स्व. डॉ. राजकुमार तिवारी “सुमित्र”
(संस्कारधानी जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर डॉ. राजकुमार “सुमित्र” जी को सादर चरण स्पर्श । वे सदैव हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते थे। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया। वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणास्रोत हैं। आज प्रस्तुत हैं आपकी भावप्रवण बुन्देली कविता – ऐसें न हेरो…।)
साप्ताहिक स्तम्भ – लेखनी सुमित्र की # 230 – ऐसें न हेरो…
(बढ़त जात उजयारो – (बुन्देली काव्य संकलन) से)
ऐसें न हेरो
ऐंसें न हेरौ । हेरौ जी हेरो । ऐसें न हेरौ ।
धारदार नजर यार
भीतर लों करै मार
लम्बो है घेरो । ऐंसें न हेरौ ।
पलकन के पाल डाल
नैंनन की नाव चाल
लगा लओ फेरो । ऐसें न हेरौ ।
ऊँसई तो प्रान जात
बचन मँगें पाँच सात
घानी न पेरो । ऐसें न हेरौ ।
सुरभीले फूलपात
हिरनीले नैन, गात
देखे सो चेरो। ऐसें न हेरौ ।
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© डॉ. राजकुमार “सुमित्र”
साभार : डॉ भावना शुक्ल
112 सर्राफा वार्ड, सिटी कोतवाली के पीछे चुन्नीलाल का बाड़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈