हिन्दी साहित्य – कविता ☆ माँ… ☆ श्री राजेन्द्र तिवारी ☆

श्री राजेन्द्र तिवारी

(ई-अभिव्यक्ति में संस्कारधानी जबलपुर से श्री राजेंद्र तिवारी जी का स्वागत। इंडियन एयरफोर्स में अपनी सेवाएं देने के पश्चात मध्य प्रदेश पुलिस में विभिन्न स्थानों पर थाना प्रभारी के पद पर रहते हुए समाज कल्याण तथा देशभक्ति जनसेवा के कार्य को चरितार्थ किया। कादम्बरी साहित्य सम्मान सहित कई विशेष सम्मान एवं विभिन्न संस्थाओं द्वारा सम्मानित, आकाशवाणी और दूरदर्शन द्वारा वार्ताएं प्रसारित। हॉकी में स्पेन के विरुद्ध भारत का प्रतिनिधित्व तथा कई सम्मानित टूर्नामेंट में भाग लिया। सांस्कृतिक और साहित्यिक क्षेत्र में भी लगातार सक्रिय रहा। हम आपकी रचनाएँ समय समय पर अपने पाठकों के साथ साझा करते रहेंगे। आज प्रस्तुत है आपकी एक विचारणीय कविता माँ…’।)

☆ कविता – माँ… ☆

माँ तो केवल माँ होती है,

माँ को न कुछ और कहो,

सभी देवता गोद में खेले,

तुम तो बस चरणों में रहो,

जन्म दिया हो या पाला हो,

भेद न कोई ममता माने,

अपना पराया कोई नहीं है,

माँ तो सबको अपना माने,

माँ की ममता का मोल नहीं,

ममता है अनमोल कहो,

माँ तो केवल माँ होती है,

माँ को न कुछ और कहो,

माँ की महिमा का बखान,

सुर नर मुनि भी गाते हैं,

वेद पुराण के पन्ने भी,

लिख कर नहीं अघाते हैं,

सब रिश्तों से ऊपर है माँ ,

इससे ऊपर कोई न हो

माँ तो केवल माँ होती है,

माँ को न कुछ और कहो.

© श्री राजेन्द्र तिवारी  

संपर्क – 70, रामेश्वरम कॉलोनी, विजय नगर, जबलपुर

मो  9425391435

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 165 ☆ # कलम # ☆ श्री श्याम खापर्डे ☆

श्री श्याम खापर्डे

(श्री श्याम खापर्डे जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी हैं। आप प्रत्येक सोमवार पढ़ सकते हैं साप्ताहिक स्तम्भ – क्या बात है श्याम जी । आज प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण कविता “# कलम #”

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 165 ☆

☆ # कलम #

उसने मुझे कलम थमाई

लिखने की कला सिखाई

हर शब्द कीमती है

शब्दों की गरिमा समझाई

 

तुम कभी –

सत्य का पाथ ना छोड़ना

कमजोर का हाथ ना छोड़ना

बेबस, लाचार, असहाय का

राह में साथ ना छोड़ना

 

वो बात लिखो-

जो तुम्हें कचोटती हो

जो तुम्हें झंझोड़ती हो

जो तुम्हारे शरीर ही नहीं

आत्मा को निचोड़ती हो

 

मैंने उत्साह में

लिखने की चाह में

लिखा-

बढ़ती मंहगाई पर

दिग्भ्रमित तरुणाई पर

खोखले वादों पर

झूठे इरादों पर

भूखे की रोटी पर

निर्धन की लंगोटी पर

कमजोर के अन्याय पर

बिके हुए न्याय पर

सियासत के मोहरों पर

हर पल बदलते चेहरों पर

रूपये के खेल पर

बढ़ते बेढ़ंगे मेल पर

प्रिंट मीडिया की बदहाली पर

पेड मीडिया की दलाली पर

 

और

उसे जब अपनी रिपोर्ट थमाई

पढ़कर उसके चेहरे पर

व्यंग्यात्मक हंसी आई

वो बोला –

यह सब कहानी

लगती सच्ची है

पढ़ने में अच्छी है

पर छप नही सकती है

उसके माथे पर बूंदें उभर आई

उसकी जिव्हा लड़खड़ाई

उसकी आंखों में भय दिखने लगा

उसकी आवाज थी भर्राई

उसने मेरी कलम छीन ली

और बाहर की राह दिखाई

मुझे आज तक

मेरी रचना में

क्या कमी थी

समझ नहीं आई /

© श्याम खापर्डे

फ्लेट न – 402, मैत्री अपार्टमेंट, फेज – बी, रिसाली, दुर्ग ( छत्तीसगढ़) मो  9425592588

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सलिल प्रवाह # 174 ☆ सॉनेट – धीर धरकर ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ☆

आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

(आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ जी संस्कारधानी जबलपुर के सुप्रसिद्ध साहित्यकार हैं। आपको आपकी बुआ श्री महीयसी महादेवी वर्मा जी से साहित्यिक विधा विरासत में प्राप्त हुई है । आपके द्वारा रचित साहित्य में प्रमुख हैं पुस्तकें- कलम के देव, लोकतंत्र का मकबरा, मीत मेरे, भूकंप के साथ जीना सीखें, समय्जयी साहित्यकार भगवत प्रसाद मिश्रा ‘नियाज़’, काल है संक्रांति का, सड़क पर आदि।  संपादन -८ पुस्तकें ६ पत्रिकाएँ अनेक संकलन। आप प्रत्येक सप्ताह रविवार को  “साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह” के अंतर्गत आपकी रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है सॉनेट – धीर धरकर।  )

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 174 ☆

☆ सॉनेट – धीर धरकर ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ☆

पीर सहिए, धीर धरिए।

आह को भी वाह कहिए।

बात मन में छिपा रहिए।।

हवा के सँग मौन बहिए।।

कहाँ क्या शुभ लेख तहिए।

मधुर सुधियों सँग महकिए।

दर्द हो बेदर्द सहिए।।

स्नेहियों को चुप सुमिरिए।।

असत् के आगे न झुकिए।

श्वास इंजिन, आस पहिए।

देह वाहन ठीक रखिए।

बनें दिनकर, नहीं रुकिए।।

शिला पर सिर मत पटकिए।

मान सुख-दुख सम विहँसिए।।

©  आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

१७-२-२०२२

संपर्क: विश्ववाणी हिंदी संस्थान, ४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१,

चलभाष: ९४२५१८३२४४  ईमेल: [email protected]

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ आतिश का तरकश #223 – 110 – “तुमने  निगाहों से गिरा नश्तर चुभा दिया…” ☆ श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’ ☆

श्री सुरेश पटवा

(श्री सुरेश पटवा जी  भारतीय स्टेट बैंक से  सहायक महाप्रबंधक पद से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं और स्वतंत्र लेखन में व्यस्त हैं। आपकी प्रिय विधा साहित्य, दर्शन, इतिहास, पर्यटन आदि हैं। आपकी पुस्तकों  स्त्री-पुरुष “गुलामी की कहानी, पंचमढ़ी की कहानी, नर्मदा : सौंदर्य, समृद्धि और वैराग्य की  (नर्मदा घाटी का इतिहास) एवं  तलवार की धार को सारे विश्व में पाठकों से अपार स्नेह व  प्रतिसाद मिला है। श्री सुरेश पटवा जी  ‘आतिश’ उपनाम से गज़लें भी लिखते हैं ।प्रस्तुत है आपका साप्ताहिक स्तम्भ आतिश का तरकशआज प्रस्तुत है आपकी भावप्रवण ग़ज़ल तुमने  निगाहों से गिरा नश्तर चुभा दिया…” ।)

? ग़ज़ल # 109 – “तुमने  निगाहों से गिरा नश्तर चुभा दिया…” ☆ श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’ ?

हमको  दुआएँ दो तुम्हें माशूक़ बना दिया, 

तुमने  निगाहों से गिरा नश्तर चुभा दिया। 

*

हमको तुम्हारे इश्क़  ने चाकर बना दिया,

हुक्म तुम्हारा मानकर पोंछा  लगा  दिया।

*

तुमने कुछ बना कर खिलाने को कहा हमें,

बनता कुछ न था तो पराठा ही जला दिया। 

*

बैठक  अस्त व्यस्त  पड़ी थी  बेतरतीब सी,

हमने सब  जगह झाड़ पोंछ उसे सजा दिया। 

*

आशिक़ सजाए हसीं  सपने घर बसाते वक्त,

आतिश ख़्वाब फ़र्श  धुलाई  में  बहा  दिया।

© श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’

भोपाल, मध्य प्रदेश

≈ सम्पादक श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – क्रौंच (4) ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं।)

? संजय दृष्टि – क्रौंच (4) ? ?

तीर की नोंक

और क्रौंच की नाभि में

नहीं होती कविता,

चीत्कार और

हाहाकार में भी

नहीं होती कविता,

अपने ही भीतर

उमगती है,

अपनी ही आँख में

बसती है,

दृष्टि और स्पंदन की

अनुभूति होती है कविता,

अंतर्स्रावी अभिव्यक्ति

होती है कविता!

© संजय भारद्वाज 

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

💥 🕉️ मार्गशीर्ष साधना सम्पन्न हुई। अगली साधना की सूचना हम शीघ्र करेंगे। 🕉️ 💥

नुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ “श्री हंस” साहित्य # 101 ☆ गीत ☆ ।।बस चार दिन रैन बसेरा यही जिंदगानी है।। ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस” ☆

श्री एस के कपूर “श्री हंस”

☆ “श्री हंस” साहित्य # 101 ☆

☆ गीत ☆ ।।बस चार दिन रैन बसेरा यही जिंदगानी है।। ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस” ☆ 

[1]

इस दुनिया के रैन बसेरे में चार दिन रहना है।

जीत लो बस दिल सब  का ही यही कहना है।।

तेरे कर्म   मीठे बोल  बस यही साथ जायेंगे।

मिले सबका संग साथ ये जीवन का गहना है।।

[2]

बहुत कम समय मिलता बस साथ बिताने  लिए।

मत गवां देना   इसे बस  तुम रूठने मनाने  लिए।।

शिकवा शिकायत में ये वक्त ही   न निकल जाये।

बस तैयार रहना हमेशा हर   रिश्ता निभाने लिए ।।

[3]

नज़र के फेर में तुम   नज़ारों को मत गवां देना।

खो कर  यकीन तुम सहारों को मत गवां देना।।

उठो ऊपर कितना भी पर जुड़ना जमीं के साथ।

भगा तेज नाव तुम किनारों को ही मत गवां देना।।

[4]

जीवन प्रतिध्वनि लौट कर भी आती आवाज वही है।

अच्छा बुरा झूठ सच मानअपमान का आगाज यही है।।

जैसा दोगे वैसा पाओगे यही   नियम है सृष्टि का।

अच्छे सुखी सफल जीवन का एक  ही जवाब यही है।।

© एस के कपूर “श्री हंस”

बरेलीईमेल – Skkapoor5067@ gmail.com, मोब  – 9897071046, 8218685464

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ काव्य धारा # 164 ☆ ‘चारुचन्द्रिका’ से – कविता – “बच्चे…” ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

(आज प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी  द्वारा रचित एक भावप्रवण रचना  – “बच्चे..। हमारे प्रबुद्ध पाठकगण प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी  काव्य रचनाओं को प्रत्येक शनिवार आत्मसात कर सकेंगे।) 

☆ ‘चारुचन्द्रिका’ से – कविता – “बच्चे” ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

हर देश की सबसे बड़ी सम्पत्ति हैं बच्चे

कल के स्वरूप की छुपी अभिव्यक्ति हैं बच्चे ॥

“कल देश कैसा ही सपने उभारिये

अनुरूप उसके ही कदम अपने संवारिये।

जैसा इन्हें बनायेंगे, वैसा ये बनेंगे

वातावरण जो पायेंगे वैसे ही ढलेंगे ॥

पौधों की भाँति होते हैं कोमल, सरल, सच्चे।

हर देश की सबसे बड़ी संपत्ति हैं बच्चे ॥1॥

इनको सहेजिये इन्हें बढ़ना सिखाइये

पुस्तक ही नहीं जिन्दगी पढ़ना सिखाइये।

शिक्षा सही न मिली तो ये जायेंगे बिगड़

अपराध की दुनिया में पड़ेंगे ये लड़-झगड़ ॥

इनमें अभी समझ नहीं, अनुभव के हैं कच्चे

 हर देश की सबसे बड़ी सम्पत्ति हैं बच्चे ॥ 2 ॥

 *

इनके विकास की है बड़ी जिम्मेदारियाँ

शासन-समाज को सही करती तैयारियाँ।

शालाएँ हो, सुविधाएँ हो, अवसर विकास के

सद्भाव हों, सद्बुद्धि हो, साधन प्रकाश के ॥

परिवेश मिले सुखद जहाँ ढल सकें अच्छे

हर देश की सबसे बड़ी सम्पत्ति हैं बच्चे ॥3॥

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

ए २३३ , ओल्ड मीनाल रेजीडेंसी  भोपाल ४६२०२३

मो. 9425484452

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – क्रौंच (3) ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं।)

? संजय दृष्टि – क्रौंच (3) ? ?

वध नहीं रचता कविता,

वध तो रचता है

निर्मम शब्द,

शब्द-

युद्ध के पक्ष में,

हिंसा के पक्ष में,

शोषण और

विलाप के पक्ष में,

कविता तो

उर्वरा माटी में

सद्भाव के पुष्प खिलाती है,

सदाशयता के

कपोत उड़ाती है,

वध में

कविता ढूँढ़नेवालो!

पहले झेलो

बहेलिए का तीर

अपनी छाती पर,

उस रूधिर को रोकने

दौड़ेंगे जो हाथ;

वे हाथ

कविता के होंगे,

तुम्हारी पीड़ा की

समानुभूति में

बहेंगी जो आँखें;

वे आँखें कविता की होंगी,

जो कर गुज़रेगी कुछ ऐसा

कि जीने के लिए

आखेट की

आवश्यकता ही न रह जाए;

वह समूची

कविता होगी,

सुनो मित्रो!

आओ साथ बैठें

और रचें कविता!

© संजय भारद्वाज 

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

💥 🕉️ मार्गशीर्ष साधना सम्पन्न हुई। अगली साधना की सूचना हम शीघ्र करेंगे। 🕉️ 💥

नुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ साहित्य निकुंज #220 ☆ – भावना के दोहे… – ☆ डॉ. भावना शुक्ल ☆

डॉ भावना शुक्ल

(डॉ भावना शुक्ल जी  (सह संपादक ‘प्राची‘) को जो कुछ साहित्यिक विरासत में मिला है उसे उन्होने मात्र सँजोया ही नहीं अपितु , उस विरासत को गति प्रदान  किया है। हम ईश्वर से  प्रार्थना करते हैं कि माँ सरस्वती का वरद हस्त उन पर ऐसा ही बना रहे। आज प्रस्तुत हैं  भावना के दोहे…)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ  # 220 – साहित्य निकुंज ☆

☆ भावना के दोहे… ☆ डॉ भावना शुक्ल ☆

तेरे आनन पर लिखा, प्रिय का प्यारा नाम।

अधरों की मुस्कान ने, पिया प्यार का जाम।।

*

बिखरी  अलकें देखकर, खोए हमने होश।

छटा सुहानी लग रही, भरता इनमें जोश।।

*

मौसम तो अभिसार का, हुई सुहानी शाम।

दर्शन दे दो प्रभु मुझे, आए तेरे धाम।।

*

अरुणिम आभा की छटा, बिखर रही है खूब।

गोरी की मुस्कान में, जैसे खिलती दूब।।

© डॉ भावना शुक्ल

सहसंपादक… प्राची

प्रतीक लॉरेल, J-1504, नोएडा सेक्टर – 120,  नोएडा (यू.पी )- 201307

मोब. 9278720311 ईमेल : [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ इंद्रधनुष #201 ☆ अवध  में  आए  राम  लला… ☆ श्री संतोष नेमा “संतोष” ☆

श्री संतोष नेमा “संतोष”

(आदरणीय श्री संतोष नेमा जी  कवितायें, व्यंग्य, गजल, दोहे, मुक्तक आदि विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं. धार्मिक एवं सामाजिक संस्कार आपको विरासत में मिले हैं. आपके पिताजी स्वर्गीय देवी चरण नेमा जी ने कई भजन और आरतियाँ लिखीं थीं, जिनका प्रकाशन भी हुआ है. आप डाक विभाग से सेवानिवृत्त हैं. आपकी रचनाएँ राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में लगातार प्रकाशित होती रहती हैं। आप  कई सम्मानों / पुरस्कारों से सम्मानित/अलंकृत हैं. “साप्ताहिक स्तम्भ – इंद्रधनुष” की अगली कड़ी में आज प्रस्तुत है अवध  में  आए  राम  ललाआप श्री संतोष नेमा जी  की रचनाएँ प्रत्येक शुक्रवार आत्मसात कर सकते हैं।)

☆ साहित्यिक स्तम्भ – इंद्रधनुष # 201 ☆

☆ अवध  में  आए  राम  लला.. ☆ श्री संतोष नेमा ☆

करेंगे  सब  का  काम  भला

अवध  में  आए  राम  लला

*

लगी  दरश  की आस  हमारी

झूम   उठी   सारी    फुलवारी

हुईं  सब  निष्फल  विघ्न-बला

अवध  में  आए   राम  लला

*

राम  हृदय  में  जिनके  बसते

वही  अवध  का मर्म समझते

देखता  अग-जग   राम-कला

अवध  में  आए  राम  लला

*

रघुनंदन   जगती   के   स्वामी

घट-घट   वासी  अन्तर्यामी

राम  से जग जीवन उजला

अवध  में  आए   राम   लला

*

राम   शरण   संतोष   पड़ा   है

द्वार  राम  के  जगत   खड़ा  है

कई जन्मों का पुण्य फला

अवध  में  आए   राम   लला

© संतोष  कुमार नेमा “संतोष”

सर्वाधिकार सुरक्षित

आलोकनगर, जबलपुर (म. प्र.) मो 9300101799

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares