हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कादम्बरी # 22 – आश्वासन शहदीले हैं… ☆ आचार्य भगवत दुबे ☆

आचार्य भगवत दुबे

(संस्कारधानी जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर आचार्य भगवत दुबे जी को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया है।सीमित शब्दों में आपकी उपलब्धियों का उल्लेख अकल्पनीय है। आचार्य भगवत दुबे जी के व्यक्तित्व एवं कृतित्व की विस्तृत जानकारी के लिए कृपया इस लिंक पर क्लिक करें 👉 ☆ हिन्दी साहित्य – आलेख – ☆ आचार्य भगवत दुबे – व्यक्तित्व और कृतित्व ☆. आप निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणा स्त्रोत हैं। हमारे विशेष अनुरोध पर आपने अपना साहित्य हमारे प्रबुद्ध पाठकों से साझा करना सहर्ष स्वीकार किया है। अब आप आचार्य जी की रचनाएँ प्रत्येक मंगलवार को आत्मसात कर सकेंगे।  आज प्रस्तुत हैं आपकी एक भावप्रवण रचना – आश्वासन शहदीले हैं।)

✍  साप्ताहिक स्तम्भ – ☆ कादम्बरी # 22 – आश्वासन शहदीले हैं ☆ आचार्य भगवत दुबे ✍

केशर की क्यारी में ऊगे

संस्कार पथरीले हैं 

 

बातों में तो रस मलाई है 

किन्तु आचरण क्रूर कसैले 

उपदेशों में अमृत वर्षा 

दुष्प्रचार हैं घृणित विषैले 

तन से तो दिखते सन्यासी

मन से बहुत रसीले हैं 

 

है कितना पाखण्ड आजकल 

राजनीति के गलियारों में 

नेता बाहुबली शामिल हैं 

चोर, डाकुओं, हत्यारों में 

इन धोखेबाजों के सारे

आश्वासन शहदीले हैं 

 

आदमखोर मगरमच्छों को 

पाला है मीठी झीलों ने 

उनको ही आहार बनाया 

जब पानी माँगा भीलों ने 

जिन्हें केंचुआ समझा हमने

वे विषधर जहरीले हैं

https://www.bhagwatdubey.com

© आचार्य भगवत दुबे

82, पी एन्ड टी कॉलोनी, जसूजा सिटी, पोस्ट गढ़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ मनोज साहित्य # 99 – मनोज के दोहे…हिन्दी ☆ श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” ☆

श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं सजग अग्रज साहित्यकार श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” जी  के साप्ताहिक स्तम्भ  “मनोज साहित्य ” में आज प्रस्तुत है “मनोज के दोहे…”। आप प्रत्येक मंगलवार को आपकी भावप्रवण रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे।

✍ मनोज साहित्य # 99 – मनोज के दोहे… हिन्दी ☆

दोहे लिखे मनोज ने, भाषा सहज सुबोध।

समझ सभी को आ सकें, हटें सभी अवरोध ।।

 

हिन्दी हिन्दुस्तान की, भारत को अभिमान।

भाषाओं में श्रे़ष्ठतम, संस्कृत का अभियान।।

 

धरा कनाडा में बड़ा, सरन घई का नाम।

हिंदी के प्रति हैं खड़े, करें अनोखे काम।।

 

वसुधा की संपादिका, स्नेहा जी का नाम।

ग्रंथों की हैं लेखिका, देश कनाडा धाम।।

 

अखिल विश्व हिंदी समिति, संयोजक गोपाल।

हिंदी का ध्वज ले चले, तिलक सजा है भाल।।

 

अनगिन लेखक हैं वहाँ, हिंदी के विख्यात।

साहित्य-कुंज, प्रयास में, लिखते हैं दिनरात।।

 

हिंदी को अपनाइए, बढ़ी जगत में शान।

मोदी ने भाषण दिए, हम सबको अभिमान ।।

 

 ©  मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संपर्क – 58 आशीष दीप, उत्तर मिलोनीगंज जबलपुर (मध्य प्रदेश)- 482002

मो  94258 62550

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – धरना ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

? संजय दृष्टि – धरना ? ?

वह चलता रहा

वे हँसते रहे..,

वह बढ़ता रहा

वे दम भरते रहे..,

शनै:-शनै: वह

निकल आया दूर,

इतनी दूरी तय करना

बूते में नहीं, सोचकर

सारे के सारे ऐंठे हैं..,

कछुए की सक्रियता के विरुद्ध

खरगोश धरने पर बैठे हैं.!

© संजय भारद्वाज 

प्रात: 4:35 बजे, 3.1.2020

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

💥 श्रीगणेश साधना, गणेश चतुर्थी मंगलवार दि. 19 सितंबर को आरम्भ होकर अनंत चतुर्दशी तदनुसार गुरुवार 28 सितंबर तक चलेगी। 💥

🕉️ इस साधना का मंत्र होगा- ॐ गं गणपतये नमः🕉️

💥 साधक इस मंत्र के मालाजप के साथ ही कम से कम एक पाठ अथर्वशीर्ष का भी करने का प्रयास करें। जिन साधकों को अथर्वशीर्ष का पाठ कठिन लगे, वे कम से कम श्रवण अवश्य करें।💥

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ विवेक साहित्य # 232 ☆ कविता – कृष्ण ही ब्रह्म हैं… ☆ श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ☆

(प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ जी के साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक साहित्य ”  में हम श्री विवेक जी की चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाने का प्रयास करते हैं। श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, मुख्यअभियंता सिविल  (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी , जबलपुर ) से सेवानिवृत्त हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है। आपको वैचारिक व सामाजिक लेखन हेतु अनेक पुरस्कारो से सम्मानित किया जा चुका है।आज प्रस्तुत है एक कविता – कृष्ण ही ब्रह्म हैं)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक सहित्य # 232 ☆

? कविता – कृष्ण ही ब्रह्म हैं ?

कृष्ण ही ब्रह्म हैं, कृष्ण ही दिष्यु हैं

कृष्ण ही सत्य हैं, कृष्ण सर्वस्व हैं

हम राहगीर हैं, कृष्ण की राह के

 

कृष्ण से गीत हैं,कृष्ण से मीत हैं

कृष्ण से प्रीत है, कृष्ण से जीत है

हम राहगीर हैं,कृष्ण की राह के

 

कृष्ण हैं काफिया,कृष्ण ही हैं रदीफ

कृष्ण से नज्म है, कृष्ण में वज्न है

हम राहगीर हैं, कृष्ण की राह के

 

कृष्ण हैं शाश्वत, कृष्ण अंतहीन हैं

कृष्ण ही हैं प्रकृति, कृष्ण संसार हैं

हम राहगीर हैं, कृष्ण की राह के

 

कृष्ण सरोकार हैं, कृष्ण ही प्यार हैं

कृष्ण त्यौहार हैं, कृष्ण व्यवहार हैं

हम राहगीर हैं, कृष्ण की राह के

 

 

कृष्ण ही हैं किताब, कृष्ण ही ग्रंथगार

कृष्ण ही हैं नियम, कृष्ण सरकार हैं

हम राहगीर हैं, कृष्ण की राह के

 

कृष्ण हैं शीर्षक, कृष्ण ही वाक्य हैं

कृष्ण ही भाष्य हैं, कृष्ण अभिसार हैं

हम राहगीर हैं, कृष्ण की राह के

 

कृष्ण ही मंजिलें, कृष्ण ही मार्ग हैं

हम राहगीर हैं, कृष्ण की राह के

© विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ 

ए 233, ओल्ड मिनाल रेजीडेंसी भोपाल 462023

मोब 7000375798

ईमेल [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ लेखनी सुमित्र की # 157 – गीत – मैंने सब कुछ मान लिया… ☆ डॉ. राजकुमार तिवारी “सुमित्र” ☆

डॉ राजकुमार तिवारी ‘सुमित्र’

(संस्कारधानी  जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर डॉ. राजकुमार “सुमित्र” जी  को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी  हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया।  वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणास्रोत हैं। आज प्रस्तुत हैं  आपका भावप्रवण गीत – मैंने सब कुछ मान लिया।)

✍ साप्ताहिक स्तम्भ – लेखनी सुमित्र की # 157 – गीत – मैंने सब कुछ मान लिया…  ✍

जो भी तुमने कहा सुनयने

मैंने सब कुछ मान लिया।

 

तुमने कहा दूर हट जाओ

खड़ा हुआ मैं हट के

वही कायदे माने मैंने

जो होते पनघट के

 

तुमने कहा नाम मत पूछो

मुझको नहीं भरोसा,

मैं तो मरा प्यास का मारा

तुमने जीभर कोसा।

बेमन से कोसा था तुमने

मैंने सच को जान लिया

 

तुमने कहा भूलना होगा

पिछली सारी यादें

इसका मतलब समझा मैंने

सुन लोगी फरियादें ।

मौन स्वयं मुखरित होता है

मैंने मन में ठान लिया।

© डॉ राजकुमार “सुमित्र”

112 सर्राफा वार्ड, सिटी कोतवाली के पीछे चुन्नीलाल का बाड़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ अभिनव गीत # 157 – “क्या निष्कर्ष निकालूँ…?” ☆ श्री राघवेंद्र तिवारी ☆

श्री राघवेंद्र तिवारी

(प्रतिष्ठित कवि, रेखाचित्रकार, लेखक, सम्पादक श्रद्धेय श्री राघवेंद्र तिवारी जी  हिन्दी, दूर शिक्षा, पत्रकारिता व जनसंचार,  मानवाधिकार तथा बौद्धिक सम्पदा अधिकार एवं शोध जैसे विषयों में शिक्षित एवं दीक्षित। 1970 से सतत लेखन। आपके द्वारा सृजित ‘शिक्षा का नया विकल्प : दूर शिक्षा’ (1997), ‘भारत में जनसंचार और सम्प्रेषण के मूल सिद्धांत’ (2009), ‘स्थापित होता है शब्द हर बार’ (कविता संग्रह, 2011), ‘​जहाँ दरक कर गिरा समय भी​’​ ( 2014​)​ कृतियाँ प्रकाशित एवं चर्चित हो चुकी हैं। ​आपके द्वारा स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम के लिए ‘कविता की अनुभूतिपरक जटिलता’ शीर्षक से एक श्रव्य कैसेट भी तैयार कराया जा चुका है। आज प्रस्तुत है आपका एक अभिनव गीत  क्या निष्कर्ष निकालूँ…?)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ # 157 ☆।। अभिनव गीत ।। ☆

☆ “क्या निष्कर्ष निकालूँ…?” ☆ श्री राघवेंद्र तिवारी

फोन किया करती थी माँ

बेटी को जब घरसे

‘बहुत मजे मे हूँ माँ, कहती

अपने घर, वर से’

 

कहती बेटी विल्कुल भी

चिन्ता मत करना माँ

नहीं कह रही अधिक

मिलाने तेरी हाँ, में हाँ

 

माँ , लेकिन संतुष्ट नही थी

उसके कहने से

बोली क्या निष्कर्ष निकालूँ

तेरे उत्तर से

 

उधर रोज खटती थी बेटी

कठिन नियंत्रण से

मन मसोस रह जाती थी

इस नित- नित के रण से

 

माँ को क्या बतलाती

अपने अंतर की पीड़ा

पूरी नींद नहीं सो पाती

भीतर- बाहर से

 

दिन भर सास सवार

रातआती ‘उनकी’ बारी

सबका साथ निभाना था

बस उसकी लाचारी

 

टूट-टूट कर बिखरी मिलती

सुबह जागने पर

जैसे हिरनी बच पायी हो

हिंसक नाहर से

©  श्री राघवेन्द्र तिवारी

21-09-2023

संपर्क​ ​: ई.एम. – 33, इंडस टाउन, राष्ट्रीय राजमार्ग-12, भोपाल- 462047​, ​मोब : 09424482812​

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – जीवन ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

? संजय दृष्टि – जीवन ? ?

जुग-जुग जीते सपने,

थोड़े-से पल अपने,

सूक्ष्म-स्थूल का

दुर्लभ संतुलन है,

नश्वर और ईश्वर का

चिरंतन मिलन है,

जीवन, आशंकाओं के पहरे में

संभावनाओं का सम्मेलन है!

© संजय भारद्वाज 

(रात्रि 8.11 बजे, 30.3.2019)

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

💥 श्रीगणेश साधना, गणेश चतुर्थी मंगलवार दि. 19 सितंबर को आरम्भ होकर अनंत चतुर्दशी तदनुसार गुरुवार 28 सितंबर तक चलेगी। 💥

🕉️ इस साधना का मंत्र होगा- ॐ गं गणपतये नमः🕉️

💥 साधक इस मंत्र के मालाजप के साथ ही कम से कम एक पाठ अथर्वशीर्ष का भी करने का प्रयास करें। जिन साधकों को अथर्वशीर्ष का पाठ कठिन लगे, वे कम से कम श्रवण अवश्य करें।💥

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 150 ☆ # झुंड… # ☆ श्री श्याम खापर्डे ☆

श्री श्याम खापर्डे

(श्री श्याम खापर्डे जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी हैं। आप प्रत्येक सोमवार पढ़ सकते हैं साप्ताहिक स्तम्भ – क्या बात है श्याम जी । आज प्रस्तुत है आपकी समसामयिक घटना पर आधारित एक भावप्रवण कविता “# झुंड… #”

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 150 ☆

☆ # झुंड#

हम तमाम उम्र जिन वंचितों के हक के लिए लड़े

जब कुछ भी ना बदल सके तो

आंसू निकल पड़े

सब कुछ लगाया दांव पर

धूप ही मिली,

नहीं मिली छांव पर

पसीने से तरबतर रहे

भीषण गर्मी में खड़े

बुल-डोजरों  ने बस्तियां उजाड़ दी

बसी बसाई गृहस्थियाँ  उजाड़ दी

सब मूकदर्शक बने हुए है

वो गरीब किस किस से नही लड़े

ना सर पर छत है, ना रोजगार है

चारों तरफ महंगाई की मार है

भूख से बिलखते बच्चे

तड़प रहें है पड़े पड़े

आंखों में विलाप है

जीवन है या अभिशाप है

यह जीना कोई जीना है

सोच रहे हैं खड़े खड़े

ऐसे जीने से तो जी भर गया

इन लोगों का तो ज़मीर मर गया

चल उठा मशाल, आगे बढ़

इंतजार में है तेरे ” झूंड” बड़े बड़े/

 

© श्याम खापर्डे

फ्लेट न – 402, मैत्री अपार्टमेंट, फेज – बी, रिसाली, दुर्ग ( छत्तीसगढ़) मो  9425592588

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – कविता ☆ दोहों में स्वामी विवेकानंद ☆ प्रो. (डॉ.) शरद नारायण खरे ☆

प्रो. (डॉ.) शरद नारायण खरे

☆ दोहों में स्वामी विवेकानंद ☆ प्रो. (डॉ.) शरद नारायण खरे 

प्रखर रूप मन भा रहा, दिव्य और अभिराम।

स्वामी जी तुम थे सदा, लिए विविध आयाम।।

 

स्वामी जी तुम चेतना, थे विवेक-अवतार।

अंधकार का तुम सदा, करते थे संहार।।

 

जीवन का तुम सार थे, दिनकर का थे रूप।

बिखराई नव रोशनी, दी मानव को  धूप।।

 

सत्य, न्याय, सद्कर्म थे, गुरुवर थे तुम ताप।

काम, क्रोध, मद, लोभ हर, धोया सब संताप।।

 

गुरुवर तुमने विश्व को, दिया ज्ञान का नूर।

तेज अपरिमित संग था, शील भरा भरपूर।।

 

त्याग, प्रेम, अनुराग था, धैर्य, सरलता संग।

खिले संत तुमसे सदा, जीवन के नव रंग।।

 

था सामाजिक जागरण,  सरोकार, अनुबंध।

कभी न टूटे आपसे, कर्मठता के बंध।।

 

सुर, लय थे, तुम ताल थे, बने धर्म की तान।

गुरुवर तुम तो शिष्य का, थे नित ही यशगान।।

 

मधुर नेह थे, प्रीति थे, अंतर के थे भाव।

गुरुवर तुमने धर्म को, सौंपा पावन ताव।।

 

वंदन, अभिनंदन करूँ, गुरुवर तेरा  नित्य।

थे तुम खिलती चाँदनी, दमके बन आदित्य।।

      

© प्रो.(डॉ.)शरद नारायण खरे

प्राचार्य, शासकीय महिला स्नातक महाविद्यालय, मंडला, मप्र -481661

(मो.9425484382)

ईमेल – [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

English Literature – Poetry ☆ Anonymous litterateur of Social Media # 158 ☆ Captain Pravin Raghuvanshi, NM ☆

Captain Pravin Raghuvanshi, NM

? Anonymous Litterateur of Social Media # 158 (सोशल मीडिया के गुमनाम साहित्यकार # 158) ?

Captain Pravin Raghuvanshi —an ex Naval Officer, possesses a multifaceted personality. He served as a Senior Advisor in prestigious Supercomputer organisation C-DAC, Pune. He was involved in various Artificial Intelligence and High-Performance Computing projects of national and international repute. He has got a long experience in the field of ‘Natural Language Processing’, especially, in the domain of Machine Translation. He has taken the mantle of translating the timeless beauties of Indian literature upon himself so that it reaches across the globe. He has also undertaken translation work for Shri Narendra Modi, the Hon’ble Prime Minister of India, which was highly appreciated by him. He is also a member of ‘Bombay Film Writer Association’.

Captain Raghuvanshi is also a littérateur par excellence. He is a prolific writer, poet and ‘Shayar’ himself and participates in literature fests and ‘Mushayaras’. He keeps participating in various language & literature fests, symposiums and workshops etc. Recently, he played an active role in the ‘International Hindi Conference’ at New Delhi.  He presided over the “Session Focused on Language and Translation” and also presented a research paper.  The conference was organized by Delhi University in collaboration with New York University and Columbia University.

हिंदी साहित्य – आलेख ☆ अंतर्राष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन ☆ कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

In his naval career, he was qualified to command all types of warships. He is also an aviator and a Sea Diver; and recipient of various awards including ‘Nao Sena Medal’ by the President of India, Prime Minister Award and C-in-C Commendation.

Captain Pravin Raghuvanshi is also an IIM Ahmedabad alumnus. His latest quest involves social media, which is filled with rich anonymous literature of nameless writers, shared on different platforms, like, WhatsApp / Facebook / Twitter / Your quotes / Instagram etc. in Hindi and Urdu, he has taken the mantle of translating them as a mission for the enjoyment of the global readers. Enjoy some of the Urdu poetry couplets as translated by him.

हम ई-अभिव्यक्ति के प्रबुद्ध पाठकों के लिए आदरणीय कैप्टेन प्रवीण रघुवंशी जी के “कविता पाठ” का लिंक साझा कर रहे हैं। कृपया आत्मसात करें।

फेसबुक पेज लिंक  >>कैप्टेन प्रवीण रघुवंशी जी का “कविता पाठ” 

? English translation of Urdu poetry couplets of Anonymous litterateur of Social Media # 158 ?

☆☆☆☆☆

 ☆ Life-giving Trees

निरंतर शोभित कराते महामार्गों को

जीवनदाई वृक्षों कि ये अनंत कतार

प्राण तजते, क्रूर विकास-पटल पर

पुनः रोपित होते, करते अपना विस्तार…!

Continuously adoring the highways are

these endless rows of life-giving trees

Sacrifice themselves, on the cruel altar of

development but they resurrect again…!

☆☆☆☆☆

 ☆ Untrue Dreams

 ख़्वाब झूठे ही सही

मगर कम से कम 

तुमसे  मुलाक़ात  तो

रोज़ करवाते  हैं…

Dreams may be false  

but at least

they make me meet

you every day…!

☆☆☆☆☆

 ☆ Shortcomings

 ☆

कमियाँ खोजोगे तो

तमाम मिल ही जाएंगी …

रब के बंदे हैं, साहब

खुद रब तो नहीं…!

If you look for imperfections,

You will find in plenty

I’m the God’s servitor, Sire,

Not the Lord Himself…!

☆☆☆☆☆

 ☆ Sincerety

दरवाज़ा मेरे घर का

बंद देख कर

झोंका हवा का खिड़की के पर्दे

हिला के चला गया…

Seeing the door of

my house closed…

Gust of wind shook the window

curtains and went away…

☆☆☆☆☆

© Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Pune

≈ Editor – Shri Hemant Bawankar/Editor (English) – Captain Pravin Raghuvanshi, NM ≈

Please share your Post !

Shares