हिन्दी साहित्य – कथा-कहानी ☆ ऐसी भी एक मॉं … भाग-3 – लेखक – श्री अरविंद लिमये ☆ भावानुवाद – सुश्री सुनीता गद्रे ☆
सुश्री सुनीता गद्रे
☆ कथा कहानी ☆ ऐसी भी एक मॉं … भाग-3 – लेखक – श्री अरविंद लिमये ☆ भावानुवाद – सुश्री सुनीता गद्रे ☆
(हाॅं जी हाॅं! भेजेंगे न पैसे! क्योंकि यहाॅं एक तो पैसे की खुदान और दूसरा गुप्त धन का भंडार हाथ लगा है। बहु बोले जा रही थी और बेटा सिगरेट सुलगाकर धुएं के छल्ले पर नजर गढाए बैठा था। )…. अब आगे
पूरी रात उसको नींद नहीं आयी। अगले दिन जैसे ही बेटा ऑफिस चला गया, वह एक थैली में अपने चार कपड़े ठुॅंसकर बाहर निकली। बहू के लिए एक संदेश छोड़ना भी उसने जरुरी नहीं समझा। उसे मालूम था वे दोनो उसकी खोज खबर लेने का प्रयास भी नहीं करेंगे।
सीधी अपनी सहेली रमा के पास पहुॅंच गई। बचपन से ही दोनों में पक्की दोस्ती थी। दोनों अपने सुख दुख आपस में बाॅंटा करती थी। ….. फिर दोबारा हाथ में चकला बेलन! लेकिन इसमें अब पहले जैसी ताकत नहीं रहीथी। हाथ काॅंपने लगते थे। कोई जरूरतमंद महिला कुछ दिनों के लिए रख लेती, …. फिर दूसरा घर! सहेली की वजह सिर पर छत तो मिल गया था लेकिन पैसा कमाना जरुरी था।
वह काम के चक्कर में घूमती रही, एक दिन वह घूमते घूमते इधर आ गई। … पानसे वकील साहब के घर। पिताजी वकील थे अब वह नहीं रहे, पर छोटा बेटा, संतोष भी वकील बन गया है, इतनी उसे जानकारी थी। इन लोगों के घर में बहुत सालों तक उसने काम किया था। बहू बेटियों के जापे में वह बड़ी खुशी से मालिश का काम भी किया करती थी।
उसकी कहानी जानने के बाद संतोष ने उसको अपने घर में ही पनाह दे दी। दुबारा वह उस घर की सदस्य बन गई।
एक दिन अचानक एडवोकेट संतोष पानसे की चिट्ठी, इसके बेटे को मिल गई। …
लिखा था, ‘तुम्हारी अम्मा जी हमारे घर रह रही है, … पर काम करने के लिए नहीं। वह हमारी दादी जैसी है। बड़े मान सन्मान के साथ रह रही है। काम करने जितनी ताकत भी उसकी बुढी हड्डियों में नहीं है। …. और अगर होती तो भी उसको अब इतने कष्ट उठाने की क्या जरूरत है? तुम पढ़ लिख कर बड़े आदमी बन गए हो। तुम्हारी कमाई भी अच्छी खासी है। तुम यह अच्छी जिंदगी हासिल कर सको इसी बात के लिए तुम्हारी माँ ने अपना खून पसीना बहाया है। अब उसको अपने उस खून पसीने की कीमत चाहिए….. उसको तुमसे गुजारा भत्ता चाहिए। alimony….. क्यों डर गए? मैं वकील हूँ इसलिए उसने मेरी राय पूछी…. और उनकी बात मुझे सही लगी। मैंने उनका वकील पत्र लिया है। इस केस के लिए मैं उनसे एक पैसा भी नहीं लूॅंगा। एक माँ अपने बेटे के खिलाफ कोर्ट जाना चाहती है, वह भी बेटे को बड़ा करने में उसने जो कष्ट उठाएं, उसकी कीमत वह मांग रही है। …. बुढ़ापे में बिना परिश्रम किये जीवन आराम से, शांति से व्यतीत हो जाए इसलिए!…. तुम इसको उनके कष्ट का परतावा समझ सकते हो। यह बात मुझे अलग और बहुत ही प्रैक्टिकल लगी।
….. यह केस लड़ना मेरे लिए एक चुनौती है। तुमने उस पर अन्याय किया है। अब देखता हूँ न्याय देवता क्या करती है, वह अंधी जरूर है… पर तुम्हारी जैसी उल्टे कलेजे वाली नहीं है।
इसलिए उनको सुकून की जिंदगी जीने के लिए आवश्यक गुजारा भत्ता तुम्हें उनको मरते दम तक देना ही पड़ेगा। सोच समझकर निर्णय लेना, यह तुम्हें भेजी गई अनौपचारिक चिट्ठी है। फैसला तुम्हारे हाथ में है। अगर तुम मना करोगे कोर्ट का रास्ता हमेशा हमारे लिए खुला है।
बेटे ने चिट्ठी पढी, बीवी ने पढी… फाड़ कर फेंक दी।
फिर कोर्ट की तरफ से उसको नोटिस आया और कोर्ट में हियरिंग शुरू हो गयी। ऐसे अनोखे माँ की यह केस उस छोटे से गांव में चर्चा का विषय बन गयी। … और मॉं केस जीत भी गयी।
बिते पूरे साल गुजारा भत्ता भेजते वक्त माँ की जिंदगी भर की मेहनत उसे याद आने लगी। बहू भी अब नरम पड़ गई थी। …पर थी तो पूरी पक्की स्वार्थी और तिकड़म चलाने वाली! वह बोली,
“इससे अच्छा तो सासू जी को अपने पास ही रखना सस्ता पड़ेगा। वह फायदे का सौदा होगा। ” पति के मन में भी यह बात उसने बोल बोल के… बोल बोल के… ठुॅंस दी… और अभी अम्मा को वापस ले जाने के लिए वह उनके घर के सामने खड़ा है।
“हाॅं! आपने सही पहचाना, मैं वही हूँ …. उस अम्मा का बदनसीब बेटा!
मेरे बीवी के मन मेंअम्मा के प्रति बहुत ज्यादा प्यार वार नहीं उमडा है। लेकिन उसका शब्द हमारे घर में अंतिम शब्द है। और ज्यादा बोलना, बीवी से बहस करना मेरे स्वभाव में ही नहीं है। “
“वकील पानसे जी की राय ली थी, उन्होंने कहा, ‘मैं किसी तरह की राय देकर उस माता पर अन्याय नहीं कर सकता। अब जो करना है वह आपको ही, … और सोच समझकर करना है। ‘ अपनी जगह वे भी सही थे। “
“अब दरवाजे पर दस्तक देकर मुझे ही अंदर जाना पड़ेगा। मन से मैं वहाँ कभी का पहुॅंच गया हूँ । … पर कदम लड़खड़ा रहे हैं। लगता है, हमारे स्वार्थी इरादे की जरा सी भी भनक उसको लग जाय, या नहीं भी लग जाय… वह स्वाभिमानी माता सब कुछ भूल कर मेरे साथ आएगी यह बात नामुमकिन ही है। “
“कृपया आप जरा आगे जाकर, झाॅंक कर देखेंगे? क्या उसको बतायेंगे कि, आपका बेटा आपको अपने घर ले जाने के लिए आया है। “
**समाप्त **
मूल मराठी कथा (जगावेगळी) –लेखक: श्री अरविंद लिमये
हिन्दी भावानुवाद – सुश्री सुनीता गद्रे
माधवनगर सांगली, मो 960 47 25 805.
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈