हिन्दी साहित्य – कविता ☆ भूल गया चिठ्ठी ले जाना आज कबूतर जाने क्यूँ… ☆ श्री अरुण कुमार दुबे ☆

श्री अरुण कुमार दुबे

(वरिष्ठ साहित्यकार श्री अरुण कुमार दुबे जी, उप पुलिस अधीक्षक पद से मध्य प्रदेश पुलिस विभाग से सेवा निवृत्त हुए हैं । संक्षिप्त परिचय ->> शिक्षा – एम. एस .सी. प्राणी शास्त्र। साहित्य – काव्य विधा गीत, ग़ज़ल, छंद लेखन में विशेष अभिरुचि। आज प्रस्तुत है, आपकी एक भाव प्रवण रचना “भूल गया चिठ्ठी ले जाना आज कबूतर जाने क्यूँ“)

✍ भूल गया चिठ्ठी ले जाना आज कबूतर जाने क्यूँ… ☆ श्री अरुण कुमार दुबे 

रात गुजारी मेरे जैसी उसने रोकर जाने क्यूँ

वो कहता है अपने दिल को फिर भी पत्थर जाने क्यूँ

 *

 दुनिया में जितनी भी नदियाँ आखिर मिलती है आकर

अपनी ही पर हद में रहता हरदम सागर जाने क्यूँ

 *

प्यार भरे दिल को दे राहत पहले ये पाती लाकर

भूल गया चिठ्ठी ले जाना आज कबूतर जाने क्यूँ

 *

मुफ़लिस का दिल सिर्फ दुखा है और नहीं कुछ पाप किया

रूठा रूठा मुझसे रहता बोल मुक़द्दर जाने क्यूँ

 *

धोबी के कहने से क्या था राम हक़ीक़त से वाकिफ़

भेज दिया है सीता जी को वन में रघुवर जाने क्यूँ

 *

आसन पर यह पूजा जाता कैसी है इसकी किस्मत

राह पड़े पत्थर पर लगती सबकी ठोकर जाने क्यूँ

 *

धोखा घात कपट फ़ितरत में आज हुआ इनकी शामिल

अपनों का ही पीठ हमारी खाती ख़ंजर जाने क्यूँ

 *

महनत कश पत्थर पर अकसर नींद बड़ी सुखकर लेते

नींद अरुण से दूर करे मखमल का बिस्तर जाने क्यूँ

© श्री अरुण कुमार दुबे

सम्पर्क : 5, सिविल लाइन्स सागर मध्य प्रदेश

सिरThanks मोबाइल : 9425172009 Email : arunkdubeynidhi@gmail. com

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कादम्बरी # 39 – तुम न होते तो, हम किधर जाते… ☆ आचार्य भगवत दुबे ☆

आचार्य भगवत दुबे

(संस्कारधानी जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर आचार्य भगवत दुबे जी को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया है।सीमित शब्दों में आपकी उपलब्धियों का उल्लेख अकल्पनीय है। आचार्य भगवत दुबे जी के व्यक्तित्व एवं कृतित्व की विस्तृत जानकारी के लिए कृपया इस लिंक पर क्लिक करें 👉 ☆ हिन्दी साहित्य – आलेख – ☆ आचार्य भगवत दुबे – व्यक्तित्व और कृतित्व ☆. आप निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणा स्त्रोत हैं। हमारे विशेष अनुरोध पर आपने अपना साहित्य हमारे प्रबुद्ध पाठकों से साझा करना सहर्ष स्वीकार किया है। अब आप आचार्य जी की रचनाएँ प्रत्येक मंगलवार को आत्मसात कर सकेंगे।  आज प्रस्तुत हैं आपकी एक भावप्रवण रचना – तुम न होते तो, हम किधर जाते।)

✍  साप्ताहिक स्तम्भ – ☆ कादम्बरी # 39 – तुम न होते तो, हम किधर जाते… ☆ आचार्य भगवत दुबे ✍

रात भर, आप जो ठहर जाते 

बीत, तनहाई के पहर जाते

*

रूठकर वो चले गये मुझसे 

जाते-जाते तो बोलकर जाते

*

थोथे ईमान-धर्म हैं उनके 

अपने वादों से जो मुकर जाते

*

हादसों में जो घर उजड़ते हैं 

कितने सपने, वहाँ बिखर जाते

*

छूट गर्दिश में सब गये साथी 

तुम न होते तो, हम किधर जाते

*

साथ तेरा न जो मिला होता 

जिन्दगी के, कठिन सफर जाते

https://www.bhagwatdubey.com

© आचार्य भगवत दुबे

82, पी एन्ड टी कॉलोनी, जसूजा सिटी, पोस्ट गढ़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – प्रसव ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं।)

? संजय दृष्टि – प्रसव ? ?

मनुष्य जाति में

होता है

एकल प्रसव,

कभी-कभार जुड़वाँ

और दुर्लभ से दुर्लभतम

तीन या चार,

डरता हूँ,

ये निरंतर

प्रसूत होती लेखनी

कोई अनहोनी न करा दे,

प्रतिपल जन्मती रचनाएँ

मुझे जाति बहिष्कृत न करा दें।

© संजय भारद्वाज 

(रात्रि 9:56 बजे, शुक्र. 4.12.2015)

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

💥 🕉️ मार्गशीर्ष साधना सम्पन्न हुई। अगली साधना की सूचना हम शीघ्र करेंगे। 🕉️ 💥

नुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ मनोज साहित्य # 115 – मनोज के दोहे… ☆ श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” ☆

श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं सजग अग्रज साहित्यकार श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” जी  के साप्ताहिक स्तम्भ  “मनोज साहित्य ” में आज प्रस्तुत है “मनोज के दोहे…”। आप प्रत्येक मंगलवार को आपकी भावप्रवण रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे।

✍ मनोज साहित्य # 115 – मनोज के दोहे… ☆

1 विधान

विधि का यही विधान है, करते जैसा कर्म।

प्रतिफल जीवन में मिले, जाना हमने मर्म।।

*

2 जहाज

जीवन एक जहाज है, सुखद लगे उस पार।

सद्कर्मों की नदी में, फँसें नहीं मझधार।।

*

3 पलक

पलक पाँवड़े बिछ गए, राम-लला के द्वार।

दर्शन के व्याकुल नयन, पहुँच रहे दरबार।।

*

4 संदूक

पाँच सदी पश्चात यह, आया शुभ दिन आज।

न्यौछावर संदूक हैं, दिखा राम का काज।।

*

5 मरुथल

नदियों का गठजोड़ यह, दिशा दिखाता नेक।

मरुथल में अब हरितमा, उचित कदम है एक।।

 ©  मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संपर्क – 58 आशीष दीप, उत्तर मिलोनीगंज जबलपुर (मध्य प्रदेश)- 482002

मो  94258 62550

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ लेखनी सुमित्र की # 175 – गीत – बैठ गया जब तेरे पास…. ☆ डॉ. राजकुमार तिवारी “सुमित्र” ☆

डॉ राजकुमार तिवारी ‘सुमित्र’

(संस्कारधानी  जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर डॉ. राजकुमार “सुमित्र” जी  को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी  हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया।  वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणास्रोत हैं। आज प्रस्तुत हैं  आपका एक अप्रतिम गीत – बैठ गया जब तेरे पास।)

✍ साप्ताहिक स्तम्भ – लेखनी सुमित्र की # 175 – गीत  –  बैठ गया जब तेरे पास…  ✍

बैठ गया जब तेरे पास

शंका शूल जाले, बन घास।

दिन में सोया सपना देखा

अपने बीच खिंची है रेखा

तब बड़ी देर तक मैं रोया

आँसू से ही आनन धोया

 *

मन बेहद हो गया उदास

बैठ गया जब तेरे पास

शंका शूल जाले बन घास

सपनों ने तोड़ा उपवास।।

 *

तरस रहा मन देखा तूने

मुरझ रहा मन देखा तूने

जब तुमने उठकर बाँह गही

शंका तब बिल्कुल नहीं रही।

 *

गाने लगी कंठ की प्यास

बैठ गया जब तेरे पास

शंका शूल जले बन घास

जुड़े सभी टूटे विश्वास।

 

© डॉ राजकुमार “सुमित्र”

112 सर्राफा वार्ड, सिटी कोतवाली के पीछे चुन्नीलाल का बाड़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ अभिनव गीत # 173 – “पेड़ सभी बन गये बिजूके…” ☆ श्री राघवेंद्र तिवारी ☆

श्री राघवेंद्र तिवारी

(प्रतिष्ठित कवि, रेखाचित्रकार, लेखक, सम्पादक श्रद्धेय श्री राघवेंद्र तिवारी जी  हिन्दी, दूर शिक्षा, पत्रकारिता व जनसंचार,  मानवाधिकार तथा बौद्धिक सम्पदा अधिकार एवं शोध जैसे विषयों में शिक्षित एवं दीक्षित। 1970 से सतत लेखन। आपके द्वारा सृजित ‘शिक्षा का नया विकल्प : दूर शिक्षा’ (1997), ‘भारत में जनसंचार और सम्प्रेषण के मूल सिद्धांत’ (2009), ‘स्थापित होता है शब्द हर बार’ (कविता संग्रह, 2011), ‘​जहाँ दरक कर गिरा समय भी​’​ ( 2014​)​ कृतियाँ प्रकाशित एवं चर्चित हो चुकी हैं। ​आपके द्वारा स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम के लिए ‘कविता की अनुभूतिपरक जटिलता’ शीर्षक से एक श्रव्य कैसेट भी तैयार कराया जा चुका है। आज प्रस्तुत है आपका एक अभिनव गीत  पेड़ सभी बन गये बिजूके...)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ # 173 ☆।। अभिनव गीत ।। ☆

☆ “पेड़ सभी बन गये बिजूके...” ☆ श्री राघवेंद्र तिवारी

अधबहियाँ छाँव

के सलूके

पहिन धूप ढूंढती-

छेद कुछ रफू के

 

आ बैठी रेस्तराँ

 दोपहरी

देख रही मीनू को

टिटहरी

 

हैं यहाँ तनाव

फालतू के

 

स्वेद सनी गीली

बहस सी

सभी ओर असुविधा

उमस सी

 

मैके में मौसमी

बहू के

 

श्वेत- श्याम धरती

के द्वीपों

गरमी है खुले

अन्तरीपों

 

पेड़ सभी बन गये

बिजूके

 

इधर- उधर भटकी

छायायें

अब उन्हें कहो कि

घर चली जायें

 

बादल शौकीन

कुंग-फू के

©  श्री राघवेन्द्र तिवारी

25-11-2023

संपर्क​ ​: ई.एम. – 33, इंडस टाउन, राष्ट्रीय राजमार्ग-12, भोपाल- 462047​, ​मोब : 09424482812​

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कविता # 223 ☆ “क्यों भागें अब लड़कियां” ☆ श्री जय प्रकाश पाण्डेय ☆

श्री जय प्रकाश पाण्डेय

(श्री जयप्रकाश पाण्डेय जी की पहचान भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी के अतिरिक्त एक वरिष्ठ साहित्यकार की है। वे साहित्य की विभिन्न विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं। उनके  व्यंग्य रचनाओं पर स्व. हरीशंकर परसाईं जी के साहित्य का असर देखने को मिलता है। परसाईं जी का सानिध्य उनके जीवन के अविस्मरणीय अनमोल क्षणों में से हैं, जिन्हें उन्होने अपने हृदय एवं साहित्य में  सँजो रखा है। आज प्रस्तुत है आपकी एक विचारणीय कविता – “क्यों भागें अब लड़कियां)

☆ कविता  क्यों भागें अब लड़कियां☆ श्री जय प्रकाश पाण्डेय

अब लड़कियां

घर से नहीं भागतीं

क्योंकि उन्होंने

पढ़ ली है कविता

कवि आलोक धन्वा की,

अब पृथ्वी घूमती हुई

चलीआती है उनके

बैचेन पैरों के पास,

अब वे उड़ाती है पतंग

हवा की धारा के खिलाफ

बेकार पड़ी चीजों को

वे बटोर लेतीं हैं

फटे जीन्स की जेब में

हरियाली की तरह

© जय प्रकाश पाण्डेय

416 – एच, जय नगर, आई बी एम आफिस के पास जबलपुर – 482002  मोबाइल 9977318765

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ तिरंगे में लिपटे बेटे की माँ… ☆ श्री राजेन्द्र तिवारी ☆

श्री राजेन्द्र तिवारी

(ई-अभिव्यक्ति में संस्कारधानी जबलपुर से श्री राजेंद्र तिवारी जी का स्वागत। इंडियन एयरफोर्स में अपनी सेवाएं देने के पश्चात मध्य प्रदेश पुलिस में विभिन्न स्थानों पर थाना प्रभारी के पद पर रहते हुए समाज कल्याण तथा देशभक्ति जनसेवा के कार्य को चरितार्थ किया। कादम्बरी साहित्य सम्मान सहित कई विशेष सम्मान एवं विभिन्न संस्थाओं द्वारा सम्मानित, आकाशवाणी और दूरदर्शन द्वारा वार्ताएं प्रसारित। हॉकी में स्पेन के विरुद्ध भारत का प्रतिनिधित्व तथा कई सम्मानित टूर्नामेंट में भाग लिया। सांस्कृतिक और साहित्यिक क्षेत्र में भी लगातार सक्रिय रहा। हम आपकी रचनाएँ समय समय पर अपने पाठकों के साथ साझा करते रहेंगे। आज प्रस्तुत है आपकी एक विचारणीय कविता तिरंगे में लिपटे बेटे की माँ…’।)

☆ कविता – 🇮🇳 तिरंगे में लिपटे बेटे की माँ… ☆

देश की सीमा पर ,शहीद बेटे को, तिरंगे में लिपटा देख कर,मां की आखों से आंसू नहीं गिरते, वो एकटक अपने शहीद बेटे को तिरंगे में लिपटा देखती रहती है, मां की अभिव्यक्ति……

*********

सज के तिरंगे में, आया है मेरा लाल,

कोई नजर उतारो.

सीमा पर मस्तक ऊंचा कर,सोया   है मेरा लाल,

कोई नजर उतारो.

बचपन से ही वर्दी में वो,

घर में खेला करता था,

जान देश की,देश को दूंगा,

सबसे कहता फिरता था,

आज उसी वर्दी में आया,

करके ऊंचा भाल,

कोई नजर उतारो.

सदा कहा करता था मां,

तेरा कर्ज उतारूंगा,

सीने पर गोली खाऊंगा,

तुझको न लजाऊंगा,

सीने पर झंडा लेकर,

सोया है मेरा लाल,

कोई नजर उतारो.

ईश्वर तुमने कोख में मेरी,

कमी अगर न की होती,

मातृ भूमि पर शीश चढ़ाने,

सारे बेटे दे देती,

रक्त भरी सीमा की मिट्टी,

पाकर हुई निहाल,

कोई नजर उतारो,

सज के तिरंगे में,आया है मेरा

लाल,

कोई नजर उतारो,

कोई नजर उतारो…

© श्री राजेन्द्र तिवारी  

संपर्क – 70, रामेश्वरम कॉलोनी, विजय नगर, जबलपुर

मो  9425391435

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 163 ☆ # दिल और दिमाग # ☆ श्री श्याम खापर्डे ☆

श्री श्याम खापर्डे

(श्री श्याम खापर्डे जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी हैं। आप प्रत्येक सोमवार पढ़ सकते हैं साप्ताहिक स्तम्भ – क्या बात है श्याम जी । आज प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण कविता “# दिल और दिमाग #”

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 163 ☆

☆ # दिल और दिमाग #

दिल और दिमाग में

आजकल द्वंद

चलता रहता है

दिल कुछ और चाहता है

दिमाग कहीं

और बहता है

दोनों अजीब सी

कशमकश में हैं

दोनों असमंजस में हैं

दोनों अपने अपने

इरादों पर अटल है

दोनों निष्पाप, निश्छल है

दोनों एक ही विषय पर

अलग अलग राय

रखतें हैं

दोनों इसी द्वंद में

दिन-रात

लगे रहते हैं

दिल,

आजकल

हवा के

रूख को देखकर

अपनी जिद को

दूर फेंककर

दिमाग का

गुलाम हो गया है

अपनी अस्मिता

खो गया है

और

दिमाग

अपनी कामयाबी पर

जश्न मना रहा है

फूला नहीं समा रहा है

और

दिल की गुलामी पर

ठहाके लगा रहा है /

© श्याम खापर्डे

फ्लेट न – 402, मैत्री अपार्टमेंट, फेज – बी, रिसाली, दुर्ग ( छत्तीसगढ़) मो  9425592588

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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English Literature – Poetry ☆ Anonymous litterateur of Social Media # 174 ☆ Captain Pravin Raghuvanshi, NM ☆

Captain (IN) Pravin Raghuvanshi, NM

? Anonymous Litterateur of Social Media # 174 (सोशल मीडिया के गुमनाम साहित्यकार # 174) ?

Captain Pravin Raghuvanshi NM—an ex Naval Officer, possesses a multifaceted personality. He served as a Senior Advisor in prestigious Supercomputer organisation C-DAC, Pune. He was involved in various Artificial Intelligence and High-Performance Computing projects of national and international repute. He has got a long experience in the field of ‘Natural Language Processing’, especially, in the domain of Machine Translation. He has taken the mantle of translating the timeless beauties of Indian literature upon himself so that it reaches across the globe. He has also undertaken translation work for Shri Narendra Modi, the Hon’ble Prime Minister of India, which was highly appreciated by him. He is also a member of ‘Bombay Film Writer Association’. He is also the English Editor for the web magazine www.e-abhivyakti.com.  

Captain Raghuvanshi is also a littérateur par excellence. He is a prolific writer, poet and ‘Shayar’ himself and participates in literature fests and ‘Mushayaras’. He keeps participating in various language & literature fests, symposiums and workshops etc.

Recently, he played an active role in the ‘International Hindi Conference’ at New Delhi. He presided over the “Session Focused on Language and Translation” and also presented a research paper. The conference was organized by Delhi University in collaboration with New York University and Columbia University.

हिंदी साहित्य – आलेख ☆ अंतर्राष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन ☆ कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

In his Naval career, he was qualified to command all types of warships. He is also an aviator and a Sea Diver; and recipient of various awards including ‘Nao Sena Medal’ by the President of India, Prime Minister Awards and C-in-C Commendation. He has won many national and international awards.

He is also an IMM Ahmedabad alumnus.

His latest quest involves writing various books and translation work including over 100 Bollywood songs for various international forums as a mission for the enjoyment of the global viewers. Published various books and over 3000 poems, stories, blogs and other literary work at national and international level. Felicitated by numerous literary bodies..!

? English translation of Urdu poetry couplets of Anonymous litterateur of Social Media # 174 ?

☆☆☆☆☆

Wasteful Moments

☆☆

ज़िंदगी का हर लम्हा

कुछ यूं बर्बाद हुआ है,

कि उसका अहसास भी

बरबादी के बाद ही हुआ है…!

☆☆

Every moment of the life has

been wasted in such a way…

That its realisation ocurred

only after its wasteful loss…!

☆☆☆☆☆

Sacrosanct Epic

☆☆

लिख कर रखा है मैंने

तुम्हें किताबों की तरह,

मेरे बाद भी तुम दुनियाँ में

दिल से ही पढे जाओगे…!

☆☆

I have manuscripted you

sacrosanctly like an epic,

Even after me, you’ll be read

from the heart only…!

☆☆☆☆☆

Quyamat…the Catastrophe…!

☆☆

अगर फिर किसी मोड़ पर मिलूँ

तो मुँह जरूर फ़ेर लेना

वरना, पुराना इश्क़ है, अगर दुबारा

मिले तो कयामत ही आ जाएगी…!

☆☆

If I ever meet you aat some point,

you must turn away your face…

It’s an age-old love, meeting again,

will certainly result in catastrophe…!

☆☆☆☆☆

Existential Loss

☆☆

बड़े लोगों से मिलने में

हमेशा फ़ासला रखना,

जहाँ दरिया समुंदर से मिला

वो दरिया नहीं रहता…!

– बशीर बद्र

☆☆

Always avoid meeting with

big influential people,

Whenever the river meets the

ocean, it ceases to exist…!

☆☆☆☆☆

© Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Pune

≈ Editor – Shri Hemant Bawankar/Editor (English) – Captain Pravin Raghuvanshi, NM ≈

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