☆ पुस्तक चर्चा ☆ आत्मकथ्य – ‘रुद्र्देहा’ ☆ श्रीमती प्रतिमा अखिलेश एवं श्री अखिलेश सिंह श्रीवास्तव ‘दादूभाई’ ☆
पुस्तक – रुद्र्देहा
लेखक द्वय – श्रीमती प्रतिमा अखिलेश एवं श्री अखिलेश सिंह श्रीवास्तव ‘दादूभाई’
प्रकाशक – उत्कर्ष प्रकाशन, मेरठ (उत्तर प्रदेश)
मूल्य – 250 रु
पृष्ठ संख्या – 296
अमेज़न लिंक ==>> रुद्रदेहा
यह उपन्यास और मन की बात… श्रीमती प्रतिमा अखिलेश एवं श्री अखिलेश सिंह श्रीवास्तव ‘दादूभाई’
[मध्य प्रदेश के सिवनी निवासी विद्वान लेखक श्री अखिलेश श्रीवास्तव उर्फ दादूभाई एवं पैनी लेखनी की धनी विख्यात कवयित्री व लेखिका श्रीमती प्रतिमा अखिलेश जी द्वारा लिखित युगनायिका नर्मदा की अद्भुत गाथा को इस पुस्तक में बड़े ही रोचक अंदाज में प्रस्तुत किया गया है जिसके लिए दोनों प्रबुद्ध कलमकारों को साधुवाद…भावुक असरदार भाषा-शैली पुस्तक ‘रुद्रदेहा’ को प्रभावकारी बनाते हैं जो लेखकों को विद्वता की श्रेणी में ला खड़ा करते हैं। मां नर्मदा के विविध सन्दर्भों का गहन अध्ययन मंथन कर इस पुस्तक को लेखनी दी गयी है जिसका भास पाठकों को स्वतः ही हो जायेगा कि पाठक एक बार कथा पढ़ना आरम्भ करे तो पूरी पुस्तक धारा-प्रवाह पढ़ जाये…उसमें डूबता चला जाये।]
नर्मदा! हमारी नर्मदा; प्रबोधिनी नर्मदा; जीवन-तारिणी नर्मदा; विचारों को विराटता देने वाली नर्मदा; संस्कृति और सभ्यता परिवर्द्धनी नर्मदा; शुष्क धरा की आस नर्मदा; प्यासे कंठों का तारल्य नर्मदा; सागर को समृद्ध करने वाली नर्मदा; आश्रयदात्री नर्मदा; वर्षभोग्य आजीविका और भोजन प्रदायिनी नर्मदा; लोकजीवन रक्षक नर्मदा; क्षीरवाहिनी नर्मदा; ग्रंथों, मन्त्रो की प्रणयन स्थली नर्मदा; उदीयमान सौभाग्य दायिनी नर्मदा; दर्शन मात्र से कल्याणकारी नर्मदा; मेकलसुता नर्मदा; धरा की पवित्र जलधार, मुना, मुरंदला, मुरला, तमसा, मंदाकनी, विपाशा, शिवतनया, रुद्र्देहा, नर्मदा…! नर्मदा… !! नर्मदा…!!! कोटिशः प्रणाम…!!! इन्हीं अर्पित भावों के साथ साकार हूई इस कृति की बात आपसे करता हूँ।
उमारुद्रांगसंभूता नर्मदा! क्या यह शिव तनया है, क्या यह देवी है, क्या यह एक नदी है या कुछ और…? कौन है यह, कहाँ से आई, क्यों रखते हैं लोग इतनी श्रद्धा…? इन सभी प्रश्नों का उत्तर एक है- ‘आस्था-भाव…!’ जो जिस भाव से देखेगा, चाहेगा वह उसी भाव-से दिखेगी। मान लो तो माता अन्यथा जल राशि, एक नदी।
नर्मदा समानता का वह उत्स है, जिससे सभी लाभांवित होते हैं। हमारे भाव ही इसे हमारे दृष्टि-सम्मुख, भावानुकूल प्रस्तुत करते हैं, अन्यथा वह स्वयं तो शील-सौरभ की सुगंध बिखेरती, जीवन के भूषण को बाँटती, विद्युल्लता-से चली जा रही है।
वह दिवस अविस्मरणीय है जब मैं और प्रतिमा नर्मदा सेवी अमृतलाल वेगड़ जी (दादा) के निवास पर उनसे भेंट हेतु गए। याद है, चाची जी ने अदरक छीलते हुए सहज भाव-से मुस्कराते हुए कहा था- “तुम दोनों अच्छा लिखते हो; नर्मदा मैया पर भी लिखो।” जिस पर वेगड़ जी ने भी ज़ोर देते हुए कहा- “हाँ! तुम भी नर्मदा-संतान हो तो दो कोई अक्षर भेंट माई को।” हमने कहा, “जी निश्चय कर के निकले हैं, अवश्य कुछ सृजन करेंगे नर्मदा पर, किंतु आशीष वचन तो आपको ही लिखना होगा।” दुःखद! समय ने हमें यह सुअवसर ही नहीं दिया, दादा अनंत की परिक्रमा पर चले गए।
हम ग्वारीघाट माँ नर्मदा के दर्शन हेतु गए। पूजा उपरांत एक दूसरे से पूछा, “क्या माँगा…?” दोनों का उत्तर एक ही था, “माँ हमारी लेखनी को आशीर्वाद दो तुम पर कुछ लिख सकें।”
सिवनी, अपने घर पहुँच के हम इसी विषय पर चर्चा करते रहे, क्या लिखें ? स्वयं से याचित अनुत्तरित प्रश्नों के साथ कुछ दिन और बीते। खुले हृदय-से स्वीकार करते हैं, आस्था को परिभाषा में नहीं बाँधा जा सकता, यह भाव है और आत्मा-से अनुभासित होता है। यह माँ नर्मदा का ही प्रभाव था कि हमें एक साथ नदी की गाथा, कन्या रूप में लिखने का विचार आया। हम विस्मित थे कि एक ही दिन, एक साथ दोनों के मन में समान विचार कैसे आए।
हमने उपन्यास का शुभारंभ किया ही था कि संयोग वश अठारह वर्ष से प्रतिक्षित हमारा वाहन द्वारा नर्मदा-परिक्रमा का कार्यक्रम बन गया। यह परिक्रमा-काल हम पति-पत्नी की लेखनी को अनेक चित्र; कई बिंब दिखा गया जो ‘रुद्रदेहा’ के पृष्ठों में हमारे विचारों के साथ मित्रता कर कथा-अंश बने। जिन साधु-संतों, नर्मदा-भक्तों ने हमारे कल्पनाश्रित उपन्यास के विषय को सुना, वे भाव-विभोर हो उठे परिणामतः हमारे प्रेरणा-द्वार और खुलते गए। इसी प्रेरणा की फलश्रुति है कि इस उपन्यास के पूर्व नर्मदा-परिक्रमा पर हमने एक वृत्त-चित्र भी बनाया जो यू-टयूब पर हमारे ‘कवितालेख’ चेनल पर देखा जा सकता है।
‘रुद्र्देहा’ अर्थात रूद्र-सी पवित्र देह वाली एक ऐसी कन्या की कथा जिसका जन्म देवों के देव महादेव शिव के अंश रूप में हुआ। जल-सिद्धि, औषधीय-ज्ञान, प्रकृति-प्रेम, शस्त्र-ज्ञान, शास्त्र-सामर्थ्य, मानवता, बंधुत्व भावना, प्रेम इस कन्या के भूषण हैं।
यह गाथा है उस काल कि जब सभ्यता की कोंपलें फूट रही थीं; यह गाथा है उस किशोरी शांकरी की जिसे दैवीय सामर्थ्य प्राप्त था, जिसका जीवन पश्चिम-गामिनी जलधार के भौगोलिक स्वरूप-से मेल खाता था; यह गाथा है उस नर्मदांश की जिसने मानव को आखेट युग-से कृषि-युग की और मोड़ा; यह गाथा है उस ग्रामीण बाला मेकलसुता, मुरला की जो नर्मदा रूप में लोक-कल्याण करती है, साभ्यतिक विकास सुनिश्चित करती है तो दूसरी ओर रण सिद्ध ज्वाला, रुद्रदेहा रूप धारण कर बुराई का अंत व असुरों का संहार करती है।
एक बात पूर्णतः स्पष्ट करना चहूँगा कि न तो यह कृति एतिहासिक ग्रंथ है; न ही शोधग्रंथ और न ही कोई धर्मग्रंथ है। यह मात्र सरल, सीधे, साहित्यिक आनंद के उद्देश्य-से लोक-कथाओं, मान्यताओं, जन-चर्चाओं के साथ हमारे भावों और प्रमुखतः कल्पनाओं का लिखित रूप है अतः सुधि-पाठक किंचित मात्र भी भ्रमित न हों और इसे हमारी आस्थामई कल्पना की फलश्रुति रूप में स्वीकारें।
प्राचीनकाल में सतकर्मी मानवों को अमरत्व प्रदान करने के लिए उनके नाम से प्राकृतिक उपादानो के नाम रखे जाते थे; उदाहणार्थ– ध्रुव के नाम पर ध्रुव तारा, सभ्यता और संस्कृति संवर्धक सात महा-ऋषियों के नाम पर सप्तऋषि, ग्रहों के नाम, जैसे- ब्राहस्पति, शनि इत्यादि। इसी प्रकार पर्वतों और नदियों के नाम भी रखे गए। आज भी इतिहास प्रसिद्ध लोगों के नाम पर मार्गों, बाँधों, यहाँ तक कि कल्याणकारी योजनाओं के नाम रखे जाते हैं।
हमारे उपन्यास की नायिका आम्रकूट के प्रधान, मेकल की सुपुत्री शिवांश रूप में जन्मी शांकरी, देवयोग-से दिव्य शक्ति संपन्न है। साभ्यता के विकास कार्य से इसका व्यक्तित्व और कृतित्व इतना विशाल हुआ कि इसके समक्ष देव, गंधर्व, नाग, वराह, असुर, ऋषि, राजा, लोक-जन सभी प्रणिपात हो गए और वह एक युग-नायिका के रूप में प्रसिद्ध हुई। इसी संदर्भ तले जल-नर्मदा और कन्या-नर्मदा में देह-छाया का संबंध स्थापित हो गया जो केंद्रीय भाव है हमारी, आपकी, सबकी ‘रुद्रदेहा’ का।
इस कृति-निर्माण के लिए हम जिन ज्ञान-कोशों के शरणागत हुए उनमें लोक कथाएँ, जन-श्रुति, मार्कंडेय पुराण, नर्मदा पुराण विशेष हैं। साभार हम इन सभी को प्रणाम करते हैं। हृदय तल-से आभार व्यक्त करते हैं उन सभी नर्मदा-भक्तों का जिन्होंने हमारी कथा सुनी, हमसे वार्ता की।
सुस्पष्ट एवं शीघ्र प्रकाशन के लिए उत्कर्ष प्रकाशन के श्री हेमंत जी के साथ पूरी प्रकाशन टीम को अंतर्मन की गहराइयों से साधुवाद। एक बात विशेष- रुद्रदेहा रूप में अपनी फ़ोटो देने के लिए हमारी प्यारी छोटी बेटी नौमी को ढेर सारा प्यार और इस फ़ोटो को प्रभावी रूप-से खींचने के लिए, बड़ी बेटी माही को ढेर सारा आशीर्वाद। गृह मंदिर के सभी बड़ों को सादर नमन।
मित्रो! हम साधारण मानव हैं, अतः भूल सहज-संभाव्य है, जिसके लिए आप सभी से क्षमाप्रार्थी हैं। तो आइए, विनयावनत स्वागत है आपका युगनायिका नर्मदा की अमर गाथा के अद्भुत, अविस्मरणीय, अपूर्व, अलौकिक सुंदर संसार में। जिसका नाम है…
‘रुद्रदेहा…!!’
वंदे…
- प्रतिमा अखिलेश
- अखिलेश सिंह श्रीवास्तव ‘दादूभाई’
संपर्क – 9425175861/9407814975
टीप – इस कृति-से प्राप्त राशि लाभार्जन के लिए नहीं अपितु रुद्रदेहा अन्न कुटी में सेवार्थ उपयोग की जाएगी।
सहयोग राशि : रु 250 200
≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈