ई-अभिव्यक्ति: संवाद– 7
आशा करता हूँ आपको e-abhivyakti के होली विशेषांक की रचनाएँ पसन्द आई होंगी जिन्हें मित्र एवं वरिष्ठ रचनाकारों ने बड़ी मेहनत से तैयार की थीं।
वास्तव में 21 मार्च को मात्र होली पर्व ही नहीं था अपितु और भी महत्वपूर्ण राष्ट्रीय/अंतरराष्ट्रीय दिवस भी थे। इनमें दो का उल्लेख करना चाहूँगा।पहला National Single Parent Day – 21st March और दूसरा विश्व कविता दिवस – 21 मार्च। National Single Parent Day – 21st March के उपलक्ष में सुश्री स्वपना अमृतकर की भावप्रवण मराठी रचना “माऊली” प्राप्त हुई। शेष रचनाएँ “विश्व कविता दिवस” से संबन्धित हैं।
जब कभी कविता की चर्चा होती है और मैं अपना आकलन करने की चेष्टा करता हूँ तो उन हस्तियों में हिन्दी के कुछ चर्चित नाम हैं डॉ. राजकुमार तिवारी “सुमित्र”, डॉ. विजय तिवारी “किसलय”, डॉ. सुरेश कुशवाहा “तन्मय” एवं सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा।
अभी हाल ही में मेरा परिचय मराठी के समकालीन वरिष्ठ कवि कविराज विजय यशवंत सातपुते जी से हुआ। इनके काव्य एवं साहित्य के प्रति समर्पण की भावना से मैं हतप्रभ हूँ। इसी संदर्भ में मराठी के सशक्त हस्ताक्षरों से परिचय हुआ। इनमें कुछ चर्चित नाम हैं जैसे सुश्री प्रभा सोनवणे, सुश्री रंजना लसणे, सुश्री स्वप्ना अमृतकर, सुश्री आरूशी दाते, श्री दीपक करंदीकर, श्री टीकम शेखावत, श्री सुजित कदम आदि। संयोगवश मैं इनमें से श्री दीपक जी के अतिरिक्त किसी से भी व्यक्तिगत नहीं मिल सका किन्तु, इनका साहित्य पढ़ते-पढ़ते इनकी छवि अवश्य कहीं न कहीं मस्तिष्क में अंकित हो गई है।
इन सबके काव्य संयोजन में एक बात जो मुझे इनसे जोड़ती है वह है इन सबका संवेदनशील हृदय, शब्दों का चयन, मनोभावनाओं का उत्कृष्ट शाब्दिक चित्रण और भाषा पर नियंत्रण।
इस संदर्भ में मैं अपनी कविता “Words ….. and Poetry” की निम्न पंक्तियाँ आपसे साझा करना चाहता हूँ।
My words
never sleep.
When you are sleeping
then
and
even when I sleep
then too.
These words are
my existence
my identity.
When the world sleeps
in their own sleep,
then these words
awake me
and
make me feel that
some words are innocent
unknown to each other
I try to associate them
in my vocabulary
in my brain
and
try to tell them –
It is only their identity.
These words
sometimes
correlate with each other
and
sometimes
slip from the hand
slip from the heart
and
slip away
far away …
None can
bind them,
one’s brain even
and
even boundaries of
the nations too.
Whenever,
I feel lonely
alone
in silence,
these words
try to tell me
songs of lakes
and
songs of springs.
Breeze over
green fields
and
green meadows.
Fearful stories
of hills
dark forests
and
history buried
in and under
the historical forts.
These words have
their own identity
in my heart
in my vocabulary.
My all words are
superb
extremely superb
to me.
Sometimes,
I get
some insensitive words
in the journey of life
they disturb me.
I had to keep them away
then only
I could create such poetry
from the remaining words.
आज बस इतना ही।
हेमन्त बावनकर