हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ जय प्रकाश के नवगीत # 19 ☆ भरोसा है… ☆ श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव ☆

श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

(संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं अग्रज साहित्यकार श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव जी  के गीत, नवगीत एवं अनुगीत अपनी मौलिकता के लिए सुप्रसिद्ध हैं। आप प्रत्येक बुधवार को साप्ताहिक स्तम्भ  “जय  प्रकाश के नवगीत ”  के अंतर्गत नवगीत आत्मसात कर सकते हैं।  आज प्रस्तुत है आपका एक भावप्रवण एवं विचारणीय नवगीत “भरोसा है…” ।)

✍ जय प्रकाश के नवगीत # 19 ☆ भरोसा है… ☆ श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

नदी को भरोसा है

आयेगी कोई लहर

भीगेंगे रेतीले मन।

 

जमे अँधेरों पर

छायेगी धूप

ढके पहाड़ों का

निखरेगा रूप

 

धुंध के मचानों से

सूरज का उजला घर

पिघलेंगे बर्फ़ीले मन।

 

तनकर पगडंडी

सड़क रही टेर

साँझ नदी तट पर

मुँह ठाड़ी फेर

 

गोधूली बेला में

लौटेंगे पाँव सभी

टूटेंगे पथरीले मन।

 

रात के बिछौने

धूप ने भिगोए

कलियों के होंठ

ओस ने निचोए

 

भोर के उजाले में

बहकेंगे आँखों में

काजल सँग सपनीले मन।

***

© श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

सम्पर्क : आई.सी. 5, सैनिक सोसायटी शक्ति नगर, जबलपुर, (म.प्र.)

मो.07869193927,

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ ख्वाहिशें इंसान की जीने नहीं देती है जब… ☆ श्री अरुण कुमार दुबे ☆

श्री अरुण कुमार दुबे

(वरिष्ठ साहित्यकार श्री अरुण कुमार दुबे जी, उप पुलिस अधीक्षक पद से मध्य प्रदेश पुलिस विभाग से सेवा निवृत्त हुए हैं । संक्षिप्त परिचय ->> शिक्षा – एम. एस .सी. प्राणी शास्त्र। साहित्य – काव्य विधा गीत, ग़ज़ल, छंद लेखन में विशेष अभिरुचि। आज प्रस्तुत है, आपकी एक भाव प्रवण रचना “ख्वाहिशें इंसान की जीने नहीं देती है जब“)

✍ ख्वाहिशें इंसान की जीने नहीं देती है जब… ☆ श्री अरुण कुमार दुबे 

आपके जीवन में होती तीरगी कैसे भला

दूर रहती नेकियों की रोशनी कैसे भला

 

परवरिश में मां पिता ने सीख दीं अच्छी सभी

आपके किरदार में रहती कमी कैसे भला

 

रौब रुतबे के नशे में  डूबकर जब जी रहे

आपकी फितरत में होती आज़जी कैसे भला

 

ख्वाहिशें इंसान की जीने नहीं देती है जब

कट रही संजीदगी से ज़िन्दगीं कैसे भला

 

रच रहे फ़ितने भ्रमर उनका है हामी बागवां

रह सके महफ़ूज़ गुलशन में कली कैसे भला

 

भाई भाई का बना दुश्मन फ़ज़ा बिगड़ी हुई

खून की बहती नहीं ऐसी नदी कैसे भला

 

ऐ अरुण तुम रहनुमा को राहजन बतला रहे

वो करेगा अब तुम्हारी रहबरी कैसे भला

© श्री अरुण कुमार दुबे

सम्पर्क : 5, सिविल लाइन्स सागर मध्य प्रदेश

मोबाइल : 9425172009 Email : arunkdubeynidhi@gmail. com

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ – “मित्रता के दोहे…” ☆ प्रो. (डॉ.) शरद नारायण खरे ☆

प्रो. (डॉ.) शरद नारायण खरे

☆ कविता – “मित्रता के दोहे…” ☆ प्रो. (डॉ.) शरद नारायण खरे ☆

नेहिल होती मित्रता, होती सदा पवित्र।

दुख में कर ना छोड़ता, हो यदि सच्चा मित्र ।।

वही मित्र है ख़ास जो, कह दे चोखी बात।

रहे संग वह नित मगर, बनकर के सौगात।।

कृष्ण-सुदामा से सखा, नहीं मिलेंगे और।

ऐसा ही चलता रहे, सख्य भाव का दौर।।

पावनता का तेज हो, निश्छल हों सम्बंध।

बनें सखा मजबूत कर, अनुपम यह संबंध।।

अंतर्मन था निष्कलुष, गहन चेतना भाव।

अमर बने तब मैत्री, होगा नहीं अभाव।।

कृष्ण-सुदामा मैत्री, ने पाया सम्मान।

पनपे ना कोई कपट, केवल मंगलगान।।

एक देव था, एक नर, पर थे चोखे यार।

सख्य भाव देता सदा, हर युग में उजियार।।

ऊँचनीच को भूलकर, बनना चोखे यार।

तब ही यह रिश्ता बने, आजीवन उपहार।।

मित्र करे ग़ल्ती अगर, बतला देना भूल।

पर तजकर के साथ तुम, नहीं चुभाना शूल।।

 रखना हित का भाव नित, रखना उर में प्रीत।

जय होगी तब मित्रता, जय हो ऐसी रीत।।

© प्रो.(डॉ.)शरद नारायण खरे

प्राचार्य, शासकीय महिला स्नातक महाविद्यालय, मंडला, मप्र -481661

(मो.9425484382)

ईमेल – [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कादम्बरी # 15 – पूजी जाने लगी नग्नता… ☆ आचार्य भगवत दुबे ☆

आचार्य भगवत दुबे

(संस्कारधानी जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर आचार्य भगवत दुबे जी को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया है।सीमित शब्दों में आपकी उपलब्धियों का उल्लेख अकल्पनीय है। आचार्य भगवत दुबे जी के व्यक्तित्व एवं कृतित्व की विस्तृत जानकारी के लिए कृपया इस लिंक पर क्लिक करें 👉 ☆ हिन्दी साहित्य – आलेख – ☆ आचार्य भगवत दुबे – व्यक्तित्व और कृतित्व ☆. आप निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणा स्त्रोत हैं। हमारे विशेष अनुरोध पर आपने अपना साहित्य हमारे प्रबुद्ध पाठकों से साझा करना सहर्ष स्वीकार किया है। अब आप आचार्य जी की रचनाएँ प्रत्येक मंगलवार को आत्मसात कर सकेंगे।  आज प्रस्तुत हैं आपकी एक भावप्रवण रचना – पूजी जाने लगी नग्नता…।)

✍  साप्ताहिक स्तम्भ – ☆ कादम्बरी # 15 – पूजी जाने लगी नग्नता… ☆ आचार्य भगवत दुबे ✍

आम आदमी की पीड़ा

से विमुख हुआ चिन्तन

पूजी जाने लगी नग्नता

इतना हुआ पतन

 

बुद्धिवादियों की कविता है

नीरस और उबाऊ

मात्र मंच की चुहुलबाजियाँ

औ मसखरी बिकाऊ

नैतिकता औ राष्ट्रवाद से

वंचित हुआ सृजन

 

कविता में युगबोध नहीं

बस आडम्बर है झूठा

मौलिकता है लुप्त

षिष्टपेषण मिलता है जूठा

मजदूरों की किस्मत में

संत्रास, भूख, ठिठुरन

 

आम आदमी की पीड़ा को

जिन कवियों ने गाया

अकादमिक सम्मान कभी भी

उन्हें नहीं मिल पाया

आज चाटुकारी, जुगाड़ से

होता अभिनन्दन

© आचार्य भगवत दुबे

82, पी एन्ड टी कॉलोनी, जसूजा सिटी, पोस्ट गढ़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ मनोज साहित्य # 92 – मनोज के दोहे… ☆ श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” ☆

श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं सजग अग्रज साहित्यकार श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” जी  के साप्ताहिक स्तम्भ  “मनोज साहित्य ” में आज प्रस्तुत है “मनोज के दोहे…”। आप प्रत्येक मंगलवार को आपकी भावप्रवण रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे।

✍ मनोज साहित्य # 92 – मनोज के दोहे… ☆

१ अंकुर

अंकुर निकसे प्रेम का, प्रियतम का आधार।

नेह-बाग में जब उगे, लगे सुखद संसार ।।

☆ 

२ मंजूषा

प्रेम-मंजूषा ले चली, सजनी-पिय के द्वार।

बाबुल का घर छोड़कर, बसा नवल संसार ।।

☆ 

३ भंगिमा

भाव-भंगिमा से दिखें, मानव-मन उद्गार।

नवरस रंगों से सजा, अन्तर्मन  शृंगार।।

☆ 

४ पड़ाव

संयम दृढ़ता धैर्यता, मंजिल तीन पड़ाव ।

मानव उड़े आकाश में, सागर लगे तलाव।।

☆ 

५ मुलाकात

मुलाकात के क्षण सुखद, मन में रखें सहेज।

स्मृतियाँ पावन बनें, बिछे सुखों की सेज।।

 ©  मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संपर्क – 58 आशीष दीप, उत्तर मिलोनीगंज जबलपुर (मध्य प्रदेश)- 482002

मो  94258 62550

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – मौन… ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

? संजय दृष्टि – मौन… ??

उनके शब्दों से

उपजी वेदना

शब्दों के परे थी

सो होना पड़ा मौन,

अब अपने मौन पर

शब्दों से उपजी

उनकी प्रतिक्रियाएँ

सुन-बाँच रहा हूँ मैं..!

© संजय भारद्वाज 

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

🕉️ महादेव साधना- यह साधना मंगलवार दि. 4 जुलाई आरम्भ होकर रक्षाबंधन तदनुसार बुधवार 30 अगस्त तक चलेगी 🕉️

💥 इस साधना में इस बार इस मंत्र का जप करना है – 🕉️ ॐ नमः शिवाय 🕉️ साथ ही गोस्वामी तुलसीदास रचित रुद्राष्टकम् का पाठ  🕉️💥

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ लेखनी सुमित्र की # 150 – गीत – इसका अर्थ गुलाम नहीं… ☆ डॉ. राजकुमार तिवारी “सुमित्र” ☆

डॉ राजकुमार तिवारी ‘सुमित्र’

(संस्कारधानी  जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर डॉ. राजकुमार “सुमित्र” जी  को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी  हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया।  वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणास्रोत हैं। आज प्रस्तुत हैं  आपका भावप्रवण गीत – इसका अर्थ गुलाम नहीं।)

✍ साप्ताहिक स्तम्भ – लेखनी सुमित्र की # 150 – गीत – इसका अर्थ गुलाम नहीं…  ✍

अर्पित है तन मन सब लेकिन

इसका अर्थ गुलाम नहीं।

 

मन लादे था गौन

मन भर का था मौन

तुझे मिला था कौन?

जिसने मौन किया है मुखरित, भेजा उसे सलाम नहीं।

 

तुझे मिला मन मीत

रचे गंध के गीत

जानी बूझी प्रीत

विदा किया अँधियारा जिसने, क्या वह ललित ललाम नहीं।

 

किसको देता दोष

 ही  के अवगुन कोष

हो जा रे ख़ामोश

जिसने तेरी जड़ता तोड़ी, उस पर कहा कलाम नहीं।

© डॉ राजकुमार “सुमित्र”

112 सर्राफा वार्ड, सिटी कोतवाली के पीछे चुन्नीलाल का बाड़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ अभिनव गीत # 150 – “मन में फिर भी शेष रहे…” ☆ श्री राघवेंद्र तिवारी ☆

श्री राघवेंद्र तिवारी

(प्रतिष्ठित कवि, रेखाचित्रकार, लेखक, सम्पादक श्रद्धेय श्री राघवेंद्र तिवारी जी  हिन्दी, दूर शिक्षा, पत्रकारिता व जनसंचार,  मानवाधिकार तथा बौद्धिक सम्पदा अधिकार एवं शोध जैसे विषयों में शिक्षित एवं दीक्षित। 1970 से सतत लेखन। आपके द्वारा सृजित ‘शिक्षा का नया विकल्प : दूर शिक्षा’ (1997), ‘भारत में जनसंचार और सम्प्रेषण के मूल सिद्धांत’ (2009), ‘स्थापित होता है शब्द हर बार’ (कविता संग्रह, 2011), ‘​जहाँ दरक कर गिरा समय भी​’​ ( 2014​)​ कृतियाँ प्रकाशित एवं चर्चित हो चुकी हैं। ​आपके द्वारा स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम के लिए ‘कविता की अनुभूतिपरक जटिलता’ शीर्षक से एक श्रव्य कैसेट भी तैयार कराया जा चुका है।  आज प्रस्तुत है  आपका एक अभिनव गीत  मन में फिर भी शेष रहे.)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ # 150 ☆।। अभिनव गीत ।। ☆
☆ “मन में फिर भी शेष रहे” ☆ श्री राघवेंद्र तिवारी

उम्मीदों की काट दी गई

ज्यों कि पतंग यहाँ

मन में फिर भी शेष रहे

जीवन के रंग यहाँ

 

बेटे का मुँह ताक ताक कर

थकीं विवश आंखें

चेहरे पर पड़ गई झुर्रियां

ज्यों सूखी दाखें

 

सूरत का अनुपात बिगड़ता

देख हुई चिंतित

खुद का चेहरा घूर घूर कर

रहती दंग यहाँ

 

एक अकेली साड़ी में जब

चार बरस बीते

जीत नहीं पायी संतति-सुख

जिसने जग जीते

 

जितने अर्थ छिपे होते

माँ के सम्बोधन में

सारे अर्थ हो गये हैं

जैसे बदरंग यहाँ

 

माँ, जिसने सर्दी व घाम सहा

भूखे रह कर

वही मर रही अब भी भूखी

जैसे रह रह कर

 

रोज लड़ा करती है

भूखे तन हालातों से

घर से खुद से जर्जर हो

जो भीषण जंग यहाँ

©  श्री राघवेन्द्र तिवारी

21-07-2023 

संपर्क​ ​: ई.एम. – 33, इंडस टाउन, राष्ट्रीय राजमार्ग-12, भोपाल- 462047​, ​मोब : 09424482812​

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – शॉर्टकट ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

? संजय दृष्टि – शॉर्टकट ??

रातों रात

वे कहलाना चाहते हैं सिद्ध,

तिस पर रात भी

बारह घंटे की नहीं चाहते,

सुनो उतावलो!

मूलभूत में

कभी परिवर्तन नहीं होता,

तपस्या का

कोई शॉर्टकट नहीं होता..!

© संजय भारद्वाज

(प्रात: 9:30 बजे, 12 अगस्त 2022)

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

🕉️ महादेव साधना- यह साधना मंगलवार दि. 4 जुलाई आरम्भ होकर रक्षाबंधन तदनुसार बुधवार 30 अगस्त तक चलेगी 🕉️

💥 इस साधना में इस बार इस मंत्र का जप करना है – 🕉️ ॐ नमः शिवाय 🕉️ साथ ही गोस्वामी तुलसीदास रचित रुद्राष्टकम् का पाठ  🕉️💥

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 142 ☆ # लिव-इन और ब्रेक-अप… # ☆ श्री श्याम खापर्डे ☆

श्री श्याम खापर्डे

(श्री श्याम खापर्डे जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी हैं। आप प्रत्येक सोमवार पढ़ सकते हैं साप्ताहिक स्तम्भ – क्या बात है श्याम जी । आज प्रस्तुत है आपकी समसामयिक घटना पर आधारित एक भावप्रवण कविता “# लिव-इन और ब्रेक-अप… #”

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 142 ☆

☆ # लिव-इन और ब्रेक-अप… #

महानगर की चकाचौंध में

दो पंछी उड़ रहे थे

कभी-कभी, कहीं-कहीं पर

आपस में जुड़ रहे थे

बार-बार टकराने से

दोनों हिल गये

उनके बेकाबू दिल

आपस में मिल गये

प्यार की सौंधी-सौंधी खुशबू से

सराबोर हुए

बार-बार मिलने को

बेकरार हुए

मल्टीनेशनल कंपनी में

कार्यरत थे

मोटी तनख्वाह के कारण

जीवन में मस्त थे

दोनों लिव-इन-रिलेशनशिप में

रहने लगे

प्यार के समंदर में बहने लगे

कुछ समय जवानी की

रंगीनियों में बीत गया

प्यार का खुमार भी

धीरे-धीरे रीत गया

तब

दोनों के बीच दूरियां बढ़ गई

‘रिलेशनशिप’ इगो की भेंट चढ़ गई

दोनों लड़कर एक दूसरे से

अलग हो गए

प्यार भरे रिश्ते

कहीं खो गए

 

आजकल लिव-इन और

ब्रेक-अप साथ साथ चल रहे हैं

युवा पीढ़ी के रिश्ते

हर रोज जल रहे हैं

क्या युवा पीढ़ी

विवाह का अर्थ

समझ पायेंगे?

पति-पत्नी के

संबंधों को निभायेंगे ?

या

लिव-इन और ब्रेक-अप के

जाल में फँसते ही जायेंगे ?/

© श्याम खापर्डे

फ्लेट न – 402, मैत्री अपार्टमेंट, फेज – बी, रिसाली, दुर्ग ( छत्तीसगढ़) मो  9425592588

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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