हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ “श्री हंस” साहित्य # 81 ☆ मुक्तक ☆ ।। धरती से चांद तक भारत ने बना दिया इतिहास है ।। ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस”☆

☆ मुक्तक ☆ ।। धरती से चांद तक भारत ने बना दिया इतिहास है ।। ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस” ☆ 

श्री एस के कपूर “श्री हंस”

[1]

चांद पर   भारत   ने   परचम    लहराया है।

छूकर दक्षिण  ध्रुव   नया नाम   कमाया है।।

पहला देश बना  इस  छोर   पर जाने वाला।

दूर के चंदा  मामा का  गजब टूर लगाया है।।

[2]

चंद्रयान 3 ने भारत की नई पहचान बनवा दी है।

दुनिया जहान को विश्व  गुरु कहानी सुना दी है।।

विक्रम प्रज्ञान अब  लग गए हैं खोजी काम पर।

आन बान हिंदुस्तान की   आसमान बना दी है।।

[3]

विज्ञान की जीत भारत की कामयाबी बन गई है।

दूर चंदा मामा की सफ़लता  नयाबी बन गई है।।

शानदार जानदार अभूतपूर्व अद्भुत रहा अंजाम।

सारी दुनिया के सवालों की लिए जवाबी बन गई।।

[4]

सोमनाथ ओ उनकी टीम ने रच दिया इतिहास है।

चौथा देश बना भारत ये अवसर  बहुत खास है।।

तिरंगा फहराया  दिया  है चंद्रमा की मिट्टी   पर।

हम मंगल शुक्र भी जीत लेंगे  ऐसा विश्वास है।।

© एस के कपूर “श्री हंस”

बरेली

ईमेल – Skkapoor5067@ gmail.com

मोब  – 9897071046, 8218685464

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ काव्य धारा # 145 ☆ महाकवि तुलसी ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

(आज प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी  द्वारा रचित कविता – “महाकवि तुलसी…”। हमारे प्रबुद्ध पाठकगण प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी  काव्य रचनाओं को प्रत्येक शनिवार आत्मसात कर सकेंगे।) 

 

 ☆ महाकवि तुलसी ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆

हे राम कथा अनुगायक तुलसी, जन मन के अनुपम ज्ञाता

तुमने जो गौरव ग्रंथ लिखा, भटकों को वह पथ दिखलाता।

 

‘मानस’ हिन्दी का चूड़ामणि, मानवताहित तव अमर दान

संचित जिसमें सब धर्म नीति, व्यवहार, प्रीति, आदर्श ज्ञान।

 

हे व्रती उपासक रामभक्त, अनुरक्त सतत साधक ज्ञानी

तुमने जीवन को समझ सही, भावों को दी मार्मिक वाणी ।

 

जनभाषा में करके व्याख्या लिख दी जीवन की परिभाषा

अनुशीलन जिसका देता है दुख में डूबे मन को आशा ।

 

भौतिक संतापों से झुलसी, जीवन लतिका जो मुरझाई

मानस जल कण से सिंचित हो, फिर पा सकती नई हरियाई ।

 

तुम भारत के ही नहीं, सकल मानवता के गौरव महान

गुरू श्रेष्ठ महाकवि हे तुलसी, तुम अतुल विमल नभ के समान।

 

हे भारत-संस्कृति समन्वयक, नित राम तत्व के गुणगायक

तुम धर्मशील, गुण संस्थापक, सात्विक मर्यादा उन्नायक ।

 

शिव-शक्ति-विष्णु की त्रिधा मिला, शुभ रामभक्ति के उद्‌गाता

हितकर सामाजिक मूल्यों के तुम सर्जक, नव जीवन दाता ।

 

सब अपना लेते यदि उसको, जो पथ है तुमने दिखलाया

तो होता सुख-संसार सुलभ, मन जिसे चाह पा न पाया।

 

पर कमी हमारी ही, हममें हैं कई स्वार्थी संसारी

लेकिन जिन मन तव राम बसे, वे सतत तुम्हारे आभारी।

 

साहित्य जगत के प्रखर सूर्य से आसमान हे ख्यात नाम –

अभिवादन है तव चरणों में शत शत वन्दन, शत शत प्रणाम ।

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

ए २३३ , ओल्ड मीनाल रेजीडेंसी  भोपाल ४६२०२३

मो. 9425484452

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ – ऐ खूबसूरत  जिंदगी… – ☆ सौ. रेखा दयानंद हिरेमठ ☆

सौ. रेखा दयानंद हिरेमठ

☆ – ऐ खूबसूरत  जिंदगी… – ☆ सौ. रेखा दयानंद हिरेमठ

आज तुम पे क्या लिखूँ 

ऐ खूबसूरत जिंदगी

कभी तुमने मुझे

कभी मैंने तुम्हें

संवारा है

 

संवारते संवारते  

तूमने मुझे ही

मेरे बेहतर “मैं” से

मिलाया है

 

वो जो स्कूल की किताबें

 न सिखा पायी

 वो पाठ तुमने

 मुझे पढ़ाया है

 

बचपन से अब तक

कौन अपना

कौन पराया

तुम्ही ने तो सिखाया है

 

ना तुमसे कुछ गिला है

न शिकायत है

आखिरकार मेरा वजूद

तुम्ही ने निखारा है

 

अल्हड़ बचपन को

मेरे तुम्ही ने थामा है

युवावस्था में तुम्ही ने

 तो मुझे संजोया है

 

लाड़ली बेटी से समझदार बहू    

 समझदार बहू से कर्तव्य दक्ष माता

 बनने तक के सफर में

 तुम्ही ने तो रास्ता दिखाया है

 

बस यूं ही मुझे

तराशती रहना 

यूं ही मुझे मेरा

निखरा मन

सौंपती रहना

😍दEurek(h)a🥰

© सौ. रेखा दयानंद हिरेमठ

21-8-2023

सांगली

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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हिंदी साहित्य – कविता ☆ “डुगडुगी…” ☆ सुश्री इन्दिरा किसलय ☆

सुश्री इन्दिरा किसलय

☆ कविता ☆ “डुगडुगी…” ☆ सुश्री इन्दिरा किसलय ☆

तुम्हारी नाराजगी के डर से

मैं

अपनी असहमति को

बंदी बना लूं

 

समर्थन की डुगडुगी

सौंप दूं

पल पल उठते सवालों को

कब्र में

सुलाती चलूं

 

बंदरिया के बच्चे की तरह

अगतिकता को

गले से चिपका लूं

अपने सरोकारों से

द्रोह करुं

 

नहीं

मुझसे यह सब न होगा

निर्विकल्पता से

चिढ़ है मुझे

पर

विकल्प भी नहीं है !

 

निर्णय की बेला में

मेरा निरीह हस्तक्षेप

मुझे टकटकी बाँधे

देख रहा है !

 

अंत में

कविता से मेरी उम्मीद

कितनी होनी चाहिए

या

कविता ने मुझसे

कितनी

उम्मीद करनी चाहिए !!!

♡♡♡♡♡

©  सुश्री इंदिरा किसलय 

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – सम्पन्नता ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

? संजय दृष्टि – सम्पन्नता ??

बूढ़े जीवन ने

यकायक पूछा,

कभी सोचा;

अब तक

क्या खोया,

क्या पाया,?

अपनी संपन्नता पर

मैं इतराया,

मर्त्यलोक में

क्षरण के मूल्य पर

अक्षय पाता रहा,

साँसे खोता रहा

अनुभवी होता रहा,

रीता आया था;

सृष्टि सम्पन्न लौट रहा हूँ,

सो खोया कुछ नहीं

बस, पाया ही पाया..!

© संजय भारद्वाज 

30.7.2017, रात्रि 8.18 बजे

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

🕉️ महादेव साधना- यह साधना मंगलवार दि. 4 जुलाई आरम्भ होकर रक्षाबंधन तदनुसार बुधवार 30 अगस्त तक चलेगी 🕉️

💥 इस साधना में इस बार इस मंत्र का जप करना है – 🕉️ ॐ नमः शिवाय 🕉️ साथ ही गोस्वामी तुलसीदास रचित रुद्राष्टकम् का पाठ  🕉️💥

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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English Literature – Poetry ☆ ‘साथ-साथ…’ श्री संजय भारद्वाज (भावानुवाद) – ‘Together’ ☆ Captain Pravin Raghuvanshi, NM ☆

Captain Pravin Raghuvanshi, NM

(Captain Pravin Raghuvanshi —an ex Naval Officer, possesses a multifaceted personality. He served as a Senior Advisor in prestigious Supercomputer organisation C-DAC, Pune. He was involved in various Artificial Intelligence and High-Performance Computing projects of national and international repute. He has got a long experience in the field of ‘Natural Language Processing’, especially, in the domain of Machine Translation. He has taken the mantle of translating the timeless beauties of Indian literature upon himself so that it reaches across the globe. He has also undertaken translation work for Shri Narendra Modi, the Hon’ble Prime Minister of India, which was highly appreciated by him. He is also a member of ‘Bombay Film Writer Association’.

We present an English Version of Shri Sanjay Bhardwaj’s Hindi poem साथ-साथ.  We extend our heartiest thanks to the learned author Captain Pravin Raghuvanshi Ji (who is very well conversant with Hindi, Sanskrit, English and Urdu languages) for this beautiful translation and his artwork.)

श्री संजय भारद्वाज जी की मूल रचना

? संजय दृष्टि – साथ-साथ  ??

चलो कहीं साथ मिल बैठें,

न कोई शब्द बुनें,

न कोई शब्द गुनें,

बस खामोशी कहें,

बस खामोशी सुनें..!

© संजय भारद्वाज 

मोबाइल– 9890122603, संजयउवाच@डाटामेल.भारत, [email protected]

☆☆☆☆☆

English Version by – Captain Pravin Raghuvanshi

? ~ Together…??

Let’s go somewhere

and sit together…

Neither shall we

weave any words,

Nor would we utter

any  words…

We will just talk silently,

Would listen to the

stark silence only..!

~Pravin

© Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Pune

≈ Editor – Shri Hemant Bawankar/Editor (English) – Captain Pravin Raghuvanshi, NM ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ साहित्य निकुंज #196 ☆ भावना के दोहे… ☆ डॉ. भावना शुक्ल ☆

डॉ भावना शुक्ल

(डॉ भावना शुक्ल जी  (सह संपादक ‘प्राची‘) को जो कुछ साहित्यिक विरासत में मिला है उसे उन्होने मात्र सँजोया ही नहीं अपितु , उस विरासत को गति प्रदान  किया है। हम ईश्वर से  प्रार्थना करते हैं कि माँ सरस्वती का वरद हस्त उन पर ऐसा ही बना रहे। आज प्रस्तुत हैं “भावना के दोहे…।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ  # 196 – साहित्य निकुंज ☆

☆ भावना के दोहे… ☆

तन – मन आनंदित हुआ, चले पवन हर ओर।

खिलती बूंदे ओस – सी, मन में उठी झकोर।।

बाट पिया की जोहते, देख रहे हर ओर।

आहट सुनते ही हुआ, चितवन भाव विभोर।।

मन उपवन विचरण करे, प्रेमी चाँद चकोर।

हिल मिल ऐसे मिल रहे, हिया में उठे हिलोर।।

साजन मिलने आ रहे, सजनी उठती भोर।

रग रग में ऐसे उठी, तरंगित हर हिलोर।।

चैन चुराया आपने, ओ मेरे चितचोर।

मेरे मन मोहन बसे, नैना नंदकिशोर।।

© डॉ भावना शुक्ल

सहसंपादक… प्राची

प्रतीक लॉरेल, J-1504, नोएडा सेक्टर – 120,  नोएडा (यू.पी )- 201307

मोब. 9278720311 ईमेल : [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ इंद्रधनुष #181 ☆ संतोष के दोहे  – “सावन” ☆ श्री संतोष नेमा “संतोष” ☆

श्री संतोष नेमा “संतोष”

(आदरणीय श्री संतोष नेमा जी  कवितायें, व्यंग्य, गजल, दोहे, मुक्तक आदि विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं. धार्मिक एवं सामाजिक संस्कार आपको विरासत में मिले हैं. आपके पिताजी स्वर्गीय देवी चरण नेमा जी ने कई भजन और आरतियाँ लिखीं थीं, जिनका प्रकाशन भी हुआ है. आप डाक विभाग से सेवानिवृत्त हैं. आपकी रचनाएँ राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में लगातार प्रकाशित होती रहती हैं। आप  कई सम्मानों / पुरस्कारों से सम्मानित/अलंकृत हैं. “साप्ताहिक स्तम्भ – इंद्रधनुष” की अगली कड़ी में आज प्रस्तुत है संतोष के दोहे  – “सावन”. आप श्री संतोष नेमा जी  की रचनाएँ प्रत्येक शुक्रवार आत्मसात कर सकते हैं।)

☆ साहित्यिक स्तम्भ – इंद्रधनुष # 181 ☆

☆ संतोष के दोहे  – “सावन”  ☆ श्री संतोष नेमा ☆

सावन की बूंदे कहें, आ जाओ मन मीत

गिर कर डालूं प्रेम की, सारी अपनी शीत

भरा क्षोभ से आज मन, मिट्टी मिली फुहार

कहती सावन की घटा, आओ मेरे द्वार

बरस पडूं मैं एक दिन, तेरे ऊपर खूब

भीगे तन मन प्यार से, सुन मेरे महबूब

बार बार आता नहीं, मौसम का यह प्यार

साजन आओ आँगना, छोड़ सभी तकरार

हरी चुनरिया ओढ़कर, धरती करे पुकार

राग-द्वेष सब छोड़िये, देख मेरा श्रंगार

© संतोष  कुमार नेमा “संतोष”

सर्वाधिकार सुरक्षित

आलोकनगर, जबलपुर (म. प्र.) मो 9300101799

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ – कुंडलिया – “सावन और अति वर्षा” ☆ प्रो. (डॉ.) शरद नारायण खरे ☆

प्रो. (डॉ.) शरद नारायण खरे

☆ कुंडलिया – “सावन और अति वर्षा” ☆ प्रो. (डॉ.) शरद नारायण खरे ☆

[1]

सावन आया जल बहक, मौसम में आवेग।

मेघों ने हमको दिया, जल का पावन नेग।।

जल का पावन नेग, क्यारियों में रौनक है।

नदियों में सैलाब, बस्तियों में धक-धक है।

राखी का त्योहार, खुशी के पल लाया है।

ख़ूब पले अनुराग, देख सावन आया है।।

[2]

सावन आया ऐ सुनो, सब कुछ नहीं अनुकूल।

बाढ़ों के चुभने लगे, अब तो तीखे शूल।।

अब तो तीखे शूल,  ज़िन्दगी देखो हारी।

मौसम चढ़ा बुखार, धरा पर भय है ज़ारी।।

बस्ती पाई दर्द, बाढ़ का पानी आया।

बिलखें पीड़ित लोग, जोश में सावन आया।।

[3]

सावन आया मीत सुन, ठंडी चले बयार।

फिर भी कम्बल दूर है, सूना है संसार।।

सूना है संसार, नहीं कुछ भी है भाता।

बस्ती है बेचैन, एक पल चैन न आता।।

दिल में है अब शोक, दुखों का भाव समाया।

आज यही बस सत्य, दर्दमय सावन आया।।

© प्रो.(डॉ.)शरद नारायण खरे

प्राचार्य, शासकीय महिला स्नातक महाविद्यालय, मंडला, मप्र -481661

(मो.9425484382)

ईमेल – [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – हौसला ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

? संजय दृष्टि – हौसला  ??

अपने दुखों से पूछा मैंने;

क्या तुम असीम हो?

उनकी आँखों में

भय उतर आया,

विस्मित मैंने देखा चारों ओर,

अपने पीछे, अपने

हौसले को खड़ा पाया..!

© संजय भारद्वाज 

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

🕉️ महादेव साधना- यह साधना मंगलवार दि. 4 जुलाई आरम्भ होकर रक्षाबंधन तदनुसार बुधवार 30 अगस्त तक चलेगी 🕉️

💥 इस साधना में इस बार इस मंत्र का जप करना है – 🕉️ ॐ नमः शिवाय 🕉️ साथ ही गोस्वामी तुलसीदास रचित रुद्राष्टकम् का पाठ  🕉️💥

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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