डॉ कुंदन सिंह परिहार
(वरिष्ठतम साहित्यकार आदरणीय डॉ कुन्दन सिंह परिहार जी का साहित्य विशेषकर व्यंग्य एवं लघुकथाएं ई-अभिव्यक्ति के माध्यम से काफी पढ़ी एवं सराही जाती रही हैं। हम प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – “परिहार जी का साहित्यिक संसार” शीर्षक के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाते रहते हैं। डॉ कुंदन सिंह परिहार जी की रचनाओं के पात्र हमें हमारे आसपास ही दिख जाते हैं। कुछ पात्र तो अक्सर हमारे आसपास या गली मोहल्ले में ही नज़र आ जाते हैं। उन पात्रों की वाक्पटुता और उनके हावभाव को डॉ परिहार जी उन्हीं की बोलचाल की भाषा का प्रयोग करते हुए अपना साहित्यिक संसार रच डालते हैं। आज प्रस्तुत है एक अतिसुन्दर हास्य कथा ‘इन्तकाल के बाद’। इस हास्य कथा के लिए डॉ परिहार जी के सेन्स ऑफ़ ह्यूमर और लेखनी को सादर नमन।)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – परिहार जी का साहित्यिक संसार # 72 ☆
☆ हास्य कथा – इन्तकाल के बाद ☆
(‘पैनी चीज़ें पीड़ा देती हैं, नदियाँ गीली हैं, तेज़ाब दाग छोड़ते हैं, और दवाओं से जकड़न होती है। बन्दूकें कानूनी नहीं हैं, फन्दे खुल जाते हैं, गैस भयानक गंध छोड़ती है। बेहतर है कि ज़िन्दा ही रहा जाए।’ – डोरोथी पार्कर)
चौधरी गप्पूलाल पुरुषार्थी व्यक्ति हैं। तीस साल के सुखी वैवाहिक जीवन में उन्होंने आठ संतानें पैदा कीं—पाँच बेटे और तीन बेटियाँ। इसके बाद उन्हें भारत देश का खयाल आ गया। वैसे ही देश जनसंख्या समस्या से त्रस्त है, अब और पुरुषार्थ ठीक नहीं।
एक शाम गप्पूलाल जी घर लौटे। लौटकर पलंग पर पसरकर उन्होंने बड़े बेटे को आवाज़ दी, ‘भुल्लन ज़रा सुनना।’
भुल्लन आज्ञाकारी भाव से हाज़िर हुए। बोले, ‘क्या आदेश है, बाउजी?’
गप्पूलाल जी बोले, ‘आज प्रसिद्ध ज्योतसी अटकलनाथ से मिलने गया। उन्होंने बताया कि मेरी जीवन रेखा संकट में चल रही है। जीवन का कोई ठिकाना नहीं। पता नहीं कब रवाना होना पड़े। इसलिए तैयारी कर लेना चाहिए।’
उनकी पत्नी गोमती देवी कुछ दूर बैठीं पोते के लिए स्वेटर बुन रही थीं। बात को आधा समझकर बोलीं, ‘कहाँ जा रहे हो? खा पी कर जाना। बता देना तो पराठा सब्जी बना दूँगी।’
गप्पूलाल चिढ़ कर बोले, ‘जहाँ हमें जाना है वहाँ पराठा सब्जी नहीं, पाप पुन्न काम आते हैं। हम ऊपर जाने की बात कर रहे हैं। ज्योतसी ने कहा है कि हमारा समय गड़बड़ चल रहा है।’
गोमती देवी शान्ति से बोलीं, ‘जोतखी ने कहा है तो ठीक ही कहा होगा। अपनी सब बीमा पालिसियाँ हमें दे देना। एकाध दिन में चलकर वह दफ्तर भी दिखा देना जहाँ पेमेंट मिलता है। बाद में हम कहाँ भटकते फिरेंगे?’
गप्पूलाल यह सुनकर गोमती देवी को मारने लपके, लेकिन बेटे ने बाँह पकड़कर रोक लिया।
इसी बीच किसी ने भीतर खबर फैला दी कि बाबूजी जायदाद का बँटवारा कर रहे हैं। तत्काल चारों छोटे बेटे बड़ी उम्मीद लिये आकर खड़े हो गये। उनके पीछे, थोड़ा ओट में, बहुएँ भी डट गयीं। बड़ी बहू भी आकर एक खंभे की ओट में खड़ी हो गयी।
गप्पूलाल ने उनकी तरफ देखा, पूछा, ‘तुम लोग किस लिए आये हो?’
दूसरे नंबर का बेटा बोला, ‘कोई कह रहा था कि आपने सब को बुलाया है। ‘
गप्पूलाल गुस्से में बोले, ‘हमें पता है तुम लोग सूँघते हुए आये हो। जहाँ हम ऊपर जाने की बात करते हैं, तुम लोग आसपास मंडराने लगते हो। भागो यहाँ से। तुम्हारी उम्मीद इतनी जल्दी नहीं पूरी होने वाली।’
बेटे और बहुएँ निराशा में मुँह लटकाये, अपने अपने कमरों में चले गये।
गप्पूलाल ने बड़े बेटे से कहा, ‘ज्योतसी ने कहा है तो कुछ ध्यान जरूर देना चाहिए। जायदाद वायदाद तो हमें अपने जीते जी किसी को नहीं देनी, लेकिन कुछ और बातें हैं जिनकी चर्चा करनी है। पहली बात यह है कि अपने धरम में मरने के बाद जो आदमी को जला देते हैं वह अपने को जमता नहीं। आदमी को जरा सी आग छू जाए तो घंटा भर तक कल्लाता है, और यहाँ तो पूरा का पूरा शरीर आग में झोंक देते हैं। किसी को क्या पता कि मुर्दे को क्या तकलीफ होती है। एक बार जाकर कोई लौट कर तो आता नहीं कि कुछ बताये।’
भुल्लन विनम्रता से बोले, ‘बाउजी, मरने के बाद ही जलाते हैं। मरे आदमी को आग का क्या बोध!’
गप्पूलाल हाथ उठाकर बोले, ‘हमें न सिखाओ। हमने एक अखबार में पढ़ा था कि एक साँप ऐसा होता है जो मरने के एक घंटे बाद तक काट सकता है। तो हम तो आदमी हैं, हमारी जान कहाँ और कितनी देर तक अटकी रहती है, किसी को क्या पता।’
भुल्लन बोले, ‘तो फिर क्या हुकुम है बाउजी?’
गप्पूलाल बोले, ‘हुकुम यही है कि हमें आग में मत जलाना। हमें आग बिलकुल बर्दाश्त नहीं होती।’
भुल्लन बोले, ‘आपने बड़े संकट में डाल दिया, बाउजी। अगर आपको आग में जलना पसन्द नहीं तो क्या आप दफनाया जाना पसन्द करेंगे? बता दीजिए तो हम बिरादरी वालों को समझा लेंगे।’
गप्पूलाल दोनों हाथ उठाकर बोले, ‘पागल है क्या? यह भी कोई बात हुई कि आदमी को गढ्ढा खोदकर गाड़ दिया और ऊपर से मिट्टी पत्थर से तोप दिया। मान लो किसी के भीतर साँस बाकी हो और वह साँस लेना चाहे, तो वह तो गया काम से। आदमी अधमरा हो तो मरने का पुख्ता इन्तजाम हो जाता है। नहीं भैया, अपन को यह सिस्टम भी मंजूर नहीं।’
भुल्लन परेशान होकर बोले, ‘तो बाउजी, क्या आपको पारसियों का सिस्टम पसन्द है? वे लोग शरीर को ऊपर टावर पर रख देते हैं और गीध आकर उसे अपना भोजन बना लेते हैं।’
गप्पूलाल गुस्से में बोले, ‘तू मेरा दुश्मन है क्या?तू चाहता है कि मरने के बाद गीध मुझे नोचें? मुझे तकलीफ नहीं होगी क्या?’
भुल्लन हारकर बोले, ‘बाउजी, मेरे खयाल से तो सबसे बढ़िया यह है कि शरीर को नदी में प्रवाहित कर दिया जाए। पवित्र जल में भले भले बह जाए।’
गप्पूलाल बोले, ‘बकवास मत करो। हमें तैरना नहीं आता। तुम हमें नदी में छोड़ोगे और हम सीधे नीचे चले जाएंगे। साँस वाँस सब बन्द हो जाएगी। मछलियाँ चीथेंगीं सो अलग। ना भैया, यह तरीका भी अपने को नहीं जमता।’
इस बीच गप्पूलाल का भतीजा आकर बैठ गया था। मुँहलगा और विनोदी प्रकृति का था। चाचा की बातें सुनकर बोला, ‘चच्चा, सबसे बढ़िया हम आपके शरीर पर मसाला लगवा कर हमेशा के लिए सुरक्षित करवा देंगे और एक कमरे में रख देंगे। जैसे रूस में लेनिन का शरीर रखा रहा ऐसे ही आप भी सालोंसाल आराम फरमाना।’
गप्पूलाल प्रसन्न होकर बोले, ‘आइडिया अच्छा है। इसमें फायदा ये है कि कभी साँस वापस आ गयी तो कम से कम फिर से साबुत खड़े तो हो सकेंगे। देख लेना, अगर तुम लोग खरचा बर्दाश्त कर सको तो ऐसा कर लेना, लेकिन इसमें गड़बड़ यह है कि घर का एक कमरा इसमें फँस जाएगा।’
फिर बोले, ‘फिलहाल ये बातें छोड़ो। ज्योतसी कुछ भी कहे, अभी आठ दस साल हम इस धरती से नहीं हिलने वाले। कभी फुरसत से सोचेंगे कि अपन को कौन सा सिस्टम ‘सूट’ करेगा।’
© डॉ कुंदन सिंह परिहार
जबलपुर, मध्य प्रदेश
≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈