हिंदी साहित्य – यात्रा-संस्मरण ☆ नर्मदा परिक्रमा – द्वितीय चरण # एक ☆ – श्री अरुण कुमार डनायक

श्री अरुण कुमार डनायक

 

(ई- अभिव्यक्ति में हमने सुनिश्चित किया था कि इस बार हम एक नया प्रयोग  कर रहे हैं।  श्री सुरेश पटवा जी  और उनके साथियों के द्वारा भेजे गए ब्लॉगपोस्ट आपसे साझा  करने का प्रयास करेंगे।  निश्चित ही आपको  नर्मदा यात्री मित्रों की कलम से अलग अलग दृष्टिकोण से की गई यात्रा  अनुभव को आत्मसात करने का अवसर मिलेगा। इस यात्रा के सन्दर्भ में हमने कुछ कड़ियाँ श्री सुरेश पटवा जी एवं श्री अरुण कुमार डनायक जी  की कलम से आप तक  पहुंचाई ।  हमें प्रसन्नता है कि यात्रा की समाप्ति पर श्री अरुण जी ने तत्परता से नर्मदा यात्रा  के द्वितीय चरण की यात्रा का वर्णन दस कड़ियों में उपलब्ध करना प्रारम्भ कर दिया है । उनकी विगत दो कड़ियाँ आप निम्न लिंक पर पढ़ सकते हैं :-

  1. हिंदी साहित्य – सफरनामा ☆ नर्मदा परिक्रमा – दूसरा चरण  – श्री अरुण कुमार डनायक जी की कलम से ☆ – अरुण कुमार डनायक  (3 नवम्बर 2019) http://bit.ly/2Nd143o
  2. हिंदी साहित्य – सफरनामा ☆ नर्मदा परिक्रमा – दूसरा चरण #2 – श्री अरुण कुमार डनायक जी की कलम से ☆ – अरुण कुमार डनायक (5 नवम्बर 2019) http://bit.ly/2oOausH

श्री अरुण कुमार डनायक जी द्वारा इस यात्रा का विवरण अत्यंत रोचक एवं उनकी मौलिक शैली में हम आज से दस अंकों में आप तक उपलब्ध करा रहे हैं। विशेष बात यह है कि यह यात्रा हमारे वरिष्ठ नागरिक मित्रों द्वारा उम्र के इस पड़ाव पर की गई है जिसकी युवा पीढ़ी कल्पना भी नहीं कर सकती। आपको भले ही यह यात्रा नेपथ्य में धार्मिक लग रही हो किन्तु प्रत्येक वरिष्ठ नागरिक मित्र का विभिन्न दृष्टिकोण है। हमारे युवाओं को निश्चित रूप से ऐसी यात्रा से प्रेरणा लेनी चाहिए और फिर वे ट्रैकिंग भी तो करते हैं तो फिर ऐसी यात्राएं क्यों नहीं ?  आप भी विचार करें। इस श्रृंखला को पढ़ें और अपनी राय कमेंट बॉक्स में अवश्य दें। )

ई-अभिव्यक्ति की और से वरिष्ठ यात्री मित्र दल को नर्मदा परिक्रमा के दूसरे चरण की सफल यात्रा पूर्ण करने के लिए शुभकामनाएं। 

☆हिंदी साहित्य – यात्रा-संस्मरण  ☆ नर्मदा परिक्रमा – द्वितीय चरण # एक ☆ – श्री अरुण कुमार डनायक ☆

गत वर्ष  13 से 17अक्टूबर की यात्रा के बाद हम सभी वर्ष पर्यन्त नर्मदा परिक्रमा की योजना बनाते रहे पर भौतिक जगत की आपाधापी और किसी न किसी बहाने के कारण  यात्रा  की तिथियां निर्धारित न की जा सकी। अंततः यह तय हुआ कि इस वर्ष एकादशी के आसपास पुनः परिक्रमा में चला जाय और झांसी घाट खमरिया से, जहां हमने पिछली यात्रा समाप्त की थी, सांडिया तक की कोई दो सौ किमी से अधिक की यात्रा पन्द्रह दिनों में पूरी कर नरसिंहपुर जिले  होते हुये दूधी नदी को पार कर होशंगाबाद जिले में प्रवेश किया जाय। जब मैंने और सुरेश पटवा ने आपस में चर्चा कर योजना बना ली तो हमारा नर्मदा परिक्रमा वाला निष्क्रिय व्हाट्स ऐप ग्रुप पुनः सक्रिय हो गया। सूचनाओं का आदान-प्रदान किया गया और 04.11.2019को यात्रा प्रारंभ करने का निश्चय किया गया पर अचानक सुरेश पटवा के यहां कुछ पारिवारिक कार्यक्रम आ गया और मुझे भी तीन तारीख को हिन्दी भवन द्वारा सम्मानित किया जाना था सो यात्रा  06.11.2019 से  18.11.2019 के बीच किया जाना तय हो गया।

जैसे ही तिथियों की घोषणा हुई सबसे पहले तेहत्तर वर्षीय  श्री जगमोहन अग्रवाल ने अपनी सहमति दी और बरमान में अपने साढू भाई तथा अपने पैत्रिक गांव  कौन्डिया में एक-एक रात विश्राम का आग्रह  भी कर डाला। फिर 62वर्षीय  एडव्होकेट मुंशीलाल पाटकर की खबर आ गई कि वे भी चलेंगे। भाई अविनाश दबे को एक विवाह में जाना था सो उन्होंने आगे बरमान में 12.11.2019  को सम्मिलित होने की स्वीकृति दी। हम पांच तो तैयार थे पर प्रयास जोशी की कोई खबर न थी। अतः दिंनाक 06.11.2019को सोमनाथ एक्सप्रेस से आरक्षण करवाने की जिम्मेदारी मुझे दी गई और मैंने भी तत्काल हम चार लोगों की टिकिट बुक करा दी,  कोच नंबर एस-4की बर्थ सात कन्फर्म बाकी सब प्रतीक्षा सूची में। यात्रा की तैयारी में सामान कम से कम हो इस हेतु भी हम सबने आपस में तय किया कि भोजन सामग्री  साथ में  ले जाने हेतु जिम्मेदारी सभी को अलग-अलग सौंप दी जाय। मैंने चार पैकेट पूरी सब्जी के तैयार करवाये तो अग्रवालजी ने गुड़ में पगे खुरमें लाने की ठानी, पटवाजी ने सूखे मेवा खरीदें और मुंशीलाल पाटकर ने दो तीन प्रकार के नमकीन बनवा लिए।

विगत यात्रा के अनुभवों से सीख लेते हुए सामान को कम करते करते कोई इक्कीस नग तो हो ही गये। इस बार मैंने गांधी साहित्य में कुछ पतली पुस्तकें ले जाना तय किया कारण मेरे सपनों का भारत या आत्मकथा वजनी हो जाती हैं। पिछली यात्रा में एक दिन मोजे गीले  हो गये थे सो मैंने जूते बिना जुराबों के ही पहन लिये नतीजा पैरों में छाले हो गये, अतः इस बार एक जोड़ा अतिरिक्त मोजे भी रख लिये।

यात्रा में लाठी का बड़ा सहारा होता है, परिक्रमा वासी और ग्रामीण उसे सम्मान के साथ सुखनाथ कहते हैं अतः बांस खेड़ी से चार लाठियां भी मैं ले आया। अब तैयारी पूरी हो गई तो मानस की चौपाई याद आ गई कि ‘अब विलंबु केहि कारन कीजै। तुरंत कपिन्ह कहुं आयसु दीजै ।।’ पर तिथि तो तय थी और हम सब 06.11.2019को हबीबगंज स्टेशन पहुंच गए वहां अचानक पूरी तैयारी के साथ प्रयास जोशी भी खड़े दिख गये, मन  प्रफुल्लित हुआ और हम सब प्रेम से गले मिले। ठीक समय पर कोई आठ बजे सोमनाथ एक्सप्रेस चार नंबर प्लेटफार्म पर आ गई। जगमोहन अग्रवाल भोपाल से गाड़ी में बैठ गये थे और हम चार हबीबगंज स्टेशन से चढ़े। शेष टिकटें भी कन्फर्म हो गई थी पर अलग-अलग कोच में। इटारसी आते आते रेलगाड़ी लगभग खाली हो गई और हम पांचों एक ही जगह बैठ गये,पूरी और आलू की सब्जी से कलेवा किया और कोई एक घंटे के विलंब से लगभग दो बजे श्रीधाम स्टेशन में उतरकर आटो रिक्शा की तलाश में लग गये।

नर्मदे हर!
©  श्री अरुण कुमार डनायक

42, रायल पाम, ग्रीन हाइट्स, त्रिलंगा, भोपाल- 39

(श्री अरुण कुमार डनायक, भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं  एवं  गांधीवादी विचारधारा से प्रेरित हैं। )

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हिंदी साहित्य – सफरनामा ☆ नर्मदा परिक्रमा – दूसरा चरण #4 – गंगई से ब्रह्म घाट ☆ – श्री सुरेश पटवा

सुरेश पटवा 

 

 

 

 

 

(विगत सफरनामा -नर्मदा यात्रा प्रथम चरण  के अंतर्गत हमने  श्री सुरेश पटवा जी की कलम से हमने  ई-अभिव्यक्ति के पाठकों से साझा किया था। इस यात्रा की अगली कड़ी में हम श्री सुरेश पटवा  जी और उनके साथियों द्वारा भेजे  गए  ब्लॉग पोस्ट आपसे साझा करने का प्रयास करेंगे। इस श्रंखला में  आपने पढ़ा श्री पटवा जी की ही शैली में पवित्र नदी नर्मदा जी से जुड़ी हुई अनेक प्राकृतिक, ऐतिहासिक और पौराणिक रोचक जानकारियाँ जिनसे आप संभवतः अनभिज्ञ  रहे होंगे।

इस बार हम एक नया प्रयोग  कर रहे हैं।  श्री सुरेश पटवा जी और उनके साथियों के द्वारा भेजे गए ब्लॉगपोस्ट आपसे साझा  करने का प्रयास करेंगे।  निश्चित ही आपको  नर्मदा यात्री मित्रों की कलम से अलग अलग दृष्टिकोण से की गई यात्रा  अनुभव को आत्मसात करने का अवसर मिलेगा। आज प्रस्तुत है नर्मदा यात्रा  द्वितीय चरण में  गंगई से ब्रह्म घाट  का यात्रा वृत्तांत। )

  ☆ सफरनामा – नर्मदा परिक्रमा – दूसरा चरण #4  – श्री सुरेश पटवा जी की कलम से ☆ 

☆ 08.11.2019 गंगई से ब्रह्म घाट ☆
(17 किलोमीटर 26266 क़दम) 

हम सभी लोगों की परिक्रमा किसी मन्नत या जन्नत की लालसा से नहीं की जा रही है अपितु यह हिंदू जिज्ञासुओं की एक सांस्कृतिक परिक्रमा है जिसका उद्देश्य परिक्रमा की भावना, क्षेत्र, विस्तार और लक्ष्य की सीधी जानकारी संग्रहित करना है ताकि उन्हें संहिताबद्ध किया जा सके।

(नर्मदा यात्रा द्वितीय चरण का शुभारम्भ – तीसरा दिवस)

शाहपुरा के मनकेडी गाँव से दो व्यक्तियों ने आज विधिवत अखंड परिक्रमा ऊठाई है। एक की बेटी का हाथ बंदर ने चबा लिया था उसे डाक्टर ठीक  न कर सके नर्मदा मैया ने दर्शन देकर उसे आशीर्वाद दिया और बेटी का हाथ ठीक हो गया। दूसरे ने घरेलू वाद-विवाद से मुक्ति हेतु परिक्रमा व्रत लिया है। वे भिक्षा में सीधा लेकर भोजन बनाते हैं और अतिरिक्त सामग्री दान कर देते हैं। प्रतिदिन पाँच घर भिक्षा माँगते हैं। समान्यत: लोग पाप मुक्ति, मान्यता या स्वर्ग कामना से परिक्रमा करते है। बिना किसी कामना के बहुत कम लोग इस अत्यंत दुरुह यात्रा पर निकलते है।

सनातन पौराणिक मान्यताओं के अनुसार नर्मदा के अमरकण्टक से नेमावर के बहाव को देवी नर्मदा की देह का ऊपर का हिस्सा माना जाता है, तदानुसार नेमावर नाभिकुंड है। नेमावर को विष्णु के छठे अवतार परशुराम का जन्मस्थान माना जाता है। इसका मतलब हुआ कि ऋषि जमदग्नि और रेणुका का आश्रम नेमावर में रहा होगा। भृगु, मार्कंडे, वशिष्ठ, कौंडिल्य, पिप्पल, कर्दम, सनत्कुमार अत्रि नचिकेता, कश्यप, कपिल जैसे अनेकों सनातन ऋषियों के आश्रम जबलपुर के भेड़ाघाट से नेमावर के बीच रहे हैं जहाँ वेदों का पठन-पाठन, उपनिषद, अरण्यकों, ब्राह्मण ग्रंथों और पुराणों के साथ स्मृतियों का लेखन कार्य उन ऋषि आश्रमों में हुआ है।

आर्य-अनार्य सिद्धांत को ठीक माने तो आर्यों के आगमन के बाद से अनार्य याने असुर विन्ध्याचल और सतपुडा पर्वतों के बीच सघन जंगलों में प्रवाहित सदानीरा नर्मदा के किनारों बस गए थे। उत्तर भारत का इलाक़ा उन्होंने आर्यों के लिए छोड़ दिया था। नरसिंहपुर के नृसिंह मंदिर में भगवान नरसिंह की  मूर्ति प्रह्लाद ने स्थापित की थी। इसी क्षेत्र में हिरण्यकश्यप का राज्य था, शोणितपुर अर्थात वर्तमान सोहागपुर में प्रह्लाद की एक बहन के पुत्र बाणासुर की राजधानी थी। देवासुर संग्राम के पूर्व देवताओं ने ब्रह्मकुण्ड में शिव आराधना की थी। गराडू घाट पर गरूँड़ पर गरूँड़ ने युद्ध काल में तपस्या की थी। नर्मदा की परिक्रमा में इन सभी देवी-देवताओं की परिक्रमा हो जाती है।

जयचंद विद्यालंकार के कालबद्ध पौराणिक इतिहास लेखन के बाद से पौराणिक साहित्य को हिंदुओं का ऐतिहासिक साहित्य माना जाने लगा है। नर्मदा घाटी का भेड़ाघाट से नेमावर का क्षेत्र देव-असुर संग्राम का साक्षी रहा है। 08.11.2019 गंगई से ब्रह्म घाट

तक की अबतक की सबसे दुरुह पदयात्रा की। रास्ता बहुत ख़राब कही कीचड़, कहीं नुकीले पत्थर और कहीं रेत के  अलावा कटे किनारे जानलेवा हो सकते थे। सुबह आठ बजे आश्रम के स्वामी धुरंधर बाबा से विदा लेकर नर्मदा किनारे-किनारे चल पड़े। क़रीबन तीन किलोमीटर चलकर मुआर घाट पहुँचे, मान्यता है कि दुर्गा देवी ने भेंसासुर का वध इसी घाट पर किया था। उस दिन कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की ग्यारस थी और आज भी वही ग्यारस पड़ी। घाट पर स्नान चल रहा था, हम सभी ने भी स्नान किए और जो कुछ चना-चबैना था उसे ग्रहण किया। घाट पर चार व्यक्ति अखंड परिक्रमा उठा रहे थे उनके परिजन उन्हें छोड़ने आए थे। आज कई लोग दोनों किनारे के घाटों से परिक्रमा उठा रहे थे शाम के चार बजे तक सफ़ेद कपड़ों में क़तारबद्ध होकर परिक्रमा वासी चल पड़े, नर्मदा के सौंदर्य में चार चाँद लग गए।

ब्रह्म घाट पर एक 93 वर्षीय बुज़ुर्ग लक्वाग्रस्त पत्नी सहित मिले, वे बड़ी आत्मीयता से पत्नी सेवा में रत हैं। उनके दालान ने ठिकाना जमाया, वे भोजन सामग्री देने को तत्पर थे बनाना हमें था परंतु थकान से शरीर टूट रहे थे। एक पंडित जी के घर से तीस रोटी और आलू की सब्ज़ी का ठेका तीन सौ रुपयों में तय हुआ और सुबह से ख़ाली पेट भर गए।

© श्री सुरेश पटवा

(श्री सुरेश पटवा, भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त अधिकारी और स्वतंत्र लेखन में व्यस्त हैं। आपकी प्रिय विधा साहित्य, दर्शन, इतिहास, पर्यटन आदि हैं।)

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हिंदी साहित्य – सफरनामा ☆ नर्मदा परिक्रमा – दूसरा चरण #3 – श्री सुरेश पटवा जी की कलम से ☆ – श्री सुरेश पटवा

सुरेश पटवा 

 

 

 

 

 

(विगत सफरनामा -नर्मदा यात्रा प्रथम चरण  के अंतर्गत हमने  श्री सुरेश पटवा जी की कलम से हमने  ई-अभिव्यक्ति के पाठकों से साझा किया था। इस यात्रा की अगली कड़ी में हम श्री सुरेश पटवा  जी और उनके साथियों द्वारा भेजे  गए  ब्लॉग पोस्ट आपसे साझा करने का प्रयास करेंगे। इस श्रंखला में  आपने पढ़ा श्री पटवा जी की ही शैली में पवित्र नदी नर्मदा जी से जुड़ी हुई अनेक प्राकृतिक, ऐतिहासिक और पौराणिक रोचक जानकारियाँ जिनसे आप संभवतः अनभिज्ञ  रहे होंगे।

इस बार हम एक नया प्रयोग  कर रहे हैं।  श्री सुरेश पटवा जी और उनके साथियों के द्वारा भेजे गए ब्लॉगपोस्ट आपसे साझा  करने का प्रयास करेंगे।  निश्चित ही आपको  नर्मदा यात्री मित्रों की कलम से अलग अलग दृष्टिकोण से की गई यात्रा  अनुभव को आत्मसात करने का अवसर मिलेगा। आज प्रस्तुत है नर्मदा यात्रा  द्वितीय चरण के शुभारम्भ   पर श्री सुरेश पटवा जी का आह्वान एक टीम लीडर के अंदाज में । )  

☆ सफरनामा – नर्मदा परिक्रमा – दूसरा चरण #3  – श्री सुरेश पटवा जी की कलम से ☆ 

☆ 07.11.2019 बेलखेडी से गंगई ☆
(10.5 किलोमीटर 17846 क़दम) 

बेलखेडी के मंदिर के खुले प्रांगण में रात गुज़ारी, वहाँ चार-पाँच सेवक चाय भोजन की व्यवस्था करते रहे। दाल चावल रोटी का सेवन किया। उसके बाद आठ-दस लोग प्रांगण में आकर बैठे, उनसे सनातन धर्म में दीपक की महत्ता पर चर्चा हुई कि हम रोज़ दीपक क्यों जलाते हैं। हमारी देह पृथ्वी, जल, वायु, अग्नि और आकाश के पंचभूत से अस्तित्व में आती है और आत्मा की ज्योति जीव रूप में प्रतिष्ठित होती है। दीपक पृथ्वी की मिट्टी से बनता है, उसमें तेल रूप में जल, और वायु  व आकाश के खुलेपन में अग्नि प्रज्वलित करके दीपक जलाया जाता है। इस प्रकार दीपक जीवंत देह का प्रतीक है। पंचभूत और आत्मा के सम्मान स्वरुप दीपक जलाया जाता है।

उसके बाद गांधी जी के जीवन पर बातचीत हुई लोगों को स्वतंत्रता संग्राम से जुड़ी महत्वपूर्ण घटनाओं और गांधी जी की भूमिका पर संवाद हुआ।

(नर्मदा यात्रा द्वितीय चरण का शुभारम्भ – प्रथम दिवस)

सुबह एक-एक गिलास दूध पीकर आठ बजे गाँव से नर्मदा की गोदी में उतर कर चल पड़े। रास्ता बड़ा कठिन था, किसानों ने खेतों को गोड़ दिया है या फ़सल बोकर स्प्रिंकलर चलने से रास्ते पर कीचड़ हो जाने से जूतों में दो-दो किलो मिट्टी चिपकने से चलना दूभर था। बड़ी मुश्किल से रुक-रुक कर चलते रहे।  क़रीबन तीन बजे धुरन्धर बाबा के आश्रम में पहुँचे। धुरन्धर बाबा बिहार से आकर नर्मदा के किनारे एक पहाड़ी पर आश्रम बनाकर रहने लगे हैं। गाँजे की पत्ती और चाय उनका भोजन है।

एक बार सरकारी आबकारी विभाग ने धुरन्धर बाबा को गाँजे के पौधे साक्ष्य स्वरुप लेकर नरसिंहपुर कलेक्टर के सामने  पेश किया। धुरन्धर बाबा ने दलील रखी कि गाँजे की पत्तियाँ मेरा भोजन है, नहीं खाऊँगा तो मर जाऊँगा और हत्या का आरोप आपके माथे पर आएगा। कलेक्टर साहब ने आबकारी अधिकारी को धुरन्धर बाबा की पेशकारी पर डाँट पिलाई। उस दिन के बाद धुरन्धर बाबा निर्विघ्न गाँजे की खेती करके पत्तियों को भोजन और चाय सेवन से ज़िंदा हैं। उनके बाल दस फ़ुट लम्बे हैं, बाबा का कहना है की  जिन लड़कियों या औरतों को केश की लम्बाई बढ़ानी है वे गाँजे की पत्तियों का नियमित सेवन करें। बाबा मज़बूत पाए के काऊच पर आसन जमाए रहते हैं, गाँजा रगड़ते और बाँटते हैं उनके पास आठ-दस कुत्ते पले हैं जिनको भी गाँजे के धुएँ और पत्तियों के सेवन की आदत पड़ गई है।

(नर्मदा यात्रा द्वितीय चरण का शुभारम्भ – दूसरा दिवस)

पहले हमारा सामना उनके एक धूर्त सेवक से हुआ, जो खींसे निपोरकर  किसी भी बात का मुंडी हिलाकर जबाव देता था। पहले बोला आश्रम में दाल-चावल भर हैं। रात में केवल दाल-चावल खाने से रात में बार-बार पेशाब  से नींद टूटती है और अच्छी नींद  नहीं होने से शरीर टूटने लगता है जबकि हमें रोज़ दस किलोमीटर चलना होता है। हम गाँव से आलू, भटे और टमाटर ख़रीद लाए तो वह बोला आपही बना लो, जब धुरन्धर बाबा को पता चला तो उन्होंने स्वयं सब्ज़ी और हमारी आठ चपाती के बराबर एक 10-12 mm मोटाई का टिक्क बनाकर परसा जिसे मुश्किल से खपा पाए।

© श्री सुरेश पटवा

(श्री सुरेश पटवा, भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त अधिकारी और स्वतंत्र लेखन में व्यस्त हैं। आपकी प्रिय विधा साहित्य, दर्शन, इतिहास, पर्यटन आदि हैं।)

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हिंदी साहित्य – सफरनामा ☆ नर्मदा परिक्रमा – दूसरा चरण #2 – श्री सुरेश पटवा जी की कलम से ☆ – श्री सुरेश पटवा

सुरेश पटवा 

 

 

 

 

 

(विगत सफरनामा -नर्मदा यात्रा प्रथम चरण  के अंतर्गत हमने  श्री सुरेश पटवा जी की कलम से हमने  ई-अभिव्यक्ति के पाठकों से साझा किया था। इस यात्रा की अगली कड़ी में हम श्री सुरेश पटवा  जी और उनके साथियों द्वारा भेजे  गए  ब्लॉग पोस्ट आपसे साझा करने का प्रयास करेंगे। इस श्रंखला में  आपने पढ़ा श्री पटवा जी की ही शैली में पवित्र नदी नर्मदा जी से जुड़ी हुई अनेक प्राकृतिक, ऐतिहासिक और पौराणिक रोचक जानकारियाँ जिनसे आप संभवतः अनभिज्ञ  रहे होंगे।

इस बार हम एक नया प्रयोग  करेंगे।  श्री सुरेश पटवा जी  और उनके साथियों के द्वारा भेजे गए ब्लॉगपोस्ट आपसे साझा  करने का प्रयास करेंगे।  निश्चित ही आपको  नर्मदा यात्री मित्रों की कलम से अलग अलग दृष्टिकोण से की गई यात्रा  अनुभव को आत्मसात करने का अवसर मिलेगा। आज प्रस्तुत है नर्मदा यात्रा  द्वितीय चरण के शुभारम्भ   पर श्री सुरेश पटवा जी का आह्वान एक टीम लीडर के अंदाज में ।  साथ ही आज के ही अंक में पढ़िए श्री अरुण डनायक  जी का भी आह्वान  उनके अपने ही अंदाज में । )  

☆ सफरनामा – नर्मदा परिक्रमा – दूसरा चरण #2  – श्री सुरेश पटवा जी की कलम से ☆ 

☆ 06.11.2019 झाँसी घाट से बेलखेडी☆
हम राजकोट एक्सप्रेस से एक बैकपेक में एक पैंट, दो शर्ट, अण्डरवेयर तौलिया, स्लीपिंग बेग, वॉर्मर इनर, अतिरिक्त मोज़े व रुमाल, स्लीपर, तेल साबुन, कुछ नक़द राशि और सूखे मेवे खजूर रखकर भोपाल से श्रीधाम पहुँचने हेतु चल पड़े। अगले 12 दिन बस यही हमारी सम्पत्ति है।
जीवन यात्रा में बहुत सारा सामान घर में, रक़म बैंक में, मकान शहर में इकट्ठे किए है लेकिन इतना  सामान जीवन जीने के लिए काफ़ी है। रिश्तों को निभाने में बहुत सारे अच्छे-बुरे भाव मन में गाँठ बाँधकर रखे. आज  न सिर्फ़ सारा सामान, आराम छोड़कर निकले अपितु अगले बारह दिन जब थके माँदे शरीरों को खुले आकाश के नीचे ऊबड़-खाबड़ ज़मीन पर फेंकेंगे तो मन की गाँठे भी ख़ूब खुलेंगी। भिक्षा से भोजन प्राप्ति में अहंकार की गाँठे भी अवचेतन से ढीली होकर चेतन पटल पर आएँगी।  जिन्हें ध्यान लगाकर खोला जा सकेगा। आज सुबह ध्यान के बाद कवित्व जागा।
इसके पहले
लोग तुम्हें छोड़ दें
रिश्ते तुम्हें तोड़ दें
तुम सीख लो उन्हें छोड़ना।
सुबह का सूरज सीखता
रोज़ पृथ्वी को घुमाकर
दिन-रात सजाकर
अपनी राह छोड़ना।
पेड़  सिखाता नियम से
ख़ूब खिले
फूलों-फलों को
शाख़ से छोड़ना।
रिश्ते-नाते,माया-मोह,
धन सम्मोहन, यश-यौवन
सीख लो दिल से
सब यहीं छोड़ना।
पहले भी
करोड़ों-अरबों-खरबों को
निश्चित पड़ा था
ये जहाँ छोड़ना।
छूटते सभी एक न एक दिन
आत्मा से देह, अपनो से नेह
भला-बुरा सब कुछ
यहीं है छोड़ना।
समय की दीवार में टंगे
कैलेण्डर हो तुम
खील को तुम्हें भी
पड़ेगा छोड़ना।
नियति के सर्कस
का अटल नियम
समय पर झूला पकड़ना
समय पर छोड़ना।
आज से बारह दिन नर्मदा मैया के दामन में जीवन नैया खैबेंगे, वही पार लगाएगी-वही डुबाएगी, वही पलनहार, वही रुलाएगी-वही हँसाएगी।
राजकोट एक्सप्रेस से दिन के दो बजे श्रीधाम पहुँचे। ख़बर मिली कि एक परकम्मा वासी मुंशीलाल को ख़बर मिली कि उनकी बेटी की सासु जी को निधन आमला में हो गया है जिनकी रसोई ग्यारह तारीख़ को रखी गई है इसलिए निर्णय हुआ कि वे यात्रा जारी रखेंगे। वे बरमान घाट से करेली पहुँच कर रेलगाड़ी से आमला जाएँगे। रसोई में सम्मिलित होकर वे आगे की यात्रा बारह तारीख़ को हेतु वापस बरमान आ जाएँगे। बाक़ी यात्री तब तक बरमान में रुके रहेंगे।
एक ऑटो से झाँसी घाट पहुँचे। वहाँ चाय पानी करके नर्मदा मैया को नारियल चढ़ाया। घाट पर समूह की मोबाईल से फ़ोटो उतारने को कहा तो उसने कहा उसे फ़ोटो निकालना नहीं आता, हमने उसका नाम पूछा, उसने भैरव बताया। हमने कहा भैरव बाबा को दारू चढ़ती है तो उसकी आँखों में चमक आ गई। फिर हमने फ़ोटो निकालने को कहा तो झट तैयार हो गया, उसके बाद दारू के वास्ते सौ रुपए माँगने लगा तो हमने उसे दस रुपए दिए। पाँच किलोमीटर की यात्रा पर बेलखेडी की तरफ़ नर्मदा को दाहिनी किनारे रखकर चल पड़े। किसान कछारी खेतों में मैथी, मिर्ची, गाजर और बेंगन उगा रहे थे जिसकी नक़द रक़म लेकर बाद में उन्ही खेतों में गेहूँ बो देंगे।
तीन घंटों में 5.5 किलोमीटर की यात्रा करके बेलखेडी पहुँचे। बेलखेडी 250 घरों का गाँव है। 60 घर बर्मन यानि ढीमर के, चार-छः घरों के दीगर समाज और बाक़ी सब लोधियों के घर हैं। पूरा नरसिंहपुर का ग्रामीण इलाक़ा लोधियों भरपूर है। जिनकी बसावट की अपनी कहानी है।
 © श्री सुरेश पटवा

(श्री सुरेश पटवा, भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त अधिकारी और स्वतंत्र लेखन में व्यस्त हैं। आपकी प्रिय विधा साहित्य, दर्शन, इतिहास, पर्यटन आदि हैं।)

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हिंदी साहित्य – सफरनामा ☆ नर्मदा परिक्रमा – दूसरा चरण #2 – श्री अरुण कुमार डनायक जी की कलम से ☆ – अरुण कुमार डनायक

श्री अरुण कुमार डनायक

 

(इस बार हम एक नया प्रयोग  कर रहे हैं।  श्री सुरेश पटवा जी  और उनके साथियों के द्वारा भेजे गए ब्लॉगपोस्ट आपसे साझा  करने का प्रयास करेंगे।  निश्चित ही आपको  नर्मदा यात्री मित्रों की कलम से अलग अलग दृष्टिकोण से की गई यात्रा  अनुभव को आत्मसात करने का अवसर मिलेगा। आज प्रस्तुत है नर्मदा यात्रा  द्वितीय चरण पर  प्रस्तुत है  श्री अरुण डनायक  जी का नर्मदा यात्रा  के संस्मरण की अगली कड़ी । ) 

ई-अभिव्यक्ति की और से सम्पूर्ण दल को नर्मदा परिक्रमा के दूसरे चरण के लिए शुभकामनाएं। 

☆ सफरनामा – नर्मदा परिक्रमा – दूसरा चरण #2  – श्री अरुण कुमार डनायक जी  की कलम से ☆

 

अगर सौ या दो सौ साल बाद किसी को एक दंपती नर्मदा परिक्रमा करता दिखाई दे, पति के साथ में झाड़ू हो और पत्नी के हाथ में टोकरी और खुरपी; पति घाटों की सफाई करता हो और पत्नी कचरे को ले जाकर दूर फेंकती हो और दोनों वृक्षारोपण भी करते हों, तो समझ लीजिए कि वे हमीं हैं – कांता और मैं।”
“कोई वादक बजाने से पहले देर तक अपने साथ का सुर मिलाता है, उसी प्रकार इस जन्म में तो हम नर्मदा परिक्रमा का सुर ही मिलाते रहे। परिक्रमा तो अगले जन्म से करेंगे।”
श्रद्धेय अमृत लाल वेगड़ की पुस्तक तीरे-तीरे नर्मदा से।
वेगड़ बापू से तो नहीं मिला पर बा कांताजी के आशीर्वाद पिछली यात्रा शुरु करने से पहले लिये थे।अब जब कल से यह यात्रा दुबारा शुरु कर रहा हूं तो सौन्दर्य की नदी नर्मदा और तीरे तीरे नर्मदा के उन अंशों को बारम्बार  पढ़ रहा हूं जिनका संबंध हमारी यात्रा से होगा। रचनात्मक कार्यों की सूची में अब एक काम और जुड़ गया है , घाटों की सफाई। भगवान शक्ति दे और अमृतस्य नर्मदा के सृजक आदरणीय वेगड़ बापू आशीर्वाद दें कि यह संकल्प निर्विध्न पूरे हों। कल शरद से बात करूंगा। वे संत स्वरूपा ऋषि तुल्य आत्मा अमृत लाल वेगड़ के सुपुत्र हैं और मेरे मित्र भी। उनसे व दिलीप से मेरा परिचय 2000 से है जब मैं भारतीय स्टेट बैंक की कमला नेहरु नगर शाखा का मुख्य प्रबंधक था और दोनों भाई हमारे  ग्राहक। एकाधिक बार उनके घर गया पर बा-बापू से नहीं मिला। लेकिन अब जब परिक्रमा करता हूं और उनकी लिखी किताबें पढ़ता हूं तो लगता है वेगड़ बापू बगल में खड़े अपनी बूढ़ी आंखों से मुझे निहार रहे हैं और कह रहे हैं बेटा तू चलता चल , निर्भय होकर परकम्मा कर  मैं हूं न तेरे साथ।
नर्मदे हर!

©  श्री अरुण कुमार डनायक

42, रायल पाम, ग्रीन हाइट्स, त्रिलंगा, भोपाल- 39

(श्री अरुण कुमार डनायक, भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं  एवं  गांधीवादी विचारधारा से प्रेरित हैं। )

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हिंदी साहित्य – सफरनामा ☆ नर्मदा परिक्रमा – दूसरा चरण  – श्री सुरेश पटवा जी की कलम से ☆ – श्री सुरेश पटवा

सुरेश पटवा 

 

 

 

 

 

(विगत सफरनामा -नर्मदा यात्रा प्रथम चरण  के अंतर्गत हमने  श्री सुरेश पटवा जी की कलम से हमने  ई-अभिव्यक्ति के पाठकों से साझा किया था। इस यात्रा की अगली कड़ी में हम श्री सुरेश पटवा  जी और उनके साथियों द्वारा भेजे  गए  ब्लॉग पोस्ट आपसे साझा करने का प्रयास करेंगे। इस श्रंखला में  आपने पढ़ा श्री पटवा जी की ही शैली में पवित्र नदी नर्मदा जी से जुड़ी हुई अनेक प्राकृतिक, ऐतिहासिक और पौराणिक रोचक जानकारियाँ जिनसे आप संभवतः अनभिज्ञ  रहे होंगे।

इस बार हम एक नया प्रयोग  करेंगे।  श्री सुरेश पटवा जी  और उनके साथियों के द्वारा भेजे गए ब्लॉगपोस्ट आपसे साझा  करने का प्रयास करेंगे।  निश्चित ही आपको  नर्मदा यात्री मित्रों की कलम से अलग अलग दृष्टिकोण से की गई यात्रा  अनुभव को आत्मसात करने का अवसर मिलेगा। आज प्रस्तुत है नर्मदा यात्रा  द्वितीय चरण के शुभारम्भ   पर श्री सुरेश पटवा जी का आह्वान एक टीम लीडर के अंदाज में ।  साथ ही आज के ही अंक में पढ़िए श्री अरुण डनायक  जी का भी आह्वान  उनके अपने ही अंदाज में । )  

☆ सफरनामा – नर्मदा परिक्रमा – दूसरा चरण  – श्री सुरेश पटवा जी की कलम से ☆ 

(झाँसी घाट से बरमान घाट (86 किलोमीटर))
नर्मदा अमरकण्टक से निकलकर डिंडोरी-मंडला से आगे बढ़कर पहाड़ों को छोड़कर दो पर्वत शृंखलाओं दक्षिण में सतपुड़ा और उत्तर में कैमोर से आते विंध्य के पहाड़ों के समानांतर दस से पंद्रह किलोमीटर की दूरी बनाकर अरब सागर की तरफ़ कहीं उछलती-कूदती, कहीं गांभीर्यता लिए हुए, कहीं पसर के और कहीं-कहीं सिकुड़ कर बहती है। उसके अलौकिक सौंदर्य और उसके किनारे स्निग्ध जीवन के स्पंदन की अनुभूति के लिए पैदल यात्रा पर निकलना भाग्यशाली को नसीब होता है।
यह यात्रा वानप्रस्थ के द्वारा सभ्रांत मोह से मुक्ति का अभ्यास भी है। जिस नश्वर संसार को एक दिन अचानक छोड़ना है । क्यों न उस मोह को धीरे-धीरे प्रकृति के बीच छोड़ना सीख लें और नर्मदा के तटों पर बिखरे अद्भुत जीवन सौंदर्य का अवलोकन भी करें।
एक जींस या पैंट के साथ फ़ुल बाहों की शर्ट पहन कर चलें। एक पेंट और तीन-चार शर्ट, एक जोड़ी पजामा कुर्ता, एक शाल, एक चादर टोवेल और अंडरवेयर, साबुन तेल के अलावा कोई अन्य सामान न रखें। बैग पीछे टाँगने वाला हल्का हो।
वैसे तो आश्रम और धर्मशालाओं में भोजन की व्यवस्था हो  जाती है फिर भी रास्ते में ज़रूरत के लिए समुचित मात्रा में खजूर, भूनी मूँगफली, भुना चना और ड्राई फ़्रूट रखें। पानी की बोतल और एक स्टील लोटा के साथ एक छोटा चाक़ू भी रखें। कहीं कुछ न मिले तो परिक्रमा वासियों का मूलमंत्र  “करतल भिक्षु-तरुतल वास” भी आज़माना जीवन का एक विलक्षण अनुभव होगा।
06.11.19  – झाँसी घाट-बेलखेडी-करैली (6 km)
07.11.19  – करैली-मूंगरघाट-ब्रह्म कुण्ड  (8 km)
08.11.19  – ब्रह्म कुण्ड-साँकल घाट      (7 km)
09.11.19   – साँकल घाट-पिपरिया        (9 km)
10.11.19    – पिपरिया-चींकी-पीपहा      (11 km)
11.11.19  – पीपहा-सप्तधारा-बरमान     (11 km)
12.11.19  – आराम
14.11.19  – बरमान-ढाना-भटेरा        (8 km)
15.11.19  – भटेरा-शोकलपुर           (10 km)
16.11.19  – शोकलपुर-खैराघाट         (9 km)
17.11.19  – खैराघाट-साँडिया           (7 km)
                            कुल यात्रा            (86 km)
 

© श्री सुरेश पटवा

(श्री सुरेश पटवा, भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त अधिकारी और स्वतंत्र लेखन में व्यस्त हैं। आपकी प्रिय विधा साहित्य, दर्शन, इतिहास, पर्यटन आदि हैं।)

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हिंदी साहित्य – सफरनामा ☆ नर्मदा परिक्रमा – दूसरा चरण  – श्री अरुण कुमार डनायक जी की कलम से ☆ – अरुण कुमार डनायक

श्री अरुण कुमार डनायक

 

(इस बार हम एक नया प्रयोग  करेंगे।  श्री सुरेश पटवा जी  और उनके साथियों के द्वारा भेजे गए ब्लॉगपोस्ट आपसे साझा  करने का प्रयास करेंगे।  निश्चित ही आपको  नर्मदा यात्री मित्रों की कलम से अलग अलग दृष्टिकोण से की गई यात्रा  अनुभव को आत्मसात करने का अवसर मिलेगा। आज प्रस्तुत है नर्मदा यात्रा  द्वितीय चरण के शुभारम्भ   पर  प्रस्तुत है  श्री अरुण डनायक  जी का नर्मदा यात्रा के आह्वान का आनंद लें उनके अपने ही अंदाज में । ) 

 

☆ सफरनामा – नर्मदा परिक्रमा – दूसरा चरण  – श्री अरुण डनायक  जी की कलम से ☆ 

(झाँसी घाट से बरमान घाट (86 किलोमीटर))

☆ सफरनामा – नर्मदा परिक्रमा – दूसरा चरण  – श्री अरुण कुमार डनायक जी  की कलम से ☆

प्रिय जगमोहन लाल,

जोग लिखी ग्रीन हाइट्स भोपाल से अरुण कुमार ने, और पहले कही राम राम, सो ध्यान से बांचना, थोड़ी लिखी बहुत समझना और घरवालों तथा दोस्तों को भी पढने देना। सुना है नर्मदा की परकम्मा में फिर से जा रहे हो, सो ऐसा करना कि 06.11.2019 दिन बुधवार को सुबह सबेरे सोमनाथ एक्सप्रेस में बैरागढ़ से बोगी नंबर चार  बर्थ नंबर सात पर बैठ जाना। आगे हबीबगंज में तीन  और साथी मिलेंगे तो उन्हें भी अपने बगल में प्रेम से बिठाना और वे आपको एक गत्ता के डिब्बा में 10 पूरी और आलू की सब्जी देंगे सो इसका कलेवा और ब्यारी कर लेना। वे लोग आपको एक बांस का डंडा भी देंगे सो उसे भी रख लेना। आगे दुपहरी में श्रीधाम स्टेशन में उतर कर भैया टेम्पो कर झांसीघाट पहुँच जाना और नर्मदा मैया की  अगरबती पूजाकर, नारियल फोड़ यात्रा शुरू कर देना।

 भैया, नरसिंहपुर जिले में नर्मदाजी की इस यात्रा में आपको  तीन सहायक नदियाँ मिलेंगी, सनेर से तो आप झांसीघाट से पहले ही मिल चुके हो, आगे चलोगे तो शेर नदी मिलेगी यहाँ टोन घाट पर छोटा सा जलप्रपात मिलेगा , इसे देखकर आगे बढना शोकलपुर के पास शक्कर नदी का संगम  नर्मदा से होगा। यहाँ  भगवान शिव ने तपस्या की थी और इसका पुराना नाम शुक्लेश्वर घाट है, पूर्वी तट पर देखोगे तो नीलकंठेश्वर महादेव के दर्शन होंगे। यह स्थान प्रसिद्ध है पूर्णिमा का मेला भरता है और संस्कृत पाठशाला में रुकने  ठहरने की व्यवस्था है। जब नर्मदा में दूधी नदी मिलेगी तो समझना की नरसिंहपुर जिले की सीमा खतम और होशंगाबाद जिला शुरू।

अगरवालजी, पूरी यात्रा में आपको नर्मदा तट पर कोई सत्रह बड़े सुन्दर घाट मिलेंगे। मुआर तट पर भैसासुर का वध हुआ था तो चिनकी घाट पर नर्मदा संगमरमर की चट्टानों के बीच बहती है इसे लघु भेडाघाट भी कहते हैं, यहाँ पांच सौ साल पुराने शिव मंदिर के दर्शन करना न भूलना। आगे चलोगे तो गरारु घाट मिलेगा जहाँ गरुणदेव ने तपस्या की थी, राम जानकी मंदिर के दर्शन कर आगे बढना, करहिया घाट पर बरगद का पेढ़ देखकर घाट पिपरिया की ओर चले जाना, वहाँ शंकरजी के मंदिर की परिक्रमा किये बगैर आगे न जाना। फिर चट्टानों के बीच बहती, शोर मचाती नर्मदा के दर्शन तुम घुघरी घाट और बुध घाट पर करना और  सांकल घाट पहुंचना। मित्र, सांकल घाट की महिमा बहुत है, कहते हैं की आदि शंकराचार्य ने यहीँ तपस्या की थी। अगर मकर संक्रान्ति पर आते यहाँ तो गँवई गाँव के मेले का सुख पाते। सांकल घाट के आगे ब्रह्मकुंड है, देवासुर संग्राम का साक्षी। यहीँ शेर नदी और सतधारा मिलेगी जिसे पार करते ही आप बरमान पहुँच जाओगे। ब्रह्मा के यज्ञ स्थल, बरमान की शान निराली है।  यहाँ प्रेम से मीठे भुट्टे खाना और गन्ना चूसना। यहीँ पर आपकी भेंट हमारे फुफेरे भाई अविनाश दवे से होगी। भईया, अविनाश दवे से  हमारी राम राम कहना और बताना कि कभी उनके पुरखा गंगादत्त महेश्वर दवे तथा ननिहाल पक्ष के सोमदत्त शिवदत्त डनायक गुजरात के खेड़ा और उमरेठ से कोई तीन सौ साल पहले नर्मदा के तीरे तीरे चलकर बरमान से सागर होते हुए पन्ना बसने गये थे। मित्र न जाने वे किस घाट पर बैठे होंगेकहां  स्नान ध्यान और पूजन किया होगा। तुम्हें अगर कोई पंडा मिले तो उसकी पुरानी बहियों को जरुर खंगालना और हमारे  इन पुरखों का नाम जरूर खोजना। दोस्त, अगर संभव हो तो बरमान घाट की किसी कुटिया में हमारे इन पुरखों की स्मृति में दो चार पौधे लगाने अविनाश दवे को प्रेरित करना।  बरमान घाट पर बारहवीं सदी की वाराह मूर्ति, रानी दुर्गावती का बनवाया हुआ ताज महल की आकृति जैसा मंदिर, सत्रहवीं सदी का राम जानकी मंदिर, हाथी दरवाजा, खजुराहो जैसा सोमेश्वर मंदिर है, यह सब देखना न भूलना। मित्र, बरमान में एकाध दिन जरूर रुकना फिर आगे चलना तो बिल्थारी घाट पड़ेगा जहाँ बाली की राजधानी थी और महाभारत काल में पांडव यहीँ रुके थे। आगे बचई गाँव मिलेगा कहते हैं यह राजा विराट की नगरी थी इधर एक मानवाकार शिला दिखेगी जिसे लोग कीचक शिला भी कहते हैं।ककराघाट भी कम भाग्यशाली नहीं है, शिवानन्द की तपस्थली पर आप पारद शिवलिंग के दर्शन करना, फिर ककरा महराज की तपस्या के किस्से सुनना। कोई सज्जन आपको यह भी बताएगा कि यहीँ तिमार ऋषि ने जलसमाधि ली थी तो आगे रिछावर घाट पर जामवंत ने तपस्या की थी। यहाँ से कीटखेडा होते हुए रामघाट पहुंचना लोग बताते हैं कि यहीँ भगवान राम ने तप किया था। इधर शिव मंदिर और हनुमान मंदिर के दर्शन करना मत भूलना। भैया राम घाट के आगे ही शोकलपुर है जिसका बखान हमने ऊपर कर ही दिया है।

मित्र , बरमान घाट में कोई गवैया मिल जाए तो उससे बबुलिया गीत जरुर सुनना। नर्मदा मैया की श्रद्धा में  गाये जाने वाले इस गीत की महिमा निराली है और 1300 किमी की नर्मदा परिक्रमा में यह भजन गीत आपको यहीँ सुनने-सुनाने मिलेगा।

किसी ने हमें बताया कि गाडरवाड़ा के पास मोहपानी है। इधर एक गुफा , अंग्रेजों के जमाने का पुल और रानी दहार देखने लायक है। गाडरवाड़ा स्टेशन से कोई चौदह किमी दूर चौरागढ़ का किला है। इस किले से दुर्गावती के पुत्र वीर नारायण की वीरता के किस्से जुढ़े हैं और यहीँ किले के निकट नौनियाँ गाँव  में छह विशालकाय मूर्तियाँ देखने मिलेंगी। गाडरवाड़ा स्टेशन से कोई पांच किमी दूर डमरू घाटी है जहाँ भगवान् शिव की विशाल मूर्ती है।

दोस्त जब झाँसीघाट से चलोगे तो पहला विश्राम झालोन घाट पर करना और रात्रि बेलखेडी में रुकना। अगली रात मुआर के मंदिर में ठौर मिलेगी तो आगे जमुनियां गाँव के बाद सांकल पडेगा उधर रात में रुक जाना। आगे आप बढोगे तो पिपरिया और चिनकी में भी रात रुकने मिलेगी फिर बरमान में तो आनंद बरसने वाला है। बरमान से जब आप आगे चलोगे तो ज़रा संभलकर चलना। इधर पगडंडी सकरी और फिसलन भरी है ज़रा सी लापरवाही से नदी में गिरने का डर रहता है। आगे बारिया गावं पडेगा वहाँ रात बिता कर दूसरे दिन भदेरा के लिए चल देना। बस एक रात रुके तो शोकलपुर आ जाएगा। शोकलपुर में संस्कृत पाठशाला है जहा रात प्रेम से बिताना। शोकलपुर से जब आप चलोगे तो सांडिया पडेगा यहीँ अंजनी  नदी नर्मदा से मिलती दिखेगी।

मित्र, भोजन पानी की तो तुम चिंता न करना। नरसिंहपुर जिला तो कृषि और दुग्ध  प्रधान है और फिर कार्तिक का महीना  शुरू हो गया है सो दही से परहेज करना, बुंदेलखंड में लोकोक्ति है कि “क्वार करेला कार्तिक दही मरहो नई तो परहो सई”। अब तो खेतों में भटा, टमाटर, मिर्ची की फसल आ गई होगी और गुड़ घी तो खूब मिलेगा सो बढ़िया गक्कड, भरता घी गुड़ के साथ खाना और सीताफल, बेर, मुकईया और आँवला के साथ गन्ने को चूसना। नर्मदा मैया न तो तुम्हे भूखा रहने देंगी और न कष्ट में रहने देंगी। मित्र जब कभी  थक जाओ तो नर्मदा  तट के किनारे की रेत को  मैया का  आँचल समझ प्रेम सो जाना।    

दोस्त थोड़े में लिखा है इसे पढ़कर  सुरेश पहलवान और मुंशीलाल जी को जरूर सुनाना। अगर प्रयास जोशी कहीं मिल जायँ तो उन्हें भी यह चिट्ठी पढने को दे देना शायद वह भी साथ चलने को तैयार हो जाएँ।

अंत में  भईया नर्मदे हर ! हर हर नर्मदे ! 

 

©  श्री अरुण कुमार डनायक

42, रायल पाम, ग्रीन हाइट्स, त्रिलंगा, भोपाल- 39

(श्री अरुण कुमार डनायक, भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं  एवं  गांधीवादी विचारधारा से प्रेरित हैं। )

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ – ☆ जय प्रकाश पाण्डेय का सार्थक साहित्य # 19– यात्रा वृत्तांत – विकास की राह में आदर्श ग्राम योजना के वेदनामय स्वर ☆ – श्री जय प्रकाश पाण्डेय

श्री जय प्रकाश पाण्डेय

 

(श्री जयप्रकाश पाण्डेय जी   की पहचान भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी के अतिरिक्त एक वरिष्ठ साहित्यकार की है। वे साहित्य की विभिन्न विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं। उनके  व्यंग्य रचनाओं पर स्व. हरीशंकर परसाईं जी के साहित्य का असर देखने को मिलता है। परसाईं जी का सानिध्य उनके जीवन के अविस्मरणीय अनमोल क्षणों में से हैं, जिन्हें उन्होने अपने हृदय  एवं  साहित्य में  सँजो रखा है । प्रस्तुत है साप्ताहिक स्तम्भ की  अगली कड़ी में उनका  एक यात्रा वृत्तांत “विकास की राह में आदर्श ग्राम योजना के वेदनामय स्वर” । आप प्रत्येक सोमवार उनके  साहित्य की विभिन्न विधाओं की रचना पढ़ सकेंगे।)

☆ जय प्रकाश पाण्डेय का सार्थक साहित्य # 19☆

 

☆ यात्रा वृत्तांत –  विकास की राह में आदर्श ग्राम योजना के वेदनामय स्वर  

 

प्रधान मंत्री ने लोकनायक जय प्रकाश नारायण की जयंती पर 11 अक्टूबर 2014 को “आदर्श ग्राम योजना” लांच की थी इस मकसद के साथ कि सांसदों द्वारा गोद लिया गांव 11 अक्टूबर 2016 तक सर्वांगीण विकास के साथ दुनिया को आदर्श ग्राम के रूप में नजर आयेगा परन्तु कई जानकारों ने इस योजना पर सवाल उठाते हुए इसकी कामयाबी को लेकर संदेह भी जताया था जो आज सच लगता है। गांव की सूरत देखकर योजना के क्रियान्वयन पर चिंता की लकीरें उभरना स्वाभाविक है। गौरतलब है कि प्रधानमंत्री का मकसद इस योजना के जरिए देश के छह लाख गांवों को उनका वह हक दिलाना है जिसकी परिकल्पना स्वाधीनता संग्राम के दिनों में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने की थी। गांधी की नजर में गांव गणतंत्र के लघु रूप थे जिनकी बुनियाद पर देश की लोकतांत्रिक व्यवस्था की इमारत खड़ी है।

प्रधानमंत्री की अभिनव आदर्श ग्राम योजना में अधिकांश ग्रामों को गोद लिए पांच साल से ज्यादा गुजर गये है पर कहीं कुछ पुख्ता नहीं दिख रहा है।  ये भी सच है कि दिल्ली से चलने वाली योजनाएं नाम तो प्रधानमंत्री का ढोतीं हैं मगर गांव के प्रधान के घर पहुंचते ही अपना बोझा उतार देतीं हैं। एक पिछड़े आदिवासी अंचल के गांव की सरपंच हल्की बाई बैगा घूंघट की आड़ में कुछ पूछने पर इशारे करती हुई शर्माती है तो झट सरपंच पति मनीराम बैगा एक टोला में पानी की विकट किल्लत की बात करने लगता है – इसी टोला में नल नहीं लगे हैं, हैंडपंप नहीं खुदे और न ही बिजली पहुंची। आदर्श ग्राम योजना के बारे में किसी को कुछ नहीं मालुम…… ।

क्या है आदर्श ग्राम योजना? 

आदर्श ग्राम योजना के तहत गांव के विकास में वैयक्तिक, मानव, आर्थिक एवं सामाजिक विकास की निरंतर प्रक्रिया चलनी चाहिए। वैयक्तिक विकास के तहत साफ-सफाई की आदत का विकास, दैनिक व्यायाम, रोज नहाना और दांत साफ करने की आदतों की सीख, मानव विकास के तहत बुनियादी स्वास्थ्य सुविधाएं, लिंगानुपात संतुलन, स्मार्ट स्कूल परिकल्पना, सामाजिक विकास के तहत गांव भर के लोगों में विकास के प्रति गर्व और आर्थिक विकास के तहत बीज बैंक, मवेशी हॉस्टल, हेल्थ कार्ड आदि आते हैं।

आंखन देखी –  

मध्यप्रदेश के सुदूर प्रकृति की सुरम्य वादियों के बीच आदिवासी जिला के एक बैगा बाहुल्य गांव  के पड़ोस से कल – कल बहती पुण्य सलिला नर्मदा और चारों ओर ऊंची ऊंची हरी भरी पहाडि़यों से घिरा यह गांव एक पर्यटन स्थल की तरह महसूस होता है परन्तु गरीबी, लाचारी, बेरोजगारी गांव में इस कदर पसरी है कि उसका कलम से बखान नहीं किया जा सकता है। करीब 1400 की आबादी वाले इस गाँव में 80% गरीब बैगा परिवार रहते हैं। साक्षरता का प्रतिशत बहुत कमजोर और चिंतनीय है इस गाँव की बैगा बस्ती दिन के उजाले में भी सायं – सायं करती नजर आती है।

क्या कहते हैं ग्रामवासी ?  

प्रधानमंत्री की इस योजना में गांव के लोगों को कहा गया है कि वे अपने सांसद से संवाद करें। योजना के माध्यम से लोगों में विकास का वातावरण पैदा हो, इसके लिए सरकारी तंत्र और विशेष कर सांसद समन्वय स्थापित करें, इस बात पर सरपंच पति मनी बैगा बताते हैं कि सांसद बेचारे बहुत व्यस्त रहते हैं और प्रधानमंत्री ज्यादा उम्मीद करते हैं बेचारे सांसद साल डेढ़ साल तक ऐसे गांव नहीं पहुंच पाते तो इसमें सांसदों का दोष नहीं हैं उनके भी तो लड़का बच्चा हैं। बैगा बाहुल्य गांव में घर में शराब बनाने की छूट रहती है और महुआ की शराब एवं पेज पीकर वे अपना जीवन यापन करते हैं पर गांव भर के लोगों को सरकार की मंशा के अनुसार नशा नहीं करने की शपथ दिलाई गई है। गांव के झोलटी बैगा  बताते हैं कि जनधन खाता गांव से 45 किमी दूर के बैंक में खुला है गांव से करीब 20-25 किमी के आसपास कोई बैंक या कियोस्क नहीं है। प्रधानमंत्री सुरक्षा बीमा में 12-12 रुपये दो बार जमा किया कोई रसीद वगैरह नहीं मिली। बैंक ऋण के सवाल पर झोलटी बैगा ने बताया कि एक बार लोन से कोई कंपनी 5000 रुपये का बकरा लोन से दे गई ब्याज सहित पूरे पैसे वसूल कर लिए और बकरा भी मर गया, गांव भर के कुल नौ गरीबों को एक एक बकरा दिया गया था, बकरी नहीं दी गई। सब बकरे कुछ दिन बाद मर गए।।

तुलसीराम बैगा पांचवीं फेल हैं कोई रोजगार के लिए प्रशिक्षण नहीं मिला मेहनत मजदूरी करके एक टाइम का पेट भर पाते हैं, चेंज की भाजी में आम की अमकरिया डालके “पेज “पी जाते हैं। सड़क के सवाल पर तुलसी बैगा ने बताया कि गांव के मुख्य गली में सड़क जैसी बन गई है कभी कभार सोलर लाइट भी चौरस्ते में जलती दिखती है। कभी-कभी पानी भी नल से आ जाता है पर नलों में टोंटी नहीं है।

दूसरी पास फगनू बैगा जानवर चराने जंगल ले जाते हैं खेतों में जुताई करके पेट पालते हैं जब बीमार पड़ते हैं तो नर्मदा मैया के भजन करके ठीक हो जाते हैं।

पढाई – लिखाई के हालचाल – 

प्रायमरी, मिडिल और हाईस्कूल की दर्ज संख्या के अनुसार स्कूल में शिक्षकों का भीषण अभाव है “स्कूल चलें हम” सन्तोषजनक नहीं है। पहली से दसवीं तक के अधिकांश बच्चे जंगल और नर्मदा नदी के इस पार और उस पार से कई मील चलकर आते हैं कई गांव के बच्चे जान जोखिम में डाल कर नाव से स्कूल पढ़ने आते हैं बरसात में नहीं भी आते। यातायात के साधन न के बराबर हैं अधिकांश बच्चे बैगा जाति के हैं बच्चों से बातचीत से पता चला कि वे बड़े होकर देश की रक्षा करेंगे।

वित्तीय समावेशन – 

रिजर्व बैंक एवं भारत सरकार के निर्देश हैं कि हर व्यक्ति को पांच किलोमीटर के दायरे में बैंकिंग सुविधाएं मिलनी चाहिए परन्तु इस गाँव में 45 किमी दूर बैंक है एवं 20 किमी के दायरे में कियोस्क बैंक सुविधाएं उपलब्ध होने में संदेह लगता है।

योजनाओं की बिलखती दास्तान – 

सरपंच पति ने बताया कि गांव में 50-60% के लगभग जनधन खाते खुल पाए हैं सुरक्षा बीमा के हाल बेहाल हैं। उज्जवला योजना में गरीब दो चार महिलाओं को मुफ्त एल पी जी कनेक्शन मिले हो सकते हैं पर सभी गरीबी रेखा की महिलाएं हर महीने सिलेंडर खरीदने 800 रुपये कहाँ से पाएंगी ? फसल बीमा के बारे में गांव में किसी को जानकारी नहीं है। कुछ शौचालय बने हैं पर खुले में शौच लोग जाते रहते हैं।

डिजीटल इंडिया को ठेंगा दिखाता गांव में दूर दूर तक किसी भी प्रकार की दूरसंचार सेवाएं उपलब्ध नहीं है 15-20 किमी के दायरे में मोबाइल के संकेत नहीं मिलते, गांव के पास एक ऊंची पहाड़ी के ऊपर एक खास पेड़ में चढ़ने से मोबाइल के लहराते संकेत मिलते हैं कलेक्टर के कहने पर गांव में एक दिन स्वास्थ्य विभाग का एक स्टाफ कभी कभार आ जाता है। कुपोषण की आदत गांव के संस्कारों में रहती है देर से ही सही पर अब गांव के विकास में प्रशासन अपनी रुचि दिखाने जैसा कुछ कर रहा है। पर यह भी सच है कि गांधी के सपनों का गांव बनाने के लिए पारदर्शिता सच्ची जवाबदेही और ईमानदार कोशिश की जरूरत होगी।

 

© जय प्रकाश पाण्डेय

416 – एच, जय नगर, आई बी एम आफिस के पास जबलपुर – 482002  मोबाइल 9977318765

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यात्रा-संस्मरण – ☆ मुरुद का सिद्दी ज़ंजीरा क़िला ☆ – श्री सुरेश पटवा

श्री सुरेश पटवा

 

(आदरणीय श्री सुरेश पटवा जी की साहित्यिक अध्ययन  के अतिरिक्त पर्यटन में भी विशेष अभिरुचि है। श्री सुरेश पटवा जी की यात्रा संस्मरण लेखन की अपनी अलग ही शैली है। वे किसी  पर्यटन स्थल पर जाने से पहले उस स्थल का भौगोलिक, ऐतिहासिक, सामाजिक एवं संस्कृतिक आदि प्रत्येक दृष्टि से  अध्ययन करते हैं। प्रस्तुत है उनके  मुरुद का सिद्दी ज़ंजीरा क़िला  यात्रा का संस्मरण।) 

 

☆ मुरुद का सिद्दी ज़ंजीरा क़िला ☆

 

समुंद्र के बीचोबीच 400 सालों से अजेय इतिहास का गवाह है ये रहस्मयी मुरुद-जंजीरा किला, ये तो आप मानते ही होंगे की भारत में प्राचीन रहस्यों की कोई कमी नहीं है क्योंकि हमारा इतिहास ही इतना प्रभावशाली और रहस्यमयी रहा है की जितना जानों उतना कम है। आज हम आपको ऐसे ही एक रहस्य के बारे में बताने जा रहे है। ये किस्सा है एक ऐसे किले का जिसने कई बड़ी लड़ाईयां देखी पर फिर भी ये किला अजेय रहा है। तो जानते है इसके पीछे का रहस्य।

ये है महाराष्ट्र के रायगढ़ जिले के मुरुद गांव में स्थित मुरुद-जंजीरा फोर्ट है जो अपनी बनावट के लिए जाना जाता है। चारों तरफ से पानी से घिरे होने की वजह से इसे आईलैंड फोर्ट भी कह सकते है। ये आइलैंड फोर्ट भारत में ही नहीं बल्कि दुनिया में अपनी बनावट के लिए मशहूर है।

मुरुद-जंजीरा भारत के महाराष्ट्र राज्य के रायगड जिले के तटीय गाँव मुरुड में स्थित एक किला हैं। यह भारत के पश्चिमी तट का एक मात्र किला हैं, जो की कभी भी जीता जा सका था । यह किला 350 वर्ष पुराना है। स्‍थानीय लोग इसे मुस्लिम किला कहते हैं, जिसका शाब्दिक अर्थ अजेय होता है। माना जाता है कि यह किला पंच पीर पंजातन शाह बाबा के संरक्षण में है। शाह बाबा का मकबरा भी इसी किले में है। यह किला समुद्र तल से 90 फीट ऊंचा है। इसकी नींव 20 फीट गहरी है। यह किला सिद्दी जौहर मज़बूत किया गया था। इस किले का निर्माण 22 वर्षों में हुआ था। यह किला 22 एकड़ में फैला हुआ है। इसमें 22 सुरक्षा चौकियां है। ब्रिटिश, पुर्तगाली, शिवाजी, कान्‍होजी आंग्रे, चिम्‍माजी अप्‍पा तथा शंभाजी ने इस किले को जीतने का काफी प्रयास किया था, लेकिन कोई सफल नहीं हो सका। इस किले में सिद्दिकी शासकों की कई तोपें अभी भी रखी हुई हैं। जंजीरा किला समुद्र के बीच बना हुआ है और चारों ओर से खारे पानी से घिरा हुआ है। समुद्री तल से लगभग 90 फीट ऊंचे किले में शाह बाबा का मकबरा बन हुआ हैऔर इसकी नींव 20 फीट गहरी है।

40 फीट ऊंची दीवारों से घिरा ये किला अरब सागर में एक आइलैंड पर है। इसका निर्माण अहमदनगर सल्तनत के मलिक अंबर की देखरेख में 15 वीं सदी में हुआ था। 15 वीं सदी में राजापुरी (मुरुद-जंजीरा किले से 4 किमी दूर) के मछुआरों ने खुद को समुद्री लुटेरों से बचाने के लिए एक बड़ी चट्टान पर मेधेकोट नाम का लकड़ी का किला बनाया। इस किले को बनाने के लिए मछुआरों के मुखिया राम पाटिल ने अहमदनगर सल्तनत के निज़ाम शाह से इजाज़त मांगी थी।

बाद में अहमदनगर सल्तनत के थानेदार ने इस किले को खाली करने कहा तो मछुआरों ने विरोध कर दिया। फिर अहमदनगर के सेनापति पीरम खान एक व्यापारी बनकर सैनिकों से भरे तीन जहाज लेकर पहुंचे और किले पर कब्ज़ा कर लिया। पीरम खान के बाद अहमदनगर सल्तनत के नए सेनापति बुरहान खान ने लकड़ी से बने मेधेकोट किले को तुड़वाकर यहां पत्थरों से किला बनवाया।

इसके नाम में ही इसकी खासियत छिपी है दरअसल जंजीरा अरबी भाषा के ‘जजीरा’ शब्द से बना जिसका अर्थ होता है टापू। यमन और इथियोपिया से अफ़्रीकन हब्सी लोगों ने समुद्री लुटेरों से व्यापारिक जहाज़ों को सुरक्षा देने के लिए एक समुद्री सेना तैयार की थी वे हिंदुस्तान के अरब तुर्की होते हुए यूरोप की समुद्री यात्राओं को शुल्क लेकर सुरक्षा देते थे। उन्होंने मछुआरों से इसे हथिया लिया था।

यह रहस्मयी किला जंजीरा के सिद्दीकियों की राजधानी हुआ करता था, अंग्रजों और मराठा शासकों ने इस किले को जीतने का काफी प्रयास किया, लेकिन वह अपने इस मकसद में कामयाब नहीं हो पाए। इसकी अजेयता का कारण ये भी है की पुराने समय में पानी के रास्ते इस किले तक पहुंचना बेहद मुश्किल काम था और जब कोई सेना इसकी तरफ बढती थी तब किले में मौजूद सेना आराम से दुश्मनों को हरा देती थी। इस किले पर 20 सिद्दीकी शासकों ने राज किया। अंतिम शासक सिद्दीकी मुहम्मद खान था, जिसका शासन खत्म होने के 330 वर्ष बाद 3 अप्रैल 1948 को यह किला भारतीय सीमा में शामिल कर लिया गया।

मुरुद-जंजीरा किले का दरवाजा दीवारों की आड़ में बनाया गया है। जो किले से कुछ मीटर दूर जाने पर दीवारों के कारण दिखाई देना बंद हो जाता है। यही वजह रही है कि दुश्मन किले के पास आने के बावजूद चकमा खा जाते हैं और किले में घुस नहीं पाते हैं। अनेक वर्ष बीत जाने के बाद भी तथा चारों ओर खारा अरब सागर होने के बाद भी यह मजबूती से खड़ा है।

जंजीरा किले का परकोटा बहुत ही मजबूत है, जिसमें कुल तीन दरवाजे हैं। दो मुख्य दरवाजे और एक चोर दरवाजा। मुख्य दरवाजों में एक पूर्व की ओर राजापुरी गांव की दिशा में खुलता है, तो दूसरा ठीक विपरीत समुद्र की ओर खुलता है। चारों ओर कुल 19 बुर्ज हैं। प्रत्येक बुर्ज के बीच 90 फुट से अधिक का अंतर है। किले के चारों ओर 500 तोपें रखे जाने का उल्लेख भी कहीं-कहीं मिलता है। इन तोपों में कलाल बांगड़ी, लांडाकासम और चावरी ये तोपें आज भी देखने को मिलती हैं।

कोई बताने वाला नहीं मिलता कि ज़ंजीरा कैसे जाएँ। जितने लोग उतनी बातें। यदि आप जाना चाहते हैं तो गेट वे आफ इंडिया पहुँचें, वहाँ से मंडवा के लिए फ़ेरी टिकट 75 रुपयों में ख़रीदें। फ़ेरी आपको मंडवा उतार देगी। वहाँ से फ़ेरी वालों की बस आपको उसी किराए में अलीबाग़ तक के जाएगी। अलीबाग़ से 65 किलोमीटर की दूरी पर मरुद गाँव है। अलीबाग़ से मुरुद सरकारी बस से जाया जा सजता है या आप टैक्सी या ऑटो से भी 2000-2500 में जाना-आना कर सकते हैं। आपको यदि रुकना है तो रास्ते में काशिद समुद्री बीच पर होटेल गेस्ट हाउस मिल जाते हैं। अलीबाग़ से स्कूटर या बाइक भी 600 रुपए प्रतिदिन किराए पर मिल जाती हैं। आपके पास ड्राइविंग लाइसेंस होना चाहिए। काशिद के आगे ख़ोरा बंदर गाँव हैं वहाँ से 40 रुपयों में फेरी ज़ंजीरा क़िला तक जाने-आने का शुल्क लेती है।

© सुरेश पटवा

 

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यात्रा-संस्मरण – ☆ पूरब और मक्का एक ही ओर है जहाँ से … ☆ – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ 

श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ 

☆ पूरब और मक्का एक ही ओर  है  जहाँ से … ☆

(आज प्रस्तुत है श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव जी की 12 किमी ऊंचाई से  एक प्रायोगिक यात्रा संस्मरण जो आपको अपनी कई यात्राएं एवं उसके पीछे की स्मृतियाँ अवश्य याद दिला देगा।  धरती से  हजारों किमी ऊपर हवा में उड़ते हुए क्या आपको नहीं लगता कि आप एक वैश्विक ग्राम (Global Village) के सदस्य हो गए हैं?)

 जमीन से कोई 12 किमी ऊपर, 800 करोड़ के यान में, एक बेड आपका हो, आप 12000 किमी की यात्रा पर कोई 1000 किमी प्रति घण्टे की रफ्तार से पहली बार सफर पर हों , तो मन पसन्द सुस्वादु खाते पीते , सारी यात्राये स्मरण हो आना स्वाभाविक ही है ।

वह पहली विमान यात्रा का पल पल याद आया जब हमें एम टेक करते हुए पहले सेमेस्टर के अंत मे पहली स्टाइपेंड मिली थी और मित्रों श्री प्रदीप व श्री सनत जैन के साथ इंडियन एयरलाइन के 14 सीटर सिंगल इंजिन हवाई जहाज से स्टूडेंट्स कनसेशन की  शायद केवल 180 रु की टिकिट पर महज हवाई यात्रा करने के लिए भोपाल से इंदौर का जीवन का पहला हवाई सफर किया था ।

लंदन के पास समुद्र सतह से 12 कि मी ऊपर कही आसमान से न्यूयॉर्क की ओर बढ़ते हुए

फिर याद आया वह हवाई सफर जब पत्नी, पिताजी और तीनों छोटे छोटे बच्चों के संग गोएयर की फ्लाइट से नागपुर से हैदराबाद का सफर किया था, वह यात्रा इसी अमिताभ को लेकर मैथ्स ओलम्पियाड के राष्ट्रीय राउंड में उसकी सहभागिता के लिए थी , जिस बेटे के न्यूयॉर्क यूनिवर्सिटी से  पोस्ट ग्रेजुएशन के कन्वोकेशन में हिस्सेदारी के लिए आज सपत्नीक आज दुबई से न्यूयॉर्क के इस सफर पर हैं हम । बेटे से दामाद श्री अभिमन्यु बेटी अनुव्रता ने  दुनियां की सबसे प्रतिष्ठित एतिहाद एयर लाइंस के बिजनेस क्लास में श्रेष्ठतम यात्री विमान एयरबस में टिकिट करवा दी है । लेटे हुए सामने लगे टी वी स्क्रीन पर देख रहा हूं हमारा जहाज लंदन के ऊपर से गुजर रहा है । 7 घण्टो की लगभग आधी यात्रा हो चुकी है । मेरा हृदय सारी समग्रता से छोटी बेटी अनुभा को अशेष आशीष दे रहा है, वह इस समय लंदन स्कूल ऑफ इकनॉमिक्स में अपने एल एल एम की परीक्षा की तैयारी कर रही होगी ।

तीनो बच्चों की ऐसी वैश्विक सफलता के लिए दिल परमात्मा का कोटिशः धन्यवाद कर रहा है । भगवान यदि ऊपर कहीं है, जैसा हम सदियों से पीढ़ी दर पीढ़ी मानते आए हैं, तो मैं अभी धरती की अपेक्षा कम से कम उनके 12 किलोमीटर निकट हूं।

सुकोमल काली पट्टी आँखों पर पहनकर  माँ और पिताजी व पत्नी कल्पना के उस हर छोटे बड़े संघर्ष, समर्थन, बच्चों को प्रोत्साहन, के वे सारे मौके एक साथ दिख रहे हैं जिनकी परिणीति बच्चों की ये उपलब्धियां हैं ।

एक आम सर्विस क्लास भले ही मेरी तरह सरकारी उच्चतम वेतनमान के अंतिम पायदान पर ही क्यों न हो विदेश यात्राओं के लिए किसी सेमिनार की स्पॉन्सरशिप तलाशता रहता है । पर हमें बच्चे  ऐसे अवसर व साधन सुलभ करवा रहे हैं कि कल मनमोहक  नाती रुवीर को गोद मे लिए उत्फुल्ल था और अभी इस विमान में  पूरी फुरसत में हूँ।

सोच रहा हूँ दुनियां क्या सचमुच ग्लोबल विलेज बन गई है ? शायद नहीं यू एन ओ के होते हुए आज तक न तो सारे विश्व में कार ड्राइविंग में केवल लेफ्ट हैंड या राइट हैंड की  एक रूपता आ पाई है ,जो निर्णय बहुत सहजता से लिया जा सकता है , एक से जिप कोड , एक से रोड साइन , इमरजेंसी हेतु एक से टेलीफोन नम्बर्स ,एक से बिजली के सॉकेट एक सा वोल्टेज  व ऐसे ही जाने कितनी ही वैश्विक समरूपता  सरकारें ला सकती हैं । पर जाने क्यों देश तो लड़ने में लगे हैं , सामने लाइव टीवी पर बीबीसी बता रहा है कि ईरान के विरोध में अमेरिका ने अपने जंगी जहाज पर पेट्रियाड मिसाइल भेज दी हैं । पाकिस्तान में ग्वादर के पांच सितारा होटल पर आतंकी हमला होने की खबर भी आ रही है।

मुझे तो कल नाती को गोद में लिए हुए केवल उसके रोने व मुस्कराने की भाषा से उसकी हर डिमांड को डिकोड करती मेरी बेटी व पत्नी की तुतलाकर उससे होती बातें याद आ रही हैं । काश सारी दुनिया के सारे लोग इसी तरह सहजता से डिकोड हो सकते तो शायद दुनियां वास्तव में ग्लोबल बन पाती ।

फिलहाल जहां मेरा विमान है , वहाँ से काशी और काबा दोनों ही एक ओर हैं … पूरब की ओर सिर नवा कर मेरी एक सहयात्री बुरका नशीन महिला रमजान में पवित्र नमाज अदा कर रहीं हैं । मैं भी आदिदेव सूर्य को प्रणाम करते हुए मन ही मन प्रार्थना करता हूँ कि हमारे बच्चों की पीढियों के लिए ही सही प्री इमिग्रेशन क्लियरेंस में किसी दाढ़ी वाले या बुर्के वाली को अब और ह्यूमिलेट न होना पड़े । जब मेरा बेटा हमें लेने न्यूयॉर्क एयरपोर्ट पर आएगा तो उसके साथ बाते करते हुए विश्व बंधुत्व पर मैं उसे ऐसी आश्वस्ति देने योग्य हो सकूँ कि वास्तव में हम सब उसी ग्लोबल विलेज के रहवासी हैं जहाँ पक्षी बिना वीजा या पासपोर्ट के साइबेरिया से भारत आ जाते हैं और भारत की सरहद पर गूंजती स्वर लहरियां बिना प्रतिबंध पाकिस्तान के बॉर्डर को पार कर जाती हैं ।

आमीन कहना चाहते हैं न आप ।

 

© श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव 

ए-1, एमपीईबी कालोनी, शिलाकुंज, रामपुर, जबलपुर, मो ७०००३७५७९८

 

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