हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ मनोज साहित्य # 116 – मनोज के दोहे… ☆ श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” ☆

श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं सजग अग्रज साहित्यकार श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” जी  के साप्ताहिक स्तम्भ  “मनोज साहित्य ” में आज प्रस्तुत है “मनोज के दोहे…”। आप प्रत्येक मंगलवार को आपकी भावप्रवण रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे।

✍ मनोज साहित्य # 116 – मनोज के दोहे… ☆

1 रतजगा

सैनिक करता रतजगा, सीमा पर है आज।

दो तरफा दुश्मन खड़े, खतरे में है ताज।।

2 प्रहरी

उत्तर में प्रहरी बना, खड़ा हिमालय राज।

दक्षिण में चहुँ ओर से, सागर पर है नाज।।

3 मलीन

मुख-मलीन मत कर प्रिये,चल नव देख प्रभात।

जीवन में दुख-सुख सभी, घिर आते अनुपात।।

4 उमंग

पुणे शहर की यह धरा, मन में भरे उमंग।

किला सिंहगढ़ का यहाँ, विजयी-शिवा तरंग।।

5 चुपचाप

महानगर में आ गए, हम फिर से चुपचाप।

देख रहे बहुमंजिला, गगन चुंबकी नाप ।।

©  मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संपर्क – 58 आशीष दीप, उत्तर मिलोनीगंज जबलपुर (मध्य प्रदेश)- 482002

मो  94258 62550

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ लेखनी सुमित्र की # 176 – गीत – सुबह सुबह देखा है सपना…. ☆ डॉ. राजकुमार तिवारी “सुमित्र” ☆

डॉ राजकुमार तिवारी ‘सुमित्र’

(संस्कारधानी  जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर डॉ. राजकुमार “सुमित्र” जी  को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी  हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया।  वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणास्रोत हैं। आज प्रस्तुत हैं  आपका एक अप्रतिम गीत – सुबह सुबह देखा है सपना।)

✍ साप्ताहिक स्तम्भ – लेखनी सुमित्र की # 176 – गीत  – सुबह सुबह देखा है सपना…  ✍

सुबह सुबह देखा है सपना

तेरी गोदी में सिर अपना।

अवचेतन में जो कुछ होता

वही स्वप्न में ढल जाता है

अंधे को दिख जाती दुनिया

पगविहीन भी चल जाता है।

ऐसा ही कुछ किस्सा अपना

सुबह सुबह देखा है सपना।

 *

कहते सपने वे सच होते

जो भी देखे जायें सबेरे

कितनी आँखें सच्ची होंगी

कितने लोग तुम्हें हैं घेरे।

अपना तो जीवन ही सपना

सुबह सुबह देखा है सपना

 *

सुबह सुबह देखा है सपना

तेरी गोदी में सिर अपना।

© डॉ राजकुमार “सुमित्र”

112 सर्राफा वार्ड, सिटी कोतवाली के पीछे चुन्नीलाल का बाड़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ अभिनव गीत # 175 – “एक चित्र बादल का…” ☆ श्री राघवेंद्र तिवारी ☆

श्री राघवेंद्र तिवारी

(प्रतिष्ठित कवि, रेखाचित्रकार, लेखक, सम्पादक श्रद्धेय श्री राघवेंद्र तिवारी जी  हिन्दी, दूर शिक्षा, पत्रकारिता व जनसंचार,  मानवाधिकार तथा बौद्धिक सम्पदा अधिकार एवं शोध जैसे विषयों में शिक्षित एवं दीक्षित। 1970 से सतत लेखन। आपके द्वारा सृजित ‘शिक्षा का नया विकल्प : दूर शिक्षा’ (1997), ‘भारत में जनसंचार और सम्प्रेषण के मूल सिद्धांत’ (2009), ‘स्थापित होता है शब्द हर बार’ (कविता संग्रह, 2011), ‘​जहाँ दरक कर गिरा समय भी​’​ ( 2014​)​ कृतियाँ प्रकाशित एवं चर्चित हो चुकी हैं। ​आपके द्वारा स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम के लिए ‘कविता की अनुभूतिपरक जटिलता’ शीर्षक से एक श्रव्य कैसेट भी तैयार कराया जा चुका है। आज प्रस्तुत है आपका एक अभिनव गीत  “एक चित्र बादल का...)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ # 173 ☆।। अभिनव गीत ।। ☆

☆ “एक चित्र बादल का...” ☆ श्री राघवेंद्र तिवारी

सूरज की किरनों को

ऐसे मत टाँक री

फिसल रहा हाथों से

ईश का पिनाक री

 *

खुद की परछाईं जो

दुबिधा में छोटी है

उसको इतना छोटा

ऐसे मत आँक री

 *

ऐंठ रही धूप  तनिक

खड़ी कमर हाथ धरे

देखती दुपहरी को

ऊँची कर नाक  री

 *

एक चित्र बादल का

ऐसे दिखाई दे

ज्यों दबा दशानन हो

बाली की काँख री

 *

छाया छत से छूटी

टँगी दिखी छींके पर

लगा छींट छप्पर की

जा गिरी छमाक री

 *

घिर आई शाम धूप

फुनगी पर पहुँच गई

पीली उम्मीद बची

एक दो छटाँक री

 *

हौले हौले नभ में

उतर रहा चन्द्रमा

लगता है लटक रही

मैंदा की गाँकरी

©  श्री राघवेन्द्र तिवारी

06-02-2024 

संपर्क​ ​: ई.एम. – 33, इंडस टाउन, राष्ट्रीय राजमार्ग-12, भोपाल- 462047​, ​मोब : 09424482812​

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – पिरामिड ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं।)

? संजय दृष्टि – पिरामिड  ? ?

जाने मुझमें

क्या नज़र आया;

मित्रों ने

पिरामिड बनाया,

मुझे फलदार

वृक्ष पर चढ़ाया;

मैं तोड़-तोड़कर

नीचे फेंकता रहा फल,

घनी पत्तियों से

देख भी नहीं

पा रहा था

किसे कितना मिला,

अब,

पेड़ पर

कोई फल नहीं बचा;

पत्तियों से

निकलकर देखा,

एक भी मित्र

नहीं था खड़ा,

पेड़ अब मेरी

दयनीयता पर हँस रहा था;

वृक्ष पर आकर भी

बिना फल चखे

लौटने पर

व्यंग्य कस रहा था,

कथित मित्र

चर्चा कर रहे थे;

आनेवाले अवसर

का नेता चुन रहे थे,

पेड़ अगले मौसम की

तैयारी कर रहा था;

मैं चुपचाप

पेड़ से उतर रहा था!

© संजय भारद्वाज 

(अपराह्न 12:28 बजे, 6 दिसंबर 2015)

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

💥 🕉️ मार्गशीर्ष साधना सम्पन्न हुई। अगली साधना की सूचना हम शीघ्र करेंगे। 🕉️ 💥

नुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कविता # 224 ☆ “आम आदमी की फिक्र” ☆ श्री जय प्रकाश पाण्डेय ☆

श्री जय प्रकाश पाण्डेय

(श्री जयप्रकाश पाण्डेय जी की पहचान भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी के अतिरिक्त एक वरिष्ठ साहित्यकार की है। वे साहित्य की विभिन्न विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं। उनके  व्यंग्य रचनाओं पर स्व. हरीशंकर परसाईं जी के साहित्य का असर देखने को मिलता है। परसाईं जी का सानिध्य उनके जीवन के अविस्मरणीय अनमोल क्षणों में से हैं, जिन्हें उन्होने अपने हृदय एवं साहित्य में  सँजो रखा है। आज प्रस्तुत है आपकी एक विचारणीय कविता – “आम आदमी की फिक्र)

☆ कविता  आम आदमी की फिक्र☆ श्री जय प्रकाश पाण्डेय

हम और तुम

तुम और हम

शून्य में

आंखें गड़ाए 

टुकर टुकर

क्या ताक रहे हैं?

* *

हम और तुम

तुम और हम 

क्रांति और बदलाव

के नाम पर अजीब

अजीब हरकतें

क्यों करते जा रहे हैं?

* *

हम और तुम

तुम और हम

सच को झूठ

झूठ को सच कहकर

तरह तरह के

क्यों कयास लगा रहे हैं?

**

हम और तुम

तुम और हम

इन अजीब

हरकतों के दौरान

आम आदमी की

तकलीफों की

क्यों फिक्र नहीं कर रहे हैं?

© जय प्रकाश पाण्डेय

416 – एच, जय नगर, आई बी एम आफिस के पास जबलपुर – 482002  मोबाइल 9977318765

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ सीता की व्यथा… ☆ श्री राजेन्द्र तिवारी ☆

श्री राजेन्द्र तिवारी

(ई-अभिव्यक्ति में संस्कारधानी जबलपुर से श्री राजेंद्र तिवारी जी का स्वागत। इंडियन एयरफोर्स में अपनी सेवाएं देने के पश्चात मध्य प्रदेश पुलिस में विभिन्न स्थानों पर थाना प्रभारी के पद पर रहते हुए समाज कल्याण तथा देशभक्ति जनसेवा के कार्य को चरितार्थ किया। कादम्बरी साहित्य सम्मान सहित कई विशेष सम्मान एवं विभिन्न संस्थाओं द्वारा सम्मानित, आकाशवाणी और दूरदर्शन द्वारा वार्ताएं प्रसारित। हॉकी में स्पेन के विरुद्ध भारत का प्रतिनिधित्व तथा कई सम्मानित टूर्नामेंट में भाग लिया। सांस्कृतिक और साहित्यिक क्षेत्र में भी लगातार सक्रिय रहा। हम आपकी रचनाएँ समय समय पर अपने पाठकों के साथ साझा करते रहेंगे। आज प्रस्तुत है आपकी एक विचारणीय कविता ‘सीता की व्यथा…’।)

☆ कविता – सीता की व्यथा… ☆

मै,

भू पुत्री,

भू पर,

अबोध,असहाय,

पड़ी अकेली,

किसका दोष,

परिस्थिति,भाग्य,

सहलाया था,

हवा ने,

भाग्य था,

 पा लिया,

जनक ने,

पाल लिया,

महलों में,

पुत्री बनी,

जनक की,

बड़ी हुई,

चिंता हुई,

विवाह की,

शर्त रखी,

धनुष भंग,

जो करे,

वो जीते,

सीता को,

पुष्प वाटिका,

राम मिले,

सीता ने,

मन को,

वार दिया,

धनुषभंग कर,

जीत लिया,

पाया नहीं,

राम ने,

कई सपने,

कई अरमान,

अवध में,

 फिर वनवास,

 छाया बनकर,

साथ चली,

 पर क्या,

राम की,

हो पाई,

नारी पीड़ा,

हुई अपह्रत,

अशोक वाटिका,

केवल राम,

रावण वध,

सोच रही,

लेने आओगे,

नहीं आए,

संदेश आया,

पैदल आओ,

अग्नि परीक्षा,

देनी होगी,

नारी ही,

देती आई,

अग्नि परीक्षा,

पुरुष तो,

अहंकार में,

लिप्त है,

सह गई,

लोकाचार में,

अयोध्या में,

फिर परीक्षा,

फिर वनवास,

पुत्र जन्म,

बिन परीक्षा,

नहीं स्वीकार,

थक गई राम,

तुम्हें पाते पाते,

तुम मर्यादा पुरुषोत्तम,

की परिधि से,

बाहर नहीं निकले,

मै थक गई,

देवी बनते बनते,

तुमने मुझे जीता,

पाया नहीं राम,

मै लेती हूं राम,

पृथ्वी में विश्राम… 

© श्री राजेन्द्र तिवारी  

संपर्क – 70, रामेश्वरम कॉलोनी, विजय नगर, जबलपुर

मो  9425391435

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 164 ☆ # बसंत के आगमन पर # ☆ श्री श्याम खापर्डे ☆

श्री श्याम खापर्डे

(श्री श्याम खापर्डे जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी हैं। आप प्रत्येक सोमवार पढ़ सकते हैं साप्ताहिक स्तम्भ – क्या बात है श्याम जी । आज प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण कविता “# दिल और दिमाग #”

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 164 ☆

 # बसंत के आगमन पर #

जब सुबह की अल्हड़ किरणें

कलियों को चूमती है

तब यह सारी कायनात

प्रेम के रंग में डूबकर

मस्ती मे झूमती है

*

फूलों के मेले लगते हैं

स्वागत द्वार

हर तरफ सजते हैं

तरूणाई मदहोशी में

बहकती है

युवक युवतियां

उन्माद में चहकती हैं

हर तरफ

मनमोहक सुगंध है

हर काया में

मंत्र मुग्ध करती गंध है

ये विचरण करती

यौवन से लदी बालाएं

अंग अंग पर लिपटी

हुई मालाऐं

दिन-रात

प्रेम की मदिरा में डूबे हैं

आंखों ही आंखों में

छुपे हुए मंसूबे हैं

यह बयार हर दिल में

प्रीत जगाती है

बसंत के मादक मौसम में

बसंत सेना,  चारूलता

की याद दिलाती है

*

क्या यह ऋतु राज बसंत

अपने आगमन के साथ

बसंत सेना – चारूलता की

कहानी दोहरायेगा ?

क्या कोई वीर आर्यक

समस्थानक का मद

चूर कर पायेगा ?

या

पतझड़ के बाद आया हुआ

यह मदमस्त बसंत

ऋतु राज बसंत

इन रंगीनियों में डूबकर

झूठ और फरेब में छुपकर

मदिरा के मोह में

अप्सराओं की खोह में

माया से लिपटा हुआ

पद-प्रतिष्ठा के अहंकार से

चिपटा हुआ

हमेशा की तरह

चुपचाप चला जायेगा ?

या व्यवस्था के हाथों

बिक जायेगा ?

या जाते जाते

कोई परिवर्तन लायेगा ? /

© श्याम खापर्डे

फ्लेट न – 402, मैत्री अपार्टमेंट, फेज – बी, रिसाली, दुर्ग ( छत्तीसगढ़) मो  9425592588

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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English Literature – Poetry ☆ Anonymous litterateur of Social Media # 175 ☆ Captain Pravin Raghuvanshi, NM ☆

Captain (IN) Pravin Raghuvanshi, NM

? Anonymous Litterateur of Social Media # 175 (सोशल मीडिया के गुमनाम साहित्यकार # 175) ?

Captain Pravin Raghuvanshi NM—an ex Naval Officer, possesses a multifaceted personality. He served as a Senior Advisor in prestigious Supercomputer organisation C-DAC, Pune. He was involved in various Artificial Intelligence and High-Performance Computing projects of national and international repute. He has got a long experience in the field of ‘Natural Language Processing’, especially, in the domain of Machine Translation. He has taken the mantle of translating the timeless beauties of Indian literature upon himself so that it reaches across the globe. He has also undertaken translation work for Shri Narendra Modi, the Hon’ble Prime Minister of India, which was highly appreciated by him. He is also a member of ‘Bombay Film Writer Association’. He is also the English Editor for the web magazine www.e-abhivyakti.com.  

Captain Raghuvanshi is also a littérateur par excellence. He is a prolific writer, poet and ‘Shayar’ himself and participates in literature fests and ‘Mushayaras’. He keeps participating in various language & literature fests, symposiums and workshops etc.

Recently, he played an active role in the ‘International Hindi Conference’ at New Delhi. He presided over the “Session Focused on Language and Translation” and also presented a research paper. The conference was organized by Delhi University in collaboration with New York University and Columbia University.

हिंदी साहित्य – आलेख ☆ अंतर्राष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन ☆ कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

In his Naval career, he was qualified to command all types of warships. He is also an aviator and a Sea Diver; and recipient of various awards including ‘Nao Sena Medal’ by the President of India, Prime Minister Awards and C-in-C Commendation. He has won many national and international awards.

He is also an IMM Ahmedabad alumnus.

His latest quest involves writing various books and translation work including over 100 Bollywood songs for various international forums as a mission for the enjoyment of the global viewers. Published various books and over 3000 poems, stories, blogs and other literary work at national and international level. Felicitated by numerous literary bodies..!

? English translation of Urdu poetry couplets of Anonymous litterateur of Social Media # 175 ?

☆☆☆☆☆

Lasting Beauty

☆☆

वैसे तो हर चीज़ अपने ही

वक्त पर अच्छी लगती है,

बस एक तुम ही हो जो

हर वक्त अच्छे लगते हो…!

☆☆

Everything looks good at

its own given time…

You are the only one who

looks good all the time…!

Perplexity

☆☆

कम सबके हो

गए हैं आसान बहुत…

अब यहाँ कौन समझेगा

मेरी मुश्किलों को भला…!

☆☆

Everyone’s task has

become so easy here…

Who will understand

my problems now…!

☆☆☆☆☆

Lapidary… ☆

☆☆

मेरे टूटने का जिम्मेदार

मेरा जौहरी ही है,

उसी की ये जिद थी कि

मुझे और तराशा जाए…!

☆☆

My jeweler should only be held

responsible for my shattering…

It was he who insisted that

I should be polished further..!

☆☆☆☆☆

Who cares…

☆☆

जब रिश्ता ही टूट गया

तेरी सियाह ज़ुल्फों से

वो अब लाख ख़म खाएँ

तो हमारी बला से…!

☆☆

When relationship itself has broken

down with your dark hair curls…

Who the hell cares, even if they swirl

around a million times over…l

☆☆☆☆☆

© Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Pune

≈ Editor – Shri Hemant Bawankar/Editor (English) – Captain Pravin Raghuvanshi, NM ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सलिल प्रवाह # 173 ☆ सॉनेट – ज्ञान ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ☆

आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

(आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ जी संस्कारधानी जबलपुर के सुप्रसिद्ध साहित्यकार हैं। आपको आपकी बुआ श्री महीयसी महादेवी वर्मा जी से साहित्यिक विधा विरासत में प्राप्त हुई है । आपके द्वारा रचित साहित्य में प्रमुख हैं पुस्तकें- कलम के देव, लोकतंत्र का मकबरा, मीत मेरे, भूकंप के साथ जीना सीखें, समय्जयी साहित्यकार भगवत प्रसाद मिश्रा ‘नियाज़’, काल है संक्रांति का, सड़क पर आदि।  संपादन -८ पुस्तकें ६ पत्रिकाएँ अनेक संकलन। आप प्रत्येक सप्ताह रविवार को  “साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह” के अंतर्गत आपकी रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है सॉनेट – ज्ञान )

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 173 ☆

☆ सॉनेट – ज्ञान ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ☆

सुमति-कुमति हर हृदय बसी हैं।

सुमति ज्ञान की राह दिखाती।

कुमति सत्य-पथ से भटकाती।।

अपरा-परा न दूर रही हैं।।

परा मूल है, छाया अपरा।

पुरुष-प्रकृति सम हैं यह मानो।

अपरा नश्वर है सच मानो।।

अविनाशी अक्षरा है परा।।

उपज परा से मिले परा में।

जीव न जाने जा अपरा में।

मिले परात्पर आप परा में।।

अपरा राह साध्य यह जानो।

परा लक्ष्य अक्षर पहचानो।

भूलो भेद, ऐक्य अनुमानो।।

©  आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

८-२-२०२२

संपर्क: विश्ववाणी हिंदी संस्थान, ४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१,

चलभाष: ९४२५१८३२४४  ईमेल: [email protected]

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – सतर्क रहना ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं।)

? संजय दृष्टि – सतर्क रहना ? ?

मादा कौआ

सेती है

अपने अंडों के साथ

कोयल के अंडे,

माटी देती है

समान पोषण

आम और

बबूल के बीज को,

फिर

‘मायका’ घोेंसला छोड़कर

कोयल उड़ जाती है,

कौए से रिश्ता भी

रखना नहीं चाहती है,

उधर बबूल

घेरने लगता है

अपने चारों ओर

काँटों की बाड़,

अनुभूति से

स्पर्श तक लहुलुहान,

कोयल और बबूल

एक स्वर में

देने लगते हैं संदेश-

सतर्क रहना

कौओं की जाति

और उपजाऊ माटी से,

अंतर्मन को चीरकर निकली

व्यथा की बूँदें

आहत कौआ, दरकती माटी

फिर जुट जाते हैं

नये अंडे सेने

नये बबूल को जन्म देने,

‘मैं और मेरा’ के

दयनीय पैरोकारो!

तुम्हारी विवशता

सहानुभूति उपजाती,

अपने भ्रूण की रक्षा

और पोषण के लिए

तुम्हें हमेशा चाहिएँ

कौआ और माटी,

अपनी असमर्थता में

गर्क रहना, पर सुनो-

अपनी ही कृतघ्नता से

सतर्क रहना..!

© संजय भारद्वाज 

(दि.10 दिसंबर 2015, प्रातः 8:30 बजे)

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

💥 🕉️ मार्गशीर्ष साधना सम्पन्न हुई। अगली साधना की सूचना हम शीघ्र करेंगे। 🕉️ 💥

नुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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