगे। ‘

दूसरे दिन हिम्मत भाई मन्दिर जाने को तैयार हुए,लेकिन तैयार होते होते रुक जाते थे,जैसे किसी दुविधा में हों। अचानक पत्नी से बोले, ‘जाने में झिझक हो रही है। ढाई महीने बाद भगवान को सूरत दिखाऊँगा। कहीं नाराज़ न हो गये हों। ज़रा सी मुसीबत आयी और हम भगवान को छोड़कर भाग खड़े हुए। ‘

पत्नी ने समझाया, ‘डर की कोई बात नहीं है। भगवान अन्तर्यामी हैं, करुणानिधान हैं। वे हमारी मजबूरी समझते हैं। ‘

हिम्मत भाई मन्दिर पहुँचे। वहाँ सब इन्तज़ाम चौकस था। बाहर दीवारों पर छिड़काव हो रहा था। भक्तों के लिए भीतर बाहर गोले बने थे। हाथ-पांव धोने के लिए इन्तज़ाम था। बार बार घोषणा हो रही थी कि एक बार में दस से ज़्यादा आदमियों का प्रवेश नहीं होगा, और भीतर पाँच मिनट से ज़्यादा नहीं रुकना है। यह भी कि पैंसठ से ऊपर के भक्त घर पर ही सुमिरन करें।

बाहर एक बुज़ुर्ग हाथ झटक झटक कर कुछ शिकायत कर रहे थे। कह रहे थे, ‘पैंसठ से ऊपर वालों को भगवान के दर्शन की रोक क्यों? भगवान के पास तो सबसे पहले उन्हीं को जाना है, फिर उन्हें रोकने से क्या फायदा? फिर यह भगवान की टैरिटरी है, यहाँ दुनिया भर की बन्दिशें लगाने का क्या मतलब? यहाँ तो भगवान की मर्जी के बिना परिन्दा भी पर नहीं मार सकता, वायरस की क्या मजाल? अभी तक भगवान आदमी की रक्षा करते थे, अब क्या हम भगवान के रक्षक बनेंगे?’

हिम्मत भाई लाइन में लग गये, लेकिन अभी भी चिन्तित थे। भगवान को कैसे मुँह दिखाएंगे? सोचते सोचते, धीरे धीरे आगे बढ़ रहे थे। उनकी गति देखकर मन्दिर का एक कर्मचारी चिल्लाया, ‘जल्दी आगे बढ़ो, भगत जी। कछुआ चाल मत चलो। ‘

हिम्मत भाई खिसकते खिसकते अन्दर मूर्ति के सामने पहुँच गये। थोड़ी देर आँखें झुकाये, मौन खड़े रहे, फिर हाथ जोड़कर बोले, ‘प्रभु,गलती माफ कर देना। ढाई महीने बाद हाज़िर हुआ हूँ। हम क्या करते, आपके पट ही बन्द हो गये थे। ‘

फिर बोले, ‘प्रभु, हम मनुष्य ऐसे ही हैं। वैसे तो आपको भजते थकते नहीं हैं, लेकिन संकट बड़ा होते ही हमारा भरोसा डगमगाने लगता है। फिर डाक्टर और अस्पताल की तरफ भागते हैं। अब बताइए, आपसे बड़ा डाक्टर कौन होगाऔर आपसे बेहतर दवा कहाँ मिलेगी?मुझे लगता है कि आपके मन्दिर के पट बन्द होना ठीक नहीं हुआ। ‘

हिम्मत भाई थोड़ा रुककर बोले, ‘प्रभु, मेरी अल्पबुद्धि के अनुसार आपकी तरफ से होने वाले कुछ काम बन्द होने से आदमी का भटकाव बढ़ा है। पहला यह कि पहले आपके लोक से आकाशवाणी होती थी जिससे आपके ज़रूरी निर्देश मिल जाते थे। वह पूरी तरह बन्द हो जाने से आपसे संवाद नहीं होता। अब लोग रेडियो वाणी को ही आकाशवाणी मानते हैं। दूसरे, आपने हमारी धरती पर चमत्कार करना बन्द कर दिया है।  हम चमत्कार-प्रेमी लोग हैं। थोड़े बहुत चमत्कार होते रहें तो आपमें हमारी आस्था मज़बूत होती रहेगी। अभी ढोंगी लोग आपके नाम पर चमत्कार कर रहे हैं और अपनी जेबें भर रहे हैं। आकाशवाणी शुरू होने का एक फायदा यह होगा कि धरती पर जो अपने को भगवान समझते हैं वे कंट्रोल में रहेंगे। इसलिए ये दोनों काम जल्दी शुरू हो जाएं तो आदमी की बुद्धि भ्रमित नहीं होगी। ‘

इतना कह कर, एक बार फिर अपनी गलती की क्षमा माँगकर हिम्मत भाई मन्दिर से बाहर हो गये।

 

© डॉ कुंदन सिंह परिहार

जबलपुर, मध्य प्रदेश

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ विवेक साहित्य # 57 ☆ व्यंग्य – न देखो टूटा हुआ लाकडाउन ☆ श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’

श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ 

(प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ जी के साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक साहित्य ”  में हम श्री विवेक जी की चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाने का प्रयास करते हैं। श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, अतिरिक्त मुख्यअभियंता सिविल  (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी , जबलपुर ) में कार्यरत हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है।  उनका कार्यालय, जीवन एवं साहित्य में अद्भुत सामंजस्य अनुकरणीय है। आज प्रस्तुत है श्री विवेक जी का एक अतिसुन्दर समसामयिक व्यंग्य   “न देखो टूटा हुआ लाकडाउन ।  श्री विवेक जी ने  गंभीर  प्रवृत्ति एवं अनुशासित पीढ़ी की  मानसिक पीड़ा का बयां अत्यंत सुंदरता से किये है। श्री विवेक जी की लेखनी को इस अतिसुन्दर  व्यंग्य के  लिए नमन । )

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक साहित्य # 57 ☆ 

☆ व्यंग्य –  न देखो टूटा हुआ लाकडाउन ☆

स्थितियो को यथावत स्वीकार कर लेने का सुख ही अलग होता है. जिसने भी समर्पण भाव से यथा स्थिति को स्वीकार कर लिया, उसके सारे तनाव उसी पल स्वतः समाप्त हो जाते हैं . जब तक स्वीकारोक्ति नही होती तब तक संघर्ष होता है. थानेदार मार पीट कर अपराधी को स्वीकारोक्ति के लिये मजबूर करता रहता है. जैसे ही अपराधी स्वीकारोक्ति करता है, उसके सरकारी गवाह बनने के चांसेज शुरू हो जाते हैं.

पत्नी से तर्क करके भी कोई जीता है ? पत्नी को स्वीकार कर लीजीये फिर देखिये गृहस्थी की गाड़ी कितनी सुगमता से चलती है.

भगवान के सम्मुख भक्त की स्वीकारोक्ति और समर्पण के बाद भक्त और भगवान के बीच शरणागति का सिद्धांत लागू हो जाता है. भगवान कभी भी शरणागत को निराश नही करते. शरणागत वत्सल भगवान समर्पित भक्त की रक्षा के लिये सदैव तत्पर रहते हैं. विभीषण ने स्वयं को  भगवान राम की शरण में समर्पित कर दिया  तो श्री राम ने न केवल उसकी रक्षा की वरन उसे लंका का अधिपति ही बना दिया.

नेता जी हर अच्छी बुरी घटना को यथावत न केवल स्वीकार कर लेते हैं बल्कि उसमें से कुछ अच्छा ढ़ूंढ़ निकालने के गुण जानते हैं.टूटा हुआ लाकडाउन हम जैसे उन विमूढ़ लोगों को ही दिखता है, जो केवल टी वी देखते हैं. हमें लगता है कि लाकडाउन वन में ही कोरोना का निवारण हो गया होता यदि सबने हमारी ही तरह पूरे प्राणपन से लाकडाउन का पालन किया होता. किन्तु नेता जी लाकडाउन पांच के बाद भी जनता की प्रशंसा करते नही अघाते. उन्हें स्थितियो को स्वीकार करने की कला आती है. उन्होने आंकड़े ढ़ूंढ़ निकाले हैं, जिनके जरिये वे देश को दुनियां से बेहतर सिद्ध कर देते हैं. वे जनता की प्रशंसा करते हुये कहते हैं कि जनता ने लाकडाउन का पूरी तन्मयता से परिपालन किया. नेता जी की इस स्वीकारोक्ति से जनता खुश हो जाती है, नेता जी को तनाव नही होता. आज नही तो कल इस तरह या उस तरह कोरोना तो निपट ही जायेगा. गलतियां गिनाने से क्या होगा ? जब जिसे जो बेस्ट लगा उसने वह किया, जिसके लिये नेता जी सबकी पीठ थपथपा कर लोगों का मन जीत लेते हैं. उन्हें आगे की लड़ाई का हौसला देते हैं. जिसे वैक्सीन बनाने में रुचि हो वह अपनी कोशिश करे. जिसे जन सेवा करती तस्वीरें खिंचवानी हो वह वैसा कुछ करता रहे. जिसे घपले में रुचि हो वह ठेलम ठेल के इस माहौल में अपनी रुचि के अनुरूप काम कर डाले.

व्यर्थ ही अपना ज्ञान बांटकर, तर्क वितर्क कर, कुढ़ने वाले मुट्ठी भर लोगों की परवाह छोड़ दें तो बहुमत कोरोना से भी समझौता करने वालो का ही है. जब परिस्थिति अपने वश में ही न हो तो उससे जूझ कर तनाव लेने की अपेक्षा उस स्थिति के मजे लेने में ही भलाई है. तो इस कोरोना काल में सकारात्मकता ढ़ूंढ़कर स्थिति को स्वीकार कर लीजीये, योग कीजीये कोरोना से बचिये और प्रसन्न रहिये.

 

© विवेक रंजन श्रीवास्तव, जबलपुर

ए १, शिला कुंज, नयागांव,जबलपुर ४८२००८

मो ७०००३७५७९८

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