(हम प्रतिदिन इस ग्रंथ से एक मूल श्लोक के साथ श्लोक का हिन्दी अनुवाद जो कृति का मूल है के साथ ही गद्य में अर्थ व अंग्रेजी भाष्य भी प्रस्तुत करने का प्रयास करेंगे।)
(हम प्रतिदिन इस ग्रंथ से एक मूल श्लोक के साथ श्लोक का हिन्दी अनुवाद जो कृति का मूल है के साथ ही गद्य में अर्थ व अंग्रेजी भाष्य भी प्रस्तुत करने का प्रयास करेंगे।)
(हम प्रतिदिन इस ग्रंथ से एक मूल श्लोक के साथ श्लोक का हिन्दी अनुवाद जो कृति का मूल है के साथ ही गद्य में अर्थ व अंग्रेजी भाष्य भी प्रस्तुत करने का प्रयास करेंगे।)
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( दोनों सेनाओं के प्रधान शूरवीरों की गणना और सामर्थ्य का कथन )
अस्माकं तु विशिष्टा ये तान्निबोध द्विजोत्तम ।
नायका मम सैन्यस्य सञ्ज्ञार्थं तान्ब्रवीमि ते ॥
कौरव सेना का वर्णन-
अपने पक्ष जो प्रमुख हैं,उन्हें सुनें व्दिज श्रेष्ठ
निज सेना के नायकों में , जो परम् विशिष्ट।।7।।
भावार्थ : हे ब्राह्मणश्रेष्ठ! अपने पक्ष में भी जो प्रधान हैं, उनको आप समझ लीजिए। आपकी जानकारी के लिए मेरी सेना के जो-जो सेनापति हैं, उनको बतलाता हूँ॥7॥
“Know also, O best among the twice-born, the names of those who are the most distinguished amongst ourselves, the leaders of my army! These I name to thee for thy information.॥7॥
(हम प्रतिदिन इस ग्रंथ से एक मूल श्लोक के साथ श्लोक का हिन्दी अनुवाद जो कृति का मूल है के साथ ही गद्य में अर्थ व अंग्रेजी भाष्य भी प्रस्तुत करने का प्रयास करेंगे।)
( दोनों सेनाओं के प्रधान शूरवीरों की गणना और सामर्थ्य का कथन )
अत्र शूरा महेष्वासा भीमार्जुनसमा युधि ।
युयुधानो विराटश्च द्रुपदश्च महारथः ।।4।।
भीमार्जुन सम वीर है , रण में शूर महान
ध्रुपद विराट औ सात्यकी ,धनुधर कुशल समान।।4।।
धृष्टकेतुश्चेकितानः काशिराजश्च वीर्यवान्।
पुरुजित्कुन्तिभोजश्च शैब्यश्च नरपुङवः ।।5।।
धृष्टकेतु,चेकितान है, काशिराज बलवान
पुरूजित,कुंतीभोज, सब नर श्रेष्ठ,शैव्य समान।।5।।
युधामन्युश्च विक्रान्त उत्तमौजाश्च वीर्यवान्।
सौभद्रो द्रौपदेयाश्च सर्व एव महारथाः ।।6।।
युधामन्यु सा पराक्रमी उतमौजा बलवान
अभिमन्यु व द्रौपदी सुत सब रथी महान।।6।।
भावार्थ : इस सेना में बड़े-बड़े धनुषों वाले तथा युद्ध में भीम और अर्जुन के समान शूरवीर सात्यकि और विराट तथा महारथी राजा द्रुपद, धृष्टकेतु और चेकितान तथा बलवान काशिराज, पुरुजित, कुन्तिभोज और मनुष्यों में श्रेष्ठ शैब्य, पराक्रमी युधामन्यु तथा बलवान उत्तमौजा, सुभद्रापुत्र अभिमन्यु एवं द्रौपदी के पाँचों पुत्र- ये सभी महारथी हैं॥4-6॥
4. “Here are heroes, mighty archers, equal in battle to Bhima and Arjuna, Yuyudhana, Virata and Drupada, of the great car (mighty warriors),
5. “Drishtaketu, Chekitana and the valiant king of Kasi, Purujit, and Kuntibhoja and Saibya, the best of men,
6. “The strong Yudhamanyu and the brave Uttamaujas, the son of Subhadra (Abhimanyu, the son of Arjuna), and the sons of Draupadi, all of great chariots (great heroes)
(हम प्रतिदिन इस ग्रंथ से एक मूल श्लोक के साथ श्लोक का हिन्दी अनुवाद जो कृति का मूल है के साथ ही गद्य में अर्थ व अंग्रेजी भाष्य भी प्रस्तुत करने का प्रयास करेंगे।)
(हम प्रतिदिन इस ग्रंथ से एक मूल श्लोक के साथ श्लोक का हिन्दी अनुवाद जो कृति का मूल है के साथ ही गद्य में अर्थ व अंग्रेजी भाष्य भी प्रस्तुत करने का प्रयास करेंगे।)
(हम प्रतिदिन इस ग्रंथ से एक मूल श्लोक के साथ श्लोक का हिन्दी अनुवाद जो कृति का मूल है के साथ ही गद्य में अर्थ व अंग्रेजी भाष्य भी प्रस्तुत करने का प्रयास करेंगे।)
(हम प्रतिदिन इस ग्रंथ से एक मूल श्लोक के साथ श्लोक का हिन्दी अनुवाद जो कृति का मूल है के साथ ही गद्य में अर्थ व अंग्रेजी भाष्य भी प्रस्तुत करने का प्रयास करेंगे।)
वर्तमान समय विज्ञान का युग है। भौतिकवाद विश्व में परिव्याप्त है। विज्ञान ने छोटे बड़े विभिन्न यंत्रो और उनके सहयोग से नये-नये उत्पादों को गति दी है बहुमुखी विकास ने प्रखर बाजारवाद को जन्म दिया है। मानव की वृत्ति और रूचि में विकार हो गया है। धन अर्जन और उसके संग्रह तथा संवर्धन की मनोवृत्ति विकसित हुई है। धन का महत्व और प्रभाव बहुत बढ़ गया है पर दुर्भाग्य है कि इसी के परिणाम स्वरूप समाज का चारित्रिक पतन हुआ है। नौतिक मूल्यों का निरंतर ह्नास हो रहा है। धर्म निरपेक्ष राजनीति ने धर्म की उपेक्षा की है अतः धार्मिक भावना पर आघात हुआ हैं मन असंयमित और उच्छृंखल हो गया हैं। नई पीढ़ी के आचरण में पुराना धार्मिक भाव दिखाई नहीं देता । भड़कीले दिखावों की वृद्धि हुई है। सारा वातावरण बदला-बदला है। प्रेम, सहायोग, सद्भाव सहानुभूति, उदारता, ईमानदारी और कर्म निष्ठा के मूल्यवान मानवीय मूल्यों की आभा कम हुई है। स्वार्थ परता बढ़ी है। आर्थिक विषमता और वर्ग भेद को बढ़ावा मिला है। सारा विकास धन मूलक एवं एकांगी दिखता हैं परिस्थितियों में का बारीक विश्लेषण तो यही बताता है कि समाज में असमानता असंवेदनशीलता और असहयोग की भावना ने बढ़ती हुई भौतिक सुविधाओं के बीच भी, दुख और दैन्य को कम नहीं किया हैं उल्टे मानसिक वेदनायें बढ़ाई हंै और वे गुण जो यक्ति को व्यक्ति से जोड़ते है उनका सामयिक विकास नहीं हो पा रहा है। धार्मिक विचार जो मन में मृदुता और उदारता घोलते है, उनका घर परिवार में बड़े-बूढ़ों से जो शिक्षण और आदर्श मिलना चाहिये वह नहीं मिल पा रहा है। व्यस्तता के कारण समयाभाव ने जीवन सारणी को बिलकुल नया मोड़ दे दिया है। परिणामतः शारीरिक, मानसिक न सामाजिक विकृतियों ने जन्म ले लिया है। जीवन में सरलता के स्थान पर जटिलता बढ़ती जा रही है।
हमारा भारत जो कभी अपने मानवीय गुणों तथा धार्मिक आचरण और आध्यात्मिक चेतना के कारण अद्वितीय था और विश्व गुरू कहलाता था आज पश्चिम की अनावश्यक नकल के कारण अपनी उच्च चिंतन धारा से विमुख सा हो चला दिखाता है। हमारा देश आध्यात्मिक धरोहर का धनी है। वेदों, उपनिषदों के साथ गीता और रामायण सरीखे ऐसे उत्कृष्ट ग्रंथ है जिनमें मानवीय आदर्श और जीवन की कला का विशद विवेचन और मार्गदर्शन सुलभ है। ये विश्व साहित्य के अनुपम ग्रंथ है परन्तु आज अधिकांश लोगों का ध्यान उस और नहीं जाता। इनका अनुशीलन हमें जीवन में नयी दिशा दे सकता है। जो उनका पठन, चिन्तन, मनन करता है वह सदाचारी, सहिष्णु और विवेकी बनकर उत्थान कर सकता है। अपना और समाज का कल्याण कर सकता है तथा वास्तविक आनन्द प्राप्त कर सकता है। दोनों ंमें अनेकों ऐसे सरल सूत्र हैं जो मंत्रों की भाॅति सरलता से अपनाये जा सकते है और आदर्श जीवन जिया जा सकता है।
तुलसी दास जी कृत ‘‘रामचरित मानस‘‘ तो हिन्दी में है परन्तु योगिराज भगवान कृष्ण के मुख से उद्भूत गीता संस्कृत भाषा में है। बहुत से पढ़े लिखे विद्वान भी संस्कृत भाषा के ज्ञान के अभाव में उसे पढ़ और समझ नहीं पाते। इसी दृष्टि से मेरे मन में उसका हिन्दी में श्लोकशः सरल अनुवाद उपलब्ध करने का भाव जगा।
ईश्वर की कृपा से अनुवाद बहुत अच्छा बन पड़ा है। प्रत्येक मूल श्लोक के साथ श्लोक का हिन्दी अनुवाद जो कृति का मूल है के साथ ही गद्य में अर्थ व अंग्रेजी भाष्य भी दिया गया है, जिससे हर कोई पढ़ सके समझ सके, और गीता के मूल पाठ सा आनन्द लेते हुये चिन्तन-मनन कर सके , व यह वैश्विक रूप से उपयोगी पुस्तक बन सके . मेरे पुत्र विवेक रंजन श्रीवास्तव ने कृति को इस स्वरूप में प्रस्तुत करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
मुझे विश्वास है कि सुधी पाठक कम से कम उत्सुकता वश इस गीतानुवाद को पढ़कर लाभान्वित हो सकेंगे। कुछ थोड़े पाठक भी यदि इस से लाभ पा सके तो मैं अपने श्रम को सफल समझूंगा।
जन साधारण से मेरा सादर विनम्र निवेदन है कि गीता व रामायण सरीखे पवित्र अद्धुत हितकारी ग्रंथों का आत्मशुद्धि और शांति के लिये प्रतिदिन समय निकाल कर पारायण अवश्य करें। ये सदाचार और आनंद देने वाले विश्व स्तरीय साहित्यिक ग्रंथ है। अस्तु।
(कल से हम प्रतिदिन इस ग्रंथ से एक मूल श्लोक के साथ श्लोक का हिन्दी अनुवाद जो कृति का मूल है के साथ ही गद्य में अर्थ व अंग्रेजी भाष्य भी प्रस्तुत करने का प्रयास करेंगे।)
(हम गुरुवर प्रो चित्रभूषण श्रीवास्तव ‘विद्ग्ध‘ एवं उनके सुपुत्र श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव जी के विशेष आभारी हैं जिन्होने उपरोक्त ग्रंथ
e-abhivyakti.com में प्रकाशित करने हेतु उपलब्ध किया है।)