स्वरवसंत ट्रस्ट,सांगली यांचे तर्फे दरवर्षी पं.भीमसेन जोशी संगीत महोत्सव साजरा केला जातो. महोत्सवाचे हे सातवे वर्ष आहे.
आपल्या समुहातील कवी आणि संगीततज्ञ श्री विकास जोशी (संगीत अलंकार), यांना यावर्षीचा पं. वसंत नाथबुवा गुरव स्मृती पुरस्कार या महोत्सवात दि. 24/01/2021 रोजी प्रदान करण्यात येणार आहे.
पुरस्कार प्राप्ती बद्द्ल श्री विकास जोशी यांचे समुहातर्फे हार्दिक अभिनंदन आणि शुभेच्छा .
आपल्या समुहातील लेखिका व कवयित्री सौ.ज्योत्स्ना तानवडे यांच्या ‘मन’ या कवितेस ,मध्यवर्ती “ज्येष्ठ नागरिक संघटना, पुणे (अॅस्काॅन, पुणे)” यांनी आयोजित केलेल्या काव्यलेखन स्पर्धेत प्रथम क्रमांक (विभागून) मिळाला आहे.आपल्या समुहातर्फे त्यांचे मनःपूर्वक अभिनंदन. ??
आज आपण त्या कवितेचा आनंद घेणार आहोत.
आपल्या समुहातील लेखिका व कवयित्री सौ.ज्योत्स्ना तानवडे याचे ‘ई अभिव्यक्ती’ परिवारातर्फे
☆ “वानप्रस्थ में संगीत के रंग, प्रो शुचिस्मिता के संग” – वानप्रस्थ (वरिष्ठ नागरिकों की संस्था) का आयोजन ☆
हिसार। जनवरी १८, संगीत के मनोविज्ञान का अध्ययन करने के लिए कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय में एक शोध परियोजना चलाई गई जिसके चमत्कारी परिणाम मिले हैं। विभाग की मुखिया व संगीत विदुषी प्रो शुचि स्मिता ने यह जानकारी देते हुए बताया कि इसके तहत विद्यार्थियों के एक ग्रुप को 40 दिन तक रोज़ाना 15 मिनट के लिए वीना वादक विश्वमोहन भट की एक रचना ‘रिलैक्सेशन’ सुनाई गई। इसके बाद उनका मनोवैज्ञानिक टेस्ट लिया गया। वे अधिक तरोताजा और ऊर्जावान पाए गए।
“संगीत एकाग्रता बढ़ाता है। चंचल मन को शांत करता है। जीवन की भागदौड़ में जीवन की लय बिगड़ जाती है। संगीत इसे फिर से ठीक कर देता है”, प्रो शुचि स्मिता का कहना था। वे अभी तक 29 शोधार्थियों को पीएचडी करा चुकी हैं।
प्रो शुचि स्मिता / वानप्रस्थ की वेब गोष्ठी का दृश्य
वानप्रस्थ द्वारा आयोजित वेब गोष्ठी में उन्होंने संगीत की विभिन्न विधाओं का परिचय और फिर गीतों, ग़ज़लों और भजनों के इलावा हरियाणा व पंजाब के लोकगीतों की प्रस्तुति दी। गोष्ठी में हिसार, कुरुक्षेत्र, जम्मू, दुबई, लखनऊ, गुरुग्राम, दिल्ली, पूना, फरीदाबाद व भोपाल से लगभग 35 संगीत प्रेमी वरिष्ठ नागरिकों व अन्य ने भाग लिया।
प्रो स्मिता मुश्किल से मुश्किल राग रचना भी बड़े ही सहज भाव से गा लेती हैं। संगीत की प्रेरणा अपनी माता संतोष नारंग को नमन करते हुए उन्होंने गाया,
“मां सुनाओ मुझे वो कहानी, जिसमें राजा न हो, न हो रानी”।
स्मिता के पिता प्रो जी एल नारंग कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय में ही इंगलिश विभाग के प्रोफेसर थे। उनकी स्कूल, कॉलेज और यूनिवर्सिटी स्तर की पढ़ाई भी वहीं हुई और जॉब भी वहीं संगीत विभाग में लग गई।
“हरियाणा दिवस से पहले चार दिवसीय रत्नावली प्रोग्राम होता रहा है जहां हरियाणवी संस्कृति और लोकसंगीत को भी संवारा सजोया जा रहा था। मैं और मेरे छात्र छात्राएं हर बार इसमें बढ़ चढ़ कर हिस्सा लेते थे। उसी समय का एक लोकगीत प्रस्तुत करते हुए उन्होंने गाया,
“पाणी ल्यावण जा रही, हे मेरी सासड़ रानी, सात जणी का साथ।
कोए स्याणी, कोए याणी, भर भर पाणी, ल्या रही हे मेरी सासड़ रानी, सात जणी का साथ”।
साथ ही उन्होने बन्ना बनड़ी के एक पंजाबी लोकगीत की भी प्रस्तुति दी।
“मत्थे ते चमकण वाल, मेरे बनड़े दे।”
प्रो शुचि स्मिता कहती हैं, सत्संग और कव्वाली जैसी संगीत विधाएं एक लय व स्वर में सामूहिक गान का अनुभव देती हैं जो सभी भागीदारों में प्रेम और एकता बढ़ाता है। यह अनुभव रिश्ते निभाने में भी काम आता है। जीवन भी सुर मिलाने से ही चलता है।
“राग भीम प्लासी” अवसाद यानि डिप्रेशन को दूर करता है।
मेरे पिता अक्सर गाते थे,
‘ जलते हैं जिसके लिए, तेरी आंखों के दीये,
ढूंढ लाया हूं वही, गीत मैं तेरे लिए”।
साथ ही उन्होंने राग यमन का यह गीत भी गाया,
“रंजिश ही सही, दिल दुखाने के लिए आ,
आ फिर से मुझे छोड़ के जाने के लिए आ।”
रागों का परिचय देते हुए उन्होंने कहा कि हर राग को हर गायक अलग ढंग से गाता हैं और एक ही गायक भी अलग समय पर एक ही राग को अलग ढंग से गाता है।
ग़ज़ल की बारी आई तो प्रो स्मिता ने जगजीत सिंह की गाई सुदर्शन फाकीर की रचना को चुना।
“आज के दौर में ऐ दोस्त, ये मंज़र क्यूँ है,
ज़ख़्म हर सर पे, हर इक हाथ में पत्थर क्यूँ है?”
फिर उन्होंने पंकज उदास की इस ग़ज़ल को गाया,
“झील में चांद नज़र आए, थी हसरत उसकी,
कब से आंखों में लिए बैठे हैं, सूरत उसकी”।
इसके बाद प्रो स्मिता ने मीरा का भजन उन्होंने गाया ,” मेरो मन राम ही राम रटे रे”।
करीबन पौने तीन घंटे चली इस वेब गोष्ठी में पहली बार एक और संगीत विदुषी भोपाल से भारती वैद्यानाथन भी जुड़ी और उन्होंने एक मीठी प्रस्तुति दी, “हरि तेरो भजन कियो ना जाए”।
नोएडा से ऑनलाइन जुड़े आकाशवाणी के पूर्व सह निदेशक अरुण कुमार पासवान ने अटारी शीर्षक से एक कविता पेश की जिसमें भारत-पाक सीमा पर स्थित इस कस्बे द्वारा देखे गए नर संहार, लूट कसोट और भागम भाग की त्रासदी का भावपूर्ण वर्णन किया गया था।
वानप्रस्थ के स्थानीय सदस्यों प्रो शामसुंदर धवन, प्रो आर के सैनी, योगेश सुनेजा, डॉ प्रज्ञा कौशिक, पूनम परिणीता व प्रो राज गर्ग ने भी इस अवसर पर गीत व कविताओं की प्रस्तुति दी।
गोष्ठी का संचालन दूरदर्शन के पूर्व समाचार निदेशक अजीत सिंह ने किया। टेक्निकल कोऑर्डिनेशन प्रो सुरेश चोपड़ा ने किया।
वानप्रस्थ क्लब के महासचिव प्रो जे के डांग ने बताया कि आगामी शनिवार 23 दिसंबर को होने वाली साप्ताहिक मंगल मिलन वेब गोष्ठी में गुरु जम्भेश्वर विश्वविद्यालय के प्रो जीतेंद्र कुमार “मानसिक संतुलन कैसे बनाए रखें”, इस विषय पर आख्यान देंगे।
“फुलोरा कलेचे माहेरघर” या ग्रुपने ‘माझा आवडता कवी’ ही स्पर्धा व्हिडिओ स्वरूपात ऑनलाईन घेतली होती. त्यामधे सौ.ज्योत्स्ना तानवडे यांना चतुर्थ क्रमांक मिळाला आहे.
आपल्या समुहातील लेखिका व कवयित्री सौ.ज्योत्स्ना तानवडे याचे ‘ई अभिव्यक्ती’ परिवारातर्फे
संपूर्ण जगाला त्रस्त करून टाकलेल्या 2020 या वर्षाचे शेवटचे पाऊल आज पडत आहे.आपण सर्वजण नववर्षाच्या पाऊल खुणा पाहण्यास उत्सुक आहोत. आजच्या मावळत्या दिनकराबरोबर एक वर्ष संपेल आणि सारे जग नव्या आशाआकांक्षा घेऊन नववर्षाच्या स्वागतसाठी सज्ज असेल.
2020मधील हा शेवटचा अंक आपल्या हाती देताना आपणा सर्वांना मनापासून धन्यवाद तर आहेतच पण, येणारे नववर्ष सुख, समाधान, आनंद घेऊन येवो अशा शुभेच्छाही आपल्याला देत आहोत. या सालातील कटू क्षणांकडे पाठ फिरवून पुन्हा एकदा नव्या उमेदीने नववर्षाला सामोरे जाऊया.
☆ पत्रकार नहीं, स्टार पत्रकार बनने या फिर उद्यमी पत्रकार बनने का अनूठा अनुभव ☆
पत्राचार द्वारा कहानी, लेख और पत्रकारिता के कोर्स कराने वाले भारतवर्ष के सर्वाधिक प्रतिष्ठित संस्थान “कहानी लेखन महाविद्यालय” द्वारा आयोजित ऑनलाइन पत्रकारिता वर्कशॉप में शामिल होकर प्रतिभागियों ने स्टार पत्रकार अथवा उद्यमी पत्रकार बनने का सपना पूरा करने के गुर सीखे।
यह अनूठी कार्यशाला 25, 26 और 27 दिसंबर को तीनों दिन, तीन-तीन घंटे सवेरे 10 बजे से दोपहर 1 बजे तक चली जिसमें प्रतिभागियों को पत्रकारिता से संबंधित सारी जानकारियां तो दी ही गईं, इसके अलावा अक्सर होने वाली गलतियों से बचने के तरीके, पत्रकार के रूप में सफल होने के कुछ अनजाने गुर, कुशल पत्रकार बन पाने के लिए साधनों एवं स्रोतों का खुलासा तथा वैधानिक एवं नैतिक ढंग से आय के वैकल्पिक स्रोतों की जानकारी भी दी गई। यही नहीं, कोरोना के इस दौर में भारतवर्ष में पहली बार पत्रकारिता के ज्ञान से * सफल उद्यमी बनने के तरीकों* का भी खुलासा किया गया।
अपने चुटीले अंदाज़ के साथ नामचीन लेखक, स्तंभकार, मोटिवेशनल स्पीकर और हैपीनेस गुरू श्री पी. के. खुराना, जो मीडिया उद्योग की सर्वाधिक प्रतिष्ठित वेबसाइट के प्रथम संपादक थे, ने इस कार्यशाला का सफल संचालन किया। श्री खुराना दैनिक भास्कर, पंजाब केसरी सहित कई मीडिया घरानों व भिन्न-भिन्न प्रेस क्लबों के लिए ऐसी वर्कशॉप आयोजित करते रहे हैं। उन्होंने यह भी सुनिश्चित किया कि कार्यशाला एक आनंददायक अनुभव हो तथा उसमें व्यावहारिक गतिविधियां शामिल हों ताकि कार्यशाला के अंतिम दिन सभी प्रतिभागी अपने क्षेत्र में कार्य के लिए तैयार हो सकें।
कहानी लेखन महाविद्यालय की संचालिका श्रीमती उर्मि कृष्ण आशीर्वचन से कार्यशाला की शुरुआत और समापन संपन्न हुए। महाविद्यालय के व्यवस्थापक एवं शुभ तारिका के सह-संपादक श्री विजय कुमार का प्रबंधन हमेशा की तरह प्रशंसनीय रहा।
सभी प्रतिभागियों ने ह्वाट्सऐप के माध्यम से जीवन भर जुड़कर पारस्परिक सहयोग की नई शुरुआत भी की।
प्रस्तुति – श्री विजय कुमार, सह-संपादक ‘शुभ तारिका’ (मासिक पत्रिका)
संपर्क – 103-सी, अशोक नगर, अम्बाला छावनी-133001, मो.: 9813130512
☆ जन्म नाव: गजानन दिगंबर माडगूळकर ☆ टोपणनाव: गदिमा
☆ जन्म – 1 ओक्टोबर 1919 ☆ मृत्यु – 14 डिसेंबर 1977 ☆
☆ सम्पादकीय निवेदन ☆
आज 14 डिसेंबर. आधुनिक महाराष्ट्राचे वाल्मिकी कै. गजानन दिगंबर माडगुळकर म्हणजेच गदिमा यांचा 43 सावा स्मृतीदिन. ‘नाच रे मोरा.. सारख्या बालगीतापासून जीवनाचे तत्वज्ञान साध्या सोप्या पण अंतःकरणाला भिडणार्या ‘दैवजात दुःखे भरता…
सारख्या गीतरामायणातील गीताला जन्म देणार्या या महाकवीचा आज स्मृतीदिन. कविता, भावगीते, चित्रपटगीते, कथा, पटकथा एवढेच नव्हे तर अभिनय क्षेत्रातही आपली मोहोर उमटवणार्या या चतुरस्त्र साहित्यिकाला ई अभिव्यक्ती परिवाराकडून शब्द सुमनांजली अर्पण !