श्री आशिष मुळे
☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ दिन-रात # 32 ☆
☆ कविता ☆ “शिकस्त-ए-गुलशन…” ☆ श्री आशिष मुळे ☆
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न जाने क्यों आजकल
हिंमत नहीं होती हैं
हार और जीत में
ग़म या ख़ुशी नहीं होती हैं
*
चाहत की राह पर
जिंदगी चलती है
मुकाम पर न जानें
हसीं क्यों गायब होती हैं
*
उम्र उम्र की
कहानी अलग अलग है
न जानें क्यों इस मुकाम पर
किताबों के पन्ने खाली है
*
सोचू उन खाली पन्नों में
कही छिपे गुल खिलेंगे
वो उन्हें मगर अभी खिलने नहीं देंगे
कफ़न पर मेरे सैकड़ों उछालेंगे
*
कैसी तेरी दुनियां, कैसी राह-ए-जिंदगी
या इलाही…ये कैसी उम्र शिकस्ती
जब इश्क था तब समझ नहीं
और आज समझ है, तो मोहब्बत नहीं…
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© श्री आशिष मुळे
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈