आध्यत्म/Spiritual – श्रीमद् भगवत गीता ☆ पद्यानुवाद – चतुर्दश अध्याय (12) ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

श्रीमद् भगवत गीता

हिंदी पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

चतुर्दश अध्याय

गुणत्रय विभाग योग

(सत्, रज, तम- तीनों गुणों का विषय)

 

लोभः प्रवृत्तिरारम्भः कर्मणामशमः स्पृहा ।

रजस्येतानि जायन्ते विवृद्धे भरतर्षभ ।।12।।

 

लोभ, लगन, कर्मेच्छा, कुछ पाने की चाह

बढती है, जब रजोगुण का हो उचित प्रवाह ।।12।।

 

भावार्थ :  हे अर्जुन! रजोगुण के बढ़ने पर लोभ, प्रवृत्ति, स्वार्थबुद्धि से कर्मों का सकामभाव से आरम्भ, अशान्ति और विषय भोगों की लालसा- ये सब उत्पन्न होते हैं।।12।।

 

Greed, activity,  the  undertaking  of  actions,  restlessness,  longing-these  arise  when Rajas is predominant, O Arjuna!।।12।।

 

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

ए १, शिला कुंज, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, नयागांव,जबलपुर ४८२००८

[email protected]

मो ७०००३७५७९८

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आध्यत्म/Spiritual – श्रीमद् भगवत गीता ☆ पद्यानुवाद – चतुर्दश अध्याय (11) ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

श्रीमद् भगवत गीता

हिंदी पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

चतुर्दश अध्याय

गुणत्रय विभाग योग

(सत्, रज, तम- तीनों गुणों का विषय)

 

सर्वद्वारेषु देहेऽस्मिन्प्रकाश उपजायते ।

ज्ञानं यदा तदा विद्याद्विवृद्धं सत्त्वमित्युत ।।11।।

सब इन्द्रिय में, देह की, अब हो ज्ञान प्रकाश

तब जानों कि सतो गुण का है हुआ विकास।।11।।

 

भावार्थ :  जिस समय इस देह में तथा अन्तःकरण और इन्द्रियों में चेतनता और विवेक शक्ति उत्पन्न होती है, उस समय ऐसा जानना चाहिए कि सत्त्वगुण बढ़ा है।।11।।

 

When, through every gate (sense) in this body, the wisdom-light shines, then it may be known that Sattwa is predominant.।।11।।

 

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

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आध्यत्म/Spiritual – श्रीमद् भगवत गीता ☆ पद्यानुवाद – चतुर्दश अध्याय (10) ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

श्रीमद् भगवत गीता

हिंदी पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

चतुर्दश अध्याय

गुणत्रय विभाग योग

(सत्, रज, तम- तीनों गुणों का विषय)

 

रजस्तमश्चाभिभूय सत्त्वं भवति भारत ।

रजः सत्त्वं तमश्चैव तमः सत्त्वं रजस्तथा ।।10।।

 

सतगुण होता है सजग,रज औं तम को जीत

सत तम को जीत रज, सत, रज को तम जीत।।10।।

 

भावार्थ :  हे अर्जुन! रजोगुण और तमोगुण को दबाकर सत्त्वगुण, सत्त्वगुण और तमोगुण को दबाकर रजोगुण, वैसे ही सत्त्वगुण और रजोगुण को दबाकर तमोगुण होता है अर्थात बढ़ता है।।10।।

 

Now Sattwa prevails, O Arjuna, having overpowered Rajas and Tamas; now Rajas, having overpowered Sattwa and Tamas; and now Tamas, having overpowered Sattwa and Rajas!।।10।।

 

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

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आध्यत्म/Spiritual – श्रीमद् भगवत गीता ☆ पद्यानुवाद – चतुर्दश अध्याय (9) ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

श्रीमद् भगवत गीता

हिंदी पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

चतुर्दश अध्याय

गुणत्रय विभाग योग

(सत्, रज, तम- तीनों गुणों का विषय)

 

सत्त्वं सुखे सञ्जयति रजः कर्मणि भारत ।

ज्ञानमावृत्य तु तमः प्रमादे सञ्जयत्युत ।।9।।

 

सतगुण प्राणी को सुखद, रजगुण कर्म में युक्त

तमगुण ढकता ज्ञान को, कर प्रमाद में सिक्त ।।9।।

 

भावार्थ :  हे अर्जुन! सत्त्वगुण सुख में लगाता है और रजोगुण कर्म में तथा तमोगुण तो ज्ञान को ढँककर प्रमाद में भी लगाता है।।9।।

 

Sattwa attaches  to  happiness,  Rajas  to  action,  O  Arjuna,  while  Tamas,  shrouding knowledge, attaches to heedlessness only! ।।9।।

 

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

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आध्यत्म/Spiritual – श्रीमद् भगवत गीता ☆ पद्यानुवाद – चतुर्दश अध्याय (8) ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

श्रीमद् भगवत गीता

हिंदी पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

चतुर्दश अध्याय

गुणत्रय विभाग योग

(सत्, रज, तम- तीनों गुणों का विषय)

 

तमस्त्वज्ञानजं विद्धि मोहनं सर्वदेहिनाम् ।

प्रमादालस्यनिद्राभिस्तन्निबध्नाति भारत ।।8।।

तमगुण रचता देह में प्रबल मोह का जाल

जो अज्ञान, प्रमाद में जीव को देता डाल ।।8।।

भावार्थ :  हे अर्जुन! सब देहाभिमानियों को मोहित करने वाले तमोगुण को तो अज्ञान से उत्पन्न जान। वह इस जीवात्मा को प्रमाद (इंद्रियों और अंतःकरण की व्यर्थ चेष्टाओं का नाम ‘प्रमाद’ है), आलस्य (कर्तव्य कर्म में अप्रवृत्तिरूप निरुद्यमता का नाम ‘आलस्य’ है) और निद्रा द्वारा बाँधता है।।8।।

 

But know thou Tamas to be born of ignorance, deluding all embodied beings; it binds fast, O Arjuna, by heedlessness, sleep and indolence! ।।8।।

 

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

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आध्यत्म/Spiritual – श्रीमद् भगवत गीता ☆ पद्यानुवाद – चतुर्दश अध्याय (7) ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

श्रीमद् भगवत गीता

हिंदी पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

चतुर्दश अध्याय

गुणत्रय विभाग योग

(सत्, रज, तम- तीनों गुणों का विषय)

 

रजो रागात्मकं विद्धि तृष्णासङ्गसमुद्भवम् ।

तन्निबध्नाति कौन्तेय कर्मसङ्गेन देहिनम् ।।7।।

रज गुण करता राग का भाव सहज उत्पन्न

तृष्णा औं आस वित्त को करता है सम्पन्न।।7।।

 

भावार्थ :  हे अर्जुन! रागरूप रजोगुण को कामना और आसक्ति से उत्पन्न जान। वह इस जीवात्मा को कर्मों और उनके फल के सम्बन्ध में बाँधता है।।7।।

 

Know thou  Rajas  to  be  of  the  nature  of  passion,  the  source  of  thirst  (for  sensual enjoyment) and attachment; it binds fast, O Arjuna, the embodied one by attachment to action!।।7।।

 

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

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आध्यत्म/Spiritual – श्रीमद् भगवत गीता ☆ पद्यानुवाद – चतुर्दश अध्याय (6) ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

श्रीमद् भगवत गीता

हिंदी पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

चतुर्दश अध्याय

गुणत्रय विभाग योग

(सत्, रज, तम- तीनों गुणों का विषय)

 

तत्र सत्त्वं निर्मलत्वात्प्रकाशकमनामयम् ।

सुखसङ्गेन बध्नाति ज्ञानसङ्गेन चानघ ।।6।।

 

निर्मल सतगुण आत्मा को देता सत् ज्ञान

निरोगता, सद्बुद्धि, सुख हैं उसके ही दान।।6।।

 

भावार्थ :  हे निष्पाप! उन तीनों गुणों में सत्त्वगुण तो निर्मल होने के कारण प्रकाश करने वाला और विकार रहित है, वह सुख के सम्बन्ध से और ज्ञान के सम्बन्ध से अर्थात उसके अभिमान से बाँधता है।।6।।

 

Of these,  Sattwa,  which  from  its  stainlessness  is  luminous  and  healthy,  binds  by attachment to knowledge and to happiness, O sinless one! ।।6।।

 

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आध्यत्म/Spiritual – श्रीमद् भगवत गीता ☆ पद्यानुवाद – चतुर्दश अध्याय (5) ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

श्रीमद् भगवत गीता

हिंदी पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

चतुर्दश अध्याय

गुणत्रय विभाग योग

(सत्, रज, तम- तीनों गुणों का विषय)

 

सत्त्वं रजस्तम इति गुणाः प्रकृतिसम्भवाः ।

निबध्नन्ति महाबाहो देहे देहिनमव्ययम् ।।5।।

सत, रज,तम, गुण प्रकृति से ही लेते हैं जन्म

वही देह में आत्मा को रखते हैं बंद ।।5।।

 

भावार्थ :  हे अर्जुन! सत्त्वगुण, रजोगुण और तमोगुण -ये प्रकृति से उत्पन्न तीनों गुण अविनाशी जीवात्मा को शरीर में बाँधते हैं॥5॥

 

Purity, passion and inertia-these qualities, O mighty-armed Arjuna, born of Nature, bind fast in the body, the embodied, the indestructible!।।5।।

 

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

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आध्यत्म/Spiritual – श्रीमद् भगवत गीता ☆ पद्यानुवाद – चतुर्दश अध्याय (4) ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

श्रीमद् भगवत गीता

हिंदी पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

चतुर्दश अध्याय

गुणत्रय विभाग योग

(ज्ञान की महिमा और प्रकृति-पुरुष से जगत् की उत्पत्ति)

 

सर्वयोनिषु कौन्तेय मूर्तयः सम्भवन्ति याः ।

तासां ब्रह्म महद्योनिरहं बीजप्रदः पिता ।।4।।

सभी योनि में मूर्तियाॅ होती जो उत्पन्न

उनकी सर्जक है प्रकृति, मैं हूॅ बीज समान।।4।।

 

भावार्थ :  हे अर्जुन! नाना प्रकार की सब योनियों में जितनी मूर्तियाँ अर्थात शरीरधारी प्राणी उत्पन्न होते हैं, प्रकृति तो उन सबकी गर्भधारण करने वाली माता है और मैं बीज को स्थापन करने वाला पिता हूँ।।4।।

 

Whatever forms are produced, O Arjuna, in any womb whatsoever, the great Brahma is their womb and I am the seed-giving father.।।4।।

 

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

ए १, शिला कुंज, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, नयागांव,जबलपुर ४८२००८

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आध्यत्म/Spiritual – श्रीमद् भगवत गीता ☆ पद्यानुवाद – चतुर्दश अध्याय (3) ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

श्रीमद् भगवत गीता

हिंदी पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

चतुर्दश अध्याय

गुणत्रय विभाग योग

(ज्ञान की महिमा और प्रकृति-पुरुष से जगत् की उत्पत्ति)

 

मम योनिर्महद्ब्रह्म तस्मिन्गर्भं दधाम्यहम् ।

सम्भवः सर्वभूतानां ततो भवति भारत ।।3।।

सदब्रहम (प्रकृति/योनि) में, मैं ही तो करता गभनिधान

जिससे पाता जन्म है जग में सकल जहान।।3।।

 

भावार्थ :  हे अर्जुन! मेरी महत्ब्रह्मरूप मूल-प्रकृति सम्पूर्ण भूतों की योनि है अर्थात गर्भाधान का स्थान है और मैं उस योनि में चेतन समुदायरूप गर्भ को स्थापन करता हूँ। उस जड़-चेतन के संयोग से सब भूतों की उत्पति होती है।।3।।

 

My womb is the great Brahma; in that I place the germ; thence, O Arjuna, is the birth of all beings!।।3।।

 

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर

[email protected]

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