आध्यात्म/Spiritual ☆ श्रीमद् भगवत गीता – पद्यानुवाद – एकादश अध्याय (23) ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

श्रीमद् भगवत गीता

हिंदी पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

एकादश अध्याय

(अर्जुन द्वारा भगवान के विश्वरूप का देखा जाना और उनकी स्तुति करना )

 

रूपं महत्ते बहुवक्त्रनेत्रंमहाबाहो बहुबाहूरूपादम्‌ ।

बहूदरं बहुदंष्ट्राकरालंदृष्टवा लोकाः प्रव्यथितास्तथाहम्‌ ॥

 

मुख अनेक , कई नेत्रमय बाहु औ जानु विशाल

पैर औ”  उदर अनेक हैं, दाढें हैं विकराल

भयकारी यह रूप लख व्याकुल हैं सबलोग

मैं भी हूँ भयभीत प्रभु ! देख अलौकिक योग ।।23 ।।

 

भावार्थ :  हे महाबाहो! आपके बहुत मुख और नेत्रों वाले, बहुत हाथ, जंघा और पैरों वाले, बहुत उदरों वाले और बहुत-सी दाढ़ों के कारण अत्यन्त विकराल महान रूप को देखकर सब लोग व्याकुल हो रहे हैं तथा मैं भी व्याकुल हो रहा हूँ॥23॥

 

Having beheld Thy immeasurable form with many mouths and eyes, O mighty-armed, with many arms, thighs and feet, with many stomachs, and fearful with many teeth, the worlds are  terrified and so am I!

 

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर

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आध्यात्म/Spiritual ☆ श्रीमद् भगवत गीता – पद्यानुवाद – एकादश अध्याय (22) ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

श्रीमद् भगवत गीता

हिंदी पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

एकादश अध्याय

(अर्जुन द्वारा भगवान के विश्वरूप का देखा जाना और उनकी स्तुति करना )

 

रुद्रादित्या वसवो ये च साध्याविश्वेऽश्विनौ मरुतश्चोष्मपाश्च ।

गंधर्वयक्षासुरसिद्धसङ्घावीक्षन्ते त्वां विस्मिताश्चैव सर्वे ।।22।।

 

रूद्र , वसु , आदित्य सह सिद्धों का समुदाय

विश्वदेव , अश्विनी दो , मरूत औ” पितर निकाय।

यक्ष , असुर , गंधर्व सब मिल कर के एक साथ

विस्मित हो सब तक रहे, ओर तुम्हारी नाथ ।।22।।

 

भावार्थ :  जो ग्यारह रुद्र और बारह आदित्य तथा आठ वसु, साध्यगण, विश्वेदेव, अश्विनीकुमार तथा मरुद्गण और पितरों का समुदाय तथा गंधर्व, यक्ष, राक्षस और सिद्धों के समुदाय हैं- वे सब ही विस्मित होकर आपको देखते हैं।।22।।

 

The Rudras, Adityas, Vasus, Sadhyas, Visvedevas, the two Asvins, Maruts, the manes and hosts of celestial singers, Yakshas, demons and the perfected ones, are all looking at Thee in great astonishment.।।22।।

 

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर

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आध्यात्म/Spiritual ☆ श्रीमद् भगवत गीता – पद्यानुवाद – एकादश अध्याय (21) ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

श्रीमद् भगवत गीता

हिंदी पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

एकादश अध्याय

(अर्जुन द्वारा भगवान के विश्वरूप का देखा जाना और उनकी स्तुति करना )

 

अमी हि त्वां सुरसङ्घा विशन्ति केचिद्भीताः प्राञ्जलयो गृणन्ति।

स्वस्तीत्युक्त्वा महर्षिसिद्धसङ्घा: स्तुवन्ति त्वां स्तुतिभिः पुष्कलाभिः ॥

देवताओं  के संघ जो तुममें निरत प्रवेश

हाथ जोड़कर कर रहे विनती सतत विशेष

स्वस्ति , स्वस्ति यों कह रहे ऋषि व सिद्ध के संघ

करते  है प्रार्थनायें कई ,सब मिल के एक संग ।। 21 ।।

 

भावार्थ :  वे ही देवताओं के समूह आप में प्रवेश करते हैं और कुछ भयभीत होकर हाथ जोड़े आपके नाम और गुणों का उच्चारण करते हैं तथा महर्षि और सिद्धों के समुदाय ‘कल्याण हो’ ऐसा कहकर उत्तम-उत्तम स्तोत्रों द्वारा आपकी स्तुति करते हैं।। 21 ।।

 

Verily, into Thee enter these hosts of gods; some extol Thee in fear with joined palms: “May it be well.” Saying thus, bands of great sages and perfected ones praise Thee with complete hymns.।। 21 ।।

 

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

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आध्यात्म/Spiritual ☆ श्रीमद् भगवत गीता – पद्यानुवाद – एकादश अध्याय (20) ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

श्रीमद् भगवत गीता

हिंदी पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

एकादश अध्याय

(अर्जुन द्वारा भगवान के विश्वरूप का देखा जाना और उनकी स्तुति करना )

द्यावापृथिव्योरिदमन्तरं हि व्याप्तं त्वयैकेन दिशश्च सर्वाः ।

दृष्ट्वाद्भुतं रूपमुग्रं तवेदंलोकत्रयं प्रव्यथितं महात्मन् ।। 20।।

पृथ्वी औ” आकाश बिच , अन्तर अमित अपार

सभी दिशाओं व्याप्त है प्रभु का ही अधिकार

देख तुम्हें इस रूप  में आकुल है संसार

थकित व्यथित त्रैलोक है देख विचित्र विकार  ।। 20।।

 

भावार्थ :  हे महात्मन्! यह स्वर्ग और पृथ्वी के बीच का सम्पूर्ण आकाश तथा सब दिशाएँ एक आपसे ही परिपूर्ण हैं तथा आपके इस अलौकिक और भयंकर रूप को देखकर तीनों लोक अतिव्यथा को प्राप्त हो रहे हैं।। 20।।

 

The space between the earth and the heaven and all the quarters are filled by Thee alone; having seen this, Thy wonderful and terrible form, the three worlds are trembling with fear, O  great-souled Being!।। 20।।

 

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

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आध्यात्म/Spiritual ☆ श्रीमद् भगवत गीता – पद्यानुवाद – एकादश अध्याय (19) ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

श्रीमद् भगवत गीता

हिंदी पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

एकादश अध्याय

(अर्जुन द्वारा भगवान के विश्वरूप का देखा जाना और उनकी स्तुति करना )

 

अनादिमध्यान्तमनन्तवीर्यमनन्तबाहुं शशिसूर्यनेत्रम् ।

पश्यामि त्वां दीप्तहुताशवक्त्रंस्वतेजसा विश्वमिदं तपन्तम् ।। 19।।

आदि मध्य औ” अन्त से ,रहित अमित विस्तार

जिसका बल अनुमेय न  , जिसके हाथ हजार

चंद्र – सूर्य हैं आँख दो , मुख ज्वाला- अंगार

जिसके दीप्त प्रकाश से भासित यह संसार ।। 19।।

भावार्थ :  आपको आदि, अंत और मध्य से रहित, अनन्त सामर्थ्य से युक्त, अनन्त भुजावाले, चन्द्र-सूर्य रूप नेत्रों वाले, प्रज्वलित अग्निरूप मुखवाले और अपने तेज से इस जगत को संतृप्त करते हुए देखता हूँ।। 19।।

 

I see Thee without beginning, middle or end, infinite in power, of endless arms, the sun and the moon being Thy eyes, the burning fire Thy mouth, heating the entire universe with Thy radiance.

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

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आध्यात्म/Spiritual ☆ श्रीमद् भगवत गीता – पद्यानुवाद – एकादश अध्याय (17) ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

श्रीमद् भगवत गीता

हिंदी पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

एकादश अध्याय

(अर्जुन द्वारा भगवान के विश्वरूप का देखा जाना और उनकी स्तुति करना )

 

किरीटिनं गदिनं चक्रिणं च तेजोराशिं सर्वतो दीप्तिमन्तम् ।

पश्यामि त्वां दुर्निरीक्ष्यं समन्ताद्दीप्तानलार्कद्युतिमप्रमेयम् ।। 17।।

मुकुट गदा औ” चक्र से तेजपुंज द्युतिमान

देख रहा मैं आपको अनायास विद्यमान।

दीप्ति अनल औ” सूर्य सम,  आभा भव्य ललाम

चकाचौंध है प्रखर , प्रभु ! दर्शन मुश्किल काम ।। 17।।

 

भावार्थ :  आपको मैं मुकुटयुक्त, गदायुक्त और चक्रयुक्त तथा सब ओर से प्रकाशमान तेज के पुंज, प्रज्वलित अग्नि और सूर्य के सदृश ज्योतियुक्त, कठिनता से देखे जाने योग्य और सब ओर से अप्रमेयस्वरूप देखता हूँ।। 17।।

 

I see  Thee  with  the  diadem,  the  club  and  the  discus,  a  mass  of  radiance  shining everywhere, very hard to look at, blazing all round like burning fire and the sun, and immeasurable.।। 17।।

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आध्यात्म/Spiritual ☆ श्रीमद् भगवत गीता – पद्यानुवाद – एकादश अध्याय (16) ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

श्रीमद् भगवत गीता

हिंदी पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

एकादश अध्याय

(अर्जुन द्वारा भगवान के विश्वरूप का देखा जाना और उनकी स्तुति करना )

 

अनेकबाहूदरवक्त्रनेत्रंपश्यामि त्वां सर्वतोऽनन्तरूपम् ।

नान्तं न मध्यं न पुनस्तवादिंपश्यामि विश्वेश्वर विश्वरूप ।। 16।।

 

बाहु उदर मुख नेत्र कई , अगनित रूप  अनन्त

सभी तरफ बस आप हैं , कहीं न कोई अन्त

विश्वेसर विस्मित हूँ मैं , देख तुम्हारा रूप

आदि न अन्त न मध्य है , सब है अजब अनूप ।। 16।।

 

भावार्थ :  हे सम्पूर्ण विश्व के स्वामिन्! आपको अनेक भुजा, पेट, मुख और नेत्रों से युक्त तथा सब ओर से अनन्त रूपों वाला देखता हूँ। हे विश्वरूप! मैं आपके न अन्त को देखता हूँ, न मध्य को और न आदि को ही॥16॥

 

I see Thee of boundless form on every side, with many arms, stomachs, mouths and eyes; neither the end nor the middle nor also the beginning do I see, O Lord of the universe, O Cosmic Form!

 

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

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आध्यात्म/Spiritual ☆ श्रीमद् भगवत गीता – पद्यानुवाद – एकादश अध्याय (15) ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

श्रीमद् भगवत गीता

हिंदी पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

एकादश अध्याय

(अर्जुन द्वारा भगवान के विश्वरूप का देखा जाना और उनकी स्तुति करना )

 

अर्जुन उवाच

पश्यामि देवांस्तव देव देहे सर्वांस्तथा भूतविशेषसङ्घान् ।

ब्रह्माणमीशं कमलासनस्थमृषींश्च सर्वानुरगांश्च दिव्यान् ।। 15।।

अर्जुन ने कहा –

देव तुम्हारी देह में बसा , सकल संसार

एक साथ सब देवता , अपलक रहे निहार

कमलासन पर जगत्पति , ब्रम्हा रहे विराज

ऋषि मुनियों की भीड़ है ,साथ वृहत अहिराज ।। 15।।

 

भावार्थ :  अर्जुन बोले- हे देव! मैं आपके शरीर में सम्पूर्ण देवों को तथा अनेक भूतों के समुदायों को, कमल के आसन पर विराजित ब्रह्मा को, महादेव को और सम्पूर्ण ऋषियों को तथा दिव्य सर्पों को देखता हूँ।। 15।।

 

I behold all the gods, O God, in Thy body, and hosts of various classes of beings; Brahma, the Lord, seated on the lotus, all the sages and the celestial serpents!।। 15।।

 

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

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आध्यात्म/Spiritual ☆ श्रीमद् भगवत गीता – पद्यानुवाद – एकादश अध्याय (14) ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

श्रीमद् भगवत गीता

हिंदी पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

एकादश अध्याय

(संजय द्वारा धृतराष्ट्र के प्रति विश्वरूप का वर्णन )

ततः स विस्मयाविष्टो हृष्टरोमा धनञ्जयः ।

प्रणम्य शिरसा देवं कृताञ्जलिरभाषत ।। 14।।

अति विस्मित , रोमांचित , हो वह पाण्डुकुमार

हाथ जोड़ , सिर झुका के करने लगा पुकार ।। 14।।

 

भावार्थ :  उसके अनंतर आश्चर्य से चकित और पुलकित शरीर अर्जुन प्रकाशमय विश्वरूप परमात्मा को श्रद्धा-भक्ति सहित सिर से प्रणाम करके हाथ जोड़कर बोले।। 14।।

 

Then, Arjuna, filled with wonder and with hair standing on end, bowed down his head to the Lord and spoke with joined palms.।। 14।।

 

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर

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आध्यात्म/Spiritual ☆ श्रीमद् भगवत गीता – पद्यानुवाद – एकादश अध्याय (13) ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

श्रीमद् भगवत गीता

हिंदी पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

एकादश अध्याय

(संजय द्वारा धृतराष्ट्र के प्रति विश्वरूप का वर्णन )

 

तत्रैकस्थं जगत्कृत्स्नं प्रविभक्तमनेकधा ।

अपश्यद्देवदेवस्य शरीरे पाण्डवस्तदा ।। 13 ।।

तव ईश्वर की देह में , ही सारा संसार

अर्जुन ने देखा , प्रकट – विघटित विविध प्रकार ।। 13 ।।

 

भावार्थ :  पाण्डुपुत्र अर्जुन ने उस समय अनेक प्रकार से विभक्त अर्थात पृथक-पृथक सम्पूर्ण जगत को देवों के देव श्रीकृष्ण भगवान के उस शरीर में एक जगह स्थित देखा।। 13 ।।

.There, in the body of the God of gods, Arjuna then saw the whole universe resting in the one, with its many groups.।। 13 ।।

 

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर

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