कवी राज शास्त्री
(कवी राज शास्त्री जी (महंत कवी मुकुंदराज शास्त्री जी) मराठी साहित्य की आलेख/निबंध एवं कविता विधा के सशक्त हस्ताक्षर हैं। मराठी साहित्य, संस्कृत शास्त्री एवं वास्तुशास्त्र में विधिवत शिक्षण प्राप्त करने के उपरांत आप महानुभाव पंथ से विधिवत सन्यास ग्रहण कर आध्यात्मिक एवं समाज सेवा में समर्पित हैं। विगत दिनों आपका मराठी काव्य संग्रह “हे शब्द अंतरीचे” प्रकाशित हुआ है। ई-अभिव्यक्ति इसी शीर्षक से आपकी रचनाओं का साप्ताहिक स्तम्भ प्रकाशित कर रहा है। आज प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण रचना “हे भरलं आभाळ…”)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – हे शब्द अंतरीचे # 17 ☆
☆ हे भरलं आभाळ… ☆
हे भरलं आभाळ…
सहज रिचवलं
उष्णता क्षमली
वातावरण बहरलं…०१
हे भरलं आभाळ…
किमया देवाची
थेंब थेंब पाणी
कहाणी जीवनाची…०२
हे भरलं आभाळ…
अंधार पडला क्षणात
जलधारा बरसल्या
पाऊस आला जोरात…०३
हे भरलं आभाळ…
कधी तसंच राहिलं
माणसाचे क्रूरकर्म
आभाळाला डागलं… ०४
हे भरलं आभाळ…
तसं मायेचं असावं
सुजलाम सुफलाम
सर्व जग बनावं…०५
© कवी म.मुकुंदराज शास्त्री उपाख्य कवी राज शास्त्री.
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