श्रीमद् भगवत गीता
हिंदी पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
एकादश अध्याय
(संजय द्वारा धृतराष्ट्र के प्रति विश्वरूप का वर्णन )
दिवि सूर्यसहस्रस्य भवेद्युगपदुत्थिता ।
यदि भाः सदृशी सा स्याद्भासस्तस्य महात्मनः ।। 12।।
नभ में सूर्य हजार का ,हो जैसे उत्थान
ऐसा तेज स्वरूप था ,चमक थी दिव्य महान ।। 12।।
भावार्थ : आकाश में हजार सूर्यों के एक साथ उदय होने से उत्पन्न जो प्रकाश हो, वह भी उस विश्व रूप परमात्मा के प्रकाश के सदृश कदाचित् ही हो।। 12।।
If the splendour of a thousand suns were to blaze out at once (simultaneously) in the sky, that would be the splendour of that mighty Being (great soul).।। 12।।
प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर