हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ आतिश का तरकश #216 – 103 – “फ़िज़ा में लहराईं स्याह ज़ुल्फ़ें…” ☆ श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’ ☆

श्री सुरेश पटवा

(श्री सुरेश पटवा जी  भारतीय स्टेट बैंक से  सहायक महाप्रबंधक पद से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं और स्वतंत्र लेखन में व्यस्त हैं। आपकी प्रिय विधा साहित्य, दर्शन, इतिहास, पर्यटन आदि हैं। आपकी पुस्तकों  स्त्री-पुरुष “गुलामी की कहानी, पंचमढ़ी की कहानी, नर्मदा : सौंदर्य, समृद्धि और वैराग्य की  (नर्मदा घाटी का इतिहास) एवं  तलवार की धार को सारे विश्व में पाठकों से अपार स्नेह व  प्रतिसाद मिला है। श्री सुरेश पटवा जी  ‘आतिश’ उपनाम से गज़लें भी लिखते हैं ।प्रस्तुत है आपका साप्ताहिक स्तम्भ आतिश का तरकशआज प्रस्तुत है आपकी भावप्रवण ग़ज़ल फ़िज़ा में लहराईं स्याह ज़ुल्फ़ें…” ।)

? ग़ज़ल # 103 – “फ़िज़ा में लहराईं स्याह ज़ुल्फ़ें…” ☆ श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’ ?

हेमंत संग गुलाबी आया मौसम,

शिशिर संग सर्दी लाया मौसम।

दिन सिकुड़े और लम्बी हुई रातें,

सुबह रज़ाई में अलसाया मौसम।

स्वेटर जैकेट दस्ताने और मफ़लर,

मोटी रज़ाई देख रिसयाया मौसम।

सुलगे मुफ़लिस अलाव चौराहों पर,

बैठकों में हीटर ने गर्माया मौसम।

साजन भर रहे अब ठंडी आहें,

व्हाट्सएप से दुलराया मौसम।

सजनी पर चढ़ा आशिक़ी बुख़ार,

एन्फ़ील्ड पर चढ़ आया मौसम।

फ़िज़ा में लहराईं स्याह ज़ुल्फ़ें,

टैंक फ़ुल कर दक दकाया मौसम।

पेड़-पौधों पर छाई शबनमी धुँध,

देख विहंगम लहराया मौसम।

सरे शाम लगा अम्बार ठेकों पर,

स्कॉच व्हिस्की बहकाया मौसम।

सुख दुःख का है गरम ठंडा जोड़ा,

जगत का अज़ब सरमाया मौसम।

आना-जाना दस्तूर कायनात का,

‘आतिश’ को देख गुर्राया मौसम।

© श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’

भोपाल, मध्य प्रदेश

≈ सम्पादक श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कविता – अब वक़्त को बदलना होगा – भाग -9 ☆ सुश्री दीपा लाभ ☆

सुश्री दीपा लाभ 

(सुश्री दीपा लाभ जी, बर्लिन (जर्मनी) में एक स्वतंत्र पत्रकार हैं। हिंदी से खास लगाव है और भारतीय संस्कृति की अध्येता हैं। वे पिछले 14 वर्षों से शैक्षणिक कार्यों से जुड़ी हैं और लेखन में सक्रिय हैं।  आपकी कविताओं की एक श्रृंखला “अब वक़्त  को बदलना होगा” को हम श्रृंखलाबद्ध प्रकाशित करने का प्रयास कर रहे हैं। आज प्रस्तुत है इस श्रृंखला की अगली कड़ी।) 

☆ कविता ☆ अब वक़्त  को बदलना होगा – भाग – 9 सुश्री दीपा लाभ  ☆ 

[9]

अब वक़्त आ गया है बन्धु

आचरण से क्रान्ति लाने का

अब वक़्त आ गया है बन्धु

मन से हर क्लेश हटाने का

सम्बन्ध प्रगाढ़ बनाने का

मानव का मान बढ़ाने का

अब वक़्त आ गया है बन्धु

सीता का हरण बचाने का

रावण को आग लगाने का

हर मन में राम बसाने का

अब वक़्त आ गया है बन्धु

सोते भाग्य जगाने का

विकास का परचम लहराने का

चाणक्य नीति अपनाने का

आओ प्रण लें आज अभी

भारत हम नया बनाएँगे

नसीहतें देना आसान है, पर

हम अपना फ़र्ज़ निभाएँगे

भोली जनता के मन में अब

कर्तव्य का दीप जलाएँगे

प्रगति पथ पर चलने हेतु

अब पीढ़ी नई गढ़ना होगा

अब वक़्त को बदलना होगा

© सुश्री दीपा लाभ 

बर्लिन, जर्मनी 

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – धूप ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं।)

? संजय दृष्टि – धूप ? ?

एसी कमरे में

अंगुलियों के इशारे पर

नाचते तापमान में,

चेहरे पर लगा लो

कितनी ही परतें,

पिघलने लगती है

सारी कृत्रिमता

चमकती धूप के साये में,

मैं सूरज की प्रतीक्षा करता हूँ,

जिससे भी मिलता हूँ

चौखट के भीतर नहीं,

तेज़ धूप में मिलता हूँ..!

 © संजय भारद्वाज 

(प्रात: 7:22 बजे, 25.1.2020)

 अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

💥 मार्गशीर्ष साधना 28 नवंबर से 26 दिसंबर तक चलेगी 💥

🕉️ इसका साधना मंत्र होगा – ॐ नमो भगवते वासुदेवाय 🕉️

नुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ “श्री हंस” साहित्य # 93 ☆ मुक्तक ☆ ।।थोड़ा थोड़ा बदलो एक दिन रोशन नाम हो जायेगा।। ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस” ☆

श्री एस के कपूर “श्री हंस”

☆ “श्री हंस” साहित्य # 93 ☆

☆ मुक्तक ☆ ।।थोड़ा थोड़ा बदलो एक दिन रोशन नाम हो जायेगा।। ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस” ☆ 

[1]

थोड़ा थोड़ा रोज बदलो  काम हो जायेगा।

देखना एक  दिन रोशन नाम हो जायेगा।।

कर्म से गुजर कर लिखो दिलकी कलम से।

एक दिन देखते देखते वो पैगाम हो जायेगा।।

[2]

जो दोगे सम्मान तो अधिक  होकर  आएगा।

सबको साथ ले चलो इंतजाम हो जायेगा।।

सहयोग सद्भावना होते हैं मूलमंत्र जीवन के।

साथ करो काम अभियान सफल हो पायेगा।।

[3]

अनुभव से सीखो   आगे आराम हो जायेगा।

मांगों सबकी दुआ     नेक नाम तू पायेगा।।

हटा   कर घृणा भरो   भाव  प्रेम का केवल।

नफरत डोर कटते ही प्यार  ईनाम लायेगा।।

[4]

पहले दूसरे को नहीं खुद को बदलना जरूरी है।

जब सब मिलके बदलेंगे तब बात होगी पूरी है।।

एक दस सौ बदलें तो राष्ट्र भी    बदल जायेगा।

प्रेम निर्मलधारा में बह जायेगी सब मगरूरी है।।

© एस के कपूर “श्री हंस”

बरेलीईमेल – Skkapoor5067@ gmail.com, मोब  – 9897071046, 8218685464

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ काव्य धारा # 156 ☆ “राम लला का मंदिर मन हो” ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

(आज प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी  द्वारा रचित एक भावप्रवण रचना  – “राम लला का मंदिर मन हो। हमारे प्रबुद्ध पाठकगण प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी  काव्य रचनाओं को प्रत्येक शनिवार आत्मसात कर सकेंगे।) 

☆ “राम लला का मंदिर मन हो” ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

 

एक साथ मिलकर बोलो सब,  जय जय सियाराम

उद्घोष करो जयकारे का ,  जय जय सियाराम

 

अंतर्मन से , जिसने भी , जब जहाँ पुकारा

आजानुभुज ने दिया सहारा, जय जय सियाराम

 

खुद को धोखा देते नाहक, लाख जतन से पाप छिपाते

कमलनयन से छिपा न कुछ भी , जय जय सियाराम

 

केवट वाला भोलापन हो, सरयू के प्रवाह सा जीवन

कौशलेंद्र कृपालु हैं भगवन , जय जय सियाराम

 

काटें वे जीवन के बंधन , करें समर्पण राघव को मन

बस शबरी सा प्रेम करें हम , जय जय सियाराम

 

बने अयोध्या यह शरीर, राम लला का मंदिर मन हो

भक्ति करें किंचित हनुमत सी , तो ये मानव योनि सफल हो

जय राम जय राम , जय जय सियाराम

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

ए २३३ , ओल्ड मीनाल रेजीडेंसी  भोपाल ४६२०२३

मो. 9425484452

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – मौन ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं।)

? संजय दृष्टि – मौन ? ?

हर बार परिश्रम किया है,

मूल के निकट पहुँचा है

मेरी रचनाओं का अनुवादक,

इस बार जीवट का परिचय दिया है,

मेरे मौन का उसने अनुवाद किया है,

पाठक ने जितनी बार पढ़ा है

उतनी बार नया अर्थ मिला है,

पता नहीं उसका अनुवाद बहुआयामी है

या मेरा मौन सर्वव्यापी है..!

© संजय भारद्वाज 

(रात्रि 10:40 बजे, 19.1.2020)

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

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☆ आपदां अपहर्तारं ☆

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संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ साहित्य निकुंज #210 ☆ भावना के दोहे … ☆ डॉ. भावना शुक्ल ☆

डॉ भावना शुक्ल

(डॉ भावना शुक्ल जी  (सह संपादक ‘प्राची‘) को जो कुछ साहित्यिक विरासत में मिला है उसे उन्होने मात्र सँजोया ही नहीं अपितु , उस विरासत को गति प्रदान  किया है। हम ईश्वर से  प्रार्थना करते हैं कि माँ सरस्वती का वरद हस्त उन पर ऐसा ही बना रहे। आज प्रस्तुत हैं  भावना के दोहे…)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ  # 210 – साहित्य निकुंज ☆

☆ भावना के दोहे …  डॉ भावना शुक्ल ☆

नयन- नयन को ढूँढते, करें रतजगा आज।

आयेंगे प्रियतम मगर, बजेंगे मन में  साज।।

प्रियतम की आहट हुई, मन में उठी उमंग।

आ जाओ अब प्रिये तुम, साथ जिएंगे संग।।

 बनकर प्रहरी आज वो, खड़ा हुआ है द्वार।

प्रिय से कैसे हो मिलन, कैसे हो उद्धार।।

मन को निर्मल रखो तुम, करो नहीं मलीन।

अंतर्मन की प्रेरणा, नहीं बनो तुम दीन।।

परछाई आई अभी, मिलने को चुपचाप।

नहीं सुनाई दी हमें, उसकी तो पदचाप।।

© डॉ भावना शुक्ल

सहसंपादक… प्राची

प्रतीक लॉरेल, J-1504, नोएडा सेक्टर – 120,  नोएडा (यू.पी )- 201307

मोब. 9278720311 ईमेल : [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ इंद्रधनुष #193 ☆ संतोष के दोहे – श्रम वीर ☆ श्री संतोष नेमा “संतोष” ☆

श्री संतोष नेमा “संतोष”

(आदरणीय श्री संतोष नेमा जी  कवितायें, व्यंग्य, गजल, दोहे, मुक्तक आदि विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं. धार्मिक एवं सामाजिक संस्कार आपको विरासत में मिले हैं. आपके पिताजी स्वर्गीय देवी चरण नेमा जी ने कई भजन और आरतियाँ लिखीं थीं, जिनका प्रकाशन भी हुआ है. आप डाक विभाग से सेवानिवृत्त हैं. आपकी रचनाएँ राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में लगातार प्रकाशित होती रहती हैं। आप  कई सम्मानों / पुरस्कारों से सम्मानित/अलंकृत हैं. “साप्ताहिक स्तम्भ – इंद्रधनुष” की अगली कड़ी में आज प्रस्तुत है संतोष के दोहे  – श्रम वीरआप श्री संतोष नेमा जी  की रचनाएँ प्रत्येक शुक्रवार आत्मसात कर सकते हैं।)

☆ साहित्यिक स्तम्भ – इंद्रधनुष # 193 ☆

☆ संतोष के दोहे  – श्रम वीर ☆ श्री संतोष नेमा ☆

साहस, जज्बा, होसला, जीत गये श्रम वीर

सरकारों की मदद से, सीना गिरि का चीर

देव भूमि के देव सब, मिल कर हुए सहाय

करके रक्षा सभी की, स्वयं गये हर्षाय

दुनिया भी अब चकित है, श्रम का देख बचाव

देख सभी की प्रार्थना, और देख सदभाव

मिल कर सब ने बचा ली, मजदूरों की जान

बचाव दल की भूमिका, अद्भुत बड़ी महान

संकट की हर घड़ी में, सब मिल  रहिये साथ

मिलता है “संतोष” तब, ऊँचा होता माथ

© संतोष  कुमार नेमा “संतोष”

सर्वाधिकार सुरक्षित

आलोकनगर, जबलपुर (म. प्र.) मो 9300101799

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – समीक्षा ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं।)

? संजय दृष्टि – समीक्षा ? ?

आज कुछ

नया नहीं लिखा?

उसने पूछा..,

मैं हँस पड़ा,

वह देर तक

पढ़ती रही मेरी हँसी,

फिर ठठाकर हँस पड़ी,

लंबे अरसे बाद मैंने

अपनी कविता की

समीक्षा पढ़ी..!

© संजय भारद्वाज 

(रात्रि 12:46 बजे, 23.12.2019)

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

💥 मार्गशीर्ष साधना 28 नवंबर से 26 दिसंबर तक चलेगी 💥

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नुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ दिन-रात #25 ☆ कविता – “नशा…” ☆ श्री आशिष मुळे ☆

श्री आशिष मुळे

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ दिन-रात # 25 ☆

☆ कविता ☆ “नशा…☆ श्री आशिष मुळे ☆

ना निकालो बाहर मुझे

डूबा हूं और पीने दो मुझे

यहां बार बार हजार बार

मरकर बस अब जीने दो मुझे

 

घूम घूम झूम झूम

थिरकने दो मुझे

दर्या-ए-दिल में आज

बस बह जाने दो मुझे

 

कहीं बनूं दीप

कहीं बनूं आग

चाहें जैसे सुलगाओ

आज बस जलने दो मुझे

 

आए क्यों सामने

ए पर्दा नशीं

झलक क्या देखी

आती नहीं अब नींद मुझे

 

जानम जानम दर्द-ए-मन

भर दिया प्याला क्यों

प्यासे हमेशा अब होंठ मेरे

चूमा जान-ए-जाना मुझे क्यों

 

था मैं बस आशिष

बनाया मुझे हशीश जो

गर अब छु दूं किसीको

कहीं खो न जाए होश वो

 

देखता सपने नींद में

मुझे जगाया क्यों

अब हूं बस दीवाना

सिखाया मुझे क्यों

© श्री आशिष मुळे

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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