हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – परिचय ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

? संजय दृष्टि – परिचय ??

अखंड रचते हैं;

कहकर परिचय

कराया जाता है,

कुछ हाइकु भर

उतरे काग़ज़ पर;

भीतर घुमड़ते

अनंत सर्गों के

अखंड महाकाव्य

कब लिख पाया,

सोचकर संकोच

से गड़ जाता है!

© संजय भारद्वाज 

सुबह 9.24, 20.11.19

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

💥 महादेव साधना- 30 अगस्त 2023 को सम्पन्न हुई। हम शीघ्र ही आपको अगली साधना की जानकारी देने का प्रयास करेंगे। 🕉️💥

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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English Literature – Poetry ☆ ‘कर्मण्येवाधिकारस्ते!…’ श्री संजय भारद्वाज (भावानुवाद) – ‘Karma is Dharma’ ☆ Captain Pravin Raghuvanshi, NM ☆

Captain Pravin Raghuvanshi, NM

(Captain Pravin Raghuvanshi —an ex Naval Officer, possesses a multifaceted personality. He served as a Senior Advisor in prestigious Supercomputer organisation C-DAC, Pune. He was involved in various Artificial Intelligence and High-Performance Computing projects of national and international repute. He has got a long experience in the field of ‘Natural Language Processing’, especially, in the domain of Machine Translation. He has taken the mantle of translating the timeless beauties of Indian literature upon himself so that it reaches across the globe. He has also undertaken translation work for Shri Narendra Modi, the Hon’ble Prime Minister of India, which was highly appreciated by him. He is also a member of ‘Bombay Film Writer Association’.

We present an English Version of Shri Sanjay Bhardwaj’s Hindi poem कर्मण्येवाधिकारस्ते!.  We extend our heartiest thanks to the learned author Captain Pravin Raghuvanshi Ji (who is very well conversant with Hindi, Sanskrit, English and Urdu languages) for this beautiful translation and his artwork.)

श्री संजय भारद्वाज जी की मूल रचना

? संजय दृष्टि – कर्मण्येवाधिकारस्ते!  ??

भीड़ का जुड़ना / भीड़ का छिटकना,

इनकी आलोचनाएँ  / उनकी कुंठाएँ,

विचलित नहीं करतीं / तुम्हें पथिक..?

पथगमन मेरा कर्म / पथक्रमण मेरा धर्म,

प्रशंसा, निंदा से / अलिप्त रहता हूँ,

अखंडित यात्रा पर /मंत्रमुग्ध रहता हूँ,

पथिक को दिखते हैं / केवल रास्ते,

इसलिए प्रतिपल / कर्मण्येवाधिकारस्ते!

© संजय भारद्वाज 

मोबाइल– 9890122603, संजयउवाच@डाटामेल.भारत, [email protected]

☆☆☆☆☆

English Version by – Captain Pravin Raghuvanshi

? ~Karma is Dharma…??

O’ Dear Wanderer..!

Gathering of crowd

Dispersing of crowd,

Their pricking criticism 

mounting frustrations,

Doesn’t it bother  you ..?

 

Treading of paths is

my Karma, –the duty… 

Endless traversing is

my Dharma, –the faith…

I am detached from praise,

censure and felicitations…

 

I’m perennially  embarked

on my obsessed  journey…

As traveler I’m ever fixated

with my righteous path,

That’s why every moment is resolutely followed,

as the adage goes-

“Karmanyevadhikaraste…,”

That’s ‘Keep doing your

Karma  without  any 

expectation of the results…!

~Pravin

© Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Pune

≈ Editor – Shri Hemant Bawankar/Editor (English) – Captain Pravin Raghuvanshi, NM ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 146 ☆ # रक्षाबंधन… # ☆ श्री श्याम खापर्डे ☆

श्री श्याम खापर्डे

(श्री श्याम खापर्डे जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी हैं। आप प्रत्येक सोमवार पढ़ सकते हैं साप्ताहिक स्तम्भ – क्या बात है श्याम जी । आज प्रस्तुत है आपकी समसामयिक घटना पर आधारित एक भावप्रवण कविता “# रक्षाबंधन… #”

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 146 ☆

☆ # रक्षाबंधन#

रेशमी धागों से बनती है राखियां

भाई के कलाईयों पर बंधती है राखियां

वर्षभर इस पल के इंतजार में

बहनें, प्रेम से बुनती है राखियां

देश या परदेश में हो उसका भाई

आज सुबह से उसकी याद है आई

हर रक्षाबंधन पर मिलने का वादा किया था

जब मायके से उसकी हुई थी बिदाई

महीना भर पहले उसने भेजी थी राखी

क्या पता भाई को मिली या नही राखी ?

अभी तक कोई संदेशा नही आया

व्याकुल है बहन, क्या नही मिली होगी राखी ?

कहीं भाभी ने छुपा ना लिया हो

राखी को भैया को ना दिया हो

भाभी से थोड़ी सी खटपट हुई थी

कहीं भाभी ने उसका बदला ना लिया हो

तरह तरह के विचार उसे आ रहे है

अंदर ही अंदर प्राण खा रहे है

सुबह से बैठी है इंतजार में

भैया फोन भी क्यूं नहीं उठा रहे है ?

भाई के लिए यह आरती सजी है

बहना भी कुछ सजी-धजी है

जब निराश हो ग ई वो राह देखते

तभी दरवाजे की बेल बजी है

जब दरवाजे पर आया उसका भाई

उसकी आंखें अश्रुओं से भर आई

भाई से लिपट गई वो खुशी खुशी से

वो मुस्कुराई जैसे मिली हो खुदा की खुदाई

भाई ने विधि विधान से राखी बंधाई

बहना के सर पर हाथ रखकर, मिठाई खाई

रक्षा करने का वचन देकर

भाई ने अपनी भेंट बहना को थमाई

यूंही अमर रहे सदा भाई-बहन का प्यार

उनके जीवन में हो स्नेह और दुलार

दुःख उन्हें कभी छू भी ना पायेगा

रक्षाबंधन है इसी पवित्र रिश्ते का त्योहार/

© श्याम खापर्डे

फ्लेट न – 402, मैत्री अपार्टमेंट, फेज – बी, रिसाली, दुर्ग ( छत्तीसगढ़) मो  9425592588

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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English Literature – Poetry ☆ Anonymous litterateur of Social Media # 155 ☆ Captain Pravin Raghuvanshi, NM ☆

Captain Pravin Raghuvanshi, NM

? Anonymous Litterateur of Social Media # 155 (सोशल मीडिया के गुमनाम साहित्यकार # 155) ?

Captain Pravin Raghuvanshi —an ex Naval Officer, possesses a multifaceted personality. He served as a Senior Advisor in prestigious Supercomputer organisation C-DAC, Pune. He was involved in various Artificial Intelligence and High-Performance Computing projects of national and international repute. He has got a long experience in the field of ‘Natural Language Processing’, especially, in the domain of Machine Translation. He has taken the mantle of translating the timeless beauties of Indian literature upon himself so that it reaches across the globe. He has also undertaken translation work for Shri Narendra Modi, the Hon’ble Prime Minister of India, which was highly appreciated by him. He is also a member of ‘Bombay Film Writer Association’.

Captain Raghuvanshi is also a littérateur par excellence. He is a prolific writer, poet and ‘Shayar’ himself and participates in literature fests and ‘Mushayaras’. He keeps participating in various language & literature fests, symposiums and workshops etc. Recently, he played an active role in the ‘International Hindi Conference’ at New Delhi.  He presided over the “Session Focused on Language and Translation” and also presented a research paper.  The conference was organized by Delhi University in collaboration with New York University and Columbia University.

हिंदी साहित्य – आलेख ☆ अंतर्राष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन ☆ कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

In his naval career, he was qualified to command all types of warships. He is also an aviator and a Sea Diver; and recipient of various awards including ‘Nao Sena Medal’ by the President of India, Prime Minister Award and C-in-C Commendation.

Captain Pravin Raghuvanshi is also an IIM Ahmedabad alumnus. His latest quest involves social media, which is filled with rich anonymous literature of nameless writers, shared on different platforms, like, WhatsApp / Facebook / Twitter / Your quotes / Instagram etc. in Hindi and Urdu, he has taken the mantle of translating them as a mission for the enjoyment of the global readers. Enjoy some of the Urdu poetry couplets as translated by him.

हम ई-अभिव्यक्ति के प्रबुद्ध पाठकों के लिए आदरणीय कैप्टेन प्रवीण रघुवंशी जी के “कविता पाठ” का लिंक साझा कर रहे हैं। कृपया आत्मसात करें।

फेसबुक पेज लिंक  >>कैप्टेन प्रवीण रघुवंशी जी का “कविता पाठ” 

? English translation of Urdu poetry couplets of Anonymous litterateur of Social Media # 155 ?

☆☆☆☆☆

☆ Paradoxical Veracity ☆ 

☆ ☆ 

जिनके पास अपने होते हैं,

वो अपनों से झगड़ते हैं,

नहीं है जिनका कोई अपना,

वो अपनों को तरसते हैं…

☆☆

Those who’ve their loved ones

they keep quarreling with them,

Those who’ve none of their own,

long to have the loved ones!

☆☆☆☆☆

नफरत  तक  भी

क्यूँ  करें  उससे,

उतना  भी  वास्ता

क्यूँ  कर  रखना..!

☆☆

Why  should  I 

even  hate  him,

Why be concerned

even that much..!

☆☆☆☆☆

शख़्स  बनकर  नहीं  बल्कि

    शख़्सियत बनकर जियो, दोस्त

शख़्स का इंतकाल तय है मगर

    शख़्सियत हमेशा जिन्दा रहती है

☆☆

Don’t try living as a person,

    live as a personality, friend

Death of a person is certain but

    the personality lives on forever…

☆☆☆☆☆

हमें तो लगा था कि वो

सिर्फ आज़माइश कर रहे हैं

 ये तो बाद में पता चला

वो फैसला पहले ही कर चुके थे…!

☆☆

I was under the impression that

they were just having a trial run

Later did I realise that they had

already chosen someone else…!

☆☆☆☆☆

© Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Pune

≈ Editor – Shri Hemant Bawankar/Editor (English) – Captain Pravin Raghuvanshi, NM ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सलिल प्रवाह # 153 ☆ दोहा सलिला : शिक्षक पारसमणि सदृश… ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ☆

आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

(आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ जी संस्कारधानी जबलपुर के सुप्रसिद्ध साहित्यकार हैं। आपको आपकी बुआ श्री महीयसी महादेवी वर्मा जी से साहित्यिक विधा विरासत में प्राप्त हुई है । आपके द्वारा रचित साहित्य में प्रमुख हैं पुस्तकें- कलम के देव, लोकतंत्र का मकबरा, मीत मेरे, भूकंप के साथ जीना सीखें, समय्जयी साहित्यकार भगवत प्रसाद मिश्रा ‘नियाज़’, काल है संक्रांति का, सड़क पर आदि।  संपादन -८ पुस्तकें ६ पत्रिकाएँ अनेक संकलन। आप प्रत्येक सप्ताह रविवार को  “साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह” के अंतर्गत आपकी रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है दोहा सलिला : शिक्षक पारसमणि सदृश)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 153 ☆

दोहा सलिला : शिक्षक पारसमणि सदृश… ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

(छंद : हरिगीतिका)

शिक्षक पारसमणि सदृश, करे लौह को स्वर्ण.

दूर करे अज्ञानता, उगा बीज से पर्ण..

*

सत-शिव-सुंदर साध्य है, साधन शिक्षा-ज्ञान.

सत-चित-आनंद दे हमें, शिक्षक गुण-रस-खान..

*

शिक्षक शिक्षा दे सदा, सकता शिष्य निखार.

कंकर को शंकर बना, जीवन सके सँवार..

*

शिक्षक वह जो सिखा दे, भाषा गुण विज्ञान.

नेह निनादित नर्मदा, बहे बना गुणवान..

*

प्रतिभा को पहचानकर, जो दिखलाता राह.

शिक्षक उसको जानिए, जिसमें धैर्य अथाह..

*

जान-समझ जो विषय को, रखे पूर्ण अधिकार.

उस शिक्षक का प्राप्य है, शत शिष्यों का प्यार..

*

शिक्षक हो संदीपनी, शिष्य सुदामा-श्याम.

बना सकें जो धरा को, तीरथ वसुधा धाम..

*

विश्वामित्र-वशिष्ठ हों, शिक्षक ज्ञान-निधान.

राम-लखन से शिष्य हों, तब ही महिमावान..

*

द्रोण न हों शिक्षक कभी, ले शिक्षा का दाम.

एकलव्य से शिष्य से, माँग अँगूठा वाम..

*

शिक्षक दुर्वासा न हो, पल-पल दे अभिशाप.

असफल हो यदि शिष्य तो, गुरु को लगता पाप..

*

राधाकृष्णन को कभी, भुला न सकते छात्र.

जानकार थे विश्व में, वे दर्शन के मात्र..

*

महीयसी शिक्षक मिलीं, शिष्याओं का भाग्य.

करें जन्म भर याद वे, जिन्हें मिला सौभाग्य..

*

शिक्षक मिले रवीन्द्र सम, शिष्य शिवानी नाम.

मणि-कांचन संयोग को, करिए विनत प्रणाम..

*

ओशो सा शिक्षक मिले, बने सरल-हर गूढ़.

विद्वानों को मात दे, शिष्य रहा हो मूढ़..

*

हो कलाम शिक्षक- ‘सलिल’, झट बन जा तू छात्र.

गत-आगत का सेतु सा, ज्ञान मिले बन पात्र..

*

ज्यों गुलाब के पुष्प में, रूप गंध गुलकंद.

त्यों शिक्षक में समाहित, ज्ञान-भाव-आनंद..

©  आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

२४-८-२०१६, जबलपुर

संपर्क: विश्ववाणी हिंदी संस्थान, ४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१,

चलभाष: ९४२५१८३२४४  ईमेल: [email protected]

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ “श्री राम नाम चालीसा”- श्री सदानंद आंबेकर ☆

☆ “श्री राम नाम चालीसा”- श्री सदानंद आंबेकर  ☆

(आप सामान्य पुस्तक की तरह ऊँगली से पृष्ठ पलट कर पुस्तक पढ़ सकते हैं अथवा पृष्ठ के दाहिने ऊपरी या निचले कोने पर क्लिक करें। आप ऊपर दाहिनी और नेविगेशन मेनू का प्रयोग भी कर सकते हैं।)

श्री सदानंद आंबेकर

जन्म – 03 सितम्बर 1961 को पुण्य सलिला नर्मदा के पास जबलपुर में

शिक्षा – डॉ हरिसिंह गौर वि वि सागर से 1981 में वाणिज्य से स्नातकोत्तर

परिचय – 1982 में भारतीय स्टेट बैंक में सेवारम्भ, 2011 से स्वैच्छिक सेवा निवृत्ति लेकर अखिल विश्व गायत्री परिवार में स्वयंसेवक के रूप में 2022 तक सतत कार्य।

सम्प्रति – माँ गंगा एवं हिमालय से असीम प्रेम के कारण 2011 से गंगा की गोद एवं हिमालय की छाया में शांतिकुंज आश्रम हरिद्वार में निवास। अपनी इसी रूचि के कारण लगभग पूरी गंगा की यात्रा का अवसर मिला। यहाँ आने का उद्देश्य आध्यात्मिक उपलब्धि, समाजसेवा या सिद्धि पाना नहीं वरन कुछ ‘ मन का और हट कर ‘ करना रहा। जनवरी 2022 में शांतिकुंज में अपना संकल्पित कार्यकाल पूर्ण कर गृह नगर भोपाल वापसी एवं वर्तमान में वहीं निवास।

लेखन – स्वान्तः सुखाय। मैंने स्वयं को कभी लेखक या कवि नहीं माना, बैंक में हो या समाज में, आस पास की घटनाओं , चरित्रों को पढ़ा और स्वयंस्फूर्त कलम चल गयी , बस यही है मेरी रचना। मराठी मेरी माँ है तो हिंदी लाड़ली मौसी सो दोनों में अभिव्यक्तियाँ हुई। कोई साहित्यिक उपलब्धि नहीं।

विशेष – इस संस्था के निर्मल गंगा जन अभियान में भूमिका। गंगा स्वच्छता हेतु जन जागरण हेतु गंगा तट पर 2013 से निरंतर प्रवास। इसके अतिरिक्त वृक्षारोपण, बाल संस्कार शाला आदि पर भी सहयोगी भूमिका।

रुचियाँ – यात्रा , छायाकारी , लेखन और वाचन, विशेषतः कहानी।

सकारात्मक संदेश – ईश्वर का दिया यह जीवन व्यतीत करने के लिये नहीं वरन् जीने हेतु है अतः इसे सार्थकता से जिया जाये।

संपर्क – म नं सी 149, सी सेक्टर, शाहपुरा भोपाल मप्र 462039, मो – 8755 756 163 E-mail : [email protected]

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ आतिश का तरकश #205 – 91 – “ख़रीद लो ईमान सरे बाज़ार रखा देख कर…” ☆ श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’ ☆

श्री सुरेश पटवा

(श्री सुरेश पटवा जी  भारतीय स्टेट बैंक से  सहायक महाप्रबंधक पद से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं और स्वतंत्र लेखन में व्यस्त हैं। आपकी प्रिय विधा साहित्य, दर्शन, इतिहास, पर्यटन आदि हैं। आपकी पुस्तकों  स्त्री-पुरुष “गुलामी की कहानी, पंचमढ़ी की कहानी, नर्मदा : सौंदर्य, समृद्धि और वैराग्य की  (नर्मदा घाटी का इतिहास) एवं  तलवार की धार को सारे विश्व में पाठकों से अपार स्नेह व  प्रतिसाद मिला है। श्री सुरेश पटवा जी  ‘आतिश’ उपनाम से गज़लें भी लिखते हैं ।प्रस्तुत है आपका साप्ताहिक स्तम्भ आतिश का तरकशआज प्रस्तुत है आपकी भावप्रवण ग़ज़ल “ख़रीद लो ईमान सरे बाज़ार रखा देख कर…”)

? ग़ज़ल # 91 – “ख़रीद लो ईमान सरे बाज़ार रखा देख कर…” ☆ श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’ ?

ज़िंदगी कठिन डगर है चल हवा देख कर,

मुसीबत आती सामने तुझे डरा देख कर।

सत्ता शासन प्रशासन शिक्षा सब मिलता है,

ख़रीद लो ईमान सरे बाज़ार रखा देख कर।

हुकूमती खेल में सच्चाई भी गणित हुई है,

पलट जाते हरिश्चंद बहुमत सजा देखकर।

सब्र करना बहुत मुश्किल पर तड़पना सरल है,

अपने बस का काम कर लेता हवा देख कर।

अब नहीं होती सावन में ख़्वाहिशों की बारिश,

कटोरा थाम ले ‘आतिश’ मुफ़्त मिला देख कर।

© श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’

भोपाल, मध्य प्रदेश

≈ सम्पादक श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – यक्ष प्रश्न ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

? संजय दृष्टि – यक्ष प्रश्न ??

किताब पढ़ना,

गाने सुनना,

टीवी देखना,

तेल लगाना,

औंधे पड़ना,

शवासन करना,

चक्कर लगाना,

दवाई खाना,

नींद के लिए रोज़ाना

हज़ार हथकंडे

अपनाता है आदमी..,

जाने क्या है

आजीवन सोने को उन्मत्त

अंतिम नींद से

घबराता है आदमी..!

© संजय भारद्वाज 

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

💥 महादेव साधना- 30 अगस्त 2023 को सम्पन्न हुई। हम शीघ्र ही आपको अगली साधना की जानकारी देने का प्रयास करेंगे। 🕉️💥

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ “श्री हंस” साहित्य # 81 ☆ मुक्तक ☆ ।। जहां पर भी मैं लिखा है बस उसको अब हम कहना है ।। ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस”☆

श्री एस के कपूर “श्री हंस”

☆ “श्री हंस” साहित्य # 81 ☆

☆ मुक्तक ☆ ।। जहां पर भी मैं लिखा है बस उसको अब हम कहना है ।। ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस” ☆ 

[1]

दुनिया के रैन बसेरे में बस चार दिन रहना है।

जीत लें सबका दिल यह जीवन का गहना है।।

आइए खुद की   नुमाईश   जरा सी कम करें।

जहां पर भी मैं लिखा है उसे बस हम कहना है।।

[2]

दर्पण को   जब कभी  भी   आप   उठाया करें।

पहले खुद देखें फिर किसी को  दिखाया करें।।

हर बातचीत की तासीर में बस प्रेम का वास हो।

इक यही बात सीखेंऔर सबको सिखाया करें।।

[3]

हम से मैं पर आते हीअभिमान शुरु हो जाता है।

मैं से हम पर आते ही परिणाम शुरू हो जाता है।।

नफरत के परे बंदे यह दुनिया बहुत ही रंगीन है।

जो जान लेता सब बातें सम्मान शुरू हो जाता है।।

© एस के कपूर “श्री हंस”

बरेली

ईमेल – Skkapoor5067@ gmail.com

मोब  – 9897071046, 8218685464

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ काव्य धारा # 146 ☆ बाल गीतिका से – “आओ सोचें” ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

(आज प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी  द्वारा रचित बाल साहित्य ‘बाल गीतिका ‘से एक बाल गीत  – “आओ सोचें…” । हमारे प्रबुद्ध पाठकगण प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी  काव्य रचनाओं को प्रत्येक शनिवार आत्मसात कर सकेंगे।) 

 ☆ बाल गीतिका से – “आओ सोचें” ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆

आओ सोचें कि हम सब बिखर क्यों रहे

स्वार्थ में भूलकर अपना प्यारा वतन

क्यों ये जनतंत्र दिखता है बीमार सा

सभी मिलकर करें उसके हित का जतन ।

सबको अधिकार है अपनी उन्नति का

 पर करें जो भी उसमें सदाचार हो

नीति हो, प्रीति हो, सत्य हो, लाभ हो

ध्यान हो स्वार्थ हित न दुराचार हो ।

राह में समस्याएँ तो आती ही हैं

उनके हल के लिये कोई न तकरार हो

सब विचारों का समुदार सन्मान हो

आपसी मेल सद्भावना प्यार हों ।

गाँधी ने राह जो थी दिखाई उसे बीच में 

छोड़ शायद गये हम भटक

था अहिंसा का वह रास्ता ही सही

उसपे चलते तो होती उठा न पटक ।

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

ए २३३ , ओल्ड मीनाल रेजीडेंसी  भोपाल ४६२०२३

मो. 9425484452

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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