हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ काव्य धारा # 203 ☆ राम का नित ध्यान है… ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

(आज प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी  द्वारा रचित – “राम का नित ध्यान है। हमारे प्रबुद्ध पाठकगण प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी  काव्य रचनाओं को प्रत्येक शनिवार आत्मसात कर सकेंगे.।) 

☆ काव्य धारा # 203 ☆ राम का नित ध्यान है ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

पुण्य सलिला सरयू तट पर बसी शांति प्रदायानी

जन्म नगरी राम की है अयोध्या अति पावनी

*

स्वप्न पावन तीर्थ पुरियों में प्रथम जो मान्य है

सकल भारतवर्ष की है प्रिय सतत सन्मानिनी

*

सहन की जिसने उपेक्षा विधर्मी प्रतिकार की

सहेजे चुप रही मन में भावना उद्धार की

*

न्याय सदियों बाद पा रही नूतन सृजन

मन में आकाँक्षा सजाए राम के दरबार की

*

एक लंबी प्रतीक्षा के बाद आई है अब वह घड़ी

राम भक्तों के मन में भी मची है दर्शनों को हड़बड़ी

*

चाहते सब पूर्ण हो अब राम मंदिर का सृजन

जहां कर दर्शन प्रभु का पाए मन शांति बड़ी

*

राम हैं आदर्श जग के अपने सद व्यवहार से

सबके प्रिय औ’ पूज्य भी हैं सहज पावन प्यार से

*

विश्व को अनुराग उन पर उनके नित आदर्श पर

सभी मानव जाति को उनका सतत आधार है

*

सभी को सुख शांति दाई राम जी भगवान हैं

जिनको हर धर्मावलंबी व्यक्ति एक समान है

*

भेद छोटे बड़े का कोई दृष्टि में उनकी नहीं

हर एक की जीवन दशा पर सदा उनका ध्यान है

*

सदा सबका हो भला कोई ना कहीं विकार हो

दीन दुखियों का सदा कल्याण हो उद्धार हो

*

🙏💐जगत में सुख शांति सद्भावना विश्वास से प्राणियों के मनों में शुभकामना हो प्यार हो💐🙏

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

ए २३३ , ओल्ड मीनाल रेजीडेंसी  भोपाल ४६२०२३

मो. 9425484452

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ रचना संसार #29 – गीत – आहत स्वप्न हुए सारे हैं… ☆ सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ’ ☆

सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ’

(संस्कारधानी जबलपुर की सुप्रसिद्ध साहित्यकार सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ ‘जी सेवा निवृत्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश, डिविजनल विजिलेंस कमेटी जबलपुर की पूर्व चेअर पर्सन हैं। आपकी प्रकाशित पुस्तकों में पंचतंत्र में नारी, पंख पसारे पंछी, निहिरा (गीत संग्रह) एहसास के मोती, ख़याल -ए-मीना (ग़ज़ल संग्रह), मीना के सवैया (सवैया संग्रह) नैनिका (कुण्डलिया संग्रह) हैं। आप कई साहित्यिक संस्थाओं द्वारा पुरस्कृत एवं सम्मानित हैं। आप प्रत्येक शुक्रवार सुश्री मीना भट्ट सिद्धार्थ जी की अप्रतिम रचनाओं को उनके साप्ताहिक स्तम्भ – रचना संसार के अंतर्गत आत्मसात कर सकेंगे। आज इस कड़ी में प्रस्तुत है आपकी एक अप्रतिम गीतआहत स्वप्न हुए सारे हैं

? रचना संसार # 29 – गीत – आहत स्वप्न हुए सारे हैं…  ☆ सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ’ ? ?

(मात्रा भार 16/14)

☆ 

सन्नाटा गलियों में पसरा,

बाँध धैर्य का टूट गया।

सकल विश्व में संकट छाया,

देख लुटेरा लूट गया।।

 *

गंगा तट लाशों का डेरा,

पड़ी भँवर जीवन नैया।

सस्ती देखो मौत हुई है,

छिपे कहाँ थाम खिवैया।।

धीरज अब  पंथी ने खोया,

सारा तन ये कूट गया।।

 *

नित्य हलाहल धरती पीती,

नील गगन खामोश खड़ा।

जीवन राग द्वेष में बीता,

पिँजरे में तन कैद पड़ा।।

बैठे किस्मत  को कोसें सब,

घड़ा पाप का फूट गया।

 *

आज सृजन भी मौन हुआ है,

भाव शब्द का रूठ रहा।

मानवता की बात करो मत,

हरा वृक्ष भी ठूँठ कहा।।

बना शिकारी देख मनुज है,

सँग अपनों का छूट गया।

 *

आहत स्वप्न हुए सारे हैं,

अपनों ने हैं घाव दिए ।

घोर तिमिर की छाया है अब,

उजियारे हैं होंठ सिए।।

टूटी हर मर्यादाएँ अब,

छोड़ धरा रँगरूट गया।।

© सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ’

(सेवा निवृत्त जिला न्यायाधीश)

संपर्क –1308 कृष्णा हाइट्स, ग्वारीघाट रोड़, जबलपुर (म:प्र:) पिन – 482008 मो नं – 9424669722, वाट्सएप – 7974160268

ई मेल नं- [email protected], [email protected]

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ साहित्य निकुंज #256 ☆ भावना के दोहे – गुड़िया, फूल और तितली☆ डॉ. भावना शुक्ल ☆

डॉ भावना शुक्ल

(डॉ भावना शुक्ल जी  (सह संपादक ‘प्राची‘) को जो कुछ साहित्यिक विरासत में मिला है उसे उन्होने मात्र सँजोया ही नहीं अपितु , उस विरासत को गति प्रदान  किया है। हम ईश्वर से  प्रार्थना करते हैं कि माँ सरस्वती का वरद हस्त उन पर ऐसा ही बना रहे। आज प्रस्तुत हैं भावना के दोहे )

☆ साप्ताहिक स्तम्भ  # 256 – साहित्य निकुंज ☆

☆ भावना के दोहे  – गुड़िया, फूल और तितली ☆ डॉ भावना शुक्ल ☆

फूलों पर मंडरा रही, तितली रानी खूब।

बैठी हो चुपचाप क्यों, नहीं लगी क्या ऊब।।

*

 फूलों का रस चूसती, खुश हो जाते फूल।

साथ फूल का मिल रहा, उसको यही कबूल।।

*

उड़ती तितली देखती, पकडूँ उसको हाथ।

मन तो उसका कर रहा, खेलूँ उसके साथ।।

*

सौरभ की बगिया में, लगी झूमती खूब।

हरियाली की हरितिमा, देख रही है डूब।।

*

तितली देखें राह में, गुड़िया रानी पास।

मंद-मंद मुस्कान है, बस छूने की आस।।

© डॉ भावना शुक्ल

सहसंपादक… प्राची

प्रतीक लॉरेल, J-1504, नोएडा सेक्टर – 120,  नोएडा (यू.पी )- 201307

मोब. 9278720311 ईमेल : [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ इंद्रधनुष #238 ☆ आज लुटेरे घूम रहे हैं… ☆ श्री संतोष नेमा “संतोष” ☆

श्री संतोष नेमा “संतोष”

(आदरणीय श्री संतोष नेमा जी  कवितायें, व्यंग्य, गजल, दोहे, मुक्तक आदि विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं. धार्मिक एवं सामाजिक संस्कार आपको विरासत में मिले हैं. आपके पिताजी स्वर्गीय देवी चरण नेमा जी ने कई भजन और आरतियाँ लिखीं थीं, जिनका प्रकाशन भी हुआ है. आप डाक विभाग से सेवानिवृत्त हैं. आपकी रचनाएँ राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में लगातार प्रकाशित होती रहती हैं। आप  कई सम्मानों / पुरस्कारों से सम्मानित/अलंकृत हैं. “साप्ताहिक स्तम्भ – इंद्रधनुष” की अगली कड़ी में आज प्रस्तुत है  आपकी रचना आज लुटेरे घूम रहे हैं…  आप  श्री संतोष नेमा जी  की रचनाएँ प्रत्येक शुक्रवार आत्मसात कर सकते हैं।)

 ☆ साहित्यिक स्तम्भ – इंद्रधनुष # 238 ☆

☆आज लुटेरे घूम रहे हैं☆ श्री संतोष नेमा ☆

भीड़ भाड़ से बच  कर रहना

जेब कटे तो फिर  ना कहना

रखते नजर जेब पर आपकी

पर्स  संभालो  अपनी  बहना

साथ वक्त के तुम भी ढहना

पहनो मत स्वर्ण  के  गहना

आज   लुटेरे   घूम   रहे  हैं

गड़ा के अपने लोभी  नयना

© संतोष  कुमार नेमा “संतोष”

वरिष्ठ लेखक एवं साहित्यकार

आलोकनगर, जबलपुर (म. प्र.) मो 70003619839300101799

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ “खोज…” ☆ सुश्री प्रणिता खंडकर ☆

सुश्री प्रणिता खंडकर

 ☆ कविता  – “खोज” 🦋 ☆ सुश्री प्रणिता खंडकर ☆

कैसे खो गया, कहाँ खो गया,

चलो ढूंढ लेते हैं हम सब!

किसने चुराया, किसने छिपाया,

चलो ढूंढ निकालें हम सब!

*

फाड़ के फेंके इस नकाब को,

ठुकरा के ये जाली बड़प्पन,

सारी समस्याएँ और चिंता,

उतार लो आँखों से ये ऐनक!

*

करे संपर्क दोस्तों से फिर से,

मिलने का संकल्प करे हम,

स्थलकाल को निश्चित करके,

करें आमंत्रित वो सुनहरे पल!

*

अवश्य करना नियम का पालन,

अपना अहम्, न लाना भीतर,

साथी पुराने बनकर केवल,

कदम बढाना अपना अंदर!

*

खेल, मस्ती और जी भर बातें,

खिलखिला के हँसेगे फिर से,

खुशियों को लगाएंगे गले,

यादों की बारात से मिल के!

*

न गुम हुआ, न खोया है,

ये तो अपने ही पास है,

चंचल, अल्हड, बचपन ये,

मन में संजोकर रखा है!

   ☆        

© सुश्री प्रणिता खंडकर

ईमेल – [email protected] वाॅटसप संपर्क – 98334 79845.

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – मंथन ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं।)

? संजय दृष्टि – मंथन ? ?

?

मंथन के लिए

अनिवार्य नहीं,

सुर और

असुर होना,

मंथन,

विचार कर सकनेवालों

के बीच होता है,

ये बात दीगर है कि

जो नहीं चाहते

मथना विचारों को,

हठधर्मिता और

दुराग्रह के चलते

न चर्चा करते हैं,

न बदलते हैं विषय,

शनैः शनैः

असुरों के

पक्षधर हो जाते हैं..,

सत्याग्रही,

सदैव परिष्कृत करते रहते हैं

वैचारिकता,

भांजते और

माँजते रहते हैं विचार,

मंथन अनिवार्य है,

हम न चाहें तब भी

मथना अखंड रहता है..,

अलबत्ता,

हमारा विमर्श

तय करेगा कि

भविष्य की पुस्तक में

हम असुर दर्ज़ होंगे

या सुर कहलाएँगे..!

?

© संजय भारद्वाज  

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय, एस.एन.डी.टी. महिला विश्वविद्यालय, न्यू आर्ट्स, कॉमर्स एंड साइंस कॉलेज (स्वायत्त) अहमदनगर संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆ 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

💥  श्री लक्ष्मी-नारायण साधना सम्पन्न हुई । अगली साधना की जानकारी शीघ्र ही दी जाएगी💥 🕉️   

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ समय चक्र # 227 ☆ बाल गीत – बमचक-बमचक करें गिलहरीं… ☆ डॉ राकेश ‘चक्र’ ☆

डॉ राकेश ‘चक्र

(हिंदी साहित्य के सशक्त हस्ताक्षर डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी  की अब तक कुल 148 मौलिक  कृतियाँ प्रकाशित। प्रमुख  मौलिक कृतियाँ 132 (बाल साहित्य व प्रौढ़ साहित्य) तथा लगभग तीन दर्जन साझा – संग्रह प्रकाशित। कई पुस्तकें प्रकाशनाधीन। जिनमें 7 दर्जन के आसपास बाल साहित्य की पुस्तकें हैं। कई कृतियां पंजाबी, उड़िया, तेलुगु, अंग्रेजी आदि भाषाओँ में अनूदित । कई सम्मान/पुरस्कारों  से  सम्मानित/अलंकृत। भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय द्वारा बाल साहित्य के लिए दिए जाने वाले सर्वोच्च सम्मान ‘बाल साहित्य श्री सम्मान’ और उत्तर प्रदेश सरकार के हिंदी संस्थान द्वारा बाल साहित्य की दीर्घकालीन सेवाओं के लिए दिए जाने वाले सर्वोच्च सम्मान ‘बाल साहित्य भारती’ सम्मान, अमृत लाल नागर सम्मानबाबू श्याम सुंदर दास सम्मान तथा उत्तर प्रदेश राज्यकर्मचारी संस्थान  के सर्वोच्च सम्मान सुमित्रानंदन पंतउत्तर प्रदेश रत्न सम्मान सहित पाँच दर्जन से अधिक प्रतिष्ठित साहित्यिक एवं गैर साहित्यिक संस्थाओं से सम्मानित एवं पुरुस्कृत। 

 आदरणीय डॉ राकेश चक्र जी के बारे में विस्तृत जानकारी के लिए कृपया इस लिंक पर क्लिक करें 👉 संक्षिप्त परिचय – डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी।

आप  “साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र” के माध्यम से  उनका साहित्य प्रत्येक गुरुवार को आत्मसात कर सकेंगे।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र – # 227 ☆ 

बाल गीत – बमचक-बमचक करें गिलहरीं  ☆ डॉ राकेश ‘चक्र’ 

बमचक-बमचक करें गिलहरीं।

एक नहीं हैं , सात गिलहरीं।

 *

इधर-उधर को भागा करतीं।

बदन फुला गुड़िया-सी दिखतीं।

बाल हैं कोमल लगतीं बहरी।

बमचक-बमचक करें गिलहरीं।

 *

पौधों से ये करें दुश्मनी।

तुलसी नौचतीं, प्लांट मनी।

पहुँच गाँव से हो गईं शहरी।

बमचक-बमचक करें गिलहरीं।

 *

 अपनी धुन में मस्त मगन हैं।

फल,दाना इनका भोजन है।

चिड़ियों की शत्रु हैं गहरी।

बमचक-बमचक करें गिलहरीं।

तीन तिरंगी पट्टी ओढ़े।

इतराएँ यह बदन को मोड़े।

बच्चों की रक्षक हैं प्रहरी।

बमचक-बमचक करें गिलहरीं।

© डॉ राकेश चक्र

(एमडी,एक्यूप्रेशर एवं योग विशेषज्ञ)

90 बी, शिवपुरी, मुरादाबाद 244001 उ.प्र.  मो.  9456201857

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ तन्मय साहित्य #254 – कविता – प्रीत ☆ … ☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ ☆

श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

(सुप्रसिद्ध वरिष्ठ साहित्यकार श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी अर्ध शताधिक अलंकरणों /सम्मानों से अलंकृत/सम्मानित हैं। आपकी लघुकथा  रात  का चौकीदार”   महाराष्ट्र शासन के शैक्षणिक पाठ्यक्रम कक्षा 9वीं की  “हिंदी लोक भारती” पाठ्यपुस्तक में सम्मिलित। आप हमारे प्रबुद्ध पाठकों के साथ  समय-समय पर अपनी अप्रतिम रचनाएँ साझा करते रहते हैं। आज प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण कविता  “प्रीत” ।)

☆ तन्मय साहित्य  #254 ☆

☆ प्रीत… ☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ ☆

है अनित्य ही सत्य,

नियति की यही रीत है

सिर्फ खेल ये,

नहीं किसी की हार जीत है

जितना समय मिला है

हमें यहाँ रहने का,

एक ध्येय जन जन से

करते रहें प्रीत है।

☆ ☆ ☆ ☆ ☆

© सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय

जबलपुर/भोपाल, मध्यप्रदेश, अलीगढ उत्तरप्रदेश  

मो. 9893266014

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ जय प्रकाश के नवगीत # 78 ☆ वन का हिरन… ☆ श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव ☆

श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

(संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं अग्रज साहित्यकार श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव जी  के गीत, नवगीत एवं अनुगीत अपनी मौलिकता के लिए सुप्रसिद्ध हैं। आप प्रत्येक बुधवार को साप्ताहिक स्तम्भ  “जय  प्रकाश के नवगीत ”  के अंतर्गत नवगीत आत्मसात कर सकते हैं।  आज प्रस्तुत है आपका एक भावप्रवण एवं विचारणीय नवगीत “वन का हिरन…” ।

✍ जय प्रकाश के नवगीत # 78 ☆ वन का हिरन… ☆ श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

मन! फिर हुआ

वन का हिरन

*

लिए तिनके की आस

दबा होंठों में प्यास

खोजता फिर रहा

ज़िंदगी का अमन।

*

पत्थरों पर लिखी

प्यार की बोलियाँ

गीत झरना कोई

गुनगुनाता हुआ

रास्ते ओढ़कर

बैठे ख़ामोशियाँ

एक झोंका हवा

सरसराता हुआ

*

साँस भर दौड़ना

बस यही कामना

यूँ ही होता रहे

उम्र भर आचमन।

***

© श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

सम्पर्क : आई.सी. 5, सैनिक सोसायटी शक्ति नगर, जबलपुर, (म.प्र.)

मो.07869193927,

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिंदी साहित्य – कविता ☆ सांझ… ☆ सुश्री इन्दिरा किसलय ☆

सुश्री इन्दिरा किसलय

☆ कविता ☆ सांझ ☆ सुश्री इन्दिरा किसलय ☆

सांझ

वापसी का उत्सव है !!

कलरव है

सौ सौ चिड़ियों का,

जो गगन नापकर लौट आती हैं

दरख्तों पर

अपने अपने नीड़  में

चूजों के पास !!

 

    रव है

उन कोमल किरणों का

जो पौ फटने से लेकर

दिन के

अंतिम क्षण तक

उड़ेलती हैं उजाले

अनथक !!

 

     अनुभव है

उनका जो एक पूरी

उम्र जैसा दिन जीकर

निविड़ कोलाहल से

थककर चूर

चले आते हैं

खुद तक !!!

©  सुश्री इंदिरा किसलय 

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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