हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ इंद्रधनुष #188 ☆ दो मुक्तक… ☆ श्री संतोष नेमा “संतोष” ☆

श्री संतोष नेमा “संतोष”

(आदरणीय श्री संतोष नेमा जी  कवितायें, व्यंग्य, गजल, दोहे, मुक्तक आदि विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं. धार्मिक एवं सामाजिक संस्कार आपको विरासत में मिले हैं. आपके पिताजी स्वर्गीय देवी चरण नेमा जी ने कई भजन और आरतियाँ लिखीं थीं, जिनका प्रकाशन भी हुआ है. आप डाक विभाग से सेवानिवृत्त हैं. आपकी रचनाएँ राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में लगातार प्रकाशित होती रहती हैं। आप  कई सम्मानों / पुरस्कारों से सम्मानित/अलंकृत हैं. “साप्ताहिक स्तम्भ – इंद्रधनुष” की अगली कड़ी में आज प्रस्तुत है आपके दो मुक्तक…। आप श्री संतोष नेमा जी  की रचनाएँ प्रत्येक शुक्रवार आत्मसात कर सकते हैं।)

☆ साहित्यिक स्तम्भ – इंद्रधनुष # 188 ☆

☆ दो मुक्तक☆ श्री संतोष नेमा ☆

[1]

उनके बगैर अपना गुजारा ना हो सका

हम उसके हो गये वो हमारा न हो सका

हम उनसे वफ़ा की उम्मीद क्या करें

जो कभी किसी का सहारा न हो सका

[2]

दुनिया  की भीड़  से जरा हट कर चलो

अपने  मुकाम  पर  जरा  डट कर चलो

दुनिया की मुश्किलों से कभी डरना नहीं

बस गुनाहों  से सदा जरा बच  कर चलो

© संतोष  कुमार नेमा “संतोष”

सर्वाधिकार सुरक्षित

आलोकनगर, जबलपुर (म. प्र.) मो 9300101799

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ बुढ़ापा ☆ प्रो. (डॉ.) शरद नारायण खरे ☆

प्रो. (डॉ.) शरद नारायण खरे

☆ बुढ़ापा ☆ प्रो. (डॉ.) शरद नारायण खरे 

[1]

गुज़रा ज़माना नहीं, वर्तमान भी होता है बुढ़ापा,

सचमुच में चाहतें , अरमान भी होता है बुढ़ापा।

[2]

केवल पीड़ा, उपेक्षा, दर्द, ग़म ही नहीं,

असीमित, अथाह सम्मान भी होता है बुढ़ापा।

[3]

ज़िन्दगी भर के समेटे हुए क़ीमती अनुभव,

गौरव से तना हुआ आसमान भी होता है बुढ़ापा।

[4]

पद,  हैसियत,  दौलत, रुतबा नहीं अब भले ही,

पर सरल, मधुर, आसान भी होता है बुढ़ापा।

[5]

बेटा-बहू, बेटी-दामाद, नाती-पोतों के संग,

समृध्द, उन्नत ख़ानदान भी होता है बुढ़ापा।

[6]

मंगलभाव, शुभकामनाएं, आशीष, और दुआएं,

सच में इक पूरा समुन्नत शुभगान भी होता है बुढ़ापा।

[7]

घुटन, हताशा, एकाकीपन, अवसाद और मायूसी,

गीली आँखें पतन, अवसान भी होता है बुढ़ापा।

[8]

संगी-साथी, रिश्ते-नाते, अपने-पराये मिल जायें यदि,

तो खुशियों से सराबोर महकता सहगान भी होता है बुढ़ापा।

© प्रो.(डॉ.)शरद नारायण खरे

प्राचार्य, शासकीय महिला स्नातक महाविद्यालय, मंडला, मप्र -481661

(मो.9425484382)

ईमेल – [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – संजय ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

? संजय दृष्टि – संजय ? ?

सारी टंकार;

सारे कोदंड

डिगा नहीं पा रहे,

एकाग्रता को

मिटा नहीं पा रहे,

जीवन के महाभारत का

दर्शन कर रहा हूँ,

घटनाओं का

वर्णन कर रहा हूँ,

योगेश्वर उवाच का

श्रवण कर रहा हूँ,

‘संजय’ होने का

निर्वहन कर रहा हूँ।

© संजय भारद्वाज 

(रात्रि 9:14 बजे, 3 अक्टूबर 2015)

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

💥 श्राद्ध पक्ष में साधना नहीं होगी। नियमितता की दृष्टि से साधक आत्मपरिष्कार एवं ध्यानसाधना करते रहें तो श्रेष्ठ है। 💥

🕉️ नवरात्र से अगली साधना आरंभ होगी। 🕉️

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ दिन-रात #20 ☆ कविता – “राह…” ☆ श्री आशिष मुळे ☆

श्री आशिष मुळे

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ दिन-रात # 20 ☆

☆ कविता ☆ “एक दिन…” ☆ श्री आशिष मुळे ☆

ये ना समझो

कि हम भूल गए

ये समझो कि

बस लम्हें ही निकल गए

 

भला पानी को कभी प्यास

भूल सकती है क्या?

या दिन से कभी रात

जुदा हो सकती है क्या?

 

बस दायरे बढ़ गए हैं 

दरारें नहीं

बस वर्तमान सिमट गया है

भूत और भविष्य नहीं

 

शीशे की ये दीवारें

दुनिया ने खड़ी जो की हैं 

इस तरफ भी और उस तरफ भी

इससे बस धूप ही आती है

 

मगर एक दिन

शीशे ये टूटेंगे दिल नहीं

फिर बस प्यार ही खिलेगा

इन लफ्जों की जरूरत नहीं

 

वो दिन आएगा

हम वो लाएंगे

मरते दम तक दीवारों पे

इन लफ्जों के पत्थर मारेंगे

 

© श्री आशिष मुळे

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ समय चक्र # 180 ☆ बालगीत – झिलमिल – झिलमिल पंख सलोने  ☆ डॉ राकेश ‘चक्र’ ☆

डॉ राकेश ‘ चक्र

(हिंदी साहित्य के सशक्त हस्ताक्षर डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी  की अब तक कुल 148 मौलिक  कृतियाँ प्रकाशित। प्रमुख  मौलिक कृतियाँ 132 (बाल साहित्य व प्रौढ़ साहित्य) तथा लगभग तीन दर्जन साझा – संग्रह प्रकाशित। कई पुस्तकें प्रकाशनाधीन। जिनमें 7 दर्जन के आसपास बाल साहित्य की पुस्तकें हैं। कई कृतियां पंजाबी, उड़िया, तेलुगु, अंग्रेजी आदि भाषाओँ में अनूदित । कई सम्मान/पुरस्कारों  से  सम्मानित/अलंकृत। भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय द्वारा बाल साहित्य के लिए दिए जाने वाले सर्वोच्च सम्मान ‘बाल साहित्य श्री सम्मान’ और उत्तर प्रदेश सरकार के हिंदी संस्थान द्वारा बाल साहित्य की दीर्घकालीन सेवाओं के लिए दिए जाने वाले सर्वोच्च सम्मान ‘बाल साहित्य भारती’ सम्मान, अमृत लाल नागर सम्मान, बाबू श्याम सुंदर दास सम्मान तथा उत्तर प्रदेश राज्यकर्मचारी संस्थान  के सर्वोच्च सम्मान सुमित्रानंदन पंत, उत्तर प्रदेश रत्न सम्मान सहित पाँच दर्जन से अधिक प्रतिष्ठित साहित्यिक एवं गैर साहित्यिक संस्थाओं से सम्मानित एवं पुरुस्कृत। 

 आदरणीय डॉ राकेश चक्र जी के बारे में विस्तृत जानकारी के लिए कृपया इस लिंक पर क्लिक करें 👉 संक्षिप्त परिचय – डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी।

आप  “साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र” के माध्यम से  उनका साहित्य आत्मसात कर सकेंगे।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र – # 180 ☆

☆ बालगीत – झिलमिल – झिलमिल पंख सलोने ☆ डॉ राकेश ‘चक्र’ 

 

बालगीत – झिलमिल – झिलमिल पंख सलोने

—————————– 

हम बनकर परी घूमती हैं

     बाग- बगीचे सुंदर वन – वन।

झिलमिल – झिलमिल पंख सलोने

   खिला फूल – सा अपना तन – मन।।

      

 चंदा की ज्योति है शीतल।

        बातें करते उनसे पल – पल।

तारे टिम – टिम चमक रहे हैं,

        हैं सुंदर मोहक  नवल – नवल।

 

सोए धरती के सब प्राणी

       मन रखते अपना मस्त – मगन।

हम बनकर परी घूमती हैं

       बाग- बगीचे सुंदर वन – वन।।

 

हीरे –  पन्ने मोती माणिक

       जन – जन को हम बाँट रही हैं।

निर्धन के भी महल बनाकर

         हर मुश्किल को छाँट रही हैं।

 

सबकी बुद्धि ज्ञान बढ़ाकर

     हम श्रम को करतीं नमन – नमन।

हम बनकर परी घूमती हैं

     बाग  –  बगीचे सुंदर वन –  वन।।

 

संग – साथ हैं कई सहेली,

     सब बच्चों की वे हमजोली।

सबको नए दिखातीं सपने

      रोज बनातीं नई रँगोली।।

 

बढ़िया चीजें उन्हें खिलातीं

  बच्चों को दिखातीं खूब सपन।।

हम बनकर परी घूमतीं हैं

     बाग- बगीचे सुंदर वन- वन।।

© डॉ राकेश चक्र

(एमडी,एक्यूप्रेशर एवं योग विशेषज्ञ)

90 बी, शिवपुरी, मुरादाबाद 244001 उ.प्र.  मो.  9456201857

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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मराठी साहित्य – कवितेचा उत्सव ☆ एक झोपडे कवितेचे… ☆ सौ.वनिता संभाजी जांगळे ☆

सौ.वनिता संभाजी जांगळे

?  कवितेचा उत्सव ?

एक झोपडे कवितेचे☆ सौ. वनिता संभाजी जांगळे ☆

  रूजून अक्षरं अक्षरे

 शब्द हिरवे व्हावे

 गीत शब्दांचे होऊन

 हिरव्या कुशीत रूळावे

 

 ओल्या मातीच्या स्पृर्शानी

 शब्द गंधाळून जावे

 हिरवा आनंद घेऊन

 थवे पाखरांचे व्हावे

 

 सरींनी धुंद होऊन

 मातीला बिलगावे

 चला करूया पेरण

 रूजवू शब्दाचे बियाणे

 

 काळ्या मायला देऊ

 हे दान शब्दपुष्पांचे

 हिरव्या रानात बांधू

 एक झोपडे कवितेचे

© सौ.वनिता संभाजी जांगळे

जांभुळवाडी-पेठ, ता. – वाळवा, जिल्हा – सांगली

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ.उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ तन्मय साहित्य #203 – कविता – ☆ तीन मुक्तक… ☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ ☆

श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

(सुप्रसिद्ध वरिष्ठ साहित्यकार श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी अर्ध शताधिक अलंकरणों /सम्मानों से अलंकृत/सम्मानित हैं। आपकी लघुकथा  रात  का चौकीदार”   महाराष्ट्र शासन के शैक्षणिक पाठ्यक्रम कक्षा 9वीं की  “हिंदी लोक भारती” पाठ्यपुस्तक में सम्मिलित। आप हमारे प्रबुद्ध पाठकों के साथ  समय-समय पर अपनी अप्रतिम रचनाएँ साझा करते रहते हैं। आज प्रस्तुत है आपके “तीन मुक्तक…”।)

☆ तन्मय साहित्य  #203 ☆

☆ तीन मुक्तक… ☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ ☆

[1] 

अपेक्षायें…

अपेक्षाएँ ये

दुखों की खान हैं

अपेक्षाएँ

हवाई मिष्ठान्न हैं

बीज इसमें हैं

निराशा के छिपे,

छीन लेती ये

स्वयं का मान हैं।

☆ ☆

[2]

 बँटे हुए हम लोग…

मजहब, धर्म-पंथ,

अगड़े,पिछड़े में बँटे हुए हम लोग

भिन्न-भिन्न जातियाँ,

एक दूजे से कटे हुए हम लोग

वोटों की विषभरी

राजनीति ने सब को अलग किया

कहाँ देश से प्रेम,

कुर्सियों से अब सटे हुए हम लोग।

☆ ☆

[3]

निष्कर्ष 

है कहाँ सिद्धांत नीति, अब कहाँ आदर्श है

चल रहा है झूठ का ही, झूठ से संघर्ष है

ओढ़ सच का आवरण, है ध्येय केवल एक ही

बस हमीं हम ही रहें, यह एक ही निष्कर्ष है।

☆ ☆ ☆ ☆ ☆

© सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय

जबलपुर/भोपाल, मध्यप्रदेश, अलीगढ उत्तरप्रदेश  

मो. 9893266014

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ जय प्रकाश के नवगीत # 28 ☆ धरती और साँस… ☆ श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव ☆

श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

(संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं अग्रज साहित्यकार श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव जी  के गीत, नवगीत एवं अनुगीत अपनी मौलिकता के लिए सुप्रसिद्ध हैं। आप प्रत्येक बुधवार को साप्ताहिक स्तम्भ  “जय  प्रकाश के नवगीत ”  के अंतर्गत नवगीत आत्मसात कर सकते हैं।  आज प्रस्तुत है आपका एक भावप्रवण एवं विचारणीय नवगीत “धरती और साँस…” ।)

✍ जय प्रकाश के नवगीत # 28 ☆ धरती और साँस… ☆ श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

मुझमें फैला है

सारा आकाश

धरती हर साँस में बसी।

 

छूते हैं विषय मुझे

जब भी मन घिरता है

पानी की लहरें बन

तिनकों सा तिरता है

 

मुझमें पलता है

श्रम का अहसास

धड़कन से ज़िंदगी कसी।

 

बहुत कुछ कहा जाना

अब भी तो बाक़ी है

उजियारी भोर पहन

सूरज बेबाक़ी है

 

उजले पल-छिन में

जीवित मधुमास

होंठों पर थिरकती हँसी।

 

आँख में उदासी के

नित नए सपन जागें

स्वर्णिम इतिहास लिए

यादें बन मृग भागें

 

पोथियों पुराणों में

ठहरा विश्वास

साँसत में जान है फँसी।

***

© श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

सम्पर्क : आई.सी. 5, सैनिक सोसायटी शक्ति नगर, जबलपुर, (म.प्र.)

मो.07869193927,

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – मनोरोग ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

? संजय दृष्टि – मनोरोग ? ?

वह मिला था,

वह मिली थी..,

वह आया था,

वह आई थी..,

वह हँसा था,

वह हँसी थी..,

वह सोया था,

वह सोई थी..,

कर्ता का लिंग बदलने से

नहीं बदलता क्रिया का अर्थ,

व्याकरण तटस्थ होता है..,

कर्ता का लिंग बदलते ही

कर देता है सारे अर्थ वीभत्स,

आदमी मनोरोग से ग्रस्त होता है..!

© संजय भारद्वाज 

(प्रात: 5.01 बजे, 11.12.2019)

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

💥 श्राद्ध पक्ष में साधना नहीं होगी। नियमितता की दृष्टि से साधक आत्मपरिष्कार एवं ध्यानसाधना करते रहें तो श्रेष्ठ है। 💥

🕉️ नवरात्र से अगली साधना आरंभ होगी। 🕉️

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ शायरी कोई भी अच्छी बुरी नहीं होती… ☆ श्री अरुण कुमार दुबे ☆

श्री अरुण कुमार दुबे

(वरिष्ठ साहित्यकार श्री अरुण कुमार दुबे जी, उप पुलिस अधीक्षक पद से मध्य प्रदेश पुलिस विभाग से सेवा निवृत्त हुए हैं । संक्षिप्त परिचय ->> शिक्षा – एम. एस .सी. प्राणी शास्त्र। साहित्य – काव्य विधा गीत, ग़ज़ल, छंद लेखन में विशेष अभिरुचि। आज प्रस्तुत है, आपकी एक भाव प्रवण रचना “शायरी कोई भी अच्छी बुरी नहीं होती“)

✍ शायरी कोई भी अच्छी बुरी नहीं होती… ☆ श्री अरुण कुमार दुबे 

क़द्र घर  में न किसी भी बशर की होती है

और की नजरों में कीमत हुनर की होती है

फूल माला न गलीचों से  खैर मक़दम हो

भूमिका खास समझ ले नजर की होती है

चोट खाके भी हमें जो अता समर करता

आदमी की नहीं फ़ितरत शज़र की होती है

सात तालों में वो महफ़ूज रखने बंद करे

जिस किसी के लिए कीमत गुहर की होती है

शायरी कोई भी अच्छी बुरी नहीं होती

बात बस उंसके दिलों  पर असर की होती है

जब भी डूबी है कोई नाँव बीच दरिया में

इसमें साज़िश रची अकसर भँवर की होती है

कौन फैला रहा नफरत पड़ोसियों में अरुण

ये शरारत न इधर की उधर की होती है

© श्री अरुण कुमार दुबे

सम्पर्क : 5, सिविल लाइन्स सागर मध्य प्रदेश

सिरThanks मोबाइल : 9425172009 Email : arunkdubeynidhi@gmail. com

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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