(प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ जी के साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक साहित्य ” में हम श्री विवेक जी की चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाने का प्रयास करते हैं। श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, मुख्यअभियंता सिविल (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी , जबलपुर ) से सेवानिवृत्त हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है। आपको वैचारिक व सामाजिक लेखन हेतु अनेक पुरस्कारो से सम्मानित किया जा चुका है।आज प्रस्तुत है आपकी विदेश यात्रा के संस्मरणों पर आधारित एक विचारणीय आलेख – ”न्यू जर्सी से डायरी…”।)
यात्रा संस्मरण ☆ न्यू जर्सी से डायरी… 17 ☆ श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’
भारत में अच्छे से फ्लैट, बंगले में बाहरी गैलरी में प्रायः अरगनी पर कपड़े सूखते दिखते हैं, क्योंकि वहां कपड़े धूप में प्राकृतिक गर्मी से सुखाए जाते हैं । वहां का मौसम ऐसा होता है ।
यहां किसी के घर में बालकनी में कपड़े सूखते नहीं दिखते , क्योंकि यहां अक्सर मौसम ही नमी भरी हवाओ वाला होता है । इससे यहां लांड्री बिजनेस खूब चल निकला है । ढेर सारी वाशिंग मशीन, और उतने ही ड्रायर लगे हुए हैं । लोग रोज के कपड़े लांड्री बैग में इकट्ठे करते जाते हैं फिर दो चार दिनों में एक बार किसी पास की लांड्री में जाकर दो तीन घंटों में कपड़े, धो सुखाकर ले आते हैं ।
हर स्ट्रीट में ऐसी कई लांड्री सहज दिखती हैं ।
भारत में भी कोई स्टार्टअप यह बिजनेस खड़ा करे तो शायद चल निकलेगा ।
कम ही लोगों के घरों में ही वाशिंग और ड्रायर मशीनें व्यक्तिगत होती हैं, जगह और इन्वेस्टमेंट दोनो की बचत, बेटे के घर पर दोनो ही मशीनें लगी हैं, इतना ही नहीं लाक डाउन की अवधि में जब श्रीमती जी को खुद कपड़े धोने सुखाने की नौबत आई तो बेटी ने आन लाइन सेमसंग का ड्रायर ही भेज दिया था तो अब वे भी धोकर कपड़े सीधे अलमारी में ही रखा करती हैं।
विवेक रंजन श्रीवास्तव, न्यूजर्सी
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈
(प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ जी के साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक साहित्य ” में हम श्री विवेक जी की चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाने का प्रयास करते हैं। श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, मुख्यअभियंता सिविल (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी , जबलपुर ) से सेवानिवृत्त हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है। आपको वैचारिक व सामाजिक लेखन हेतु अनेक पुरस्कारो से सम्मानित किया जा चुका है।आज प्रस्तुत है आपकी विदेश यात्रा के संस्मरणों पर आधारित एक विचारणीय आलेख – ”न्यू जर्सी से डायरी…”।)
यात्रा संस्मरण ☆ न्यू जर्सी से डायरी… 15 ☆ श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’
किसी भी देश की राज मुद्रा वहां की संस्कृति की संवाहक भी होती है । आज बिट क्वाइन का जमाना आ चुका है । जल्दी ही भारत सरकार भी ई-रुपया जारी करने वाली है । हमारे रुपए बड़े रंग बिरंगे हैं, जिससे रंग, आकार से ही उसकी कीमत की पहचान हो जाती है । महात्मा गांधी जिन्हें कभी धन संपत्ति रुपयों से कोई लगाव नहीं रहा उन्हें राष्ट्र पिता बनाकर हमने हर नोट पर छाप रखा है।
यहां अमेरिका में हर डालर लगभग एक से रंग रूप और आकार का है, बस उस पर लिखा मूल्य अलग है । मतलब खर्च करने के लिए भी पढ़ा लिखा होना जरूरी है ।
यहां की करेंसी की जानकारी इस लिंक पर सुलभ है >> https://www.uscurrency.gov/denominations
नया जमाना डेबिट या क्रेडिट कार्ड के प्लास्टिक मनी जमाने से मोबाइल के टैप से खर्च करने में तब्दील हो चुका है । सब वे प्लेटफार्म में एंट्री के लिए किसी टिकिट की अनिवार्यता नहीं , बस अपना गूगल पे से जुड़ा मोबाइल टैप कीजिए और डालर अकाउंट से कट जायेंगे , गेट खुल जायेगा , भीतर जाइए और मनचाहा सफर कीजिए । रेस्त्रां में , किसी भी शाप पर खरीदी कीजिए और मोबाइल स्वाइप कर के भुगतान कर दीजिए ।
हमने एक प्रसिद्ध चाइनीज रेस्त्रां में भोजन किया , भुगतान के लिए मैंने अपना स्टेट बैंक आफ इंडिया का कार्ड देना चाहा तो बेटे ने देख कर बताया कि यदि उससे भुगतान किया गया तो प्रति डालर लगभग 9 रुपए अतिरिक्त लगेंगे, जो बैंक करेंसी कनवर्शन चार्ज है । बेटे ने बताया की वाइज एप सबसे कम चार्जेज पर इंटरनेशनल मनी कनवरशन करता है। उसने मुझे उसका चेज बैंक का कार्ड सौंप रखा है और उसी से सारे भुगतान करने की हिदायत दी है।
कितना बड़ा हो गया है वह जिसे लेकर कभी मैं स्कूटर पर उसकी पसंद की किताबे खरीदा करता था, अब वह मुझे कार में बैठा विदेश में मेरे लिए पूछ पूछ कर जबरदस्ती खरीदी करता है।
विवेक रंजन श्रीवास्तव, न्यूजर्सी
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈
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यात्रा संस्मरण ☆ न्यू जर्सी से डायरी… 14 ☆ श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’
पॉलिनेटर गार्डन
जंगली घास , खरपतवार पौधो को भी लगाया गया है, और उन्हें खाद पानी दिया जा रहा है। यह इसलिए कि मधुमक्खियां, तितलियां , कीड़े मकोड़े वर्ष भर इनके भरोसे जीवित रहते हैं और परागण प्रक्रिया में मदद करते हैं। ये कीड़े मकोड़े स्वयं भोजन होते हैं, चिड़ियों का ।
इस तरह प्रकृति चक्र चलता रहता है। शहरीकरण के साथ मिटती हरियाली और इस मानवीय हस्तक्षेप को उजागर कर, कम करने का पॉलिनेटर गार्डन लगाने का यह छोटा सा प्रयास सकारात्मक सोच प्रदर्शित करता मिला ।
विवेक रंजन श्रीवास्तव, न्यूजर्सी
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈
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यात्रा संस्मरण ☆ न्यू जर्सी से डायरी… 13 ☆ श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’
डागी वेस्ट
उम्दा नस्ल के प्यारे डागी पालना अच्छा शौक है। डागी के बहाने मालिक का भी सुबह शाम घूमना सुनिश्चित हो जाता है । मानसिक तनाव कम होता है। परिवार एक प्राणी का आश्रयदाता बनता है। खुशी मिलती है । बदले में इस बेवफा जमाने में, वफादारी मिलती है ।
पर इस सब से जुड़ी जो बड़ी समस्या है, वह है डागी की पाटी की । लोग कतई अपने कुत्तों को इस तरह ट्रेंड नही करते कि वे शौचालय में ही पाटी करें । अपने यहां बड़ी शान से मंहगी चेन में बंधे कुत्ते को लेकर कालोनी में साहब या मैडम निकलते हैं । फिर वह टामी, रोजी, ब्रूनो, ब्रेवो या जो कुछ भी हो, आपकी या अन्य किसी की भी मंहगी से मंहगी कार के टायर को सूंघता है और यदि वह गंध उसे भा गई तो निसंकोच आपके सामने ही एक टांग उठाकर निवृत हो लेता है । किसी के भी गेट के सम्मुख तक, कहीं भी पोट्टी करवाने में कुत्ते के मालिक जरा भी शर्मिंदा नहीं होते।
पर यहां देखने आता है की डाग वेस्ट मालिक की जबाबदारी है । लोग अपने डागी के साथ बाकायदा एक क्लीनिग स्टिक और पाली बैग लेकर चलते हैं । और डाग वेस्ट का प्रापर डिस्पोजल करते हैं । है न अच्छी अनुकरणीय बात ।
विवेक रंजन श्रीवास्तव, न्यूजर्सी
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈
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यात्रा संस्मरण ☆ न्यू जर्सी से डायरी… 12 – पोर्टेबल सोलर साइन बोर्ड ☆ श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’
स्टेट लिबर्टी पार्क एवम अन्य अनेक स्थानों पर देखने मिले ये पोर्टेबल सोलर साइन बोर्ड। जहां आवश्यकता हो वहां , जो सूचना दिखानी हो वह कम्प्यूटर जनित पट्टिका ग्लोइंग लेटर्स में ।
पर फिलहाल मेरी रुचि इसमें नहीं थी कि बोर्ड पर क्या डिस्प्ले हो रहा है , अपने पाठको के लिए मेरी रुचि थी स्वयं इस पोर्टेबल साइन बोर्ड तकनीक पर । ऊपर सोलर पैनल लगे हैं , सूरज की रोशनी बैटरी चार्ज कर रही है , मतलब रात में भी डिस्प्ले बना रहेगा । गार्डन एरिया किसी तरह क्षति ग्रस्त नहीं होगा । यथा आवश्यकता साइन बोर्ड हटाया जा सकता है ।
है न कुछ छोटा पर भारत में बहुत अप्रयुक्त नया सा ।
विवेक रंजन श्रीवास्तव, न्यूजर्सी
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(प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ जी के साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक साहित्य ” में हम श्री विवेक जी की चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाने का प्रयास करते हैं। श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, मुख्यअभियंता सिविल (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी , जबलपुर ) से सेवानिवृत्त हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है। आपको वैचारिक व सामाजिक लेखन हेतु अनेक पुरस्कारो से सम्मानित किया जा चुका है।आज प्रस्तुत है आपकी विदेश यात्रा के संस्मरणों पर आधारित एक विचारणीय आलेख – ”न्यू जर्सी से डायरी…”।)
यात्रा संस्मरण ☆ न्यू जर्सी से डायरी… 11 – डाक व्यवस्था ☆ श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’
डाक व्यवस्था
मेघदूत की डाक व्यवस्था महाकवि कालिदास ने भारतीय वांग्मय में की थी, आज तक इस अमर साहित्य का रसास्वादन, पाठ प्रतिपाठ हम करते हैं और हर बार नए आनंद सागर में गोते लगाते हैं। सात समंदर पार मेरे सामान्य पाठको को जानने में रुचि हो सकती है कि भारत की तुलना में यहां की डाक व्यवस्था कैसी है?
भोपाल में तो मेरा पोस्टमैन होली दिवाली अपेक्षा करता है कि उसे एक मिठाई के डिब्बे के साथ कुछ बख्शीश मिले, आखिर वह मेरी बुक पोस्ट से लेकर समीक्षार्थ किताबो, पत्रिकाओं के स्पीड पोस्ट तक और कभी कभार पारिश्रमिक का मनीआर्डर भी लाया करता है। यद्यपि ई मेल और सीधे बैंक खाते में पेमेंट प्रणाली ने बहुत कुछ बदल दिया है, पर फिर भी डाक के इंतजार का मजा अलग ही होता है। पत्नी चुटकी लेती है, की जितना इंतजार और स्वागत डाकिए का इस घर में होता है उतना शायद ही कहीं होता हो ।
भारतीय पोस्ट आफिस नेटवर्क गांव गांव तक व्याप्त है, गंगाजल से लेकर तिरंगे की बिक्री तक का काम पोस्ट आफिस ने किए हैं।
यहां के डाक विभाग की सामान्य जानकारी इस लिंक पर है >> https://www.usps.com/
कल बेटे के साथ यू एस पोस्ट आफिस जाना हुआ, बेटे को कोई जरूरी रजिस्टर्ड डाक भेजनी थी , उसने घर पर ही पेमेंट करके ट्रेकिंग आई डी सहित एड्रेस प्रिंट कर लिया और उसे लिफाफे पर चिपका कर डाक तैयार कर ली । उसने बताया की वह चाहे तो इसका पिकअप भी घर से ही अरेंज हो सकता है, जिसमे समय लग सकता है, अतः हमने स्वयं डाकघर जाकर वहां डाक देने का फैसला किया । हम डाकघर गए, केवल एक व्यक्ति ही वहां काम पर था , उसने डाक लेकर रसीद हमे दे दी । कोई भीड़ नहीं, कोई लाइन नहीं । सेल्फ सर्विस । लगभग स्वचालित सा ।
घर के बाहर एक मेल बाक्स लगा हुआ है, जिसमे बेटे की ढेर सी डाक पोस्ट से, कुरियर से कब आ जाती है पता ही नहीं लग पाता।
पर दूर देश में संदेश का महत्व निर्विवाद है । चिट्ठी आई है चिट्ठी आई है।
यहां के जिन उपेक्षित, सामान्य, अनदेखे मुद्दों पर आप पढ़ना चाहें जरूर बताएं । अवश्य लिखूंगा ।
विवेक रंजन श्रीवास्तव, न्यूजर्सी
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈
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यात्रा संस्मरण ☆ न्यू जर्सी से डायरी… 10 ☆ श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’
रुकी हुई कार सड़क पार करता आदमी
आप को सड़क पार करता देख, बाअदब कोई मर्सडीज भी रुक जाए और स्टीयरिंग व्हील पर बैठा व्यक्ति मुस्करा कर आपको सड़क क्रास करने का इशारा करे, तो भारत में भले ही अजीब सा लगे, पर अमेरिका में स्टेट ला के अनुसार सड़क पर पहला अधिकार पैदल चलने वाले का होता है। जेब्रा क्रॉसिंग पर यदि कोई सिग्नल नहीं है तो बेधड़क बढ़ जाइए, निश्चिंत रहिए, कार रुक ही जायेगी ।
हिंदुस्तान में फर्राटे भरते, गड्ढों में भरा कीचड़ उछालते गाड़ियों पर सवार अमीरजादों के मनोभाव तो ऐसे होते हैं मानो उन्होंने सड़क ही खरीद ली हो। किंतु यहां की सीमित आबादी, सुशिक्षित जन साधारण, नियमो के प्रति आम आदमी का संवेदन शील रवैया, पोलिस की चाक चौबंद व्यवस्था वे कारण हैं जिनके चलते बिना भीड़ की सड़क पर भी रुकी हुई कार और सड़क पार करते आदमी का दृश्य यहां सहजता से देखने मिल जाता है।
विवेक रंजन श्रीवास्तव, न्यूजर्सी
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈
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यात्रा संस्मरण ☆ न्यू जर्सी से डायरी… 9 ☆ श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’
इंसान और पशु पक्षियों का साथ नैसर्गिक है
जो लोग घरों में कोई पशु पक्षी पालते हैं वे अपेक्षाकृत तनाव मुक्त रहते हैं, यद्यपि पालतू प्राणी की चिंता में अवश्य उन्हें व्यस्त रहना पड़ता है । अपने पालतू डागी को लेकर घूमते लोग सहज ही मिल जाते हैं । यहां बिल्लियां बहुत प्यार से पाली जाती हैं । अलग अलग ब्रीड के प्यारे प्यारे कुत्तों पर फिर कभी लिखता हूं । आज महज उन प्राणियों का एक कोलाज देखिए जो यहां घूमते हुए मुझे प्रायः मिले । कबूतर, सड़को पर बेहिसाब बिल्लियां, मोटी तगड़ी गिलहरियां, और झुंड में मिलते ये कैनेडियन गूज।
प्रकृति के मुखर प्रतिनिधि हैं जो यहां इंसानी बसाहट के साथ सामंजस्य बैठाकर अपनी उपस्थिति दर्ज करते हैं
विवेक रंजन श्रीवास्तव, न्यूजर्सी
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(प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ जी के साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक साहित्य ” में हम श्री विवेक जी की चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाने का प्रयास करते हैं। श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, मुख्यअभियंता सिविल (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी , जबलपुर ) से सेवानिवृत्त हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है। आपको वैचारिक व सामाजिक लेखन हेतु अनेक पुरस्कारो से सम्मानित किया जा चुका है।आज प्रस्तुत है आपकी विदेश यात्रा के संस्मरणों पर आधारित एक विचारणीय आलेख – ”न्यू जर्सी से डायरी…”।)
यात्रा संस्मरण ☆ न्यू जर्सी से डायरी… 8 ☆ श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’
गांधी जयंती पर स्टेट लिबर्टी पार्क न्यू जर्सी में
9/11 मेमोरियल पर महात्मा गांधी विश्व में शांति और अहिंसा के आईकान के रूप में जाने जाते हैं। आज उनकी जयंती है । घर के निकट ही हडसन नदी के किनारे स्टेट लिबर्टी पार्क है, मात्र कोई एक किलोमीटर दूर । आज सुबह प्रकृति से मिलने यहीं चला आया ।
किंतु 9/11 मेमोरियल देख, पार्क में लकड़ी की बैंच पर बैठे हुए वैचारिक मुलाकात हो गई, सदी की उस वीभत्स आतंकी घटना से जिसने 93 देशों के लगभग 3000 निरपराध लोगों की जान ले ली थी । वर्ष 2001 की 11 सितंबर को सुबह लगभग 9 बजे, दो विमान 111 मंजिले वर्ल्ड ट्रेड सेंटर से थोड़े अंतर से टकराए और ट्विन टावर ध्वस्त हो गए। गांधी के सिद्धांत सुबक रहे थे। आतंकी हंस रहे थे । आज भी नव दुर्गा निरंतर संहार कर रही हैं पर नए नए दैत्य क्रूर हंसी हंस रहे हैं।
ठंडी हवाये दुखते जख्म सहलाने की कोशिश कर रही है, सूरज इंसानियत के दुख में शामिल, नजरो से छिपा हुआ है।
मैं मौन श्रद्धा सुमन अर्पित करता हूं गांधी को और 9/11 मेमोरियल, न्यूजर्सी पार्क में बने मेमोरियल वाल पर अंकित हर नाम को जो संभावनाओं से भरा एक असमय मिटा दिया गया उपन्यास था ।
विवेक रंजन श्रीवास्तव, न्यूजर्सी
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈
(प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ जी के साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक साहित्य ” में हम श्री विवेक जी की चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाने का प्रयास करते हैं। श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, मुख्यअभियंता सिविल (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी , जबलपुर ) से सेवानिवृत्त हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है। आपको वैचारिक व सामाजिक लेखन हेतु अनेक पुरस्कारो से सम्मानित किया जा चुका है।आज प्रस्तुत है आपकी विदेश यात्रा के संस्मरणों पर आधारित एक विचारणीय आलेख – ”न्यू जर्सी से डायरी…”।)
यात्रा संस्मरण ☆ न्यू जर्सी से डायरी… 7 ☆ श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’
बिना दूधवाले की सुबह
हिंदुस्तान में हमारी सुबह सूरज की धूप की दस्तक के साथ ही पेपर वाले , दूधवाले , सब्जी वाले , कचरे वाले से शुरू होती हैं। पास के मंदिर से आती भजन की आवाजें आती हैं । फिर आती हैं बर्तन वाली , सफाई वाली , कपड़े वाली, खाना बनाने वाली , धोबी , पोस्टमैन , कुरियर, इन दिनों नए चलन में आन लाइन आर्डर के डिलीवरी बाय सहित , कभी रद्दी वाले , या गैस खत्म हो तो सिलेंडर वाला , या अन्य कोई न कोई हाकर को बुलाने की स्वैच्छिक छूट रहती ही है। कभी पिताजी से तो कभी बच्चों से या श्रीमती जी की किटी की फ्रेंड्स, मिलने मिलाने कोई न कोई आते ही रहता है । मतलब डोर बैल बजती ही रहती है।
इसके विपरीत यहां की सुबहे बिना बताए बिना शोर एकदम चुप्पे चाप हो रही हैं । सूरज भी बड़े लिहाज से ही पूरे पाश्चात्य सभ्य अंदाज में हेलो करते लगे ।
दूध के कैन फ्रिज में मौजूद , पेपर पास के स्टोर्स से लाना होगा, गार्बेज कलेक्शन ट्वाईस इन वीक , हाउस हेल्प है नहीं , डाक दरवाजे पर लगे मेल बाक्स में कब आ जाती है पता नहीं लगा । सब कुछ रोबोट सा ,शांत शांत , जिसकी अभी आदत नहीं ।
हां घूमने निकलो तो अपरिचितों से भी स्मित मुस्कान अवश्य मिलती है , जो बड़ी आश्वस्ति देती है, की हम इंसान हैं , रोबोट्स नहीं।
विवेक रंजन श्रीवास्तव, न्यूजर्सी
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈