मराठी साहित्य – कविता ☆ कामगार ☆ कविराज विजय यशवंत सातपुते

कविराज विजय यशवंत सातपुते

(समाज , संस्कृति, साहित्य में  ही नहीं अपितु सोशल मीडिया में गहरी पैठ रखने वाले  कविराज विजय यशवंत सातपुते जी  की  सोशल मीडिया  की  टेगलाइन माणूस वाचतो मी……!!!!” ही काफी है उनके बारे में जानने के लिए। जो साहित्यकार मनुष्य को पढ़ सकता है वह कुछ भी और किसी को भी पढ़ सकने की क्षमता रखता है।आप कई साहित्यिक, सांस्कृतिक एवं सामाजिक संस्थाओं से जुड़े हुए हैं। कुछ रचनाये सदैव समसामयिक होती हैं। आज प्रस्तुत है  आपकी  कामगारों के जीवन पर आधारित एक भावप्रवण कविता  “कामगार )

☆  कामगार ☆

 

जगानं कितीही प्रगती केली

तरी वर्षानुवर्ष झोपडीत

मुक्कामाला राहिलेलं दारीद्रय

हलता हललं नाही झोपडीतून. . . . !

या दारीद्रयानच सा-यांना

कामाला लावलं, कामगार बनवलं

कामगार,  कामगार

निळी काॅलर निमुटपणे

घामच गाळत राहिली.

कधी रोजंदारीवर तर कधी

महिन्याच्या बोलीवर

कामगार आजा, बाप

मरमर राबताहेत.

झोपड्या बदलल्या

पण झोपडपट्टी काही सुटली नाही.

दारीद्र्याला कंटाळून

आम्ही पण पाहिली स्वप्न .. .

चांगल शिक्षण घेऊन

सरकारी नोकरदार व्हायची.

पण कसचं काय

मिसरूड फुटली नी . . शाळा सुटली.

पाटी फुटली  आन

जेवणाच्या डब्यात जिंदगी  आटली.. !

कर्ज ,पाणी,  दवा, दारू

सारी हयात अशीच कटली.

बॅक नावाची ईमारत लांबूनच दिसली.

पैशाची काढघाल करायला पैशाची चळत

उभ्या जिंदगीत शिलकीतच नाय पडली.

जितकं कमावलं तितकं गमावलं.

कामगाराचं जिणं ,कामातच राहिल.

सरकार आलं, सरकार गेलं.

घामाचा दाम द्येवून ग्येलं.

हातावरचं पोट  आमचं

दोन येळच्या अन्नासाठी

कामाच्या शोधात सारी दुनिया

वणवण करीत राह्यलं.

सारा महाराष्ट्र फिरलो राब राब राबलो..

कामगार होतो. . . कामगारच राहिलो. . . !

भारत माझा महान शुभेच्छा देत घेत

झोपडीत होतो झोपडीतच राहिलो. . . !

 

© विजय यशवंत सातपुते

यशश्री, 100 ब दीपलक्ष्मी सोसायटी,  सहकार नगर नंबर दोन, पुणे 411 009.

मोबाईल  9371319798.

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मराठी साहित्य – कविता ☆ साप्ताहिक स्तम्भ – स्वप्नपाकळ्या # 9 ☆ स्वप्न कळ्यांचे ☆ श्री प्रभाकर महादेवराव धोपटे

श्री प्रभाकर महादेवराव धोपटे

ई-अभिव्यक्ति में श्री प्रभाकर महादेवराव धोपटे जी  के साप्ताहिक स्तम्भ – स्वप्नपाकळ्या को प्रस्तुत करते हुए हमें अपार हर्ष है। आप मराठी साहित्य की विभिन्न विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं। वेस्टर्न  कोलफ़ील्ड्स लिमिटेड, चंद्रपुर क्षेत्र से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं। अब तक आपकी तीन पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं जिनमें दो काव्य संग्रह एवं एक आलेख संग्रह (अनुभव कथन) प्रकाशित हो चुके हैं। एक विनोदपूर्ण एकांकी प्रकाशनाधीन हैं । कई पुरस्कारों /सम्मानों से पुरस्कृत / सम्मानित हो चुके हैं। आपके समय-समय पर आकाशवाणी से काव्य पाठ तथा वार्ताएं प्रसारित होती रहती हैं। प्रदेश में विभिन्न कवि सम्मेलनों में आपको निमंत्रित कवि के रूप में सम्मान प्राप्त है।  इसके अतिरिक्त आप विदर्भ क्षेत्र की प्रतिष्ठित साहित्यिक एवं सांस्कृतिक संस्थाओं के विभिन्न पदों पर अपनी सेवाएं प्रदान कर रहे हैं। अभी हाल ही में आपका एक काव्य संग्रह – स्वप्नपाकळ्या, संवेदना प्रकाशन, पुणे से प्रकाशित हुआ है, जिसे अपेक्षा से अधिक प्रतिसाद मिल रहा है। इस साप्ताहिक स्तम्भ का शीर्षक इस काव्य संग्रह  “स्वप्नपाकळ्या” से प्रेरित है । आज प्रस्तुत है उनकी एक  भावप्रवण कविता “स्वप्न कळ्यांचे“.) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ  – स्वप्नपाकळ्या # 9 ☆

☆ कविता – स्वप्न कळ्यांचे

 

स्वप्नी मी आज काय पाहिले

येउनिया साजन मम,कर घाली कमरेतुन

ओढुनिया मज जवळी काय बोलले!!

 

जीवनाच्या पुष्पवनी,बसलो जवळी आम्ही

किलबिलाट पक्षिध्वनी,आनंदें उगम मनी

नयनांशी नयनभाष्य, काय जाहले!!

 

शृंगारित महालांतरी,राजा ते राणी मी

दासदासी कितीतरी,ठेचाळती त्या भुवनी

आपण दोघे आणि राज्य आपले!!

 

पक्षांपरी पंख  फुटुनी,उडलो अवनीवरुनी

चंद्रतारकांमधुनी,फिरलो मन मुक्त करुनी

एक दुज्या घट्ट मिठीत स्वप्न मोडले!!

 

©  प्रभाकर महादेवराव धोपटे

मंगलप्रभू,समाधी वार्ड, चंद्रपूर,  पिन कोड 442402 ( महाराष्ट्र ) मो +919822721981

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मराठी साहित्य – कविता ☆ केल्याने होतं आहे रे # 33 – वैशाखातल्या झळा ☆ – श्रीमति उर्मिला उद्धवराव इंगळे

श्रीमति उर्मिला उद्धवराव इंगळे

(वरिष्ठ  मराठी साहित्यकार श्रीमति उर्मिला उद्धवराव इंगळे जी का धार्मिक एवं आध्यात्मिक पृष्ठभूमि से संबंध रखने के कारण आपके साहित्य में धार्मिक एवं आध्यात्मिक संस्कारों की झलक देखने को मिलती है. इसके अतिरिक्त  ग्राम्य परिवेश में रहते हुए पर्यावरण  उनका एक महत्वपूर्ण अभिरुचि का विषय है। आज प्रस्तुत है श्रीमती उर्मिला जी की वैशाख मास  मनाये जाने वाले पर्वों से लेकर पर्यावरण तक का विमर्श करती हुई  एक कविता  “वैशाखातल्या झळा”उनकी मनोभावनाएं आने वाली पीढ़ियों के लिए अनुकरणीय है।  ऐसे सामाजिक / धार्मिक /पारिवारिक साहित्य की रचना करने वाली श्रीमती उर्मिला जी की लेखनी को सादर नमन। )

☆ केल्याने होतं आहे रे # 33 ☆

☆ वैशाखातल्या झळा ☆ 

काव्यप्रकार:षडाक्षरी

विषय: वैशाख वणवा

 

अक्षय तृतीया

मुहुर्ताचा सण

आंब्यांचा नैवेद्य

देवाजीचं देण !!१!!

 

वैशाख वणवा

उसळली आग

गेली करपून

द्राक्षांची ती बाग !!२!!

 

बुद्ध पूर्णिमेला

पूजा चैत्यभूमी

बाबासाहेबांची

हीच कर्मभूमी !!३!!

 

वैशाख वणवा

उष्म्याचा कहर

वसंत ऋतूत

फुलांना बहर !!४!!

 

वैशाख वणवा

अंगाची हो लाही

उन्हामुळं सारी

करपली मही !!५!!

 

तप्त झाली हवा

तापली ती धरा

आता आम्हा वृक्ष

देतील सहारा !!६!!

 

त्याच्याच साठीहो

वृक्ष तुम्ही लावा

देखभाल करा

झाडे ती जगवा !!७!!

 

©️®️ उर्मिला इंगळे

सातारा, महाराष्ट्र.

दिनांक.२-५-२०

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मराठी साहित्य – कविता ☆ गुलमोहर दिनानिमित्त – गुलमोहर ☆ सुश्री स्वप्ना अमृतकर

☆ सुश्री स्वप्ना अमृतकर ☆ 
सुप्रसिद्ध युवा कवियित्रि सुश्री स्वप्ना अमृतकर जी का अपना काव्य संसार है । आपकी कई कवितायें विभिन्न मंचों पर पुरस्कृत हो चुकी हैं।  आप कविता की विभिन्न विधाओं में  दक्ष हैं और साथ ही हायकू शैली की सशक्त हस्ताक्षर हैं। आज प्रस्तुत है सुश्री स्वप्ना जी की  हायकू शैली में कविता “गुलमोहर”(७ रचना)”।  प्रत्येक वर्ष 1 मई को सतारा जिले में गुलमोहर का जन्म दिवस मनाया जाता है और यह क्रम 1999 से चला आ रहा है।
सुश्री स्वप्ना अमृतकर जी के ही शब्दों में  – दरवर्षीप्रमाणे मे महिन्यात लाल,केशरी,पिवळ्या फुलांचा बहर पसरलेला दिसतो,हा बहर असतो गुलमोहर फुलांचा.रणरणत्या ऊन्हातही दिसतो देखणा माझा लाडका गुलमोहर सखा साजणा.. कवीमनाला लिखाणाची उभारी देतो अन् तो स्तब्ध जसाच्या तसाच मोहात पाडतो हा गुलमोहर. महाराष्र्टात १९९९ पासून सातारा जिल्ह्यात गुलमोहराचा वाढदिवस साजरा केला जातो.
म्हणून आजच्या गुलमोहर दिनानिमित्त पुढील माझी हायकू 

☆ गुलमोहर दिनानिमित्त – गुलमोहर ☆ 

(हायकू: “गुलमोहर”)

गुलमोहर

ग्रीष्मात बहरला

जीव गुंतला        १,

बहरामुळे

वाराही थबकला

सांजवेळेला          २,

पुलावरून

फुलांचा पाझरला

बहर ओला          ३,

नदीचा काठ

गुलमोहर फांदी

पाखरें नांदी          ४,

ऊन्हाळ्यातच

सुनसान रस्त्यात

रूबाबदार          ५,

अनाथ वाटे

लाल,केसरी सडा

नसे सरडा          ६,

जन्म मिळावा

हो गुलमोहराचा

भुईवरचा            ७..

 

© स्वप्ना अमृतकर

पुणे, महाराष्ट्र

चित्र सौजन्य – सुश्री ज्योति हसबनीस, नागपुर 

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मराठी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सुजित साहित्य # 44 – मला आज कळतंय ☆ श्री सुजित कदम

श्री सुजित कदम

(श्री सुजित कदम जी  की कवितायेँ /आलेख/कथाएँ/लघुकथाएं  अत्यंत मार्मिक एवं भावुक होती हैं. इन सबके कारण हम उन्हें युवा संवेदनशील साहित्यकारों में स्थान देते हैं। उनकी रचनाएँ हमें हमारे सामाजिक परिवेश पर विचार करने हेतु बाध्य करती हैं. मैं श्री सुजितजी की अतिसंवेदनशील  एवं हृदयस्पर्शी रचनाओं का कायल हो गया हूँ. पता नहीं क्यों, उनकी प्रत्येक कवितायें कालजयी होती जा रही हैं, शायद यह श्री सुजित जी की कलम का जादू ही तो है! आज प्रस्तुत है  उनकी एक अत्यंत भावप्रवण कविता   “मला आज कळतंय ”। आप प्रत्येक गुरुवार को श्री सुजित कदम जी की रचनाएँ आत्मसात कर सकते हैं। ) 

☆ साप्ताहिक स्तंभ – सुजित साहित्य #44 ☆ 

☆ मला आज कळतंय  ☆ 

 

मला आज कळतंय

की..

कामासाठी मी ..

गावापासून

किती लांब आलोय ते.. !

चार दिवस झालं

मी तहान भूक विसरून

गावच्या दिशेन चालतोय….!

पण गाव काय दिसंना..

आज पर्यंत इतकी वर्षे

गावापासून लांब पळणारा मी

आज गावातलं आणि..

माझ्यातलं अंतर

कमी होण्याची वाट पाहतोय. . !

 

© सुजित कदम

पुणे, महाराष्ट्र

मो.७२७६२८२६२६

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मराठी साहित्य – कविता ☆ विश्वास☆ कविराज विजय यशवंत सातपुते

कविराज विजय यशवंत सातपुते

(समाज , संस्कृति, साहित्य में  ही नहीं अपितु सोशल मीडिया में गहरी पैठ रखने वाले  कविराज विजय यशवंत सातपुते जी  की  सोशल मीडिया  की  टेगलाइन माणूस वाचतो मी……!!!!” ही काफी है उनके बारे में जानने के लिए। जो साहित्यकार मनुष्य को पढ़ सकता है वह कुछ भी और किसी को भी पढ़ सकने की क्षमता रखता है।आप कई साहित्यिक, सांस्कृतिक एवं सामाजिक संस्थाओं से जुड़े हुए हैं। कुछ रचनाये सदैव समसामयिक होती हैं। आज प्रस्तुत है  आपकी एक भावप्रवण कविता  “विश्वास )

☆   विश्वास ☆

 

विश्वासाने होतो आहे

अनोळखी ओळखीचा

विश्वासाचा दैवी हात

संसारात प्रगतीचा…!

 

विश्वासाने व्यवहार

विश्वासाने चाले जग

त्याचे असणे नसणे

अंतरीची तगमग. . . !

 

खरे नाते विश्वासाचे

माणसाला घडवीते

कसे जगावे जीवन

जगूनीया दाखवीते….!

 

विश्वासात नको गर्व

नको व्यर्थ  अहंकार

एक मायेचा दिलासा

बाकी सारे निरंकार….!

 

आत्मविश्वासाचे बल

यश, कीर्ती,  समाधान

आहे अंतरीचा सेतू

ठेवी मानव्याची शान….!

 

© विजय यशवंत सातपुते

यशश्री, 100 ब दीपलक्ष्मी सोसायटी,  सहकार नगर नंबर दोन, पुणे 411 009.

मोबाईल  9371319798.

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मराठी साहित्य – कविता ☆ साप्ताहिक स्तम्भ # 8 ☆ त्या कोणत्या क्षणाला……. ☆ श्री प्रभाकर महादेवराव धोपटे

श्री प्रभाकर महादेवराव धोपटे

ई-अभिव्यक्ति में श्री प्रभाकर महादेवराव धोपटे जी  के साप्ताहिक स्तम्भ – स्वप्नपाकळ्या को प्रस्तुत करते हुए हमें अपार हर्ष है। आप मराठी साहित्य की विभिन्न विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं। वेस्टर्न  कोलफ़ील्ड्स लिमिटेड, चंद्रपुर क्षेत्र से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं। अब तक आपकी तीन पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं जिनमें दो काव्य संग्रह एवं एक आलेख संग्रह (अनुभव कथन) प्रकाशित हो चुके हैं। एक विनोदपूर्ण एकांकी प्रकाशनाधीन हैं । कई पुरस्कारों /सम्मानों से पुरस्कृत / सम्मानित हो चुके हैं। आपके समय-समय पर आकाशवाणी से काव्य पाठ तथा वार्ताएं प्रसारित होती रहती हैं। प्रदेश में विभिन्न कवि सम्मेलनों में आपको निमंत्रित कवि के रूप में सम्मान प्राप्त है।  इसके अतिरिक्त आप विदर्भ क्षेत्र की प्रतिष्ठित साहित्यिक एवं सांस्कृतिक संस्थाओं के विभिन्न पदों पर अपनी सेवाएं प्रदान कर रहे हैं। अभी हाल ही में आपका एक काव्य संग्रह – स्वप्नपाकळ्या, संवेदना प्रकाशन, पुणे से प्रकाशित हुआ है, जिसे अपेक्षा से अधिक प्रतिसाद मिल रहा है। इस साप्ताहिक स्तम्भ का शीर्षक इस काव्य संग्रह  “स्वप्नपाकळ्या” से प्रेरित है । आज प्रस्तुत है उनकी एक  भावप्रवण कविता “त्या कोणत्या क्षणाला…….“.) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ  – स्वप्नपाकळ्या # 8 ☆

☆ कविता – त्या कोणत्या क्षणाला…….

 

त्या धुंद सुगंधाने,मदहोश जाहलो मी

सगळे कळे तरीही, बेहोश जाहलो मी ।।

 

धुंदीत मती गुंग,गुंगीत प्यायलो मी

संपुर्ण विश्र्व सोडूनी,पेल्यात मावलो मी।।

 

पेले असे शराबी,अडखळत पावलांनी

रिचवीत मात्र गेलो,थरथरती हात दोन्ही।।

 

त्या कोणत्या क्षणाला ,हा येथ धावलो मी

माझ्याच भविष्याच्या,काळ्यास भोवलो मी।।

 

©  प्रभाकर महादेवराव धोपटे

मंगलप्रभू,समाधी वार्ड, चंद्रपूर,  पिन कोड 442402 ( महाराष्ट्र ) मो +919822721981

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मराठी साहित्य – कविता ☆ केल्याने होतं आहे रे # 32– शतकोत्तर वाढदिवसाच्या शुभेच्छा ☆ – श्रीमति उर्मिला उद्धवराव इंगळे

श्रीमति उर्मिला उद्धवराव इंगळे

(वरिष्ठ  मराठी साहित्यकार श्रीमति उर्मिला उद्धवराव इंगळे जी का धार्मिक एवं आध्यात्मिक पृष्ठभूमि से संबंध रखने के कारण आपके साहित्य में धार्मिक एवं आध्यात्मिक संस्कारों की झलक देखने को मिलती है. इसके अतिरिक्त  ग्राम्य परिवेश में रहते हुए पर्यावरण  उनका एक महत्वपूर्ण अभिरुचि का विषय है। आज प्रस्तुत है श्रीमती उर्मिला जी की पड़ोस में रहने वाली हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी की सदस्य के  102 वे  जन्मदिवस पर  शुभकामनाएं देती एक कविता  “शतकोत्तर वाढदिवसाच्या शुभेच्छा”। अंकों में 102 वर्ष हमारी पीढ़ी की  कल्पना के परे है। उनके ही शब्दों में  “आमच्या शेजारी रहाणाऱ्या  ‘आठल्यांच्या मम्मी ‘  यांच्या शतकोत्तर म्हणजे १०२ व्या वाढदिवसाची भेंट स्वरूप कविता।” उनकी मनोभावनाएं आने वाली पीढ़ियों के लिए अनुकरणीय है।  ऐसे सामाजिक / धार्मिक /पारिवारिक साहित्य की रचना करने वाली श्रीमती उर्मिला जी की लेखनी को सादर नमन। )

☆ केल्याने होतं आहे रे # 32 ☆

☆ शतकोत्तर वाढदिवसाच्या शुभेच्छा ☆ 

 

गोरा गोरा रंग,

ठेंगणा ठुसका बांधा !

 

तरतरीत नाक, सुंदर नाजूक देखण्या !

आमच्या आठल्यांच्या मम्मी !!

 

पेठेत आमच्या आहेत सर्वांनाच त्या परिचित !

घरी येवो कुणी,

अथवा भेटो रस्त्यात !

मधाळ हसून स्वागत

त्या करणार !

आवर्जून घरी बोलावणार !

न चुकता गोडाची वाटी हातात देणार !

घरच्या साऱ्यांची विचारपूस करणार !

वाटीतला खाऊ संपल्याबिगर,

त्या कुणालाही जिना नाही उतरु देणार !!

 

मृदू बोलायचे षट्कार अन्

मधुर हास्याचे चौकार मारत

त्यांनी शतक अन् दोन केली पूर्ण !

अगदी गोड बोलायचे आणि नेहमी शांत रहायचे

त्यांच्याकडे आहे एक नामी चूर्ण !!

 

आम्हा सर्वांना ते खायची आहे मनापासून इच्छा !

अन् शतकोत्तर वाढदिवसाच्या

मम्मींना खूप सुंदर शुभेच्छा !!

खूप सुंदर शुभेच्छा !!!

 

©️®️ उर्मिला इंगळे

सातारा

दिनांक : २५-४-२०

भ्रमण:9028815585

 

!!श्रीकृष्णार्पणमस्तु !!

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मराठी साहित्य – कविता ☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विजय साहित्य – अंतरराष्ट्रीय पुस्तक दिवस विशेष  – ग्रंथगुरू . . . !☆ कविराज विजय यशवंत सातपुते

कविराज विजय यशवंत सातपुते

(समाज , संस्कृति, साहित्य में  ही नहीं अपितु सोशल मीडिया में गहरी पैठ रखने वाले  कविराज विजय यशवंत सातपुते जी  की  सोशल मीडिया  की  टेगलाइन माणूस वाचतो मी……!!!!” ही काफी है उनके बारे में जानने के लिए। जो साहित्यकार मनुष्य को पढ़ सकता है वह कुछ भी और किसी को भी पढ़ सकने की क्षमता रखता है।आप कई साहित्यिक, सांस्कृतिक एवं सामाजिक संस्थाओं से जुड़े हुए हैं। कुछ रचनाये सदैव समसामयिक होती हैं। आज प्रस्तुत है  अंतरराष्ट्रीय पुस्तक दिवस के अवसर पर आपकी एक समसामयिक कविता  “ग्रंथगुरू . . . !” )

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विजय साहित्य ☆

☆  अंतरराष्ट्रीय पुस्तक दिवस विशेष  – ग्रंथगुरू . . . ! ☆

 

पूजनीय ग्रंथगुरू

नित्य हवे देणे घेणे

शिकविते चराचर

ज्ञान सृजनाचे लेणे. . . . !

 

वंदनीय ग्रंथगुरू

जगण्याचा मार्ग देते.

कृपा प्रसादे करून

सन्मार्गाच्या पथी येते. . . . . !

 

गुरू ईश्वरी संकेत

संस्काराची जपमाळ

शिकविते जिंकायला

संकटांचा वेळ,  काळ. . . . . !

 

तेजोमयी ग्रूथगुरू

तेज चांदणीला येते

पौर्णिमेत आषाढीच्या

व्यास रूप साकारते.. . . !

 

ज्ञानदायी ग्रंथगुरू

घ्यावे जरा समजून

ऋण मानू त्या दात्यांचे

गुरू पुजन करून. . . . !

 

संस्कारीत ग्रंथगुरू

एक हात देणार्‍याचा

पिढ्या पिढ्या चालू आहे

एक हात घेणार्‍याचा.

 

असे ज्ञानाचे सृजन

ग्रथगुरू धडे देते

जीवनाच्या परीक्षेत

जगायला शिकविते. . . !

 

ज्ञानियांचा ज्ञानराजा

व्यासाचेच नाम घेई.

महाकाव्ये , वेद गाथा

ग्रंथगुरू ज्ञान देई. . . . !

 

© विजय यशवंत सातपुते

यशश्री, 100 ब दीपलक्ष्मी सोसायटी,  सहकार नगर नंबर दोन, पुणे 411 009.

मोबाईल  9371319798.

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मराठी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सुजित साहित्य # 43 – एकटं एकटं वाटतं हल्ली…! ☆ श्री सुजित कदम

श्री सुजित कदम

(श्री सुजित कदम जी  की कवितायेँ /आलेख/कथाएँ/लघुकथाएं  अत्यंत मार्मिक एवं भावुक होती हैं. इन सबके कारण हम उन्हें युवा संवेदनशील साहित्यकारों में स्थान देते हैं। उनकी रचनाएँ हमें हमारे सामाजिक परिवेश पर विचार करने हेतु बाध्य करती हैं. मैं श्री सुजितजी की अतिसंवेदनशील  एवं हृदयस्पर्शी रचनाओं का कायल हो गया हूँ. पता नहीं क्यों, उनकी प्रत्येक कवितायें कालजयी होती जा रही हैं, शायद यह श्री सुजित जी की कलम का जादू ही तो है! आज प्रस्तुत है  उनकी एक अत्यंत भावप्रवण कविता   “एकटं एकटं वाटतं हल्ली…!। आप प्रत्येक गुरुवार को श्री सुजित कदम जी की रचनाएँ आत्मसात कर सकते हैं। ) 

☆ साप्ताहिक स्तंभ – सुजित साहित्य #43 ☆ 

☆ एकटं एकटं वाटतं हल्ली…! ☆ 

 

एकटं एकटं वाटतं हल्ली कातरवेळी.

ओठावरती त्याच ओळी त्याच वेळी…!

 

तिची सोबत तिची आठवण बरेच काही

मांडून बसतो सारा पसारा अशाच वेळी…!

 

उडून जातो सूर्य नभीचा डोळ्यादेखत

तेव्हाच येते रात्र नभावर चंद्राळलेली…!

 

दाटून येतो अंधार थोडा चहू दिशानी.

अताशा मग फाटत जाते स्वप्नांची झोळी…!

 

डोळ्यांमधूनी वाहून जाते मग टिपूर चांदणे

बघता बघता मग रात्र ही सरते एकांत वेळी…!

 

एकटं एकटं वाटतं हल्ली कातरवेळी

ओठावरती त्याच ओळी त्याच वेळी…!

 

© सुजित कदम

पुणे, महाराष्ट्र

मो.७२७६२८२६२६

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