हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ तन्मय साहित्य #264 – कविता – ☆ खबर उड़ी हम नही रहे… ☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ ☆

श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

 

(सुप्रसिद्ध वरिष्ठ साहित्यकार श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी द्वारा गीत-नवगीत, बाल कविता, दोहे, हाइकु, लघुकथा आदि विधाओं में सतत लेखन। प्रकाशित कृतियाँ – एक लोकभाषा निमाड़ी काव्य संग्रह 3 हिंदी गीत संग्रह, 2 बाल कविता संग्रह, 1 लघुकथा संग्रह, 1 कारगिल शहीद राजेन्द्र यादव पर खंडकाव्य, तथा 1 दोहा संग्रह सहित 9 साहित्यिक पुस्तकें प्रकाशित। प्रकाशनार्थ पांडुलिपि – गीत व हाइकु संग्रह। विभिन्न साझा संग्रहों सहित पत्र पत्रिकाओं में रचना तथा आकाशवाणी / दूरदर्शन भोपाल से हिंदी एवं लोकभाषा निमाड़ी में प्रकाशन-प्रसारण, संवेदना (पथिकृत मानव सेवा संघ की पत्रिका का संपादन), साहित्य संपादक- रंग संस्कृति त्रैमासिक, भोपाल, 3 वर्ष पूर्व तक साहित्य संपादक- रुचिर संस्कार मासिक, जबलपुर, विशेष—  सन 2017 से महाराष्ट्र शासन के शैक्षणिक पाठ्यक्रम कक्षा 9th की  “हिंदी लोक भारती” पाठ्यपुस्तक में एक लघुकथा ” रात का चौकीदार” सम्मिलित। सम्मान : विद्या वाचस्पति सम्मान, कादम्बिनी सम्मान, कादम्बरी सम्मान, निमाड़ी लोक साहित्य सम्मान एवं लघुकथा यश अर्चन, दोहा रत्न अलंकरण, प्रज्ञा रत्न सम्मान, पद्य कृति पवैया सम्मान, साहित्य भूषण सहित अर्ध शताधिक सम्मान। संप्रति : भारत हैवी इलेक्ट्रिकल्स प्रतिष्ठान भोपाल के नगर प्रशासन विभाग से जनवरी 2010 में सेवा निवृत्ति। आज प्रस्तुत है आपकी एक विचारणीय कविता खबर उड़ी हम नही रहे…” ।)

☆ तन्मय साहित्य  #264 ☆

☆ खबर उड़ी हम नही रहे…… ☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ ☆

(पिछले दिनों एक साथी के साथ घटी घटना से प्रेरित एक मुक्तछंद रचना)

यहाँ-वहाँ बात चली लगी भली

पर मौका चूक गए

खबर उड़ी, हम नहीं रहे।

रेडियो, टी.वी. सोशल मीडिया

अखबारों में

शहर-शहर गाँव और

गलियों बाजारों में

किंतु, कुछ देर बाद हो गया

इसका खंडन, जीवित है

आएँ न झूठी अफवाहों में

सूचना अधिकृत आयी

मरे नहीं रामदीन

बात यह अपुष्ट थी

क्षमा सहित खंडन मंडन करके

गलती दुरुस्त की

पर सारे घटनाक्रम से व्यथित

हमने जब खुद अपने को देखा

चेहरे पर आई दुख की रेखा

साबूत पा कर हमको ये लगा

सम्भवतः नियति भी रुष्ट थी।

 

सोचा, गर हम अभी चले जाते

इस जर्जर तन से मुक्ति पाते

फिर श्रद्धांजलियों के सागर में

हर्षित हो

पुण्यमयी डुबकियाँ लगाते

अपनी यश-कीर्ति पर

गर्वित हो इतराते, ऐसे में

सचमुच ही मरण शोक भूलकर

स्वर्गीय सुख को पाते।

मृत्यु के बाद अहो!

सुख का एहसास हुआ

अपने परायों

सबसे ही मिलती दुआ

मृत्यु पर्व पावन में

अगणित सी खुशियाँ

जो मिलना एक मुश्त थी

सम्भवतः नियति भी रुष्ट थी

 

सोचा, गर असल में ही

मृत्यु को पा लेते, योजना बना लेते

फिर लेते जन्म कहीं

नये देह आवरण को देख-देख

मन ही मन मुदित

कहीं पालने में किलकाते

शैशव में स्मृतियाँ होती अब की

याद कर इन्हें रोते-मुस्काते,

किंतु साध रह गई अधूरी सी

जाते-जाते फिर से रह गए

मायावी मोह पाश में

फिर से बँध गए

मन को समझाने में लगे रहे

पर कहाँ नियंत्रण में आता है

अपनी ही चाल चले जाता है

माया मृगतृष्णाएँ, इसके दायें बायें

उकसाती उलझाती

और अधिक जीने का

लालच दे भरमाती

भीतर में वर्षो से छिपी हुई

मन के द्वारा कल्पित

अंतर में लिखी हुई

इच्छाएँ  दुष्ट थी

सम्भवतः नियति भी रुष्ट थी।

☆ ☆ ☆ ☆ ☆

© सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय

जबलपुर/भोपाल, मध्यप्रदेश, अलीगढ उत्तरप्रदेश  

मो. 9893266014

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ जय प्रकाश के नवगीत # 88 ☆ सपने सोये… ☆ श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव ☆

श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

(संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं अग्रज साहित्यकार श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव जी  के गीत, नवगीत एवं अनुगीत अपनी मौलिकता के लिए सुप्रसिद्ध हैं। आप प्रत्येक बुधवार को साप्ताहिक स्तम्भ  “जय  प्रकाश के नवगीत ”  के अंतर्गत नवगीत आत्मसात कर सकते हैं।  आज प्रस्तुत है आपका एक भावप्रवण एवं विचारणीय नवगीत “सपने सोये…” ।

✍ जय प्रकाश के नवगीत # 88 ☆ सपने सोये… ☆ श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

देहरी रोई

घर आँगन आँचल भीगा

छप्पर छानी तक रोये।

 

सिंहासन पर

बैठा राजा

जाँच रहा परचे

किसने कितनी

करी कमाई

खुशियों पर खरचे

किस्मत सोई

रातों में काजल भीगा

आँखों में सपने सोये।

 

डरा डरा सा

हर पल जीता

आशंकित जीवन

कब बँट जाये

गंगा जमुनी

तहजीबों का मन

नफरत बोई

नहीं कहीं बादल भीगा

राहों में काँटे बोये।

 

शिथिल बाजुओं

पर हैं साधे

शेष अशेष उमर

जीता मरकर

घटनाओं में

घायल पड़ा शहर

पीर निचोई

दर्दों में पल पल भीगा

किसने किसके दुख धोये।

***

© श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

सम्पर्क : आई.सी. 5, सैनिक सोसायटी शक्ति नगर, जबलपुर, (म.प्र.)

मो.07869193927,

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – समानांतर ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं।)

? संजय दृष्टि – समानांतर ? ?

समानांतर चले

पर समानांतर में भी

कितना अंतर रहा,

उसने मेरा लिखा पढ़ा,

मैं उसे पढ़कर लिखता रहा..!

?

© संजय भारद्वाज  

प्रात: 9:11 बजे, 21 जनवरी 2024

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय, एस.एन.डी.टी. महिला विश्वविद्यालय, न्यू आर्ट्स, कॉमर्स एंड साइंस कॉलेज (स्वायत्त) अहमदनगर संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆ 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

💥 मकर संक्रांति मंगलवार 14 जनवरी 2025 से शिव पुराण का पारायण महाशिवरात्रि तदनुसार बुधवार 26 फरवरी को सम्पन्न होगा 💥

 🕉️ इस वृहद ग्रंथ के लगभग 18 से 20 पृष्ठ दैनिक पढ़ने का क्रम रखें 🕉️

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

 

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हिन्दी साहित्य – साहित्यिक स्तम्भ ☆ कविता # 92 ☆ बुराई किसकी करूँ, किसकी  मैं करूँ तारीफ़… ☆ श्री अरुण कुमार दुबे ☆

श्री अरुण कुमार दुबे

(वरिष्ठ साहित्यकार श्री अरुण कुमार दुबे जी, उप पुलिस अधीक्षक पद से मध्य प्रदेश पुलिस विभाग से सेवा निवृत्त हुए हैं । संक्षिप्त परिचय ->> शिक्षा – एम. एस .सी. प्राणी शास्त्र। साहित्य – काव्य विधा गीत, ग़ज़ल, छंद लेखन में विशेष अभिरुचि। आज प्रस्तुत है, आपकी एक भाव प्रवण रचना “बुराई किसकी करूँ किसकी  मैं करूँ तारीफ़“)

☆ साहित्यिक स्तम्भ ☆ कविता # 92 ☆

✍ बुराई किसकी करूँ, किसकी मैं करूँ तारीफ़… ☆ श्री अरुण कुमार दुबे 

करम जमाने पे ये बे हिसाब जिसका है

सवाल उसने  किया है जबाब जिसका है

 *

अब ऐसे हुस्न पर इतरा रही है ये दुनिया

नतीजा दोस्तो मिस्ले तुराब जिसका का है

 *

उसे लुटेरों का कोई भी डर नहीं होगा

अदब का इल्म का आला निसाब जिसका है

 *

बुराई किसकी करूँ किसकी  मैं करूँ तारीफ़

उसी के ख़ार शुगुफ्ता गुलाब जिसका है

 *

दखल किसी का नहीं उसकी कारसाजी में

अँधेरे  करता है वो आफ़ताब जिसका है

 *

उसी की मिहर से तू साँस ले रहा है यहाँ

करम उसी का है तुझ पर इताब जिसका है

 *

उसे न नाम कोई और दो जहां वालो

रसूले हक़ का जहां में ख़िताब जिसका है

 *

अरुण उसी ने ख़िज़ाँ की भी रुत बनाई है

फिजां में फूल पे आया शबाब जिसका है

© श्री अरुण कुमार दुबे

सम्पर्क : 5, सिविल लाइन्स सागर मध्य प्रदेश

सिरThanks मोबाइल : 9425172009 Email : arunkdubeynidhi@gmail. com

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साहित्यिक स्तम्भ ☆ सत्येंद्र साहित्य # 6 ☆ कविता – छू ले आसमान बंदे, छू ले आसमान बंदे… ☆ डॉ सत्येंद्र सिंह ☆

डॉ सत्येंद्र सिंह

(वरिष्ठ साहित्यकार डॉ सत्येंद्र सिंह जी का ई-अभिव्यक्ति में स्वागत। मध्य रेलवे के राजभाषा विभाग में 40 वर्ष राजभाषा हिंदी के शिक्षण, अनुवाद व भारत सरकार की राजभाषा नीति का कार्यान्वयन करते हुए झांसी, जबलपुर, मुंबई, कोल्हापुर सोलापुर घूमते हुए पुणे में वरिष्ठ राजभाषा अधिकारी के पद से 2009 में सेवानिवृत्त। 10 विभागीय पत्रिकाओं का संपादन, एक साझा कहानी संग्रह, दो साझा लघुकथा संग्रह तथा 3 कविता संग्रह प्रकाशित, आकाशवाणी झांसी, जबलपुर, छतरपुर, सांगली व पुणे महाराष्ट्र से रचनाओं का प्रसारण। जबलपुर में वे प्रोफेसर ज्ञानरंजन के साथ प्रगतिशील लेखक संघ से जुड़े रहे और झाँसी में जनवादी लेखक संघ से जुड़े रहे। पुणे में भी कई साहित्यिक संस्थाओं से जुड़े हुए हैं। वे मानवता के प्रति समर्पित चिंतक व लेखक हैं। अप प्रत्येक बुधवार उनके साहित्य को आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपकी एक विचारणीय लघुकथा  – “छू ले आसमान बंदे, छू ले आसमान बंदे..“।)

☆ साहित्यिक स्तम्भ ☆ सत्येंद्र साहित्य # 6 ☆

✍ कविता – छू ले आसमान बंदे, छू ले आसमान बंदे… ☆ डॉ सत्येंद्र सिंह ☆

बंदिशें आएंगी, रुकावटें आएंगी,

पर तुम न रुकना, राह बन जाएंगी।

छू ले आसमान बंदे, छू ले आसमान बंदे।

*

आगे चलते रहना, मुड़ कर न देखना,

असफला न देखना सफलता देखना।

छू ले आसमान बंदे, छू ले आसमान बंदे।

*

हारना सोचना मत, कोशिश छोड़ना मत,

 उडोगे तो गिरोगे, पर उड़ना छोडना मत।

छू ले आसमान बंदे, छू ले आसमान बंदे।

*

लोग गिराएंगे डराएंगे, तुम कुछ न देखना,

बस उड़ने की सोचना, आगे ही देखना।

छू ले आसमान बंदे, छू ले आसमान बंदे।

*

साथ कोई दे न दे,  जमींन तेरे साथ है,

ज़मीर पक्का हो, आसमान साफ है।

छू ले आसमान बंदे, छू ले आसमान बंदे।

*

तू लक्ष्य तय कर, उसे पाने का संकल्प कर,

और कुछ मत कर, लक्ष्य को प्राप्त कर।

छू ले आसमान बंदे, छू ले आसमान बंदे।

*

हिम्मत तेरा हथियार है, जजवा तेरा उद्गार है,

सपना देखना ऊंचाई का, होगा साका है।

छू ले आसमान बंदे, छू ले आसमान बंदे।

© डॉ सत्येंद्र सिंह

सम्पर्क : सप्तगिरी सोसायटी, जांभुलवाडी रोड, आंबेगांव खुर्द, पुणे 411046

मोबाइल : 99229 93647

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कादम्बरी # 87 – आपके बिन खुशी नहीं भाती… ☆ आचार्य भगवत दुबे ☆

आचार्य भगवत दुबे

(संस्कारधानी जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर आचार्य भगवत दुबे जी को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया है।सीमित शब्दों में आपकी उपलब्धियों का उल्लेख अकल्पनीय है। आचार्य भगवत दुबे जी के व्यक्तित्व एवं कृतित्व की विस्तृत जानकारी के लिए कृपया इस लिंक पर क्लिक करें 👉 ☆ हिन्दी साहित्य – आलेख – ☆ आचार्य भगवत दुबे – व्यक्तित्व और कृतित्व ☆. आप निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणा स्त्रोत हैं। हमारे विशेष अनुरोध पर आपने अपना साहित्य हमारे प्रबुद्ध पाठकों से साझा करना सहर्ष स्वीकार किया है। अब आप आचार्य जी की रचनाएँ प्रत्येक मंगलवार को आत्मसात कर सकेंगे।  आज प्रस्तुत हैं आपकी एक भावप्रवण रचना – आपके बिन खुशी नहीं भाती।)

✍  साप्ताहिक स्तम्भ – ☆ कादम्बरी # 87 – आपके बिन खुशी नहीं भाती… ☆ आचार्य भगवत दुबे ✍

कोई सूरत मुझे नहीं भाती 

आपके बिन खुशी नहीं भाती

*

जिसमें, तेरा न जिक्र आता हो 

शायरी वह, मुझे नहीं भाती

*

एक निर्मल हँसी का झरना तू 

तुझसे बढ़कर नदी नहीं भाती

*

आपको जब बसा लिया दिल में 

कोई तस्वीर अब नहीं भाती

*

आज मैं हूँ जहाँ, वहाँ मुझको 

दोस्ती-दुश्मनी नहीं भाती

*

प्रेम का, चढ़ गया नशा मुझ पर 

इसलिए मयकशी नहीं भाती

https://www.bhagwatdubey.com

© आचार्य भगवत दुबे

82, पी एन्ड टी कॉलोनी, जसूजा सिटी, पोस्ट गढ़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – क्षितिज ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं।)

? संजय दृष्टि – क्षितिज ? ?

छोटे-छोटे कैनवास हैं

मेरी कविताओं के ;

आलोचक कहते हैं,

और वह बावरी

सोचती है-

मैं ढालता हूँ

उसे ही अपनी

कविताओं में,

काश!

उसे लिख पाता

तो मेरी कविताओं का

कैनवास

क्षितिज हो जाता!

?

© संजय भारद्वाज  

संध्या 5:31, दि. 25 दिसंबर 2015

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय, एस.एन.डी.टी. महिला विश्वविद्यालय, न्यू आर्ट्स, कॉमर्स एंड साइंस कॉलेज (स्वायत्त) अहमदनगर संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆ 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

💥 मकर संक्रांति मंगलवार 14 जनवरी 2025 से शिव पुराण का पारायण महाशिवरात्रि तदनुसार बुधवार 26 फरवरी को सम्पन्न होगा 💥

 🕉️ इस वृहद ग्रंथ के लगभग 18 से 20 पृष्ठ दैनिक पढ़ने का क्रम रखें 🕉️

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

 

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ मनोज साहित्य # 160 – मनोज के दोहे ☆ श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” ☆

श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं सजग अग्रज साहित्यकार श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” जी  के साप्ताहिक स्तम्भ  “मनोज साहित्य ” में आज प्रस्तुत है  “मनोज के दोहे”। आप प्रत्येक मंगलवार को आपकी भावप्रवण रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे।

✍ मनोज साहित्य # 160 – मनोज के दोहे ☆

महा- कुंभ का आगमन, बना सनातन पर्व।

सकल विश्व है देखता, करता भारत  गर्व।।

 *

प्रयाग राज में भर रहा, बारह वर्षीय कुंभ।

पास फटक न पाएगा, कोई शुंभ-निशुंभ।।

 *

गँगा यमुना सरस्वती, नदी त्रिवेणी मेल।

पुण्यात्माएँ उमड़तीं, धर्म-कर्म की गेल।।

 *

सूर्य देव उत्तरायणे, मकर संक्रांति पर्व।

ब्रह्म-महूरत में उठें, करें सनातन गर्व।।

 *

गंगा तट की आरती, लगे विहंगम दृश्य।

अमरित बरसाती नदी, कल-कल करती नृत्य।।

©  मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संपर्क – 58 आशीष दीप, उत्तर मिलोनीगंज जबलपुर (मध्य प्रदेश)- 482002

मो  94258 62550

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ लेखनी सुमित्र की # 222 – कथा क्रम (स्वगत)… ☆ स्व. डॉ. राजकुमार तिवारी “सुमित्र” ☆

स्व. डॉ. राजकुमार तिवारी “सुमित्र”

(संस्कारधानी  जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर डॉ. राजकुमार “सुमित्र” जी  को सादर चरण स्पर्श । वे सदैव हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते थे। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया।  वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणास्रोत हैं। आज प्रस्तुत हैं  आपका भावप्रवण कविता – कथा क्रम (स्वगत)।)

✍ साप्ताहिक स्तम्भ – लेखनी सुमित्र की # 222 – कथा क्रम (स्वगत)… ✍

(नारी, नदी या पाषाणी हो माधवी (कथा काव्य) से )

क्रमशः आगे…

क्या

याद हैं तुम्हें

अपने किसी

शिशु का चेहरा ?

मन में

बसा पाई

उनकी किलकारी?

क्या तुम्हारी स्मृति में है

बाहुओं का कसाव

और

चुम्बनों का स्वाद ?

नहीं, नहीं,

तुम्हें कुछ याद नहीं होगा।

जड़वत किये

कार्य का

स्मरण कैसा ।

तुम्हारा

आचरण रहा

वर्तमान की

‘सरोगेट मदर’ की तरह।

सच बताना

क्या मिला तुम्हें

आकुल स्पर्शो में

उत्तप्त साँसों में।

क्या उत्तप्त स्पर्श

फसल काटने की

आतुरता से

भरे नहीं थे?

माधवी,

तुम्हें किसी ने

© डॉ राजकुमार “सुमित्र” 

साभार : डॉ भावना शुक्ल 

112 सर्राफा वार्ड, सिटी कोतवाली के पीछे चुन्नीलाल का बाड़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ अभिनव गीत # 222 – “रख लाई कई रिश्ते…” ☆ श्री राघवेंद्र तिवारी ☆

श्री राघवेंद्र तिवारी

(प्रतिष्ठित कवि, रेखाचित्रकार, लेखक, सम्पादक श्रद्धेय श्री राघवेंद्र तिवारी जी  हिन्दी, दूर शिक्षा, पत्रकारिता व जनसंचार,  मानवाधिकार तथा बौद्धिक सम्पदा अधिकार एवं शोध जैसे विषयों में शिक्षित एवं दीक्षित। 1970 से सतत लेखन। आपके द्वारा सृजित ‘शिक्षा का नया विकल्प : दूर शिक्षा’ (1997), ‘भारत में जनसंचार और सम्प्रेषण के मूल सिद्धांत’ (2009), ‘स्थापित होता है शब्द हर बार’ (कविता संग्रह, 2011), ‘​जहाँ दरक कर गिरा समय भी​’​ ( 2014​)​ कृतियाँ प्रकाशित एवं चर्चित हो चुकी हैं। ​आपके द्वारा स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम के लिए ‘कविता की अनुभूतिपरक जटिलता’ शीर्षक से एक श्रव्य कैसेट भी तैयार कराया जा चुका है। आज प्रस्तुत है आपका एक अभिनव गीत रख लाई कई रिश्ते...)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ # 222 ☆।। अभिनव गीत ।। ☆

☆ “रख लाई कई रिश्ते...” ☆ श्री राघवेंद्र तिवारी 

शहर से आयी हुई है

सुरा पीकर सुन्दरी

ठंड को पहने हुए यह

कँपकपाती जनवरी

 

पीठके बस्ते में

रख लाई कई रिश्ते

सोम मंगल बुध

जैसे कुछ फरिश्ते

 

रिझाने स्कूल के

हो गेट पर ठहरी हुई

आन उतरी सुनहरी

सुहानी कोई परी

 

बाँटती है बर्फ को

हर तरफ अपनो में

लोग खो जाते चमत्कृत

कई सपनों में

 

घूमने लगती कुहर के

भँवरक्रम में

अँधियारी मनोहारी

सुसज्जित सी छोकरी

 

जहाँ मौसम मिन्नते

करता रहा है

पूछती ठंडक कि कुछ

कहता रहा है –

 

दिन, पढ़ाने लग गया

कानून ऋतु का

काँपते हाथों में जिसके

बस गई है थरथरी

©  श्री राघवेन्द्र तिवारी

18-01-2025

संपर्क​ ​: ई.एम. – 33, इंडस टाउन, राष्ट्रीय राजमार्ग-12, भोपाल- 462047​, ​मोब : 09424482812​

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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