हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ रचना संसार #27 – गीत – भारी है माथे की बिंदी… ☆ सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ’ ☆

सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ’

(संस्कारधानी जबलपुर की सुप्रसिद्ध साहित्यकार सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ ‘जी सेवा निवृत्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश, डिविजनल विजिलेंस कमेटी जबलपुर की पूर्व चेअर पर्सन हैं। आपकी प्रकाशित पुस्तकों में पंचतंत्र में नारी, पंख पसारे पंछी, निहिरा (गीत संग्रह) एहसास के मोती, ख़याल -ए-मीना (ग़ज़ल संग्रह), मीना के सवैया (सवैया संग्रह) नैनिका (कुण्डलिया संग्रह) हैं। आप कई साहित्यिक संस्थाओं द्वारा पुरस्कृत एवं सम्मानित हैं। आप प्रत्येक शुक्रवार सुश्री मीना भट्ट सिद्धार्थ जी की अप्रतिम रचनाओं को उनके साप्ताहिक स्तम्भ – रचना संसार के अंतर्गत आत्मसात कर सकेंगे। आज इस कड़ी में प्रस्तुत है आपकी एक अप्रतिम गीत – भारी है माथे की बिंदी 

? रचना संसार # 2 – गीत – भारी है माथे की बिंदी…  ☆ सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ’ ? ?

निष्ठुर प्रीति जलाती मुझको,

आग लगी है कौन बुझाए।

विरह-वेदना बढ़ती रहती,

नित प्रियतम की याद सताए।।

 *

भारी है माथे की बिंदी

अँसुवन की बहती मधुशाला।

मन वीणा के स्वर अनुकंपित,

पी अधरों ने जैसे हाला।।

गीत नशीले ये सावन के,

अल्हड़ हिय को कौन सुनाए।

 *

धरा प्रणय की सेज बिछाकर,

नील गगन को नित्य पुकारे।

सकुचाई ये धवल चाँदनी,

दर्पण शशि प्रतिबिंब निहारे।

अवगुंठन खोले कलियों का,

भ्रमर निगोड़ा मन ललचाए।।

 *

करती हूँ मैं नित्य प्रतीक्षा,

लगे दिग्भ्रमित बौराई- सी।

सम्मोहित हो कामदेव से,

चंचल रति ये शरमाई -सी।।

वेद ऋचा – सी प्रीति पावनी,

नित्य मिलन की आस लगाए।

© सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ’

(सेवा निवृत्त जिला न्यायाधीश)

संपर्क –1308 कृष्णा हाइट्स, ग्वारीघाट रोड़, जबलपुर (म:प्र:) पिन – 482008 मो नं – 9424669722, वाट्सएप – 7974160268

ई मेल नं- [email protected], [email protected]

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ इंद्रधनुष #236 ☆ यही तो वह संस्कारधानी है… ☆ श्री संतोष नेमा “संतोष” ☆

श्री संतोष नेमा “संतोष”

(आदरणीय श्री संतोष नेमा जी  कवितायें, व्यंग्य, गजल, दोहे, मुक्तक आदि विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं. धार्मिक एवं सामाजिक संस्कार आपको विरासत में मिले हैं. आपके पिताजी स्वर्गीय देवी चरण नेमा जी ने कई भजन और आरतियाँ लिखीं थीं, जिनका प्रकाशन भी हुआ है. आप डाक विभाग से सेवानिवृत्त हैं. आपकी रचनाएँ राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में लगातार प्रकाशित होती रहती हैं। आप  कई सम्मानों / पुरस्कारों से सम्मानित/अलंकृत हैं. “साप्ताहिक स्तम्भ – इंद्रधनुष” की अगली कड़ी में आज प्रस्तुत है  कविता यही तो वह संस्कारधानी है… आप  श्री संतोष नेमा जी  की रचनाएँ प्रत्येक शुक्रवार आत्मसात कर सकते हैं।)

 ☆ साहित्यिक स्तम्भ – इंद्रधनुष # 236 ☆

☆ यही तो वह संस्कारधानी है… ☆ श्री संतोष नेमा ☆

जीवन  में   कुछ  करके  जाना

दुख  औरों   के  हर  के  जाना

पुत्र  हो  सपूत   या  हो  कपूत

तो अब क्या फिर धर के जाना

*

विनोबा भावे ने  जिसे  मानी  है

हां यही तो वह  संस्कारधानी  है

पर किसी ने कहा गुंडों का शहर

ये बात हमें गलत कर दिखानी है

*

माना कि शहर में अपराध बहुत है

पर धार्मिकता भी अगाध बहुत  है

मिल कर  मनाते हैं सभी पर्व यहां

लोगों में  आपसी सौहार्द  बहुत है

© संतोष  कुमार नेमा “संतोष”

वरिष्ठ लेखक एवं साहित्यकार

आलोकनगर, जबलपुर (म. प्र.) मो 70003619839300101799

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – दीपावली ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं।)

? संजय दृष्टि – दीपावली 🪔🏮 ? ?

?

अमावस बन

अँधेरा मुझे डराता रहा,

हर अँधेरे के विरुद्ध

एक दीप मैं जलाता रहा,

उजास की मेरी मुहिम

शनै:-शनै: रंग लाई,

अनगिन दीयों से

रात झिलमिलाई,

सिर पर पैर रख

अँधेरा पलायन कर गया

और इस अमावस

मैंने दीपावली मनाई!

🏮महापर्व दीपावली की हार्दिक मंगलकामनाएँ। 🪔

© संजय भारद्वाज  

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय, एस.एन.डी.टी. महिला विश्वविद्यालय, न्यू आर्ट्स, कॉमर्स एंड साइंस कॉलेज (स्वायत्त) अहमदनगर संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆ 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

💥 दीपावली निमित्त श्री लक्ष्मी-नारायण साधना,आश्विन पूर्णिमा (गुरुवार 17 अक्टूबर) को आरम्भ होकर धन त्रयोदशी (मंगलवार 29 अक्टूबर) तक चलेगी 💥

🕉️ इस साधना का मंत्र होगा- ॐ लक्ष्मी नारायण नम: 🕉️ 

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ समय चक्र # 225 ☆ बाल गीत – दीवाली पर दीप जलाएँ… ☆ डॉ राकेश ‘चक्र’ ☆

डॉ राकेश ‘चक्र

(हिंदी साहित्य के सशक्त हस्ताक्षर डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी  की अब तक कुल 148 मौलिक  कृतियाँ प्रकाशित। प्रमुख  मौलिक कृतियाँ 132 (बाल साहित्य व प्रौढ़ साहित्य) तथा लगभग तीन दर्जन साझा – संग्रह प्रकाशित। कई पुस्तकें प्रकाशनाधीन। जिनमें 7 दर्जन के आसपास बाल साहित्य की पुस्तकें हैं। कई कृतियां पंजाबी, उड़िया, तेलुगु, अंग्रेजी आदि भाषाओँ में अनूदित । कई सम्मान/पुरस्कारों  से  सम्मानित/अलंकृत। भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय द्वारा बाल साहित्य के लिए दिए जाने वाले सर्वोच्च सम्मान ‘बाल साहित्य श्री सम्मान’ और उत्तर प्रदेश सरकार के हिंदी संस्थान द्वारा बाल साहित्य की दीर्घकालीन सेवाओं के लिए दिए जाने वाले सर्वोच्च सम्मान ‘बाल साहित्य भारती’ सम्मान, अमृत लाल नागर सम्मानबाबू श्याम सुंदर दास सम्मान तथा उत्तर प्रदेश राज्यकर्मचारी संस्थान  के सर्वोच्च सम्मान सुमित्रानंदन पंतउत्तर प्रदेश रत्न सम्मान सहित पाँच दर्जन से अधिक प्रतिष्ठित साहित्यिक एवं गैर साहित्यिक संस्थाओं से सम्मानित एवं पुरुस्कृत। 

 आदरणीय डॉ राकेश चक्र जी के बारे में विस्तृत जानकारी के लिए कृपया इस लिंक पर क्लिक करें 👉 संक्षिप्त परिचय – डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी।

आप  “साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र” के माध्यम से  उनका साहित्य प्रत्येक गुरुवार को आत्मसात कर सकेंगे।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र – # 225 ☆ 

बाल गीत – दीवाली पर दीप जलाएँ… 🪔 ☆ डॉ राकेश ‘चक्र’ 

दीप-दीप से आभा बिखरे,

दीवाली पर दीप जलाएँ।

अच्छी सोच, कर्म से अपने,

घर-घर को हम स्वच्छ बनाएँ।

या 

तन-मन-घर को स्वच्छ बनाएँ।

 *

राम अयोध्या लौटे इस दिन,

दुष्टों का संहार किया था।

हर्षित हुए, मनी दीवाली,

अतिशय सबने प्यार दिया था।

 *

आराध्य देव राम हैं अपने,

उनके गुण हम सब अपनाएँ।

 *

युगों-युगों से मने दिवाली,

लक्ष्मी जी भी प्रकट हुईं थीं।

पूजा करें भाव से उनकी,

जगमग-जगमग निशा हुई थी।

 *

पाँच दिनी सनातनी उत्सव,

धूमधाम से सभी मनाएँ।

 *

बम-पटाखे करें प्रदूषण,

इनसे हमको बचना होगा।

हरित पटाखे लाएं हम सब,

वायु को स्वच्छ रखना होगा।

 *

काम करेंगे सोच -समझकर

फूलो-सा जीवन महकाएँ।

 *

आत्मोथान तभी है होता,

जब हम मन के शत्रु पछाड़ें।

ईर्ष्या, द्वेष, वैर को अपने,

प्रेम, सत्य को उर में धारें।

*

दान, दया के दीपक लेकर,

हम संतुष्टि के भाव जगाएँ।

© डॉ राकेश चक्र

(एमडी,एक्यूप्रेशर एवं योग विशेषज्ञ)

90 बी, शिवपुरी, मुरादाबाद 244001 उ.प्र.  मो.  9456201857

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ जय प्रकाश के नवगीत # 76 ☆ बालगीत – गाँधी जी ने… ☆ श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव ☆

श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

(संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं अग्रज साहित्यकार श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव जी  के गीत, नवगीत एवं अनुगीत अपनी मौलिकता के लिए सुप्रसिद्ध हैं। आप प्रत्येक बुधवार को साप्ताहिक स्तम्भ  “जय  प्रकाश के नवगीत ”  के अंतर्गत नवगीत आत्मसात कर सकते हैं।  आज प्रस्तुत है आपका एक भावप्रवण एवं विचारणीय बालगीत  “गाँधी जी ने…” ।

✍ जय प्रकाश के नवगीत # 76 ☆ बालगीत – गाँधी जी ने… ☆ श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

पीछे मुड़कर नहीं देखना

हरदम आगे ही बढ़ना है

यही सिखाया गाँधी जी ने।

नहीं बोलना बुरा

और न ही सुनना है

नहीं देखना बुरा

यही मंतर गुनना है

यही पढ़ाया गाँधी जी ने।

सत्य अहिंसा का पथ

सदा हमें चुनना है

अपने कर्तव्यों से पीछे

कभी नहीं हटना है

यही रटाया गाँधी जी ने।

बुनियादी शिक्षा के चलते

खुद निर्भर बनना है

संस्कृति और सभ्यता वाले

पाठ हमें पढ़ना है

यही बताया गाँधी जी ने।

***

© श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

सम्पर्क : आई.सी. 5, सैनिक सोसायटी शक्ति नगर, जबलपुर, (म.प्र.)

मो.07869193927,

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – दीपावली  ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं।)

? संजय दृष्टि – दीपावली  ? ?

🏮

अँधेरा मुझे डराता रहा,

हर अँधेरे के विरुद्ध

एक दीप मैं जलाता रहा,

उजास की मेरी मुहिम

शनै:-शनै: रंग लाई,

अनगिन दीयों से

रात झिलमिलाई,

सिर पर पैर रख

अँधेरा पलायन कर गया

और इस अमावस

मैंने दीपावली मनाई ! 🏮

एक-दूसरे के घर जाकर दीपावली मिलने की परंपरा को बढ़ावा दें। सामासिकता एवं सांस्कृतिक एकात्मता का विस्तार करें।

?

© संजय भारद्वाज  

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय, एस.एन.डी.टी. महिला विश्वविद्यालय, न्यू आर्ट्स, कॉमर्स एंड साइंस कॉलेज (स्वायत्त) अहमदनगर संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆ 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

💥 दीपावली निमित्त श्री लक्ष्मी-नारायण साधना,आश्विन पूर्णिमा (गुरुवार 17 अक्टूबर) को आरम्भ होकर धन त्रयोदशी (मंगलवार 29 अक्टूबर) तक चलेगी 💥

🕉️ इस साधना का मंत्र होगा- ॐ लक्ष्मी नारायण नम: 🕉️ 

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साहित्यिक स्तम्भ ☆ कविता # 80 ☆ तेरी तक़रीर है झूठी तेरे वादे झूठे… ☆ श्री अरुण कुमार दुबे ☆

श्री अरुण कुमार दुबे

(वरिष्ठ साहित्यकार श्री अरुण कुमार दुबे जी, उप पुलिस अधीक्षक पद से मध्य प्रदेश पुलिस विभाग से सेवा निवृत्त हुए हैं । संक्षिप्त परिचय ->> शिक्षा – एम. एस .सी. प्राणी शास्त्र। साहित्य – काव्य विधा गीत, ग़ज़ल, छंद लेखन में विशेष अभिरुचि। आज प्रस्तुत है, आपकी एक भाव प्रवण रचना “तेरी तक़रीर है झूठी तेरे वादे झूठे“)

☆ साहित्यिक स्तम्भ ☆ कविता # 80 ☆

✍ तेरी तक़रीर है झूठी तेरे वादे झूठे… ☆ श्री अरुण कुमार दुबे 

वक़्त का क्या है ये लम्हे नहीं आने वाले

मुड़के इक बार जरा देख तो जाने वाले

 *

हम बने लोहे के कागज़ के न समझ लेना

खाक़ हो जाएगें खुद हमको जलाने वाले

 *

बच्चे तक सिर पे कफ़न बाँध के   घूमें इसके

जड़ से मिट जाए ये भारत को मिटाने वाले

 *

तुम वफ़ा का कभी अपनी भी तो मीज़ान करो

बेवफा होने का इल्ज़ाम लगाने वाले

 *

वोट को फिर से भिखारी से फिरोगे दर दर

सुन रिआया की लो सरकार चलाने वाले

 *

सामने कीजिये जाहिर या इशारों से बता

अपने जज़्बातों को दिल में ही दबाने वाले

 *

हम फरेबों में तेरे खूब पड़े हैं अब तक

बाज़ आ हमको महज़ ख़्वाब दिखाने वाले

 *

तेरी तक़रीर है झूठी तेरे वादे झूठे

शर्म खा अपने फ़क़त गाल बजाने वाले

 *

तेरे खाने के दिखाने के अलग दाँत रहे

ताड हमने लिया ओ हमको लड़ाने वाले

 *

पट्टिका में है अरुण नाम वज़ीरों का बस

याद आये न पसीने को बहाने वाले

© श्री अरुण कुमार दुबे

सम्पर्क : 5, सिविल लाइन्स सागर मध्य प्रदेश

सिरThanks मोबाइल : 9425172009 Email : arunkdubeynidhi@gmail. com

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कादम्बरी # 76 – जाँ निसारी का हुनर है आशिकी… ☆ आचार्य भगवत दुबे ☆

आचार्य भगवत दुबे

(संस्कारधानी जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर आचार्य भगवत दुबे जी को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया है।सीमित शब्दों में आपकी उपलब्धियों का उल्लेख अकल्पनीय है। आचार्य भगवत दुबे जी के व्यक्तित्व एवं कृतित्व की विस्तृत जानकारी के लिए कृपया इस लिंक पर क्लिक करें 👉 ☆ हिन्दी साहित्य – आलेख – ☆ आचार्य भगवत दुबे – व्यक्तित्व और कृतित्व ☆. आप निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणा स्त्रोत हैं। हमारे विशेष अनुरोध पर आपने अपना साहित्य हमारे प्रबुद्ध पाठकों से साझा करना सहर्ष स्वीकार किया है। अब आप आचार्य जी की रचनाएँ प्रत्येक मंगलवार को आत्मसात कर सकेंगे।  आज प्रस्तुत हैं आपकी एक भावप्रवण रचना – जाँ निसारी का हुनर है आशिकी।)

✍  साप्ताहिक स्तम्भ – ☆ कादम्बरी # 77 – जाँ निसारी का हुनर है आशिकी… ☆ आचार्य भगवत दुबे ✍

मौत ने, अहसान हम पर ये किया

उसने मेरा कत्ल, किश्तों में किया

 *

हमको, धोखे के सिवा कब, क्या मिला

बात पर तेरी, यकीं हमने किया

 *

नोंचकर, चट्टान का मुँह, आए हैं 

जंग का ऐलान, यूँ हमने किया

 *

वो, भिखारी या फरिश्ता कौन था 

उसको दुतकारा, बुरा तुमने किया

 *

जाँ निसारी का हुनर है आशिकी 

जलकर, परवाने ने पुख्ता ये किया

 *

पाँव फिसला, गोद में आकर गिरे 

तुमने ये अहसान अनजाने किया

https://www.bhagwatdubey.com

© आचार्य भगवत दुबे

82, पी एन्ड टी कॉलोनी, जसूजा सिटी, पोस्ट गढ़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ मनोज साहित्य # 149 – पुणे शहर की यह धरा… ☆ श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” ☆

श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं सजग अग्रज साहित्यकार श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” जी  के साप्ताहिक स्तम्भ  “मनोज साहित्य ” में आज प्रस्तुत है आपकी भावप्रवण कविता “सजल – बदल गया है आज जमाना। आप प्रत्येक मंगलवार को आपकी भावप्रवण रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे।

✍ मनोज साहित्य # 149 – पुणे शहर की यह धरा… ☆

पुणे शहर की यह धरा, मन में भरे उमंग।

किला सिंहगढ़ का यहाँ, छाई-शिवा तरंग।।

*

हरियाली चहुँ ओर है, ऊँचे शिखर पहाड़।

मौसम की अठखेलियाँ, मातृ-भूमि से लाड़।।

*

भीमाशंकर है यहाँ, अष्ट विनायक सिद्ध।

दगड़ू सेठ गणेश जी, मंदिर बहुत प्रसिद्ध।।

*

महाबलेश्वर की छटा, फिल्म जगत की जान।

शिव मंदिर प्राचीन यह, हरित प्रकृति की शान।।

*

छत्रपति महाराज की, धरा रही यह खास।

जन्म भूमि शिवनेरि की, नगरी आई रास।।

*

मराठा साम्राज्य का, केन्द्र बिंदु यह खास।

मुगलों के हर आक्रमण, प्रतिउत्तर आभास।।

*

छल-छद्मों को मार कर, जीते थे हर युद्ध।

गले लगाया प्रजा को, बनकर गौतम बुद्ध।।

*

मुगलों का हो आक्रमण, अंग्रेजों से युद्ध।

पुणे-मराठा अग्रणी, यश-अर्जन  सुप्रसिद्ध।।

*

पेशवाइ साम्राज्य का, प्रमुख रहा यह केंद्र।

स्वाभिमान स्वातंत्र्य की, ज्योति जली रमणेंद्र।।

*

विदेशों से कम नहीं, पूना का परिवेश।

ऊँची बनीं इमारतें, देतीं शुभ संदेश ।।

*

शिक्षा का यह केंद्रबिंदु, रोजगार भरपूर।

शांत सौम्य वातावरण, दर्शनीय हैं टूर।।

*

आई टी का हब बना, विश्व में चर्चित नाम।

देश विदेशी कंपनियाँ, करें रात-दिन काम।।

*

बैंगलोर मुंबई नगर, प्रसिद्ध हैदराबाद।

पुणे शहर की शान को, सब देते हैं दाद।।

*

भारत का छठवाँ शहर, बना हुआ अनमोल।

शहर बड़ा यह काम का,सभ्य सुसंस्कृति बोल।।

©  मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संपर्क – 58 आशीष दीप, उत्तर मिलोनीगंज जबलपुर (मध्य प्रदेश)- 482002

मो  94258 62550

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ विवेक साहित्य # 309 ☆ कविता – “घृणा से निपटना ही होगा…  …” ☆ श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ☆

श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक सहित्य # 309 ☆

?  कविता – घृणा से निपटना ही होगा…  ? श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ☆

मुफ्त  है

घृणा,

वही बंट रही है

दुनियां भर में

मुलम्मा चढ़ाया जाता है

घृणा पर

श्रेष्ठता और गर्व का

राजनैतिक दलों द्वारा

वोटों का सौदा करने

उम्दा जांचा परखा

फार्मूला है यह

एक वर्ग के

मन में

दूसरे के प्रति

नफरत भरना

आसान है।

 

कहीं जाति

कहीं मूल निवासी

कहीं सोशल स्टेटस

कहीं गोरा काला

इत्यादि इत्यादि

के वर्ग बनाना सरल है

निंदा , ईर्ष्या की फसलें खरपतवार सी उपजती हैं ।

मुश्किल है

पराली के धुएं सी

 छा जाती इस

धुंध से पार पाना

पर

इस मुश्किल से

है निपटना दुनियां को हर हाल में।

चुनौती है

जहरीले झाग से

यमुनोत्री से आती

मछलियों के

सुकोमल

मन तन को बचाना

पर बचाना तो है ही

घृणा के बारूद से दुनियां।

© श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ 

म प्र साहित्य अकादमी से सम्मानित वरिष्ठ व्यंग्यकार

संपर्क – ए 233, ओल्ड मिनाल रेजीडेंसी भोपाल 462023

मोब 7000375798, ईमेल [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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