हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सलिल प्रवाह # 160 ☆ बाल गीत – सूरज ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ☆

आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

(आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ जी संस्कारधानी जबलपुर के सुप्रसिद्ध साहित्यकार हैं। आपको आपकी बुआ श्री महीयसी महादेवी वर्मा जी से साहित्यिक विधा विरासत में प्राप्त हुई है । आपके द्वारा रचित साहित्य में प्रमुख हैं पुस्तकें- कलम के देव, लोकतंत्र का मकबरा, मीत मेरे, भूकंप के साथ जीना सीखें, समय्जयी साहित्यकार भगवत प्रसाद मिश्रा ‘नियाज़’, काल है संक्रांति का, सड़क पर आदि।  संपादन -८ पुस्तकें ६ पत्रिकाएँ अनेक संकलन। आप प्रत्येक सप्ताह रविवार को  “साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह” के अंतर्गत आपकी रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत हैं – बाल गीत – सूरज)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 160 ☆

☆ बाल गीत – सूरज ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ☆

पर्वत-पीछे झाँके ऊषा

हाथ पकड़कर आया सूरज।

पूर्व प्राथमिक के बच्चे सा

धूप संग इठलाया सूरज।

*

योग कर रहा संग पवन के

करे प्रार्थना भँवरे के सँग।

पैर पटकता मचल-मचलकर

धरती मैडम हुईं बहुत तँग।

तितली देखी आँखमिचौली

खेल-जीत इतराया सूरज।

पूर्व प्राथमिक के बच्चे सा

नाक बहाता आया सूरज।

*

भाता है ‘जन गण मन’ गाना

चाहे दोहा-गीत सुनाना।

झूला झूले किरणों के सँग

सुने न, कोयल मारे ताना।

मेघा देख, मोर सँग नाचे

वर्षा-भीग नहाया सूरज।

पूर्व प्राथमिक के बच्चे सा

झूला पा मुस्काया सूरज।

*

खाँसा-छींका, आई रुलाई

मैया दिशा झींक-खिसियाई।

बापू गगन डॉक्टर लाया

डरा सूर्य जब सुई लगाई।

कड़वी गोली खा, संध्या का

सपना देख न पाया सूरज।

पूर्व प्राथमिक के बच्चे सा

कॉमिक पढ़ हर्षाया सूरज।

©  आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

बेंगलुरु, २२.९.२०१५

संपर्क: विश्ववाणी हिंदी संस्थान, ४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१,

चलभाष: ९४२५१८३२४४  ईमेल: [email protected]

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ आतिश का तरकश #211 – 97 – “वो इश्क़ है…” ☆ श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’ ☆

श्री सुरेश पटवा

(श्री सुरेश पटवा जी  भारतीय स्टेट बैंक से  सहायक महाप्रबंधक पद से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं और स्वतंत्र लेखन में व्यस्त हैं। आपकी प्रिय विधा साहित्य, दर्शन, इतिहास, पर्यटन आदि हैं। आपकी पुस्तकों  स्त्री-पुरुष “गुलामी की कहानी, पंचमढ़ी की कहानी, नर्मदा : सौंदर्य, समृद्धि और वैराग्य की  (नर्मदा घाटी का इतिहास) एवं  तलवार की धार को सारे विश्व में पाठकों से अपार स्नेह व  प्रतिसाद मिला है। श्री सुरेश पटवा जी  ‘आतिश’ उपनाम से गज़लें भी लिखते हैं ।प्रस्तुत है आपका साप्ताहिक स्तम्भ आतिश का तरकशआज प्रस्तुत है आपकी भावप्रवण ग़ज़ल “वो इश्क़ है…”)

? ग़ज़ल # 97 – “वो इश्क़ है…” ☆ श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’ ?

कोई किसी को जान से चाहे वो इश्क़ है,

पूरी शख़्सियत पर छा जाए वो इश्क़ है।

 

जो बदन से अक़्ल को मिला वो हवस है,

जो रूह को  रूह से  मिला  वो इश्क़ है।

 

एक  समसनी  महसूस होती  रगे जाँ में,

जो तेरी  हस्ती को  भुला दे वो इश्क़ है।

 

महबूब  ना  नज़दीक  हों  ना  दूर हों,

यादों में रखकर जान लुटाए वो इश्क़ है।

 

तासीरे इश्क़ सबसे अलहदा  आतिश की,

दोनो जहाँ  इश्क़ में  लुटाए वो इश्क़ है।

© श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’

भोपाल, मध्य प्रदेश

≈ सम्पादक श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कविता – अब वक़्त को बदलना होगा – भाग -3 ☆ सुश्री दीपा लाभ ☆

सुश्री दीपा लाभ 

(सुश्री दीपा लाभ जी, बर्लिन (जर्मनी) में एक स्वतंत्र पत्रकार हैं। हिंदी से खास लगाव है और भारतीय संस्कृति की अध्येता हैं। वे पिछले 14 वर्षों से शैक्षणिक कार्यों से जुड़ी हैं और लेखन में सक्रिय हैं।  आपकी कविताओं की एक श्रृंखला “अब वक़्त  को बदलना होगा” को हम श्रृंखलाबद्ध प्रकाशित करने का प्रयास कर रहे हैं। आज प्रस्तुत है इस श्रृंखला की अगली कड़ी।) 

☆ कविता ☆ अब वक़्त  को बदलना होगा – भाग -3 सुश्री दीपा लाभ  ☆ 

[3]

राम-राज्य पाना आसान नहीं,

एक कोशिश तो कर सकते हैं

अनुचित कृत्यों से दूर हो

इतिहास नया गढ़ सकते हैं

जो उचित है ऐसे कृत्य करें

न्याय-संगत व्यवहार करें

भ्रष्ट तंत्रों का करें नाश

फैलाएँ नीतिगत प्रकाश

अब भोलीभाली जनता का

भक्षण नहीं, रक्षण होगा

छलने की साजिश बहुत हुई

अब जनता का स्वागत होगा

अब वक़्त को बदलना होगा

अब भी जब अहंकार कभी

मानवता के सिर चढ़ बोलेगा

तब हर घर में फिर एक बार

भक्त प्रहलाद जनम लेगा

हर स्तम्भ से नरसिंह निकलेगा

चौखट पर दंभ का अंत होगा

षडयंत्र न कुछ चल पाएगा

बस सत्य का परचम लहरेगा

अब वक़्त को बदलना होगा

© सुश्री दीपा लाभ 

बर्लिन, जर्मनी 

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – सूची ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

? संजय दृष्टि – सूची ? ?

तय थे कुछ नाम

जो मेरी अर्थी को

कंधा देते,

कुछ मेरे समकालीन

कुछ अग्रज भी हैं

इस सूची में

बशर्ते

वे मुझसे पहले न जाएँ,

पर मित्र!

आज मैंने

वंचित

या यूँ समझो

मुक्त कर दिया तुम्हें

उस अधिकार से;

इसलिए नहीं कि

मैं तुम्हारे बाद भी रहूँ,

इसलिए कि तुमने

हड़बड़ी कर दी

और

जीते-जी

मेरे या शायद हमारे

विश्वास को

अर्थी पर लिटाने का

प्रयास कर,

छोटी सूची

और छोटी कर दी!

© संजय भारद्वाज 

(प्रातः 9:11 बजे, दि 21 जनवरी 2016)

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

कल  दि. 15 अक्टूबर 2023 से नवरात्रि साधना आरंभ होगी। इस साधना के लिए मंत्र इस प्रकार होगा-

या देवी सर्वभूतेषु शक्तिरूपेण संस्थिता,

नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।।

🕉️ 💥 देवीमंत्र की कम से कम एक माला हर साधक करे। अपेक्षित है कि नवरात्रि साधना में साधक हर प्रकार के व्यसन से दूर रहे, शाकाहार एवं ब्रह्मचर्य का पालन करे। सदा की भाँति आत्म-परिष्कार तथा ध्यानसाधना तो चलेंगी ही। मंगल भव। 💥 🕉️

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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English Literature – Poetry ☆ ‘भय…’ श्री संजय भारद्वाज (भावानुवाद) – ‘Who’s Lethal…?’ ☆ Captain Pravin Raghuvanshi, NM ☆

Captain Pravin Raghuvanshi, NM

(Captain Pravin Raghuvanshi —an ex Naval Officer, possesses a multifaceted personality. He served as a Senior Advisor in prestigious Supercomputer organisation C-DAC, Pune. He was involved in various Artificial Intelligence and High-Performance Computing projects of national and international repute. He has got a long experience in the field of ‘Natural Language Processing’, especially, in the domain of Machine Translation. He has taken the mantle of translating the timeless beauties of Indian literature upon himself so that it reaches across the globe. He has also undertaken translation work for Shri Narendra Modi, the Hon’ble Prime Minister of India, which was highly appreciated by him. He is also a member of ‘Bombay Film Writer Association’.

We present an English Version of Shri Sanjay Bhardwaj’s Hindi poem भय.  We extend our heartiest thanks to the learned author Captain Pravin Raghuvanshi Ji (who is very well conversant with Hindi, Sanskrit, English and Urdu languages) for this beautiful translation and his artwork.)

श्री संजय भारद्वाज जी की मूल रचना

? संजय दृष्टि – भय ??

साँप का भय

बहुत है मनुष्य में,

दिखते ही बर्बरता से

कुचल दिया जाता है,

सूँघते ही दोपाया

जान बचाकर भागता है,

मनुष्य का भय

बहुत है साँप में..!

© संजय भारद्वाज 

(संध्या 5:30 बजे, 7 दिसंबर 2015)

यों ही लिखता हूँ रोज़!

© संजय भारद्वाज

(प्रातः 11:10 बजे, 6.6.2019)

मोबाइल– 9890122603, संजयउवाच@डाटामेल.भारत, [email protected]

☆☆☆☆☆

English Version by – Captain Pravin Raghuvanshi

? – Who’s Lethal…???

There exists an immense

fear  of  the  snakes

in  the  ever mortally

scared human beings…

 

As soon as they’re sighted,

they’re  brutally crushed

to  the  death  without

any  rhyme  or  reason… 

 

But  the  very  moment,

snake senses the presence

of  humans,  it  just  flees

away to  save  its  life…

 

Obviously bu quzzically

the snakes are far more

mortally  scared  of the

lethally savage mankind..!

~Pravin

© Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Pune

≈ Editor – Shri Hemant Bawankar/Editor (English) – Captain Pravin Raghuvanshi, NM ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ “श्री हंस” साहित्य # 87 ☆ मुक्तक ☆ ।।दिल जीते जाते हैं, दिल में उतर जाने से।। ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस” ☆

श्री एस के कपूर “श्री हंस”

☆ “श्री हंस” साहित्य # 87 ☆

☆ मुक्तक ☆ ।।दिल जीते जाते हैं, दिल में उतर जाने से।। ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस” ☆ 

[1]

हर पल नया साज  नई   आवाज है जिंदगी।

कभी खुशी कभी  गम बेहिसाब है जिंदगी।।

अपने हाथों अपनी किस्मत का देती है मौका।

हर रंग समेटे नया करने का जवाब है जिंदगी।।

[2]

जीतने हारने की  ये हर   हिसाब रखती है।

यह जिंदगी हर अरमान हर ख्वाब रखती है।।

हार के बाजी पलटने की ताकत जिंदगी में।

जिंदगी बड़ीअनमोल हर ढंग नायाब रखती है।।

[3]

समस्या गर जीवन में तो समाधान भी बना है।

हर कठनाई से पार पाने का निदान भी बना है।।

देकर संघर्ष भी हमें यह है संवारती निखारती।

जीतने को ऊपर ऊंचा  आसमान भी बना है।।

[4]

तेरे मीठे बोल जीत सकते हैं दुनिया जहान को।

अपने कर्म विचार से पहुंच सकते हैं आसमान को।।

अपने स्वाभिमान की  सदा ही रक्षा तुम करना।

मत करो और  नहीं  गले लगायो अपमान को।।

[5]

युद्ध तो जीते जाते हैं ताकत  बम हथियारों से।

पर दिल नहीं जीते जाते कभी भी तलवारों से।।

उतरना पड़ता दिल के अंदर अहसास बन कर।

यही बात  समा जाए    सबके ही किरदारों में।।

© एस के कपूर “श्री हंस”

बरेली

ईमेल – Skkapoor5067@ gmail.com

मोब  – 9897071046, 8218685464

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ काव्य धारा # 151 ☆ ‘स्वयं प्रभा’ से – “तरुणों का दायित्व” ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

(आज प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी  द्वारा रचित एक भावप्रवण रचना  – “क्योंकि परम्परागत सब प्यार खो गया है। हमारे प्रबुद्ध पाठकगण प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी  काव्य रचनाओं को प्रत्येक शनिवार आत्मसात कर सकेंगे।) 

☆ ‘स्वयं प्रभा’ से – “तरुणों का दायित्व” ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

सँवर सजकर के बचपन ही बना करता जवानी है।

जवानी ही लिखा करती वतन की नई कहानी है ॥

 

भरे इतिहास के पन्ने, जवानी की खानी से

है गाथायें कई जो दमकती यौवन के पानी से।

 

परिस्थितियाँ बदल दी हैं जवानी ने जमाने की

अनेकों हैं मिसालें, हारते को भी जिताने की।

 

हुये कई वीर जिनकी कथा हर मन को जगाती है

कहानी जिन्दगी की जिनकी नई आशायें लाती है। 1

 

महाराणा प्रताप, रणजीत, गुरूगोविंद, शिवाजी ने

किये जो कारनामे क्या कभी मन से पढ़ा हमने ?

 

उन्हें पढ़, भाव श्रद्धा से है झुकता सिर जवानी का

नमन करते हैं सब उनको औं उनकी हर कहानी का।

 

जो बच्चे आज हैं, वे ही वतन के हैं युवा कल के

उन्हें ही देश का नेतृत्व करना दो कदम चल के।

 

समझता है उन्हें दायित्व अपना सावधानी से

वतन, परिवार, घर को वे सहारा दें जवानी से ।

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

ए २३३ , ओल्ड मीनाल रेजीडेंसी  भोपाल ४६२०२३

मो. 9425484452

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ मेरी कविता में ☆ श्री हरभगवान चावला ☆

श्री हरभगवान चावला

(सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्री हरभगवान चावला जी की अब तक पांच कविता संग्रह प्रकाशित। कई स्तरीय पत्र पत्रिकाओं  में रचनाएँ प्रकाशित। कथादेश द्वारा  लघुकथा एवं कहानी के लिए पुरस्कृत । हरियाणा साहित्य अकादमी द्वारा श्रेष्ठ कृति सम्मान। प्राचार्य पद से सेवानिवृत्ति के पश्चात स्वतंत्र लेखन।) 

आज प्रस्तुत है आपकी एक विचारणीय कविता – मेरी कविता में)

☆ कविता – मेरी कविता में ☆ श्री हरभगवान चावला ☆

फलदार या छायादार पेड़ों का वैभव नहीं था

मेरी कविता में काँटेदार बबूल और झाड़ियाँ थीं

मेरी कविता में

झमाझम बरसते बादल नहीं थे, आँधियाँ थीं

पानी से लबालब नदियाँ नहीं थीं, मरुस्थल था

दूर तक फैली हरियाली नहीं थी, ऊँचे टीले थे

मेरी कविता में

गुनगुनी धूप नहीं थी, आग उगलता सूरज था

मेरी कविता में

काँटों, आँधियों, रेत और धूप से लड़ते लोग थे

मेरी कविता में

बच्चे थे खिलखिलाते हुए, लड़कियाँ थीं हँसती हुई

इन लोगों, इन बच्चों, इन लड़कियों के असंख्य सपने थे

मेरी कविता में

 

और ये सपने धूसर नहीं थे।

©  हरभगवान चावला

सम्पर्क – 406, सेक्टर-20, हुडा,  सिरसा- 125055 (हरियाणा) फोन : 9354545440

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – उत्क्रांति ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

? संजय दृष्टि – उत्क्रांति ? ?

कुआँ, पेड़,

गाय, साँप,

सब की रक्षा को

अड़ जाता था,

प्रकृति को माँ-जायी

और धरती को

माई कहता था..,

अब कुआँ, पेड़,

सब रौंद दिए,

प्रकृति का चीर हरता है,

धरती का सौदा करता है,

आदिमपन से आधुनिकता,

उत्क्रांति कहलाती है,

जाने क्यों मुझे यह

उल्टे पैरों की यात्रा लगती है!

© संजय भारद्वाज 

(दोपहर 1:55 बजे, दि. 18.12.2019)

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

💥 श्राद्ध पक्ष में साधना नहीं होगी। नियमितता की दृष्टि से साधक आत्मपरिष्कार एवं ध्यानसाधना करते रहें तो श्रेष्ठ है। 💥

🕉️ नवरात्र से अगली साधना आरंभ होगी। 🕉️

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ साहित्य निकुंज #204 ☆ तुम हो तो… ☆ डॉ. भावना शुक्ल ☆

डॉ भावना शुक्ल

(डॉ भावना शुक्ल जी  (सह संपादक ‘प्राची‘) को जो कुछ साहित्यिक विरासत में मिला है उसे उन्होने मात्र सँजोया ही नहीं अपितु , उस विरासत को गति प्रदान  किया है। हम ईश्वर से  प्रार्थना करते हैं कि माँ सरस्वती का वरद हस्त उन पर ऐसा ही बना रहे। आज प्रस्तुत हैं आपकी एक भावप्रवण रचना तुम हो तो…)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ  # 203 – साहित्य निकुंज ☆

☆ तुम हो तो…   डॉ भावना शुक्ल ☆

तुम हो मेरा जहान

तुम हो मेरी जान

तुम से ही मेरी पहचान

तुम हो तो… 

 

तुम हो मेरे प्रणेता

तुम हो चहेता

तुम हो मेरी कविता

तुम हो तो …

 

तुम हो मेरा दर्शन

तुम हो मेरा मार्गदर्शन

तुम हो मेरा दिग्दर्शन

तुम हो तो… 

 

तुम हो मेरे प्रतिमान

तुम हो मेरा अभिमान

तुम हो मेरा सम्मान

तुम हो तो…

 

तुम हो मेरा आकर्षण

तुम हो मेरा समर्पण

तुमको सब  अर्पण

तुम हो तो …

 

तुम हो जीवन का सार

तुम हो मेरा संसार

तुम हो मेरा अधिकार

तुम हो तो …तुम।

© डॉ भावना शुक्ल

सहसंपादक… प्राची

प्रतीक लॉरेल, J-1504, नोएडा सेक्टर – 120,  नोएडा (यू.पी )- 201307

मोब. 9278720311 ईमेल : [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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