हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ तन्मय साहित्य #218 – कविता – ☆ आज के संदर्भ में – तीन मुक्तक… ☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ ☆

श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

(सुप्रसिद्ध वरिष्ठ साहित्यकार श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी अर्ध शताधिक अलंकरणों /सम्मानों से अलंकृत/सम्मानित हैं। आपकी लघुकथा  रात  का चौकीदार”   महाराष्ट्र शासन के शैक्षणिक पाठ्यक्रम कक्षा 9वीं की  “हिंदी लोक भारती” पाठ्यपुस्तक में सम्मिलित। आप हमारे प्रबुद्ध पाठकों के साथ  समय-समय पर अपनी अप्रतिम रचनाएँ साझा करते रहते हैं। आज प्रस्तुत है आपकी एक विचारणीय रचना  “आज के संदर्भ में – तीन मुक्तक…” ।)

☆ तन्मय साहित्य  #218 ☆

☆ आज के संदर्भ में – तीन मुक्तक… ☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ ☆

☆ 1 – कहाँ देश से प्रेम…. ☆ 

मजहब, धर्म-पंथ,

अगड़े,पिछड़े में बँटे हुए हम लोग

भिन्न-भिन्न जातियाँ,

एक दूजे से कटे हुए हम लोग

वोटों की विषभरी

राजनीति ने सब को अलग किया

कहाँ देश से प्रेम,

कुर्सियों से अब सटे हुए हम लोग।

☆ ☆ ☆ ☆ ☆

2 – सौ चूहे खा कर… ☆ 

सौ चूहे खा कर बिल्ली ने,

यूँ ही बैठ विचार किया

पूण्य कृत्य यह तो, उन शुद्र

प्राणियों का उद्धार किया

बिल से बाहर उछलकूद,

उत्पात किया जिसने जब भी

निर्ममता से हमने तब

ऐसों का ही आहार किया।

☆ ☆ ☆ ☆ ☆

3 – अहम की बेलें…. ☆ 

बात दो-दो क्या हुई

फिर दिन-ब-दिन बढ़ती गई

अहम की बेलें,

घने से वृक्ष पर चढ़ती गईं

बंद से संवाद,

मन है खिन्न अवसादों भरा,

हरितिमा निज की

निरन्तर पीत सी पड़ती गई।….

☆ ☆ ☆ ☆ ☆

© सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय

जबलपुर/भोपाल, मध्यप्रदेश, अलीगढ उत्तरप्रदेश  

मो. 9893266014

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ जय प्रकाश के नवगीत # 42 ☆ ओ चिड़िया… ☆ श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव ☆

श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

(संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं अग्रज साहित्यकार श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव जी  के गीत, नवगीत एवं अनुगीत अपनी मौलिकता के लिए सुप्रसिद्ध हैं। आप प्रत्येक बुधवार को साप्ताहिक स्तम्भ  “जय  प्रकाश के नवगीत ”  के अंतर्गत नवगीत आत्मसात कर सकते हैं।  आज प्रस्तुत है आपका एक भावप्रवण एवं विचारणीय नवगीत “ओ चिड़िया…” ।

✍ जय प्रकाश के नवगीत # 42 ☆ ओ चिड़िया… ☆ श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

ओ चिड़िया

आँगन मत झाँकना

दानों का हो गया अकाल

 

धूप के लिबासों में

झुलस रही छाँव

सूरज की हठधर्मी

ताप रहा गाँव

ओ चिड़िया

दिया नहीं बालना

बेच रहे रोशनी दलाल।

 

मेंड़ के मचानों पर

ठिठुरती सदी

व्यवस्थाओं की मारी

सूखती नदी

ओ चिड़िया

तटों को न लाँघना

धार खड़े करेगी सवाल।

 

अपनेपन का जंगल

रिश्तों के ठूँठ

अपने अपनों पर ही

चला रहे मूँठ

ओ चिड़िया

सिर जरा सँभालना

लोग रहे पगड़ियाँ उछाल।

***

© श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

सम्पर्क : आई.सी. 5, सैनिक सोसायटी शक्ति नगर, जबलपुर, (म.प्र.)

मो.07869193927,

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ कहें लोग कहने कई शेर लेकिन… ☆ श्री अरुण कुमार दुबे ☆

श्री अरुण कुमार दुबे

(वरिष्ठ साहित्यकार श्री अरुण कुमार दुबे जी, उप पुलिस अधीक्षक पद से मध्य प्रदेश पुलिस विभाग से सेवा निवृत्त हुए हैं । संक्षिप्त परिचय ->> शिक्षा – एम. एस .सी. प्राणी शास्त्र। साहित्य – काव्य विधा गीत, ग़ज़ल, छंद लेखन में विशेष अभिरुचि। आज प्रस्तुत है, आपकी एक भाव प्रवण रचना “कहें लोग कहने कई शेर लेकिन“)

✍ कहें लोग कहने कई शेर लेकिन… ☆ श्री अरुण कुमार दुबे 

नहीं कोई क़ीमत रही अब बशर की

ये दुनिया फ़क़त हो गई माल- ओ- ज़र की

 *

है जिन के दिलों में तअस्सुब उन्होंने

फ़ज़ा चंद पल में उजाड़ी नगर की

 *

सभी को दे साया समर फूल अपने

फरिश्तों सी फ़ितरत लगे है शज़र की

 *

वो रूठा तो मुझ से बहारें भी रूठी

बताऊँ किसे क्या है हालत इधर की

 *

गली में रक़ीबों के फेरे पे फेरे

अलग होगी रंगत तुम्हारे उधर की

 *

चटानों में वो चींटियों को ग़िज़ा दे

करूँ फ़िक़्र में क्यों गुज़र की बसर की

 *

न गिरने दे मुझको न ही मुझको थामे

यही बात खटके मेरे हम सफ़र की

 *

कहें लोग कहने कई शेर लेकिन

न मफ़हूम में बात होती असर की

 *

लुभाते तो है फूल कलियां मुझे पर

अलग ही कसक होती उनके अधर की

 *

जो बातों से ही छोड़ दे तख़्त नाज़िम

हमें चाह बिलकुल नहीं है ग़दर की

 *

गुनाहों का सरताज़ बगुला भगत था

खुली असलियत आज उस मोतबर की

 *

मुरादें सभी उसके  दर से हों पूरी

जरूरत भटकने की क्यों दर -ब-दर की

 *

बना मेरा मुरशिद मेरा इल्म सीखा

जरूरत नहीं अब उसे राहबर की

 *

बढ़ाते बताओ भला कैसे गणना

अगर खोज भारत न करता सिफ़र की

 *

सदारत से मुझको बचाना खुदाया

फ़ज़ीयत बड़ी हो रही है सदर की

 *

जो दरिया में देखा नहीं है उतरकर

अरुण वो न समझेगा ताकत भँवर की

© श्री अरुण कुमार दुबे

सम्पर्क : 5, सिविल लाइन्स सागर मध्य प्रदेश

सिरThanks मोबाइल : 9425172009 Email : arunkdubeynidhi@gmail. com

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कादम्बरी # 41 – प्यार की हद से गुजर जाने दो… ☆ आचार्य भगवत दुबे ☆

आचार्य भगवत दुबे

(संस्कारधानी जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर आचार्य भगवत दुबे जी को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया है।सीमित शब्दों में आपकी उपलब्धियों का उल्लेख अकल्पनीय है। आचार्य भगवत दुबे जी के व्यक्तित्व एवं कृतित्व की विस्तृत जानकारी के लिए कृपया इस लिंक पर क्लिक करें 👉 ☆ हिन्दी साहित्य – आलेख – ☆ आचार्य भगवत दुबे – व्यक्तित्व और कृतित्व ☆. आप निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणा स्त्रोत हैं। हमारे विशेष अनुरोध पर आपने अपना साहित्य हमारे प्रबुद्ध पाठकों से साझा करना सहर्ष स्वीकार किया है। अब आप आचार्य जी की रचनाएँ प्रत्येक मंगलवार को आत्मसात कर सकेंगे।  आज प्रस्तुत हैं आपकी एक भावप्रवण रचना – प्यार की हद से गुजर जाने दो।)

✍  साप्ताहिक स्तम्भ – ☆ कादम्बरी # 41 – प्यार की हद से गुजर जाने दो… ☆ आचार्य भगवत दुबे ✍

प्यार की हद से, गुजर जाने दो

जिन्दगी, आज सँवर जाने दो

एक मुद्दत के बाद आये हो 

आज मत कहना कि, घर जाने दो

तेरी जुल्फों की छाँव, शीतल है 

इनको, कुछ और बिखर जाने दो

ऐ घटाओ जरा जमकर बरसो 

मेरे महबूब को न जाने दो

ये जो सैलाब ख्वाहिशों का है 

आज इसको तो उतर जाने दो

https://www.bhagwatdubey.com

© आचार्य भगवत दुबे

82, पी एन्ड टी कॉलोनी, जसूजा सिटी, पोस्ट गढ़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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English Literature – Poetry ☆ – Endless Quest… ~ प्रश्न एक – खोज अनंत… (भावानुवाद) ☆ Captain Pravin Raghuvanshi, NM ☆

Captain Pravin Raghuvanshi, NM

(Captain Pravin Raghuvanshi—an ex Naval Officer, possesses a multifaceted personality. He served as Senior Advisor in prestigious Supercomputer organisation C-DAC, Pune. An alumnus of IIM Ahmedabad was involved in various Artificial Intelligence and High-Performance Computing projects of national and international repute. He has got a long experience in the field of ‘Natural Language Processing’, especially, in the domain of Machine Translation. He has taken the mantle of translating the timeless beauties of Indian literature upon himself so that it reaches across the globe. He has also undertaken translation work for Shri Narendra Modi, the Hon’ble Prime Minister of India, which was highly appreciated by him. He is also a member of ‘Bombay Film Writer Association’.)

We present his awesome poem ~ Endless Quest… ~ and Hindi version प्रश्न एक – खोज अनंत… We extend our heartiest thanks to the learned author Captain Pravin Raghuvanshi Ji, who is very well conversant with Hindi, Sanskrit, English and Urdu languages for sharing this classic poem.  

☆ Endless Quest… ?

Meaning of the life

Battle for the survival

What is its explanation

What is the complementarity

that is continuously on

The state of ‘no-answer’

probably is the only answer…

 

Escape from the truth

Dogmas of the destiny

Longing for the destination

Encounter with the fate and the

accounts of ‘Fruits of Karma’…

 

Desire for immortality,

deathlessness or eternity in

the cycle of birth and death or

the merger with the absolute

The infiniteness of the universe

Unanswered haunting queries

Finally, remains the same

enigmatic answer:

the eternal peace…!

~ Pravin Raghuvanshi

 ~~~~~~

☆ प्रश्न एक – खोज अनंत… ?

जीवन की सार्थकता

अस्तित्व का महासंग्राम

क्या है स्पष्टीकरण

क्या है पूरकता

पर निरंतर है निरुत्तरता ही निरुत्तरता..

 

सत्य से पलायन

प्रारब्ध के नियम

गंतव्य की निकटता

नियति से अप्रत्याशित भेंट

कर्मफलों का लेखा-जोखा

अजरता, अमरता व अमृत्व की चाह

 

जन्म-मृत्यु चक्र का फेर

या सम्पूर्णता में विलिनता

ब्रह्मांड की अनंतता

अनुत्तरित प्रश्न

फिर वही चिरशांति..!

~ प्रवीण रघुवंशी 

 

~ Pravin Raghuvanshi

© Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Pune

≈ Blog Editor – Shri Hemant Bawankar/Editor (English) – Captain Pravin Raghuvanshi, NM ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – क्रौंच (6) ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं।)

? संजय दृष्टि –  क्रौंच (6) ? ?

मेरी क्रौंच कविताओं

से प्रभावित;

लिखत-पढ़त

के नाम पर

नव सृजन की

जुगाड़ करेंगे,

बहेलिए को

क्रौंच कथा का

नायक सिद्ध कर;

अपवाद को

परंपरा बनाने का

भरसक यत्न करेंगे,

साहित्य के आखेटकोे!

कोख के बिना

बीजारोपण नहीं होता,

समानुभूति के अभाव में

कविता का जन्म नहीं होता!

© संजय भारद्वाज 

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

💥 🕉️ मार्गशीर्ष साधना सम्पन्न हुई। अगली साधना की सूचना हम शीघ्र करेंगे। 🕉️ 💥

नुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ मनोज साहित्य # 117 – वसंत पंचमी… ☆ श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” ☆

श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं सजग अग्रज साहित्यकार श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” जी  के साप्ताहिक स्तम्भ  “मनोज साहित्य ” में आज प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण रचना “वसंत पंचमी…”। आप प्रत्येक मंगलवार को आपकी भावप्रवण रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे।

✍ मनोज साहित्य # 117 – वसंत पंचमी… ☆

माघ माह की पंचमी, शुक्ल पक्ष तिथि आज।

वीणा वादिनि शारदे, रखती सिर पर ताज।।

*

विद्या की शुभ दायिनी, करती तम का नाश।

ज्ञान चक्षु को खोलती, काटे भ्रम का पाश।।

*

ऋतु वसंत का आगमन, मन में भरे उमंग।

धरा मुदित हो नाचती, नेह प्रेम हुड़दंग।।

*

खिलें पुष्प हर डाल पर, भ्रमर करें रसपान।

तितली झूमें बाग में, करते कवि ऋतु गान।।

*

पीत वसन पहने धरा, लाल अधर कचनार।

शृंगारित दुल्हन चली, ऋतु वसंत गलहार ।।

 ©  मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संपर्क – 58 आशीष दीप, उत्तर मिलोनीगंज जबलपुर (मध्य प्रदेश)- 482002

मो  94258 62550

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ लेखनी सुमित्र की # 177 – गीत – शपथ है…. ☆ डॉ. राजकुमार तिवारी “सुमित्र” ☆

डॉ राजकुमार तिवारी ‘सुमित्र’

(संस्कारधानी  जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर डॉ. राजकुमार “सुमित्र” जी  को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी  हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया।  वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणास्रोत हैं। आज प्रस्तुत हैं  आपका एक अप्रतिम गीत – शपथ है।)

✍ साप्ताहिक स्तम्भ – लेखनी सुमित्र की # 177 – गीत  – शपथ है…  ✍

शपथ है उन सात फेरों की

है शपथ संझा सबेरों की

है साक्षी आकाश, मत तोड़ना विश्वास।

हृदय मेरे पास

याद है वह दिन तुम्हें, जाँचे बिना ही ब्याह लाया था

अब कहूँ क्या और ज्यादा, मैं समुन्दर थाह लाया था

रतन से ज्यादा तुम्हें पाया, जिन्दगी के गीत सा गाया

मत तोड़ना विश्वास, साक्षी आकाश।

देवता की बात छोड़ो, आदमी से भूल होती है

निर्मली आकाश के भी, पाश में कुछ धूल होती है

धूल को तुमने हटाया है, रंग मेरा निखर आया है।

मत तोड़ना विश्वास ,साक्षी आकाश।

कवि हृदय को बाँचना भी, एक मुश्किल काम होता है

आँख उसकी है भिखारिन, इसलिये बदनाम होता है

जो सजाई फूल क्यारी है, सम्मिलित खुशबू हमारी है

मत तोड़ना विश्वास, साक्षी आकाश।

मैं हृदय की प्यास।

© डॉ राजकुमार “सुमित्र”

112 सर्राफा वार्ड, सिटी कोतवाली के पीछे चुन्नीलाल का बाड़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ अभिनव गीत # 177 – “शायद आज पूर्ण हो पाये…” ☆ श्री राघवेंद्र तिवारी ☆

श्री राघवेंद्र तिवारी

(प्रतिष्ठित कवि, रेखाचित्रकार, लेखक, सम्पादक श्रद्धेय श्री राघवेंद्र तिवारी जी  हिन्दी, दूर शिक्षा, पत्रकारिता व जनसंचार,  मानवाधिकार तथा बौद्धिक सम्पदा अधिकार एवं शोध जैसे विषयों में शिक्षित एवं दीक्षित। 1970 से सतत लेखन। आपके द्वारा सृजित ‘शिक्षा का नया विकल्प : दूर शिक्षा’ (1997), ‘भारत में जनसंचार और सम्प्रेषण के मूल सिद्धांत’ (2009), ‘स्थापित होता है शब्द हर बार’ (कविता संग्रह, 2011), ‘​जहाँ दरक कर गिरा समय भी​’​ ( 2014​)​ कृतियाँ प्रकाशित एवं चर्चित हो चुकी हैं। ​आपके द्वारा स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम के लिए ‘कविता की अनुभूतिपरक जटिलता’ शीर्षक से एक श्रव्य कैसेट भी तैयार कराया जा चुका है। आज प्रस्तुत है आपका एक अभिनव गीत  शायद आज पूर्ण हो पाये...)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ # 177 ☆।। अभिनव गीत ।। ☆

☆ “शायद आज पूर्ण हो पाये...” ☆ श्री राघवेंद्र तिवारी

सुबह-सुबह उसके घर की

छप्पर धुंधुआती है –

जबभी ,भोजन मिलने की

आशा जग जाती है

 

लगती चिडियाँ खूब फुदकने

छपर पर सहसा

ताली खूब बजाता पीपल

जैसे हो जलसा

 

सारे जीव प्रसन्न तो दिखें

मुदित वनस्पतियाँ

पूरे एक साल में ज्यों

दीवाली आती है

 

घर के कीट पतंग सभी

यह सुखद खबर पाकर

एक दूसरे को समझाने

लगे पास जाकर

 

यह सुयोग इतने दिन में

गृहस्वामी लाया है

जिस की सुध ईश्वर को

मुश्किल से आपाती है

 

यों सारा पड़ोस खुश होकर

आशा में डूबा

शायद आज पूर्ण हो पाये

अपना मंसूबा

 

जो रोटीं उधार उस दिन

की हैं,  वापस होंगीं

ठिठकी यह कल्पना,

सभी की , जोर लगाती है

©  श्री राघवेन्द्र तिवारी

06-02-2024 

संपर्क​ ​: ई.एम. – 33, इंडस टाउन, राष्ट्रीय राजमार्ग-12, भोपाल- 462047​, ​मोब : 09424482812​

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – क्रौंच (5) ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं।)

? संजय दृष्टि – क्रौंच (5) ? ?

कई दिनों तक

प्रयोगशाला में

अनगिनत प्रयोगों की

भेंट चढ़ा

उस क्रौंच का शव;

जिससे उपजा था

पहला गान,

शरीर में नहीं मिले

ऐसे तत्व

जिनसे सुलझ पाता

गान का रहस्य,

मस्तिष्क का आकार

कुछेक को

किंचित बड़ा लगा

तो कुछ को

कंठ में मिठास के

विशिष्ट रस का

स्राव मिला,

वैज्ञानिकों के

चंगुल से निकला

बचा-खुचा लोथड़ा

लिखने-पढ़ने

की जुगत में बैठे

जुगाड़ूओं के

हत्थे चढ़ गया,

जिसने जो हिस्सा झपटा;

अपने-अपने तरीके से

चबाया, घोला, पीसा

और निगल गया,

कविता हथियाने की

सारी कोशिश

नाकाम होती रही;

उधर फुनगी पर बैठे

क्रौंच के जीवनसाथी

की आँखों से कविता

निरंतर प्रवाहित होती रही..!

© संजय भारद्वाज 

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

💥 🕉️ मार्गशीर्ष साधना सम्पन्न हुई। अगली साधना की सूचना हम शीघ्र करेंगे। 🕉️ 💥

नुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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