मराठी साहित्य – कविता ☆ साप्ताहिक स्तम्भ – स्वप्नपाकळ्या # 15 ☆ मी तुझ्याच साठी आली ☆ श्री प्रभाकर महादेवराव धोपटे

श्री प्रभाकर महादेवराव धोपटे

ई-अभिव्यक्ति में श्री प्रभाकर महादेवराव धोपटे जी  के साप्ताहिक स्तम्भ – स्वप्नपाकळ्या को प्रस्तुत करते हुए हमें अपार हर्ष है। आप मराठी साहित्य की विभिन्न विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं। वेस्टर्न  कोलफ़ील्ड्स लिमिटेड, चंद्रपुर क्षेत्र से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं। अब तक आपकी तीन पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं जिनमें दो काव्य संग्रह एवं एक आलेख संग्रह (अनुभव कथन) प्रकाशित हो चुके हैं। एक विनोदपूर्ण एकांकी प्रकाशनाधीन हैं । कई पुरस्कारों /सम्मानों से पुरस्कृत / सम्मानित हो चुके हैं। आपके समय-समय पर आकाशवाणी से काव्य पाठ तथा वार्ताएं प्रसारित होती रहती हैं। प्रदेश में विभिन्न कवि सम्मेलनों में आपको निमंत्रित कवि के रूप में सम्मान प्राप्त है।  इसके अतिरिक्त आप विदर्भ क्षेत्र की प्रतिष्ठित साहित्यिक एवं सांस्कृतिक संस्थाओं के विभिन्न पदों पर अपनी सेवाएं प्रदान कर रहे हैं। अभी हाल ही में आपका एक काव्य संग्रह – स्वप्नपाकळ्या, संवेदना प्रकाशन, पुणे से प्रकाशित हुआ है, जिसे अपेक्षा से अधिक प्रतिसाद मिल रहा है। इस साप्ताहिक स्तम्भ का शीर्षक इस काव्य संग्रह  “स्वप्नपाकळ्या” से प्रेरित है ।आज प्रस्तुत है उनकी एक  भावप्रवण कविता “मी तुझ्याच साठी आली“.) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ  – स्वप्नपाकळ्या # 15 ☆

☆ मी तुझ्याच साठी आली

गाली खळी तुझ्या ती, हसुनी मला म्हणाली

रे धुंद प्रेमवेड्या, मी तुझ्याच साठी आली!!

 

क्षितिजावरील लाली, केशरसुगंध ल्याली

गुलबक्षी पाकळ्यातुनी, गालावरी निमाली

स्पर्शातली मखमाली, लाजुन मला म्हणाली

रे धुंद प्रेमवेड्या, मी तुझ्याच साठी आली!!

 

त्या अथांग सागरातील, जणू स्निग्ध तरल लहरी

तू सुकेशिनी अशी गं, निशिगंधयुक्त कस्तुरी

केसात माळलेली, वेणी मला म्हणाली

रे धुंद प्रेमवेड्या, मी तुझ्याच साठी आली!!

 

ते अधर विलग होती, जणू पाकळ्या कळीच्या

तो गंध चंदनाचा, शब्दात सावलीच्या

काळी विशाल नयने, लाजून मला म्हणाली

रे धुंद प्रेमवेड्या, मी तुझ्याच साठी आली!!

 

©  प्रभाकर महादेवराव धोपटे

मंगलप्रभू,समाधी वार्ड, चंद्रपूर,  पिन कोड 442402 ( महाराष्ट्र ) मो +919822721981

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मराठी साहित्य – कविता ☆ विजय साहित्य – अबोल मैत्री  ☆ कविराज विजय यशवंत सातपुते

कविराज विजय यशवंत सातपुते

(समाज , संस्कृति, साहित्य में  ही नहीं अपितु सोशल मीडिया में गहरी पैठ रखने वाले  कविराज विजय यशवंत सातपुते जी  की  सोशल मीडिया  की  टेगलाइन माणूस वाचतो मी……!!!!” ही काफी है उनके बारे में जानने के लिए। जो साहित्यकार मनुष्य को पढ़ सकता है वह कुछ भी और किसी को भी पढ़ सकने की क्षमता रखता है।आप कई साहित्यिक, सांस्कृतिक एवं सामाजिक संस्थाओं से जुड़े हुए हैं। कुछ रचनाये सदैव समसामयिक होती हैं। आज प्रस्तुत है  आपकी  कामगारों के जीवन पर आधारित एक भावप्रवण कविता  “अबोल मैत्री  )

☆ विजय साहित्य – अबोल मैत्री  ☆

 

अबोल मैत्री सांगून जाते

शब्दांच्याही पलीकडले.

नजरेमधुनी कळते भाषा

कसे जीवावर जीव जडले

 

अबोल मैत्री अनुभव लेणे

माणूस माणूस वाचत जाणे

स्नेहमिलनी स्वभावदोषी

दृढ मैत्रीचे वाजे नाणे.. . !

 

अबोल मैत्री नाही कौतुक

शिकवून जाते धडा नवा

कसे जगावे जीवनात या

या मैत्रीचा नाद हवा.. !

 

अबोल मैत्री आहे कविता

संवादातून कळलेली

अंतरातली ओढ मनीची

अंतराकडे वळलेली.. !

 

अबोल मैत्री म्हणजे  जाणिव

परस्परांना झालेली

तू माझा नी मीच तुझा रे

मने मनाला कळलेली.. . !

 

© विजय यशवंत सातपुते

यशश्री, 100 ब दीपलक्ष्मी सोसायटी,  सहकार नगर नंबर दोन, पुणे 411 009.

मोबाईल  9371319798.

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मराठी साहित्य – कविता ☆ विडंबन कविता – आम्ही  बुढ्या—– ☆ सुश्री मीनाक्षी सरदेसाई

सुश्री मीनाक्षी सरदेसाई

(वरिष्ठ मराठी साहित्यकार सुश्री मीनाक्षी सरदेसाई जी मराठी साहित्य की विभिन्न विधाओं की सशक्त हस्ताक्षर हैं। कई पुरस्कारों/अलंकारों से पुरस्कृत/अलंकृत सुश्री मीनाक्षी सरदेसाई जी का जीवन परिचय उनके ही शब्दों में – “नियतकालिके, मासिके यामध्ये कथा, ललित, कविता, बालसाहित्य  प्रकाशित. आकाशवाणीमध्ये कथाकथन, नभोनाट्ये , बालनाट्ये सादर. मराठी प्रकाशित साहित्य – कथा संग्रह — ५, ललित — ७, कादंबरी – २. बालसाहित्य – कथा संग्रह – १६,  नाटिका – २, कादंबरी – ३, कविता संग्रह – २, अनुवाद- हिंदी चार पुस्तकांचे मराठी अनुवाद. पुरस्कार/सन्मान – राज्यपुरस्कारासह एकूण अकरा पुरस्कार.)

आज प्रस्तुत है नाटक—शारदा. गीत—म्हातारा इतुका न– पर आधारित आपकी एक विडंबन कविता – आम्ही  बुढ्या—–  हम भविष्य में भी आपकी सुन्दर रचनाओं की अपेक्षा करते हैं।

☆ विडंबन  गीत—-आम्ही  बुढ्या—– ☆

 

म्हातार्ऱ्या  इतुक्या न  अवघे पाऊणशे  वयमान.

ऊर्जा अजून महान अवघे पाऊणशे वयमान  ।।

 

दंताजींच्या  जागी  बसली ‘ कवळी ‘ कोवळि छान

फ्याशन चा चष्मा चेहर्ऱ्याला, देइ पोक्तशी  शान.

 

अशक्त  थोडे कान  काढती तर्काने अनुमान

‘हो ना हो ना’करते अजुनी  ताठ आमुची मान ।।

 

ड्रेस, गाऊन, बॉयकट  करुनी  परत  जाहलो सान

एसटी  देते  तिकीट  अर्धे  पुन्हां  उलटले  पान ।।

 

‘वय  झाले  वय झाले ‘म्हणुनी गात राहतो  गान

चूक भूलही  क्षम्य  अम्हाला  समाज देतो  मान ।।

 

सिनिअर  सिटिझन  ‘स्मार्ट  पदविने त्रुप्त जाहले कान

म्हातार्ऱ्या म्हणु नकाच, अवघे पाऊणशे वयमान ।।

 

© मीनाक्षी सरदेसाई

‘अनुबंध’, कृष्णा हास्पिटलजवळ, पत्रकार नगर, सांगली.४१६४१६.

मोबाईल  नंबर   9561582372, 8806955070

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मराठी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सुजित साहित्य # 49 –एक छोटासा प्रयत्न…. ☆ सुजित शिवाजी कदम

सुजित शिवाजी कदम

(सुजित शिवाजी कदम जी  की कवितायेँ /आलेख/कथाएँ/लघुकथाएं  अत्यंत मार्मिक एवं भावुक होती हैं. इन सबके कारण हम उन्हें युवा संवेदनशील साहित्यकारों में स्थान देते हैं। उनकी रचनाएँ हमें हमारे सामाजिक परिवेश पर विचार करने हेतु बाध्य करती हैं. मैं श्री सुजितजी की अतिसंवेदनशील  एवं हृदयस्पर्शी रचनाओं का कायल हो गया हूँ. पता नहीं क्यों, उनकी प्रत्येक कवितायें कालजयी होती जा रही हैं, शायद यह श्री सुजित जी की कलम का जादू ही तो है! आज प्रस्तुत है उनकी एक भावप्रवण कविता  “एक छोटासा प्रयत्न….”। आप प्रत्येक गुरुवार को श्री सुजित कदम जी की रचनाएँ आत्मसात कर सकते हैं। ) 

☆ साप्ताहिक स्तंभ – सुजित साहित्य #49 ☆ 

☆ एक छोटासा प्रयत्न…. ☆ 

 

एकटा एकटा घाबरतो मी

जेवढे तेवढे सावरतो मी…!

 

भेटलो मी तुला आठवतो का

बोलता बोलता चाचरतो मी…!

 

ऐवढे का मनी साठवते तू

तू मला सांगना आवरतो मी ….!

 

हे तुझे लाजणे जागवते ही

रात्रही चांदणी पांघरतो मी…!

 

ऐवढी तू मला घाबरते की

पाहता पाहता बावरतो मी…

 

का अशी सांगना रागवते तू

घेऊनी काळजी वावरतो मी…!

 

हा असा मी तुला आवडतो ना …

का सुज्या एवढा गांगरतो मी…!

 

© सुजित शिवाजी कदम

पुणे, महाराष्ट्र

मो.७२७६२८२६२६

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मराठी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कवितेच्या प्रदेशात # 53 – आयुष्य कधीचे थांबले …….. ☆ सुश्री प्रभा सोनवणे

सुश्री प्रभा सोनवणे

(आज प्रस्तुत है सुश्री प्रभा सोनवणे जी के साप्ताहिक स्तम्भ  “कवितेच्या प्रदेशात” में  एक  भावप्रवण कविता “आयुष्य कधीचे थांबले ……..।  जब सब कुछ सकारात्मक लगे और हृदय में कोई उमंग जागृत न हो तब ऐसी कविता जन्मती है क्योंकि हमें बेशक लगे किन्तु, जीवन कभी भी थमता नहीं है। एक अप्रतिम रचना । सुश्री प्रभा जी द्वारा रचित संवेदनशील रचना के लिए उनकी लेखनी को सादर नमन ।  

मुझे पूर्ण विश्वास है  कि आप निश्चित ही प्रत्येक बुधवार सुश्री प्रभा जी की रचना की प्रतीक्षा करते होंगे. आप  प्रत्येक बुधवार को सुश्री प्रभा जी  के उत्कृष्ट साहित्य को  साप्ताहिक स्तम्भ  – “कवितेच्या प्रदेशात” पढ़ सकते  हैं।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – कवितेच्या प्रदेशात # 53 ☆

☆ आयुष्य कधीचे थांबले ……..☆ 

हे पात्र नदीचे संथ, अवखळ नाही

जगण्यात अता कुठलेच वादळ नाही

 

आयुष्य कधीचे थांबले काठाशी

हृदयात अताशा होत खळबळ नाही

 

तू ठेव तिथे लपवून ती गा-हाणी

सरकार म्हणे आम्हास कळकळ नाही

 

बाईस विचारा, काय खुपते आहे

गावात तिच्या मुक्तीचि चळवळ नाही

 

की मूग गिळावे आणि मूकच व्हावे ?

‘त्यांच्या’ इतकी मी मुळिच सोज्वळ नाही

 

© प्रभा सोनवणे

“सोनवणे हाऊस”, ३४८ सोमवार पेठ, पंधरा ऑगस्ट चौक, विश्वेश्वर बँकेसमोर, पुणे 411011

मोबाईल-९२७०७२९५०३,  email- [email protected]

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मराठी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ श्री अशोक भांबुरे जी यांची कविता अभिव्यक्ती # 52 ☆ साखरेची गोळी ☆ श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे

श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे

(वरिष्ठ मराठी साहित्यकार श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे जी का अपना  एक काव्य  संसार है । आप  मराठी एवं  हिन्दी दोनों भाषाओं की विभिन्न साहित्यिक विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं। आज साप्ताहिक स्तम्भ  –अशोक भांबुरे जी यांची कविता अभिव्यक्ती  शृंखला  की अगली  कड़ी में प्रस्तुत है एक अत्यंत मार्मिक, ह्रदयस्पर्शी एवं भावप्रवण कविता  “साखरेची गोळी।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – अशोक भांबुरे जी यांची कविता अभिव्यक्ती # 52 ☆

☆ साखरेची गोळी☆

होती चुकून गेली

मिरची घशात माझ्या

असतेच साखरेची

गोळी खिशात माझ्या

 

पाहून बालकांना

मी जाम खूष होतो

जपलेय बालपण मी

या काळजात माझ्या

 

स्वप्नी अजून माझ्या

तो खेळ रोज येतो

होतेच टॉम जेरी

जे बारशात माझ्या

 

थकलो जरी अता मी

वय हे उतार झाले

हे केस चार काळे

आहे मिशीत माझ्या

 

© अशोक श्रीपाद भांबुरे

धनकवडी, पुणे ४११ ०४३.

[email protected]

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मराठी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ उत्सव कवितेचा # 7 – झाडांच्या देशात/पेड़ों के देश में (भावानुवाद) ☆ श्रीमति उज्ज्वला केळकर

श्रीमति उज्ज्वला केळकर

(सुप्रसिद्ध वरिष्ठ मराठी साहित्यकार श्रीमति उज्ज्वला केळकर जी  मराठी साहित्य की विभिन्न विधाओं की सशक्त हस्ताक्षर हैं। आपके कई साहित्य का हिन्दी अनुवाद भी हुआ है। इसके अतिरिक्त आपने कुछ हिंदी साहित्य का मराठी अनुवाद भी किया है। आप कई पुरस्कारों/अलंकारणों से पुरस्कृत/अलंकृत हैं। आपकी अब तक दस पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं एवं 6 उपन्यास, 6 लघुकथा संग्रह 14 कथा संग्रह एवं 6 तत्वज्ञान पर प्रकाशित हो चुकी हैं।  हम श्रीमति उज्ज्वला केळकर जी के हृदय से आभारी हैं कि उन्होने साप्ताहिक स्तम्भ – उत्सव कवितेचा के माध्यम से अपनी रचनाएँ साझा करने की सहमति प्रदान की है। आज प्रस्तुत है आपकी भावप्रवण कविता  ‘झाडांच्या देशातएवं इस मूल कविता का आपके ही द्वारा हिंदी अनुवाद  ‘पेड़ों के देश में’। आप प्रत्येक मंगलवार को श्रीमति उज्ज्वला केळकर जी की रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे।)

यह कविता हायकू सदृश्य है। किन्तु, इसे हायकू नहीं कह सकते। यहाँ 3 पंक्तियों की रचना है किन्तु, मात्रा का विचार नहीं किया है। इसे त्रिवेणी या  कणिका कहा जा सकता है। 

–  श्रीमति उज्ज्वला केळकर

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – उत्सव कवितेचा – # 7 ☆ 

☆ झाडांच्या देशात  

(काही हायकू)

झाडांच्या देशात

ऊन पाहुणे आले.

फुलांच्या भेटी देउन गेले.

 

झाडांच्या देशात

पाऊस पाहुणा आला.

भुइच्या घरात जाऊन दडला.

 

झाडांच्या देशात

शिशिर पाहुणा आला.

पाने ओरबाडून पळून गेला.

 

झाडांच्या देशात

पक्षी पाहुणे आले.

वहिवाटीच्या हक्कावरून भांडत सुटले.

 

झाडांच्या देशात

चंद्र पाहुणा आला.

सावल्यांचा खेळ खेळत राहिला.

 

☆ पेड़ों के देश में  

(श्रीमती उज्ज्वला केळकर द्वारा उनकी उपरोक्त कविता का हिंदी भावानुवाद)

 

पेड़ों के देश में

धूप मेहमान आयी

फूलों की भेंट चढ़ाकर चली गई।

 

पेड़ों के देश में

बारिश मेहमान आयी

भूमि के घर जा छिप गयी

 

पेड़ों के देश में

शिशिर मेहमान आया

पत्तों को झिंझोड़ कर भाग गया।

 

पेड़ों के देश में

पंछी मेहमान आये

आवास के अधिकार के लिए झगड़ते रहे।

 

पेड़ों के देश में

चन्द्र मेहमान आया

परछाइयों से खेल खेलता रहा।

 

© श्रीमति उज्ज्वला केळकर

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मराठी साहित्य – कविता ☆ साप्ताहिक स्तम्भ – हे शब्द अंतरीचे # 3 ☆ वृक्षवल्ली आम्हां सोयरे… ☆ कवी राज शास्त्री

कवी राज शास्त्री

(कवी राज शास्त्री जी (महंत कवी मुकुंदराज शास्त्री जी) का ई- अभिव्यक्ति में हार्दिक स्वागत है। आप मराठी साहित्य की आलेख/निबंध एवं कविता विधा के सशक्त हस्ताक्षर हैं। मराठी साहित्य, संस्कृत शास्त्री एवं वास्तुशास्त्र में विधिवत शिक्षण प्राप्त करने के उपरांत आप महानुभाव पंथ से विधिवत सन्यास ग्रहण कर आध्यात्मिक एवं समाज सेवा में समर्पित हैं। विगत दिनों आपका मराठी काव्य संग्रह “हे शब्द अंतरीचे” प्रकाशित हुआ है। ई-अभिव्यक्ति इसी शीर्षक से आपकी रचनाओं का साप्ताहिक स्तम्भ आज से प्रारम्भ कर रहा है। आज प्रस्तुत है उनकी भावप्रवण कविता “वृक्षवल्ली आम्हां सोयरे… ”)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – हे शब्द अंतरीचे # 3 ☆ 

☆ वृक्षवल्ली आम्हां सोयरे… ☆

 

वृक्षवल्ली आम्हां सोयरे

नारे फक्त लावल्या गेले

वन मात्र उद्वस्त झाले..०१

 

वृक्षवल्ली आम्हां सोयरे…

अभंग सुरेख रचला

आशय भंग झाला..०२

 

वृक्षवल्ली आम्हां सोयरे

झाडांबद्दलची माया

शब्द गेले वाया..०३

 

वृक्षवल्ली आम्हां सोयरे

वड चिंच आंबा जांभूळ

झाडे तुटली, तुटले पिंपळ..०४

 

वृक्षवल्ली आम्हां सोयरे

संत तुकारामांची रचना

सहज पहा व्यक्त भावना..०५

 

वृक्षवल्ली आम्हां सोयरे

तरी झाडांची तोड झाली

अति प्रगती, होत गेली..०६

 

वृक्षवल्ली आम्हां सोयरे

निसर्ग वक्रदृष्टी पडली

पाणवठे लीलया सुकली..०७

 

वृक्षवल्ली आम्हां सोयरे

पाट्या रंगवल्या गेल्या

कार्यक्रमात वापरल्या..०८

 

वृक्षवल्ली आम्हां सोयरे

वृक्षारोपण झाले

रोपटे तडफडून सुकले.. ०९

 

वृक्षवल्ली आम्हां सोयरे

सांगणे इतुकेच आता

कोपली धरणीमाता..१०

 

© कवी म.मुकुंदराज शास्त्री उपाख्य कवी राज शास्त्री.

श्री पंचकृष्ण आश्रम चिंचभुवन,

वर्धा रोड नागपूर,(440005)

मोबाईल ~9405403117, ~8390345500

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मराठी साहित्य – कविता ☆ विद्येचे बाळ ☆ सौ. मिनल अविनाश कुडाळकर

सौ. मिनल अविनाश कुडाळकर

(सौ. मिनल अविनाश कुडाळकरजी  का ई-अभिव्यक्ति में हार्दिक स्वागत है । आप अपने कॉलेज के समय से ही साहित्य की विभिन्न विधाओं में रचनाएँ लिख रही हैं। आपका संक्षिप्त साहित्यिक परिचय आपके ही शब्दों में – “कॉलेज  जीवना पासून लेखनाची आवड होती. फुलांवरच्या कविता. प्रसंगानुरूप लेखन करत आहे. सांगलीतील 81व्या साहित्य संमेलनामुळे पुन्हा लिहायला सुरुवात केलीआणि 2011ला लेक वाचवा या विषयावरील “मायेची ओंजळ” हा काव्य संग्रह प्रकाशित करण्यात आला. त्यावर विविध ठिकाणी कार्यक्रम करण्यात आले. समाज कार्यामुळेही लेखन करत आहे।”  आज प्रस्तुत है आपकी कविता “विद्येचे बाळ”।)

☆ विद्येचे बाळ ☆

 दिवा जळतो  आहे

अनेक वाती बनून

ज्योत बनन्याच काम केलेस तू

स्त्री जातीच्या, अंधारमय प्रकाशाला

लख्ख प्रकाशित केलेस तु

कालबाह्य रीतिरिवाज

जाळतच राहिलीस तू

अन् उमेदीने जगण्यासाठी

नवशिक्षित केलस तू

बदलत्या काळानुसार स्त्रीत्वाला

सामोरे जाण्याचं धैर्य दिलंस तू

स्त्री हक्कासाठी लढताना

इतिहासकालीन स्त्रीत्व दाखवल तू

स्त्री- पुरुष समानता

ते एकमेकांसाठीच आहेत

हे पदोपदी सिद्ध केलंस तू

स्त्री जीवनाचं शल्य सांगताना

तिला जगण्यासाठी बद्ध केलंस तू

तुझ्या लखलखणाऱ्या ज्योतीने

कितीतरी वातींना तेजोमय केलंस तू

मिळून साऱ्याजणींना एकत्र केलंस तू

सावित्री बनलीस आणि इतिहास गाठलास तू

पुन्हा पुन्हा नव्याने तेवण्याची

जिद्द मात्र ठेवलीस तू

तुझ्या विद्येच्या स्त्री जातीच्या बाळाला

जन्म देण्यासाठी एकदा पुन्हा परत ये

पुन्हा एकदा परत ये….पुन्हा एकदा परत ये…..

 

© सौ. मिनल अविनाश कुडाळकर

सांगली

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मराठी साहित्य – कविता ☆ साप्ताहिक स्तम्भ – स्वप्नपाकळ्या # 14 ☆ गुलाबी ☆ श्री प्रभाकर महादेवराव धोपटे

श्री प्रभाकर महादेवराव धोपटे

ई-अभिव्यक्ति में श्री प्रभाकर महादेवराव धोपटे जी  के साप्ताहिक स्तम्भ – स्वप्नपाकळ्या को प्रस्तुत करते हुए हमें अपार हर्ष है। आप मराठी साहित्य की विभिन्न विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं। वेस्टर्न  कोलफ़ील्ड्स लिमिटेड, चंद्रपुर क्षेत्र से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं। अब तक आपकी तीन पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं जिनमें दो काव्य संग्रह एवं एक आलेख संग्रह (अनुभव कथन) प्रकाशित हो चुके हैं। एक विनोदपूर्ण एकांकी प्रकाशनाधीन हैं । कई पुरस्कारों /सम्मानों से पुरस्कृत / सम्मानित हो चुके हैं। आपके समय-समय पर आकाशवाणी से काव्य पाठ तथा वार्ताएं प्रसारित होती रहती हैं। प्रदेश में विभिन्न कवि सम्मेलनों में आपको निमंत्रित कवि के रूप में सम्मान प्राप्त है।  इसके अतिरिक्त आप विदर्भ क्षेत्र की प्रतिष्ठित साहित्यिक एवं सांस्कृतिक संस्थाओं के विभिन्न पदों पर अपनी सेवाएं प्रदान कर रहे हैं। अभी हाल ही में आपका एक काव्य संग्रह – स्वप्नपाकळ्या, संवेदना प्रकाशन, पुणे से प्रकाशित हुआ है, जिसे अपेक्षा से अधिक प्रतिसाद मिल रहा है। इस साप्ताहिक स्तम्भ का शीर्षक इस काव्य संग्रह  “स्वप्नपाकळ्या” से प्रेरित है ।आज प्रस्तुत है उनकी एक  भावप्रवण कविता “गुलाबी“.) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ  – स्वप्नपाकळ्या # 14 ☆

☆ गुलाबी

 

गुलाबी चेह-यावरी गुलाबी, छटा दिसते मज अशी

अंबरातुनी फुले बरसली, तुझ्या तनुवर जशी

 

हि-यातुनी किरणे फाकावी, तसे तुझे ते स्मीत

त्या किरणांनी प्रीत बहरली, जगावेगळी रीत

 

तुझ्या तनुची झाक गुलाबी,ओठांची तव फाक गुलाबी

श्वासासोबत अवतीभवती, सुगंधही दरवळे

 

फूलपाकळ्या अशा विखुरल्या, जणू फूलपाखरे

साडीवर तव येऊनी बसल्या, खोटे की हे खरे

 

मनातला हा गुलाब आता, विसावला बघ तिथे

मृदू कठोरचा संगम होई ,गुलाबी गाभा जिथे

 

©  प्रभाकर महादेवराव धोपटे

मंगलप्रभू,समाधी वार्ड, चंद्रपूर,  पिन कोड 442402 ( महाराष्ट्र ) मो +919822721981

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