हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कोहरे के आँचल से # 13 ☆ चेहरे ☆ – सौ. सुजाता काळे

सौ. सुजाता काळे

((सौ. सुजाता काळे जी  मराठी एवं हिन्दी की काव्य एवं गद्य  विधा की सशक्त हस्ताक्षर हैं ।  वे महाराष्ट्र के प्रसिद्ध पर्यटन स्थल कोहरे के आँचल – पंचगनी से ताल्लुक रखती हैं।  उनके साहित्य में मानवीय संवेदनाओं के साथ प्रकृतिक सौन्दर्य की छवि स्पष्ट दिखाई देती है। आज प्रस्तुत है सौ. सुजाता काळे जी की  मानवीय संवेदनाओं पर आधारित एक भावप्रवण मराठी कविता  “चेहरे”।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कोहरे के आँचल से # 13 ☆

☆ चेहरे

ओळखीचे वाटतात सगळेच चेहरे
अनोळख्या ठिकाणी जेव्हा मी जातो.

सारखेच भाव चेह-यावर असतात
सपाट शून्य मलूल चेहरा मी पाहतो.

तनावाने त्रस्त काळजीचे काहूर
भविश्याचे प्रश्न चेह-यावर पाहतो.

भूतकाळाचे गाठोडे पाठीवर लादून
ओझ्याने वाकलेला  कणा मी पाहतो.

चेह-यात चेहरे नित शोधतो मी
माझाच चेहरा जेव्हा मी पाहतो.

© सुजाता काळे,
पंचगनी, महाराष्ट्र, मोब – 9975577684

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मराठी साहित्य – समाजपारावरून साप्ताहिक स्तम्भ – ☆ पुष्प एकवीस # 21 ☆ सागर सरीता मिलन – क्षण मिलनाचे ☆ – कविराज विजय यशवंत सातपुते

कविराज विजय यशवंत सातपुते

 

(समाज , संस्कृति, साहित्य में  ही नहीं अपितु सोशल मीडिया में गहरी पैठ रखने वाले  कविराज विजय यशवंत सातपुते जी  की  सोशल मीडिया  की  टेगलाइन माणूस वाचतो मी……!!!!” ही काफी है उनके बारे में जानने के लिए। जो साहित्यकार मनुष्य को पढ़ सकता है वह कुछ भी और किसी को भी पढ़ सकने की क्षमता रखता है।आप कई साहित्यिक,  सांस्कृतिक  एवं सामाजिक संस्थाओं से जुड़े हुए हैं ।  इस साप्ताहिक स्तम्भ के माध्यम से वे किसी न किसी सामाजिक  अव्यवस्था के बारे में चर्चा करते हैं एवं हमें उसके निदान के लिए भी प्रेरित करते हैं।  आज प्रस्तुत है श्री विजय जी की एक भावप्रवण कविता  “सागर सरीता मिलन – क्षण मिलनाचे ”।  आप प्रत्येक शुक्रवार को उनके मानवीय संवेदना के सकारात्मक साहित्य को पढ़ सकेंगे।  )

 

☆ साप्ताहिक स्तंभ –समाज पारावरून – पुष्प एकवीस # 21 ☆

 

☆ सागर सरीता मिलन – क्षण मिलनाचे ☆

सरीता ही

संजीवनी

सागराची

ओढ मनी. . . !

 

खाडी मुख

उधाणले

मिलनास

आतुरले.. . !

 

देत आली

जीवनास

समर्पण

सागरास. . . . !

 

सरीतेचे

गोड पाणी

सागराची

गाजे वाणी. . . . !

 

लाटातून

झेपावतो

सरीतेला

स्वीकारतो. . . . !

 

मिलनाची

दैवी रीत

सरीतेची

न्यारी प्रीत.. . . !

 

मिलनाची

ओढ  अशी

अवगुण

पडे फशी.. . !

 

जीवतृष्णा

भागवीते

सागरात

मिसळीते.. . . !

 

प्रेम प्रिती

समतोल

मिलनाचे

जाणे मोल. . . . !

 

वरूणाचे

पाणिबंध

मिलनाचा

स्मृती गंध.. . . !

 

© विजय यशवंत सातपुते

यशश्री, 100 ब दीपलक्ष्मी सोसायटी,  सहकार नगर नंबर दोन, पुणे 411 009.

मोबाईल  9371319798.

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मराठी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ – ☆ सुजित साहित्य # 21 – बालपण…! ☆ – श्री सुजित कदम

श्री सुजित कदम

 

(श्री सुजित कदम जी  की कवितायेँ /आलेख/कथाएँ/लघुकथाएं  अत्यंत मार्मिक एवं भावुक होती हैं. इन सबके कारण हम उन्हें युवा संवेदनशील साहित्यकारों में स्थान देते हैं। उनकी रचनाएँ हमें हमारे सामाजिक परिवेश पर विचार करने हेतु बाध्य करती हैं. मैं श्री सुजितजी की अतिसंवेदनशील  एवं हृदयस्पर्शी रचनाओं का कायल हो गया हूँ. पता नहीं क्यों, उनकी प्रत्येक कवितायें कालजयी होती जा रही हैं, शायद यह श्री सुजितजी की कलम का जादू ही तो है!  आज प्रस्तुत है बाल्यपन  पर आधारित एक अतिसुन्दर कविता बालपण…! )

☆ साप्ताहिक स्तंभ – सुजित साहित्य #21☆ 

 

☆  बालपण…! ☆ 

 

मी गात असताना

लेकराची

हार्मोनियम वर सफाईदारपणे

फिरणारी

बोटं पाहिली की

ओठांवर येणारे

शब्द शहारतात

थरथरतात…

ऐकत रहावसे वाटतात

फक्त त्याच्या

इवल्या इवल्या बोटांमधून

ऐकू येणारे सूर

डोळ्यांच्या पाणवठ्यावर

येऊन मी उभा राहतो

साठवून घेतो…

त्याची प्रत्येक हरकत,नजाकत

त्याचा प्रसंन्न चेहरा

आणि बरंच काही

माझ्या ओठांमधून येणा-या

बोथड शब्दांना तो

तो देत असतो जगण्याची

सुंदर लय….

आणि मी मात्र त्यांच्यामध्ये

शोधत राहतो माझ

प्रौढ होत गेलेलं बालपण…!

 

© सुजित कदम, पुणे

7276282626

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मराठी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ – ☆ कवितेच्या प्रदेशात # 21 – जिद्द ☆ – सुश्री प्रभा सोनवणे

सुश्री प्रभा सोनवणे

 

(आज प्रस्तुत है सुश्री प्रभा सोनवणे जी के साप्ताहिक स्तम्भ  “कवितेच्या प्रदेशात” में  उनकी एक कविता  “जिद्द.  इस कविता को मैंने कई बार पढ़ा और जब भी पढ़ा तो  एक नए  सन्दर्भ में।  मुझे मेरी कविता “मैं मंच का नहीं मन का कवि  हूँ ” की बरबस याद आ गई।  यदि आप पुनः मेरी कविता के शीर्षक को पढ़ें तो कहने की आवश्यकता नहीं,  यह शीर्षक ही एक कविता है।  मैं कुछ कहूं इसके पूर्व यह कहना आवश्यक होगा कि अहंकार एवं स्वाभिमान में एक बारीक धागे सा अंतर होता है।  सुश्री प्रभा जी की कविता  “जिद्द” में मुझे दो तथ्यों ने प्रभावित किया। कविता में उन्होंने  जीवन की लड़ाई में सदैव सकारात्मक तथ्यों को स्वीकार किया है और नकारात्मक तथ्यों  को नकार दिया है। सदैव वही किया है, जो  हृदय ने  स्वाभिमान से स्वीकार किया है । अहंकार का उनके जीवन में कोई महत्व नहीं है।  सुश्री प्रभा जी की कवितायें इतनी हृदयस्पर्शी होती हैं कि- कलम उनकी सम्माननीय रचनाओं पर या तो लिखे बिना बढ़ नहीं पाती अथवा निःशब्द हो जाती हैं। सुश्री प्रभा जी की कलम को पुनः नमन।

मुझे पूर्ण विश्वास है  कि आप निश्चित ही प्रत्येक बुधवार सुश्री प्रभा जी की रचना की प्रतीक्षा करते होंगे. आप  प्रत्येक बुधवार को सुश्री प्रभा जी  के उत्कृष्ट साहित्य का साप्ताहिक स्तम्भ  – “कवितेच्या प्रदेशात” पढ़ सकते  हैं।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – कवितेच्या प्रदेशात # 21 ☆

☆ जिद्द 

 

ही जिद्दच तर होती,

जीवनाची प्रत्येक लढाई

जिंकण्याची!

हवे ते मिळविण्याची !

किती मिळाले, किती निसटले

आठवत नाही ….

पण आठवते,

अथांगतेचा तळ गाठल्याचे,

आकाशात मुक्त विहरल्याचेही !

 

कोण काय बोलले,

कोण काय म्हणाले, आठवत नाही….

पण किती तरी क्षण

कुणी कुणी—

डोक्यावर ताज ठेवल्याचे,

आठवतात, आठवत रहातात!

 

ती जिद्दच तर होती—

उंबरठ्याच्या बाहेर पडण्याची,

नको ते नाकारण्याची,

 

हातातली कांकणे,पायातली पैंजणे,

किणकिणत राहिली, छुमछुमत राहिली…

पण ही जिद्दच होती

‘माणूसपण’ जपण्याची,

‘स्व’त्व टिकवण्याची…

सारे पसारे मांडून,

सम्राज्ञी सारखं जगण्याची!

 

© प्रभा सोनवणे

“सोनवणे हाऊस”, ३४८ सोमवार पेठ, पंधरा ऑगस्ट चौक, विश्वेश्वर बँकेसमोर, पुणे 411011

मोबाईल-९२७०७२९५०३,  email- [email protected]

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मराठी साहित्य ☆ दीपावली विशेष ☆ भाऊबीज ☆ – कविराज विजय यशवंत सातपुते

कविराज विजय यशवंत सातपुते

 

(समाज , संस्कृति, साहित्य में  ही नहीं अपितु सोशल मीडिया में गहरी पैठ रखने वाले  कविराज विजय यशवंत सातपुते जी  की  सोशल मीडिया  की  टेगलाइन माणूस वाचतो मी……!!!!” ही काफी है उनके बारे में जानने के लिए। जो साहित्यकार मनुष्य को पढ़ सकता है वह कुछ भी और किसी को भी पढ़ सकने की क्षमता रखता है।आप कई साहित्यिक,  सांस्कृतिक  एवं सामाजिक संस्थाओं से जुड़े हुए हैं । 

(इस  दीपावली  के पवन पर्व पर कविराज विजय जी  ने  अष्टाक्षरी विधा में  कुछ  विशेष कविताओं की रचना की है।   उनमें से  चार कवितायेँ  (1) वसुबारस (अष्टाक्षरी)  (2) धेनू  पूजा (चाराक्षरी)  (3) आली धन त्रयोदशी.. . ! (अष्टाक्षरी)  (4) नर्क चतुर्दशी  (अष्टाक्षरी) (5) लक्ष्मी पूजन  (अष्टाक्षरी)  (6) पाडवा  (अष्टाक्षरी) आप पढ़ चुके हैं । आज प्रस्तुत हैं कविता  भाऊबीज  (अष्टाक्षरी). आपसे अनुरोध है कि आप इन कविताओं को इस दीपोत्सव पर आत्मसात कर  हृदय से स्वीकार करें। दीपोत्सव पर्व पर हृदय से हार्दिक शुभकामनाओं सहित )

☆ दीपावली विशेष – भाऊबीज ☆

*अष्टाक्षरी*

कार्तिकात द्वितीयेला

आली आली भाऊबीज

म्हणे बहिण भावाला

जरा आसवात भीज.. . . !

 

भाऊ बहीणीचा स`ण

औक्षणाचा थाटमाट

आतुरल्या अंतरात

भेटवस्तू पाहे वाट. . . . !

 

दोन घास जेवूनीया

आशिर्वादी मिळे ठेव

दीपोत्सव ठरे सार्थ

आठवांचे फुटे पेव. . . . !

 

किती दिले किती नाही

हिशोबाचा नाही सण

एकमेकांसाठी केले

आयुष्याचे समर्पण. . . . !

 

अशी स्नेहमयी वात

घरोघरी  उजळावी.

मांगल्याची भाऊबीज

मनोमनी चेतवावी.. . !

 

© विजय यशवंत सातपुते

यशश्री, 100 ब दीपलक्ष्मी सोसायटी,  सहकार नगर नंबर दोन, पुणे 411 009.

मोबाईल  9371319798

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मराठी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ – ☆ श्री अशोक भांबुरे जी यांची कविता अभिव्यक्ती #21 – माझा परिचय ☆ – श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे

श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे

 

((वरिष्ठ मराठी साहित्यकार श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे जी का अपना  एक काव्य  संसार है । आप  मराठी एवं  हिन्दी दोनों भाषाओं की विभिन्न साहित्यिक विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं।  आज साप्ताहिक स्तम्भ  –अशोक भांबुरे जी यांची कविता अभिव्यक्ती  शृंखला  की अगली  कड़ी में प्रस्तुत है एक  सामयिक कविता  “करू दिवाळी साजरी”।)

 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – अशोक भांबुरे जी यांची कविता अभिव्यक्ती # 22 ☆

 

☆ करू दिवाळी साजरी ☆

उठू पहाटेच्यापारी

करू दिवाळी साजरी

स्नान उरकले आता

जाऊ दर्शना राऊळी

 

आनंदाची ही दिवाळी

गाली आणते हो खळी

साऱ्या संसारा सोबत

नटे फुलांची डहाळी

 

आज अभ्यंगस्नानाला

न्हाऊ घालते ती मला

ओवाळणीत मागते

नवी साडी आणि चोळी

 

माहेराहून येईन

माझी लाडकी बहीण

आणि भरून नेईल

प्रेम नात्यांची ही झोळी

 

रंगीबेरंगी फटाका

मारी आकाशी धडका

आनंदाने ही लेकर

बघा वाजवती टाळी

 

दारामधे ही रांगोळी

हाती फराळाची थाळी

पाडव्याच्या मुहुर्ताला

नवी सोन्याची साखळी

 

© अशोक श्रीपाद भांबुरे

धनकवडी, पुणे ४११ ०४३.

मो. ८१८००४२५०६, ९८२२८८२०२८

[email protected]

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मराठी साहित्य ☆ दीपावली विशेष ☆ पाडवा ☆ – कविराज विजय यशवंत सातपुते

कविराज विजय यशवंत सातपुते

 

(समाज , संस्कृति, साहित्य में  ही नहीं अपितु सोशल मीडिया में गहरी पैठ रखने वाले  कविराज विजय यशवंत सातपुते जी  की  सोशल मीडिया  की  टेगलाइन माणूस वाचतो मी……!!!!” ही काफी है उनके बारे में जानने के लिए। जो साहित्यकार मनुष्य को पढ़ सकता है वह कुछ भी और किसी को भी पढ़ सकने की क्षमता रखता है।आप कई साहित्यिक,  सांस्कृतिक  एवं सामाजिक संस्थाओं से जुड़े हुए हैं । 

(इस  दीपावली  के पवन पर्व पर कविराज विजय जी  ने  अष्टाक्षरी विधा में  कुछ  विशेष कविताओं की रचना की है।   उनमें से  चार कवितायेँ  (1) वसुबारस (अष्टाक्षरी)  (2) धेनू  पूजा (चाराक्षरी)  (3) आली धन त्रयोदशी.. . ! (अष्टाक्षरी)  (4) नर्क चतुर्दशी  (अष्टाक्षरी) (5) लक्ष्मी पूजन  (अष्टाक्षरी) आप पढ़ चुके हैं । आज प्रस्तुत हैं   कविता  पाडवा   (अष्टाक्षरी). शेष कवितायेँ  समय समय  पर प्रकाशित करेंगे। आपसे अनुरोध है कि आप इन कविताओं को इस दीपोत्सव पर आत्मसात कर  ह्रदय से स्वीकार करें। दीपोत्सव पर्व पर हृदय से  नर्क चतुर्दशीहार्दिक शुभकामनाओं सहित )

 

☆ दीपावली विशेष – पाडवा ☆

*अष्टाक्षरी*

 

कार्तिकाची प्रतिपदा

येई घेऊन गोडवा.

दीपावली दिनू खास

होई साजरा पाडवा. . . . !

 

तेल, उटणे लावूनी

पत्नी हस्ते शाही स्नान.

साडेतीन मुहूर्ताचा

आहे पाडव्याला मान. . . . !

 

रोजनिशी, ताळमेळ

वही पूजनाचा थाट

येवो बरकत घरा

यश कीर्ती येवो लाट. . . . !

 

सहजीवनाची  गाथा

पाडव्याच्या औक्षणात

सुख दुःख वेचलेली

अंतरीच्या अंगणात.. . . . !

 

भोजनाचा खास बेत

जपू रूढी परंपरा.

व्यापारात शुभारंभ

नवोन्मेष स्नेहभरा.. . . . !

 

© विजय यशवंत सातपुते

यशश्री, 100 ब दीपलक्ष्मी सोसायटी,  सहकार नगर नंबर दोन, पुणे 411 009.

मोबाईल  9371319798

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मराठी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ – ☆ रंजना जी यांचे साहित्य #- 20 – भाकरी ☆ – श्रीमती रंजना मधुकरराव लसणे

श्रीमती रंजना मधुकरराव लसणे 

 

(श्रीमती रंजना मधुकरराव लसणे जी हमारी पीढ़ी की वरिष्ठ मराठी साहित्यकार हैं।  सुश्री रंजना  एक अत्यंत संवेदनशील शिक्षिका एवं साहित्यकार हैं।  सुश्री रंजना जी का साहित्य जमीन से  जुड़ा है  एवं समाज में एक सकारात्मक संदेश देता है।  निश्चित ही उनके साहित्य  की अपनी  एक अलग पहचान है। आप उनकी अतिसुन्दर ज्ञानवर्धक रचनाएँ प्रत्येक सोमवार को पढ़ सकेंगे। आज  प्रस्तुत है  मानवीय रिश्तों  के साथ  रोटी  के मूल्य पर आधारित  एक भावप्रवण कविता  – “भाकरी। )

 

 ☆ साप्ताहिक स्तम्भ – रंजना जी यांचे साहित्य # 20☆ 

 

 ☆ भाकरी ☆

 

दिसरात राबतिया

माझी  माय ही बावरी।

तरी तिला मिळेना हो

चार घास ती भाकरी।।

 

बाप ठेऊनिया गेला

उभा कर्जाचा डोंगर।

उभी हयात राबून

गळा फासाचा हो दोर।

 

मार्ग सारेच खुंटले

भर दिसा अंधारले।

दोन्ही पिलांना पाहून

बळ  अंगी संचारले।

 

शेण पाणी झाडलोट

धुणी भांडी ही घासते।

अधाशीही मालकीण

पाने तोंडाला पुसते।

 

हाता तोंडाचं भांडण

काही सरता सरेना।

किती राबते तरीही

पोट सार्‍यांची भरेना।

 

कशी शिकवावी लेक

कसे करावे संस्कार ।

निराधार योजनेला

घूस  खोरीचा आधार।

 

कथा दारिद्रय रेषेची

असे फारच आगळी।

लाभार्थीच्या यादीला हो

दिसे दिग्गज मंडळी।

 

माय म्हणे बापा बरी

अर्धी कष्टाची भाकरी।

लाचारीच्या जिण्यापरी

लाख मोलाची चाकरी।

 

©  रंजना मधुकर लसणे

आखाडा बाळापूर, जिल्हा हिंगोली

9960128105

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मराठी साहित्य ☆ दीपावली विशेष ☆ लक्ष्मी पूजन ☆ – कविराज विजय यशवंत सातपुते

कविराज विजय यशवंत सातपुते

 

(समाज , संस्कृति, साहित्य में  ही नहीं अपितु सोशल मीडिया में गहरी पैठ रखने वाले  कविराज विजय यशवंत सातपुते जी  की  सोशल मीडिया  की  टेगलाइन माणूस वाचतो मी……!!!!” ही काफी है उनके बारे में जानने के लिए। जो साहित्यकार मनुष्य को पढ़ सकता है वह कुछ भी और किसी को भी पढ़ सकने की क्षमता रखता है।आप कई साहित्यिक,  सांस्कृतिक  एवं सामाजिक संस्थाओं से जुड़े हुए हैं । 

(इस  दीपावली  के पवन पर्व पर कविराज विजय जी  ने  अष्टाक्षरी विधा में  कुछ  विशेष कविताओं की रचना की है।   उनमें से  चार कवितायेँ  (1) वसुबारस (अष्टाक्षरी)  (2) धेनू  पूजा (चाराक्षरी)  (3) आली धन त्रयोदशी.. . ! (अष्टाक्षरी)  (4) नर्क चतुर्दशी  (अष्टाक्षरी)आप पढ़ चुके हैं । आज प्रस्तुत हैं  महालक्ष्मी जी पर आधारित कविता  लक्ष्मी पूजन (अष्टाक्षरी). शेष कवितायेँ  समय समय  पर प्रकाशित करेंगे। आपसे अनुरोध है कि आप इन कविताओं को इस दीपोत्सव पर आत्मसात कर  ह्रदय से स्वीकार करें। दीपोत्सव पर्व पर हृदय से  नर्क चतुर्दशीहार्दिक शुभकामनाओं सहित )

 

☆ दीपावली विशेष – लक्ष्मी पूजन ☆

*अष्टाक्षरी*

अमावस्या  अश्विनाची

दिवाळीचा मुख्य सण

अंधाराला सारूनीया

प्रकाशात न्हाते मन. . . . !

 

धनलक्ष्मी सहवास

घरी नित्य लाभण्याला

करू लक्षुमी पूजन

हवे सौख्य  जीवनाला… !

 

धन आणि अलंकार

राहो अक्षय टिकून

सुवर्णाच्या पाऊलाने

यावे सौख्य तेजाळून.. . . !

 

प्राप्त लक्षुमीचे धन

हवा तिचा सहवास

तिच्या साथीनेच व्हावा

सारा जीवन प्रवास. . . . !

 

सुकामेवा ,  अनारसे

फलादिक शाही मेवा

साफल्याची तेजारती

जपू समाधानी ठेवा.

 

 

© विजय यशवंत सातपुते

यशश्री, 100 ब दीपलक्ष्मी सोसायटी,  सहकार नगर नंबर दोन, पुणे 411 009.

मोबाईल  9371319798

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मराठी साहित्य ☆ दीपावली विशेष ☆ नर्क चतुर्दशी ☆ – कविराज विजय यशवंत सातपुते

कविराज विजय यशवंत सातपुते

 

(समाज , संस्कृति, साहित्य में  ही नहीं अपितु सोशल मीडिया में गहरी पैठ रखने वाले  कविराज विजय यशवंत सातपुते जी  की  सोशल मीडिया  की  टेगलाइन माणूस वाचतो मी……!!!!” ही काफी है उनके बारे में जानने के लिए। जो साहित्यकार मनुष्य को पढ़ सकता है वह कुछ भी और किसी को भी पढ़ सकने की क्षमता रखता है।आप कई साहित्यिक,  सांस्कृतिक  एवं सामाजिक संस्थाओं से जुड़े हुए हैं । 

(इस  दीपावली  के पवन पर्व पर कविराज विजय जी  ने  अष्टाक्षरी विधा में छह विशेष कविताओं की रचना की है।   उनमें से दो कवितायेँ  (1) वसुबारस  (2) धेनू  पूजा” आप पढ़ चुके हैं । आज प्रस्तुत हैं  अन्य दो सामयिक कवितायेँ  (1)  आली धन त्रयोदशी.. . ! (2)  नर्क चतुर्दशी . शेष कवितायेँ  समय समय  पर प्रकाशित करेंगे। कुछ कविताओं के प्रकाशन में विलम्ब के लिए खेद है। आपसे अनुरोध है कि आप इन कविताओं को इस दीपोत्सव पर आत्मसात कर  ह्रदय से स्वीकार करें। दीपोत्सव पर्व पर हृदय से  हार्दिक शुभकामनाओं सहित )

 

☆ दीपावली विशेष – नर्क चतुर्दशी ☆

*अष्टाक्षरी*

वध नरकासुराचा

आली वद्य चतुर्दशी .

पहाटेचे शाही स्नान

मांगलिक चतुर्दशी. . . . . !

 

अपमृत्यू टाळण्याला

करू यमाला तर्पण.

अभ्यंगाने प्रासादिक

करू क्लेष समर्पण. . . . !

 

नारी मुक्ती आख्यायिका

आनंदाची रोजनिशी

फराळाच्या आस्वादाने

सजे नर्क चतुर्दशी. . . . . !

 

एकत्रित मिलनाची

लाभे पर्वणी अवीट

गळाभेट घेऊनीया

जागवूया स्नेहप्रीत.. . . !

 

रोषणाई, फटाक्याने

होई साजरा  उत्सव.

दारी नाचे दीपावली

मनोमनी दीपोत्सव. . . . . !

 

© विजय यशवंत सातपुते

यशश्री, 100 ब दीपलक्ष्मी सोसायटी,  सहकार नगर नंबर दोन, पुणे 411 009.

मोबाईल  9371319798.

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