हिन्दी साहित्य – आलेख ☆ पर्यटक की डायरी से – मनोवेधक मेघालय – भाग-९ ☆ डॉ. मीना श्रीवास्तव ☆

डाॅ. मीना श्रीवास्तव

☆ पर्यटक की डायरी से – मनोवेधक मेघालय – भाग-८ ☆ डॉ. मीना श्रीवास्तव ☆

(डेव्हिड स्कॉट ट्रेल (David Scott Trail))

प्रिय पाठकगण,

आपको हर बार की तरह आज भी विनम्र होकर कुमनो! (मेघालय की खास भाषामें नमस्कार, हॅलो!)

फी लॉन्ग कुमनो! (कैसे हैं आप?)

एक शक (पिछले भाग का और इस भाग का भी) 

यह सब तो ठीक ही है, यह मावफ्लांग का घना जंगल, यहाँ मेरी ही कोई शिकार करे तो? (यहाँ के जानवरों ने ये नियम थोड़े न पढ़े होंगे!) मित्रों, इसीलिये अपना साथ निभाने वाला, यहाँ के एक-एक पदचिन्ह को पहचानने वाला स्थानीय गाइड जरुरी है, उसका अनुसरण करते जाइये, सीधी      ( हो या ना हो) पगडण्डी मत छोड़िये, घनघोर जंगल में घुस कर संकट को आमंत्रित करने वाली जरुरत से ज्यादा हिम्मत मत कीजिये! आप बाघ की तलाश मत कीजिये, वह भी जानबूजकर आपको तलाशते हुए नहीं आएगा!!! ईमानदारी से बताती हूँ, ईश्वर की इस अनाहत निर्मिति ने हमें इतना अभिभूत कर दिया था कि, इस रमणीय जंगल में हमारे मन में एक बार भी ऐसे वैसे विचारों ने झाँकने की हिम्मत तक नहीं दिखाई|  मित्रों, यह जंगल अवश्य देखिए, चार एक घंटों की मोहलत रहने दीजिये! गाईड के भरोसे पर निश्चिन्त हो जाइये, उसके पास बंदूक वग़ैरा नहीं होती, मात्र होती है असीम श्रद्धा! आप अगर सच्चे प्रकृतिप्रेमी हैं, तो यह वनवैभव नहीं बल्कि, साक्षात् वनदेवता अपने विशाल हरित बाहुपाश में आपको बद्ध करने के लिए सिद्ध है!

डेव्हिड स्कॉट ट्रेल (David Scott Trail):

मेघालय का यह सबसे पुराना पादचारी रास्ता है| डेविड स्कॉट नामक ब्रिटिश प्रशासक ने भारत के उत्तर पूर्व भाग में करीबन ३० वर्ष (१८०२-१८३२) कार्य किया| उसने संपूर्ण खासी पर्वतश्रृंखला की पैदल यात्रा की| उस समय आसाम से सिल्हट(अभी का बांग्लादेश) का अंतर करीबन १०० किलोमीटर था! इस मार्ग पर घोडा-गाड़ियां ले जाने योग्य रास्तों की खोज की गई! इसे माल ढुलाई के लिए इस्तेमाल किया जाना था!यहीं है वह पूर्व खासी पर्वतश्रृंखलाओं में से जाने वाला ट्रेल, इसे डेविड स्कॉट का ही नाम दिया गया है! मूलतः १०० किलोमीटर का अति दुर्गम और कठिनतम मार्ग, परन्तु अब पर्यटकों की सुविधा के लिए छोटे छोटे हिस्सों में विभाजित किया गया है| समुद्र तल से ४८९२ फीट की ऊंचाई पर इस प्राकृतिक सौंदर्य से सजी पगडण्डी पर मार्गक्रमण करते हुए आपको नजर आएंगे छोटे-छोटे शांत गांव, प्राचीन पवित्र वनसम्पदा, विविध औषधी वनस्पतियां, ऑर्किड, मॅग्नोलिया जैसे फूलों की बहार, रबर के पेड़, ब्लॅकबेरी तथा गूसबेरी जैसे ताज़े फल, विस्तीर्ण हरे-भरे चरागाह के मैदान, छोटी-बड़ी जलधाराएँ, जलप्रपात, छोटी-बड़ी झीलें, एकाश्म, पथरीले पुल इत्यादी इत्यादी| कृत्रिमता का जरासा भी स्पर्श नहीं, यहीं है इस मार्ग का बिलकुल सच्चा प्राकृतिक लावण्य! इसका मुख्य कारण है यहाँ मानव का आवागमन बहुत ही कम है!

साहसी ट्रेकर्स यह संपूर्ण मार्ग (१०० किलोमीटर)४-५ दिनों में (गांव में रैनबसेरा करते हुए) चलते हुए पूरा करते हैं | परन्तु इससे अधिक व्यावहारिक और लोकप्रिय ऐसा एक दिन का (करीबन ४ से ६ घंटों में पूरा कर सकते हैं) १६ किलोमीटर का मार्ग उपलब्ध है| मावफ्लांग (Mawphlang) से लाड मावफ्लांग (Lad Mawphlang) ऐसा यह मार्ग है|

इस ट्रेल की शुरवात करने के लिए पहले शिलाँग से २५ किलोमीटर दूर मावफ्लांग गांव में पहुंचना जरुरी है, फिर इस गांव से यात्रा शुरू करते हुए मार्गक्रमण करते रहना है, जब तक लाड मावफ्लांग तक आप पहुँच न जाएँ! इस दीर्घ मार्गिका में क्या नहीं है यह पूछिए! प्रकृति का मुक्त संचार, हरीतिमा से परिपूर्ण पर्वत, खाइयां तो हैं ही, साथ ही जिसका हमें दर्शन अत्यंत दुर्लभ हो वह संपूर्ण तल एकदम स्वच्छ और अच्छे से नज़र आए ऐसा निर्मल जल, सब कुछ सिनेमास्कोपिक चलचित्र के समान! एक छोटी सरिता तरंगिणी अपने रुपहले जल की मचलती लहरों का नादस्वर लेकर लगातार हमारा साथ देते रहती है| इस राह में बीच बीच में उमियम नदी हमें दर्शन देती है| मित्रों, उमियम यानि “अश्रुपात की बाढ़”| इस नाम के उत्त्पत्ति की दिल को छू लेने वाली कहानी बताती हूँ! दो बहनें स्वर्ग से पृथ्वी पर आ रही थी, उस दौरान, बीच राह में एक बहन खो गई, और उसे खोजने वाली दूसरी बहन के अश्रुपात से इस उमियम नदी का निर्माण हुआ!

मेरी बेटी आरती, जमाई उज्ज्वल और पोती अनुभूती ने यह ट्रेक पूरा किया| आरती का अनुभव उसीके शब्दों में नीचे दे रही हूँ!

“मेघालय ट्रिप के अंतिम दिन हमने किया हुआ यह ट्रेक बहुत ही इंटरेस्टिंग था| हमारे गाईड (दालम) के साथ हमने सुबह ९ बजे इस १६ किलोमीटर लम्बे  प्रवास की शुरवात की| प्राकृतिक वातावरण के निकट समय बिताने का अनूठा अनुभव लेने के लिए हम बहुत ही  उत्सुक थे| हमारा गाइड बीच बीच में ताजी रसदार बेरी तोड़ कर दे रहा था| वहां के पानी के प्रवाह और सुंदर निर्झरों का जल अत्यंत स्वच्छ और शीतल था| सीधे प्रवाह और निर्झरों से यह जल पीना यह तो हम शहरवासियों के लिए एक अनोखा ही अनुभव था| चलने के तनाव और परिश्रम से मुक्ति पाने के लिए हम हर निर्झर में मुँह और हाथ पाँव धो रहे थे, उससे श्रमपरिहार तो हो ही रहा था, परन्तु हमारा मन भी प्रसन्न हो उठा था| ट्रेक के आरम्भ में ही एक कुत्ता हमारे साथ हो लिया और पहले ८ किलोमीटर तक लगातार वह हमारे साथ ही था! उसे हमसे अधिक हमारे पास मौजूद चिप्स और अन्य जंक फूड में ज्यादा रस है, ऐसा लग रहा था! चिप्स का पॅकेट खोलने की महज आवाज से वह चौकन्ना हो जाता था और जब तक कि हम उसे थोडासा हिस्सा नहीं देते थे, तबतक, हमें उससे छुटकारा नहीं मिलता था! (हमारे एक फोटो में वह भी दिखाई दे रहा है) दालम ने हमें एक मनोरंजक कथा बतलाई| प्राचीनकाल में मानव बहुत मजबूत शरीर का धनी होता था| एक ही आदमी एक बड़ा (पाषाण) एकाश्म आराम से उठा लेता था, परन्तु उसे उठाने के पहले वह इस एकाश्मश से सुन्दर संवाद साधता था और उसकी अनुमति भी लेता था| यद्यपि पाषाण उससे बात नहीं कर सकता था, फिर भी यह कहा जाता है कि, उस आदमी को उस पाषाण के स्पंदन सुनाई देते थे!मानव से ऐसी प्यार भरी गुहार सुनने के पश्चात् वह पाषाण नरम हो उठता था!  मित्रों, कहानी में ही क्यों न हो, प्रकृति से संवाद साधने वाले ये वन्य जीव!  हमें उनकी भावनाओं का आदर करना ही चाहिए, सच कहूं तो, प्रकृति का रक्षण करने के लिए अब प्रकृति से अभिन्न रूप से जुड़े मानव की ही नितांत आवश्यकता है!

हमने एक गांव में दोपहर का खाना मॅगी और नीम्बू पर निपटाया| कुछ स्कूली बच्चों से मिलने के बाद यह ज्ञात हुआ कि वे स्कूल पहुँचने के लिए इसी कठिन मार्ग पर रोज आना जाना करते हैं, चाहे मौसम कितना ही ख़राब क्यों न हो! कुछ स्थानीय स्त्रियां उनके शिशुओं को पीठ पर बांध कर जाते हुए इसी रास्ते पर मिलीं!(इन बहादुर बच्चों को और स्त्रियों को हमारा अर्थात साष्टांग कुमनो!)यहाँ कोई भी वाहन नहीं हैं, कोई भी नेटवर्क चलता नहीं है | एक बार आपने ट्रेक का आरम्भ किया तो फिर उसे समाप्त करने के अलावा और कोई विकल्प नहीं होता! हमारा यह प्रकृति के संग किया सुन्दर प्रवास सायंकाल ४ बजे समाप्त हुआ| यह ट्रेक हमें जिंदगी भर याद रहेगा!हमारे गाईड दालम ने (DalamLynti Dympep, आयु केवल २२ वर्ष, मु.पो. मावफलांग, फोन क्र ८८३७०४०९५८) हमें अत्यंत उत्तम मार्गदर्शन किया और संपूर्ण प्रवास में हमारी सर्वतोपरी मदद की| हम दिल से उसके बहुत बहुत आभारी हैं! हमारी सलाह है कि, इस प्रवास में साथ निभाने के लिए गाईड लेना बिलकुल  जरुरी है! दालम जैसा गाइड हो तो कितने ही संकट क्यों न आएं, उन पर विजय पाना आसान होगा, इसमें कोई शक नहीं! नीचे के फोटो में तीन एकाश्म (मोनोलिथ्स) और उनके साथ नजर आ रहा है दालम!”

प्रिय पाठकगण, यह प्रवास अब शिलाँग तक आ चुका है! अगले मेघालय दर्शन के भाग में आपको मैं ले चलूंगी, शिलाँग, अर्थात मेघालय की राजधानी में और उसके आसपास के अद्भुत प्रवास के लिए!

तो अभी के लिए खुबलेई! (khublei) यानि खास खासी भाषा में धन्यवाद!)

टिप्पणी

*लेख में दी जानकारी लेखिका के अनुभव और इंटरनेट पर उपलब्ध जानकारी पर आधारित है| यहाँ की तसवीरें व्यक्तिगत हैं!  

डेविड स्कॉट ट्रेल के कुछ व्हिडिओ यू ट्यूब पर उपलब्ध हैं|    

©  डॉ. मीना श्रीवास्तव

ठाणे 

मोबाईल क्रमांक ९९२०१६७२११, ई-मेल – [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय

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मराठी साहित्य – मी प्रवासिनी ☆ मनोवेधक मेघालय…भाग -७ ☆ डाॅ. मीना श्रीवास्तव ☆

डाॅ. मीना श्रीवास्तव

? मी प्रवासिनी ?

☆ मनोवेधक  मेघालय…भाग -७ ☆ डाॅ. मीना श्रीवास्तव ☆

डेव्हिड स्कॉट ट्रेल (David Scott Trail)

प्रिय वाचकांनो,

आपल्याला दर वेळी प्रमाणे आजही लवून कुमनो! (मेघालयच्या खासी या खास भाषेत नमस्कार, हॅलो!)

फी लॉन्ग कुमनो! (कसे आहात आपण?)

एक शंका (मागची अन पुढची देखील )

हे असे मावफ्लांगचे घनदाट जंगल, तिथेच माझी शिकार होणार कां? (तिथल्या जनावरांनी कुठले वाचलेत हे नियम!) मित्रांनो, म्हणूनच आपली सोबत करणारा, इथल्या पावलापावलाचे ठसे ओळखणारा स्थानिक वाटाड्या हवा, त्याचे अनुसरण करत चला. सरळ (असो का नसो) पायवाट सोडायची नाही, घनघोर जंगलात घुसायची ज्यादा अवलक्षणी हिंमत करायची नाय!तुम्ही वाघाला शोधू नका, तो पण तुम्हाला मुद्दाम शोधत येणार नाही!!! प्रामाणिकपणे सांगते, ईश्वराच्या या अनाहत निर्मितीने आम्ही इतके भारावलो होतो की, या रमणीय जंगलात आमच्या मनात एकदाही असे भलते सलते विचार यायला धजावले देखील नाहीत. मित्रांनो हे जंगल अवश्य बघा, चार एक तासांची बेगमी असू द्या! गाईडच्या भरवश्यावर निश्चिन्त असा, त्याच्याजवळ बंदूक वगैरे नसते, मात्र असते ती अपार श्रद्धा! तुम्ही निसर्गप्रेमी असाल तर ही वनराई नव्हे तर, साक्षात देवराई आपले विशाल हरित बाहू पसरून तुम्हाला कवेत घ्यायला सिद्ध आहे! 

डेव्हिड स्कॉट ट्रेल (David Scott Trail):

मंडळी, मागील भागात मी वायदा केला होता, त्याला अनुसरून आज या दुर्गम प्रदेशाच्या एका अत्यंत दुष्कर आणि दुष्प्राप्य ट्रेलची! ही वाट दूर जाते…….. संपण्याचे नाव नको, अशी ही ताज्यातवान्या विशेषज्ञ ट्रेकर्सला भारी पडणारी अन भूल पाडणारी ट्रेल (पायवाट), चला तर मग!     

मेघालयातील ही सर्वात जुनी पायवाट. डेविड स्कॉट या ब्रिटिश प्रशासकाने भारताच्या उत्तर पूर्व भागात जवळपास ३० वर्षे (१८०२-१८३२) कार्य केलं. त्याने संपूर्ण खासी पर्वतरांगा आपल्या पायाखालून घातल्या. या काळात आसाम ते सिल्हट(आत्ताचे बांगलादेश), हे अंतर जवळपास १०० किलोमीटर होते! या मार्गावर घोडागाड्या नेता येतील अशा योग्य वाटांचा शोध घेण्यात आला! मालवाहतुकीसाठी याचा उपयोग होणार होता! हाच तो पूर्व खासी पर्वत रांगांतून जाणारा ट्रेल, त्याला डेविड स्कॉट यांचंच नाव दिल्या गेलंय! मूळ १०० किलोमीटरचा अति दुर्गम आणि खडतर मार्ग, आता मात्र पर्यटकांच्या सोयीसाठी लहान लहान भागात विभागला गेलेला! समुद्रसपाटी पासून ४८९२ फुटांवरील या निसर्गरम्य पायवाटेवरून मार्गक्रमण करतांना दिसतील लहान लहान शांत खेडी, प्राचीन पवित्र वनराई, विविध औषधी वनस्पती, ऑर्किड, मॅग्नोलिया सारख्या फुलांचा बहर, रबराची झाडे, ब्लॅकबेरी तथा गूसबेरी सारखी ताजी फळे, विस्तीर्ण हिरवीगार कुरणे, लहान मोठे ओढे, जलप्रपात, लहान मोठे तलाव, एकाश्म, दगडी पूल इत्यादी इत्यादी. कृत्रिमतेचा जराही स्पर्श नाही हेच या मार्गाचं खरंखुरं प्राकृतिक लावण्य! याचे मुख्य कारण काय तर माणसांची तुरळक ये जा!

साहसी ट्रेकर्स हा संपूर्ण मार्ग (१०० किलोमीटर) ४-५ दिवसात (रात्री गावात मुक्काम करून) चालत जाऊन पुरा करतात. मात्र यापेक्षा जास्त व्यावहारिक आणि लोकप्रिय असा एक दिवसाचा (साधारण ४ ते ६ तासात पूर्ण करता येईल असा) १६ किलोमीटरचा मार्ग  उपलब्ध आहे. मावफ्लांग (Mawphlang) ते लाड मावफ्लांग (Lad Mawphlang) असा हा मार्ग आहे.

या ट्रेलची सुरवात करायला आधी शिलाँग पासून २५ किलोमीटर दूर मावफ्लांग गावात पोचावे लागते, मग या गावापासून प्रवास सुरु करीत मार्गक्रमण करीत राहा, लाड मावफ्लांग ला पोचेस्तोवर! या दीर्घ मार्गिकेत काय नाही ते विचारा! निसर्गाची मुक्त उधळण, हिरवेगार पर्वत, दऱ्या वगैरे आहेतच पण आपल्याला ज्याचे दर्शन देखील दुर्मिळ असलेले संपूर्ण तळ स्वच्छपणे दिसेल असे नितळ पाणी, सारे काही सिनेमास्कोपिक चलचित्रासमान! एक छोटी सरिता तरंगिणी आपल्या चंदेरी जलाच्या उसळत्या लहरींचा नादस्वर घेऊन सतत आपली सोबत करीत असते. या वाटेवर मधून मधून उमियम नदी आपल्याला दर्शन देते. मित्रांनो, उमियम म्हणजे “अश्रूंचा महापूर”. या नावाच्या उगमाची हृदयद्रावक कथा सांगते! दोन बहिणी स्वर्गातून पृथ्वीवर येत असता, वाटेत एक बहीण हरवली अन तिला शोधणाऱ्या दुसऱ्या बहिणीच्या अश्रूपाताने ही उमियम नदी तयार झाली!

माझी मुलगी आरती, जावई  उज्ज्वल अन नात अनुभूती यांनी हा ट्रेक पूर्ण केला. आरतीचा अनुभव तिच्याच शब्दात खाली दिलाय! 

मेघालय ट्रिपच्या शेवटच्या दिवशी आम्ही केलेला हा ट्रेक फार इंटरेस्टिंग होता. आमच्या गाईड (दालम) बरोबर आम्ही सकाळी ९ वाजता या १६ किलोमीटर लांब प्रवासाची सुरवात केली. नैसर्गिक वातावरणात रमण्याचा अनन्यसाधारण अनुभव घेण्यास आम्ही फार उत्सुक होतो.आमचा गाईड मध्ये मध्ये ताजी रसदार बेरी तोडून देत होता. तेथील ओहळांचे आणि सुंदर निर्झरांचे पाणी अतिशय स्वच्छ आणि शीतल होते. थेट ओढ्यांमधून आणि निर्झरांमधून हे पाणी पिणे हा आम्हा शहरवासियांसाठी एक अनोखाच अनुभव होता. चालण्याच्या ताणतणावातून मुक्त होण्यासाठी आम्ही प्रत्येक निर्झरात तोंड आणि हात पाय धूत होतो, त्यामुळे श्रमपरिहार होतच होता, पण आमचे मन देखील प्रसन्न राहत होते. ट्रेकच्या सुरवातीलाच एक कुत्रा आमच्या सोबत आला आणि पहिल्या ८ किलोमीटरपर्यंत तो आमच्या सतत सहवासात होता!  त्याला आमच्यापेक्षा आमच्याजवळ असलेल्या चिप्स आणि तत्सम जंक फूड मध्ये जास्त रस असावा! चिप्सचे पॅकेट उघडण्याच्या निव्वळ आवाजानेच तो सजग व्हायचा अन आम्ही त्यातील थोडा भाग त्याला देईपर्यंत आमची सुटका नसायची! (आमच्या एका फोटोत तो बी हाये!) दालमने आम्हाला एक मनोरंजक कथा सांगितली. प्राचीन काळी मानव खूप मजबूत बांध्याचा होता. एकच माणूस एक मोठा (पाषाण) एकाश्म आरामात उचलत असे, मात्र त्याला उचलण्याधी तो या एकाश्मशी छान संवाद साधत असे  व त्याची परवानगी देखील घेत असे. पाषाण जरी याच्याशी बोलत नसला तरी याला मात्र पाषाणची स्पंदने ऐकू यायची म्हणे! माणसाकडून अशी प्रेमाची गुजगोष्ट ऐकली की तो पाषाण नरमाईने वागत असे! मित्रांनो, गोष्टीत का होईना, निसर्गाशी संवाद साधणारे हे वन्य जीव!  त्यांच्या भावनांचा आपण आदर करायलाच हवा, खरे पाहिले तर निसर्गाचे रक्षण करायला अशा या निसर्गाशी तादात्म्य पावलेल्या माणसांचीच आता नितांत आवश्यकता आहे!  

आम्ही एका गावात दुपारचं जेवण मॅगी आणि लिंबू यावर आटोपले. काही शाळेत जाणाऱ्या मुलांना भेटल्यावर कळले की ते शाळेत पोचायला रोज याच कठीण मार्गावर ये  जा करतात, हवामान कितीही वाईट असो! काही स्थानिक स्त्रिया त्यांच्या छकुल्यांना पाठीशी घेऊन याच रस्त्याने जातांना भेटल्या! (या बहाद्दर  मुलांना आणि स्त्रियांना आमचा अर्थातच साष्टांग कुमनो!) इथे कुठलीही वाहने नाहीत, कुठलेही नेटवर्क नाही. एकदा का तुम्ही ट्रेक सुरु केली की ती संपवण्यावाचून अन्य पर्याय नसतो! आमचा हा निसर्गाच्या संगतीत केलेला सुंदर प्रवास संध्याकाळी ४ वाजता संपला. हा ट्रेक आमच्या आयुष्यभर लक्षात राहील! आमच्या गाईड दालमने (DalamLynti Dympep,  वय केवळ २२ वर्षे, मु. पो. मावफलांग,  फोन क्र ८८३७०४०९५८) आम्हाला अतिशय चांगले मार्गदर्शन केले आणि संपूर्ण प्रवासात आम्हाला सर्वतोपरी मदत केली. त्याचे  मनापासून खूप खूप आभार! आमचा सल्ला आहे की या प्रवासात सोबतीला गाईड घ्यायलाच हवा. दालमसारखा वाटाड्या असेल तर कितीही संकटे का येईनात, त्यांच्यावर मात करणे सुकर होईल यात कुठलीच शंका नाही! एका फोटोत तीन एकाश्म (मोनोलिथ्स) अन त्यांच्यासोबत दिसतोय तो दालम!

प्रिय वाचकहो हा प्रवास आता शिलाँगपर्यंत आलाय! पुढच्या मेघालय दर्शनच्या भागात तुम्हाला मी नेणार आहे शिलाँग या मेघालयाच्या राजधानीत आणि तिच्या जवळच्या एका अद्भुत प्रवासासाठी!

तर आतापुरते खुबलेई! (khublei) म्हणजेच खास खासी भाषेत धन्यवाद!)

टीप – 

*लेखात दिलेली माहिती लेखिकेचे अनुभव आणि इंटरनेट वर उपलब्ध माहिती यांच्यावर आधारित आहे. इथले फोटो व्यक्तिगत आहेत!

डेविड स्कॉट ट्रेलचे काही व्हिडिओ यू ट्यूब वर उपलब्ध आहेत.

©  डॉ. मीना श्रीवास्तव

ठाणे 

मोबाईल क्रमांक ९९२०१६७२११, ई-मेल – [email protected]

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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मराठी साहित्य – मी प्रवासिनी ☆ “चला बालीला…” – भाग – १ ☆ सौ राधिका भांडारकर ☆

सौ राधिका भांडारकर

☆ “चला बालीला…” – भाग – १ ☆ सौ राधिका भांडारकर 

२७/११/२३

बाली इंडोनेशियातील एक बेट.  जावा बेटाच्या पूर्वेकडचे हे बेट.  वास्तविक जावा, सुमित्रा, या हिंदी महासागरातल्या बेटांबद्दल शालेय जीवनात भूगोलातून अभ्यास केला होताच. बाली हेही याच बेटांपैकी असलेलं एक सुप्रसिद्ध पर्यटन स्थळ.  कला, संगीत,  नृत्य,समुद्र किनारे आणि मंदिरे यासाठी प्रसिद्ध असलेलं एक नितांत सुंदर बेट आणि मित्र परिवारांच्या समवेत या बेटास प्रत्यक्ष भेट देण्याचे माझे एक बकेट लिस्ट मधले स्वप्न पूर्ण होण्याची संधी मला मिळाली.  जीवनातल्या अनेक भाग्य क्षणांच्या संग्रहात याही अनमोल क्षणाची भर पडली.

दिनांक २७ नोव्हेंबर २०२३ रोजी आम्ही चक्क सिंगापूर एअरलाइन्सच्या एस क्यू 423 या फ्लाईटने *मुंबई ते सिंगापूर (चांगी विमानतळ) ते डेन पसार (न्गुराह राय विमानतळ) असा प्रवास करून बाली या बेटावर येऊन पोहोचलो. आम्ही बुक केलेले रिसाॉर्ट कर्मा चांडीसार हे विमानतळापासून जवळजवळ दोन तासाच्या अंतरावर होते. पण ड्राईव्ह अतिशय रमणीय होता.  सुंदर रस्ते,सभोवती अथांग सागर, झाडी, डोंगर आणि चौकाचौकातले उंच, कलात्मक, रामायणातली कॅरेक्टर्स शिल्पे! भव्य बांधकाम असलेली प्रवेशद्वारे. कोणती कोणती छायाचित्रे टिपावीत हेच कळेनासं झालं होतं.  मग ठरवलं आजचा तर पहिलाच दिवस आहे. छायाचित्रे टिपायला आपल्याजवळ अजून पुढचे सहा दिवस आहेतच की.

पण डेनपसार शहरात प्रवेश करता क्षणीच जाणवले होते ते इथली हिंदू धर्मीय जीवन पद्धती.  रामायण या पवित्र ग्रंथांशी त्यांचं असलेलं जन्मजात खोल नातं.  कसं असतं ना माणसाचं ? धर्म, संस्कृती, कला यांचं एकात्म्य हे क्षणात आपल्याला आपुलकीच्या नाते बंधनात जोडतं. मग वातावरणातल्या बदलाशी आपण नकळत तुलनात्मक रित्या बांधले जातो.

मी पटकन म्हणाले,” मला तर इथे आल्यापासून गोव्यात आल्यासारखंच वाटतंय!  इथल्या बोगन वेली, जास्वंदी, चाफा, कर्दळ, शिवाय नारळ, केळी, बांबू हे तर सारं कोकण —केरळ यांचीच आठवण करून देत होतं.  भारत आणि इंडोनेशियाचं हे मनातल्या मनात केलेलं एकत्रीकरण अर्थातच खूप गंमतीदार होतं.

आमचा सहा जणांचा ग्रुप.  मी, विलास, सतीश, साधना, सुमन आणि प्रमोद.  सतीश चे कर्मा ग्रुपचे सदस्यत्व असल्यामुळे आम्हाला कर्मा चांडीसार या प्राॅपर्टी मध्ये एक सुंदर ऐसपैस बंगला मिळाला होता.  तोही अगदी समुद्रकिनाऱ्याला लागूनच.  हिंदी महासागराचं जवळून  झालेलं ते नयनरम्य दर्शन केवळ अप्रतिम! आमचा सहा जणांचा ग्रुप एकदम आनंदला.

आम्ही सारे पंच्याहत्तरी  पार केलेले, खूप वर्षांपासून मैत्रीच्या घट्ट बंधनात बांधलेले. क्षणात अक्षरशः केवढे तरी तरुण झालो आणि या सहलीत आपण काय काय साहसे करू शकतो याविषयीचे बेत आखू लागलो. चालू ,चढू, पोहू करू की सारं…!! अंतर्मन म्हणायचं,” वय विसरू नका.” पण निसर्गाच्या सानिध्यात माणूस वय विसरतो हे मात्र खरं.

२८/११/२३ 

बालीत (इंडोनेशिया) प्रवेश केल्यावर हवाई अड्ड्यावरच आपण एकदम मिलियाॅनिअर झाल्याचा भास का असेना पण सुखद अनुभव आला. 

पोहोचल्याबरोबरच आम्ही प्रथम व्हिसाची प्रक्रिया पूर्ण केली. इथे व्हिसा ऑन अरायव्हल असतो. व्हिसासाठी आम्हाला प्रत्येकी ३३ डॉलर भरावे लागले. नंतर मनी चेंजरकडून इंडोनेशियन रुपयाची (आयडीआर) करन्सी घेतली आणि काय सांगू अक्षरशः पैशांचा पाऊसच पडला. केवळ ५० हजारा.चे जवळजवळ ८८ लाख इंडोनेशियन रुपये हातात आले. एकेक लाखाच्या, पन्नास हजारांच्या, वीस हजारांच्या च्या भरपूर नोटा.  पर्समध्ये मावेनात. क्षणात खूप श्रीमंत झाल्याचा एक मजेशीर अनुभव मात्र घेतला.

पहिल्या दिवशी टॅक्सीने आम्ही आमच्या आरक्षित बंगल्यावर जेव्हा आलो तेव्हा टॅक्सीचे बिल साडेनऊ लाख इंडोनेशीयन  रुपये झाले होते, त्याचीही गंमत वाटली.

तसे आम्ही दुपारीच पोहोचलो होतो.  विमानात खाणे झालेच होते तरीही थोडे ताजेतवाने होत बरोबर आणलेल्या खाद्यपदार्थांचा आम्ही समाचार घेतला.  सोबत सॉफ्ट ड्रिंक्स, रेड वाइन वगैरे होतंच. 

आमचा बंगला अगदी वेल फर्निश्ड आणि सर्व सुविधायुक्त होता. सुरेख सजवलेले अद्ययावत किचनही  होते.

पहिल्या दिवशी थोडा आरामच करायचे ठरवले. बंगल्याजवळच स्विमिंग पूल होता व तेथे असणार्‍या रेस्टॉरंट पलीकडे अथांग पसरलेला शांत. गूढ, हिंदी महासागर. या सागरात ठिकठिकाणी मोठ मोठी  जहाजे दिसत होती.   काही व्यापारीही असतील कारण बाली हे सुप्रसिद्ध व्यापारी बेट आहे. काही पर्यटन बोटीही असतील तर काही मच्छीमारांच्या बोटी होत्या.  मच्छीमारी हा इथला महत्त्वाचा व्यवसाय आहे.बालीचं हे प्राथमिक दर्शन मनभावन होतं.

हळूहळू सूर्य क्षितिजा पलीकडे गेला. सोनेरी किरणांनी आकाश रंगले आणि मग त्यातूनच अंधाराची वाट पसरत गेली. मात्र मानवनिर्मित रोषणाईने संपूर्ण सागर किनारा चमकू लागला. परिसरातील संमीश्र शांतता, गुढता अनुभवत आम्ही परतलो.  सतीशने दुसऱ्या दिवशीचा साईट सीईंगचा कार्यक्रम आखलेला होताच.

– क्रमश: भाग पहिला 

© सौ. राधिका भांडारकर

ई ८०५ रोहन तरंग, वाकड पुणे ४११०५७

मो. ९४२१५२३६६९

[email protected]

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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हिन्दी साहित्य – आलेख ☆ पर्यटक की डायरी से – मनोवेधक मेघालय – भाग-८ ☆ डॉ. मीना श्रीवास्तव ☆

डाॅ. मीना श्रीवास्तव

☆ पर्यटक की डायरी से – मनोवेधक मेघालय – भाग-८ ☆ डॉ. मीना श्रीवास्तव ☆

(मावफ्लांग का पवित्र जंगल)

लेखक-डॉ. मीना श्रीवास्तव

प्रिय पाठकगण,

आपको हर बार की तरह आज भी कुमनो! (मेघालय की खास भाषामें नमस्कार, हॅलो!)

फी लॉन्ग कुमनो! (कैसे हैं आप?)

पिछले भाग में मैंने वादा किया था कि, हम चलेंगे मावफ्लांग (Mawphlang) के सेक्रेड ग्रोव्हज/ सेक्रेड वूड्स/ सेक्रेड फॉरेस्ट्स में! आइये तैयार हो जाइये एक रोमांचक और अद्भुत प्रवास के लिए! सेक्रेड ग्रोव्हज/ सेक्रेड वूड्स/ सेक्रेड फॉरेस्ट्स अर्थात पवित्र जंगलों या उपवनों को कुछ विशिष्ट संस्कृतियों में विशेष धार्मिक महत्व प्राप्त है| पूरे विश्व की विविध संस्कृतियों में ये पवित्र उपवन उनके विशेषताओं समेत आज भी अपनी गहन हरीतिमा से भरपूर वैभव के साथ अस्तित्व में हैं| हालाँकि हमें वे सुंदर लॅण्डस्केप्स (सिर्फ देखने योग्य या चित्र या फोटो खींचने के पर्यटन के मात्र सुन्दर साधन) के रूप में दिखते हों, लेकिन कुछ पंथियों या धर्मियों के लिए इन सबसे परे वे बहुत ही महत्वपूर्ण पवित्र स्थल हैं| इसमें भी खासमखास कुछ विशिष्ट वृक्ष तो अत्यंत पवित्र माने जाते हैं| इस समुदाय के लोग इस वनदेवी को प्राणों से भी बढ़कर जतन करते हैं| इसी देखभाल के कारण यहाँ की वृक्षलताएँ हजारों वर्ष पुरातन होकर भी सुरक्षित हैं|

इस पर्वतीय राज्य के वनवैभव में कुछ महत्वपूर्ण सांस्कृतिक परम्पराओं की उत्पत्ति है| खासी समाज को अतिप्रिय इस मावफ्लांग के पवित्र जंगल ने प्राचीन गुह्य इतिहास, रहस्यमय दंतकथाएं और विद्याओंको को अपनी विस्तीर्ण हरितिमा में छुपाकर रखा है| यहाँ की ऊँची नीची प्राकृतिक सीढ़ियां और पगडंडियां, छोटे बड़े वृक्ष-समूह, उनके बाहुपाश में घिरकर लिपटी लताएं, चित्रविचित्र पुष्पभार, पेड़ों पर और उनके नीचे फैले हुए फल,  विस्तीर्ण पर्णराशी, जगह जगह बिखरे पाषाण (एकाश्म/ मोनोलिथ), बीच में ही विविध सप्तकों में कूजन से वन की शांति भंग करने वाले पंछी, यहाँ वहां स्वछंद हो उड़ने वाली रंग-बिरंगी तितलियाँ, यत्र तत्र तथा सर्वत्र जल के प्रवाही प्रवाह, हर कोई जैसे किसी रहस्यमयी उपन्यास के पात्र के समान, मानों प्रत्येक पात्र कहना चाहता हो, “मुझे कुछ कहना है”! यहाँ के आदिवासियों का सारा जीवन इन्हीं जंगलों में निहित है, इनका रक्षक और इन्हें भयभीत करने वाला जंगल एक ही है!

शिलॉंग शहर से केवल २६ किलोमीटर दूर है मावफ्लांग का सॅक्रेड ग्रूव्ह! हमारी उपवन /जंगल की  कल्पना यानि मजबूत पथरीली, काँक्रीट या संगमरमर की सीढ़ियां, रास्ते, बैठने के लिए बेंच, कृत्रिम फव्वारे, स्विमिंग पूल, रेस्तरां, इत्यादी इत्यादी! प्यारे पाठकों, यहाँ ऐसा कुछ भी नहीं| जंगल जैसे का वैसा! नीचे की पर्णसम्पदा भी अस्पर्श, यहाँ की किसी भी चीज को मानव का स्पर्श वर्जित है! अर्थात हमारे वन में चलने के कारण हुए उसके बेमर्जी से हो उतना ही! मित्रों, यहीं है वह अनामिक, अभूतपूर्व, अप्रतिम, अलौकिक, अनुपम, अनाहत, अनोखा और अस्पर्शित सौंदर्य! हमें हमारे गाईड ने (उम्र २१ वर्ष) इस जंगल का ह्रदयस्पर्शी  विलक्षण ऐसा संदेश बतलाया, “यहाँ आइये, यहाँ की प्राकृतिक सम्पदा का वैभव अपने नेत्रों में जी भर कर समाहित कर लीजिये (परन्तु कुछ भी लूटने की कोशिश कदापि मत कीजिये!), यहाँ से लेकर जाना चाहते हैं, तो इस सौंदर्य की स्मृतियाँ ले जाइये और उन्हें जतन कीजिये, हृदय में या अधिक से अधिक कैमरे में! यहाँ से एक सूखी पत्ती तो छोड़िये, एक तिनका भी उठाकर मत ले जाइये! मित्रों, ऐसी सख्ती रहने के उपरांत ‘वनों की कटाई’ जैसे शब्दों का हम सपने में भी स्मरण नहीं करेंगे! पेड़ों की क्या हम ऐसी परवाह करते हैं? पत्तों और फूलों को तोड़ने और पेड़ों को घायल करने का उद्योग इतना सरेआम होता है कि क्या कहें! (हमारे लिए हर महीना सावन होता है, पूजा को पत्ते या फूल नहीं चाहिए क्या!!!)

सेक्रेड ग्रोव्हस में इनके लिये कोई जगह नहीं, उल्टा “ऐसा करोगे तो मृत्यु हो सकती है, से लेकर कुछ कुछ होता है”, यहीं शिक्षा इन जनजातियोंको की पीढ़ी दर पीढ़ी को दी गई है| यहाँ स्थानीय लोग एक सीदे सादे नियम का पालन करते हैं (हमें भी यह करना होगा!), “इस जंगल से कुछ भी बाहर नहीं जाता”| अगर आप मृत लकड़ी या मृत पत्ती चुराते हैं तो क्या होगा, यह प्रश्न आप करेंगे! दंत कथाएं बताती हैं, “जो कोई भी जंगल से कुछ भी ले जाने की हिम्मत करता है, वह रहस्यमय तरीके से बीमार पड़ता है, कभी कभी तो प्राण पखेरू उड़ जाने  तक की नौबत आ जाती है|” इसीलिये यहाँ कुछ वृक्ष १००० वर्षों से भी अधिक जीवित हैं, प्राकृतिक ऊर्जा, जल, खाद सब कुछ है उनके पास, सौभाग्य से एक ही चीज़ नहीं, मानव की भूखी और क्रूर नज़र!!!

यह वनसंपदा धार्मिक कारणों से ही सही, सुरक्षित रखी है यहाँ की तीनों जनजातियोंने! यहाँ जैवविविधता उत्तम प्रकार से जतन की गई है, वनस्पती तथा पेड़ों की प्रजातियों की विस्तृत श्रेणियां (यह ध्यान रहे कि, इनमें दुर्लभ प्रजातियां भी शामिल हैं) फल फूल रही हैं, निर्भय हो कर जी रही हैं! मंत्रमुग्ध करने वाला यह हराभरा पर्जन्य-वन-वैभव इतना कैसे निखरता है? इसका कारण है, इसकी उष्णकटिबंधीय उत्पत्ति, यहाँ बरसात में पवन और पानी दोनों ही दीवाने हो जाते हैं, हर्ष और मोद की मानों बाढ़ आ जाती है! तूफानी हवा का बवण्डर और आसमान से घनघोर घटाओं से बरसती घमासान जलधाराओं का नृत्यविलास! इसी अर्थ का एक मराठी गीत है, “घन घन माला नभी दाटल्या कोसळती धारा!”

प्रिय मित्रों, यहाँ टाइम का ध्यान रखना अत्यावश्यक है (सुबह ९ से शाम ४.३०). देरी से जंगल में जाने वाले और जंगल में से देरी से लौटने वाले को माफ नहीं किया जाता! हमें ऐसे जंगल की आदत नहीं है, इसलिए यहाँ भटकना ठीक नहीं| देखने लायक बहुत कुछ रहकर भी यकीनन आप की आँखें वह देख नहीं पाएगी| यहीं के प्रशिक्षित स्थानिक मार्गदर्शक/ गाईड का कोई विकल्प नहीं| आपका यह गाईड यहाँ की महज समृद्ध वनसंपदा ही नहीं दिखाएगा, परन्तु यह ध्यान रहे कि, वह यहाँ का वनरक्षक और सांस्कृतिक वारिस भी है! यह पथप्रदर्शक रोमहर्षक प्रकार से इस जंगल का राज़ सुलझाकर बताएगा, साथ ही, खासी जनजाति की धार्मिक और सांस्कृतिक श्रद्धा तथा इस जंगल का संबंध विस्तारपूर्वक बतलाएगा! प्रिय पाठकों, वह यहाँ की एक एक पत्ती को देखते हुए यहीं बड़ा हुआ है! यहाँ की दंतकथाएं उसीके प्रभावपूर्ण निवेदन में सुनिएगा मित्रों| मजे की बात यह है कि सभी गाइड एक ही जबानी बोलते हैं (समान प्रशिक्षण!), हमारा युवा गाइड एकदम धाराप्रवाह अंग्रेजी बोल रहा था| उसने हमें खासी भाषा के बारे में भी कुछ ज्ञान दिया।

अब इस वनसम्पदा की नयनाभिराम और विस्मयकारक चीजें देखते हैं! 

नयनरम्य जंगल की पगडंडी (फॉरेस्ट ट्रेल)

यहाँ की टेढ़ी मेढ़ी राहें पर्यटकों को अगोचर लगेगी ऐसी ही हैं! यहाँ पर टहलते हुए वृक्षलताओं के अनायास सजे हुए मंडप या छत के नीचे से जाते जाइये| यह सदाहरित घनतिमिर बन आप के ऊपर अपनी प्रेमभरी छत्रछाया का आँचल फैलाते हुए सूर्यकिरणों का स्पर्श तक होने नहीं देगा! यहाँ की पतझड़ की सुन्दर और अद्भुत रंगावली हरे और हल्दी जैसे पीत वर्ण से सजी होती है! यह घना वनवैभव निरंतर हवा के झोकों के संगीत पर दोलायमान होकर झूमते और लहराते रहता है! ये पगडंडियां हमें लेकर जाती हैं यहाँ की सांस्कृतिक परंपरा के विश्व में!

वर्षा ऋतु में अगर मूसलाधार बारिश हो रही हो तो, यह यात्रा कई गुना दुर्गम हो जाती है! यहीं सुगम्य राहें अब फिसलन और काई से भर जाती हैं! (हमारे अनुभव के बोल हैं ये!) हम लोगों ने आधे से भी अधिक बन देखा, परन्तु बाद में पगडण्डी पर भी चलना कठिन हुआ, अलावा इसके कि, नदी को लांघकर ही आगे जाना होगा, वापसी का और कोई रास्ता नहीं, ऐसी जानकारी गाइड ने दी और फिर हम वापस आए| प्रिय पाठकों, सितम्बर- अक्टूबर के महीनों में इस परिसर को भेंट देना उत्तम रहेगा!

एकाश्म/ मोनोलिथ्स

इस बन का रहस्य वर्धित करनेवाले अनाकलनीय स्थानोंपर एकाश्म/मोनोलिथ्स (monoliths) स्थित हैं| मोनोलिथ यानि एक खड़ा विशाल पाषाण या एकाश्म/ एकल शिला! गाईडने बतलाया कि, एकाश्म खासी लोगों के पूजास्थान हैं| वे इनका उपयोग पशु बलि देने के लिए करते हैं| हम जिस सहजता से मंदिर में जाकर घण्टी बजाते हैं उसी प्रकार ये लोग पशु बलि देते हैं| यहाँ पर एक मोनोलिथ फेस्टिव्हल (उत्सव) भी होता है, आदिवासियों की सांस्कृतिक विरासत तथा वैभव के दर्शन करने का यह उत्तम अवसर होता है| उस समय ऐसा प्रतीत होता है, मानों यह सकल जंगल जीवंत हो अपनी कहानी खुद बखान कर रहा हो!

खासी हेरिटेज गांव

गांव के लोगों की हस्तकला का दर्शन और उनकी झुग्गी झोपड़ियों से बना यह गांव प्रदर्शन हेतु तैयार किया जा रहा है! इसका काम विविध स्तरों पर जारी है ऐसा गांववालों ने बताया|

लबासा, जंगलकी देवता

लबासा, यह है शक्तिशाली देवता, इसी जंगल में संचार करनेवाली, इस प्रदेश के सकल लोगों का उद्धार करनेवाली और उनका श्रद्धास्थान! इसीलिये देखिये न इसकी कृपा से गांव वालों की समस्त उपजीविका जंगल के इर्द गिर्द घूम रही है| बीमारी हो, नसीब का फेरा हो या रोजमर्रा की कोई भी परेशानी हो, यह देवता उनके विश्वास का प्रमुख आधार हैं। किंवदंती है कि, आदिवासी लोगों की रक्षा के लिए यह देवता बाघ या तेंदुए का रूप ले सकती है। देवता को प्रसन्न करने हेतु मुर्गे या बकरे की बलि दी जाती है। इसी जंगल में गांववाले अपने मृतकों को जलाते हैं|

अगले भाग में चलेंगे एक अत्यंत कठिन ट्रेल पर!

तो अभी के लिए खुबलेई! (khublei) यानि खास खासी भाषा में धन्यवाद!)

डॉ. मीना श्रीवास्तव             

टिप्पणी

*लेख में दी जानकारी लेखिका के अनुभव और इंटरनेट पर उपलब्ध जानकारी पर आधारित है| यहाँ की तसवीरें और वीडियो (कुछ को छोड़) व्यक्तिगत हैं!

*गाने और विडिओ की लिंक साथ में जोड़ रही हूँ|

https://photos.app.goo.gl/nbRv3RzAUpaEY12V7

सेक्रेड ग्रूव्हस- प्रवास का आरम्भ हमारे गाईड के साथ!

“घन घन माला नभी दाटल्या” चित्रपट -“वरदक्षिणा”

गायक मन्ना डे, गीत ग दि माडगूळकर, संगीत वसंत पवार

© डॉ. मीना श्रीवास्तव

८ जून २०२२     

ठाणे 

मोबाईल क्रमांक ९९२०१६७२११, ई-मेल – [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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मराठी साहित्य – मी प्रवासिनी ☆ मनोवेधक मेघालय…भाग -६ ☆ डाॅ. मीना श्रीवास्तव ☆

डाॅ. मीना श्रीवास्तव

? मी प्रवासिनी ?

☆ मनोवेधक  मेघालय…भाग -६ ☆ डाॅ. मीना श्रीवास्तव ☆

(मावफ्लांगचे पवित्र जंगल)

प्रिय वाचकांनो,

आपल्याला दर वेळी प्रमाणे आजही कुमनो! (मेघालयच्या खासी या खास भाषेत नमस्कार, हॅलो!)

फी लॉन्ग कुमनो! (कसे आहात आपण?)

मागील भागात मी वायदा केला होता की, आपल्याला मावफ्लांग (Mawphlang) च्या सेक्रेड ग्रोव्हज/ सेक्रेड वूड्स/ सेक्रेड फॉरेस्ट्स मध्ये जायचंय! चला तर मग तयार व्हा एका रोमांचक आणि अद्भुत प्रवासाकरता! सेक्रेड ग्रोव्हज/ सेक्रेड वूड्स/ सेक्रेड फॉरेस्ट्स अर्थात पवित्र जंगले किंवा उपवने यांना कांही विशिष्ट संस्कृतीत विशेष धार्मिक महत्व आहे. जगभरातील विविध संस्कृतींमध्ये ही पवित्र उपवने त्यांच्या वैशिष्ट्यांसह अस्तित्वात आहेत. ती जरी आपल्याला सुंदर लॅण्डस्केप्स (नुसती बघण्यापुरती किंवा चित्रे किंवा फोटो काढण्यापुरती प्रेक्षणीय स्थळे) म्हणून दिसत असलीत तरी कांही पंथी किंवा धर्मियांसाठीं ती त्यापलीकडे जाऊन अत्यंत महत्वाची पवित्र स्थळे आहेत. त्यातल्या त्यात काही विशिष्ट वृक्ष तर अत्यंत पवित्र मानले जातात. या समुदायाचे लोक ही वनराजी प्राणापलीकडे जपतात. याच जपणुकीमुळे येथील वृक्षवल्ली हजारो वर्षे जुनी असूनही सुरक्षित आहेत.

या पर्वतीय राज्याच्या वनराजीतच काही महत्वाच्या सांस्कृतिक परंपरांचा उगम आहे. खासी समाजाला अतिप्रिय अश्या या मावफ्लांगच्या पवित्र जंगलाने प्राचीन गुह्य इतिहास, गूढरम्य दंतकथा आणि विद्या आपल्या विस्तीर्ण हिरवाईत दडवून ठेवल्या आहेत. इथल्या उंचनिंच नैसर्गिक पायऱ्या अन पायवाटा, लहान थोर वृक्षसमूह, त्यांना लगडलेल्या लता, चित्रविचित्र पुष्पभार, झाडांवर आणि त्याखाली पसरलेली फळे, विस्तीर्ण पर्णराशी, जागोजागी विखुरलेले पाषाण (एकाश्म/ मोनोलिथ), मध्येच विविध सप्तकातील कूजनाने वनाची शांतता भंग करणारे पक्षी, बागडणारी रंगीबेरंगी फुलपाखरे,  यत्र तत्र अन सर्वत्र  प्रवाही जलाचे ओहोळ, सारे कसे गूढ रम्य कादंबरीतील पात्रांसारखे, जणू प्रत्येकाला “मला काही सांगायचंय!” हेच वाटत असावं! येथील जमातींचे सकळ आयुष्यच मुळी या वनराजींशी जुळलेले, त्यांचे रक्षणकर्ते आणि त्यांना भयभीत करणारे जंगल एकच! 

शिलॉंग शहरापासून केवळ २६ किलोमीटर दूर असलेले हे मावफ्लांगचं सॅक्रेड ग्रूव्ह! आपली उपवनाची/जंगलाची कल्पना म्हणजे चांगल्या दगडी, काँक्रीट, संगमरवरी पायऱ्या, रस्ते, बसायला बेंच, कृत्रिम कारंजी, तरणतलाव, उपहारगृह, इत्यादी इत्यादी! मंडळी, इथं यातलं कांही कांही नाही. जंगल जसंच्या तसं! खालचा पालापाचोळा सुद्धा अस्पर्श, इथल्या कुठल्याही गोष्टीला माणसाचा स्पर्श वर्जित! अर्थात आपण रान तुडवतांना नाइलाजाने होतो तितकाच! मैत्रांनो, हेच ते अनामिक, अभूतपूर्व, अप्रतिम, अलौकिक, अनुपम, अनाहत, अनवट अन अस्पर्शित सौंदर्य! आम्हाला आमच्या गाईडने (वय वर्षे २१) या जंगलाचा हृदयाला भिडणारा विलक्षण असा संदेश सांगितला, “इथे या, डोळे भरून इथली निसर्गाची लयलूट बघा (कांहीही लुटून मात्र नेऊ नका), इथून नेणार असाल तर इथल्या सौंदर्याच्या स्मृती न्या अन जतन करा, हृदयात किंवा फार तर फार कॅमेऱ्यात! इथून एक वाळलेले पान तर सोडाच, काडी देखील उचलून नेऊ नका! मित्रांनो, ही अशी सक्ती असल्यावर जंगलतोड हा शब्द आपण स्वप्नांत देखील आठवणार नाही! अशी झाडांची जपणूक आपण करतो का? जमेल तिथे अन जमेल तशी पाने-फुले ओरबाडून घेणे आणि झाडांना इजा पोचवणे, हा उद्योग इतका कॉमन आहे की काय बोलावे! (आपल्याकरता प्रत्येक महिना श्रावणच असतो, पूजेकरिता पाने अन फुले नकोत का!!!)

सेक्रेड ग्रोव्हस मध्ये याला वाव नाही, उलट “असे कराल तर मृत्यू होतो, पासून तर कांही बाही होते”, हीच शिकवण या जमातीच्या दर पिढीला दिली गेलीय. इथं स्थानिक एक साधा नियम पाळतात (आपणही पाळायचा) “या जंगलातून कांहीही बाहेर जात नाही.” जर तुम्ही मृत लाकूड किंवा मृत पान चोरले तर काय होईल असा तुम्हाला प्रश्न पडेल. दंतकथा सांगतात “जो कोणी या जंगलातून काहीही घेऊन जाण्याचे धाडस करतो, तो गूढपणे आजारी पडतो. कधी कधी तर हे प्राणांवर देखील बेतते”. म्हणूनच तर इथे काही झाडे १००० वर्षांच्यावर जगताहेत, नैसर्गिक ऊर्जा, पाणी, खत, सर्व काही आहे त्यांच्याजवळ, सुदैवाने एकच गोष्ट नाही, माणसाची बुभुक्षित अन क्रूर नजर!!! ही वनसंपदा धार्मिक कारणांनी का होईना, राखली आहे इथल्या तिन्ही जमातींनी! इथे जैवविविधता उत्तमरित्या जतन केलेली आहे. वनस्पती आणि झाडांच्या प्रजातींच्या विस्तृत श्रेणी (यात दुर्मिळ प्रजाती सुद्धा आल्या बरं का!) फोफावल्या आहेत, निर्भय होऊन जगताहेत. मंत्रमुग्ध करणारी ही हिरवीकंच पर्जन्यवनराई इतकी कशी बहरते? याला कारण हिचे उष्णकटिबंधीय उगमस्थान! इथे वारा अन पाऊस फोफावतो, आनंदाचं उधाण येऊन! सोसाट्याचा वारा अन “घन घन माला नभी दाटल्या, कोसळती धारा!” हे होणारच. (गाणं टाकलय शेवटी!)

प्रिय मैत्रांनो, इथला टाइम पाळणे अत्यावश्यक (सकाळी ९ ते संध्याकाळी ४.३०). उशीरा जंगलात जाणाऱ्यास आणि जंगलातून उशीरा बाहेर येणाऱ्यास माफी नाही! आपण या जंगलाला सरावलेलो नाही, त्यामुळे भटकणे टाळा. बघण्यासारखे बरेच काही असूनही तुमच्या डोळ्यांना ते दिसणारच नाही याची खात्री बाळगा. इथल्याच प्रशिक्षित स्थानिक वाटाड्या/ गाईडला पर्याय नाही. तुमचा हा गाईड इथली समृद्ध वनसंपदाच दाखवणार नाही तर तो इथला वनरक्षक आणि सांस्कृतिक वारसदार आहे, हे लक्ष्यात असू द्या! हा पथप्रदर्शक रोमहर्षक तऱ्हेनं या जंगलातले गूढ उलगडून दाखवेल, तसेच खासी जमातींच्या धार्मिक आणि सांस्कृतिक श्रद्धेचा अन या जंगलाचा संबंध तपशीलासह सांगेल! मंडळी, तो इथले पानंपान बघता बघताच मोठा झालाय! इथल्या दंतकथा त्याच्याच प्रभावी निवेदनातून ऐकाव्या मित्रांनो. गंमत म्हणजे सर्व गाईड्सची जबानी सारखीच (समान प्रशिक्षण!), आमचा तरुण गाईड तर अस्खलित इंग्रजी बोलत होता. त्यानंच आम्हाला खासी भाषेची जुजबी माहिती दिली.    

आता या वनसंपदेतील नेत्रदीपक व विस्मयकारक गोष्टी बघू या:

नयनरम्य जंगलातील पायवाट (फॉरेस्ट ट्रेल)

इथल्या या वेड्यावाकड्या वाटा पर्यटकांना अगम्य वाटाव्यात अशाच आहेत! इथे फिरतांना वृक्ष वल्लींच्या आपसूक सजलेल्या मंडपातून किंवा छताखालून जातच जावं. हे सदाहरित घनतिमिर बन आपल्यावर मायेची पाखर घालत सूर्यकिरणांचा स्पर्श सुद्धा घडू देत नाही! इथली पानगळीची विलक्षण नक्षी हिरव्या अन हळदी रंगांनी सजलेली! हे निबिड वनवैभव कायम वाऱ्याच्या संगीतावर दोलायमान होऊन सळसळत असतं! या पायवाटा आपल्याला घेऊन जातात इथल्या सांस्कृतिक परंपरेच्या जगात!  

वर्षा ऋतूतील मुसळधार पाऊस असेल तर हा प्रवास कैकपटीने दुस्तर! याच सुगम्य वाटा आता निसरड्या अन शेवाळल्या होतात! (आमचे अनुभवाचे बोल!) आम्ही निम्म्याहून अधिक वन पाहिले, पण नंतर पायवाट सुद्धा चालणे कठीण झाले. एक नदी ओलांडून मगच पुढे जावे लागेल, शिवाय परतीची वाट नाही, अशी माहिती गाईडने दिली अन आम्ही माघारी फिरलो. प्रिय वाचकांनो, सप्टेंबर-ऑक्टोबर हे महिने या परिसराला भेट द्यायला उत्तम!

एकाश्म/ मोनोलिथ्स

या वनाचे गूढ वर्धित करणाऱ्या अनाकलनीय स्थानांवर एकाश्म/मोनोलिथ्स (monoliths) आहेत. मोनोलिथ म्हणजे एक उभा विशाल पाषाण किंवा एकाश्म/ एकल शिळा! गाईडने सांगितले की, एकाश्म ही खासी लोकांच्या पूजेची ठिकाणे आहेत. यांचा वापर प्राण्यांचा बळी देण्यासाठी करतात. आपण ज्या सहजतेने मंदिरात जाऊन घंटा वाजवतो, त्याच प्रकारे हे लोक प्राण्यांचा बळी देतात. इथे एक मोनोलिथ फेस्टिव्हल (उत्सव) देखील असते, आदिवासींचा सांस्कृतिक वारसा आणि वैभव बघायची ही उत्तम संधी! या वेळी हे संपूर्ण जंगल जिवंत होऊन स्वतःची कथाच जणू विशद करत असावे!

खासी हेरिटेज गाव

गावकऱ्यांच्या हस्तकलेचे दर्शन आणि आदिवासी झोपड्या असलेले हे गाव प्रदर्शनासाठी तयार केले जात आहे! याचे काम विविध स्तरावर सुरु आहे असे स्थानिकांनी सांगितले.

लबासा, जंगलाची देवता

लबासा, ही आहे शक्तिशाली देवता, याच जंगलात संचार करणारी, या प्रदेशातील सर्व लोकांची तारणहार अन श्रद्धास्थान! म्हणूनच बघा ना, तिच्या कृपेने गावकऱ्यांची संपूर्ण उपजीविका जंगलाभोवतीच फिरत आहे. रोग असो, नशिबाचे फेरे असो किंवा दैनंदिन समस्या असोत, ही देवता त्यांच्या विश्वासाचा प्रमुख आधारवड आहे. आदिवासी लोकांचे रक्षण करण्यासाठी ही देवता वाघ किंवा बिबट्याचे रूप धारण करू शकते अशी आख्यायिका आहे. देवतेला प्रसन्न करण्यासाठी कोंबडा किंवा बकऱ्यांचा बळी दिल्या जातो. गावकरी त्यांच्या मृतांना या वनातच जाळतात.

पुढील भागात सफर करू या एका अत्यंत दुष्कर ट्रेलची!

तर आतापुरते खुबलेई! (khublei) म्हणजेच खास खासी भाषेत धन्यवाद!)

टीप – लेखात दिलेली माहिती लेखिकेचे अनुभव आणि इंटरनेट वर उपलब्ध माहिती यांच्यावर आधारित आहे. इथले फोटो आणि वीडियो (काही अपवाद वगळून) व्यक्तिगत आहेत!

©  डॉ. मीना श्रीवास्तव

ठाणे 

मोबाईल क्रमांक ९९२०१६७२११, ई-मेल – [email protected]

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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मराठी साहित्य – मी प्रवासिनी ☆ धीर समीरे सरयू तीरे ☆ डाॅ. मीना श्रीवास्तव ☆

डाॅ. मीना श्रीवास्तव

? मी प्रवासिनी ?

धीर समीरे सरयू तीरे ☆ डाॅ. मीना श्रीवास्तव ☆

राम राम वाचकहो!

२०२२ च्या रामनवमीचा पावन दिन, ठाण्यातील ‘राम गणेश गडकरी सभागृहात’ गीत रामायणाचे आवर्तन सुरु होते.  श्रीधर फडके यांचे स्वर! गाणे होते आपले सर्वांचे कंठस्थ अन हृदयस्थ, ‘सरयू तीरा वरी अयोध्या, मनू निर्मित नगरी’! देहभान हरपून गाणे हृदयात सामावून घेण्याची माझी ही पहिली वेळ नव्हे!

‘सामवेदसे बाळ बोलती, सर्गामागुन सर्ग चालती,

सचीव, मुनिजन, स्त्रिया डोलती, आंसवे गाली ओघळती

कुश लव रामायण गाती’

अशी अवस्था प्रत्येक वेळी प्रेक्षकांची होते, तशीच त्या दिनी होती. मात्र तशातच (होऊ नये असे वाटत असतांना नेमके) मध्यांतर झाले. या मध्यंतरात अचानक एखादी ‘देववाणी’ कानी पडावी तसे श्रीधरजींचे भावपूर्ण शब्द कानी पडले. “मी अयोध्येत गीत रामायण सादर करणार आहे जुलै २०२२ ला! शरयू किनारी, तेव्हाही कोरस मध्ये अशीच साथ द्यायला या मला!” तेव्हां मी अंतर्बाह्य मोहरून गेले! स्वप्नात, गाण्यात अन पुस्तकात कल्पिलेली अयोध्या, रामाच्या वास्तव्याने जिचा कण कण पुनीत झाला आहे, ज्या सरयू नामक सरितेच्या किनारी प्रत्यक्ष मनू (प्रथम मानव) ने निर्माण केलेली ती भव्य दिव्य नगरी, जिथे रामाचे आदर्श ‘रामराज्य’ प्रत्यक्ष साकारले ती अयोध्या! याची देही, याची डोळा अन याची हृदया बघायला मिळेल. डोळ्यात प्राण आणून ही नगरी बघावी, अन कानात जीव ओतून श्रीधरजींच्या मुखातून गीत रामायण ऐकावे, यालाच मणी कांचन योग म्हणावे! या अमृतमय योगायोगात अजूनच माधुर्य यायचे होते. त्याच अवधीत जेष्ठ गायक आणि कीर्तनकार श्री चारुदत्त आफळे रामकीर्तनरंगाने अयोध्येचे आसमंत उजळून टाकणार होते. आणखी काय हवे! सर्व कांही मनासारखे घडत असतांना मी अचानक आजारी पडले, माझी कोरोना टेस्ट पॉझीटीव्ह होती! मात्र डॉक्टरांचा उचित सल्ला घेतल्यावर लक्षात आले की, गाडी सुटण्याच्या आदल्या दिवशी माझ्या कोरोनाचा ‘एकांतवास’ संपणार होता. मनातल्या मनात रामनामाचा गजर सुरु होता. सोबत असलेल्या अशक्तपणावर हेच ‘रामबाण’ औषध होते.

मंडळी, यात्रेच्या निर्धारित कार्यक्रमानुसार  मध्यरात्री जवळपास १२ च्या सुमारास आम्ही अयोध्येत पाऊल ठेवले. तीर्थक्षेत्राला अनुरूप अशा ‘जानकी महल’ या बऱ्यापैकी मोठ्या वास्तूतील आम्ही आरक्षित केलेल्या खोल्यांमध्ये प्रवेश मिळाला. सक्काळी सक्काळी तेथील भित्त्तिचित्रांतील रामाच्या जीवनातील विविध प्रसंग दर्शवणारे सुंदर रंगकाम, राम सीता, लक्ष्मण, तसेच हनुमान यांची प्रेक्षणीय देवालये बघून रात्रीचा थकवा कुठल्याकुठे पळून गेला. सकाळी सात्विक अल्पाहार, नंतर लगेच चारुदत्तजींचे कीर्तन अन संध्याकाळी श्रीधरजींचे गीत रामायण याप्रमाणे बहुपेडी रामसंकीर्तन, भजन, नामस्मरण अन गायन असा भरगच्च सत्संग कार्यक्रम होता.

‘अशनि राम पाणि राम, वदनि राम, नयनी राम

ध्यानी मनी एक राम, वृत्ती राम जाणिल काय

रामचंद्र मन मोहन नेत्र भरून पाहिन काय!’

हे माणिक बाईंचे भक्तिरसाने ओथंबलेले शब्द मनात गुंजायमान होत होते.! सकाळ संध्याकाळचे राम नाम संकीर्तनाचे तास वगळून, मी आणि माझ्या मैत्रिणीने अयोध्या दर्शनाचा जमेल तसा अन जमेल तितका लाभ घेण्याचे ठरवले.    

सर्वप्रथम श्रीराम जन्मभूमी बघण्याची ओढ होती, मात्र मी गेले तेव्हा भाविकांसाठी त्या स्थळी एक तात्पुरते छोटेसे राम मंदिर बघायला मिळाले. त्याच मंदिराचे मनोभावे दर्शन घेता घेता रामजन्म भूमीचा विस्तीर्ण परिसर बघितला. मजबूत लोखंडी जाळ्यांच्या आडून मंदिराचे निर्माणकार्य वेगात सुरु असलेले दृष्टिपथास पडत होते.  शेकडो कारागिरांकडून अहोरात्र हस्त शिल्पे साकारण्यात येत होती. मंडळी, आजच्या या माहिती तंत्रज्ञानाच्या युगात आपणासाठी अयोध्येत कोणते सामान कुठून आले, रामाची मूर्ती कुणी बनवली या आणि इतर गोष्टी लहान मोठ्या पडद्यांवर उपलब्ध आहेत. मात्र ‘स्थानमाहात्म्य’ लक्षात घेतले तर, ज्या रजकणांना रामाच्या चरणांचा स्पर्श झाला आहे, तेच कण आपल्यासाठी श्रद्धासुमने आहेत. होय ना!   

हनुमानगढी, दशरथ महल, कौशल्या महल, इत्यादी मंदिरे बघण्याचे आम्हाला अहोभाग्य लाभले. ‘हनुमान गढी’ नावाच्या टेकाडावर हनुमानाचे दहाव्या शतकातील प्राचीन मंदिर आहे. व्यवस्थित बांधलेल्या पायऱ्या चढून गेल्यावर हनुमानाचे मंदिर नजरेस पडते. 

आमच्यापैकी बरीच मंडळी रोज पहाटे उठून सरयू किनाऱ्यावर पायीच जात स्नानाचा लाभ घेत असत. तिथे ‘राम की पौडी’ नावाने प्रसिद्ध असलेले घाट आणि कपडे बदलण्यासाठी (महिला आणि पुरुष यांचे वेगळे) आडोसे आहेत.  आम्ही जुलै २०२२ च्या पहिल्या आठवड्यात गेलो तेव्हा उन्हाळा सुरूच होता. क्वचित दोन वेळी पाऊस झाला. अशा तप्त वातावरणात प्रभातकाळीं सरयूच्या तीरावर चालत जातांना हलकेच स्पर्श करणाऱ्या आनंदी वायुलहरी अति सुखद आणि शीतल प्रतीत होत होत्या. हा सरयू किनारीचा संपूर्ण परिसर श्री रामचंद्राच्या वास्तव्याने पुनीत झालेला असल्याने अधिकच भक्तिमय झाला होता. सरयू किनारी लक्ष्मण मंदिर (तिथेच स्थित लक्ष्मण घाट आहे. रामाच्या त्यागाने दुःखसागरात बुडालेल्या लक्ष्मणाने आपला पार्थिव देह इथेच सरयू नदीत अर्पण केला) आणि जवळच रामचंद्र घाट आहे. इथे रामाने आपला देह सरयूत विसर्जित केला. त्यापाठोपाठ त्याचे बंधू बांधव आणि प्रजाजन या सर्वांनी देखील जलसमाधी घेतली! मित्रांनो, सरयू नदीत नौकानयन उपलब्ध आहे, त्या दरम्यान हे दोन घाट बघितले! 

सरयू नदीच्या पावन जलात नौकानयन करतांना तीराच्या लगत असलेली मंदिरे अत्यंत रमणीय दिसतात. नौकेत बसल्यावर ‘ धीर समीरे सरयू तीरे ‘ चा अनुभव अमृतसम होता. मन गुंतले होते श्रीराम प्रभूच्या चिंतनात! त्या तरंगिणीची प्रत्येक लहर जणू रामनामाचा गजर करीत नौकेवर आदळत होती. त्या प्रभात समयी सरयूच्या पावन स्पर्शाने धन्य झाले. मंडळी, नदीकिनारी आढळले एक अतिशय सुबक, सुंदर मंदिर, काळारामाचे! हुबेहूब नाशिकच्या काळाराम मंदिरासारखेच, एका अखंड काळ्याभोर शिळेत कोरलेल्या राम, सीता आणि रामबंधूंचे! तिथे नाशिकहून (स्वप्नात श्रीरामप्रभूंनी दिलेल्या आज्ञेनुसार) इथे सरयू तीरी राममंदिर निर्माण करणाऱ्या मराठी पुजाऱ्यांचे वंशज, भिंतींवर मराठी भाषेत लिहिलेली माहिती, इत्यादी बघून मन अभिमानाने भरून आले.

या प्राचीन मंदिरांच्या मांदियाळीत एक आगळेवेगळे मंदिर खूपच भावले. ते म्हणजे मनात संचित करून ठेवलेले अयोध्येतील लक्षवेधी वाल्मिकी मंदिर! तेथे आद्यकवी वाल्मिकी आणि त्यांचे शिष्य कुश लव यांच्या कोरीव, सुरेख देखण्या शुभ्र धवल मूर्ती तर आहेतच, पण विस्तीर्ण मंदिराच्या संगमरवरी भिंतींवर कोरलेले संपूर्ण वाल्मिकी रामायण आणि त्या त्या प्रसंगांना अनुरूप चितारलेली भित्तिचित्रे. बघता क्षणी भान हरपावे अशी कलाकुसर! मंडळी हे मंदिर बघून अतीव समाधान लाभले. अयोध्येतील गुरु-शिष्यांचे हे अलौकिक स्मारक प्रेक्षणीय आणि अविस्मरणीय, पुरातन मंदिर नसूनही!

आणखी किती देवालये, अन किती आठवणी स्मराव्यात परमपवित्र तीर्थक्षेत्र अयोध्येच्या! सप्तपुरीतील एक पुरी अयोध्येतील ते मंतरलेले दिवस, तिथला एक एक क्षण आयुष्याला समृद्ध करून गेला.  

जानकी महालाच्याच परिसरात असलेल्या शामियान्यात रामसंकीर्तन आयोजित केले गेले होते. सकाळी चारुदत्त आफळेजींच्या कीर्तनादरम्यान रामकथेतील मुख्य कथाबीज ऐकतांना आणि त्यांच्या मुखातून भक्तिरसात न्ह्यायलेली गाणी आणि अभंग ऐकतांना किती म्हणून समरस झालोत. त्यांच्या आवाजाला शास्त्रीय संगीताची बैठक असल्याने ही गाणी उत्कृष्ट संगीताची मेजवानीच असायची. कीर्तनात भक्तिरंगासोबतच हास्यरंग भरीत चारुदत्तजी यांनी आपल्या आख्यानात कित्येक सुंदर कथा सांगितल्या आणि त्यांचे निरूपण केले. तसेच त्यांच्या सोबत संपूर्ण भक्त समूहाने समर्पित होऊन साथ देत

गायलेले ‘नादातुनी या नाद निर्मितो, श्रीराम जय राम जय जय राम’ हे मधुरतम राम संकीर्तन आणि ताल मृदूंगासमवेत गायलेल्या समूह आरत्या, भक्तीच्या पराकाष्ठेची अनुभूती देत असत. 

संध्या समयी श्रीधरजींचे गीत रामायण सादर होत असे! कांही दिवशी श्रीधरजींनी रामचंद्रांची भक्तिगीते देखील सादर केली.  अयोध्येच्या रम्य परिसरात ‘सरयू तीरावरी अयोध्या’ हे अयोध्येचे चित्रवत वर्णन करणारे गाणे आणि ‘राम जन्मला ग सखी’ हे राम जन्माचे अजरामर गाणे अक्षरशः कृतकृत्य करून गेले! (आयोजकांनी कल्पकता दाखवीत या गाण्याच्या जोडीला प्रशिक्षित कथक नृत्यांगनांचे समर्पक नृत्य ही सादर केले) श्रीधरजींसोबत कोरसमध्ये गातांना एक अनवट ऊर्जा अंगात संचारली होती. मनाला भिडणारी सर्वात सुंदर गोष्ट म्हणजे दोघांचा सुरस समन्वय, त्यामुळे आम्हा भक्तगणांना रामकथेचे कीर्तनरंग आणि गीतरंग या दोहोंचा उत्कृष्टरित्या आस्वाद घेता आला. एकंदरीत या कार्यक्रमात मला आलेला असा भावानुभव विरळा. त्याकरता आफळे गुरुजी आणि श्रीधरजी या द्वयीला सादर वंदन आणि त्यांचे अमाप आभार!    

हे रघुकुलभूषण श्रीराघवेंद्रा! या शब्दांकुरांच्या अंती आता तुलाच साकडे घालायचे राहिले! हे कृपासिंधू रामराया, परत एकवार अयोध्येत तुझ्या चरण सेवेशी रुजू व्हायचे आहे. पूर्णत्वास गेलेले राममंदिर अन तिथे अधिष्ठित झालेली तुझी साजिरी गोजिरी मूर्ती नजरेत भरून घ्यायची आहे! संपूर्ण मंदिर क्रमाक्रमाने नयनांच्या ज्योतीत आणि हृदयाच्या गर्भगृहात दाखल करून घ्यायचे आहे. तवरीक परत एकदा ज. के. उपाध्ये यांचे अमृताहुनी गोड असे माणिकबाईंच्या भक्तिमय स्वरांतील शब्द फिरफिरुनि स्मरते!

‘रामचंद्र मनमोहन नेत्र भरून पाहिन काय!

सतत रमवि जे मनास, ज्यात सकल सुखनिवास

सुधाधवल विमल हास, अनुभवास येईल काय?

जाऊ तरी कुणास शरण, करील कोण दुःख हरण

मजवरि होऊन करूण, प्रभुचं चरण दावील काय?’

अयोध्यापती श्रीरामाच्या दर्शनाच्या अनिवार इच्छेसमवेत ही शब्दकुसुमांजली त्याच्याच चरणकमली रुजू करते! जय श्रीराम!

© डॉ. मीना श्रीवास्तव

ठाणे 

मोबाईल क्रमांक ९९२०१६७२११, ई-मेल – [email protected]

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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हिन्दी साहित्य – आलेख ☆ पर्यटक की डायरी से – मनोवेधक मेघालय – भाग-७ ☆ डॉ. मीना श्रीवास्तव ☆

डाॅ. मीना श्रीवास्तव

☆ पर्यटक की डायरी से – मनोवेधक मेघालय – भाग-७ ☆ डॉ. मीना श्रीवास्तव ☆

(चेरापुंजी की गुफायें और बहुत कुछ कुछ!)

प्रिय पाठकगण,

आपको बारम्बार कुमनो! (मेघालय की खास भाषामें नमस्कार, हॅलो!)

फी लॉन्ग कुमनो! (कैसे हैं आप?)

अब हम चेरापूंजी तक आए हैं, तो पहले यहाँ के गुह्य स्थानों के अन्वेषण करने चलें! यहाँ हैं कई रहस्यमयी गुंफायें! चलिए अंदर, देखें और ढूंढें अंदर के अँधेरे में आखिरकार क्या छुपा है!      

मावसमई गुफा (Mawsmai Cave)

मेघालय की एक खासियत यानि भूमिगत गुफाओं का विस्तीर्ण मायाजाल, कुछ तो अभीतक मिली ही नहीं, तो कुछ में चक्रव्यूह की रचना, अंदर चले जाओ, लेकिन बाहर आने की कोई गैरंटी नहीं! कुछेक की राहें एकदम ख़ास, सिर्फ ख़ासियोंके बस की! अब तो सुना है एक ३५ किलोमीटर लम्बी गुफा की खोज हुई है! हम बस सुनते रहें ये फ़साने, मित्रों! मावसमई गुहा सोहरा (चेरापुंजी) से पत्थर फेंक अंतर पर (स्टोन्स थ्रो) और इसी नाम के छोटेसे गांव में है (शिलाँग से ५७ किलोमीटर)| यह गुम्फा कभी सुंदर, आश्चर्यचकित करनेवाली, कभी भयंकर, कभी भयचकित करनेवाली, ऐसा कुछ जो मैंने बस एक बार ही देखा, रोमांचकारी तथा रोमहर्षक! यहाँ हम गए तब (मेरे भाग अच्छे थे इसलिए) यात्रियों का जमघट था, फायदा यह कि वापस जाना मुश्किल, और उसमें गुफा के अंदर का सफर केवल २० मिनट का|  अब तक मेरा साथ निभानेवाले ट्रेकर्स शूज, बाहर ही रखे| नंगे पैर और खाली दिमाग से जाने का फैसला किया| मोबाइल का कोई उपयोग नहीं था, क्योंकि यहाँ खुद को ही सम्हालना बड़ा कठिन था| छोटे बड़े पाषाण, कहीं पानी, शैवाल, कीचड़, अत्यंत टेढ़ी मेढ़ी राह, कभी संकरी, कभी एकदम बंद होने की कगार पर, कभी तो एकदम झुककर जाओ, नहीं तो माथे पर पाषाणों का भीषण प्रहार झेलना पक्का! कुछ जगहों पर अंदर के दियों का प्रकाश, तो कुछ जगहों पर हमने (टॉर्च) का थोडासा प्रकाश डालना चाहिए, इसलिए एकदम अँधेरे में डूबी हुईं! मैं ट्रेकर नहीं हूँ, परन्तु इस गुफा का यह संपूर्ण अंतर मैंने कैसे पार किया, यह मैं अबतक खुद भी समझ नहीं पा रही हूँ! (पाठकों, इस लेख के अंत में गुफा के सौंदर्य का (!) किसी एक ने यू ट्यूब पर डाला विडिओ जरूर देखिये!)

मात्र वहां जिन जिन का स्मरण कर सकती थी उन्हीं भगवानों का नाम लेते लेते, मेरी सहायता करने दौड़ी आयी दो लड़कियां (हैद्राबाद की)! उनसे मेरी जान न पहचान, मेरी फॅमिली पीछे थी,  इन लड़कियों और उनकी माताओंने जैसे मेरा पूरा भार अपने ऊपर वहन कर लिया! एक छोटीसी बच्ची को जैसे हाथ पकड़ कर चलना सिखाया जाता है, उससे भी अधिक ममता दिखाते हुए उन्होंने मुझे अक्षरशः चलाया, उतारा और चढ़ाया| जैसे मैं वहां अकेली थी और ये दोनों बिलकुल राम लक्ष्मण के जैसे एक आगे और एक पीछे, ऐसा मेरा साथ निभा रही थीं! मित्रों, बाहर आकर मेरे आँखोमें गंगाजमनी जल भरा था, ऐसी भावुक हो उठी थी मैं! मेरी फॅमिलीने उनके प्रति आभार प्रकट किये, हमारा हमेशा का सेलेब्रेशन खाने के इर्द-गिर्द घूमता है, इसलिए मैंने उन्हें गुफा से बाहर आते ही कहा “चलो कुछ खाते हैं!” उन्होंने इतना सुन्दर उत्तर दिया, “नानी, आप बस हमें blessings दीजिये!” १४-१५ साल की ये लड़कियां, ये उनके संस्कार बोल रहे थे! (ग्रुप फोटो में बैठी हुईं दाहिने तारफ की दोनों)! उन्हें कहाँ ज्ञान था कि गुफा के संपूर्ण गहन, गहरे गर्भगृह में मैं उन्हीं को मन ही मन ईश्वर मान कर चल रही थी, आशीर्वाद देनेकी मेरी औकात कहाँ थी? मित्रों, आपकी कभी यात्रा के दौरान में ऐसे ईश्वरों से भेंट हुई है? इस वक्त यह लिखते हुए भी उन दोनों बड़ी ही प्यारीसी खिलती कलियों जैसी अनजान बच्चियों को मैं भावभीने ह्रदय से जी भर कर बहुत सारे blessings दे रही हूँ!!! जियो!!!  

आरवाह गुहा (Arwah Cave)

चेरापुंजी बस स्थानक से ३ किलोमीटर अंतर पर है आरवाह गुफा, यह बड़ी गुफा Khliehshnong इस क्षेत्र में है| इसमें खास देखने लायक है चूना पत्थर (लाइमस्टोन) की रचनाएँ और जीवाश्म, अत्यंत घनतम जंगल से घिरी हुई, साहसी ट्रेकर्स तथा पुरातत्व तत्वों पर प्रेम करने वालों के लिए तो बेशकीमत खजाना ही समझिये! यह गुफा मावसमई गुफा से बड़ी है, लेकिन उसका थोड़ासाही हिस्सा पर्यटकोंको देखने के लिए खुला है| ३०० मीटर देखने के लिए २०-३० मिनट लगते हैं| परन्तु यहाँ गाईड जरुरी है, गुफा में गहरे तिमिर का साम्राज्य, तो कहीं कहीं अत्यंत संकरे सुरंग से, कभी फिसलन भरे पथरीले रास्ते से, तो कभी पानी के शीतल प्रवाह के बीच से आगे सरपट सरकते हुए कई मुश्किलों का सामना करना पड़ता है! डरावने माहौल में और टॉर्च के धीमे उजाले में अनेक कक्ष दिखाई देते हैं, उनमें गुम्फा की दीवारों पर, छतपर और पाषाणों पर जीवाश्म (मछलियां, कुत्तेकी खोपड़ी इत्यादी) नजर आते हैं|  यहाँ के चूना पत्थर(लाइमस्टोन) की रचनाएँ और जीवाश्म लाखों वर्षों पूर्व के हो सकते हैं|  प्रिय पाठकों, यह जानकारी मेरे परिवारजनों द्वारा प्रदान की गई है|  गुफा तक ३ किलोमीटर सीढ़ियों का रास्ता, संपूर्ण क्षेत्र में घनी हरितिमा का वनवैभव, मैं गुफा के द्वार के मात्र ५० मीटर अंतर पर ही रुक गई| मुझे गुफा का दर्शन अप्राप्य ही था| इस सिलसिले में वहां का गाइड और हमारे आसामी(ऐसा-वैसा बिलकुल नहीं हाँ!) ड्रायव्हर अजय, इन दोनों की राय बहुत महत्वपूर्ण थी! घर की मंडली गुफा के दर्शन कर आई, तबतक मैं एक व्ह्यू पॉईंट से नयनाभिराम स्फटिकसम शुभ्र जलप्रपात, मलमल के पारदर्शी ओढ़नी जैसा कोहरा, गुलाबदान से छिड़के जाने वाले गुलाबजल के नाजुक छींटे की फुहार जैसी वर्षा की हल्की बूंदा बांदी और मद्धम गुलबदन संध्याकालीन क्षणों का अनुभव ले रही थी! मित्रों, जिनके लिए यह करना मुमकिन है, वे अवश्य इस दुर्गम गुफा का रहस्य जानने की कोशिश करें!

रामकृष्ण मिशन, सोहरा

यहाँ की पहाड़ी की चोटी पर रामकृष्ण मिशन का कार्यालय, मंदिर, संस्था का स्कूल और छात्रावास बहुत ही खूबसूरत हैं। वैसे ही यहाँ उत्तरपूर्व भागोंकी विभिन्न जनजातियों, उनकी विशिष्ट वेशभूषा, उनकी बनाई कलाकृतियों और बांस की कारीगरी से उत्त्पन्न वस्तुओं की जानकारी देनेवाला एक संग्रहालय बहुत सुंदर है| साथ ही मेघालय की तीन प्रमुख जनजातियां, गारो, जैंतिया तथा खासी जनजातियों पर केंद्रित कलाकृतियां, मॉडेल्स और उनकी विस्तृत जानकारी एक कमरे में संग्रहित है, वह भी देखते ही बनती है| रामकृष्ण मिशन के कार्यालय में यहाँ की खास चीजों, अलावा इसके, रामकृष्ण परमहंस, शारदा माता और स्वामी विवेकानंद के फोटो और अन्य वस्तुएं तथा परंपरागत चीजों की बिक्री भी होती है| हमने यहाँ बहुतसी सुन्दर चीज़ें खरीदीं| 

रामकृष्ण परमहंस मंदिर में सम्पन्न हुई सांध्यकालीन आरती हम सब को एक अलग ही भक्तिरस से आलोकित वातावरण में ले गई| हमारे सौभाग्यवश उस आरती की परमपावन बेला मानों हमारे लिए ही संयोग से समाहित थी, अत्यंत प्रसन्नता से हमने इस पवित्र वास्तूका दर्शन किया! कुल मिलाकर देखें तो मुझे ऐसा प्रतीत होता है कि, यह अत्यंत रमणीय, भावभीना और भक्तिरस से परिपूर्ण स्थान पर्यटकोंने अवश्य देखना चाहिए| (संग्रहालय की समयसारिणी की अग्रिम जानकारी लेना जरुरी है)

मेघालय दर्शन के अगले भाग में आपको मैं ले चलूंगी मावफ्लांग Mawphlang,सेक्रेड ग्रोव्हज/ सेक्रेड वूड्स/ सेक्रेड फॉरेस्ट्स में और उसके आसपास के अद्भुत प्रवास के लिए! तैयार हैं ना आप पाठक मित्रों?

तो अभी के लिए खुबलेई! (khublei) यानि खास खासी भाषा में धन्यवाद!)    

टिप्पणी

*लेख में दी जानकारी लेखिका के अनुभव और इंटरनेट पर उपलब्ध जानकारी पर आधारित है| यहाँ की तसवीरें  और वीडियो (कुछ को छोड़) व्यक्तिगत हैं!    

*गाने और विडिओ की लिंक साथ में जोड़ रही हूँ|

मेघालय, मेघों की मातृभूमि! “सुवर्ण जयंती उत्सव गीत”

(Meghalaya Homeland of the Clouds, “Golden Jubilee Celebration Song”)

मावसमई गुफा (Mawsmai Caves) 

© डॉ. मीना श्रीवास्तव

ठाणे 

मोबाईल क्रमांक ९९२०१६७२११, ई-मेल – [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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मराठी साहित्य – मी प्रवासिनी ☆ मनोवेधक मेघालय…भाग -५ ☆ डाॅ. मीना श्रीवास्तव ☆

डाॅ. मीना श्रीवास्तव

? मी प्रवासिनी ?

☆ मनोवेधक  मेघालय…भाग -५ ☆ डाॅ. मीना श्रीवास्तव ☆

(चेरापुंजीच्या गुहा आणखीन बरंच कांही बाही!)

प्रिय वाचकांनो,

परत परत कुमनो! (मेघालयच्या खासी या खास भाषेत नमस्कार, हॅलो!)

फी लॉन्ग कुमनो! (कसे आहात आपण?)

मेघालय आणि इतर स्थानांची सफर वेगळ्याच विश्वात, अगदी आकाशातील मेघात घेऊन जाणारी आहे! मी तिथे आपल्या सोबत परत एकदा पर्यटन करते आहे याचा “आनंद पोटात माज्या माईना” असं होतंय! मी भरून पावले! येथील अगदी खासम-खास वैशिष्ठे म्हणजे जिवंत मूळ पूल, जिथे आपण फिरलोय आणि अजून एक (हाये की), जिथे आपण आज आश्चर्यजनक प्रवास करणार आहोत! मैत्रांनो, आता चेरापुंजीला आलोच आहोत तर, आधी इथल्या गुह्य ठिकाणांचे अन्वेषण करायला निघू या! इथे आहेत कित्येक रहस्यमयी गुंफा! चला आत, बघू या अन शोधू या काय दडलंय या अंधारात!

मावसमई गुहा (Mawsmai Cave)

मेघालयची एक खासियत म्हणजे भूमिगत गुहांचे विस्तीर्ण मायाजाल, काही तर अजून गवसलेल्या नाहीत, तर काहींमध्ये चक्रव्यूहाची रचना, आत जा, बाहेर यायचं काय खरं नाय! काहींच्या वाटा खास, फक्त खासींना ठाव्या! आत्ता म्हणे एक ३५ किलोमीटर लांब गुहा सापडलीय इथे! ऐकावे ते नवल नाहीच मैत्रांनो! मावसमाई गुहा सोहरा (चेरापुंजी) पासून दगडफेकीच्या अंतरावर (स्टोन्स थ्रो) आणि याच नांवाच्या लहान गावात आहे (शिलाँगपासून ५७ किलोमीटर). ही गुहा कधी सुंदर, आश्चर्यचकित करणारी, कधी भयंकर, कधी भयचकित करणारी, असं काही, जे मी एकदाच पाहिलं, रोमांचकारी अन रोमहर्षक! इथे आम्ही गेलो तेव्हा (माझ्या नशिबाने) प्रवास्यांचे जत्थेच होते, फायदा हा की परत जाणे कठीण, त्यातच गुहेची सफर केवळ २० मिनिटांची, आतापर्यंत साथ देणारे ट्रेकर्स शूज बाहेरच ठेवलेत. अनवाणी पायांनी अन रिकाम्या डोक्याने जायचे ठरवले. मोबाइलचा उपयोग शून्य, कारण इथे स्वतःलाच सांभाळणे जिकिरीचे! लहान मोठे पाषाण, कुठे पाणी, शेवाळे, चिखल, अत्यंत वेडीवाकडी वाट, कधी अरुंद कधी निमुळती, कधी खूप वाकून जा, नाही तर कपाळमोक्ष ठरलेला! काही ठिकाणी आतल्या दिव्यांचा उजेड, तर काही ठिकाणं आपण (विजेरीचा) थोडा तरी उजेड पाडावा म्हणून अंधारलेली! मी ट्रेकर नव्हे, पण गुहेचं हे सगळं अंतर कसं पार केलं हे ‘कळेना अजुनी माझे मला!!!’ (मंडळी या लेखाच्या शेवटी गुहेच्या सौंदर्याचा (!) कुणीतरी यू ट्यूब वर टाकलेला विडिओ जरूर बघा! कुणाला काय अन कोण सुंदर वाटेल याचा नेम नाय!)

मात्र तिथे आठवतील त्या देवांचे नाव घेत असतांनाच माझ्या मदतीला धावून आल्या दोन मुली (हैद्राबाद इथल्या). ना ओळख ना पाळख! माझी फॅमिली मागे होती. या मुली अन त्यांच्या आयांनी माझा जणू ताबाच घेतला! एखाद्या लहान मुलीला जसे हात धरून चालायला शिकवावे त्याहीपेक्षा मायेनं त्यांनी मला अक्षरशः चालवलं, उतरवलं अन चढवलं. जणू काही मीच एकटी तिथे होते! अन या अगदी राम लक्ष्मणासारख्या एक पुढती अन एक मागुती, अशा दोघी माझ्या बरोबर होत्या! मित्रांनो, बाहेर आल्यावर तर “माझे डोळे पाण्याने भरले” अशी अवस्था होती, माझ्या फॅमिलीने त्यांचे आभार मानले.  आपले नेहमीचे सेलेब्रेशन खाण्याभोवती फिरते, म्हणून मी त्यांना गुहेतून बाहेर आल्याबरोबर म्हटलं “चला काही खाऊ या!” त्यांनी इतकं भारी उत्तर दिलं, “नानी, आप बस हमें blessings दीजिये!” १४-१५ वर्षांच्या त्या मुली, हे त्यांचे संस्कार बोलत होते! (ग्रुप फोटोत बसलेल्या उजवीकडील दोघी)! त्यांना कुठं माहित होतं की गुहेच्या संपूर्ण गहन, गहिऱ्या अन गर्भार कुशीत मी त्यांनाच देव समजत होते, आशीर्वाद देण्याची पत कुठून आणू? मंडळी, तुम्ही प्रवासात कधी अश्या देवांना भेटलात का? आत्ता हे लिहितांना देखील त्या दोन गोड साजऱ्या अन गोजिऱ्या अनोळखी मुलींना मी गहिवरून खूप खूप blessings देतेय!!! जियो!!! 

आरवाह गुहा (Arwah Cave)

चेरापुंजी बस स्थानकापासून ३ किलोमीटर अंतरावर आहे आरवाह गुहा, ही मोठी गुहा Khliehshnong या परिसरात आहे. यात खास बघण्यासारखे काय तर चुनखडीच्या रचना आणि जीवाश्म! अत्यंत घनदाट जंगलाने वेढलेली, साहसी ट्रेकर्स अन पुरातत्व तत्वांच्या प्रेमात असलेल्यांसाठी पर्वणीच जणू! ही गुहा मावसमई गुहेपेक्षा मोठी, पण हिचा थोडाच भाग पर्यटकांना बघायला मिळतो. ३०० मीटर बघायला २०-३० मिनिटे लागतात. मात्र यात गाईड हवाच, गुहेत गडद अंधाराचे साम्राज्य, तर कुठे कुठे अत्यंत अरुंद बोगद्यातून, कधी निसरड्या दगडांच्या वाटेतून, तर कधी पाण्याच्या प्रवाहातून सरपटत पुढे जातांना त्रेधा उडणार! भितीदायक वातावरणात अन विजेरीचा प्रकाश पाडल्यावर अनेक कक्ष दिसतात, त्यांत गुहेच्या भिंतींवर, छतावर आणि पाषाणांवर जीवाश्म (मासे, कुत्र्याची कवटी इत्यादी) आढळतात. यातील चुनखडीच्या रचना व जीवाश्म लाखों वर्षांपूर्वीचे असू शकतात. मंडळी, ही माझ्या घरच्या लोकांनी पुरवलेली माहिती बरं कां! गुहेपर्यंत ३ किलोमीटर पायऱ्यांचा रस्ता, आजूबाजूला घनदाट हिरवे वनवैभव, मी गुहेच्या द्वाराच्या अवघ्या ५० मीटर अंतरावरच थांबले. मला गुहेचे दर्शन अप्राप्यच होते. या बाबत तिथला गाईड आणि आमचा आसामी (असा तसा नसलेला हा असामी!) ड्रायव्हर अजय, यांचे मत फार महत्वाचे! घरची मंडळी गुहेत जाऊन दर्शन घेऊन आली, तवरीक मी एका व्ह्यू पॉईंट वरून नयनाभिराम स्फटिकासम शुभ्र जलप्रपात, मलमली तलम ओढणीसम धुके, गुलाबदाणीतून शिंपडल्या जाणाऱ्या गुलाबजलाच्या नाजूक शिड्काव्यासारखी पावसाची हलकी रिमझिम अन मंद गुलबक्षी मावळत अनुभवत होते. मित्रांनो, ज्यांना शक्य आहे त्यांनी या अगम्य गुहेचे रहस्य जाणण्याचा जरूर प्रयत्न करावा! 

रामकृष्ण मिशन, सोहरा

येथील टेकडीच्या माथ्यावर रामकृष्ण मिशनचे कार्यालय, मंदिर, संस्थेची शाळा आणि वसतिगृह फार देखणे आहेत. तसेच इथे उत्तरपूर्व भागातील विविध जमातींची माहिती, त्यांचे विशिष्ट पेहराव, त्यांच्या कलाकृती आणि बांबूंच्या वस्तू असलेले एक संग्रहालय अतिशय सुंदर आहे. त्याचप्रमाणे मेघालयातील गारो, जैंतिया आणि खासी जमातींवर लक्ष केंद्रित करणाऱ्या कलाकृती, मॉडेल्स आणि त्यांची सखोल माहिती असलेली खोली देखील फार प्रेक्षणीय आहे. रामकृष्ण मिशनच्या कार्यालयात इथल्या खास वस्तूंचे तसेच रामकृष्ण परमहंस, शारदा माता व स्वामी विवेकानंद यांचे फोटो अणि अन्य वस्तू, तथा परंपरागत वस्तूंची विक्री देखील होते. आम्ही येथे बऱ्याच सुंदर वस्तू खरेदी केल्या.

सायंकाळी रामकृष्ण परमहंस मंदिरात झालेली आरती सर्वांना एका वेगळ्याच भक्तिपूर्ण वातावरणात घेऊन गेली. आरतीची परमपावन वेळ जणू कांही आमच्यासाठीच दैवयोगाने जुळून आली व अत्यंत आनंदाची गोष्ट ही की, आम्हाला या पवित्र वास्तूचे दर्शन झाले! एकंदरीत हे अतिशय रम्य, भावस्पर्शी आणि भक्तिरसाने परिपूर्ण स्थान पर्यटकांनी नक्की बघावे असे मला वाटते. (संग्रहालयाच्या वेळांची माहिती काढणे गरजेचे आहे.)

मेघालय दर्शनच्या पुढच्या भागात, मी तुम्हाला मावफ्लांग, पवित्र ग्रोव्ह्स/ सेक्रेड वूड्स/ पवित्र जंगलात आणि त्याच्या आजूबाजूला असलेल्या अद्भुत स्थळांकडे घेऊन जाईन. मंडळी, आहात ना तयार? 

सध्यातरी खुबलेई! (khublei) म्हणजेच खास खासी भाषेत धन्यवाद!)

टीप- लेखात दिलेली माहिती लेखिकेचे अनुभव आणि इंटरनेट वर उपलब्ध माहिती यांच्यावर आधारित आहे. इथले फोटो आणि वीडियो (काही अपवाद वगळून) व्यक्तिगत आहेत!

 

मेघालय, मेघों की मातृभूमि! “सुवर्ण जयंती उत्सव गीत”

(Meghalaya Homeland of the Clouds, “Golden Jubilee Celebration Song”)

मावसमई गुफा (Mawsmai Caves) 

© डॉ. मीना श्रीवास्तव

ठाणे 

मोबाईल क्रमांक ९९२०१६७२११, ई-मेल – [email protected]

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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हिन्दी साहित्य – आलेख ☆ पर्यटक की डायरी से – मनोवेधक मेघालय – भाग-६ ☆ डॉ. मीना श्रीवास्तव ☆

डाॅ. मीना श्रीवास्तव

☆ पर्यटक की डायरी से – मनोवेधक मेघालय – भाग-६ ☆ डॉ. मीना श्रीवास्तव ☆

(मेघजल से सरोबार चेरापूंजी (सोहरा) और भी कुछ कुछ)

प्रिय पाठकगण,

आज भी फिरसे कुमनो! (मेघालय की खास भाषामें नमस्कार, हॅलो!)

फी लॉन्ग कुमनो! (कैसे हैं आप?)

डॉकी नदी पर बांग्ला देशवासी नौकाओंको, यानि मोटर बोटों को देखने के बावजूद मुझे हमारी चप्पा चप्पा चलने वाली नौका अधिक सुखकारक लगी! क्योंकि प्रकृति की हरीतिमा और नीलिमा को और गौर से देखने का और इस स्वर्गसुख को और अधिक क्षणों के लिए अनुभव करने का सौभाग्य मिला| मित्रों, आप भी नौका नयन करने का मौका मिले तो कभी कभी मोटर बोटों की स्पीड को नकारते हुए मन्द-मन्द, मद्धिम चाल से चप्पू चलने वाले नाविकों की नावों में बैठने का स्वर्गसुख अवश्य महसूस करें! इस नौकाविहार की स्मृतियाँ संजोकर हम बढे चेरापूंजी की ओर!

मेघजलसुंदरी चेरापुंजी! (यहाँ की जनजातियों में सोहरा नाम से ही प्रसिद्ध!) 

मेघालय को भेंट देते समय नयनरम्य चेरापुंजी पर्यटकों का आकर्षण रहना ही है, ऐसी है इसकी ख्याति! शिलाँग से ५६ किलोमीटर अंतर पर स्थित यह स्थान यानि अनगिनत झरने, कभी कोहरे में खोया हुआ तो कभी कोहरे के तरल होने पर हमें दर्शन देता हुआ! यहाँ वर्षभर जलधरों की मर्जी के अनुसार और उनकी लय पर थिरकती हुई जलधाराओं का नृत्य जारी रहता है! वृक्षवल्लरियों की हरितिमा में पुष्पों की कढ़ाई से समृद्ध शाल ओढ़े हुए पर्वतों के प्राकृतिक सौंदर्य से निखरा रोमांचक चेरापुंजी(सोहरा)! यह स्थान समुद्र तल से १४८४ मीटर ऊंचाई पर है| जगत में सर्वाधिक वर्षा होने वाले स्थान के रूप में प्रसिद्ध चेरापुंजीने सर्वाधिक वर्षा को झेलने के रिकॉर्ड समय समय पर दर्ज किये हैं, गुगल गुरु इसकी जानकारी देते रहते हैं!

अब इस गांव के नाम के बारे में बताती हूँ| करीबन १८३० वर्ष के दशक में अंग्रेजों ने सोहरा को उनका प्रादेशिक मुख्यालय बनाया था, उन्हें इसमें स्कॉटलंड की छबि नजर आ रही थी| वर्षा का पानी और कोहरा इस छोटे से गांव को ढंक लिया करता था, इसलिए उन्होंने इस गांव को “पूर्व का स्कॉटलंड” ऐसी उपाधि दे डाली| मात्र उन्हें इसके नाम का उच्चारण करने में बहुत परेशानी होती थी! फिर क्या, सोहरा का चेहरा/चेरा बना| किन्हीं बंगाली नौकरशाहों उसमें पुंजो (यानि झुंड) यह और परिशिष्ट जोड़ा और गांव का नामकरण “चेरापुंजी” हुआ| चेरापुंजी का दूसरा अर्थ है संतरे का गांव| परन्तु जाहिर था कि खासी लोगों को यह बदलाव मंजूर नहीं था, इस नाम के खातिर काफी आंदोलन किये गए| स्थानीय लोग इस गांव को सोहरा ही कहते हैं| आश्चर्य की बात यह है कि, यहाँ इतनी अधिक वर्षा के रहते भी स्थानीयों को पेयजल की कमी महसूस होती है| मित्रों यहाँ पर भी मातृसत्ताक पद्धति है, स्त्रियों को स्वातंत्र्य है तथा उन्होंने विविध क्षेत्रों में अपना स्थान निर्माण किया है, शिक्षा और आर्थिक स्वातंत्र्य ही खासी स्त्रियों के सक्षमीकरण होने का मूल कारण है!

हम चेरापुंजी यहाँ के क्लीफ साइड होम स्टे (cliffside home stay) में कुल दो दिन रहे| इस घर की मालकिन है अंजना! उनके पति का देहांत होने के बाद उन्होंने आत्मबल के बलबूते बच्चों को बड़ा किया| अत्यंत कर्तव्यदक्ष, समर्पित और आत्मविश्वास से भरपूर इस अंजना की मैं प्रशंसक बन गई हूँ| उनका होम स्टे है काँक्रीट का, घर की दीर्घा और खिड़की से चेरापूंजी के मेघाच्छादित तथा कोहरे के आलिंगन में बद्ध क्षेत्र का अद्भुत नजारा देख नैनों की प्यास बुझ गई! अलावा इसके, उन्होंने जब एक रात को खुद बड़ी मेहनत और चाव से पकाया हुआ गरमागरम खाना हमें परोसा, तो वह हमारे लिए “खासमखास” मेहमाननवाजी ही हो गई! प्रिय अंजना, कितने धन्यवाद दूँ तुम्हें! मात्र दो दिनों के लिए आए हम जैसे पर्यटकों के लिए तुम्हारी यह आत्मीयता भला कैसे भूल सकूंगी मैं!

मित्रों, चेरापुंजी की वर्षा का प्रमोद कुछ निराला ही है! कुछ ठिकाना न रहना, यहीं उसका स्थायी भाव है| हमने थोडेसे बून्दनीयों के बूँद झेलने के बाद रेनकोट पहना कि यह अदृश्य होगा  और धूप को देखकर छाता या रेनकोट के बगैर बाहर आए तो यह बेझिझक बरसेगा| मेहमानों को कैसे मज़ा चखाया, ऐसा इसका बर्ताव! पाठकों, मुझे ऐसा प्रतीत होता है कि हमारे पुणे की वेधशाला से इसने स्पेशल कोर्स किया होगा! हम यहाँ दो दिन ही थे, उसमें हमने सेव्हन सिस्टर्स फॉल्स (Nohsngithiang Falls/Mawsmai Falls) देखे| सप्तसुरों के समान दुग्धधवल धाराओं को पूर्व खासी पर्वतश्रृंखला से गिरते हुए देखना यानि दिव्यानुभव! १०३३ फ़ीट से कल कल बहते ये जलप्रपात भारत के सर्वाधिक ऊंचाई से गिरने वाले झरनों में से एक हैं! मौसमयी गांव से १ किलोमीटर दूरी पर इनकी झूमती और लहराती मस्ती देखनी चाहिए वर्षा ऋतु में ही, याद रहे, बाकी दिनों में ये थोड़े मुरझाये से रहते हैं! हम खुशकिस्मत थे इसलिए हमें यह प्राकृतिक शोभा देखने को मिली| नहीं तो यौवन के दहलीज़ पर खड़ी सौंदर्यवती “घूंघट की आड़ में” जैसे अपना मुखचंद्र छुपाती है वैसे ही ये जलौघ घनतम कोहरे की आड़ में छुप जाते हैं और बेचारे पर्यटक निराश होते हैं| कोहरे की ओढ़नी की लुकाछिपी का अनुभव हमने भी कुछ कालावधि के लिए लिया! (यू ट्यूब का एक विडिओ शेअर किया है)

कॅनरेम झरना(The Kynrem Falls) पूर्व खासी पर्वत आईएएस जिले में,चेरापुंजी से १२ किलोमीटर अंतर पर है| थान्गखरांग पार्क के अंदर स्थित यह झरना ऊंचाई में भारत के सकल झरनों में ७ वे क्रमांक पर है| क्यनरेम झरना त्रिस्तरीय झरना है| उसका जल 305 मीटर(१००१ फ़ीट) की ऊंचाई से गिरता है! (इसका विडिओ लेख के अंतमें शेअर किया है)

प्रिय पाठकों, अगले प्रवास में हम चेरापुंजी और मेघालय के और कुछ स्थानों का अद्भुत प्रवास करेंगे| तैयारी में रहें!!!

तब तक के लिए फिर एक बार खुबलेई! (khublei) यानि खास खासी भाषा में धन्यवाद!

डॉ. मीना श्रीवास्तव                                                     

टिप्पणी

*लेख में दी जानकारी लेखिका के अनुभव और इंटरनेट पर उपलब्ध जानकारी पर आधारित है| यहाँ की तसवीरें  और वीडियो (कुछ को छोड़) व्यक्तिगत हैं!

*गाने और विडिओ की लिंक साथ में जोड़ रही हूँ,

चेरापुंजी (सोहरा) का मेघमल्हार!

https://photos.app.goo.gl/aFDhbS2nQToY21eQ9

कॅनरेम त्रिस्तरीय झरना (Kynrem three tier Waterfalls)

© डॉ. मीना श्रीवास्तव

ठाणे 

मोबाईल क्रमांक ९९२०१६७२११, ई-मेल – [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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मराठी साहित्य – मी प्रवासिनी ☆ मनोवेधक मेघालय…भाग -४ ☆ डाॅ. मीना श्रीवास्तव ☆

डाॅ. मीना श्रीवास्तव

? मी प्रवासिनी ?

☆ मनोवेधक  मेघालय…भाग -४ ☆ डाॅ. मीना श्रीवास्तव ☆

(डॉकी, चेरापुंजी आणि बरंच कांही!)

प्रिय वाचकांनो,

कुमनो! (मेघालयच्या खासी या खास भाषेत नमस्कार, हॅलो!)

फी लॉन्ग कुमनो! (कसे आहात आपण?)

आज आपण डॉकी आणि चेरापुंजी येथे अद्भुत प्रवास करणार आहोत. झाली नव्ह तयारी! सोप्पंय! बॅग भरो और निकल पडो! 

डॉकी /उम्न्गोट (Dawki/Umngot) नदीवरील नयनरम्य नौकानयन

आम्ही सैलीच्या सुंदर “साफी होम कॉटेज” (Safi home cottage) चा निरोप घेतला अन पुढील प्रवासाला लागलो. मॉलीन्नोन्गपासून साधारण ३० किलोमीटर दूर डौकी (Dawki) कडे आम्ही निघालो. मुंबई ते गुवाहाटी हा प्रवास विमानातून केल्यानंतरचा मेघालयचा सर्व प्रवास आम्ही कारनेच केला, इथे रेल्वे नाही बरं का मंडळी! हे गाव मेघालयच्या पश्चिम जयन्तिया हिल्स जिल्ह्यात आहे. डॉकी(उम्न्गोट) नदीवर एक कर्षण सेतु (traction bridge) बनलेला आहे. १९३२ मध्ये इंग्रजांनी हा पूल बांधला. या नदीचे पाणी इतके स्वच्छ आहे की कधी कधी आपली नाव हवेत तरंगल्याचाच भास होऊ शकतो. इथले नयनाभिराम दृश्य अन नौकाविहार हेच प्रमुख आकर्षण! हे गाव भारत अन बांगला देशच्या सीमेवर आहे! नदी देखील अशीच विभागली गेली आहे. एकाच नदीवर विहार करणाऱ्या बांगला देशाच्या मोटर बोटी अन भारत देशाच्या नाविकांच्या वल्हवत्या साध्या बोटी! हा दोन्ही देशांना जोडणारा एक सडक मार्गी रस्ता! जातांना दोन्ही देशांच्या चेक पोस्ट दिसतात. डॉकी ही भारताची चेकपोस्ट तर तमाबील ही बांगला देशाची चेकपोस्ट!

मित्रांनो, या नौकाविहाराचे स्वर्गीय सुख काही आगळेच, हृदयात अन नेत्रात सकल संपूर्णरित्या साठवावे असेच,  नाविकाने हळू हळू चालवत नेलेली विलंबित तालासारखी डुलत डुलत सरकणारी नौका, आजूबाजूला नौकेला भिडून नितळाहून नितळ असे संगीतमय झालेले जलतरंग, दोन्ही काठांवर नदीला जणू घट्ट कवेत घेणारे वृक्षवल्लींचे हिरवे बाहुपाश! निर्मल नीर असल्याने त्यांची सावली हिरवीगार तर तिला लगटून निळ्याशार  किंवा मेघाच्छादित गहिऱ्या रंगाची सावली, मध्येच नदीच्या तळाचे वेगवेगळे पाषाण देखील आपली छटा उमटवत होते! थोडक्यात काय तर सिनेमास्कोपिक पॅनोरमा! कुठेही कॅमेरा लावा अन निसर्गाच्या रंगांची क्रीडा टिपून घ्या! मध्येच या सिनेमास्कोप सिनेमाचा इंटर्वल समजा हवं तर, छोटासा रेतीचा किनारा, तिथे देखील मॅगी, चिप्स अन तत्सम पदार्थांची सर्विस द्यायला एक मेघालय सुंदरी हजर होतीच! कोल्ड ड्रिंक कोल्ड ठेवण्याकरता नदीच्या किनारी छोटयाश्या फ्रिज सारखं जुगाड करणारा तिचा नवरा खासच! नदीकिनारी लहान मोठे पर्यटक सुंदर धोंडे (नाही तर काय!) किंवा दगड गोळा करीत सुटले. परतीचा प्रवास नकोसा होत होता. पण “नाविका रे” ला नाही म्हणता म्हणता त्याने नाव किनारी लावलीच.

टाइम प्लीज!!!      

प्रिय वाचकांनो समजा तुम्ही एक घड्याळ मनगटाला लावलय अन एक बघायला सोप्पं घड्याळ तुमच्या स्मार्ट फोनवर असणारच. तुम्ही जे सोपे असेल ते बघणार नाही का! मात्र तुम्ही बांगला देशच्या सीमेच्या आसपास फिरत असाल तर गम्मतच येते, आम्हाला स्थानिकांनी सांगितलं म्हणून, नाही तर वाद तर होणारच. बांगला देशचे (फक्त) घड्याळ आपल्या देशापेक्षा ३० मिनिटे पुढे आहे, अन आपल्या स्मार्ट फोनला (नको तेव्हा) जास्त स्मार्टनेस दाखवायची सवय आहेच! त्यानं त्या देशाचं नेटवर्क पकडलं की स्मार्टफोनचं घड्याळ पुढं, अन मनगटी घड्याळ आपलं इथलं टाइम सांगणार! तेव्हा अशा ठिकाणी (बांगला देशच्या सीमेच्या आसपास) भारताचे सुजाण अन देशभक्त नागरिक या नात्याने आपण मनगटी घड्याळाची मर्जी सांभाळा, अन स्मार्ट फोनला आवरा! आम्ही हा अनुभव बऱ्याच ठिकाणी घेतला. आणखीन गम्मतच (हायेच की) येते, बांगला देशच्या सीमेच्या अन आपल्या अंतराप्रमाणे स्मार्ट घड्याळ किती पुढे जायचे ते ठरवत असते!        

मेघजलसुंदरी चेरापुंजी! (इथल्या जनजातींमध्ये सोहरा हेच नांव प्रसिद्ध!) 

मेघालयाला भेट देतांना नयनरम्य चेरापुंजी हे पर्यटकांचे आकर्षण असणारच अशी याची ख्याती! शिलाँगपासून ५६ किलोमीटर अंतरावर असलेले हे ठिकाण म्हणजे अमोप धबधबे, कधी धुक्यात हरवलेले तर कधी ते विरळ झाल्यावर आपल्याला दर्शन देणारे! इथे वर्षभर जलधरांच्या मर्जीप्रमाणे अन त्यांच्या लयीप्रमाणे बरसणाऱ्या जलधारांचे नृत्य सुरूच असते! वृक्षवल्लींच्या हिरवाईच्या रंगात फुलांची बुट्टी, अशा श्रीमंत शाली पांघरलेले पर्वत असे निसर्गरम्य चेरापुंजी (सोहरा)! हे ठिकाण समुद्र सपाटीपासून १४८४ मीटर उंचावर आहे. जगातील सर्वाधिक पावसाचे ठिकाण म्हणून प्रसिद्ध असलेल्या चेरापुंजीने सर्वाधिक पाऊस झेलण्याचे विक्रम वेळोवेळी नोंदवले आहेत, गुगल गुरुजी वेळोवेळी याची माहिती देतच असतात!

आता या गावाच्या नावाबद्दल! १८३० सालच्या दशकात इंग्रजांनी सोहराला त्यांचे प्रादेशिक मुख्यालय बनवले होते, त्यांना यात स्कॉटलंडसारखे चित्र दिसत होते. वर्षा अन धुके यांनी हे छोटे गाव व्यापले होते, म्हणून त्यांनी या गावाला “पूर्वेकडील स्कॉटलंड” अशी उपाधी दिली. मात्र त्यांना याचे नाव उच्चारतांना भारीच त्रास व्हायचा! मग काय सोहराचे चेहरा/चेरा झाले, कोण्या बंगाली नोकरशहांनी त्यात पुंजो (म्हणजे पुंजका) अशी पुस्ती जोडली अन गावाचे नामकरण “चेरापुंजी” असे झाले. चेरापुंजीचा दुसरा अर्थ आहे संत्र्यांचे गाव. खासी लोकांना मात्र अर्थातच हे बदल मंजूर नव्हते, या नावाकरता बरीच आंदोलने झालीत. स्थानिक मंडळी या गावाला सोहराच म्हणतात. आश्चर्य म्हणजे इथे इतका धो धो पाऊस असूनही स्थानिकांना मात्र पेयजलाची ददात जाणवते. मित्रांनो, इथे सुद्धा मातृसत्ताक पद्धत आहे, स्त्रियांना स्वातंत्र्य आहे व त्यांनी विविध क्षेत्रात आपले स्थान निर्माण केले आहे. शिक्षण आणि आर्थिक स्वातंत्र्य हेच खासी स्त्रियांचे सक्षमीकरण होण्याचे मूळ आहे!

आम्ही चेरापुंजी येथे क्लीफ साइड होम स्टे (cliffside home stay) येथे दोन दिवस वास्तव्य केले. या घराच्या मालकीणबाई अंजना! त्यांचे यजमान गेल्यावर त्यांनी स्वबळावर मुलांना मोठे केले. अत्यंत कर्तृत्ववान, तडफदार व आत्मविश्वासाने भरपूर अश्या या अंजनाचे मला फार कौतुक वाटले. त्यांचे घर काँक्रीटचे, घराच्या ग्यालरीतून अन खिडकीतून चेरापुंजीच्या मेघाच्छादित अन धुक्याने कवटाळलेल्या परिसराचे अद्भुत दर्शन बघून डोळे तृप्त झालेत! याशिवाय त्यांनी एका रात्री स्वतः कष्टाने रांधून आणलेले गरम जेवण म्हणजे आमच्यासाठी “खासमखास” पाहुणचारच म्हणा ना! प्रिय अंजना, किती धन्यवाद देऊ तुला! फक्त दोन दिवसांकरता आलेल्या आमच्यासारख्या पर्यटकांसाठी तू दाखवलेला जिव्हाळा न विसरण्याजोगाच!               

मित्रांनो,चेरापुंजीच्या पावसाचा आनंद न्याराच! नेम नसणं हाच त्याचा स्थायी भाव. आम्ही मारे जरासे पावसाचे थेंब झेलून रेनकोट घातला की हा अदृश्य, अन ऊन आहे म्हणून छत्री किंवा रेनकोट न घेता बाहेर पडलो की हा बिनदिक्कत बरसणार| पाव्हण्यांची कशी खासी जिरली असा याचा आविर्भाव! मंडळी, मला वाटते, आपल्या पुणे येथील वेधशाळेतून याने स्पेशल कोर्स केला असावा! आम्ही इथे दोनच दिवस होतो, त्यात आम्ही सेव्हन सिस्टर्स फॉल्स Nohsngithiang Falls/Mawsmai Falls बघितले. सप्तसुरांसम दुग्धधवल धारा पर्वतराजींमधून कोसळत असतांना बघणे म्हणजे दिव्यानुभव! १०३३ फुटांवरून पूर्व खासी पर्वतरांगांतून धो धो वाहणारे हे जलप्रपात भारतातील सर्वाधिक उंचीवरून पडणाऱ्या धबधब्यांपैकी एक! मौसमयी गावापासून १ किलोमीटर दूर असून यांची खळाळणारी मस्ती बघावी पावसाळ्यातच, इतर वेळी हे जरा कोमेजलेले असतात, बरं का! आमचे नशीब थोर म्हणून ही निसर्गशोभा बघायला मिळाली. नाहीतर ऐन यौवनातली सौंदर्यवती “घूंघट की आड़ में” जसा मुखचंद्र लपवते तसे हे जलौघ (निर्झर) घनदाट धुक्याच्या आत लपतात, अन पर्यटक बिचारे निराश होतात. हा धुक्याच्या ओढणीचा लपंडाव आम्ही देखील काही काळ अनुभवला! (यू ट्यूब वरील विडिओ शेअर केलाय)

कॅनरेम धबधबा (The Kynrem Falls) पूर्व खासी पर्वत या जिल्ह्यात, चेरापुंजीहून १२ किलोमीटर अंतरावर आहे. थान्गखरांग पार्कच्या आत असलेला हा धबधबा उंचीत भारतातल्या धबधब्यातल्या ७ व्या क्रमांकावर आहे. हा त्रिस्तरीय जलप्रपात आहे, त्याचं पाणी 305 मीटर (१००१ फूट) उंचीवरून कोसळतं!  

प्रिय वाचकहो पुढील प्रवासात आपण चेरापुंजी आणि मेघालयातील इतर ठिकाणी अद्भुत प्रवास करणार आहोत. चालतंय ना मंडळी!!! 

तर आतापुरते परत एकदा खुबलेई! (Khublei) म्हणजेच खास खासी भाषेत धन्यवाद!)

टीप – लेखात दिलेली माहिती लेखिकेचे अनुभव आणि इंटरनेटवर उपलब्ध माहिती यांच्यावर आधारित आहे. इथले फोटो आणि वीडियो (काही अपवाद वगळून)

©  डॉ. मीना श्रीवास्तव

ठाणे 

मोबाईल क्रमांक ९९२०१६७२११, ई-मेल – [email protected]

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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